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एक खास विरासत की आशीष

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जीवन कहानी

एक खास विरासत की आशीष

कॆरल ऎलन की ज़ुबानी

मैं बहुत डरी और सहमी हुई थी और एक सुंदर नयी किताब को अपने हाथों में कस के जकड़े हुए थी। मेरी आँखों से आँसू रुकने का नाम नहीं ले रहे थे। और रुकते भी कैसे? एक अनजान शहर में, सात साल की नन्ही-सी जान, अगर हज़ारों लोगों की भीड़ में गुम हो जाए तो भला वह और क्या करती!

पैटर्सन, न्यू यॉर्क के वॉच टावर एड्यूकेशनल सॆंटर में एक तस्वीर ने अचानक ही मेरे बचपन की इस घटना की याद ताज़ा कर दी, जो करीब 60 साल पहले हुई थी। मैं अपने पति, पॉल के साथ वहाँ गई थी, जिन्हें यहोवा के साक्षियों के सफरी ओवरसियर की ट्रेनिंग के लिए बुलाया गया था।

दरअसल जब मैं वहाँ गलियारे में एक बड़े बोर्ड पर अधिवेशनों की पुरानी तस्वीरें देख रही थी, तभी मेरी नज़र उस तस्वीर पर पड़ी जिसके नीचे लिखा था: “1941—सॆंट लूइस, मिज़ूरी में हुआ अधिवेशन। सुबह के सैशन के समय 5 से 18 साल के बीच के करीब 15,000 बच्चे स्टेज के ठीक सामने इकट्ठा हुए थे। . . . उस समय भाई रदरफर्ड ने नयी किताब, चिल्ड्रन रिलीज़ की थी।” उन सभी बच्चों को इस किताब की एक-एक कॉपी तोहफे में दी गयी थी और उस तस्वीर में सभी बच्चे बड़ी खुशी से चिल्ड्रन पुस्तक की अपनी-अपनी कॉपी दिखा रहे थे।

अपनी-अपनी कॉपी लेकर सभी बच्चे अपने माँ-बाप के पास लौट गए। मगर मैं उस बड़ी भीड़ में खो गयी थी और मैं रोने लगी। इसी घटना के बारे में मैंने ऊपर बताया है। जब एक भाई ने मुझे देखा, तो उन्होंने मुझे उठाकर एक ऊँचे कंट्रिब्यूशन बॉक्स पर खड़ा कर दिया और कहा कि अगर मुझे कोई पहचानवाला दिखे तो मैं उसे आवाज़ दूँ। मैं डरी सहमी-सी अपने पास से गुज़र रही भीड़ को देख रही थी। अचानक मुझे एक जाना-पहचाना चेहरा दिखा, और मैं पूरी ताकत लगाकर चिल्लाई, “अंकल बॉब! अंकल बॉब!” उन्हें देखकर मेरी जान में जान आ गयी! वो बॉब रेनर थे, जिन्होंने मुझे गोद में उठाया और मेरे मम्मी-पापा के पास पहुँचा दिया, जिनकी जान भी मेरी चिंता में सूख गयी थी।

मेरा खानदान

पैटर्सन के गलियारे में टंगी उस तस्वीर ने और भी कई पुरानी यादें ताज़ा कर दीं। मुझे करीब सौ साल पहले की घटनाएँ याद आने लगीं, जिनके बारे में मैंने दादा-दादी, और नाना-नानी से और मेरे मम्मी-पापा से सुन रखा था। इन्हीं घटनाओं ने और ऐसी कई बातों ने मेरी ज़िंदगी को ढाला है, जिसकी वजह से आज मैं इस मुकाम तक पहुँची हूँ।

दिसंबर 1894 की बात है। मेरे दादा क्लेटन जे. वुडवर्थ शादी करके पॆंसिल्वेनिया, अमरीका के स्क्रॆनटन शहर में रह रहे थे। उनसे एक बाइबल विद्यार्थी मिलने आया, जिन्हें आज यहोवा के साक्षी कहा जाता है। उस बाइबल विद्यार्थी ने जो कहा, वह दादाजी को इतना पसंद आया कि उन्होंने वॉच टावर बाइबल एण्ड ट्रैक्ट सोसाइटी के अध्यक्ष, चार्ल्स टेज़ रस्सल के नाम एक खत लिखा, जो जून 15, 1895 की वॉचटावर में छपा था। उन्होंने लिखा था:

“हम जवान पति-पत्नी हैं और करीब दस साल से एक छोटे-से चर्च के सदस्य हैं। मगर अब लगता है कि परमेश्‍वर के हम पवित्र बच्चों को रात के अंधेरे में से, दिन के उजाले में लाया गया है। . . . शादी के पहले से ही हम दोनों की यह दिली ख्वाहिश थी कि अगर प्रभु की इच्छा हो तो हम किसी मिशनरी बनकर दूसरे देश में परमेश्‍वर की सेवा करेंगे।”

मेरे परनाना और परनानी, सबॆस्चन और कैथरीन क्रेज़गी ने 1903 में बाइबल का संदेश पहली बार सुना था, जब वॉच टावर संस्था से कार्ल हेमर्ली और रे रैटक्लिफ उनसे मिलने आए थे। मेरे परनाना और परनानी पॆंसिल्वेनिया के सुंदर पोकनो पहाड़ में एक बड़े फार्म में अपनी दो बेटियों, कोरा और मॆरी और उनके पति वॉशिंगटन और एडमंट हॉवॆल के साथ हॉवॆल फार्म में रहते थे। कार्ल और रे की बातें सभी को बहुत अच्छी लगीं। इसलिए कार्ल और रे उनके साथ एक हफ्ते रहे। परिवार के सभी सदस्यों ने उनसे काफी कुछ सीखा, और जल्द ही जोशीले बाइबल विद्यार्थियाँ बन गए।

उसी साल कोरा और वॉशिंगटन को एक बच्ची पैदा हुई, जिसका नाम उन्होंने कैथरीन रखा। बड़ी होने पर कैथरीन की शादी क्लेटन जे. वुडवर्थ जूनियर से हुई। उन दोनों की शादी मेरे दादा क्लेटन जे. वुडवर्थ सीनियर ने कैसे करवाई, यह कहानी न सिर्फ मज़ेदार है, बल्कि उससे कुछ सीखा भी जा सकता है। मेरे दादा बड़े समझदार इंसान थे और अपने बच्चे के लिए वाकई परवाह दिखाते थे।

मेरे पापा को दी गई प्यार भरी मदद

मेरे पापा, क्लेटन जूनियर का जन्म 1906 को स्क्रॆनटन शहर में हुआ था जो हावॆल फार्म से करीब 80 किलोमीटर दूरी पर था। उन दिनों मेरे दादाजी की मेरी मम्मी के परिवार के साथ अच्छी जान-पहचान हो गयी थी। कई बार उन्होंने उनकी मेहमाननवाज़ी का भी लुत्फ उठाया था। दादाजी ने उस इलाके के बाइबल विद्यार्थियों की कलीसिया की बड़ी मदद की थी। आगे जाकर हॉवॆल के तीनों बेटों की शादी करवाने के लिए दादाजी को बुलवाया गया। दादाजी उनकी शादियों में अपने बेटे को, यानी पापा को भी साथ में ले गए थे, क्योंकि उन्हें अपने बेटे के भविष्य की चिंता थी।

मेरे पापा को प्रचार काम के लिए इतना जोश नहीं था, हालाँकि वे दादाजी को प्रचार के लिए गाड़ी में ले जाते थे। दादाजी के उकसाने पर कभी-कभी वे प्रचार में थोड़ा-बहुत हिस्सा ले लेते थे। मगर पापा के दिमाग पर तो संगीत का जुनून सवार था। वे इसे अपना पेशा बनाना चाहते थे।

मेरी मम्मी, कैथरीन भी बहुत अच्छा संगीत बजाती थीं। वे पियानो बजाती थीं और दूसरों को भी सिखाती थीं। लेकिन जब उन्हें संगीत को अपना पेशा बनाने का मौका मिला, तो उन्होंने उसे ठुकरा दिया क्योंकि वे पूरे समय की सेवकाई में भाग लेना चाहती थीं। शायद इसीलिए दादाजी को लगा कि मेरे पापा के लिए कैथरीन से अच्छी जीवन-साथी नहीं मिल सकती! बाद में पापा का भी बपतिस्मा हो गया और छः महीने बाद, जून 1931 में दोनों की शादी हो गई।

दादाजी को पापा के संगीत बजाने की काबिलीयत पर हमेशा नाज़ था। वे तो खुशी से फूले नहीं समाए, जब उन्हें पता चला कि पापा को एक बड़े अधिवेशन में ऑरकेस्ट्रा को ट्रेनिंग देने के लिए कहा गया है। यह बड़ा अधिवेशन 1946 के क्लीवलैंड, ओहायो का अंतर्राष्ट्रीय अधिवेशन था। उसके बाद कई सालों तक पापा ने यहोवा के साक्षियों के दूसरे कई अधिवेशनों में ऑरकेस्ट्रा का निर्देशन किया।

दादाजी का मुकद्दमा और जेल की सज़ा

पैटर्सन के गलियारे में ही पॉल और मैंने एक और तस्वीर देखी जो अगले पन्‍ने पर छपी है। मैंने फौरन उस तस्वीर को पहचान लिया क्योंकि करीब 50 साल पहले दादाजी ने मुझे इसी तस्वीर की एक कॉपी भेजी थी। इस तस्वीर में मेरे दादाजी बिलकुल दाएँ खड़े हैं।

पहले विश्‍वयुद्ध के दौरान जब सबकी रगो में देशभक्‍ति का खून दौड़ रहा था, तब इन आठ बाइबल विद्यार्थियों को गलत इलज़ाम में कैद किया गया था और अदालत ने उनकी ज़मानत भी नामंज़ूर कर दी थी। इनमें वॉच टावर सोसाइटी के अध्यक्ष, जोसफ एफ. रदरफर्ड (तस्वीर में बिलकुल बीच में बैठे हैं) और मेरे दादाजी भी थे। उन पर स्टडीज़ इन द स्क्रिपचर्स की सातवीं किताब, द फिनिश्‍ड मिस्ट्री को लेकर इलज़ाम लगाया गया था। उस किताब में छपी कुछ बातों का सरकार ने गलत मतलब निकाला और कहा कि यह किताब अमरीका के लोगों को पहले विश्‍वयुद्ध में भाग लेने से रोक रही है।

कई सालों के दौरान भाई चार्ल्स टेज़ रस्सल ने स्टडीज़ इन द स्क्रिपचर्स की पहली छः किताबें लिखी थीं। मगर सातवीं किताब लिखने से पहले ही वे चल बसे। सो, उनके नोट्‌स मेरे दादाजी को और एक और बाइबल विद्यार्थी को दिए गए, और उनसे सातवीं किताब लिखने को कहा गया। यह किताब 1917 को युद्ध खत्म होने से पहले रिलीज़ की गई थी। मुकद्दमे में मेरे दादाजी और बाकी सात में से ज़्यादातर बाइबल विद्यार्थियों पर चार अलग-अलग इलज़ाम लगाये गये, और हर इलज़ाम के लिए उन्हें 20 साल कैद की सज़ा सुनाई गई।

गलियारे में टंगी उस तस्वीर के नीचे लिखा था: “रदरफर्ड और उसके साथियों को सज़ा होने के नौ महीने बाद, यानी युद्ध के खत्म होने के बाद, मार्च 21, 1919 को अदालत ने उन्हें ज़मानत पर रिहा करने का हुक्म दिया। और मार्च 26 को ब्रुकलिन में उन आठों को दस-दस हज़ार डॉलर की ज़मानत पर रिहा किया गया। फिर मई 5, 1920 को उन पर लगाए गए सारे इलज़ाम हटा दिए गए।”

सज़ा सुनाए जाने के बाद, उन्हें कुछ दिनों के लिए ब्रुकलिन, न्यू यॉर्क के रेमंड स्ट्रीट जेल में रखा गया था। रेमंड जेल के बारे में दादाजी ने लिखा कि जेल की कोठरी की लंबाई 6 फुट और चौड़ाई 8 फुट है, और “यह जगह इतनी घटिया और गंदी है कि पूछो मत!” उन्होंने आगे कहा: “नहाने का यहाँ पर बहुत बढ़िया इंतज़ाम है। साबुन का एक छोटा-सा टुकड़ा रखा हुआ है और कुछ मैले-कुचैले कपड़े रखे हुए हैं, पर पानी की एक बूँद नहीं है। साथ ही, यहाँ अखबारों का एक ढेर पड़ा हुआ है। तुम ही समझ लो ये किस काम के लिए है।”

ऐसे हालात में भी दादाजी का मज़ाकिया स्वभाव कभी नहीं गया। उन्होंने खत में रेमंड जेल को “होटल रेमंड” कहा, मानो यह जेल एक बहुत आलीशान फाइव-स्टार होटल हो। दादाजी ने कहा: “जैसे ही मेरे रहने का समय पूरा हो जायेगा, मैं इस होटल के कमरे को खाली कर दूँगा।” वे जेल के आँगन में टहलते भी थे। उन्होंने इसी का एक किस्सा सुनाया। एक बार टहलते-टहलते वे अपने बाल सँवारने के लिए रुक गए। तभी एक जेबकतरे ने उनकी जेब से घड़ी मारने की कोशिश की। मगर दादाजी ने कहा कि “घड़ी की चैन टूट गई और घड़ी बच गयी।” दादाजी ने यह घड़ी भाई ग्रांट सूटर को दी। 1958 को जब मैं ब्रुकलिन बेथेल गई, तब भाई सूटर ने मुझे अपने ऑफिस में बुलाया और दादाजी की वही घड़ी मुझे दी। मैंने आज तक उस घड़ी को बड़ी हिफाज़त से रखा है।

पापा पर असर

जब 1918 में दादाजी को गलत इलज़ाम पर कैद किया गया था, तब मेरे पापा सिर्फ 12 साल के थे। दादी-माँ घर पर ताला लगाकर अपनी माँ के घर रहने चली गईं, जहाँ उनकी और तीन बहनें भी रहती थीं। दादी-माँ आर्थर परिवार से थीं, और वे बड़े फक्र के साथ कहती थी कि अमरीका के 21वें राष्ट्र-पति, चेस्टर ऐलन आर्थर हमारे रिश्‍तेदार थे।

इसलिए जब दादाजी पर देशद्रोह का इलज़ाम लगाकर उन्हें लंबी सज़ा सुनाई गई, तो आर्थर परिवार को लगा कि दादाजी ने उनके परिवार का नाम मिट्टी में मिला दिया है। मेरे पापा के लिए यह सब सहना इतना आसान नहीं था। शायद इसीलिए वे शुरू-शुरू में प्रचार में जाने से हिचकिचाते थे।

जेल से रिहा होने के बाद, दादाजी अपने परिवार के साथ स्क्रॆनटन शहर के क्विन्ज़ी स्ट्रीट में बस गये। मम्मी-पापा शादी के बाद अलग घर में रहने चले गये थे। मैं बचपन में दादा-दादी के यहाँ आया करती थी। मुझे दादी की एक बात अच्छी तरह से याद है कि वह कैसे अपने चीनी बर्तनों को बड़ी सँभालकर रखती थी। उन बर्तनों को वह किसी को भी हाथ लगाने नहीं देती थी और खुद उन्हें धोती थी। इसलिए हम उन बर्तनों को पवित्र बर्तन कहते थे। 1943 में दादी-माँ के गुज़र जाने के बाद मेरी मम्मी ने भी उन बर्तनों को अच्छी तरह सँभाला, और कई सालों तक उनका इस्तेमाल किया।

राज्य सेवा में व्यस्त रहना

पैटर्सन में अगले दिन, मैंने एक और तस्वीर देखी, जिसमें 1919 के सीडर पॉइन्ट, ओहायो के अधिवेशन में भाई रदरफर्ड भाषण दे रहे थे। उस अधिवेशन में उन्होंने सभी को बड़े जोश के साथ परमेश्‍वर के राज्य का ऐलान करने के लिए कहा और इसके लिए उसी अधिवेशन में रिलीज़ की गयी एक नयी पत्रिका, द गोल्डन एज का इस्तेमाल करने को कहा। दादाजी को उस पत्रिका का संपादक बनाया गया। उन्होंने अपनी मौत के कुछ समय पहले तक पत्रिका के लिए लेख लिखे। आखिर में 1940 में उनकी मौत हो गयी। 1937 में इस पत्रिका का नाम बदलकर कॉन्सलेशन रखा गया और फिर 1946 में अवेक!

दादाजी अपना संपादक का काम स्क्रॆनटन के अपने घर में भी करते थे और घर से करीब 240 किलोमीटर दूर वॉच टावर के मुख्यालय, ब्रुकलिन में भी। वे दो हफ्ते घर में बिताते थे और दो हफ्ते मुख्यालय में। पापा कहते थे कि सुबह पाँच बजे से ही दादाजी के टाइपिंग करने की आवाज़ सुनाई देती थी। मगर फिर भी दादाजी प्रचार में जाने के लिए समय ज़रूर निकालते थे। दरअसल प्रचार के लिए उन्होंने भाइयों के लिए एक ऐसे पोशाक की डिज़ाइन की, जिसमें किताबें रखने के लिए अंदर की तरफ बड़ी-बड़ी जेबें थीं। मेरी मामी, नओमी हॉवॆल जो 94 साल की हैं, उनके पास आज भी वैसी एक पोशाक है। साथ ही, उन्होंने बहनों के लिए किताब रखने के लिए एक बैग डिज़ाइन की थी।

एक बार, प्रचार में बाइबल पर एक अच्छी चर्चा के बाद, दादाजी के पार्टनर ने कहा: “सी. जे. आप कुछ भूल गए हैं।”

दादाजी ने पूछा: “क्या?” तब उन्होंने अपनी पोशाक की जाँच की और देखा कि वे क्या भूल गए हैं।

तब उनके पार्टनर ने कहा: “आप द गोल्डन एज का सबस्क्रिपशन देना भूल गए।” इस बात पर दोनों ही खूब हँसे कि द गोल्डन एज के संपादक साहब ही अपनी मैगज़ीन देना भूल गए।

बचपन की यादें

मुझे आज भी याद है कि किस तरह बचपन में, दादाजी मुझे अपनी गोद में बिठाकर और मेरा हाथ अपने हाथों में लेकर “उँगलियों की कहानी” सुनाते थे। उन्होंने हर उँगली को नाम दे रखा था। वे अंगूठे से शुरू करते थे, जैसे “टॉमी थम्ब,” फिर “पीटर पॉइन्टर” वगैरह वगैरह। वे अपनी कहानी में हरेक उँगली की खासियत बताते थे। उसके बाद मेरी सारी उँगलियों को मुट्ठी बनाकर कहानी का सबक देते थे: “जब सभी करें मिलकर काम, तो काम कभी ना हो नाकाम।”

शादी के बाद मम्मी-पापा ओहायो के क्लीवलैंड शहर में बस गये। वहाँ उनकी दोस्ती एड और मॆरी हूपर के साथ हो गई, जो करीब 20वीं सदी की शुरूआत से ही बाइबल विद्यार्थी थे। मैं उन्हें अंकल-आंटी कहकर बुलाती थी। मम्मी-पापा और उनके बीच इतनी गहरी दोस्ती थी कि दोनों परिवारों को अलग करना नामुमकिन था। उनकी एकलौती बच्ची बिलकुल बचपन में ही गुज़र गयी थी। इसलिए जब 1934 में मैं पैदा हुई, तो उन्होंने मुझे अपनी खास “बेटी” बना लिया। और क्योंकि मेरी परवरिश इतने अच्छे आध्यात्मिक माहौल में हुई थी, इसलिए आठ साल की उम्र से पहले ही मैंने खुद को परमेश्‍वर को समर्पित करके बपतिस्मा ले लिया था।

छोटी उम्र से ही बाइबल पढ़ना मेरी ज़िंदगी का एक हिस्सा रहा है। यशायाह 11:6-9 मेरा एक मन-पसंद वचन था, जिसमें परमेश्‍वर की नयी दुनिया में खुशहाल ज़िंदगी के बारे में बताया गया है। 1944 में मुझे अमेरिकन स्टैंडर्ड वर्शन बाइबल मिली, जिसका खास एडिशन बफलो, न्यू यॉर्क के अधिवेशन में रिलीज़ हुआ था। उसी साल मैंने पहली बार पूरी बाइबल पढ़ी। इस बाइबल को पढ़कर मैं बेहद खुश हुई थी, क्योंकि “पुराने नियम” में परमेश्‍वर का नाम, यहोवा, 7000 जगहों पर वापस डाला गया था!

शनिवार और रविवार के दिन बहुत मज़ा आता था। मेरे मम्मी-पापा, अंकल-आंटी हूपर मुझे अपने साथ दूर-दराज़ के गाँवों में प्रचार के लिए ले जाते थे। हम अपने साथ दोपहर का खाना भी ले जाते थे और एक नदी के किनारे बैठकर खाते थे, ऐसे लगता था जैसे पिकनिक मना रहे हों। उसके बाद हम किसी के फार्म में, बाइबल पर भाषण देने के लिए जाते थे। भाषण सुनने के लिए हम पहले से ही आस-पड़ोस के लोगों को बुला लेते थे। हम लोगों की ज़िंदगी बहुत साधारण थी। हमारा परिवार और हूपर परिवार साथ मिलकर बहुत मज़े करते थे। परिवार के बहुत-से सगे-संबंधी आगे जाकर सफरी ओवरसियर बन गये। इनमें एड हूपर, बॉब रेनर और उनके दो बेटे भी शामिल थे। रिचर्ड रेनर अपनी पत्नी, लिंडा के साथ आज भी सफरी ओवरसियर का काम कर रहा है।

मुझे गर्मियों के मौसम में खासकर बड़ा मज़ा आता था, क्योंकि मैं हॉवॆल फार्म में अपने रिश्‍तेदारों के यहाँ रहने के लिए जाती थी। 1949 को मेरी मौसेरी बहन, ग्रेस की शादी मॆलकॉम ऎलन के साथ हो गई। उस समय मैंने ख्वाब में भी नहीं सोचा था कि कुछ साल बाद मेरी शादी मॆलकॉम के छोटे भाई, पॉल के साथ हो जायेगी। मेरी ममेरी बहन मॆरियन, युरुगुए में मिशनरी थी। 1966 में उसकी शादी हावर्ड हिलबर्न के साथ हो गई। मेरी इन दोनों बहनों ने अपने-अपने पति के साथ कई सालों तक ब्रुकलिन के मुख्यालय में भी सेवा की।

दादाजी और मेरी ग्रैजुएशन

जब मैं हाई स्कूल में अपनी पढ़ाई कर रही थी तब दादाजी हमेशा मुझे खत लिखते थे। साथ ही परिवार की बहुत-सी पुरानी तस्वीरें भेजते थे, जिनके पीछे वे उन तस्वीरों के बारे में ज़्यादा जानकारी देते थे। इस तरह मुझे अपने खानदान के बारे में बहुत कुछ मालूम पड़ा। इसी दौरान दादाजी ने मुझे अपनी और अपने उन साथियों की तस्वीर भेजी थी, जिन्हें गिरफ्तार किया गया था।

सन्‌ 1951 के अंत में गले के कैंसर की वजह से दादाजी अपनी बोलने की शक्‍ति खो बैठे थे। मगर उनका दिमाग अब भी तेज़ था। वे अपने साथ एक छोटी-सी किताब रखते थे, और उन्हें जो कुछ भी बोलना होता था, वे उसमें लिख देते थे। मेरे हाई स्कूल का ग्रैजुएशन जनवरी 1952 को होनेवाला था और मुझे उस अवसर पर एक भाषण देने के लिए कहा गया था। सो, मैंने अपने भाषण की आउटलाइन बनायी और दादाजी को दिसंबर 1 को ही भेज दी। उन्होंने बिलकुल एक संपादक की तरह उस आउटलाइन पर निशान लगाए। और उसके आखिरी पन्‍ने पर चंद शब्द लिखे, जो मेरे दिल को छू गए। उन्होंने लिखा: “दादाजी को तुम पर नाज़ है।” दिसंबर 18, 1951 को उन्होंने 81 साल की उम्र में पृथ्वी पर अपना जीवनकाल खत्म किया। * हालाँकि वह आउटलाइन बहुत पुराना हो चुका है, मगर आज भी मैंने उसे बहुत सँभालकर रखा है।

पढ़ाई खत्म करने के तुरंत बाद मैंने पायनियरिंग शुरू कर दी। 1958 को मैं न्यू यॉर्क शहर के उस बड़े अधिवेशन में हाज़िर थी, जो यैंकी स्टेडियम और पोलो ग्राउँड्‌स में हुआ था, और जिसमें 123 देशों से तकरीबन 2,53,922 लोग मौजूद थे। उस अधिवेशन में एक दिन मेरी मुलाकात अफ्रीका से आये एक भाई से हुई, जिनका नाम था, “वुडवर्थ मिल्स।” करीब 30 साल पहले उनका नाम मेरे दादाजी के नाम पर रखा गया था!

अपनी विरासत के लिए मैं बहुत खुश हूँ

जब मैं 14 साल की थी, तब मेरी मम्मी ने दोबारा पायनियरिंग शुरू कर दी। चालीस साल बाद, 1988 को वे गुज़र गयीं और उस समय भी वे एक पायनियर थीं! मेरे पापा, मम्मी से नौ महीने पहले चल बसे। पापा को जब भी मौका मिलता, वे पायनियरिंग करते थे। जिन लोगों के साथ हमने बाइबल स्टडी की, वे हमारे ज़िंदगी-भर के दोस्त बन गये। इनमें से कुछ के बेटे ब्रुकलिन मुख्यालय में सेवा कर रहे हैं और दूसरे पायनियरिंग कर रहे हैं।

मेरे लिए 1959 का साल बहुत ही खास साल था। उसी साल मेरी पहली मुलाकात पॉल ऎलन से हुई थी। पॉल ने 1946 में गिलियड स्कूल की सातवीं क्लास में मिशनरी ट्रेनिंग हासिल की थी। और ट्रेनिंग के बाद उन्हें सफरी ओवरसियर बनाया गया था। जब हम मिले थे तो हमें इसका एहसास नहीं था कि अब उनकी अगली असाइनमॆंट क्लीवलैंड के लिए होगी, जहाँ पर मैं पायनियरिंग कर रही थी। पापा और मम्मी दोनों उन्हें बेहद पसंद करते थे। आखिर में, जुलाई 1963 में हमारी शादी हॉवॆल फार्म में हो गई। वह एक सुनहरा सपना था जो आखिर पूरा हुआ! हमारे सभी रिश्‍तेदार आये थे। और एड हूपर ने हमारी शादी का टॉक दिया।

पॉल के पास गाड़ी नहीं थी, मगर मेरे पास 1961 की वॉक्सवैगन गाड़ी थी जो बहुत ही छोटी थी। जब हमें क्लीवलैंड से दूसरी जगह भेजा गया, तो हमारा सारा सामान उस छोटी-सी गाड़ी में ठूँस-ठूँसकर भर दिया गया। अकसर सोमवार के दिन जब हम दूसरी कलीसिया में जाते थे, तो कलीसिया के भाई-बहन यह देखने के लिए आते थे कि हम अपनी सूटकेस, ब्रीफकेस, फाइल के बॉक्स, टाइप राइटर और बाकी ढेर सारा सामान उस छोटी-सी गाड़ी में कैसे भरते हैं। उनके लिए यह नज़ारा सर्कस के खेल की तरह था।

इस सफरी काम में हम दोनों ने कई जगहों का दौरा किया है। हमने ज़िंदगी में बहुत से उतार-चढ़ाव भी देखें हैं। मगर यहोवा की मदद से हम इन सबका सामना कर पाए, क्योंकि उसने हमें सहने की ताकत दी। पॉल जैसे हमसफर के साथ रहकर मुझे ज़िंदगी में बहुत सी खुशियाँ मिली। हमारा यहोवा के साथ, एक-दूसरे के साथ, और नये-पुराने दोस्तों के साथ प्यार बढ़ा और रिश्‍ता मज़बूत हुआ। और पैटर्सन में पॉल की दो महीने की ट्रेनिंग के दौरान, हम दोनों को जो अनुभव हुआ उसे तो हम ज़िंदगी भर भूला नहीं सकते। पृथ्वी पर यहोवा के संगठन को इतने नज़दीक से देखकर मेरा विश्‍वास और भी मज़बूत हुआ है। साथ ही, मुझे जो आध्यात्मिक विरासत मिली है, मैं उसकी और भी कदर करने लगी हूँ। मुझे यकीन हो गया है कि सचमुच यही परमेश्‍वर का संगठन है। और परमेश्‍वर के इस संगठन का एक छोटा-सा हिस्सा बनना भी कितने बड़े सम्मान की बात है!

[फुटनोट]

^ फरवरी 15, 1952 की प्रहरीदुर्ग (अँग्रेज़ी) का पेज 128 देखिए।

[पेज 25 पर तसवीर]

एड हूपर के साथ, 1941 के सॆंट लूइस के अधिवेशन से पहले, जहाँ पर मुझे “चिल्ड्रन” किताब मिली

[पेज 26 पर तसवीर]

सन्‌ 1948 में दादाजी

[पेज 26 पर तसवीर]

हॉवॆल फार्म में जब मेरी मम्मी-पापा की शादी हुई

[पेज 27 पर तसवीर]

आठ बाइबल विद्यार्थी, जिन्हें 1918 में गलत इलज़ाम लगाकर कैद किया गया था (दादाजी एकदम दाएँ खड़े हैं)

[पेज 29 पर तसवीर]

हमारा सारा सामान इस छोटी-सी गाड़ी में भर जाता था

[पेज 29 पर तसवीर]

अपने पति पॉल के साथ