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बाइबल पढ़ना—मज़ेदार और लाभदायक

बाइबल पढ़ना—मज़ेदार और लाभदायक

बाइबल पढ़ना—मज़ेदार और लाभदायक

“[तू] इस पर दिन-रात ध्यान करते रहना।”—यहोशू 1:8, Nht.

1. आम किताबें पढ़ने से क्या फायदे होते हैं और खासकर बाइबल पढ़ने से क्या फायदे होते हैं?

 अच्छी किताबें पढ़ना फायदेमंद है। फ्रांस के राजनैतिक फिलॉसफर मॉन्टॆसक्यू (चार्ल्स-लूई दे सॆकॉन्डैट) ने लिखा: “किताबें पढ़ने से मेरी सारी-की-सारी थकान दूर हो जाती है। चाहे कितना ही भारी तनाव क्यों न हो, अगर मैं एक घंटे के लिए भी किताब पढ़ लेता हूँ तो मेरा सारा-का-सारा तनाव दूर हो जाता है।” बाइबल पढ़ने से इससे भी बढ़कर फायदा होता है। इस बारे में परमेश्‍वर से प्रेरित होकर भजनहार ने लिखा: “यहोवा की व्यवस्था खरी है, वह प्राण को बहाल कर देती है; यहोवा के नियम विश्‍वासयोग्य हैं, साधारण लोगों को बुद्धिमान बना देते हैं; यहोवा के उपदेश सिद्ध हैं, हृदय को आनन्दित कर देते हैं।”—भजन 19:7, 8.

2. यहोवा ने सदियों से आज तक बाइबल को महफूज़ क्यों रखा है, और वह अपने लोगों से क्या चाहता है?

2 बाइबल का लेखक यहोवा परमेश्‍वर है। उसने सदियों से आज तक बाइबल को उसके धार्मिक और सरकारी दुश्‍मनों के हाथों से महफूज़ रखा है। परमेश्‍वर की इच्छा है कि “सब मनुष्यों का उद्धार हो; और वे सत्य को भली भांति पहचान लें,” इसलिए उसने इस किताब को सब लोगों के लिए मुहैया कराया है। (1 तीमुथियुस 2:4) कहा जाता है कि सिर्फ 100 भाषाओं की मदद से दुनिया के 80 प्रतिशत लोगों तक पहुँचा जा सकता है। आज करीब 370 भाषाओं में पूरी बाइबल, और 1,860 लिखित भाषाओं में और बोलियों में बाइबल की कुछ किताबें मिलती हैं। यहोवा चाहता है कि उसके लोग उसका वचन यानी बाइबल पढ़ें। जो लोग उसके वचन पर ध्यान देते हैं और उसे हर रोज़ पढ़ते हैं, यहोवा उन पर आशीषें बरसाता है।—भजन 1:1, 2.

ओवरसियरों से बाइबल पढ़ने की माँग की जाती है

3, 4. यहोवा ने इस्राएल के राजाओं से क्या माँग की, और उस माँग की कौन-सी बातें आज मसीही ओवरसियरों पर भी लागू होती हैं?

3 उस समय के बारे में बताते हुए जब इस्राएल जाति पर एक इंसान राज करता, यहोवा कहता है: “जब वह राजगद्दी पर विराजमान हो, तब इसी व्यवस्था की पुस्तक, जो लेवीय याजकों के पास रहेगी, उसकी एक नकल अपने लिये कर ले। और वह उसे अपने पास रखे, और अपने जीवन भर उसको पढ़ा करे, जिस से वह अपने परमेश्‍वर यहोवा का भय मानना, और इस व्यवस्था और इन विधियों की सारी बातों के मानने में चौकसी करना सीखे; जिस से वह अपने मन में घमण्ड करके अपने भाइयों को तुच्छ न जाने, और इन आज्ञाओं से न तो दहिने मुड़े और न बाएं।”—व्यवस्थाविवरण 17:18-20.

4 ध्यान दीजिए कि यहोवा ने क्यों कहा कि इस्राएल पर राज करनेवाले सभी राजाओं को परमेश्‍वर की व्यवस्था की पुस्तक लगातार पढ़नी चाहिए: (1) “जिस से वह अपने परमेश्‍वर यहोवा का भय मानना, और इस व्यवस्था और इन विधियों की सारी बातों के मानने में चौकसी करना सीखे;” (2) “जिस से वह अपने मन में घमण्ड करके अपने भाइयों को तुच्छ न जाने,” (3) जिससे वह “इन आज्ञाओं से न तो दहिने मुड़े और न बाएं।” क्या आज के मसीही ओवरसियरों को भी यहोवा का भय और उसकी आज्ञाएँ नहीं माननी चाहिए? क्या उन्हें घमंडी होकर अपने भाइयों को तुच्छ जानना चाहिए और यहोवा की आज्ञाओं से दाएँ या बाएँ मुड़ना चाहिए? हर रोज़ परमेश्‍वर का वचन पढ़ने की जितनी ज़रूरत इस्राएल के राजाओं को थी, उतनी ही ज़रूरत आज मसीही ओवरसियरों को भी है।

5. गवर्निंग बॉडी ने सभी ब्रांच कमिटी के सदस्यों को हाल में बाइबल पढ़ने के बारे में क्या लिखा, और सभी प्राचीनों के लिए इस सलाह को मानना फायदेमंद क्यों होगा?

5 आज प्राचीन बहुत ही व्यस्त रहते हैं, जिसकी वजह से हर रोज़ बाइबल पढ़ना वाकई उनके लिए एक चुनौती है। उदाहरण के लिए, यहोवा के साक्षियों की गवर्निंग बॉडी के सदस्य, और दुनिया भर की शाखाओं में ब्रांच कमिटी के सदस्य बहुत ही व्यस्त रहते हैं। मगर फिर भी, गवर्निंग बॉडी ने सभी ब्रांच कमिटियों को हाल ही में एक खत भेजा जिसमें इस बात पर ज़ोर दिया गया कि हर रोज़ बाइबल पढ़ने और अध्ययन करने की आदत डालना बहुत ज़रूरी है। खत में लिखा था कि ऐसा करने से यहोवा और सच्चाई के लिए हमारा प्रेम बढ़ेगा, और इससे “हमें अंत तक अपना विश्‍वास, खुशी और लगन बनाए रखने में भी मदद मिलेगी।” यहोवा के साक्षियों की कलीसियाओं के सभी प्राचीन भी ऐसा ही सोचते हैं। हर रोज़ बाइबल पढ़ने से वे ‘बुद्धिमानी’ से काम कर पाएँगे। (यहोशू 1:7, 8, ईज़ी टू रीड वर्शन) प्राचीनों के लिए बाइबल पढ़ना, खासकर “उपदेश [देने], और समझाने, और सुधारने, और धर्म की शिक्षा के लिये लाभदायक है।”—2 तीमुथियुस 3:16.

बूढ़े हों या जवान—सभी के लिए ज़रूरी

6. यहोशू ने इस्राएल की जातियों और परदेशियों को इकट्ठा करके उनके सामने यहोवा के नियम को ऊँची आवाज़ में क्यों पढ़ा?

6 पुराने ज़माने में, हरेक के पास पढ़ने के लिए शास्त्र की एक-एक कॉपी नहीं हुआ करती थी। इसलिए सब लोगों को इकट्ठा करके उनके सामने बाइबल पढ़ी जाती थी। इस्राएलियों को यहोवा ने ऐ देश पर विजय दिलायी, उसके बाद यहोशू ने इस्राएल की सभी जातियों को एबाल पर्वत और गिरिज्जीम पर्वत के पास इकट्ठा किया। आगे क्या हुआ, बाइबल बताती है: “उस ने आशीष और शाप की व्यवस्था के सारे वचन, जैसे जैसे व्यवस्था की पुस्तक में लिखे हुए हैं वैसे वैसे पढ़ पढ़कर सुना दिए। जितनी बातों की मूसा ने आज्ञा दी थी, उन में से कोई ऐसी बात नहीं रह गई जो यहोशू ने इस्राएल की सारी सभा, और स्त्रियों, और बाल-बच्चों, और उनके साथ रहनेवाले परदेशी लोगों के साम्हने भी पढ़कर न सुनाई।” (यहोशू 8:34, 35) बच्चे हों या बूढ़े, देशी हों या परदेशी, सभी को मानो अपने दिलों में यह लिख लेना था कि किन-किन कामों से यहोवा खुश होकर आशीष देता है और किन कामों से वह नाराज़ होकर शाप देता है। इसलिए नियमित तौर पर बाइबल पढ़ने से ये बातें हमारे मन में भी अच्छी तरह बैठ जाएँगी।

7, 8. (क) आध्यात्मिक अर्थ में आज कौन ‘परदेशियों’ की तरह हैं, और उन्हें हर रोज़ बाइबल पढ़ने की ज़रूरत क्यों है? (ख) यहोवा के लोगों के ‘बाल-बच्चे’ यीशु की मिसाल पर कैसे चल सकते हैं?

7 आज, यहोवा के लाखों सेवक भी आध्यात्मिक अर्थ में उन्हीं ‘परदेशियों’ की तरह हैं। वे भी कभी दुनिया के तौर-तरीकों के मुताबिक चला करते थे, लेकिन अब उन्होंने अपनी ज़िंदगी बदल दी है। (इफिसियों 4:22-24; कुलुस्सियों 3:7, 8) उन्हें भी लगातार यह याद रखना पड़ता है कि भले-बुरे के बारे में यहोवा के क्या स्तर हैं। (आमोस 5:14, 15) हर रोज़ परमेश्‍वर का वचन पढ़ने से, ऐसा करने में उन्हें मदद मिल सकती है।—इब्रानियों 4:12; याकूब 1:25.

8 यहोवा के लोगों के बीच ऐसे कई ‘बाल-बच्चे’ हैं जिन्हें उनके माँ-बाप यहोवा के स्तर सिखाते हैं। लेकिन अब इन बच्चों को दिल से यह यकीन करना है कि यहोवा के नियम ही सबसे फायदेमंद हैं। (रोमियों 12:1, 2) वे ऐसा कैसे कर सकते हैं? इस्राएल में, याजकों और पुरनियों को यह आदेश दिया गया था: तुम “यह व्यवस्था सब इस्राएलियों को पढ़कर सुनाना। क्या पुरुष, क्या स्त्री, क्या बालक, क्या तुम्हारे फाटकों के भीतर के परदेशी, सब लोगों को इकट्ठा करना कि वे सुनकर सीखें, और तुम्हारे परमेश्‍वर यहोवा का भय मानकर, इस व्यवस्था के सारे वचनों के पालन करने में चौकसी करें, और उनके लड़केबाले जिन्हों ने ये बातें नहीं सुनीं वे भी सुनकर सीखें, [और] तुम्हारे परमेश्‍वर यहोवा का भय [मानें]।” (व्यवस्थाविवरण 31:11-13) इसी व्यवस्था के अधीन रहते हुए यीशु ने 12 साल की छोटी-सी उम्र में अपने परमेश्‍वर के नियमों को समझने में गहरी दिलचस्पी दिखायी। (लूका 2:41-49) बाद में, आराधनालय में शास्त्र को पढ़े जाते हुए सुनना और उसमें हिस्सा लेना उसकी आदत बन गयी थी। (लूका 4:16; प्रेरितों 15:21) आज के छोटे बच्चे यीशु की मिसाल पर चल सकते हैं और हर रोज़ परमेश्‍वर का वचन पढ़ सकते हैं और सभी सभाओं में हाज़िर हो सकते हैं जहाँ बाइबल पढ़ी जाती है और उसका अध्ययन किया जाता है।

बाइबल पढ़ना—सबसे ज़रूरी

9. (क) किताबों का चुनाव करना क्यों ज़रूरी है? (ख) इस पत्रिका की शुरुआत करनेवाले व्यक्‍ति ने क्या कहा?

9 बुद्धिमान राजा सुलैमान ने लिखा: ‘चौकस रह: बहुत पुस्तकों की रचना का अन्त नहीं होता, और बहुत पढ़ना देह को थका देता है।’ (सभोपदेशक 12:12) कोई शायद यह भी कहे कि आज के ज़माने की ढेर सारी किताबें पढ़ना न सिर्फ शरीर को थका देता है बल्कि सच पूछो तो, ये दिमाग के लिए भी खतरनाक हैं। इसलिए अच्छी किताबों का चुनाव करना ज़रूरी है। बाइबल को समझाने के लिए लिखी गयी किताबों को पढ़ने के साथ-साथ हमें बाइबल पढ़ने की भी ज़रूरत है। इस पत्रिका की शुरुआत करनेवाले व्यक्‍ति ने अपने पाठकों को लिखा: “यह कभी मत भूलिए कि केवल बाइबल हमारा स्तर तय करती है। और बाइबल को समझने में मदद देनेवाली किताबें सिर्फ ‘मदद’ हैं, वे बाइबल की जगह नहीं ले लेतीं।” * इसलिए, बाइबल को समझने में मदद देनेवाली किताबों के साथ-साथ हमें बाइबल भी पढ़ने की ज़रूरत है।

10. “विश्‍वासयोग्य और बुद्धिमान दास” ने बाइबल पढ़ने की अहमियत पर कैसे ज़ोर दिया है?

10 बाइबल पढ़ने की हमारी ज़रूरत को समझते हुए, “विश्‍वासयोग्य और बुद्धिमान दास” ने सालों से कलीसिया के थियोक्रैटिक मिनिस्ट्री स्कूल के कार्यक्रम में बाइबल रीडिंग का शॆड्यूल दिया है। (मत्ती 24:45) फिलहाल बाइबल रीडिंग का जो शॆड्यूल चल रहा है, उससे हम लगभग सात साल में पूरी बाइबल पढ़ सकते हैं। यह शॆड्यूल सबके लिए फायदेमंद है, खासकर नए लोगों के लिए, क्योंकि उन्होंने कभी पूरी बाइबल नहीं पढ़ी होगी। वॉचटावर बाइबल स्कूल ऑफ गिलियड और मिनिस्टीरियल ट्रेनिंग स्कूल में जो हाज़िर होते हैं, साथ ही बॆथॆल परिवार से जुड़नेवाले नए सदस्यों से भी एक साल में पूरी बाइबल पढ़ने की माँग की जाती है। चाहे आप परिवार के तौर पर या व्यक्‍तिगत तौर पर जो भी शॆड्यूल का पालन करें, अगर आप उसे पूरा करना चाहते हैं तो बाइबल पढ़ना सबसे ज़रूरी है।

आपकी पढ़ने की आदत आपके बारे में क्या कहती है?

11. यहोवा के मुख से निकलनेवाले वचनों को हमें हर रोज़ क्यों ग्रहण करना चाहिए और यह हम कैसे कर सकते हैं?

11 अगर आप शॆड्यूल के अनुसार अपनी बाइबल नहीं पढ़ पा रहे हैं, तो आप खुद से यह सवाल पूछ सकते हैं: ‘दूसरी किताबें पढ़ने या टीवी देखने में बहुत ज़्यादा समय बिताने की वजह से क्या मैं बाइबल पढ़ने के लिए समय नहीं निकाल पा रहा हूँ?’ याद कीजिए कि मूसा ने क्या लिखा था जिसे यीशु ने भी दोहराया, कि “मनुष्य केवल रोटी ही से नहीं, परन्तु हर एक वचन से जो [यहोवा] परमेश्‍वर के मुख से निकलता है जीवित रहेगा।” (मत्ती 4:4; व्यवस्थाविवरण 8:3) अपने शरीर को तंदुरुस्त बनाए रखने के लिए जिस तरह हमें रोज़ रोटी या चावल खाने की ज़रूरत होती है, ठीक उसी तरह अपनी आध्यात्मिक सेहत बनाए रखने के लिए हमें रोज़ यहोवा के विचारों को अपने मन में बिठाने की ज़रूरत होती है। हर रोज़ बाइबल पढ़ने के द्वारा हम यहोवा के विचार अपने मन में बिठा सकते हैं।

12, 13. (क) प्रेरित पतरस के मुताबिक, हममें परमेश्‍वर के वचन के लिए कैसी लालसा होनी चाहिए? (ख) किस तरह पौलुस ने दूध की तुलना अलग तरीके से की?

12 अगर हम बाइबल को “मनुष्यों का नहीं, परन्तु परमेश्‍वर का वचन” समझते हैं, जो कि वह ‘सचमुच में है,’ तो हम उसकी उसी तरह लालसा करेंगे जिस तरह एक शिशु अपनी माँ के दूध की लालसा करता है। (1 थिस्सलुनीकियों 2:13) ऐसी तुलना प्रेरित पतरस ने की थी और लिखा था: “नये जन्मे हुए बच्चों की नाईं निर्मल आत्मिक दूध की लालसा करो, ताकि उसके द्वारा उद्धार पाने के लिये बढ़ते जाओ। यदि तुम ने प्रभु की कृपा का स्वाद चख लिया है।” (1 पतरस 2:2, 3) अगर हमने सचमुच “प्रभु की कृपा” का स्वाद चख लिया है, तो हम अपने अंदर बाइबल को पढ़ने की लालसा पैदा करेंगे।

13 एक बार प्रेरित पौलुस ने भी दूध की तुलना की थी। मगर ध्यान दीजिए कि यहाँ पतरस ने उस तरीके से दूध की तुलना नहीं की जैसे पौलुस ने की। एक नवजात शिशु के लिए ज़रूरी सभी पौष्टिक तत्त्व दूध में होते हैं। पतरस की तुलना यह दिखाती है कि परमेश्‍वर के वचन में वे सभी आध्यात्मिक पौष्टिक तत्त्व हैं जो “उद्धार पाने के लिये बढ़ते” जाने के लिए ज़रूरी हैं। मगर पौलुस ने दूध की तुलना उन लोगों से की जो सच्चाई में काफी समय से हैं मगर वे आध्यात्मिक रूप से बढ़ने का नाम ही नहीं लेते, मानो वे अब तक बस दूध ही पी रहे हों। पौलुस ने इब्रानी मसीहियों को यूँ लिखा: “समय के विचार से तो तुम्हें गुरु हो जाना चाहिए था, तौभी क्या यह आवश्‍यक है, कि कोई तुम्हें परमेश्‍वर के वचनों की आदि शिक्षा फिर से सिखाए? और ऐसे हो गए हो, कि तुम्हें अन्‍न के बदले अब तक दूध ही चाहिए। क्योंकि दूध पीनेवाले बच्चे को तो धर्म के वचन की पहिचान नहीं होती, क्योंकि वह बालक है। पर अन्‍न सयानों के लिये है, जिन के ज्ञानेन्द्रिय अभ्यास करते करते, भले बुरे में भेद करने के लिये पक्के हो गए हैं।” (इब्रानियों 5:12-14) अगर हम ध्यान से बाइबल पढ़ते हैं तो हम अपनी ज्ञानेंद्रियों को और आध्यात्मिक बातों के लिए अपनी भूख को काफी हद तक बढ़ा सकते हैं।

बाइबल को कैसे पढ़ें

14, 15. (क) बाइबल का लेखक हमें कौन-सा सुनहरा मौका देता है? (ख) परमेश्‍वर की बुद्धि से हम कैसे फायदे पा सकते हैं? (उदाहरण देकर समझाइए।)

14 अगर हमें बाइबल रीडिंग से सबसे ज़्यादा फायदा पाना है, तो पढ़ने से पहले हमें प्रार्थना करनी चाहिए। प्रार्थना करना हमारे लिए बहुत बड़े सम्मान की बात है। यह ऐसा है मानो किसी गहरे विषय पर अध्ययन शुरू करने से पहले हम उसे समझने के लिए उसके लेखक से मदद माँग रहे हों। ऐसा करने से कितना फायदा होगा! बाइबल का लेखक, यहोवा परमेश्‍वर हमें यही सुनहरा मौका देता है। पहली सदी के शासी निकाय के एक सदस्य ने अपने भाइयों को यूँ लिखा: “यदि तुम में से किसी को बुद्धि की घटी हो, तो परमेश्‍वर से मांगे, जो बिना उलाहना दिए सब को उदारता से देता है; और उस को दी जाएगी। पर विश्‍वास से मांगे, और कुछ सन्देह न करे।” (याकूब 1:5, 6) उसी तरह, आज का शासी निकाय भी हमें बाइबल पढ़ने से पहले प्रार्थना करने की बार-बार सलाह देता है।

15 जो ज्ञान हमें मिलता है जब हम उसे काम में लाते हैं, तो उसे बुद्धि कहते हैं। इसलिए हमें बाइबल पढ़ने से पहले प्रार्थना करनी चाहिए कि हम जो कुछ भी पढ़ेंगे उसमें से कौन-कौन-सी बातें हमें अमल करने की ज़रूरत है, उसे समझने में हमें मदद मिले। फिर जो नयी बातें आप सीखते हैं, उनका ताल्लुक पहले पढ़ी हुई बातों के साथ कीजिए। दूसरे शब्दों में, उनका तालमेल पहले सीखी हुई ‘खरी बातों’ के साथ बिठाइए। (2 तीमुथियुस 1:13) यहोवा के पुराने ज़माने के सेवकों के साथ क्या-क्या हुआ, उस पर विचार कीजिए और खुद से पूछिए कि अगर आप उस हालात में होते तो क्या करते।—उत्पत्ति 39:7-9; दानिय्येल 3:3-6, 16-18; प्रेरितों 4:18-20.

16. बाइबल रीडिंग से ज़्यादा फायदा पाने और उसे उपयोगी बनाने के लिए हमें कौन-सी कारगर सलाह दी गयी है?

16 शॆड्यूल में दिए गए अध्यायों को सिर्फ खत्म करने के इरादे से मत पढ़िए। उन्हें आराम से और धीरे से पढ़िए। जो आप पढ़ रहे हैं उस पर थोड़ा मनन कीजिए। अगर कोई बात दिलचस्प लगे या समझ न आए, और अगर आपकी बाइबल में क्रॉस रॆफ्रंसॆस हों, तो उन्हें खोलकर देखिए। अगर बात फिर भी समझ न आए, तो उस पर बाद में रिसर्च करने के लिए उसे नोट कर लीजिए। पढ़ते वक्‍त, ऐसी आयतों पर निशान लगाइए जिन्हें आप खासकर याद रखना चाहते हैं या उन्हें कहीं लिख लीजिए। मार्जिन में आप अपने नोट्‌स या क्रॉस रॆफ्रंसॆस भी लिख सकते हैं। अगर आपको लगे कि कुछ खास आयतों को आप अपने प्रचार और सिखाने के काम में इस्तेमाल कर सकते हैं, तो की-वर्ड को नोट कीजिए और अपनी अंग्रेज़ी बाइबल के पीछे दिए गए शब्दों के इंडैक्स में उसे चेक कीजिए। *

बाइबल रीडिंग को मज़ेदार बनाइए

17. बाइबल पढ़ने से हमें खुशी क्यों मिलनी चाहिए?

17 भजनहार ने उस सुखी आदमी के बारे में बताया जो “यहोवा की व्यवस्था से प्रसन्‍न रहता [है]; और उसकी व्यवस्था पर रात दिन ध्यान करता रहता है।” (भजन 1:2) उसी तरह हमारी बाइबल रीडिंग को भी मज़ेदार होना चाहिए, न कि एक रूटीन। इसे मज़ेदार बनाने का एक तरीका है कि आप जो भी बातें सीख रहे हैं उसकी अहमियत का एहसास आपको हमेशा होना चाहिए। बुद्धिमान राजा सुलैमान ने लिखा: “क्या ही धन्य है वह मनुष्य जो बुद्धि पाए, . . . उसके मार्ग मनभाऊ हैं, और उसके सब मार्ग कुशल के हैं। जो बुद्धि को ग्रहण कर लेते हैं, उनके लिये वह जीवन का वृक्ष बनती है; और जो उसको पकड़े रहते हैं, वह धन्य हैं।” (नीतिवचन 3:13, 17, 18) बुद्धि पाने के लिए जो मेहनत की जाती है वह बिलकुल भी बेकार नहीं जाती, क्योंकि उसके सब मार्ग मनभाऊ, और कुशल के हैं। इनसे खुशियाँ मिलती हैं और आखिर में ज़िंदगी भी।

18. बाइबल पढ़ने से फायदा पाने के लिए हमें क्या करने की ज़रूरत है, और हम अगले लेख में क्या देखेंगे?

18 जी हाँ, बाइबल पढ़ने से हमें फायदा भी होता है और खुशी भी मिलती है। मगर क्या इतना ही काफी है? ईसाईजगत के सदस्य तो सदियों से बाइबल पढ़ते आ रहे हैं, और वे ‘सदा सीखते तो रहते हैं पर सत्य की पहिचान तक कभी नहीं पहुंचते।’ (2 तीमुथियुस 3:7) अगर हम चाहते हैं कि बाइबल पढ़ने से हमें फायदा हो तो हमें उससे मिलनेवाले ज्ञान को अपनी ज़िंदगी में अमल में लाने के इरादे से पढ़ना होगा और अपने प्रचार और सिखाने के काम में इस्तेमाल करना होगा। (मत्ती 24:14; 28:19, 20) इसके लिए मेहनत और अध्ययन करने के अच्छे तरीकों की ज़रूरत है जो मज़ेदार और फलदायक हो सकते हैं। इसके बारे में हम अगले लेख में देखेंगे।

[फुटनोट]

^ जेहोवाज़ विट्‌नेसॆस—प्रोक्लेमर्स ऑफ गॉडस्‌ किंगडम किताब का पेज 241 देखिए। इसे वॉचटावर बाइबल एण्ड ट्रैक्ट सोसाइटी ने छापा है।

^ मई 1, 1995 की प्रहरीदुर्ग के पेज 16-17 में दिए गए लेख, “आपके बाइबल पठन को बेहतर बनाने के लिए सुझाव” देखिए।

इन सवालों को फिर से देखें

• इस्राएल के राजाओं को दी गयी कौन-सी सलाह आज के ओवरसियरों पर लागू होती है और क्यों?

• आज कौन ‘परदेशियों’ और “बाल-बच्चों” की तरह हैं, और उन्हें हर रोज़ बाइबल पढ़ने की ज़रूरत क्यों है?

• “विश्‍वासयोग्य और बुद्धिमान दास” ने हमें मदद देने के लिए कौन-से कारगर तरीके सुझाएँ हैं?

• किस तरह हम अपनी बाइबल रीडिंग से फायदा और खुशी पा सकते हैं?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 9 पर तसवीर]

खासकर प्राचीनों को हर रोज़ बाइबल पढ़ने की ज़रूरत है

[पेज 10 पर तसवीर]

आराधनालय में शास्त्र को पढ़ने में हिस्सा लेना यीशु की आदत थी