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अनदेखे परमेश्‍वर—के साथ एक गहरा रिश्‍ता क्या मुमकिन है?

अनदेखे परमेश्‍वर—के साथ एक गहरा रिश्‍ता क्या मुमकिन है?

अनदेखे परमेश्‍वर—के साथ एक गहरा रिश्‍ता क्या मुमकिन है?

आप शायद कहें: “मैं एक ऐसे शख्स के साथ गहरा रिश्‍ता कैसे बना सकता हूँ जिसे मैं कभी देख ही नहीं सकता?” सवाल अच्छा है। मगर इस बात पर भी गौर कीजिए:

किसी को अपना दोस्त बनाने या फिर दोस्ती को कायम रखने के लिए उसे देखना ही ज़रूरी नहीं है। उसके गुणों के आधार पर भी दोस्ती की जा सकती है। इसीलिए तो कई लोग सिर्फ पत्र-व्यवहार के ज़रिए भी एक-दूसरे के अच्छे दोस्त बन गए हैं। क्योंकि वे अपने पत्रों के ज़रिए अपनी शख्सियत की पहचान देते हैं यानी अपनी पसंद-नापसंद, अपने लक्ष्य, अपने उसूल, अपनी खूबियाँ, अपनी खामियाँ, यहाँ तक कि अपना मज़ाकिया अंदाज़ भी बयान कर देते हैं।

जी हाँ, किसी के साथ रिश्‍ता कायम करने के लिए रंग-रूप कोई मायने नहीं रखता। यह बात उन लोगों ने भी साबित कर दिखायी है जिनकी आँखें नहीं हैं। जैसे कि एक शादी-शुदा जोड़ा, एडवर्ड और ग्वैन की ही बात लीजिए। * दोनों की ही आँखों की रौशनी नहीं है। वे अंधों के एक स्कूल में साथ-साथ पढ़ते थे। एडवर्ड को ग्वैन बहुत अच्छी लगी थी। लेकिन एडवर्ड तो ग्वैन को देख नहीं सकता था, फिर उसने उसे कैसे पसंद कर लिया? ग्वैन का हमेशा सच बोलना, उसका अच्छा चालचलन और काम के प्रति उसके बढ़िया रवैये ने एडवर्ड का मन जीत लिया था। और ग्वैन एडवर्ड की तरफ क्यों खिंची चली गई? वह बताती है कि “बचपन से ही मुझे सिखाया गया था कि इंसान में कौन-से गुण होने बहुत ज़रूरी हैं और ये सभी गुण मैंने एडवर्ड में पाए।” अच्छे गुणों की वजह से ही वे एक-दूसरे की तरफ आकर्षित हुए और उनका मेल-जोल बढ़ गया। फिर तीन साल बाद उन्होंने शादी भी कर ली।

एडवर्ड कहता है, “अगर एक-दूसरे के विचार मिलते हों, तो दोस्ती करने के लिए आँखों का होना ना होना, कोई मायने नहीं रखता। हाँ, सच है कि आँखों के बगैर हम एक-दूसरे को देख नहीं सकते, मगर एक-दूसरे के जज़बातों को महसूस तो कर सकते हैं।” आज 57 साल बाद भी उनका प्यार उतना ही गहरा है। वे अपने इस मधुर और अटूट रिश्‍ते का कुछ राज़ बताते हैं। पहला: एक-दूसरे के गुणों को जानना। दूसरा: उन गुणों के बारे में सोचना ताकि उस इंसान की तरफ खिंचे चले जाएँ। तीसरा: आपस में अच्छी बातचीत करना। और चौथा: साथ मिलकर काम करना।

किसी के साथ रिश्‍ते बनाने के लिए ये चारों ही बातें बहुत अहम हैं, फिर चाहे वह दोस्तों के बीच का हो, पति-पत्नी के बीच का हो या सबसे महत्त्वपूर्ण रिश्‍ता यानी इंसान और परमेश्‍वर के बीच का हो। अगले लेख में हम यही देखेंगे कि कैसे इन चार बातों को लागू करके हम परमेश्‍वर के साथ एक अटूट रिश्‍ता बना सकते हैं, हालाँकि हम उसे देख नहीं सकते। *

[फुटनोट]

^ नाम बदल दिए गए हैं।

^ परमेश्‍वर के साथ रिश्‍ता बनाने में और किसी इंसान के साथ रिश्‍ता बनाने में एक खास फर्क है। परमेश्‍वर के साथ इस विश्‍वास के आधार पर ही रिश्‍ता कायम कर सकते हैं कि वह ज़रूर है।

(इब्रानियों 1:6) और उसके वजूद का यकीन दिलाने के लिए एक किताब में गहराई से चर्चा की गई है, जिसे आप ज़रूर पढ़िए। यह किताब है, क्या कोई सृजनहार है जो आपकी परवाह करता है? (अँग्रेज़ी) इसे वॉच टावर बाइबल एण्ड ट्रैक्ट सोसाइटी ने प्रकाशित किया है।