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दूसरे धर्मों के बारे में—आपको कितनी दिलचस्पी लेनी चाहिए?

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दूसरे धर्मों के बारे में—आपको कितनी दिलचस्पी लेनी चाहिए?

“करीब एक साल से मैं मसीही सभाओं में जा रहा था और दूसरों को परमेश्‍वर के राज्य के बारे में बताने में मुझे खुशी होती थी। फिर मैं रेडियो और टीवी के धार्मिक कार्यक्रमों में दिलचस्पी लेने लगा। मैंने सोचा कि इन कार्यक्रमों के ज़रिए मैं दूसरे धर्म के लोगों को अच्छी तरह समझ पाऊँगा। मैंने देखा कि उनकी शिक्षाएँ बाइबल के बिलकुल खिलाफ हैं मगर फिर भी मैं जानने के लिए उत्सुक था।” यह बात दक्षिण अमरीका के मेगेल ने कही जो आज एक यहोवा का साक्षी है।

उसी जगह का रहनेवाला, हॉरहे भी बड़े जोश के साथ दूसरों को सच्चाई सिखाता था। मगर एक वक्‍त ऐसा आया जब वह भी रेडियो और टीवी के धार्मिक कार्यक्रमों में दिलचस्पी लेने लगा। वह कहता था कि “हमें इस बात की जानकारी रखनी ज़रूरी है कि दूसरे धर्म के लोगों के विचार क्या हैं।” जब उससे पूछा जाता कि दूसरे धर्मों की झूठी शिक्षाओं में ज़रूरत से ज़्यादा दिलचस्पी लेना क्या हमारे लिए खतरनाक नहीं होगा, तो वह कहता: “जिन्हें बाइबल की सच्चाई का पूरा ज्ञान है उनके विश्‍वास को कोई भी कमज़ोर नहीं कर सकता।” यहाँ दिए गए अनुभवों से एक बहुत ही अहम सवाल उठता है कि दूसरे जो विश्‍वास करते हैं उस पर कान देना क्या सचमुच अक्लमंदी की बात है?

सच्चे मसीही धर्म को पहचानना

पहली सदी में प्रेरितों की मौत के बाद धीरे-धीरे झूठे मसीही धर्म के अलग-अलग गुट निकलने लगे और इस तरह सच्ची मसीहियत भ्रष्ट हो गयी। यीशु जानता था कि ऐसा होगा इसलिए उसने यह चेतावनी दी: “झूठे भविष्यद्वक्‍ताओं से सावधान रहो, जो भेड़ों के भेष में तुम्हारे पास आते हैं, परन्तु अन्तर में फाड़नेवाले भेड़िए हैं।” फिर उसने अपने चेलों को सच्चे और झूठे मसीहियों में फर्क जानने का एक तरीका बताते हुए कहा: “उन के फलों से तुम उन्हें पहचान लोगे।” (मत्ती 7:15-23) सच्चे मसीहियों को उनके अच्छे फलों यानी उनके अच्छे कामों से बड़ी आसानी से पहचाना जा सकता है, क्योंकि वे यीशु की शिक्षाओं के मुताबिक चलते हैं। यीशु की तरह वे भी बाइबल से लोगों को परमेश्‍वर के राज्य के बारे में सिखाते हैं। साथ ही वे राजनीति और सामाजिक वाद-विवादों से दूर रहते हैं। वे मानते हैं कि बाइबल परमेश्‍वर का वचन है और इसकी हर बात सच है। वे लोगों को परमेश्‍वर के नाम से वाकिफ कराते हैं। और परमेश्‍वर ने उन्हें जो प्यार का रास्ता दिखाया है उस पर चलने की पूरी कोशिश करते हैं। इसलिए वे युद्ध में हिस्सा नहीं लेते मगर हरेक से प्रेम रखते हैं।—लूका 4:43; 10:1-9; यूहन्‍ना 13:34, 35; 17:16, 17, 26.

बाइबल के मुताबिक, ‘धर्मी और दुष्ट का भेद, अर्थात्‌ जो परमेश्‍वर की सेवा करता है, और जो उसकी सेवा नहीं करता, उन दोनों का भेद पहचानना’ कोई मुश्‍किल काम नहीं है। (मलाकी 3:18) पहली सदी के मसीहियों की तरह आज के सच्चे मसीही भी विचारों और कार्यों में एकमत हैं। (इफिसियों 4:4-6) जब आपको यह साफ नज़र आता है कि सच्चा मसीही धर्म कौन-सा है तो क्या उसके बाद भी यह जानने के लिए उतावला होना सही होगा कि दूसरे क्या विश्‍वास करते हैं?

झूठे शिक्षकों से खबरदार!

सच्चाई सीखने के बाद भी झूठी शिक्षाओं से भ्रष्ट होने का खतरा रहता है और इस बात को बाइबल भी मानती है। प्रेरित पौलुस हमें आगाह करता है: “ख़बरदार, कोई शख़्स तुम को उस फ़लसफ़े और बेफ़ायदा धोखे से शिकार न कर ले जो इन्सानों की परम्परा की और दुनिया की शुरू की बातों के मुआफ़िक़ हैं न कि मसीह के मुआफ़िक़।” (कुलुस्सियों 2:8, हिंदुस्तानी बाइबल) इस आयत में झूठे शिक्षकों की कितनी सही तस्वीर पेश की गयी है। वे खूँखार जानवरों की तरह हमेशा इस मौके की ताक में रहते हैं कि किस तरह हमें अपना शिकार बना लें। जी हाँ, वे सचमुच खतरनाक हैं!

यह सच है कि पौलुस दूसरों के विश्‍वास के बारे में जानकारी रखता था। एक बार उसने अपने भाषण की शुरूआत में कहा: “हे अथेने के लोगो मैं देखता हूं, कि तुम हर बात में देवताओं के बड़े माननेवाले हो। क्योंकि मैं फिरते हुए तुम्हारी पूजने की वस्तुओं को देख रहा था, तो एक ऐसी वेदी भी पाई, जिस पर लिखा था, कि ‘अनजाने ईश्‍वर के लिये।’ ” (प्रेरितों 17:22, 23) मगर पौलुस ने अथेने के यूनानी तत्त्वज्ञानों का गहराई से अध्ययन नहीं किया।

झूठे धर्मों की शुरूआत कैसे हुई और उनकी शिक्षाएँ क्या हैं, इसके बारे में ऊपरी जानकारी रखना एक बात है और उन धर्मों का गहराई से अध्ययन करना दूसरी बात है। * यहोवा ने “विश्‍वासयोग्य और बुद्धिमान दास” को इसलिए ठहराया ताकि वह हमें उसके वचन के बारे में सिखाए। (मत्ती 4:4; 24:45) इसलिए पौलुस कहता है: “तुम प्रभु की मेज और दुष्टात्माओं की मेज दोनों के साझी नहीं हो सकते। क्या हम प्रभु को रिस दिलाते हैं?”—1 कुरिन्थियों 10:20-22.

हो सकता है, कुछ झूठे शिक्षक पहले सच्चे मसीही थे मगर वे सच्चाई से हटकर भ्रष्ट हो गए। (यहूदा 4, 11) मगर इसमें कोई हैरानी की बात नहीं है क्योंकि यीशु ने तो पहले से ही बता दिया था कि ऐसे लोग रहेंगे। उसने “विश्‍वासयोग्य और बुद्धिमान दास,” यानी अभिषिक्‍त मसीहियों के साथ-साथ “दुष्ट दास” का भी ज़िक्र किया, जो शिकायत करता है “कि मेरे स्वामी के आने में देर है।” इसलिए वह अपने साथियों को पीटने लगता है। (मत्ती 24:48, 49) यह दुष्ट दास ऐसे शिक्षकों और उनका अनुकरण करनेवालों को सूचित करता है जिनकी अपनी कोई शिक्षा नहीं होती, वे बस दूसरों का विश्‍वास तोड़ने में लगे रहते हैं। इन लोगों के बारे में प्रेरित यूहन्‍ना कहता है: “यदि कोई तुम्हारे पास आए, और यही शिक्षा न दे, उसे न तो घर में आने दो, और न नमस्कार करो।”—2 यूहन्‍ना 10; 2 कुरिन्थियों 11:3, 4, 13-15.

जो नेकदिल इंसान सच्चाई की तलाश कर रहे हैं उन्हें इस बारे में सतर्क रहना चाहिए कि वे दूसरे धर्मों की कैसी शिक्षाओं पर कान दे रहे हैं। वक्‍त आने पर सच्चाई की उनकी तलाश में यहोवा उन्हें ज़रूर कामयाबी देगा। परमेश्‍वर से मिलनेवाली बुद्धि के बारे में बाइबल कहती है: ‘यदि तू उसको चान्दी की नाईं ढूंढ़े, और गुप्त धन के समान उसकी खोज में लगा रहे; तो परमेश्‍वर का ज्ञान तुझे प्राप्त होगा।’ (नीतिवचन 2:4, 5) सच्चे मसीहियों ने बाइबल और मसीही कलीसिया के ज़रिए परमेश्‍वर का ज्ञान पाया है और उन्होंने देखा है कि उस ज्ञान के मुताबिक चलनेवालों को परमेश्‍वर आशीष देता है। इसलिए झूठी शिक्षाओं से उनका कोई लेना-देना नहीं है।—2 तीमुथियुस 3:14.

[फुटनोट]

^ वॉच टावर बाइबल एण्ड ट्रैक्ट सोसाइटी द्वारा प्रकाशित परमेश्‍वर के लिए मानवजाति की खोज (अँग्रेज़ी) किताब में इस विषय पर ज़रूरी जानकारी दी गयी है कि दुनिया के कई धर्म किस तरह शुरू हुए और वे क्या सिखाते हैं।