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नैतिक शुद्धता के बारे में परमेश्‍वर का नज़रिया

नैतिक शुद्धता के बारे में परमेश्‍वर का नज़रिया

नैतिक शुद्धता के बारे में परमेश्‍वर का नज़रिया

“मैं ही तेरा परमेश्‍वर यहोवा हूं जो तुझे तेरे लाभ के लिये शिक्षा देता हूं, और जिस मार्ग से तुझे जाना है उसी मार्ग पर तुझे ले चलता हूं।”यशायाह 48:17.

1, 2. (क) लैंगिक नैतिकता के बारे में आम तौर पर लोगों का क्या नज़रिया है? (ख) लैंगिक नैतिकता के बारे में मसीहियों का क्या नज़रिया है?

 आज, दुनिया के कई इलाकों में लोग नैतिक व्यवहार को एक निजी मामला समझते हैं। वे लैंगिक संबंधों को अपनी चाहत ज़ाहिर करने का कुदरती तरीका मानते हैं। वे जब चाहे जिस किसी के साथ इन संबंधों के द्वारा मज़ा लेना चाहते हैं। वे इसे सिर्फ शादी के बंधन तक ही सीमित नहीं रखना चाहते। वे सोचते हैं कि अगर दो लोग राज़ी हों और किसी का कुछ नुकसान न हो तो लैंगिक संबंध के मामले में अपनी इच्छाओं को पूरा करने में कोई बुराई नहीं है। उनके हिसाब से किसी को किसी के नैतिक आचरण पर उँगली उठाने का हक नहीं है खासकर लैंगिक संबंधों के मामलों में।

2 मगर जो लोग यहोवा परमेश्‍वर को जानते हैं उनका नज़रिया दुनिया के लोगों से बिलकुल अलग है। वे खुशी-खुशी बाइबल में दी गई हिदायतों का पालन करते हैं क्योंकि वे यहोवा से प्यार करते हैं और उसे खुश करना चाहते हैं। वे जानते हैं कि यहोवा भी उनसे बेहद प्यार करता है और उनकी भलाई के लिए ही मार्गदर्शन देता है। उसके मार्गदर्शन पर चलने से ना सिर्फ उन्हें लाभ पहुँचता है बल्कि सच्ची खुशी भी मिलती है। (यशायाह 48:17) परमेश्‍वर हमारा जीवन दाता है, इसलिए लैंगिक संबंध के मामलों में हम अपने शरीर का किस तरह इस्तेमाल करेंगे इसके बारे हमें उसी के मार्गदर्शन पर चलना चाहिए। यह इसलिए भी बहुत ज़रूरी है क्योंकि लैंगिक संबंधों का जन्म देने के साथ गहरा वास्ता है।

प्रेममय सिरजनहार की तरफ से एक देन

3. चर्च में लैंगिक संबंधों के बारे में बहुत-से लोगों को क्या शिक्षा दी गई है, और यह बाइबल की शिक्षाओं से क्यों अलग है?

3 अभी हमने दुनिया का नज़रिया देखा है। इसकी दूसरी तरफ ईसाईजगत के कुछ पादरियों ने यह शिक्षा दी कि किसी भी तरह का लैंगिक संबंध रखना शर्मनाक काम है और यह पाप है। उन्होंने सिखाया कि हव्वा ने आदम को लैंगिक संबंध के लिए बहकाया था जोकि “पहला पाप” था। मगर यह शिक्षा बाइबल के खिलाफ है क्योंकि बाइबल में, पहले इंसानी जोड़े के बारे में, हव्वा को साफ-साफ ‘आदम की पत्नी’ कहा गया है। (उत्पत्ति 2:25) परमेश्‍वर ने खुद आदम-हव्वा को बच्चे पैदा करने की यह आज्ञा दी थी: “फूलो-फलो, और पृथ्वी में भर जाओ।” (उत्पत्ति 1:28) चर्च की शिक्षा का कोई तुक नहीं बनता, क्योंकि ऐसा तो हो नहीं सकता कि पहले परमेश्‍वर, आदम और हव्वा को बच्चे पैदा करने की आज्ञा दे फिर उसी आज्ञा का पालन करने की वजह से उन्हें सज़ा दे।—भजन 19:8.

4. परमेश्‍वर ने इंसानों को लैंगिक शक्‍ति क्यों दी?

4 परमेश्‍वर ने हमारे पहले माता-पिता को जो आज्ञा दी थी, वही आज्ञा बाद में नूह और उसके पुत्रों के लिए भी दोहरायी गयी थी। इससे हमें मालूम होता है कि लैंगिक संबंधों का खास मकसद: बच्चे पैदा करना था। (उत्पत्ति 9:1) परमेश्‍वर का वचन दिखाता है कि उसके शादी-शुदा सेवकों के लिए यह ज़रूरी नहीं कि उन्हें सिर्फ बच्चे पैदा करने के लिए ही लैंगिक संबंध स्थापित करना चाहिए। इसके बजाय, पति-पत्नी की भावनात्मक, शारीरिक ज़रूरतों को ये संबंध भलि-भाँति पूरा कर सकते हैं और उन्हें खुशी दे सकते हैं। पति-पत्नी के लिए ये संबंध गहरा प्यार दिखाने का एक तरीका हैं।—उत्पत्ति 26:8, 9; नीतिवचन 5:18, 19; 1 कुरिन्थियों 7:3-5.

परमेश्‍वर की ठहराई हुई सीमाएँ

5. परमेश्‍वर ने लैंगिक संबंधों के बारे में क्या सीमा ठहराई है?

5 हालाँकि लैंगिक शक्‍ति परमेश्‍वर की तरफ से एक तोहफा है, मगर इसके लिए उसने एक सीमा भी ठहराई है। यह सीमा शादी के बँधन पर भी लागू होती है। (इफिसियों 5:28-30; 1 पतरस 3:1, 7) बाइबल, शादी के बंधन के बाहर किसी के साथ लैंगिक संबंध रखने की एकदम मनाही करती है। परमेश्‍वर ने इस्राएल जाति को जो कानून-व्यवस्था दी थी उसमें यह लिखा था: “तू व्यभिचार न करना।” (निर्गमन 20:14) बाद में, यीशु मसीह ने इंसान को अशुद्ध करनेवाली और मन से निकलनेवाली “बुरी चिन्ता” में “व्यभिचार” और “परस्त्रीगमन” को भी शामिल किया। (मरकुस 7:21, 22) प्रेरित पौलुस ने भी परमेश्‍वर की प्रेरणा से कुरिन्थ के मसीहियों को लिखा: “व्यभिचार से भागो।” (1 कुरिन्थियों 6:18, NHT) और इब्रानियों को अपनी पत्री में लिखा: “विवाह सब में आदर की बात समझी जाए, और बिछौना निष्कलंक रहे; क्योंकि परमेश्‍वर व्यभिचारियों, और परस्त्रीगामियों का न्याय करेगा।”—इब्रानियों 13:4.

6. बाइबल में दिए गए “व्यभिचार” शब्द में क्या-क्या शामिल है?

6 यहाँ पर, शब्द “व्यभिचार” का क्या मतलब है? यह यूनानी शब्द पॉर्नीया का अनुवाद है और बाइबल में कई बार इसका इस्तेमाल अविवाहित लोगों के बीच लैंगिक संबंधों को बताने के लिए किया गया है। (1 कुरिन्थियों 6:9) इसके अलावा बाइबल में कई जगहों पर जैसे मत्ती 5:32 और 19:9 में इस शब्द का अर्थ और भी ज़्यादा बढ़ जाता है और वहाँ इसमें परस्त्रीगमन, कौटुम्बिक व्यभिचार या पशुगमन को भी शामिल किया गया है। साथ ही अविवाहित लोगों द्वारा लैंगिक सुख पाने के लिए एक-दूसरे के गुप्तांगों से खेलना और मुख मैथुन करने को भी पॉर्नीया कहा जा सकता है। परमेश्‍वर के वचन में सीधे रूप से या सिद्धांत के मुताबिक ऐसे किसी भी काम को घृणित बताया गया है।—लैव्यव्यवस्था 20:10, 13, 15, 16; रोमियों 1:24, 26, 27, 32. *

परमेश्‍वर के नैतिक नियमों से लाभ उठाना

7. शुद्ध चरित्र रखने से हमें क्या-क्या लाभ होते हैं?

7 लैंगिक संबंधों के बारे में यहोवा की हिदायतों को मानना असिद्ध इंसानों के लिए एक चुनौती हो सकता है। 12वीं सदी के मशहूर यहूदी फिलॉसफर मैमोनाइडस ने लिखा था: “तोरह [मूसा की व्यवस्था] में दी गई किसी भी पाबंदी को मानना इतना मुश्‍किल नहीं जितना कि कौटुम्बिक व्यभिचार और अनुचित लैंगिक संबंध जैसी पाबंदी को।” फिर भी, अगर हम परमेश्‍वर की सलाह मानेंगे तो हमें बहुत लाभ पहुँचेगा। (यशायाह 48:18) मिसाल के तौर पर, अगर हम परमेश्‍वर की यह आज्ञा मानते हैं तो हम लैंगिक रूप से फैलनेवाली ऐसी बीमारियों से बच सकते हैं जो लाइलाज और जानलेवा हैं। * इसके अलावा नाजायज़ गर्भ धारण करने से भी बचा जा सकता है। परमेश्‍वर की बुद्धि के मुताबिक काम करने से हमें शुद्ध विवेक भी हासिल होता है। साथ ही हमारा आत्म-सम्मान भी बढ़ता है और हम अपने रिश्‍तेदारों, अपने पति या पत्नी, अपने बच्चों, और मसीही भाई-बहनों से भी इज़्ज़त पाते हैं। इसके अलावा लैंगिक संबंधों के बारे में सही समझ और ज्ञान शादी की खुशियों को बढ़ाता है। एक मसीही बहन लिखती है: “परमेश्‍वर के वचन की सच्चाई सबसे बड़ी सुरक्षा है। मैं अपनी शादी का इंतज़ार कर रही हूँ। जब मैं एक मसीही से शादी करूँगी तो उसे फख्र के साथ बता सकूँगी कि मैं शुद्ध रही हूँ।”

8. किस तरह हमारा शुद्ध चालचलन लोगों को सच्चाई की कदर करने के लिए उकसा सकता है?

8 हमारा शुद्ध चालचलन सच्चाई के बारे में लोगों की गलतफहमियाँ भी दूर कर सकता है और उन्हें परमेश्‍वर के नज़दीक भी ला सकता है। प्रेरित पतरस ने लिखा: “अन्यजातियों में तुम्हारा चालचलन भला हो; इसलिये कि जिन जिन बातों में वे तुम्हें कुकर्मी जानकर बदनाम करते हैं, वे तुम्हारे भले कामों को देखकर; उन्हीं के कारण कृपा दृष्टि के दिन परमेश्‍वर की महिमा करें।” (1 पतरस 2:12) यहोवा की सेवा न करनेवाले लोगों की नज़र में भले ही आपके शुद्ध चरित्र का कोई मोल न हो या वे इसकी वजह ना समझ पाएँ मगर हमारा स्वर्गीय पिता तो हमें देखता है, हमें स्वीकार करता है। इतना ही नहीं ये देखकर कि हम उसकी आज्ञा मानने के लिए क्या-क्या जतन करते हैं उसका दिल खुशी से भर जाता है।—नीतिवचन 27:11; इब्रानियों 4:13.

9. हम शायद परमेश्‍वर के नियमों की वजह ना समझ पाएँ मगर फिर भी हमें उस पर क्यों यकीन रखना चाहिए? उदाहरण देकर समझाइए।

9 परमेश्‍वर पर विश्‍वास करने का मतलब उस पर पूरा भरोसा करना है कि वह जो हमसे कहता है वही हमारे लिए सबसे उत्तम है। बेशक, शायद हमें उस वक्‍त यह समझ न आए कि परमेश्‍वर हमें खास मार्गदर्शन क्यों दे रहा है। इसे समझने के लिए मूसा की व्यवस्था से एक उदाहरण पर गौर कीजिए। परमेश्‍वर ने छावनी में रहनेवालों को एक नियम दिया था कि छावनी से बाहर जाकर अपना मल-त्याग करें और मिट्टी से उसे ढाँप दें। (व्यवस्थाविवरण 23:13, 14) शायद कुछ इस्राएली इस नियम की वजह के बारे में सोचते होंगे। और कुछ को तो यह नियम ज़रूरी भी न लगा हो। मगर अब कहीं जाकर मेडिकल साइंस को पता चला है कि उस नियम का पालन करने से इस्राएलियों का पानी दूषित होने से बचा रहा, वे ऐसी कई बीमारियों से बच सके जो अकसर मक्खियों या दूसरे कीड़ों से फैलती हैं। उसी तरह लैंगिक संबंध को सिर्फ शादी के बंधन तक सीमित रखने के पीछे परमेश्‍वर के पास आध्यात्मिक, सामाजिक, भावनात्मक, शारीरिक और मनोवैज्ञानिक कारण हैं। आइए हम बाइबल से ऐसे लोगों की मिसालें देखें जो नैतिक रूप से शुद्ध रहे।

शुद्ध चालचलन की वजह से यूसुफ को आशीष मिली

10. किसने यूसुफ को लैंगिक संबंध के लिए फँसाने की कोशिश की और यूसुफ ने क्या जवाब दिया?

10 शायद आप बाइबल में दी गई याकूब के बेटे यूसुफ की कहानी जानते होंगे। वह सिर्फ 17 साल का था जब वह मिस्र के फ़िरौन के हाकिम, और जल्लादों के प्रधान, पोतीपर का दास था। मगर यहोवा ने उसे आशीष दी और पोतीपर ने उसे अपने घर के ऊपर सरदार ठहरा दिया। जब यूसुफ करीब 20 साल का हुआ तो वह बहुत ही “सुन्दर और रुपवान्‌” हो गया और वह पोतीपर की पत्नी की नज़रों में आ गया। पोतीपर की पत्नी ने लैंगिक संबंध स्थापित करने के लिए यूसुफ को फँसाने की कोशिश की। मगर यूसुफ ने साफ-साफ इनकार कर दिया, और कहा कि ऐसा करना ना सिर्फ उसके स्वामी के साथ विश्‍वासघात होगा, बल्कि ‘परमेश्‍वर के विरोध भी पाप’ (NHT) होगा। यूसुफ ने ऐसा क्यों सोचा?—उत्पत्ति 39:1-9.

11, 12. हालाँकि यूसुफ के वक्‍त में व्यभिचार या परस्त्रीगमन के बारे में कोई लिखित कानून नहीं था फिर भी यूसुफ के मन में जो अच्छे विचार आए वे किस वजह से आए थे?

11 यूसुफ के मना करने की वजह यह नहीं थी कि उसे लोगों का डर था। यूसुफ का परिवार तो बहुत दूर रहता था और उसके पिता ने सोचा था कि वह मर चुका है। अगर यूसुफ अनैतिक काम करता भी तो उसके परिवार को उसकी करतूत की खबर तक न होती। यहाँ तक कि पोतीपर और उसके नौकर-चाकरों को इस बात की भनक भी न पड़ती क्योंकि कई बार घर में कोई नहीं होता था। (उत्पत्ति 39:11) मगर फिर भी, यूसुफ अच्छी तरह जानता था कि परमेश्‍वर की नज़रों से इसे कभी नहीं छुपाया जा सकता।

12 यहोवा के बारे में यूसुफ जो कुछ जानता था उसने उस पर ज़रूर विचार किया होगा। बेशक वह जानता होगा कि यहोवा ने अदन की वाटिका में क्या कहा था: “इस कारण पुरुष अपने माता पिता को छोड़कर अपनी पत्नी से मिला रहेगा और वे एक ही तन बने रहेंगे।” (उत्पत्ति 2:24) इसके अलावा वह यह भी अच्छी तरह जानता था कि यहोवा ने एक पलिशतिनी राजा से क्या कहा था जो यूसुफ की परदादी सारा के साथ दुष्कर्म करने पर तुला हुआ था। यहोवा ने उस राजा से कहा था: “सुन, जिस स्त्री को तू ने रख लिया है, उसके कारण तू मर जाएगा, क्योंकि वह सुहागिन है। . . . और मै ने तुझे रोक भी रखा कि तू मेरे विरुद्ध पाप न करे: इसी कारण मैं ने तुझ को उसे छूने नहीं दिया।” (तिरछे टाइप हमारे।) (उत्पत्ति 20:3, 6) हालाँकि यहोवा ने तब तक अपनी कानून-व्यवस्था नहीं दी थी, मगर फिर भी यह साफ था कि शादी के बंधन के बारे में उसका नज़रिया क्या है। यूसुफ के नैतिक ज्ञान, के साथ-साथ यहोवा को खुश करने की उसकी इच्छा ने उसकी मदद की और उसने अनैतिकता से साफ इनकार कर दिया।

13. शायद किस वजह से यूसुफ, पोतीपर की पत्नी के सामने आने से बच नहीं सकता था?

13 पोतीपर की पत्नी यूसुफ की पीछे पड़ गई थी वह यूसुफ को लुभाने के लिए “प्रति दिन” उससे मिन्‍नतें किया करती थी। मगर आखिर यूसुफ को क्या पड़ी थी जो बार-बार उसके सामने जाता था? क्या वह उससे दूर नहीं रह सकता था? दरअसल वह तो बस एक दास था और अपने हालात को बदलना उसके बस के बाहर था। पुरातत्व खोजों से मिले सबूत दिखाते हैं कि मिस्र में गोदाम, घर के अंदर के पिछले भाग में होते थे। इसलिए पोतीपर की पत्नी के सामने आने से बचना उसके लिए नामुमकिन था।—उत्पत्ति 39:10.

14. (क) पोतीपर की पत्नी से दूर भागने के बाद यूसुफ का क्या हुआ? (ख) यहोवा ने यूसुफ की वफादारी के लिए उसे कैसे आशीष दी?

14 एक दिन ऐसा हुआ कि वे दोनों घर में अकेले थे। तब पोतीपर की पत्नी यूसुफ को पकड़कर कहने लगी “मेरे साथ सो।” मगर वह वहाँ से भाग गया। इस इनकार से पोतीपर की पत्नी के तन-बदन में आग लग गई। उसने यूसुफ पर झूठा इलज़ाम लगा दिया कि उसने उसके साथ बलात्कार करने की कोशिश की है। नतीजा क्या हुआ? क्या यहोवा ने यूसुफ को उसकी खराई के लिए फौरन प्रतिफल दिया? नहीं। इसके बजाय यूसुफ को बंदीगृह में डाल दिया गया और उसके पैरों को बेड़ियों से जकड़ दिया गया। (उत्पत्ति 39:12-20; भजन 105:18) मगर यूसुफ के साथ जो भी नाइंसाफी हुई उसे यहोवा देख रहा था। और वक्‍त आने पर उसने यूसुफ को प्रतिफल दिया। यहोवा ने उसे जेल की चारदीवारी से बाहर निकालकर महल में पहुँचा दिया। यूसुफ उस वक्‍त मिस्र के फिरौन के बाद दूसरा सबसे शक्‍तिशाली शासक बन गया। उसे एक पत्नी मिली और उनके बच्चे भी हुए। (उत्पत्ति 41:14, 15, 39-45, 50-52) इतना ही नहीं, 3,500 साल पहले बाइबल में लिखी यूसुफ की खराई की दास्तान से तब से लेकर आज तक परमेश्‍वर के लोग सबक सीखते आए हैं। परमेश्‍वर के खरे नियमों पर चलने से उसे क्या ही बढ़िया आशीषें मिलीं! वैसे ही, हो सकता है कि आज हमें नैतिक खराई बनाए रखने के फायदे तुरंत नज़र ना आएँ, मगर हम यकीन रख सकते हैं कि यहोवा हमारा चालचलन देख रहा है और वह हमारी खराई के लिए अपने ठहराए हुए समय में हमें ज़रूर आशीष देगा।—2 इतिहास 16:9.

अय्यूब ने ‘अपनी आंखों से वाचा’ बाँधी

15. अय्यूब का ‘आंखों से वाचा’ बाँधने का क्या मतलब था?

15 खराई पर चलने की दूसरी मिसाल है, अय्यूब। जब शैतान उसकी परीक्षा ले रहा था तब अय्यूब ने अपने कामों को याद करके कहा कि अगर उसने सचमुच परमेश्‍वर का कोई नियम तोड़ा है जिसमें लैंगिक संबंधों की मर्यादा पार करना भी शामिल था, तो वह कोई भी सज़ा भुगतने के लिए तैयार है। अय्यूब ने कहा: “मैं ने अपनी आंखों के विषय वाचा बान्धी है, फिर मैं किसी कुंवारी पर क्योंकर आंखें लगाऊं?” (अय्यूब 31:1) ऐसा कहकर अय्यूब बताना चाहता था कि परमेश्‍वर का वफादार बने रहने के लिए उसने यह दृढ़-फैसला किया था कि वह किसी परायी स्त्री को बुरी नज़र से कभी नहीं देखेगा। बेशक इसका मतलब यह नहीं था कि वह हर स्त्री से नज़र फेर लेगा। रोज़मर्रा की ज़िंदगी में वह स्त्रियों को देखता होगा और ज़रूरत के वक्‍त उनकी मदद भी करता होगा। मगर किसी को पाने की नीयत से उसकी तरफ देखना भी उसके लिए दूर की बात थी। विपत्तियाँ आने से पहले वह बहुत धनी था “वरन उसके इतनी सम्पत्ति थी, कि पूरबियों में वह सब से बड़ा था।” (अय्यूब 1:3) मगर उसने अपनी दौलत की चमक दिखाकर ढेर सारी स्त्रियों को फँसाने की कोशिश नहीं की। इन बातों से साफ ज़ाहिर होता है कि जवान लड़कियों के साथ लैंगिक संबंध रखने की बात सोचना तक उसके लिए दूर की बात थी।

16. (क) शादी-शुदा लोगों के लिए अय्यूब एक बेहतरीन मिसाल क्यों है? (ख) मलाकी के दिनों में पुरुषों का आचरण अय्यूब से कैसे अलग था, और आज के ज़माने के बारे में क्या कहा जा सकता है?

16 इस तरह अच्छे और बुरे वक्‍त में अय्यूब ने दिखाया कि वह अपने चालचलन में खरा है। यहोवा ने यह सब देखा और उसे बहुत बड़ा प्रतिफल दिया। (अय्यूब 1:10; 42:12) शादी-शुदा स्त्री और पुरुषों के लिए अय्यूब क्या ही बढ़िया मिसाल है! इसमें ताज्जुब नहीं कि यहोवा उससे बहुत प्यार करता था! मगर दूसरी तरफ, आज दुनिया में कई लोगों का चरित्र वैसा ही है जैसा मलाकी के दिनों में था। भविष्यवक्‍ता मलाकी ने बयान किया कि कैसे कई पुरुषों ने जवान स्त्रियों से शादी करने के लिए अपनी ब्याहताओं को छोड़ दिया था। यहोवा की वेदी उन पत्नियों के आँसुओं से रात-दिन भीगती रहती थी जिन्हें उनके पतियों ने छोड़ दिया था। यहोवा ने उन लोगों को अपराधी ठहराया जिन्होंने अपने साथी के साथ “विश्‍वासघात” किया था।—मलाकी 2:13-16.

एक शुद्ध कुँवारी युवती

17. किस तरह शूलेम्मिन “किवाड़ लगाई हुई बारी के समान” थी?

17 नैतिक खराई रखनेवालों में तीसरी मिसाल है, कुँवारी शूलेम्मिन। वह इतनी खूबसूरत और जवान थी कि ना सिर्फ एक नौजवान चरवाहा उससे प्यार करने लगा बल्कि इस्राएल का सबसे अमीर राजा, सुलैमान भी उसका दीवाना हो गया था। सुलैमान के लिखे श्रेष्ठगीत की खूबसूरत कहानी में वह अपने चालचलन में शुद्ध रहती है और इसीलिए उसके आस-पास के लोग उसकी इज़्ज़त करते हैं। सुलैमान उसका प्यार जीत नहीं पाता, फिर भी उसने परमेश्‍वर की प्रेरणा से शूलेम्मिन की कहानी को लिखा। जिस चरवाहे से वह प्रेम करती थी वह भी उसके शुद्ध चालचलन का आदर करता था। एक बार वह कहता है कि शूलेम्मिन “किवाड़ लगाई हुई बारी के समान,” है। (श्रेष्ठगीत 4:12) प्राचीन इस्राएल में खूबसूरत बगीचों में तरह-तरह की सब्ज़ियाँ, खुशबूदार फूल और रसीले फलों के पेड़ हुआ करते थे। ऐसी बारियाँ या बाग कटीली झाड़ियों से या दीवार से घिरे होते थे और उनके अंदर जाने के लिए सिर्फ एक दरवाज़ा होता था जिस पर ताला लगा होता था। (यशायाह 5:5) उस चरवाहे के लिए शूलेम्मिन की नैतिक शुद्धता एक ऐसे बाग की तरह थी जिसकी खूबसूरती अनूठी हो। वह पूरी तरह से पवित्र थी। वह सिर्फ अपने होनेवाले पति पर ही अपना प्यार निछावर करती।

18. यूसुफ, अय्यूब, और शूलेम्मिन की कहानी हमें क्या याद दिलाती है?

18 आज मसीही स्त्रियों के लिए शूलेम्मिन नैतिक खराई की एक बेहतरीन मिसाल है। यहोवा ने शूलेम्मिन के सद्‌गुण को देखकर उसे आशीष दी जैसे उसने यूसुफ और अय्यूब को भी आशीषें दी थीं। और हमें सही राह दिखाने के लिए ही इन लोगों की मिसालें परमेश्‍वर के वचन में लिखी हुई हैं। हालाँकि हमारी खराई की दास्तान को बाइबल में नहीं लिखा जाएगा मगर हाँ, जो लोग यहोवा की मर्ज़ी पर चलते हैं “उनके स्मरण के निमित्त” यहोवा के पास “एक पुस्तक” है। (मलाकी 3:16) आइए हम यह कभी ना भूलें कि यहोवा “ध्यान धरकर” देख रहा है और जब हम अपने चरित्र को शुद्ध बनाए रखने के लिए वफादारी से कोशिश करते हैं तो उसका मन आनंदित होता है।—मलाकी 3:16.

19. (क) नैतिकता के स्तरों को हमें किस नज़र से देखना चाहिए? (ख) अगले लेख में किस पर चर्चा की जाएगी?

19 जबकि अविश्‍वासी लोग हमारा आचरण देखकर हम पर हँसते हैं, मगर हमें अपने प्यारे सिरजनहार की आज्ञा का पालन करने में खुशी मिलती है। हमारे पास जो नैतिकता के स्तर हैं वे उत्तम हैं, क्योंकि ये परमेश्‍वर की इच्छा के मुताबिक हैं। इन पर हमें गर्व होना चाहिए और इनकी हमें दिल से कदर भी करनी चाहिए। अगर हम अपने चालचलन को शुद्ध बनाए रखते हैं तो ना सिर्फ हमें अभी परमेश्‍वर से आशीषें मिलेंगी बल्कि भविष्य में भी हम उससे हमेशा-हमेशा आशीषें पाने की उम्मीद कर सकते हैं। तो फिर नैतिक रूप से शुद्ध बने रहने के लिए हम कौन-से कारगर कदम उठा सकते हैं? अगला लेख इसी बेहद ज़रूरी सवाल का जवाब देगा।

[फुटनोट]

^ मार्च 15, 1983 की द वॉचटावर, के पेज 29-31 देखिए।

^ दुःख की बात है कि कुछ निर्दोष मसीही भाई-बहनों को परमेश्‍वर की हिदायतें न माननेवाले अपने अविश्‍वासी साथियों से लैंगिक बीमारियाँ लग गई हैं।

क्या आप समझा सकते हैं?

लैंगिक संबंधों के बारे में बाइबल क्या शिक्षा देती है?

बाइबल में दिए गए “व्यभिचार” शब्द में क्या-क्या शामिल है?

नैतिक रूप से शुद्ध रहने से हमें कैसे लाभ मिलता है?

यूसुफ, अय्यूब, और शूलेम्मिन आज मसीहियों के लिए बेहतरीन मिसालें क्यों हैं?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 9 पर तसवीर]

यूसुफ नाजायज़ लैंगिक संबंध रखने से दूर भागा

[पेज 10 पर तसवीर]

शूलेम्मिन “किवाड़ लगी हुई बारी” के समान थी

[पेज 11 पर तसवीर]

अय्यूब ने ‘अपनी आँखों से वाचा’ बाँधी थी