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आज परमेश्‍वर के सेवक कौन हैं?

आज परमेश्‍वर के सेवक कौन हैं?

आज परमेश्‍वर के सेवक कौन हैं?

“हमारी योग्यता परमेश्‍वर की ओर से है। जिस ने हमें नई वाचा के सेवक होने के योग्य भी किया।”2 कुरिन्थियों 3:5, 6.

1, 2. पहली सदी के सभी मसीहियों पर क्या ज़िम्मेदारी थी, मगर आगे जाकर इसमें क्या बदलाव आया?

 पहली सदी में सभी मसीही अभिषिक्‍त थे और नयी वाचा के सेवक भी थे। इसलिए उन सभी पर सुसमाचार का प्रचार करने की ज़िम्मेदारी थी। इसके अलावा, कुछ भाइयों पर कलीसिया को सिखाने की भी ज़िम्मेदारी थी। (1 कुरिन्थियों 12:27-29; इफिसियों 4:11) और कुछ भाइयों पर अपना परिवार संभालने की भारी ज़िम्मेदारी थी। (कुलुस्सियों 3:18-21) मगर उन सभी मसीहियों को एक खास ज़िम्मेदारी ज़रूर निभानी थी, और वह थी प्रचार करना। इस ज़िम्मेदारी को यूनानी भाषा में दीआकोनीया यानी सेवा कहा गया था।—कुलुस्सियों 4:17.

2 मगर समय के गुज़रते यह सब बदल गया। पादरियों का एक वर्ग पनपने लगा और इन्होंने प्रचार करने का हक अपने तक ही सीमित रखा और ये चर्च में भाषण देकर सेवा करते हैं। (प्रेरितों 20:30) और बाकी के आम इसाइयों को प्रचार करने की ज़िम्मेदारी नहीं दी गयी। अब उनकी ज़िम्मेदारी और भी कम हो गयी। उन्हें सिर्फ पादरियों के गुज़र-बसर के लिए चंदा देना था और चर्च में बैठकर पादरी का प्रचार और भाषण सुनना था।

3, 4. (क) ईसाईजगत में लोगों को सेवक के पद पर कैसे ठहराया जाता है? (ख) ईसाईजगत में सिर्फ कौन सेवक होता है, और यहोवा के साक्षियों में ऐसा क्यों नहीं है?

3 पादरी यह दावा करते हैं कि सिर्फ वे ही सेवक हैं। वे इसे एक पद समझते हैं, और इस पद पर सिर्फ उन्हें ठहराया जाता है जो खास धार्मिक-स्कूलों से शिक्षा पाते हैं। दी इंटरनैशनल स्टैंडर्ड बाइबल एनसाइक्लोपीडिया कहती है: “कुछ खास रस्मों-रिवाज़ों से गुज़रने के बाद ही उन्हें इस पद पर ठहराया जाता है। और इस पद पर ठहराए जाने के बाद ही उन्हें प्रचार करने का और ईसाई धर्म से जुड़ी विधियों को करने का खास अधिकार मिलता है।” मगर कौन उन्हें इस पद पर ठहराता है? द न्यू एनसाइक्लोपीडिया ब्रिटैनिका कहती है: “कुछ चर्चों में आज भी एक व्यक्‍ति, यानी बिशप ही हमेशा पादरियों को इस पद पर ठहराता है। दूसरे चर्चों में, चर्च का शासी निकाय उन्हें यह पद देता है।”

4 इसलिए, आज चर्चों में सिर्फ कुछ ही गिने-चुने लोगों को सेवक ठहराया जाता है, जो चर्च में भाषण देकर प्रचार करते हैं। मगर, यहोवा के साक्षियों के बीच ऐसा नहीं है। क्यों? क्योंकि पहली सदी के मसीहियों के बीच भी ऐसा नहीं था।

कौन असल में परमेश्‍वर के सेवक हैं?

5. बाइबल के मुताबिक, कौन-कौन सेवक हैं?

5 बाइबल बताती है कि यहोवा के सभी उपासक सेवक हैं, चाहे वे स्वर्ग में रहते हों या पृथ्वी पर। स्वर्गदूत सेवक हैं क्योंकि उन्होंने यीशु की सेवा की। (मत्ती 4:11; 26:53; लूका 22:43) स्वर्गदूत ‘उद्धार पानेवालों की भी सेवा’ करते हैं। (इब्रानियों 1:14; मत्ती 18:10) यीशु खुद भी एक सेवक था। उसने कहा: “मनुष्य का पुत्र, वह इसलिये नहीं आया कि उस की सेवा टहल किई जाए, परन्तु इसलिये आया कि आप सेवा टहल करे।” (मत्ती 20:28; रोमियों 15:8) और यीशु के चेले ‘उसके पद-चिन्हों पर चलते’ हैं, इसलिए वे भी सेवक हैं।—1 पतरस 2:21.

6. यीशु ने कैसे बताया कि उसके चेलों को सेवक होना था?

6 स्वर्ग जाने से कुछ समय पहले, यीशु ने अपने चेलों से कहा: “तुम जाकर सब जातियों के लोगों को चेला बनाओ और उन्हें पिता और पुत्र और पवित्रात्मा के नाम से बपतिस्मा दो। और उन्हें सब बातें जो मैं ने तुम्हें आज्ञा दी है, मानना सिखाओ।” (मत्ती 28:19, 20) यीशु के चेलों को शिष्य बनाना था, यानी उन्हें सेवक होना था। जो लोग नए चेले बनते, उन्हें यीशु की सभी आज्ञाओं को मानना था और इस आज्ञा में दूसरों को जाकर चेला बनाना भी शामिल है। सो, चाहे स्त्री हों या पुरुष, बच्चे हों या बूढ़े, यीशु मसीह के सच्चे चेलों को सेवक बनना था।—योएल 2:28, 29.

7, 8. (क) कौन-सी आयतें दिखाती हैं कि सभी सच्चे मसीही सेवक हैं? (ख) सेवक ठहराए जाने के बारे में कौन-से सवाल उठते हैं?

7 इसी तरह, सा.यु. 33 के पिन्तेकुस्त के दिन, वहाँ मौजूद यीशु के सभी चेलों ने मिलकर “परमेश्‍वर के बड़े बड़े कामों की चर्चा” की। (प्रेरितों 2:1-11) आगे प्रेरित पौलुस ने लिखा: “धार्मिकता के लिये मन से विश्‍वास किया जाता है, और उद्धार के लिये मुंह से अंगीकार किया जाता है।” (रोमियों 10:10) पौलुस ने ये बात सिर्फ गिने-चुने पादरियों से नहीं, बल्कि ‘उन सब से कही जो रोम में परमेश्‍वर के प्यारे थे।’ (रोमियों 1:1, 7) उसी तरह, ‘इफिसुस के पवित्र और मसीह यीशु में विश्‍वासी सभी लोगों’ को अपने “पांवों में मेल के सुसमाचार की तैयारी के जूते पहिन[ना]” था। (इफिसियों 1:1; 6:15) और सभी इब्रानियों को ‘अपनी आशा के अंगीकार को दृढ़ता से थामे रहना था,’ यानी प्रचार करने से कभी नहीं रुकना था।—इब्रानियों 10:23.

8 तो फिर सवाल उठता है कि एक व्यक्‍ति कब सेवक बनता है? या यूँ कहें कि उसे सेवक कब ठहराया जाता है? और उसे कौन सेवक ठहराता है?

व्यक्‍ति कब सेवक ठहराया जाता है?

9. यीशु को किसने सेवक ठहराया था और कब?

9 किसी व्यक्‍ति को कब और कौन सेवक ठहराता है, इसे जानने के लिए यीशु मसीह की मिसाल पर गौर कीजिए। यीशु के पास सेवक ठहराए जाने का कोई सर्टिफिकेट या किसी खास धार्मिक-स्कूल की कोई डिग्री नहीं थी। ना ही उसे किसी इंसान ने सेवक ठहराया था। तो फिर हम क्यों कह सकते हैं कि वह सचमुच एक सेवक था? क्योंकि यशायाह की यह भविष्यवाणी यीशु में पूरी हुई थी: “[यहोवा] का आत्मा मुझ पर है, इसलिये कि उस ने . . . सुसमाचार सुनाने के लिये मेरा अभिषेक किया है।” (लूका 4:17-19; यशायाह 61:1) इन शब्दों से शक की कोई गुंजाइश नहीं रहती कि यीशु को प्रचार करने के लिए सेवक ठहराया गया था। किसने उसे सेवक ठहराया था? बेशक उसे यहोवा ने सेवक ठहराया था, क्योंकि यहोवा की आत्मा ने उसे प्रचार करने के लिए अभिषेक किया था। ये कब हुआ? जब यीशु का बपतिस्मा हुआ तब उस पर यहोवा की आत्मा आयी और तब सेवक के तौर पर उसका अभिषेक हुआ। (लूका 3:21, 22) सो, उसके बपतिस्मा के समय ही उसे सेवक नियुक्‍त किया गया था।

10. एक मसीही को कौन सेवक होने के “योग्य” ठहराता है?

10 यीशु के पहली सदी के चेलों के बारे में क्या? उन्हें किसने सेवक ठहराया था? उन्हें भी यहोवा ने सेवक ठहराया था। पौलुस ने कहा: “हमारी योग्यता परमेश्‍वर की ओर से है। जिसने हमें नई वाचा के सेवक होने के योग्य भी किया।” (2 कुरिन्थियों 3:5, 6) मगर यहोवा अपने उपासकों को सेवक कब और कैसे ठहराता है और सेवक होने के योग्य कैसे करता है? इसका जवाब तीमुथियुस की मिसाल से मिलता है। पौलुस ने उसे ‘मसीह के सुसमाचार में परमेश्‍वर का सेवक’ कहा।—1 थिस्सलुनीकियों 3:2.

11, 12. तीमुथियुस को सेवक बनने में कैसे मदद मिली?

11 तीमुथियुस को कहे गए ये शब्द हमें यह समझने में मदद करेंगे कि वह किस तरह से सेवक बना: “पर तू इन बातों पर जो तू ने सीखीं हैं और प्रतीति की थी [तुझे यकीन दिलाया गया था], यह जानकर दृढ़ बना रह; कि तू ने उन्हें किन लोगों से सीखा था? और बालकपन से पवित्र शास्त्र तेरा जाना हुआ है, जो तुझे मसीह पर विश्‍वास करने से उद्धार प्राप्त करने के लिये बुद्धिमान बना सकता है।” (2 तीमुथियुस 3:14, 15) तीमुथियुस को शास्त्र का बहुत अच्छा ज्ञान था, और यही उसके मज़बूत विश्‍वास की नींव थी, और इसी वजह से उसने प्रचार करना शुरू किया था। इस ज्ञान को पाने के लिए क्या सिर्फ शास्त्र को पढ़ना काफी था? जी नहीं। शास्त्र का सही-सही ज्ञान और उनकी गहरी समझ पाने के लिए तीमुथियुस को और भी मदद की ज़रूरत थी। (कुलुस्सियों 1:9) और यह मदद उसे शुरुआत में अपनी माँ और नानी से मिली, क्योंकि शायद उसका पिता उस वक्‍त विश्‍वासी नहीं था। उसकी माँ और नानी ने उसे “बालकपन से” ही शास्त्र के बारे में सिखाया था, और इस तरह उसे ‘प्रतीति करायी थी,’ या सच्चाई का यकीन दिलाया था।—2 तीमुथियुस 1:5.

12 मगर, तीमुथियुस को सेवक बनने के लिए और भी मदद की ज़रूरत थी, जो उसे अपने आस-पास की कलीसियाओं के मसीही भाइयों से मिली, और जिसकी वजह से उसका विश्‍वास भी मज़बूत हुआ। यह हम कैसे जानते हैं? क्योंकि पौलुस जब पहली बार तीमुथियुस से मिला, तब तीमुथियुस का “लुस्त्रा तथा इकुनियुम के भाइयों में अच्छा नाम था।” (प्रेरितों 16:2, NHT ) साथ ही उन दिनों जब कोई भाई कलीसियाओं को मज़बूत करने के लिए चिट्ठी लिखता, या उनका हौसला बढ़ाने के लिए कोई सफरी ओवरसियर उनसे मिलने आता, तो ऐसे इंतज़ामों का भी वह लाभ उठाता था, और आध्यात्मिक रूप से तरक्की करता था।—प्रेरितों 15:22-32; 1 पतरस 1:1.

13. तीमुथियुस कब सेवक ठहराया गया, और हम कैसे कह सकते हैं कि उसने आध्यात्मिक प्रगति करनी नहीं छोड़ी?

13 उसे सेवक बनने में जो मदद मिली थी, उसकी वजह से उसका विश्‍वास सचमुच मज़बूत हुआ और उसने मत्ती 28:19, 20 में दर्ज़ यीशु की आज्ञा के मुताबिक बपतिस्मा लिया। (मत्ती 3:15-17; इब्रानियों 10:5-9) बपतिस्मा लेकर उसने दिखाया कि उसने अपने-आप को पूरे दिल से परमेश्‍वर को समर्पण किया है। बपतिस्मा लेने पर ही तीमुथियुस एक सेवक ठहराया गया। तब से उसकी ज़िंदगी, उसकी ताकत, उसका सब कुछ परमेश्‍वर का हो गया। यही उसकी उपासना, उसकी ‘पवित्र-सेवा’ का एक ज़रूरी भाग है। लेकिन, सेवक बनने के बाद तीमुथियुस बस हाथ-पर-हाथ धरे बैठा नहीं रहा। वह परमेश्‍वर के वचन का अध्ययन करता रहा, प्रचार के काम में पूरे जोश के साथ हिस्सा लेता रहा, पौलुस जैसे प्रौढ़ मसीहियों के साथ उसने गहरा मेलजोल रखा। इस तरह उसने आध्यात्मिक तरक्की की और आगे जाकर एक प्रौढ़ मसीही सेवक बना।—1 तीमुथियुस 4:14; 2 तीमुथियुस 2:2; इब्रानियों 6:1.

14. आज, “अनन्त जीवन के लिए ठहराए” हुए लोग सेवक बनने के लिए तरक्की कैसे करते हैं?

14 सेवक ठहराए जाने के लिए आज भी मसीहियों को यही करना होगा। सबसे पहले, जो व्यक्‍ति ‘अनन्त जीवन के लिए ठहराया’ हुआ है, वो बाइबल स्टडी करके परमेश्‍वर और उसके उद्देश्‍यों का ज्ञान लेता है। (प्रेरितों 13:48) फिर वो बाइबल के उसूलों के मुताबिक जीना और दिल से प्रार्थना करना सीखता है। (भजन 1:1-3; नीतिवचन 2:1-9; 1 थिस्सलुनीकियों 5:17, 18) फिर वो मीटिंगों में आकर दूसरे भाई-बहनों के साथ मेलजोल रखता है, और “विश्‍वासयोग्य और बुद्धिमान दास” द्वारा किए गए इंतज़ामों का पूरा फायदा उठाता है। (मत्ती 24:45-47; नीतिवचन 13:20; इब्रानियों 10:23-25) और इस तरह, वो बाइबल से बाकायदा ज्ञान लेते रहता है और आध्यात्मिक तरक्की करता है।

15. बपतिस्मा लेने पर क्या-क्या होता है? (फुटनोट भी देखिए।)

15 इस तरह वह यहोवा परमेश्‍वर से प्यार करने लगता है और छुड़ौती बलिदान में विश्‍वास करता है, और खुद को परमेश्‍वर को समर्पण करना चाहता है। (यूहन्‍ना 14:1) वो प्रार्थना में खुद को समर्पित करता है और फिर इसे सब के सामने ज़ाहिर करने के लिए पानी में बपतिस्मा लेता है। उसके बपतिस्मे के समय वह परमेश्‍वर का सेवक या दीआकोनोस ठहराया जाता है। अब से वो दुनिया से कोई वास्ता नहीं रखता। (यूहन्‍ना 17:16; याकूब 4:4) वह बिना किसी शर्त के अपने ‘शरीर को जीवित, और पवित्र, और परमेश्‍वर को भावता हुआ बलिदान करके चढ़ाता’ है। (रोमियों 12:1) * वह यीशु की तरह, परमेश्‍वर का या परमेश्‍वर द्वारा ठहराया हुआ सेवक है।

मसीही सेवक कौन-सी सेवा करते हैं?

16. तीमुथियुस ने सेवक बनने पर कौन-सी सेवा की?

16 तीमुथियुस ने सेवक बनने पर कौन-सी सेवा की? वह पौलुस के साथ मिलकर अलग-अलग कलीसियाओं को भेंट देता था, तो ज़ाहिर है कि इस संबंध में उसके पास खास ज़िम्मेदारियाँ थीं। और प्राचीन बनने पर उसने दूसरे मसीहियों को सिखाने और उनके विश्‍वास को मज़बूत करने में कड़ी मेहनत की। मगर यीशु और पौलुस की तरह, उसकी सबसे बड़ी और अहम सेवा थी सुसमाचार का प्रचार करना और चेले बनाना। (मत्ती 4:23; 1 कुरिन्थियों 3:5) पौलुस ने तीमुथियुस से कहा: “तू सब बातों में सावधान रह, दुख उठा, सुसमाचार प्रचार का काम कर और अपनी सेवा को पूरा कर।” (तिरछे टाइप हमारे।)—2 तीमुथियुस 4:5.

17, 18. (क) मसीही सेवक किन-किन तरीकों से सेवा करते हैं? (ख) मसीही सेवक के लिए प्रचार का काम कितना ज़रूरी है?

17 आज भी मसीही सेवकों को इसी तरह सेवा करनी है। उन्हें सुसमाचार प्रचार करना है, नम्र लोगों को बताना है कि यीशु ही हमें अपने बलिदान के द्वारा उद्धार दे सकता है, और उन्हें यहोवा का नाम लेना सिखाना है। (प्रेरितों 2:21; 4:10-12; रोमियों 10:13) वे प्रचार करके बाइबल से यह बताते हैं कि हमारी-आपकी समस्याओं और दुःख-तकलीफों को कोई इंसान नहीं, बल्कि परमेश्‍वर का राज्य ही मिटा सकता है। वे यह भी दिखाते हैं कि अगर लोग परमेश्‍वर के उसूलों के मुताबिक चलें तो वे आज भी खुशी से जी सकते हैं। (भजन 15:1-5; मरकुस 13:10) मगर वे यह नहीं सिखाते कि बाइबल के उसूलों पर चलने से दुनिया की हर समस्या पूरी तरह मिट जाएगी। बल्कि वे ये सिखाते हैं कि ‘परमेश्‍वर की सेवा में आज के समय और आने वाले जीवन के लिये दिया गया आशीर्वाद समाया हुआ [निर्भर करता] है।’—1 तीमुथियुस 4:8, ईज़ी टू रीड वर्शन।

18 ज़्यादातर मसीही सेवक और भी अलग-अलग तरह से सेवा करते हैं। जैसे कई मसीही सेवकों पर परिवार संभालने की ज़िम्मेदारी है। (इफिसियों 5:21–6:4) कलीसिया में प्राचीनों और सहायक सेवकों को कलीसिया में कुछ ज़िम्मेदारियाँ संभालनी पड़ती हैं। (1 तीमुथियुस 3:1, 12, 13; तीतुस 1:5; इब्रानियों 13:7) कई मसीही किंगडम हॉल के निर्माण में मदद करते हैं। कुछ भाई-बहनों को अच्छा सुअवसर मिला है और वे वॉच टावर सोसाइटी के बॆथॆल में स्वयंसेवकों के तौर पर काम करते हैं। हाँ, परिस्थिति के अनुसार हरेक मसीही की अलग-अलग ज़िम्मेदारियाँ होती हैं। मगर हरेक मसीही सेवक की सबसे बड़ी ज़िम्मेदारी है सुसमाचार का प्रचार करना। यही हम सच्चे मसीही सेवकों की पहचान है।

मसीही सेवकों का रवैया

19, 20. मसीही सेवकों को कैसा नज़रिया रखना चाहिए?

19 ईसाईजगत के ज़्यादातर पादरी “रॆवरॆन्ड“ और “फादर” जैसे पदवियों को अपने नाम के साथ जोड़ते हैं ताकि उनको दूसरों से ज़्यादा इज़्ज़त और महिमा दी जाए। मगर, मसीही सेवक जानते हैं कि महिमा और श्रद्धा सिर्फ यहोवा को ही दी जानी चाहिए। (1 तीमुथियुस 2:9, 10) कोई भी मसीही सेवक ऐसा खास पद या दूसरे से बढ़कर इज़्ज़त पाने की लालसा नहीं करता। (मत्ती 23:8-12) मसीही सेवकों को याद रखना चाहिए कि बाइबल के मुताबिक दीआकोनीया का असल मतलब है “सेवा,” और इसमें कोई भी छोटा-मोटा काम करना शामिल है, जैसे खाना परोसना। (लूका 4:39; 17:8; यूहन्‍ना 2:5) हालाँकि हमारी मसीही सेवा कोई छोटा-मोटा काम नहीं है, लेकिन फिर भी हमें याद रखना चाहिए कि दीआकोनोस एक सेवक होता है।

20 इसलिए किसी भी मसीही सेवक को इस काम को एक पद नहीं समझना चाहिए और घमंड नहीं करना चाहिए। सभी सच्चे मसीही सेवक, वे भी जिनके पास कलीसिया में खास ज़िम्मेदारियाँ होती हैं, नम्र होते हैं और खुद को दास ही समझते हैं। यीशु ने कहा: “जो कोई तुम में बड़ा होना चाहे, वह तुम्हारा सेवक बने। और जो तुम में प्रधान होना चाहे, वह तुम्हारा दास बने।” (मत्ती 20:26, 27) यीशु ने अपने चेलों के पैर धोए और एक ऐसा काम किया जो सबसे छोटा दास करता है। इस तरह उसने अपने चेलों को अपने बारे में सही नज़रिया रखना सिखाया। (यूहन्‍ना 13:1-15) यीशु ने नम्रता की क्या ही बढ़िया मिसाल रखी! इसी तरह, मसीही सेवकों को भी नम्रता से यहोवा परमेश्‍वर और यीशु मसीह की सेवा करनी चाहिए। (2 कुरिन्थियों 6:4; 11:23) वे दीनता से एक-दूसरे की भी सेवा करते हैं। और प्रचार का काम करके भी वे एक तरह से दूसरों की बिना किसी स्वार्थ के सेवा करते हैं।—रोमियों 1:14, 15; इफिसियों 3:1-7.

धीरज धरते हुए सेवकाई कीजिए

21. पौलुस को सेवकाई में धीरज धरने का क्या फल मिला?

21 पौलुस ने अपनी सेवकाई में बहुत धीरज दिखाया। उसने कुलुस्से के मसीहियों से कहा कि उसने उन्हें सुसमाचार सुनाने के लिए बहुत दुःख उठाया। (कुलुस्सियों 1:24, 25) लेकिन, उसके धीरज धरने की वजह से कई लोगों ने सुसमाचार को स्वीकार किया और आगे चलकर सेवक बने। साथ ही, परमेश्‍वर ने उन्हें अपने बेटों और यीशु मसीह के भाइयों के तौर पर अपनाया, और उनको स्वर्ग में यीशु के साथ आत्मिक शरीर में रहने की आशा दी। उसे धीरज धरने का क्या ही शानदार फल मिला!

22, 23. (क) आज मसीही सेवकों को धीरज की ज़रूरत क्यों है? (ख) मसीही जब धीरज धरते हैं तो उन्हें क्या शानदार फल मिलता है?

22 आज भी परमेश्‍वर के सेवकों के लिए धीरज दिखाना बहुत ज़रूरी है। कई मसीहियों को हर रोज़ बीमारियों या बुढ़ापे की तकलीफों से जूझना पड़ता है। माता-पिता अपने बच्चों की परवरिश करने में कड़ी मेहनत करते हैं और कई मामलों में माता या पिता अकेले ही बच्चों की परवरिश करते हैं। स्कूल जानेवाले बच्चे बड़ी हिम्मत से बुरे माहौल और गलत प्रभावों का विरोध करते हैं। कई मसीही हर रोज़ पैसों की तंगी से मुकाबला करते हैं। और आज के ‘कठिन अन्तिम दिनों’ की वजह से कई मसीही सताहट का सामना करते हैं या दुःख-तकलीफ उठाते हैं! (2 तीमुथियुस 3:1) जी हाँ, आज यहोवा के लगभग साठ लाख सेवक प्रेरित पौलुस के साथ यह कह सकते हैं कि हम ‘हर बात से और बड़े धैर्य से परमेश्‍वर के सेवकों की नाईं अपने सद्‌गुणों को प्रगट करते हैं।’ (2 कुरिन्थियों 6:4) जी हाँ, मसीही सेवक कभी हार नहीं मानते। उनके धीरज के लिए सचमुच उनकी सराहना की जानी चाहिए।

23 पौलुस को धीरज धरने से जैसा बढ़िया फल मिला, उसी तरह आज हमें भी इसका फल मिलेगा। धीरज धरने के द्वारा, हम यहोवा के साथ अपने रिश्‍ते को बनाए रखते हैं और उसके दिल को खुश करते हैं। (नीतिवचन 27:11) इतना ही नहीं, हम अपने विश्‍वास को भी मज़बूत रखते हैं और चेले बनाकर अपने भाईचारे को बढ़ाते हैं। (1 तीमुथियुस 4:16) इसकी वजह से, इन अंतिम दिनों के दौरान यहोवा ने अपने सेवकों को सँभाला है और उनकी सेवकाई पर आशीष दी है। इसका नतीजा यह हुआ है कि 1,44,000 के शेष लोगों को भी इकट्ठा कर लिया गया और बाकी लाखों लोगों को इसी पृथ्वी पर हमेशा-हमेशा की ज़िंदगी जीने की पक्की आशा मिली है। (लूका 23:43; प्रकाशितवाक्य 14:1) मसीही सेवकाई के द्वारा यहोवा लोगों पर दया दिखाता है। (2 कुरिन्थियों 4:1) सो आइए, हम सब सेवकाई के इस सम्मान को संजोकर रखें और यहोवा के आभारी हों, कि इसका फल हमेशा-हमेशा के लिए टिका रहेगा।—1 यूहन्‍ना 2:17.

[फुटनोट]

^ रोमियों 12:1 की बात खासकर अभिषिक्‍त मसीहियों पर लागू होती है। मगर उसका उसूल ‘अन्य भेड़’ पर भी लागू होता है। (यूहन्‍ना 10:16) यह अन्य भेड़ “यहोवा के साथ इस इच्छा से मिले हुए हैं कि उसकी सेवा टहल करें और यहोवा के नाम से प्रीति रखें और उसके दास हो जाएं।”—यशायाह 56:6.

क्या आप समझा सकते हैं?

• पहली सदी के सभी मसीहियों पर क्या ज़िम्मेदारी थी?

• कब और कौन एक मसीही को सेवक ठहराता है?

• मसीही सेवक कौन-सा सही नज़रिया रखते हैं?

• दुःख-तकलीफों के बावजूद मसीही सेवकों को क्यों धीरज धरना चाहिए?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 16, 17 पर तसवीरें]

तीमुथियुस को बालकपन से ही परमेश्‍वर का वचन सिखाया गया था। और अपने बपतिस्मे के समय उसे एक सेवक ठहराया गया

[पेज 18 पर तसवीर]

बपतिस्मा का मतलब है खुद को परमेश्‍वर को समर्पित करना और प्रचार करने के लिए एक सेवक ठहराया जाना

[पेज 20 पर तसवीर]

मसीही सेवक दूसरों की सेवा करने के लिए हमेशा तैयार रहते हैं