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प्रेम से हिम्मत पाइए

प्रेम से हिम्मत पाइए

प्रेम से हिम्मत पाइए

“तू प्रभु अपने परमेश्‍वर से अपने सारे हृदय और अपने सारे प्राण और अपनी सारी बुद्धि से प्रेम कर।”मत्ती 22:37, NHT.

1. (क) एक मसीही को अपने अंदर कौन-कौन-से गुण पैदा करने की ज़रूरत है? (ख) मसीही गुणों में सबसे अहम गुण कौन-सा है, और क्यों?

 एक मसीही को परमेश्‍वर की सेवा में सफलता पाने के लिए बहुत से गुण पैदा करने की ज़रूरत है। उसे ज्ञान, समझ और बुद्धि हासिल करनी चाहिए जिसकी अहमियत नीतिवचन की किताब में बतायी गयी है। (नीतिवचन 2:1-10) उसका विश्‍वास अटल और आशा पक्की होनी चाहिए, जिसके बारे में प्रेरित पौलुस ने बताया था। (रोमियों 1:16, 17; कुलुस्सियों 1:5; इब्रानियों 10:39) धीरज और संयम भी बेहद ज़रूरी हैं। (प्रेरितों 24:25; इब्रानियों 10:36) लेकिन, एक और ऐसा गुण है जिसके न होने पर ये सारे गुण बेमाने हो जाते हैं, यही नहीं इनकी कोई अहमियत ही नहीं रह जाती। वह गुण है प्रेम।—1 कुरिन्थियों 13:1-3, 13.

2. यीशु ने प्रेम की अहमियत कैसे समझायी और इससे कौन-से सवाल पैदा होते हैं?

2 यीशु ने प्रेम की अहमियत को समझाते हुए कहा: “यदि आपस में प्रेम रखोगे तो इसी से सब जानेंगे, कि तुम मेरे चेले हो।” (यूहन्‍ना 13:35) जबकि प्रेम ही हमारे सच्चे मसीही भाइयों की पहचान है तो ये सवाल पूछना ज़रूरी हो जाता है कि प्रेम क्या है? यीशु ने क्यों कहा कि यही गुण उसके चेलों की पहचान है? हम अपने अंदर इस गुण को कैसे बढ़ा सकते हैं? हमें किससे प्रेम करना चाहिए? आइए इन सवालों पर चर्चा करें।

प्रेम क्या है?

3. प्रेम की परिभाषा कैसे दी गयी है और इसमें दिल और दिमाग शामिल क्यों हैं?

3 प्रेम की एक परिभाषा यूँ दी गयी है, ‘किसी के साथ लगाव या गहरा अनुराग होना, किसी को दिल से चाहना या पसंद करना प्रेम है।’ यह एक ऐसा गुण है जो लोगों को दूसरों की भलाई करने के लिए उकसाता है, चाहे इसके लिए कितने ही त्याग क्यों न करने पड़ें। बाइबल में जिस प्रेम के बारे में बताया गया है उसे दिल और दिमाग से किया जाता है। दिमाग से इसलिए क्योंकि जो व्यक्‍ति प्रेम करता है वह इस बात को अच्छी तरह समझता है कि खुद उसमें और दूसरे इंसानों में जिनसे वह प्रेम करता है, कमज़ोरियों के साथ-साथ अच्छे गुण भी हैं। एक मसीही ऐसे लोगों से भी प्रेम करने के लिए दिमाग से काम लेता है, जिनके लिए शायद वह दिल से कोई लगाव महसूस नहीं करता। वह उनसे इसलिए प्रेम करता है क्योंकि बाइबल कहती है कि परमेश्‍वर हमसे यही चाहता है। (मत्ती 5:44; 1 कुरिन्थियों 16:14) फिर भी, प्रेम की शुरुआत दिल से ही होती है। बाइबल में जिस सच्चे प्रेम के बारे में बताया गया है वह सिर्फ दिमाग से नहीं किया जाता। इस किस्म का प्रेम करनेवाले के दिल में सच्चाई होती है और वह दिलो-जान से प्रेम करता है।—1 पतरस 1:22.

4. किस तरह प्रेम का बंधन एक मज़बूत बंधन है?

4 जिन लोगों के दिल में स्वार्थ होता है, उनके लिए किसी से सच्चा प्यार करना बहुत मुश्‍किल है। क्योंकि जो शख्स सच्चा प्रेम करता है वह अपने हित की सोचने के बजाय दूसरे के हित की सोचेगा। (फिलिप्पियों 2:2-4) यीशु के ये शब्द कि “लेने से देने में अधिक सुख है,” खासकर तब सच होते हैं जब हम किसी को कुछ दें तो प्यार की भावना से दें। (प्रेरितों 20:35, ईज़ी-टू-रीड वर्शन) प्रेम का बंधन बहुत ही मज़बूत बंधन है। (कुलुस्सियों 3:14) हालाँकि, अकसर प्रेम के बंधन में दोस्ती के जज़्बे को शामिल किया जाता है लेकिन प्रेम का बंधन दोस्तों के बीच के रिश्‍ते से कहीं ज़्यादा मज़बूत होता है। पति-पत्नी के बीच की मुहब्बत काफी हद तक शारीरिक आकर्षण की वजह से होती है और इसे भी प्रेम कहा जाता है। मगर बाइबल हमें जिस प्रेम को पैदा करने की सलाह देती है वह ऐसी मुहब्बत से कहीं ज़्यादा समय तक कायम रहता है। जब पति-पत्नी एक-दूसरे से सच्चा प्यार करते हैं तो वे मरते दम तक एक-दूसरे का साथ निभाते हैं। बुढ़ापे की कमज़ोरियों या किसी एक के अपंग हो जाने की वजह से शायद जिस्मानी संबंध मुमकिन न हों, मगर उनका प्यार फिर भी कायम रहता है।

प्रेम की अहमियत

5. एक मसीही के लिए प्रेम का गुण इतनी अहमियत क्यों रखता है?

5 एक मसीही के लिए प्रेम का गुण इतनी अहमियत क्यों रखता है? इसकी पहली वजह यह है कि यीशु ने खुद अपने चेलों को एक-दूसरे से प्रेम करने की आज्ञा दी। उसने कहा: “जो कुछ मैं तुम्हें आज्ञा देता हूं, यदि उसे करो, तो तुम मेरे मित्र हो। इन बातों की आज्ञा मैं तुम्हें इसलिये देता हूं, कि तुम एक दूसरे से प्रेम रखो।” (यूहन्‍ना 15:14, 17) दूसरी वजह यह कि यहोवा खुद प्रेम का साक्षात्‌ रूप है और उसके उपासक होने के नाते हमें भी उसके जैसा होना चाहिए। (इफिसियों 5:1; 1 यूहन्‍ना 4:16) बाइबल कहती है कि यहोवा और यीशु को जानने से ही हमें अनंत जीवन मिलेगा। और अगर हम यहोवा की तरह होने की कोशिश नहीं करेंगे तो हम यह दावा कैसे कर सकते हैं कि हम उसे जानते हैं? प्रेरित यूहन्‍ना ने यह तर्क दिया: “जो प्रेम नहीं रखता, वह परमेश्‍वर को नहीं जानता, क्योंकि परमेश्‍वर प्रेम है।”—1 यूहन्‍ना 4:8.

6. प्रेम हमें ज़िंदगी के अलग-अलग पहलुओं में संतुलन बनाए रखने में कैसे मदद करता है?

6 प्रेम इतना अहम क्यों है इसकी तीसरी वजह है: यह ज़िंदगी के अलग-अलग पहलुओं के बीच संतुलन बनाए रखने और हम जो कुछ करते हैं उसे सही इरादे से करने में हमारी मदद करता है। मिसाल के तौर पर, परमेश्‍वर के वचन से ज्ञान लेते रहना ज़रूरी है। एक मसीही के लिए यह ज्ञान, भोजन की तरह है। यह उसे उन्‍नति करके सयाना और अनुभवी होने और परमेश्‍वर की इच्छा पर चलने में मदद देता है। (भजन 119:105; मत्ती 4:4; 2 तीमुथियुस 3:15, 16) मगर, पौलुस ने हमें आगाह किया: “ज्ञान घमण्ड उत्पन्‍न करता है, परन्तु प्रेम से उन्‍नति होती है।” (1 कुरिन्थियों 8:1) बेशक सही ज्ञान पाने में कोई बुराई नहीं है। लेकिन बुराई हमारे पापी स्वभाव में है। (उत्पत्ति 8:21) अगर प्रेम ना हो तो ज्ञान एक इंसान को घमंडी बना सकता है और वह खुद को दूसरों से अच्छा समझने लगता है। लेकिन अगर वह सच्चा प्यार करता है तो उसके साथ ऐसा नहीं होगा। “प्रेम अपनी बड़ाई नहीं करता, और फूलता नहीं।” (1 कुरिन्थियों 13:4) जो मसीही सच्चा प्रेम करता है वह घमंड नहीं करेगा, चाहे वह कितना ही बड़ा ज्ञानी क्यों न हो। प्रेम उसे नम्र बनाएगा और वह अपने नाम को रोशन करना नहीं चाहेगा।—भजन 138:6; याकूब 4:6.

7, 8. प्रेम हमें ज़्यादा ज़रूरी बातों पर ध्यान देने में कैसे मदद करता है?

7 पौलुस ने फिलिप्पियों को लिखा: “मैं यह प्रार्थना करता हूं, कि तुम्हारा प्रेम, ज्ञान और सब प्रकार के विवेक सहित और भी बढ़ता जाए। यहां तक कि तुम उत्तम से उत्तम बातों को प्रिय जानो।” (फिलिप्पियों 1:9,10) मसीही प्रेम हमें इस सलाह को मानने में मदद करेगा कि कैसे हम उत्तम से उत्तम बातों पर ध्यान दें। इसकी एक मिसाल के तौर पर, आइए हम पौलुस के शब्दों पर गौर करें जो उसने तीमुथियुस को लिखे थे: “जो अध्यक्ष होना चाहता है, तो वह भले काम की इच्छा करता है।” (1 तीमुथियुस 3:1) सन्‌ 2000 के सेवा साल के दौरान, सारी दुनिया में 1,502 नयी कलीसियाएँ बनीं और अब कुल मिलाकर 91,487 कलीसियाएँ हैं। इसलिए, ज़्यादा प्राचीनों की ज़रूरत और भी बढ़ गई है और जो भाई इस खास ज़िम्मेदारी को सँभालने के लायक होने की कोशिश कर रहे हैं वे सचमुच तारीफ के काबिल हैं।

8 प्राचीन की इस खास ज़िम्मेदारी के लायक होने की कोशिश करनेवाले भाई, अच्छा संतुलन तभी रख पाएँगे जब वे इस ज़िम्मेदारी के असली मकसद को समझें। सिर्फ अधिकार पाने या नाम कमाने के लिए प्राचीन बनना उत्तम बात नहीं है। अगर प्राचीन यहोवा के दिल को खुश करना चाहता है तो उसके दिल में परमेश्‍वर और अपने भाइयों के लिए सच्चा प्यार होना ज़रूरी है। वह कोई ओहदा पाने या किसी पर हक जमाने के लिए प्राचीन नहीं बनता। प्रेरित पतरस ने कलीसिया के प्राचीनों को सही रवैया बनाए रखने की सलाह दी साथ ही “दीनता” से काम करने की ज़रूरत पर ज़ोर दिया। उसने कलीसिया के सभी लोगों को सलाह दी: “परमेश्‍वर के बलवन्त हाथ के नीचे दीनता से रहो।” (1 पतरस 5:1-6) जो कोई प्राचीन बनने के लायक होने की कोशिश कर रहा है, उसे दुनिया भर में सेवा कर रहे अनगिनत प्राचीनों की मिसाल को ध्यान में रखना चाहिए। वे मेहनती हैं, नम्र हैं और इसलिए अपनी कलीसियाओं के लिए एक आशीष हैं।—इब्रानियों 13:7.

सही इरादा धीरज धरने में मदद देगा

9. यहोवा ने जिन आशीषों का वादा किया है, उन पर मसीही हमेशा ध्यान क्यों लगाए रखते हैं?

9 दिल में सच्चा प्रेम होने की अहमियत एक और तरीके से भी देखी जा सकती है। प्रेम की खातिर परमेश्‍वर की भक्‍ति करनेवालों के बारे में बाइबल वादा करती है कि न सिर्फ उन्हें अभी ढेरों आशीषें मिलेंगी बल्कि भविष्य में भी ऐसी अद्‌भुत आशीषें मिलेंगी जिनकी वे आज कल्पना भी नहीं कर सकते। (1 तीमुथियुस 4:8) जो मसीही इन वादों पर पूरा भरोसा रखता है और जिसे यह यकीन है कि यहोवा “अपने खोजनेवालों को प्रतिफल देता है,” उसे विश्‍वास में मज़बूती से टिके रहने में मदद मिलती है। (इब्रानियों 11:6) हम सब उस दिन के लिए तरस रहे हैं जब परमेश्‍वर के वादे पूरे होंगे और इसलिए हम सब प्रेरित यूहन्‍ना की तरह कहते हैं: “आमीन। हे प्रभु यीशु आ।” (प्रकाशितवाक्य 22:20) जी हाँ, वफादार रहने की वजह से हमें जो-जो आशीषें मिलनेवाली हैं, उन पर मनन करते रहने से हमें धीरज धरने की हिम्मत मिलती है। उसी तरह जैसे यीशु को धीरज धरने की हिम्मत मिली जब उसने अपने आगे रखे “उस आनन्द” पर अपना ध्यान लगाए रखा।—इब्रानियों 12:1, 2.

10, 11. प्रेम हमें धीरज धरने में कैसे मदद करता है?

10 लेकिन, अगर हम नयी दुनिया में ज़िंदगी पाने के इरादे से ही यहोवा की सेवा करते हैं तब क्या? तब हम मुसीबतें आने पर या जैसा हमने चाहा था वैसा न होने पर, आसानी से अपना धीरज खो सकते हैं और निराश हो सकते हैं। और यह भी हो सकता है कि हम धीरे-धीरे परमेश्‍वर से दूर हो जाएँ। (इब्रानियों 2:1; 3:12) पौलुस ने देमास के बारे में बताया जो पहले उसके साथ काम करता था मगर अब उसे छोड़कर चला गया था। क्यों? क्योंकि उसने ‘इस संसार को प्रिय जाना।’ (2 तीमुथियुस 4:10) जो सिर्फ अपने फायदे के लिए परमेश्‍वर की सेवा करते हैं, उनके साथ भी ऐसा हो सकता है। संसार में उन्हें जल्द-से-जल्द कुछ हासिल करने के बेहिसाब मौके मिल सकते हैं। इसलिए वे भविष्य में मिलनेवाली आशीषों की उम्मीद में अभी त्याग करने के लिए तैयार नहीं हैं।

11 हालाँकि, भविष्य में आशीषें पाने की और तकलीफों से छुटकारा पाने की उम्मीद करना स्वाभाविक है और इसमें कोई बुराई नहीं है, फिर भी प्रेम हमारे अंदर ऐसी बातों के लिए कदर बढ़ाएगा जिन्हें हमारी ज़िंदगी में पहला स्थान मिलना चाहिए। उत्तम से उत्तम बात यह होगी कि हम यहोवा की मरज़ी पूरी करें न कि अपनी। (लूका 22:41, 42) जी हाँ, प्रेम हमारी हिम्मत बढ़ाता है। इससे हमें सुकून मिलता है कि धीरज धरकर परमेश्‍वर की बाट जोहते रहें और उसने फिलहाल जो आशीषें दी हैं उन्हीं से खुश रहें। और यह यकीन रखें कि उसके ठहराए हुए समय में उसने जो कुछ देने का वादा किया है वह सब, और उससे भी कहीं ज़्यादा हमें ज़रूर मिलेगा। (भजन 145:16; 2 कुरिन्थियों 12:8, 9) तब तक, प्रेम हमें निःस्वार्थ भावना से सेवा करते रहने में मदद देता रहेगा, क्योंकि “प्रेम . . . अपनी भलाई नहीं चाहता।”—1 कुरिन्थियों 13:4, 5.

मसीहियों को किससे प्रेम करना चाहिए?

12. यीशु के मुताबिक, हमें किससे प्रेम करना चाहिए?

12 हमें किससे प्रेम करना चाहिए, इस बारे में यीशु ने मूसा की कानून-व्यवस्था में से सबके लिए एक आम नियम दिया। उसने दो आज्ञाओं का हवाला देते हुए कहा: “तू [यहोवा] अपने परमेश्‍वर से अपने सारे हृदय और अपने सारे प्राण और अपनी सारी बुद्धि से प्रेम कर।” और “तू अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम कर।”—मत्ती 22:37-39, NHT.

13. यहोवा को हम देख नहीं सकते, फिर भी हम अपने अंदर उसके लिए प्रेम कैसे पैदा कर सकते हैं?

13 यीशु के शब्दों से साफ ज़ाहिर है कि सबसे पहले हमें यहोवा से प्रेम करना है। मगर, यहोवा के लिए प्रेम, हमारे अंदर पैदाइशी नहीं होता। इस प्रेम को हमें खुद पैदा करना और बढ़ाना है। जब हमने पहली बार यहोवा के बारे में सुना था तो हम उसकी तरफ आकर्षित हुए थे। धीरे-धीरे हमने जाना कि उसने कैसे इस ज़मीन को इंसानों के लिए तैयार किया। (उत्पत्ति 2:5-23) हमने जाना कि वह इंसानों के साथ कैसा व्यवहार करता आया है। जब मानव परिवार पर पहली बार पाप का हमला हुआ तो उसने हमें बेसहारा नहीं छोड़ दिया बल्कि छुटकारा दिलाने का इंतज़ाम किया। (उत्पत्ति 3:1-5, 15) जो वफादार थे, उनके साथ वह बड़े प्यार से पेश आया और आखिरकार उसने हमारे पापों की माफी के लिए अपने एकलौते बेटे तक को भेंट चढ़ा दिया। (यूहन्‍ना 3:16,36) जैसे-जैसे हम यहोवा के बारे में जानते गए, वैसे-वैसे उसके लिए हमारी कदरदानी और भी बढ़ती गयी। (यशायाह 25:1) राजा दाऊद ने कहा कि वह यहोवा की प्यार भरी परवाह के लिए उससे प्रेम करता है। (भजन 116:1-9) आज, यहोवा हमारी परवाह करता है, हमें राह दिखाता है, हिम्मत देता है और हमारा हौसला बढ़ाता है। हम जितना ज़्यादा उसके बारे में सीखते हैं, उसके लिए हमारा प्रेम भी उतना ही गहरा होता जाता है।—भजन 31:23; सपन्याह 3:17; रोमियों 8:28.

हम अपना प्रेम कैसे ज़ाहिर कर सकते हैं?

14. किस तरीके से हम दिखाते हैं कि परमेश्‍वर के लिए हमारा प्यार सच्चा है?

14 दुनिया में ऐसे बहुतेरे लोग हैं जो परमेश्‍वर से प्रेम करने का दावा करते हैं, मगर उनके काम इस दावे को झूठा साबित करते हैं। हम सचमुच यहोवा से प्रेम करते हैं या नहीं, यह हम कैसे जान सकते हैं? प्रार्थना के ज़रिये हम उसे बता सकते हैं कि हम कैसा महसूस करते हैं। और हम ऐसे काम कर सकते हैं जिनसे परमेश्‍वर के लिए हमारा प्रेम ज़ाहिर हो। प्रेरित यूहन्‍ना ने कहा: “जो कोई [परमेश्‍वर] के वचन पर चले, उस में सचमुच परमेश्‍वर का प्रेम सिद्ध हुआ है: हमें इसी से मालूम होता है, कि हम उस में हैं।” (1 यूहन्‍ना 2:5; 5:3) परमेश्‍वर के वचन में हमें कई आज्ञाएँ दी गयी हैं। हमें सभाओं में अपने भाई-बहनों के साथ मेल-जोल रखने और साफ-सुथरी और आदर्श ज़िंदगी जीने के लिए कहा गया है। हम कपट से दूर रहते हैं, सच बोलते हैं और अपने सोच-विचार को शुद्ध रखते हैं। (2 कुरिन्थियों 7:1; इफिसियों 4:15; 1 तीमुथियुस 1:5; इब्रानियों 10:23-25) ज़रूरतमंदों की मदद करके हम प्रेम दिखाते हैं। (1 यूहन्‍ना 3:17, 18) और हम चुप बैठने के बजाय दूसरों को यहोवा और उसके राज्य के सुसमाचार के बारे में बताते हैं। और इस तरह दुनिया भर में चल रहे इस प्रचार काम में हिस्सा लेते हैं। (मत्ती 24:14; रोमियों 10:10) इन तरीकों से, परमेश्‍वर के वचन की आज्ञाओं को मानकर हम सबूत देते हैं कि यहोवा के लिए हमारा प्यार सच्चा है।

15, 16. यहोवा के लिए प्रेम ने पिछले साल कैसे कई लोगों की ज़िंदगी पर असर किया?

15 जो लोग यहोवा से प्रेम करते हैं, उन्हें सही फैसले करने में मदद मिलती है। पिछले साल, इसी प्रेम की वजह से 2,88,907 लोगों ने यहोवा को अपना जीवन समर्पित किया और इसे ज़ाहिर करने के लिए पानी में बपतिस्मा लिया। (मत्ती 28:19, 20) उनका समर्पण वाकई मायने रखता है जिसने उनकी ज़िंदगी को ही बदलकर रख दिया। मिसाल के तौर पर गाज़मंद को लीजिए। वह अल्बेनिया के बढ़िया बॉस्केटबॉल खिलाड़ियों में से एक था। कुछ साल तक, उसने और उसकी पत्नी ने बाइबल का अध्ययन किया और काफी अड़चनों का सामना करते हुए आखिरकार वे राज्य का सुसमाचार सुनानेवाले प्रचारक बन गए। पिछले साल यानी सन्‌ 2000 के सेवा साल के दौरान अल्बेनिया में 366 बपतिस्मा लेनेवालों में से गाज़मंद भी एक था। एक अखबार ने उसके बारे में लिखा: “उसकी ज़िंदगी में अब एक मकसद है और इसलिए वह अपने परिवार के साथ ज़िंदगी के सबसे खुशनुमा दौर का मज़ा ले रहा है। अब उसके लिए यह बात मायने नहीं रखती कि वह कैसे ज़िंदगी में ज़्यादा-से-ज़्यादा फायदा पा सकता है बल्कि यह कि दूसरों की मदद करने के लिए वह क्या कर सकता है।”

16 ऐसा ही कुछ हमारी एक नयी बहन के साथ हुआ। वह ग्वाम में एक पेट्रोलियम कंपनी में नौकरी कर रही थी और उसके सामने एक बहुत ही लुभावनी पेशकश रखी गयी। कई सालों तक तरक्की करने के बाद, उसे कंपनी की पहली महिला वाइस-प्रेज़िडेंट बनने का मौका दिया गया। लेकिन, अब वह अपना जीवन यहोवा को समर्पित कर चुकी थी और बपतिस्मा ले चुकी थी। इस मामले पर अपने पति से बात करने के बाद, इस बहन ने वह पेशकश ठुकरा दी और उसकी जगह पार्ट-टाइम काम करने का फैसला किया। वह पूरे समय की सेवक यानी पायनियर बनने के लिए आध्यात्मिक तौर पर तरक्की करना चाहती थी। यहोवा के लिए प्रेम ने उसे, इस दुनिया में धन-दौलत कमाने की नहीं, बल्कि पायनियर बनकर उसकी सेवा करने की प्रेरणा दी। दरअसल, इस प्रेम से प्रेरित होकर ही सारी दुनिया में 8,05,205 लोगों ने सन्‌ 2000 के सेवा साल के दौरान पायनियर सेवा के अलग-अलग पहलुओं में हिस्सा लिया। इन पायनियरों ने अपने प्रेम और विश्‍वास को क्या ही बढ़िया तरीके से ज़ाहिर किया!

यीशु से प्रेम करने को प्रेरित

17. प्रेम दिखाने में यीशु ने एक बढ़िया मिसाल कैसे रखी?

17 प्रेम की वजह से सेवा करने की यीशु ने सबसे बढ़िया मिसाल रखी। इंसान बनने से पहले, जब वह स्वर्ग में था तो वह अपने पिता से और इंसानों से बेहद प्यार करता था। बुद्धि के साक्षात्‌ रूप में उसने कहा: ‘तब मैं कारीगर सा यहोवा के पास था; और प्रति दिन मैं उसकी प्रसन्‍नता था, और हर समय उसके साम्हने आनन्दित रहता था। मैं उसकी बसाई हुई पृथ्वी से प्रसन्‍न था और मेरा सुख मनुष्यों की संगति से होता था।’ (नीतिवचन 8:30, 31) प्रेम ने यीशु को इस हद तक उकसाया कि वह स्वर्ग में अपने स्थान को छोड़कर इस पृथ्वी पर एक असहाय शिशु की तरह जन्म लेने को तैयार हो गया। उसने दीन-हीन लोगों के साथ बड़े धैर्य और दया से व्यवहार किया। और यहोवा के दुश्‍मनों के हाथों सताया गया। आखिरकार, उसने यातना स्तंभ पर सब इंसानों के लिए अपनी जान कुर्बान की। (यूहन्‍ना 3:35; 14:30, 31; 15:12, 13; फिलिप्पियों 2:5-11) सही इरादे से काम करने की उसने क्या ही बढ़िया मिसाल रखी!

18. (क) हम यीशु के लिए प्रेम कैसे पैदा कर सकते हैं? (ख) हम किस तरीके से यीशु के लिए अपना प्रेम ज़ाहिर करते हैं?

18 अच्छे दिल के लोग जब सुसमाचार की किताबों में यीशु की ज़िंदगी के बारे में पढ़ते हैं और इस बात पर मनन करते हैं कि कैसे यीशु की वफादारी से उन्हें ढेरों आशीषें मिली हैं, तो उनके दिल में यीशु के लिए प्यार उमड़ आता है। आज हम सभी उन लोगों की तरह हैं जिन्हें पतरस ने कहा था: “तुमने तो [यीशु को] नहीं देखा, तौभी तुम उस से प्रेम करते हो।” (1 पतरस 1:8) हमारा प्रेम तब ज़ाहिर होता है जब हम उस पर विश्‍वास रखते हैं और जैसे उसने त्याग की ज़िंदगी बितायी वैसी ही हम भी बिताते हैं। (1 कुरिन्थियों 11:1; 1 थिस्सलुनीकियों 1:6; 1 पतरस 2:21-25) अप्रैल 19, 2000 को यीशु की मौत के सालाना स्मारक में हमें याद दिलाया गया कि हम यीशु से किन वजहों से प्रेम करते हैं। इस स्मारक समारोह में कुल 1,48,72,086 लोग हाज़िर हुए। और यह जानकर कितना हौसला मिलता है कि इतनी बड़ी संख्या में लोग यीशु के बलिदान के आधार पर उद्धार पाने में दिलचस्पी रखते हैं! वाकई, यहोवा और यीशु ने हमारे लिए प्रेम दिखाया और बदले में हमारे दिल में उनके लिए प्यार पैदा हुआ इससे हमें कितनी हिम्मत मिलती है।

19. अगले लेख में प्रेम के बारे में किन सवालों पर चर्चा की जाएगी?

19 यीशु ने कहा कि हमें यहोवा को अपने पूरे दिल, प्राण, मन और शक्‍ति से प्रेम करना चाहिए। लेकिन उसने यह भी कहा कि हमें अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम करना चाहिए। (मरकुस 12:29-31) हमारा पड़ोसी कौन है? और पड़ोसी के लिए प्रेम हमें कैसे अच्छा संतुलन और सही इरादा रखने में मदद करता है? इन सवालों पर चर्चा अगले लेख में की जाएगी।

क्या आपको याद है?

• प्रेम का गुण इतनी अहमियत क्यों रखता है?

• हम अपने अंदर यहोवा के लिए प्रेम कैसे पैदा कर सकते हैं?

• हम अपने व्यवहार से कैसे दिखाते हैं कि हम यहोवा से प्रेम करते हैं?

• हम यीशु के लिए अपने प्रेम को कैसे ज़ाहिर करते हैं?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 10, 11 पर तसवीरें]

तकलीफों से छुटकारा पाने का इंतज़ार करते वक्‍त, धीरज धरने में प्रेम हमारी मदद करता है

[पेज 12 पर तसवीर]

यीशु का महान बलिदान देखकर, हमारे अंदर उसके लिए प्रेम उमड़ आता है