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युद्धों से मिले ज़ख्मों को भरना

युद्धों से मिले ज़ख्मों को भरना

युद्धों से मिले ज़ख्मों को भरना

एब्राहम 20 साल तक गुरिल्ला सेना में था। * मगर अब वह सेना छोड़ चुका है। अब वह कभी लड़ाई नहीं करेगा। इतना ही नहीं, पहले जो उसके कट्टर दुश्‍मन थे वे अब उसके पक्के दोस्त बन गए हैं! एब्राहम में ऐसा बदलाव लाने में किसका हाथ था? बाइबल का। बाइबल से उसे ऐसी आशा और समझ मिली कि उसकी आँखें खुल गईं। एब्राहम साफ-साफ देख सका कि परमेश्‍वर दुनिया के मामलों को किस नज़र से देखता है। बाइबल की ताकत ने उसके दिलो-दिमाग से लड़ने की इच्छा ही निकाल दी। धीरे-धीरे उसके गम, दुःख-दर्द, नफरत और कड़वाहट के ज़ख्म भर गए। एब्राहम ने जाना कि बाइबल एक ऐसी असरदार दवा है जो दिल पर लगे हर ज़ख्म को धीरे-धीरे भर देती है।

बाइबल किस तरह एक इंसान के दिलो-दिमाग पर लगे गहरे ज़ख्मों को भरने में मदद करती है? एब्राहम की ज़िंदगी में जो कुछ हो चुका था उसको तो बाइबल नहीं बदल सकी। मगर बाइबल पढ़ने और उस पर मनन करने से, अब वह दुनिया के मामलों को उस नज़र से देखने लगा है जिस नज़र से परमेश्‍वर देखता है। भविष्य के लिए अब उसके पास एक आशा है। अब उसकी ज़िंदगी का मकसद कुछ और है। जिन बातों को परमेश्‍वर महत्व देता है उन बातों को अब वह भी अहमियत देने लगा है। जैसे-जैसे एब्राहम में बदलाव आने लगे वैसे-वैसे उसके ज़ख्म भी भरने लगे। इस तरह बाइबल ने एब्राहम को बदलने में मदद की।

गृह-युद्ध की मार-काट में उलझना

एब्राहम का जन्म 1935 के आस-पास अफ्रीका में हुआ था। दूसरे विश्‍वयुद्ध के बाद, एक ताकतवर पड़ोसी देश ने उसके देश पर कब्ज़ा कर लिया था। मगर एब्राहम के ज़्यादातर देशवासी आज़ादी चाहते थे। 1961 में एब्राहम आज़ादी आंदोलन में शामिल हो गया और ताकतवर पड़ोसी देश के विरुद्ध गुरिल्ला युद्ध लड़ने लगा।

एब्राहम ने कहा, “वे हमारे दुश्‍मन थे, वे हमें खत्म करना चाहते थे। इससे पहले कि वे हमें मिटाते, हम उन्हें मिट्टी में मिलाने के लिए निकल पड़े।”

अकसर, एब्राहम के सिर पर मौत का साया मँडराता रहता था। इसलिए 20 साल तक युद्ध लड़ने के बाद 1982 में वह यूरोप भाग गया। अब उसकी उम्र 45 साल से ज़्यादा हो चुकी थी। खाली वक्‍त में उसने अपनी ज़िंदगी के बारे में सोचा। ‘मेरे सपनों का क्या हुआ? मेरा आनेवाला कल कैसा होगा?’ एक दिन एब्राहम यहोवा के साक्षियों से मिला और फिर उनकी मीटिंगों में जाने लगा। उसे कुछ साल पहले की बात याद आई कि उसने एक ट्रैक्ट पढ़ा था जो अफ्रीका में एक साक्षी ने दिया था। उस ट्रैक्ट में बताया गया था कि कैसे इस पृथ्वी को एक सुंदर बगीचा बनाया जाएगा और एक स्वर्गीय सरकार पूरी मानवजाति पर राज्य करेगी। क्या ऐसा सचमुच होगा?

एब्राहम कहता है: “बाइबल पढ़ने के बाद मुझे एहसास हुआ कि लड़ते-लड़ते मैंने कितने साल यूँ ही बरबाद कर दिए। मैंने जाना कि बस एक ही सरकार है जो सब इंसानों को न्याय दिला सकती है, और वह सरकार परमेश्‍वर का राज्य है।”

बपतिस्मा लेकर एब्राहम यहोवा का एक साक्षी बन गया। उसके कुछ ही समय बाद रॉबर्ट नाम का एक और आदमी अफ्रीका से भागकर यूरोप के उस शहर में आ पहुँचा जहाँ एब्राहम रहता था। एब्राहम और रॉबर्ट एक ही युद्ध में लड़े थे, मगर एक-दूसरे के खिलाफ क्योंकि उन दोनों के देशों के बीच युद्ध हो रहा था। रॉबर्ट अकसर सोचा करता था कि ज़िंदगी का असली मकसद क्या है। वह धार्मिक किस्म का इंसान था और बाइबल के कुछ भाग पढ़ने की वजह से यह जानता था कि परमेश्‍वर का नाम यहोवा है। इसलिए जब रॉबर्ट से एब्राहम की कलीसिया के साक्षियों ने बाइबल स्टडी करने के लिए पूछा तो वह फौरन तैयार हो गया।

रॉबर्ट कहता है: “मुझे साक्षियों के बारे में एक बात शुरू से ही बहुत अच्छी लगी कि वे यहोवा और यीशु, दोनों के नाम इस्तेमाल करते हैं और हमेशा यह सिखाते हैं कि वे दोनों अलग व्यक्‍ति हैं। यह बात एकदम सही थी क्योंकि बाइबल पढ़ने की वजह से यह बात मैं पहले से ही जानता था। इसके अलावा साक्षियों का पहनावा भी बड़ा साफ-सुथरा होता है, और वे हमेशा दूसरों के साथ बड़ी इज़्ज़त से पेश आते हैं, चाहे वह व्यक्‍ति किसी भी देश का क्यों न हो। इन सब बातों का मुझ पर बहुत गहरा असर हुआ।”

दुश्‍मन बन गए दोस्त

एब्राहम और रॉबर्ट जो पहले एक-दूसरे के दुश्‍मन थे अब बहुत ही पक्के दोस्त बन गए हैं। ये दोनों यहोवा के साक्षियों की एक ही कलीसिया में हैं, और दोनों पूरे समय के प्रचारक हैं। एब्राहम ने कहा, “युद्ध के दौरान मैं अकसर सोच में पड़ जाता था कि एक ही धर्म के होने के बावजूद कैसे दो पड़ोसी देशों के लोग एक-दूसरे से नफरत कर सकते हैं। पहले, मैं और रॉबर्ट एक ही चर्च के सदस्य थे फिर भी हम एक-दूसरे के खिलाफ लड़ते थे। मगर अब हम दोनों यहोवा के साक्षी हैं, और हमारे विश्‍वास की वजह से हममें एकता है।”

रॉबर्ट कहता है, “यही तो फर्क है। हम अब एक ऐसे धर्म में हैं जिसमें सच्चा भाईचारा है। अब हम कभी युद्ध में हिस्सा नहीं लेंगे।” बाइबल ने इन दो दुश्‍मनों के दिलों पर गहरा असर डाला है। अब उनके दिलों में नफरत और कड़वाहट की जगह दोस्ती और एक-दूसरे पर भरोसा करने की भावना पैदा हो गयी है।

जब एब्राहम और रॉबर्ट दो अलग-अलग देशों के लिए लड़ रहे थे, उसी वक्‍त दो और नौजवान दो पड़ोसी देशों के बीच चल रहे युद्ध में एक-दूसरे के खिलाफ लड़ रहे थे। उनके दिलों के ज़ख्मों को भरने के लिए भी बाइबल बेहद असरदार दवा साबित हुई। वह कैसे?

मारो और शहीद हो जाओ

गेब्रिएल की परवरिश एक धार्मिक परिवार में हुई थी। उसे बचपन से यही सिखाया गया था कि उसका देश जो युद्ध लड़ रहा है वह पवित्र है। इसलिए 19 साल की उम्र में वह अपनी मरज़ी से सेना में भर्ती हो गया और उसने जंग के दौरान वहाँ जाने की माँग की जहाँ भीषण लड़ाई छिड़ी हुई थी। तेरह महीने तक वह घमासान युद्ध लड़ता रहा, कभी-कभी वह दुश्‍मन के इतने करीब होता कि सिर्फ डेढ़ किलोमीटर का फासला रह जाता। उसने बताया, “मुझे खासकर एक दिन के बारे में याद है जब हमारे कमांडर ने कहा था कि आज रात दुश्‍मन हम पर हमला करनेवाला है। यह सुनकर हम इतने जोश में आ गए कि हम पूरी रात बिना-बात मॉर्टर तोप दागते रहे।” गेब्रिएल पड़ोसी देश के लोगों को अपना दुश्‍मन मानता था, जो सिर्फ मरने के लायक थे। “मेरे दिमाग में सिर्फ एक ही बात रहती थी कि ज़्यादा-से-ज़्यादा दुश्‍मनों को मौत के घाट उतार दूँ। और फिर खुद शहीद की मौत मर जाऊँ, ऐसी ही इच्छा मेरे बहुत सारे दोस्तों की भी थी।”

लेकिन, कुछ समय बाद गेब्रिएल को महसूस होने लगा कि युद्ध करने का कोई फायदा नहीं है। वह पहाड़ों की ओर भाग गया, और चोरी-छिपे अपने देश की सरहद पार करके एक ऐसे देश में घुस गया जो युद्ध में शामिल नहीं था और वहाँ से वह यूरोप के लिए चल दिया। वह परमेश्‍वर से पूछता रहा कि ज़िंदगी इतनी समस्याओं से क्यों भरी हुई है? क्या ये समस्याएँ उसकी तरफ से किसी किस्म की सज़ा हैं? फिर उसकी मुलाकात यहोवा के साक्षियों से हुई और उन्होंने उसे बाइबल से दिखाया कि आज ज़िंदगी में इतनी समस्याएँ क्यों हैं।—मत्ती 24:3-14; 2 तीमुथियुस 3:1-5.

गेब्रिएल, बाइबल से जितना ज़्यादा सीखता गया, उतना ही ज़्यादा उसे इस बात का एहसास होता गया कि इसमें सच्चाई है। “मैंने सीखा कि जब पृथ्वी को एक सुंदर बगीचे में बदल दिया जाएगा तो हम वहाँ हमेशा के लिए जी सकेंगे। और अजीब बात तो यह है कि बचपन से ही मेरी यही ख्वाहिश रही है।” बाइबल से गेब्रिएल को शांति मिली और उसके दिल की बेचैनी दूर हो गई। उसके दिलो-दिमाग पर लगे गहरे ज़ख्म भरने लगे। इसलिए जब उसकी मुलाकात अपने पुराने दुश्‍मन डैनियल से हुई, तब गेब्रिएल के दिल से दुश्‍मनी की भावना मिट चुकी थी। मगर अब सवाल उठता है कि डैनियल यूरोप कैसे पहुँचा?

‘अगर तू सचमुच है, तो तरस खाकर मेरी मदद कर!’

डैनियल एक कैथोलिक था और 18 साल की उम्र में फौज में भर्ती हो गया था। डैनियल को उसी युद्ध में लड़ने भेजा गया था जिसमें गेब्रिएल लड़ रहा था, मगर दोनों अलग-अलग देशों के लिए लड़ रहे थे। जंग के मैदान में डैनियल जिस टैंक को चला रहा था उसे बम से उड़ा दिया गया। उसके साथी मारे गए, वह बुरी तरह घायल हो गया और उसे बंदी बना लिया गया। उसे कई महीनों तक अस्पताल और एक कैम्प में रखा गया। उसके बाद उसे एक ऐसे देश में भेज दिया गया जो युद्ध में शामिल नहीं था। वहाँ उसने बहुत अकेलापन महसूस किया, उसका सब कुछ खतम हो गया था, ऐसे में आत्म-हत्या करने के अलावा उसे और कोई रास्ता नज़र नहीं आ रहा था। डैनियल ने परमेश्‍वर से प्रार्थना की: “अगर तू सचमुच है, तो मुझ पर तरस खाकर मेरी मदद कर!” अगले ही दिन यहोवा के साक्षी उसके पास आए और उन्होंने उसके ढेर सारे सवालों के जवाब दिए। आखिर में, उसने यूरोप जाकर पनाह ली। वहाँ डैनियल ने साक्षियों से मिलना-जुलना शुरू किया और बाइबल का अध्ययन किया। बाइबल से उसने जो कुछ सीखा, उससे उसकी चिंताएँ खत्म हो गयीं और कड़वाहट भी नहीं रही।

गेब्रिएल और डैनियल अब पक्के दोस्त बन गए हैं। वे बपतिस्मा लेकर यहोवा के साक्षियों के आध्यात्मिक भाईचारे में एक हो गए हैं। गेब्रिएल कहता है, “यहोवा के लिए प्रेम ने और बाइबल के ज्ञान ने मुझे हर बात को परमेश्‍वर की नज़र से देखने में मदद की है। अब डैनियल मेरा दुश्‍मन नहीं दोस्त है। कई साल पहले लड़ाई में अगर मैं उसे मार भी डालता तो मुझे कोई अफसोस न होता। मगर अब बाइबल से मैंने इसके बिलकुल उलटा सीखा है, आज डैनियल के लिए मैं अपनी जान तक देने के लिए तैयार हूँ।”

डैनियल कहता है, “मैंने एक धर्म के लोगों को दूसरे धर्म के लोगों का और एक जाति के लोगों को दूसरी जाति के लोगों का कत्ल करते देखा है। मैंने अपनी आँखों से एक ही धर्म के लोगों को एक-दूसरे की हत्या करते देखा है, क्योंकि उनके देश अलग-अलग हैं। यह सब देखकर मुझे लगा था कि इसका ज़िम्मेदार परमेश्‍वर ही है। लेकिन अब मैं जान गया हूँ कि इन सब युद्धों के पीछे शैतान का हाथ है। मैं और गेब्रिएल अब एक ही परमेश्‍वर की सेवा करते हैं। हम अब कभी युद्ध नहीं लड़ेंगे!”

‘परमेश्‍वर का वचन जीवित, और प्रबल है’

एब्राहम, रॉबर्ट, गेब्रिएल और डैनियल में इतनी बड़ी तबदीली कैसे आयी? वे अपने दिल से नफरत और दर्द को कैसे मिटा सके?

इनमें से हरेक ने बाइबल पढ़ी, उस पर मनन किया, और इससे सच्चाई सीखी, क्योंकि परमेश्‍वर का यह वचन “जीवित, और प्रबल” है। (इब्रानियों 4:12) बाइबल का लेखक हम इंसानों को बनानेवाला परमेश्‍वर है। और वह अच्छी तरह जानता है कि जो व्यक्‍ति उसकी शिक्षाओं को सुनने और सीखने के लिए तैयार है उसे सच्चाई के मार्ग पर कैसे लाया जा सकता है। “हर एक पवित्रशास्त्र परमेश्‍वर की प्रेरणा से रचा गया है और उपदेश, और समझाने, और सुधारने, और धर्म की शिक्षा के लिये लाभदायक है।” जब एक इंसान बाइबल पढ़कर उस पर अमल करने लगता है तो वह नए आदर्शों और सिद्धांतों को अपनाता है। वह यह सीखने लगता है कि हर चीज़ को यहोवा किस नज़र से देखता है। ऐसा करने से बहुत फायदे होते हैं, यहाँ तक कि युद्धों से मिले गहरे ज़ख्म भी भर जाते हैं।—2 तीमुथियुस 3:16.

परमेश्‍वर का वचन, बाइबल सिखाती है कि किसी भी देश, जाति या कबीले के लोग, दूसरे लोगों से न तो बेहतर हैं न ही बुरे। “परमेश्‍वर किसी का पक्ष नहीं करता, बरन हर जाति में जो उस से डरता और धर्म के काम करता है, वह उसे भाता है।” बाइबल पढ़नेवाला जो व्यक्‍ति इस सच्चाई को स्वीकार करता है, उसे धीरे-धीरे अपने दिल से दूसरे देश या जाति के लोगों के लिए नफरत की भावनाएँ खत्म करने में मदद मिलती है।—प्रेरितों 10:34, 35.

बाइबल की भविष्यवाणियाँ बताती हैं कि बहुत जल्द परमेश्‍वर इस दुनिया की इंसानी सरकारों को हटा देगा और इनकी जगह मसीहाई राज्य राज करेगा। उसी राज्य के द्वारा परमेश्‍वर “पृथ्वी की छोर तक लड़ाइयों” को मिटा देगा। और जो-जो संस्थाएँ युद्धों को बढ़ावा देती हैं या लोगों को युद्ध करने के लिए उकसाती हैं, उन सबको भी मिट्टी में मिला दिया जाएगा। युद्धों में मारे गए लोगों को दोबारा ज़िंदा किया जाएगा और उन्हें एक सुंदर बगीचे जैसी पृथ्वी पर जीने का मौका दिया जाएगा। उस वक्‍त किसी को हमलावरों या ज़ुल्म ढानेवालों से भागने की ज़रूरत नहीं होगी।—भजन 46:9; दानिय्येल 2:44; प्रेरितों 24:15.

उस समय लोगों का जीवन कैसा होगा, इसके बारे में बाइबल कहती है, “वे घर बनाकर उन में बसेंगे; वे दाख की बारियां लगाकर उनका फल खाएंगे। ऐसा नहीं होगा कि वे बनाएं और दूसरा बसे . . . उनका परिश्रम व्यर्थ न होगा, न उनके बालक घबराहट के लिये उत्पन्‍न होंगे।” हर एक नुकसान या ज़ख्म को ठीक कर दिया जाएगा। ऐसी आशा पर विश्‍वास करने से, धीरे-धीरे एक इंसान के दिल से दुःख-दर्द और पीड़ा खत्म हो जाती है।—यशायाह 65:21-23.

हमारे दिलों के लिए बाइबल वाकई एक असरदार दवा है। इसकी शिक्षाएँ आज भी युद्धों से मिले ज़ख्मों को भर रही हैं। जो लोग पहले एक-दूसरे के जानी दुश्‍मन थे, अब वे सारी दुनिया में फैले भाईचारे का भाग बन रहे हैं। इस तरह ज़ख्मों पर मरहम लगाना परमेश्‍वर की नई दुनिया में भी चलता रहेगा जब तक कि पूरी मानवजाति के दिलों से नफरत और कड़वाहट और दुःख-दर्द खतम नहीं हो जाता। इस दुनिया को बनानेवाला हमसे वादा करता है: “पहिली बातें स्मरण न रहेंगी और सोच विचार में भी न आएंगी।”—यशायाह 65:17.

[फुटनोट]

^ इस लेख में कुछ नाम बदल दिए गए हैं।

[पेज 4 पर बड़े अक्षरों में लेख की खास बात]

“बाइबल पढ़ने के बाद मुझे एहसास हुआ कि लड़ते-लड़ते मैंने कितने साल यूँ ही बरबाद कर दिए”

[पेज 5 पर बड़े अक्षरों में लेख की खास बात]

एक-दूसरे के दुश्‍मन बने लोगों के दिलों पर भी बाइबल गहरा असर कर सकती है

[पेज 6 पर बड़े अक्षरों में लेख की खास बात]

नफरत और कड़वाहट की जगह दोस्ती और भरोसा करने की भावना पैदा हो गयी है

[पेज 6 पर बड़े अक्षरों में लेख की खास बात]

जब एक इंसान बाइबल पढ़कर उस पर अमल करने लगता है तो वह नए आदर्शों और सिद्धांतों को अपनाता है

[पेज 7 पर तसवीर]

एक-दूसरे के जानी दुश्‍मन, अब दुनियाभर में फैले भाईचारे का भाग बन रहे हैं

[पेज 4 पर चित्र का श्रेय]

रेफ्यूजी कैम्प: UN PHOTO 186811/J. Isaac