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परमेश्‍वर के वचन पर चलनेवाले खुश रहते हैं

परमेश्‍वर के वचन पर चलनेवाले खुश रहते हैं

परमेश्‍वर के वचन पर चलनेवाले खुश रहते हैं

“हम जानते हैं कि यह अधिवेशन यहोवा का एक ऐसा इंतज़ाम है जिससे वह हमें प्रचार के काम में आगे बढ़ने के लिए तैयार कर रहा है।” यह बात “परमेश्‍वर के वचन पर चलनेवाले,” यहोवा के साक्षियों के ज़िला अधिवेशन में, शुरू के एक भाषण में वक्‍ता ने कही। उसने आगे कहा: “एक सुखी परिवार बनाने, यहोवा के संगठन के नज़दीक रहने, प्रचार के काम में अपना जोश कायम रखने और जागते रहने की हिदायतें सुनने के लिए हम तैयार हैं।”

मई 2000 के अंत से, परमेश्‍वर के वचन पर चलनेवाले लाखों लोग और उनके दोस्त बाइबल का खास ज्ञान हासिल करने के लिए दुनिया की अलग-अलग जगहों पर इकट्ठा होने लगे। अधिवेशन के तीन दिनों के दौरान उन्होंने क्या-क्या सीखा?

पहला दिन—यहोवा के किसी उपकार को न भूलना

सबसे पहले भाषण में अधिवेशन के सभापति ने श्रोताओं का स्वागत किया और कहा कि अधिवेशनों में भाई-बहनों के साथ एक जुट होकर यहोवा की उपासना करने से जो आशीषें मिलती हैं, उनका वे आनंद लें। हाज़िर सभी लोगों को यह यकीन दिलाया गया कि इस अधिवेशन से उनका विश्‍वास और भी बढ़ेगा और यहोवा के साथ उनका रिश्‍ता मज़बूत होगा।

यहोवा “आनंद का परमेश्‍वर” है और वह जानता है कि खुश रहने के लिए हम में से हरेक को क्या करना ज़रूरी है। (1 तीमुथियुस 1:11, NW) इसलिए भाषण, “परमेश्‍वर की इच्छा पूरी करने से खुशी मिलती है” में इस बात पर ज़ोर दिया गया कि यहोवा के वचन, बाइबल में बताया गया मार्ग ही जीने का सबसे उत्तम मार्ग है। (यूहन्‍ना 13:17) भाषण में, लंबे अरसे से सेवा कर रहे यहोवा के साक्षियों का इंटरव्यू लिया गया जिससे यह साबित हुआ कि किस तरह अलग-अलग परिस्थितियों में भी परमेश्‍वर की इच्छा पर चलने से हमारी ज़िंदगी को मकसद मिलता है। अगले भाषण, “यहोवा की भलाई आपके मुख पर रौनक लाए” में यह ज़ोर देकर बताया गया कि मसीही “परमेश्‍वर के सदृश्‍य” होकर अपनी ज़िंदगी में “सब प्रकार की भलाई” के काम करना चाहते हैं। (इफिसियों 5:1, 9) ऐसी भलाई करने का एक खास तरीका है, सुसमाचार का प्रचार करना और शिष्य बनाना।—भजन 145:7.

“अनदेखे को मानो देखते हुए दृढ़ रहिए” इस भाषण से हमें यह मालूम पड़ा कि अगर हमारा विश्‍वास मज़बूत हो तो हम किस तरह अनदेखे परमेश्‍वर को भी “देख” सकते हैं। भाषण में भाई ने समझाया कि किस तरह आध्यात्मिक बातों पर मन लगानेवाले लोग, परमेश्‍वर के गुणों से वाकिफ होते हैं और जानते हैं कि हम जो कुछ सोचते हैं परमेश्‍वर के पास उसे भी जानने की काबिलीयत है। (नीतिवचन 5:21) जिन लोगों का इंटरव्यू लिया गया, उन्होंने बताया कि अपने विश्‍वास को मज़बूत करने और जीवन में आध्यात्मिक बातों को पहला स्थान देने के लिए उन्होंने कौन-कौन-से कदम उठाए हैं।

सुबह का सेशन एक मूल-विचार भाषण से समाप्त हुआ जिसका शीर्षक था: “आश्‍चर्यकर्म करनेवाले परमेश्‍वर—यहोवा की स्तुति करो।” इस भाषण से श्रोताओं को यह समझने में मदद मिली कि हम यहोवा के बारे में जितना ज़्यादा सीखते हैं, उतना ज़्यादा हम उसकी स्तुति करते हैं कि वह सचमुच कितने आश्‍चर्यकर्म करनेवाला परमेश्‍वर है। ‘जब हम परमेश्‍वर की सृष्टि के अद्‌भुत कामों पर और साथ ही उन उत्तम कार्यों पर ध्यान देते हैं जो आज वह हमारे लिए कर रहा है, तो हमारा दिल उसे धन्यवाद करने के लिए प्रेरित होता है। जब हम सोचते हैं कि कैसे परमेश्‍वर ने प्राचीनकाल में अपने लोगों की खातिर बड़े-बड़े चमत्कार किए थे तो हमारा दिल उसकी प्रशंसा से भर जाता है। और जो आशीषें यहोवा आनेवाली नयी दुनिया में हमें देने का वादा करता है, जब हम उसके बारे में सोचते हैं तो उसका धन्यवाद करने के लिए तो हमारे पास शब्द ही नहीं रहते।’

दोपहर के सेशन का पहला भाषण था, “भले काम करने में हियाव न छोड़ें।” इसमें सभी को याद दिलाया गया कि आज दुनिया से आनेवाले दबावों से यही साबित होता है कि अंत नज़दीक आ गया है। (2 तीमुथियुस 3:1) अगर हम हियाव न छोड़ें तो हम साबित करेंगे कि हम “विश्‍वास करनेवाले हैं, कि प्राणों को बचाएं।”—इब्रानियों 10:39.

अधिवेशन में परिवारों के लिए बाइबल से कौन-सी सलाह दी गई? अधिवेशन की पहली परिचर्चा थी, “परमेश्‍वर के वचन पर चलिए।” इसके पहले भाग में इस विषय पर चर्चा की गई—“सही जीवन-साथी चुनकर।” जीवन-साथी को चुनना एक बहुत ही गंभीर फैसला है। इसलिए मसीहियों को शादी के लिए तब तक इंतज़ार करना चाहिए जब तक कि वे सयाने और समझदार नहीं बन जाते और उन्हें यह भी ध्यान रखना चाहिए वे “केवल प्रभु में” ही शादी करें। (1 कुरिन्थियों 7:39) यहोवा चाहता है कि हर परिवार आध्यात्मिक रूप से मज़बूत होकर सुखी जीवन जीए। परिचर्चा के अगले भाग में इसी विषय पर चर्चा की गई। और ऐसा करने के कुछ कारगर तरीके बताए गए। परिचर्चा के आखिरी हिस्से में माता-पिताओं को याद दिलाया गया कि बच्चों के दिल में परमेश्‍वर के लिए प्रेम बिठाने के लिए पहले यह ज़रूरी है कि खुद माता-पिता के दिल में परमेश्‍वर के लिए प्रेम हो।

“अफवाहों, गपशप और कानाफूसी से सावधान रहिए” भाषण में सभी को यह समझने में मदद दी गई कि हालाँकि आज दुनिया में बहुत-सी सनसनीखेज़ बातें हो रही हैं, मगर हमें हर बात को आँख मूँदकर सच नहीं मान लेना चाहिए, बल्कि हमें अकलमंदी से काम लेना चाहिए। मसीहियों के लिए बेहतर यही होगा कि वे राज्य का सुसमाचार लोगों को बताएँ क्योंकि उन्हें यकीन है कि ये बातें पूरी तरह सच हैं। “‘शरीर के कांटे’ का सामना करना,” इस भाषण से कई लोगों को तसल्ली मिली और उनका हौसला बढ़ा। उन्हें यह जानने में मदद मिली कि भले ही ज़िंदगी में कुछ समस्याएँ हमारा पीछा न छोड़ें, लेकिन यहोवा अपनी पवित्र आत्मा, अपने वचन और मसीही भाई-बहनों के ज़रिए हमें सहने की ताकत दे सकता है। इस मामले में प्रेरित पौलुस का उदाहरण बताकर काफी हौसला दिया गया था।—2 कुरिन्थियों 12:7-10; फिलिप्पियों 4:11, 13.

“यहोवा के संगठन के साथ कदम से कदम मिलाते हुए चलना,” यह पहले दिन का आखिरी भाषण था। इसमें ऐसे तीन विषयों पर ध्यान दिलाया गया जिनमें परमेश्‍वर के संगठन ने खास प्रगति की है: (1) यहोवा से मिलनेवाली आध्यात्मिक सच्चाई की बढ़ती समझ, (2) वह सेवा जो परमेश्‍वर ने हमें सौंपी है, (3) संगठन के काम करने के तरीके में समय-समय होनेवाले फेर-बदल और सुधार। फिर वक्‍ता ने पूरे विश्‍वास के साथ कहा: “बेशक हमारी आशा पहले से भी ज़्यादा मज़बूत है।” फिर उसने यह सवाल किया: ‘शुरू में हमारा जो विश्‍वास था, उसे अंत तक बरकरार रखने के लिए क्या कोई शक की गुंजाइश है?’ (इब्रानियों 3:14) इसका जवाब साफ था। फिर इसके बाद एक नया ब्रोशर रिलीज़ किया गया, जिसका शीर्षक था, आप परमेश्‍वर के दोस्त बन सकते हैं! (अँग्रेज़ी) यह ब्रोशर ऐसे लोगों को यहोवा के बारे में सिखाने में बहुत असरदार साबित होगा जो बहुत कम पढ़े-लिखे हैं।

दूसरा दिन—परमेश्‍वर के आश्‍चर्य कर्मों का प्रचार करते रहिए

दूसरे दिन के कार्यक्रम में सबसे पहले दैनिक पाठ की चर्चा हुई। इसके बाद एक परिचर्चा शुरू हुई जिसका शीर्षक था, “परमेश्‍वर के वचन के प्रचारक।” इसके पहले भाग में इस बात पर ध्यान दिलाया गया कि संसार भर में प्रचार काम में हमें कैसी सफलता मिल रही है। लेकिन इस काम से हमारे धीरज की परीक्षा भी हो रही है क्योंकि राज्य संदेश को ठुकरानेवाले ज़्यादा हैं। लंबे अरसे से प्रचार करनेवाले कुछ भाई-बहनों का इंटरव्यू लिया गया। उन्होंने बताया वे किस तरह सेवकाई में अपनी खुशी बरकरार रख पाए हैं क्योंकि उन्होंने अपने दिलो-दिमाग में यह ठान लिया था कि भले ही लोग दिलचस्पी न दिखाएँ या विरोध करें मगर वे इस काम में हार नहीं मानेंगे। परिचर्चा के दूसरे भाग में श्रोताओं को याद दिलाया गया कि यहोवा के साक्षी घर-घर जाकर और दूसरे तरीके अपनाकर हर किसी को संदेश पहुँचाना चाहते हैं। और आखिरी भाग में ऐसे कई तरीके बताए गए जिनसे मसीही अपनी सेवकाई को बढ़ा सकते हैं। भाई ने इस बात पर ज़ोर दिया कि सेवकाई को बढ़ाने के लिए परमेश्‍वर के राज्य को सबसे ज़्यादा महत्व देना ज़रूरी है, चाहे इसके लिए हमें बहुत सारी दिक्कतें ही क्यों न झेलनी पड़ें या अपनी इच्छाओं का त्याग ही क्यों ना करना पड़े।—मत्ती 6:19-21.

आज हम एक भक्‍तिहीन संसार में जी रहे हैं, जहाँ लोग धन-दौलत पर मर-मिट रहे हैं। इसलिए “सन्तोष सहित भक्‍ति पैदा कीजिए,” यह भाषण हमारे लिए वाकई फायदेमंद था। पैसे का मोह एक मसीही को भी सच्चाई से दूर ले जा सकता है और उसे अनगिनत मुसीबतों में लपेट सकता है। भाई ने 1 तीमुथियुस 6:6-10, 18, 19 के आधार पर कुछ ऐसे मुद्दे बताए जिनसे हम पैसे के मोह से बच सकते हैं। उसने ज़ोर देकर बताया कि हमारी आर्थिक स्थिति चाहे जैसी भी हो, हमारी खुशी यहोवा के साथ अपने रिश्‍ते और हमारी आध्यात्मिक स्थिति पर निर्भर है। “ऐसा कोई काम न करें जिससे परमेश्‍वर को शर्मिंदा होना पड़े।” इस भाषण में बताए गए मुद्दे कई लोगों के दिल को छू गए। इस बात पर खास रोशनी डाली गई कि यहोवा अपने वफादार साक्षियों को कभी नहीं भूलता। यीशु मसीह “कल और आज और युगानुयुग एकसा है।” इसलिए अगर हम उसकी बेहतरीन मिसाल पर चलेंगे तो हमें जीवन की दौड़ धीरज के साथ दौड़ने में मदद मिलेगी।—इब्रानियों 13:8.

सुबह के सेशन के आखिर में बपतिस्मा का भाषण हुआ, जो कि हमेशा यहोवा के साक्षियों के सम्मेलनों और अधिवेशनों की एक खासियत होती है। समर्पण कर चुके नए लोग जब यीशु का अनुकरण करते हुए, पानी में बपतिस्मा ले रहे थे तो उनको देखकर कितनी खुशी हुई! (मत्ती 3:13-17) जिन्होंने यह कदम उठाया था, उन्होंने परमेश्‍वर के वचन पर चलकर दिखाने में पहले ही काफी कुछ किया है। और अब बपतिस्मा पाकर वे सुसमाचार सुनाने के लिए परमेश्‍वर से ठहराए गए सेवक बन गए हैं। वे इस बात से बेहद खुश हैं कि यहोवा के नाम को पवित्र करने में वे हिस्सा ले रहे हैं।—नीतिवचन 27:11.

“‘भले बुरे में भेद करने के लिये’ तजुर्बे की ज़रूरत है,” इस भाषण में बहुत ही स्पष्ट तरीके से सलाह दी गई। सही-गलत के बारे में दुनिया के स्तरों पर भरोसा बिलकुल नहीं किया जा सकता। इसलिए हमें यह भरोसा रखना चाहिए कि यहोवा के स्तर हमेशा सही होते हैं। (रोमियों 12:2) सभी को उकसाया गया कि वे परमेश्‍वर के मार्गों के बारे में सही समझ पाने और ज़्यादा तजुर्बा हासिल करने के लिए खूब मेहनत करें। तब अभ्यास करते-करते हमारी ज्ञानेंद्रियाँ “भले बुरे में भेद करने के लिये” पक्की हो जाएँगी।—इब्रानियों 5:11-14.

इसके बाद एक परिचर्चा सुनाई गई: “आध्यात्मिकता बढ़ाने के लिए मेहनत कीजिए।” सच्चे मसीही जानते हैं कि आध्यात्मिकता बढ़ाना और उसे बनाए रखना कितना ज़रूरी है। इसके लिए पढ़ने, अध्ययन करने और मनन करने की ज़रूरत है जो कि काफी मेहनत का काम है। (मत्ती 7:13, 14; लूका 13:24) आध्यात्मिक बातों पर मन लगानेवाले लोग ‘हर प्रकार की प्रार्थना और बिनती’ में भी लगे रहते हैं। (इफिसियों 6:18) हम जानते हैं कि हमारी प्रार्थनाएँ यह ज़ाहिर करती हैं कि हमारा विश्‍वास और हमारी भक्‍ति कितनी गहरी है, हम आध्यात्मिक तौर पर कितने मज़बूत हैं और हम किन-किन बातों को “उत्तम से उत्तम” समझते हैं। (फिलिप्पियों 1:10) यह भी ज़ोर देकर बताया गया कि एक पिता और बच्चे के बीच जिस तरह प्यार का बंधन होता है उसी तरह हमें यहोवा के साथ एक स्नेही, प्यार भरा रिश्‍ता कायम करना बहुत ज़रूरी है। हम सिर्फ इस बात से खुश नहीं हैं कि हमारा धर्म सच्चा है। हम परमेश्‍वर पर इतना मज़बूत विश्‍वास बढ़ाना चाहते हैं, मानो हम उसे अपनी आँखों से ‘देख’ रहे हों।—इब्रानियों 11:6, 27.

“अपनी तरक्की सब पर ज़ाहिर कीजिए,” इस भाषण में आध्यात्मिक तरक्की करने के बारे में और भी कई बातों पर चर्चा की गई। ऐसे तीन विषय बताए गए जिनमें हम तरक्की कर सकते हैं: (1) ज्ञान, समझ और बुद्धि हासिल करने में, (2) परमेश्‍वर की आत्मा के फल पैदा करने में और (3) परिवार में अपनी ज़िम्मेदारियाँ निभाने में।

इस दिन का आखिरी भाषण था, “परमेश्‍वर के वचन के बढ़ते प्रकाश में चलना,” जिसके तहत एक नई किताब रिलीज़ की गई, आइज़ायास प्रॉफॆसी—लाइट फॉर ऑल मैनकाइंड I इसे पाकर अधिवेशन में आए सभी लोग खुशी से फूले नहीं समाए। इस किताब के दो खंड हैं और यह इसका पहला खंड है। इसमें यशायाह की किताब के एक-एक अध्याय पर चर्चा की गई है। भाषण में वक्‍ता ने कहा: “यशायाह की किताब में हमारे लिए एक पैगाम लिखा हुआ है।” फिर उसने आगे कहा: ‘बेशक, इस किताब की कई भविष्यवाणियाँ यशायाह के दिनों में पूरी हो चुकी थीं। लेकिन, यशायाह की कई भविष्यवाणियाँ आज हमारे दिनों में पूरी हो रही हैं और कुछ परमेश्‍वर की वादा की हुई नयी दुनिया में पूरी होंगी।’

तीसरा दिन—यहोवा के वचन पर चलनेवाले बनिए

अधिवेशन का आखिरी दिन दैनिक पाठ की चर्चा से शुरू हुआ। फिर उसके बाद यह परिचर्चा हुई: “परमेश्‍वर की इच्छा पर चलनेवालों के लिए सपन्याह की खास भविष्यवाणी।” इस परिचर्चा के तीनों भाषणों से यह दिखाया गया कि जैसे यहूदा के भ्रष्ट लोगों के साथ हुआ था, वैसे ही यहोवा आज उन लोगों पर संकट ले आएगा जो उसकी चेतावनी को सुनने से इनकार करते हैं। ऐसे लोग परमेश्‍वर के खिलाफ पाप कर रहे हैं इसलिए जब उन पर नाश आएगा तो उन्हें कोई नहीं छुड़ा सकेगा, वे अन्धों की तरह यहाँ-वहाँ भटकेंगे। लेकिन सच्चे मसीही वफादारी से यहोवा की खोज कर रहे हैं इसलिए परमेश्‍वर के क्रोध के दिन उन्हें ज़रूर शरण मिलेगी। इतना ही नहीं, वे आज भी ढेरों आशीषें पा रहे हैं। उन्हें बाइबल की सच्चाई की “शुद्ध भाषा” बोलने की आशीष मिली है। (सपन्याह 3:9) वक्‍ता ने कहा: “शुद्ध भाषा बोलने का मतलब सिर्फ इतना नहीं कि हम सच्चाई पर विश्‍वास करें और दूसरों को सिखाएँ। बल्कि हमारा चालचलन भी परमेश्‍वर के नियमों और सिद्धांतों के मुताबिक होना चाहिए।”

अधिवेशन में आए सभी लोग ड्रामा देखने के लिए बहुत ही उत्सुक थे। पुराने ज़माने की वेश-भूषा में पेश किए गए इस ड्रामे का शीर्षक था: “इस्राएलियों की कहानी, हमें देती चेतावनी।” ड्रामा में दिखाया कि किस तरह वादा किए गए देश की सरहद तक पहुँचने के बाद भी हज़ारों इस्राएली अपनी जान गँवा बैठे थे क्योंकि वे यहोवा को भूल गए और मूर्ति-पूजा करनेवाली स्त्रियों के बहकावे में आकर व्यभिचार और झूठे देवताओं की पूजा करने लगे। ड्रामे का एक मुख्य पात्र था, यामीन। शुरू में वह एक कशमकश में उलझा हुआ था। कभी उसका मन उसे मोआबी स्त्रियों की तरफ खींच रहा था तो कभी उसका मन कहता कि मुझे यहोवा को नाराज़ नहीं करना चाहिए। परमेश्‍वर से दूर हो चुके ज़िम्री की गलत दलीलों और कपटपूर्ण सोच-विचार को, साथ ही पीनहास के विश्‍वास और भक्‍ति को खुलकर दिखाया गया। श्रोताओं को यह साफ-साफ दिखाया गया कि जो लोग यहोवा से प्यार नहीं करते उनके साथ ज़्यादा दोस्ती रखना कितना खतरनाक हो सकता है।

ड्रामे ने अगले भाषण के लिए एक अच्छी नींव डाली। भाषण का शीर्षक था, “सुनकर भूलनेवाले मत बनिए।” 1 कुरिन्थियों 10:1-10 के बारे में समझाया गया जिससे यह बात सामने आयी कि हम नए संसार में प्रवेश पाने के योग्य हैं या नहीं यह देखने के लिए आज यहोवा हमारी वफादारी की परीक्षा ले रहा है। आज भी इस नाज़ुक घड़ी में जब हम नयी दुनिया की एकदम सरहद पर हैं, कुछ लोग अपनी शारीरिक इच्छाएँ पूरी करने में इतने डूबे हुए हैं कि आध्यात्मिक लक्ष्य उनके लिए कोई मायने नहीं रखते। इसलिए सभी को यह प्रोत्साहन दिया गया कि वे यहोवा ‘के विश्राम में प्रवेश करने का’ मौका हाथ से जाने न दें।—इब्रानियों 4:1.

जन-भाषण का विषय था, “परमेश्‍वर के आश्‍चर्यकर्मों पर क्यों ध्यान देना चाहिए।” यहोवा के “आश्‍चर्यकर्मों” से उसकी बुद्धि ज़ाहिर होती है और यह भी साबित होता है कि हमारे चारों तरफ की सृष्टि पर उसी का अधिकार है। (अय्यूब 37:14) यहोवा ने अय्यूब से कुछ ऐसे सवाल पूछे कि वह सोचने पर मजबूर हो गया और सर्वशक्‍तिमान सिरजनहार की बेमिसाल ताकत पर ताज्जुब करने लगा। यहोवा अपने वफादार सेवकों की खातिर भविष्य में भी ‘आश्‍चर्यकर्म’ करनेवाला है। भाषण के आखिर में वक्‍ता ने कहा: ‘यहोवा ने बीते समयों में बड़े-बड़े आश्‍चर्यकर्म किए और वह आज भी प्रकृति में ऐसे ही आश्‍चर्यकर्म कर रहा है, और जल्द ही भविष्य में और भी बड़े-बड़े आश्‍चर्यकर्म करेगा। उसके आश्‍चर्यकर्मों पर ध्यान देना हमारे लिए बेहद ज़रूरी है।’

उस हफ्ते के प्रहरीदुर्ग अध्ययन लेख का सारांश बताने के बाद, अधिवेशन का आखिरी भाषण दिया गया जो कि बहुत जोश भरा था। शीर्षक था, “परमेश्‍वर के वचन पर चलना एक खास सम्मान समझिए।” इसमें समझाया गया कि परमेश्‍वर के वचन पर चलना बड़े सम्मान की बात है। (याकूब 1:22) श्रोताओं को याद दिलाया गया कि परमेश्‍वर के वचन पर चलना एक बहुत बड़ी आशीष की बात है और जितना ज़्यादा हम परमेश्‍वर के वचन पर चलेंगे, उस आशीष के लिए हमारे दिल में उतनी ही ज़्यादा कदरदानी बढ़ेगी। हाज़िर सभी लोगों को यह जोश दिलाया गया कि वे परमेश्‍वर के वचन पर चलने में कोई कसर न छोड़ें और इस तरह ज़ाहिर करें कि उन्होंने इस ज़िला अधिवेशन से सचमुच फायदा हासिल किया है। वाकई, सच्ची खुशी पाने का सिर्फ एक ही तरीका है—परमेश्‍वर के वचन पर चलना।

[पेज 25 पर बक्स/तसवीर]

आप परमेश्‍वर के दोस्त बन सकते हैं! *

शुक्रवार दोपहर को एक नया ब्रोशर रिलीज़ किया गया, जिसका शीर्षक था, आप परमेश्‍वर के दोस्त बन सकते हैं! (अँग्रेज़ी) दुनिया के कई हिस्सों में बाइबल को एक सरल तरीके से सिखाने की बेहद ज़रूरत है। इसके लिए इस ब्रोशर का इस्तेमाल किया जाएगा। यह ब्रोशर उन लोगों के लिए एक उत्तम आशीष साबित होगी जो ठीक से पढ़-लिख नहीं सकते।

[फुटनोट]

^ फिलहाल यह ब्रोशर भारत में उपलब्ध नहीं है

[पेज 26 पर बक्स/तसवीरें]

आइज़ायास प्रॉफॆसी—लाइट फॉर ऑल मैनकाइंड

दो खंडोंवाली किताब, आइज़ायास प्रॉफॆसी—लाइट फॉर ऑल मैनकाइंड का पहला खंड पाकर अधिवेशन में आए सभी खुशी से फूले नहीं समाए। यह किताब इस बात पर ज़ोर देती है कि यशायाह की भविष्यवाणी हमारे समय के लिए क्या मायने रखती है।