क्या आपने सच्चाई को पूरी तरह अपना बना लिया है?
क्या आपने सच्चाई को पूरी तरह अपना बना लिया है?
“तुम्हारी बुद्धि के नए हो जाने से तुम्हारा चाल-चलन भी बदलता जाए, जिस से तुम परमेश्वर की भली, और भावती, और सिद्ध इच्छा अनुभव से मालूम करते रहो।”—रोमियों 12:2.
1, 2. आज सच्चे मसीही बने रहना मुश्किल क्यों है?
मसीहियों के लिए आज ‘कठिन अन्तिम दिनों में’ सच्चे मसीही बने रहना आसान नहीं है। (2 तीमुथियुस 3:1) दरअसल, यीशु मसीह की मिसाल पर चलते रहने के लिए एक मसीही को “संसार पर जय प्राप्त” करना बहुत ज़रूरी है। (1 यूहन्ना 5:4) याद कीजिए कि यीशु ने मसीहियों के मार्ग के बारे में क्या कहा था: “सकेत फाटक से प्रवेश करो, क्योंकि चौड़ा है वह फाटक और चाकल है वह मार्ग जो विनाश को पहुंचाता है; और बहुतेरे हैं जो उस से प्रवेश करते हैं। क्योंकि सकेत है वह फाटक और सकरा है वह मार्ग जो जीवन को पहुंचाता है, और थोड़े हैं जो उसे पाते हैं।” यीशु ने यह भी कहा: ‘यदि कोई मेरे पीछे आना चाहे, तो अपने आप से इन्कार करे और प्रति दिन अपना यातना स्तंभ उठाए हुए मेरे पीछे हो ले।’—मत्ती 7:13, 14; लूका 9:23.
2 ज़िंदगी की ओर ले जानेवाला सकरा मार्ग मिल जाने के बाद, एक मसीही के लिए अगली चुनौती होती है कि वह उस पर लगातार चलता रहे। यह एक चुनौती क्यों है? दरअसल जब हम समर्पण करके बपतिस्मा लेते हैं, तो हम शैतान की धूर्त “युक्तियों” या चालों का निशाना बन जाते हैं। (इफिसियों 6:11) वह हमारी कमज़ोरियों को जान लेता है, और फिर इस ताक में रहता है कि किसी तरह वह इनका इस्तेमाल करके हमारे विश्वास को कमज़ोर कर दे। शैतान ने तो यीशु के विश्वास को भी तोड़ने की बहुत कोशिश की थी, तो फिर वह हमें कैसे बख्श सकता है!—मत्ती 4:1-11.
शैतान की धूर्त युक्तियाँ
3. शैतान ने हव्वा के मन में शक के बीज कैसे बोए?
3 शैतान की धूर्त युक्तियों में से एक है, मसीहियों के मन में शक के बीज बोना। वह हमारे आध्यात्मिक कवच में ऐसी जगह ढूढ़ने की ताक में रहता है जहाँ से वह कमज़ोर हो। आदम-हव्वा के समय से ही वह यह तरीका अपनाता आया है। हव्वा को अपने जाल में फँसाने के लिए उसने पूछा था, “क्या सच है, कि परमेश्वर ने कहा, कि तुम इस बाटिका के किसी वृक्ष का फल न खाना?” (उत्पत्ति 3:1) दूसरे शब्दों में, शैतान असल में यह कह रहा था, ‘क्या वाकई परमेश्वर ने तुम पर ऐसी पाबंदी लगायी है? क्या वह इतनी बढ़िया चीज़ से तुम्हें दूर रखेगा? वह ऐसा क्यों करेगा? परमेश्वर खुद जानता है कि जिस दिन तुम उस पेड़ का फल खाओगे, उसी दिन तुम्हारी आँखें खुल जाएँगी और तुम परमेश्वर के जैसे बन जाओगे और परमेश्वर की तरह तुम्हें भले और बुरे का ज्ञान हासिल हो जाएगा!’ शैतान ने अपनी ओर से हव्वा के मन में शक का बीज बो दिया और बस उसके बढ़ने का इंतज़ार करने लगा।—उत्पत्ति 3:5.
4. शक की वजह से आज कुछ लोग किस तरह के सवाल करते हैं?
4 शैतान अपना वही पैंतरा आज हम पर कैसे इस्तेमाल करता है? अगर हम अपनी बाइबल रीडिंग, पर्सनल स्टडी, प्रचार करने, मीटिंग जाने और प्रार्थना करने में लापरवाही दिखाते हैं, तो दूसरों द्वारा उठाए गए सवाल हमारे मन में भी शक पैदा कर सकते हैं। जैसे कि, “हम कैसे यकीन कर सकते हैं कि यह वही सच्चाई है जिसे यीशु ने सिखाया था?” “हम 21वीं सदी में कदम रख चुके हैं, तो क्या हम वाकई अंतिम दिनों में जी रहे हैं?” “क्या हम वाकई अरमगिदोन की दहलीज़ पर खड़े हैं या उसके आने में अभी बहुत देर है?” अगर हमारे मन में ऐसे सवालों से शक पैदा होने लगे, तो इन्हें दूर भगाने के लिए हम क्या कर सकते हैं?
5, 6. अगर हमारे मन में शंकाएँ पैदा होती हैं, तो हमें क्या करना चाहिए?
5 याकूब बहुत ही बढ़िया सलाह देते हुए लिखता है: “यदि तुम में से किसी को बुद्धि की कमी हो तो वह परमेश्वर से मांगे और उसे दी जाएगी, क्योंकि वह प्रत्येक को बिना उलाहना दिए उदारता से देता है। पर विश्वास से मांगे और तनिक भी सन्देह न करे, क्योंकि जो सन्देह करता है वह समुद्र की लहर के समान है, जो हवा से उठती और उछलती है। ऐसा मनुष्य यह आशा न रखे कि उसे परमेश्वर से कुछ प्राप्त होगा, क्योंकि दुचित्ता होने के कारण वह अपनी सारी चाल में अस्थिर है।”—याकूब 1:5-8, NHT.
6 तो फिर, हमें क्या करना चाहिए? हमें प्रार्थना में विश्वास और समझ के लिए ‘परमेश्वर से मांगते रहना’ चाहिए, और मन की किसी भी शंका को दूर करने या सवालों के जवाब पाने के लिए पर्सनल स्टडी में कड़ी मेहनत करनी चाहिए। इतना ही नहीं, हम विश्वास में मज़बूत भाई-बहनों से भी मदद माँग सकते हैं और हमें इस बात पर कभी शक नहीं करना चाहिए कि यहोवा हमारी मदद करेगा। याकूब ने यह भी तो कहा था: “इसलिये परमेश्वर के आधीन हो जाओ; और शैतान का साम्हना करो, तो वह तुम्हारे पास से भाग निकलेगा। परमेश्वर के निकट आओ, तो वह भी तुम्हारे निकट आएगा।” जी हाँ, जब हम स्टडी और प्रार्थना के द्वारा परमेश्वर के निकट जाने की कोशिश करेंगे तो हमारे मन की तमाम शंकाएँ आहिस्ते-आहिस्ते खत्म हो जाएँगी।—याकूब 4:7, 8.
7, 8. जिस तरह की उपासना के बारे में यीशु ने सिखाया था, उसे पहचानने के लिए हमारे पास क्या आधार हैं और इन माँगों को कौन पूरा कर रहा है?
7 मिसाल के तौर पर इस सवाल को लीजिए: हम कैसे यकीन कर सकते हैं कि यीशु ने जिस तरह उपासना करनी सिखायी थी, हम बिलकुल उसी तरह उपासना करते हैं? इस शक को दूर करने के लिए हमारे पास क्या आधार है? बाइबल बताती है कि सच्चे मसीहियों के बीच में सच्चा प्यार होना चाहिए। (यूहन्ना 13:34, 35) उन्हें परमेश्वर के नाम, यहोवा को पवित्र ठहराना चाहिए। (यशायाह 12:4, 5; मत्ती 6:9) और इस नाम के बारे में सब लोगों को बताना चाहिए।—निर्गमन 3:15; यूहन्ना 17:26.
8 सच्ची उपासना को पहचानने के लिए एक और आधार है, परमेश्वर के वचन, बाइबल के लिए आदर। बाइबल ही एक ऐसी बेमिसाल किताब है जिसमें परमेश्वर के व्यक्तित्व और उद्देश्यों के बारे में बताया गया है। (यूहन्ना 17:17; 2 तीमुथियुस 3:16, 17) इसके अलावा, सच्चे मसीहियों को यह प्रचार करना चाहिए कि खूबसूरत नयी दुनिया में अनंत जीवन पाने की एकमात्र आशा है, परमेश्वर का राज्य। (मरकुस 13:10; प्रकाशितवाक्य 21:1-4) उन्हें इस दुनिया की भ्रष्ट राजनीति और गंदी जीवन-शैली से बिलकुल परे रहना चाहिए। (यूहन्ना 15:19; याकूब 1:27; 4:4) आज इन माँगों को कौन पूरा कर रहा है? इसके जवाब में सिर्फ एक संगठन के लोग नज़र आते हैं और वे हैं, यहोवा के साक्षी।
मन में शक घर कर जाए तो क्या करें?
9, 10. घर कर गयी शंकाओं को दूर करने के लिए हम क्या कर सकते हैं?
9 अगर हमारे मन में ढेर सारी शंकाएँ हैं, तब हमें क्या करना चाहिए? बुद्धिमान राजा सुलैमान हमें इसका जवाब देता है: “हे मेरे पुत्र, यदि तू मेरे वचन ग्रहण करे, और मेरी आज्ञाओं को अपने हृदय में रख छोड़े, और बुद्धि की बात ध्यान से सुने, और समझ की बात मन लगाकर सोचे; और प्रवीणता और समझ के लिये अति यत्न से पुकारे, और उसको चान्दी की नाईं ढूंढ़े, और गुप्त धन के समान उसकी खोज में लगा रहे; तो तू यहोवा के भय को समझेगा, और परमेश्वर का ज्ञान तुझे प्राप्त होगा।” (तिरछे टाइप हमारे।)—नीतिवचन 2:1-5.
10 क्या इससे हमें ताज्जुब नहीं होता? अगर हम परमेश्वर की बुद्धि को जानने के लिए पूरा मन और ध्यान लगा दें, तो हम “परमेश्वर का ज्ञान” पा सकेंगे। जी हाँ, पूरे जहाँ के महाराजा और मालिक का ज्ञान हमें मिल सकता है, मगर इसके लिए हममें इसे पाने और उसकी बातों को अपने दिल में संजोकर रखने की इच्छा होनी चाहिए। इसका मतलब है कि हमें प्रार्थना और पर्सनल स्टडी के ज़रिए यहोवा के करीब जाना चाहिए। परमेश्वर के वचन में छिपा ज्ञान का खज़ाना हमारी किसी भी शंका को दूर कर सकता है और सच्चाई की रोशनी देखने में हमारी मदद कर सकता है।
11. एलीशा के सेवक पर शक का क्या असर हुआ?
11 प्रार्थना ने परमेश्वर के एक भयभीत और शक करनेवाले सेवक की किस तरह मदद की, इसकी एक अच्छी मिसाल 2 राजा 6:11-18 में दी गयी है। एलीशा के एक सेवक को आध्यात्मिक समझ की कमी थी। वह यह समझ नहीं पाया कि परमेश्वर के भविष्यवक्ता की मदद के लिए, जिसे अरामी सेना ने घेर रखा था, हज़ारों स्वर्गदूत मौजूद हैं। डर के मारे सेवक कहने लगा, “हाय! मेरे स्वामी, हम क्या करें?” एलीशा ने क्या जवाब दिया? उसने कहा, “मत डर; क्योंकि जो हमारी ओर हैं, वह उन से अधिक हैं जो उनकी ओर हैं।” मगर सेवक को यकीन कैसे दिलाया जा सकता था? उसे तो स्वर्गदूतों की सेना दिखायी ही नहीं दे रही थी।
12. (क) सेवक की शंका कैसे दूर हुई? (ख) अगर हमारे मन में किसी बात का शक हो, तो उसे हम कैसे दूर कर सकते हैं?
12 “तब एलीशा ने यह प्रार्थना की, हे यहोवा, इसकी आंखें खोल दे कि यह देख सके। तब यहोवा ने सेवक की आंखें खोल दीं, और जब वह देख सका, तब क्या देखा, कि एलीशा के चारों ओर का पहाड़ अग्निमय घोड़ों और रथों से भरा हुआ है।” उस मामले में यहोवा ने सेवक की आँखें खोल दीं ताकि वह एलीशा की रक्षा के लिए मौजूद स्वर्गदूतों की सेना को देख सके। मगर हमारे समय में हमें इस तरह के किसी चमत्कार की उम्मीद नहीं करनी चाहिए। हमें यह बात याद रखनी चाहिए कि भविष्यद्वक्ता के सेवक के पास पूरी बाइबल नहीं थी जिसका गहरा अध्ययन करके वह अपने विश्वास को मज़बूत कर सकता। मगर हमारे पास तो पूरी बाइबल है। अगर हम अच्छी तरह से इसका अध्ययन करते हैं, तो हमारा विश्वास भी उसी तरह मज़बूत हो जाएगा जिस तरह स्वर्गदूतों की सेना को देखकर एलीशा के सेवक का हुआ था। मिसाल के तौर पर, हम यहोवा की स्वर्गीय अदालत के बारे में दिए गए कई ब्योरे पढ़कर उस पर विचार कर सकते हैं। ऐसा करने पर हमारे मन में ज़रा भी शक नहीं रहेगा कि यहोवा के पास वाकई स्वर्गीय संगठन है जो दुनिया भर में हो रहे शिक्षा के काम में उसके सेवकों की मदद कर रहा है।—यशायाह 6:1-4; यहेजकेल 1:4-28; दानिय्येल 7:9, 10; प्रकाशितवाक्य 4:1-11; 14:6, 7.
शैतान की युक्तियों से होशियार!
13. हमें सच्चाई से दूर करने के लिए शैतान कौन-से पैंतरे अपनाता है?
13 हमारी आध्यात्मिकता को कमज़ोर करने और सच्चाई से हमें दूर करने के लिए शैतान कौन-से दूसरे पैंतरे अपनाता है? एक है अनैतिकता, जो अलग-अलग रूप में चारों तरफ मौजूद है। आज पूरी दुनिया बस सेक्स के पीछे पागल है। आज की सुख-विलास के पीछे भागनेवाली पीढ़ी किसी भी कीमत पर बस मज़े लूटने पर तुली रहती है। और आज के लोगों के बीच अफैर (बेवफाई का दूसरा नाम) चलना या सिर्फ एक रात का साथी बनना (कैज़ुअल व्यभिचार) बहुत ही आम बात हो गयी है। चाहे फिल्म हो, टीवी हो या वीडियो, सब इसी किस्म की ज़िंदगी को बढ़ावा देते हैं। मीडिया में खासकर इंटरनॆट बस अश्लील साहित्य और तसवीरों से भरा पड़ा है। जिज्ञासु मन के लिए कितना बढ़िया जाल!—1 थिस्सलुनीकियों 4:3-5; याकूब 1:13-15.
14. कुछ मसीही, शैतान की युक्तियों के शिकार क्यों हुए हैं?
14 कुछ मसीहियों ने अपनी गलत इच्छाओं पर रोक नहीं लगायी। अपने जिज्ञासु मन पर काबू पाने के बजाय उन्होंने कम (सॉफ्ट-कोर) और हद-से-ज़्यादा (हार्ड-कोर) अश्लील साहित्य पढ़कर और तसवीरों को देख-देखकर अपने दिलो-दिमाग को दूषित कर लिया है। वे शैतान के आकर्षक फंदों में खुद ही फँस गए हैं। इसकी वजह से अकसर उनके विश्वास का आध्यात्मिक जहाज़ डूब गया है। ऐसे लोग न तो ‘बुराई में बालक’ बने रहे हैं, ना ही ‘समझ में सियाने बने’ हैं। (1 कुरिन्थियों 14:20) परमेश्वर के वचन में दिए गए उसूलों और स्तरों का पालन न करने की वजह से हर साल, हज़ारों लोग भारी कीमत चुकाते हैं और अंजाम भुगतते हैं। उन्होंने ‘परमेश्वर के सारे हथियारों को बान्ध’ लेने में लापरवाही दिखायी है।—इफिसियों 6:10-13; कुलुस्सियों 3:5-10; 1 तीमुथियुस 1:18, 19.
जो मिला है उसकी कदर कीजिए
15. कुछ लोगों को अपनी आध्यात्मिक विरासत की कदर करना क्यों मुश्किल लगता है?
15 यीशु ने कहा था, “[तुम] सत्य को जानोगे, और सत्य तुम्हें स्वतंत्र करेगा।” (यूहन्ना 8:32) ज़्यादातर साक्षियों ने अपनी बीती ज़िंदगी के तौर-तरीकों और धार्मिक संगठनों से नाता तोड़कर सच्चाई को अपनाया है। इसलिए, वे उस आज़ादी का मतलब बखूबी समझते हैं जो सच्चाई को अपनाने की वजह से मिलती है। मगर दूसरी तरफ, ऐसे कई युवा हैं जिनके माता-पिता सच्चाई में होने की वजह से उनकी परवरिश भी सच्चाई में हुई है। ऐसे युवाओं को अपनी आध्यात्मिक विरासत की कदर करने में मुश्किल होती है। क्यों? क्योंकि वे कभी झूठे धर्म के भाग थे ही नहीं, ना ही वे इस दुनिया के कोई भाग रहे हैं जो बस सुख-विलास, नशीले पदार्थों, और अनैतिकता के पीछे भागती है। नतीजा ये होता है कि वे हमारी आध्यात्मिक दुनिया और शैतान की भ्रष्ट दुनिया के बीच ज़मीन-आसमान के फर्क को समझ नहीं पाते हैं। इसलिए, कुछ युवा यह आज़माने के चक्कर में कि उन्होंने क्या खोया है, दुनिया के ज़हर को चखकर देखने का लालच कर बैठे हैं।—1 यूहन्ना 2:15-17; प्रकाशितवाक्य 18:1-5.
16. (क) हमें अपने आपसे कौन-से सवाल पूछने चाहिए? (ख) हमें क्या सिखाया जाता है और किस बात के लिए प्रोत्साहित किया जाता है?
16 जलने से कितना दर्द होता है, क्या यह पता लगाने के लिए हमें वाकई अपना हाथ आग में डालने की ज़रूरत है? क्या हम दूसरों की गलतियों से और उनके अंजाम से सीख नहीं सकते? क्या हमें यह पता लगाने के लिए कि क्या हमने वाकई कुछ खोया है या नहीं, दुनिया के “कीचड़” में लोटने की ज़रूरत है? (2 पतरस 2:20-22) पहली सदी के मसीही पहले शैतान की दुनिया के भाग थे। पतरस ने उनको यह याद दिलाया: “अन्यजातियों की इच्छा के अनुसार काम करने, और लुचपन की बुरी अभिलाषाओं, मतवालापन, लीलाक्रीड़ा, पियक्कड़पन, और घृणित मूर्त्तिपूजा में जहां तक हम ने पहिले समय गंवाया, वही बहुत हुआ।” यह तो पक्की बात है कि हम यह देखने के लिए कि ज़िंदगी कितनी घटिया हो सकती है, दुनिया के “भारी लुचपन” को अनुभव करना नहीं चाहेंगे। (1 पतरस 4:3, 4) मगर, किंगडम हॉल में, जो बाइबल शिक्षा का केंद्र है, यहोवा के ऊँचे नैतिक स्तर सिखाए जाते हैं। हमें प्रोत्साहित किया जाता है कि हम अपनी तर्क-शक्ति और समझ को इस्तेमाल करें जिससे हम खुद को यकीन दिला सकें कि हमारे पास ही सच्चाई है। इस तरह हम सच्चाई को पूरी तरह से अपना बना सकते हैं।—यहोशू 1:8; रोमियों 12:1, 2; 2 तीमुथियुस 3:14-17.
हमारा नाम महज़ एक लेबल नहीं है
17. हम यहोवा के जोशीले साक्षी कैसे बन सकते हैं?
17 अगर हम सच्चाई को अपना बनाते हैं, तो फिर हमें इसे हर मौके पर दूसरों को बताने की कोशिश करनी चाहिए। इसका मतलब यह नहीं कि हम उन लोगों पर ज़बरदस्ती अपना संदेश थोपें जिन्हें दिलचस्पी नहीं है। (मत्ती 7:6) मगर दूसरी तरफ हम यहोवा के साक्षी, इस नाम के कहलाए जाने से नहीं झिझकेंगे। अगर कोई व्यक्ति सवाल पूछकर या बाइबल साहित्य लेने के द्वारा थोड़ी-सी भी दिलचस्पी दिखाता है, तो हमें अपनी आशा बताने के लिए सदा तैयार रहना चाहिए। जी हाँ, इसका मतलब है कि हमें हर वक्त अपने पास कोई-न-कोई साहित्य ज़रूर रखना चाहिए, चाहे हम घर पर, स्कूल में, काम पर, दुकान में या मनोरंजन की किसी जगह पर ही क्यों न हों।—1 पतरस 3:15.
18. एक साक्षी के रूप में अपनी पहचान कराने से हमें क्या फायदा होगा?
18 जब हम अपनी पहचान साक्षियों के तौर पर कराते हैं, तो शैतान के खतरनाक हमलों से हम अपना बचाव और भी बेहतर रूप से कर पाते हैं। कैसे? मान लीजिए अगर किसी के यहाँ कोई बर्थडे पार्टी या क्रिसमस पार्टी है या किसी के पास ऑफिस लॉट्री है, तो सहकर्मी अकसर यही कहेंगे, “उससे पूछना बेकार है। वह यहोवा की एक साक्षी है।” साक्षी के तौर पर पहचाने जाने की वजह से ही लोग हमारे सामने गंदे या अश्लील चुटकुले सुनाने से झिझकेंगे। इसलिए, अगर हम अपनी पहचान साक्षी के रूप में कराते हैं, तो इससे हमें फायदें ही होंगे। यही बात प्रेरित पौलुस ने भी कही थी: “यदि तुम भलाई करने में उत्तेजित रहो तो तुम्हारी बुराई करनेवाला फिर कौन है? और यदि तुम धर्म के कारण दुख भी उठाओ, तो धन्य हो।”—1 पतरस 3:13, 14.
19. हम कैसे यकीन कर सकते हैं कि हम अंतिम दिनों के भी अंत में पहुँच गए हैं?
19 सच्चाई को अपना बना लेने का एक और फायदा यह होगा कि हमें पक्का यकीन हो जाएगा कि हम वाकई इस दुनिया के अंतिम दिनों में जी रहे हैं। हमें यह भी मालूम होगा कि बाइबल की कई भविष्यवाणियाँ हमारे समय में पूरी हो रही हैं। * पौलुस ने चेतावनी दी थी कि “अन्तिम दिनों में कठिन समय आएंगे।” पिछली सदी की खौफनाक घटनाओं को देखकर पौलुस की बात सच साबित होती है। (2 तीमुथियुस 3:1-5; मरकुस 13:3-37) हाल के एक अखबार ने 20वीं सदी के बारे में एक लेख छापा था जिसका शीर्षक था: “इसे क्रूरता का युग कहा जाएगा।” लेख में लिखा था: “पिछली सदी के अंतिम 50 सालों में सबसे ज़्यादा खून बहा, जिसमें 1999 सबसे खूनी साल रहा।”
20. आज पूरे जोश के साथ किस काम में लगने का समय है?
20 आज का समय मन में शक पालने या हिचकिचाने का नहीं है। पूरी दुनिया में ऐसा बड़ा काम किया जा रहा है जो पहले कभी नहीं हुआ। सभी देशों के लोगों को गवाही के तौर पर बाइबल से शिक्षा दी जा रही है। और इस काम पर यहोवा की आशीष साफ-साफ दिखायी दे रही है। (मत्ती 24:14) इसलिए अब आप सच्चाई को पूरी तरह अपना बना लीजिए, और इसके बारे में दूसरों को भी बताइए। आप आज जो कुछ करते हैं उस पर आपका भविष्य निर्भर करता है। अगर हम ढीले पड़ गए तो हमें यहोवा की आशीष नहीं मिलेगी। (लूका 9:62) सो, हमें ‘दृढ़ और अटल रहना है, और प्रभु के काम में सर्वदा बढ़ते जाना है, क्योंकि हम जानते हैं कि हमारा परिश्रम प्रभु में व्यर्थ नहीं है।’—1 कुरिन्थियों 15:58.
[फुटनोट]
^ प्रहरीदुर्ग, जनवरी 15, 2000, पेज 12-14 देखिए। पैराग्राफ 13-18 में छः ज़बरदस्त सबूत दिए गए हैं जो साबित करते हैं कि 1914 से हम अंतिम दिनों में जी रहे हैं।
क्या आपको याद है?
• हम अपने मन की शंकाओं को कैसे दूर कर सकते हैं?
• एलीशा के सेवक की मिसाल से हम क्या सीख सकते हैं?
• हमें कौन-से गलत प्रलोभनों से हमेशा होशियार रहना है?
• हमें अपनी पहचान यहोवा के साक्षी के रूप में अच्छी तरह से क्यों करानी चाहिए?
[अध्ययन के लिए सवाल]
[पेज 10 पर तसवीरें]
लगातार बाइबल पढ़ने और प्रार्थना करने से हमारे मन के शक दूर हो सकते हैं
[पेज 11 पर तसवीर]
एलीशा के सेवक का शक एक दर्शन के द्वारा दूर हो गया
[पेज 12 पर तसवीर]
बेनिन का किंगडम हॉल, इस तरह के किंगडम हॉलों में यहोवा के ऊँचे नैतिक स्तर सिखाए जाते हैं