वहाँ सेवा करना जहाँ मेरी ज़्यादा ज़रूरत थी
जीवन कहानी
वहाँ सेवा करना जहाँ मेरी ज़्यादा ज़रूरत थी
जेम्स बी. बॆरी की ज़ुबानी
वह साल 1939 था। अमरीका में महामंदी छायी हुई थी जिसकी वजह से जीना दूभर हो गया था और पूरे यूरोप में युद्ध के काले बादल छाए हुए थे। मैं और मेरा छोटा भाई बॆनॆट काम की तलाश में मिसिसिप्पी शहर छोड़कर हूस्टन, टैक्सस आ गए थे।
गर्मी का मौसम खत्म हो रहा था। और एक दिन हमने रेडियो पर ये ज़बरदस्त घोषणा सुनी: हिटलर की सेना ने पोलैंड पर धावा बोल दिया है। यह सुनते ही मेरा भाई चिल्लाया, “अरमगिदोन शुरू हो गया है!” हमने फौरन अपनी नौकरी से इस्तीफा दे दिया। और पास के किंगडम हॉल में पहली बार मीटिंग के लिए गए। किंगडम हॉल ही क्यों? आइए, मैं आपको शुरू से कहानी सुनाता हूँ।
मेरा जन्म सन् 1915 में हीब्रॉन, मिसिसिप्पी में हुआ था। हम शहर से बाहर देहात में रहते थे। यहोवा के साक्षियों को उस समय बाइबल विद्यार्थी कहा जाता था और वे साल में एक बार हमारे इलाके में आते थे, और किसी के घर पर भाषण देने का इंतज़ाम करते थे। नतीजा ये हुआ कि मेरे मम्मी-डैडी के पास बाइबल की ढेर सारी किताबें इकट्ठी हो गईं। मैं और बॆनॆट इन किताबों में दी गयी बातों पर विश्वास करने लगे, जैसे नरक में लोगों को तड़पाया नहीं जाता, आत्मा अमर नहीं होती, धर्मी लोग इसी ज़मीन पर हमेशा ज़िंदा रहेंगे। इसके अलावा भी हमें बहुत कुछ सीखना बाकी था। मेरी स्कूल की पढ़ाई खत्म होने के कुछ समय बाद, मैं और मेरा भाई नौकरी की तलाश में टैक्सस चले गए।
आखिर में जब हमने वहाँ के साक्षियों से किंगडम हॉल में मुलाकात की तो उन्होंने हमसे पूछा कि क्या हम पायनियर हैं। हमें तो यह बिलकुल भी पता नहीं था कि यहोवा के साक्षियों के पूरे समय के सेवकों को पायनियर कहा जाता है। फिर उन्होंने हमसे पूछा कि क्या आप प्रचार करना चाहेंगे। हमने फौरन हाँ कह दिया। हमने सोचा कि वे पहले हमें किसी व्यक्ति के साथ भेजकर यह सिखाएँगे कि प्रचार कैसे किया जाता है। मगर
उन्होंने तो हमारे हाथों में बस एक नक्शा थमा दिया और कहा, “ये लीजिए, और वहाँ से शुरू हो जाइए!” हो गयी छुट्टी! मुझे और बॆनॆट को तो प्रचार का क-ख-ग भी नहीं आता था। और हम यह नहीं चाहते थे कि प्रचार करते समय लोगों के सामने हमें शर्मिंदा होना पड़े। इसलिए हमने उस नक्शे को डाक द्वारा कलीसिया को भेज दिया और वापस मिसिसिप्पी चले आए!बाइबल की सच्चाई को पूरी तरह अपनाना
घर लौटने के बाद हमने हर रोज़, लगभग एक साल तक साक्षियों द्वारा प्रकाशित किताबें पढ़ीं। हमारे घर पर बिजली नहीं थी, इसलिए हम रात को आग की रोशनी में पढ़ते थे। उन दिनों ज़ोन सर्वॆन्ट या सर्किट ओवरसियर यहोवा के साक्षियों की कलीसियाओं में, साथ ही दूर-दराज़ इलाकों में रह रहे गिन-चुने साक्षियों से मिलने आते थे और भाई-बहनों को आध्यात्मिक रूप से मज़बूत करते थे। हमारी कलीसिया में टॆड क्लाएन नाम का एक सर्किट ओवरसियर आया और घर-घर प्रचार के काम में बॆनॆट और मेरे साथ काम किया। वो अकसर हम दोनों को एक-साथ ही ले जाता था। उसी ने हमें समझाया कि पायनियर काम क्या होता है।
उसके साथ रहने की वजह से हम दोनों के मन में परमेश्वर की सेवा में और भी ज़्यादा काम करने की इच्छा जाग गयी। सो अप्रैल 18, 1940 में भाई क्लाएन ने मुझे, बॆनॆट और हमारी बहन वेल्वा को बपतिस्मा दिया। उस वक्त हमारे मम्मी-डैडी भी हाज़िर थे और हमारे फैसले से बहुत खुश थे। फिर करीब दो साल बाद उन्होंने भी बपतिस्मा ले लिया। डैडी की मौत 1956 में और मम्मी की मौत 1975 में हो गई थी, और अंत तक दोनों वफादारी से सेवा करते रहे थे।
जब भाई क्लाएन ने मुझसे पूछा कि मैं पायनियरिंग कर सकता हूँ कि नहीं, तो मैंने जवाब दिया कि मेरी इच्छा तो है, मगर मेरे पास न तो पैसे हैं, न कपड़े-लत्ते, ना ही कुछ और। तब उन्होंने कहा, “इसकी तुम चिंता मत करो, मैं उसका इंतज़ाम कर दूँगा।” और उन्होंने किया भी। सबसे पहले उन्होंने पायनियरिंग के लिए मेरी अर्ज़ी भेज दी। फिर वो मुझे अपने साथ न्यू ओरलीन्ज़ ले गए जो करीब 300 किलोमीटर दूर था। वहाँ उन्होंने मुझे किंगडम हॉल के ऊपर बने कुछ अच्छे कमरे दिखाए। ये कमरे पायनियरों के लिए बनाए गए थे। कुछ ही समय बाद मैं भी वहाँ जाकर रहने लगा और पायनियरिंग शुरू कर दी। न्यू ओरलीन्ज़ के भाई-बहन पायनियरों को पैसे, कपड़े-लत्ते और खाना-पीना देकर उनकी मदद करते थे। दिन में, हमारे भाई भोजन लाकर दरवाज़े पर छोड़ जाते या अंदर फ्रिज में रख जाते थे। पास में एक भाई का रेस्तराँ था। वह अकसर रेस्तराँ बंद करने के समय पर हमें आने के लिए कहता ताकि हम वहाँ से दिन भर का बचा हुआ ताज़ा भोजन, जैसे गोश्त, डबल रोटी, मिन्स-राजमा का स्टू, और पेस्ट्री अपने साथ ले जाएँ।
मार-पीट पर उतारू भीड़ का सामना करना
कुछ समय बाद, मुझे पायनियरिंग करने के लिए जैकसन, मिसिसिप्पी जाने को कहा गया। वहाँ मुझे और मेरे पायनियर-साथी को ऐसी भीड़ का सामना करना पड़ा जो मार-पीट करने पर उतारू थी। हमें लग रहा था कि सरकारी अधिकारी उस भीड़ का साथ दे रहे थे! हमारी अगली नियुक्ति कलॆमबस, मिसिसिप्पी में भी ऐसा ही हुआ। हम वहाँ हर जाति और देश के लोगों को प्रचार करते थे, इसलिए कुछ गोरे लोग हमसे नफरत करने लगे। कई लोग सोचते थे कि हम राजद्रोही हैं। हमारे बारे में एक देशभक्त संगठन, अमेरिकन लीजिअन के अध्यक्ष की भी यही राय थी। हम पर हमला करने के लिए उसने कई बार भीड़ को भड़काया था।
कलॆम्बस में जब हम पर पहली बार हमला हुआ, तब हम सड़क पर लोगों को पत्रिकाएँ दे रहे थे, और कुछ लोग हमारे पीछे पड़ गए। उन्होंने हमें ढकेलते-ढकेलते बड़े-बड़े शीशोंवाली दुकान की खिड़की के पास फँसा दिया जहाँ से हम भाग नहीं सकते थे। फिर वहाँ लोगों की भीड़ इकट्ठी हो गयी। जल्द ही पुलिस आ गयी और हमें अदालत ले गयी। भीड़ भी हमारे पीछे-पीछे अदालत तक आयी और उन्होंने सभी अधिकारियों के सामने यह धमकी दी कि अगर हम फलाना तारीख तक उस
इलाके को छोड़कर चले जाएँ तो ज़िंदा जा सकेंगे और अगर नहीं गए तो मार डाले जाएँगे। हमने सोचा कि कुछ समय के लिए उस इलाके को छोड़ देने में ही खैरियत है। मगर कुछ हफ्ते बाद हम वापस आ गए और फिर से प्रचार करने लगे।कुछ ही दिनों बाद, आठ लोगों के एक गुट ने हमें घेर लिया और ज़बरदस्ती अपनी कारों में बिठाकर ले गए। वे हमें एक जंगल में ले गए और वहाँ हमारे सारे कपड़े उतार दिए। फिर मेरी बेल्ट लेकर उन्होंने हम दोनों को 30-30 बार मारी! उनके पास पिस्तौलें और रस्सियाँ भी थीं और वाजिब है हम दोनों बहुत ही डरे हुए थे। मैंने सोचा कि वे हमें बाँधकर नदी में फेंक देंगे। उन्होंने हमारी सभी किताबें फाड़कर इधर-उधर फेंक दीं और हमारे फोनोग्राफ को एक पेड़ के ठूँठ पर मार-मारकर चकनाचूर कर दिया।
बेल्ट से मारने के बाद उन्होंने हमसे कपड़े पहनकर, बिना पीछे देखे जंगल की एक पगडंडी से जाने के लिए कहा। जाते वक्त मुझे लगा कि अगर हमने पीछे घूमकर देखने की जुर्रत भी की, तो वे हमें गोली से उड़ा देंगे और उन्हें हत्या करने की सज़ा भी नहीं मिलेगी! मगर कुछ ही देर बाद हमें उनकी गाड़ी से जाने की आवाज़ सुनायी दी।
एक और बार, गुस्से से पागल भीड़ ने हमारा पीछा किया और बचने के लिए हमें अपने कपड़ों को गले में बाँधकर, नदी पार करनी पड़ी। उसके कुछ ही समय बाद, हमें राजद्रोह के इलज़ाम में गिरफ्तार कर लिया गया। मुकदमे से पहले हमें तीन हफ्ते जेल में गुज़ारने पड़े। पूरे कलॆम्बस में उस मुकदमे के बारे में काफी ढिंढोरा पीट दिया गया था। उस मुकदमे में हाज़िर होने के लिए पास के कॉलेज के छात्रों को जल्दी छुट्टी दे दी गयी थी। मुकदमे के दिन अदालत खचाखच भरी हुई थी। एक मेयर, पुलिस, और दो प्रचारक सरकारी गवाह थे।
जी. सी. क्लार्क नाम का एक साक्षी, जो कि वकील था और उसका साथी हमारी तरफ से वकालत कर रहे थे। उन्होंने राजद्रोह के इलज़ाम के लिए सबूत न होने की वजह से केस को खारिज करने की माँग की। भाई क्लार्क का साथी यहोवा का साक्षी न होते हुए भी हमारे पक्ष में ज़बरदस्त तरीके से बोल रहा था। मुकदमे के दौरान उसने एक बार कहा, “लोग कहते हैं कि यहोवा के साक्षी सिरफिरे हैं। सिरफिरे? थॉमस एडिसन पर भी सिरफिरे होने का आरोप लगाया गया था!” फिर उसने एक बल्ब की ओर इशारा करते हुए कहा, “मगर उस बल्ब को देखो!” इसकी ईज़ाद एडिसन ने ही की थी। हालाँकि कुछ लोग उसे सिरफिरा समझते थे, मगर उसकी उपलब्धियों को देखकर उसके खिलाफ कोई भी आवाज़ नहीं उठा सकता था।
पूरी गवाही सुनने के बाद, उस सर्किट कोर्ट के जज ने प्रॉसिक्यूटर से कहा: “इनके खिलाफ राजद्रोह का इलज़ाम लगाने के लिए आप लोगों के पास रत्ती भर भी सबूत नहीं हैं और प्रचार करने का इनका पूरा-पूरा हक है। जब तक आपको इनके खिलाफ कोई ठोस सबूत नहीं मिल जाते, तब तक इन्हें इस अदालत में वापस लाकर मेरा समय, साथ ही देश का समय और पैसा ज़ाया मत कीजिए!” हमारी कितनी ज़बरदस्त जीत हुई थी!
लेकिन बाद में जज ने हमें अपने दफ्तर में बुलाया। वह जानता था कि पूरा शहर उसके फैसले के खिलाफ है। इसलिए उसने हमें आगाह किया: “अदालत में मैंने जो भी कहा था, वह कानून के मुताबिक कहा था मगर मैं तुम दोनों को यही सलाह दूँगा कि तुम दोनों यहाँ से निकल जाओ, नहीं तो वे लोग तुम्हें ज़िंदा नहीं छोड़ेंगे!” हम जानते थे कि वह सही कह रहा था, इसलिए हमने वो शहर छोड़ दिया।
वहाँ से मैं बॆनॆट ओर वेल्वा के पास गया। वे क्लार्क्सविल, टेनॆसी में स्पेशल पायनियर के तौर पर काम कर रहे थे। कुछ महीनों के बाद हमें पायनियरिंग करने के लिए पैरिस, कॆनटॆकी भेज दिया गया। वहाँ डेढ़ साल बाद जब हम एक कलीसिया को स्थापित करने ही वाले थे कि मुझे और बॆनॆट को एक बहुत ही खास न्योता मिला।
मिशनरी सेवा
जब हमें वॉचटावर बाइबल स्कूल ऑफ गिलियड की दूसरी क्लास में हाज़िर होने का न्योता मिला तो हमने सोचा, ‘उनसे कोई गलती हो गयी है! वे हम जैसे मिसिसिप्पी के साधारण युवकों को उस स्कूल में हाज़िर होने के लिए क्यों बुलाएँगे?’ हम सोचते थे कि वहाँ तो बहुत पढ़े-लिखे लोगों को ही बुलाया जाता है, मगर फिर भी हम वहाँ गए। उस क्लास के लिए करीब 100 विद्यार्थी आए हुए थे, और कोर्स पाँच महीने तक चलना था। जनवरी 31, 1944 को ग्रैजुएशन था और हम सब विदेश जाकर सेवा करने के लिए बेताब थे। मगर उन दिनों पासपोर्ट और वीज़ा के कागज़ात बनाने में काफी समय लग जाता था। इसलिए विद्यार्थियों को कुछ समय के लिए अमरीका में ही सेवा-कार्य करना पड़ता था। अलॆबामा और जॉर्जिया में कुछ समय पायनियरिंग करने के बाद बॆनॆट और मुझे आखिरकार अपनी नियुक्ति, बारबेडॆस, वॆस्ट इंडीज़ को भेजा गया।
दूसरा विश्वयुद्ध चल रहा था और बारबेडॆस जैसी कई जगहों पर यहोवा के साक्षियों के काम और साहित्य पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। वहाँ पहुँचते ही कस्टम पर अधिकारियों ने हमारे सामान की तलाशी ली और उन्हें वे साहित्य मिल गए जिन्हें हमने छुपा रखा था। हमने मन-ही-मन सोचा, ‘हम तो गए काम से!’ मगर एक अधिकारी ने हमसे बस इतना कहा: “हमें खेद है कि हमें आपके सामान की तलाशी लेनी पड़ी। इनमें से कुछ साहित्य पर बारबेडॆस में पाबंदी लगी हुई है।” यह कहने के बावजूद भी उसने हमारे सभी साहित्य लौटा दिए और हमें यूँ ही छोड़ दिया! बाद में, जब हमने कई सरकारी अधिकारियों को राज्य संदेश सुनाया, तो उन्होंने कहा कि उन्हें ये समझ में नहीं आ रहा कि इन साहित्यों पर पाबंदी क्यों लगायी गयी है। कुछ महीनों बाद पाबंदी हटा दी गयी।
बारबेडॆस में हमारी सेवकाई से काफी अच्छे फल निकले। हम दोनों के पास कम-से-कम 15-15 बाइबल स्टडी थीं और ज़्यादातर बाइबल विद्यार्थी अच्छी आध्यात्मिक प्रगति कर रहे थे। उन्हें कलीसिया की मीटिंगों में आते हुए देख हमें बहुत खुशी मिलती थी। कुछ समय के लिए साहित्य पर प्रतिबंध होने की वजह से भाइयों को इस बात की नयी और सही जानकारी नहीं मिल पायी थी कि सभाओं को कैसे चलाया जाना चाहिए। मगर जल्द ही हमने कई काबिल भाइयों को ट्रेनिंग दी। इतना ही नहीं, हम अपने कई विद्यार्थियों को प्रचार काम शुरू करने में मदद दे पाए और कलीसिया को बढ़ते हुए भी देख पाए। इससे हमारी खुशी दुगनी हो गयी।
परिवार की ज़िम्मेदारी
बारबेडॆस में 18 महीने बिताने के बाद, मुझे ऑपरेशन कराने की ज़रूरत पड़ी जिसकी वजह से मुझे अमरीका लौटना पड़ा। वहाँ मैंने डॉरोथी नाम की साक्षी से शादी कर ली। हम पहले से ही एक-दूसरे को खत लिखा करते थे। शादी के बाद हम टालॆहासी, फ्लॉरिडा में पायनियरिंग करने लगे, मगर छः महीने बाद हम लूइविल, कॆनटॆकी आ गए जहाँ एक भाई ने मुझे नौकरी देने का वादा किया था। मेरे भाई बॆनॆट ने बारबेडॆस में ही कई साल तक पायनियरिंग की। बाद में उसने एक मिशनरी से शादी कर ली और वही द्वीपों में सफरी सेवा करने लगा। बाद में, गिरती सेहत की वजह से उन्हें भी अमरीका लौटना पड़ा। 73 साल की उम्र में 1990 में बॆनॆट की मौत हो गई। बॆनॆट की मौत होने तक वे दोनों स्पैनिश भाषा बोलनेवाली कलीसियाओं में सफरी सेवा करता रहे थे।
सन् 1950 में हमारी पहली बच्ची, नन्ही डैरिल का जन्म हुआ। हमारे कुल पाँच बच्चे हुए। हमारा दूसरा बच्चा डॆरिक ढाई साल की उम्र में, स्पाइनल मेनिंगजाइटिस की वजह से चल बसा। लॆसली का जन्म 1956 में और इवरॆट का 1958 में हुआ। डॉरोथी और मैंने बाइबल सच्चाई के मुताबिक अपने बच्चों की परवरिश करने में कड़ी मेहनत की। हमने हर हफ्ते फैम्ली बाइबल स्टडी करने, और इसे बच्चों के लिए मज़ेदार बनाने की हमेशा कोशिश की। जब डैरिल, लॆसली और इवरॆट बस छोटे ही थे, तब हम उन्हें हर हफ्ते रिसर्च करने के लिए सवाल देते और अगले हफ्ते उसका जवाब पूछते। वे घर-घर के प्रचार के काम को नाटक के रूप में भी पेश करते थे। एक बड़ी-सी अलमारी में चला जाता और घरवाले का किरदार निभाता। दूसरा बाहर खड़ा होकर दरवाज़ा खटखटाता। वे पक्के घरवाले की तरह बातें करते और एक दूसरे को मुश्किल में भी डाल देते थे। इससे उनके दिल में प्रचार काम के लिए प्यार जाग गया। हम भी प्रचार में लगातार उनके साथ काम करते थे।
सन् 1973 में जब हमारे सबसे छोटे बेटे एल्टन का जन्म हुआ, तब डॉरोथी की उम्र लगभग 50 और मेरी लगभग 60 साल थी। कलीसिया के भाई-बहन हमें इब्राहीम और सारा बुलाया करते थे! (उत्पत्ति 17:15-17) हमारे दोनों बड़े बेटे एल्टन को अकसर अपने साथ प्रचार में ले जाते थे। जब अलग-अलग परिवार के सभी सदस्य एक साथ प्रचार के लिए निकलते हैं और दूसरों को बाइबल सच्चाई सुनाते हैं तो इससे लोगों को एक ज़बरदस्त गवाही मिलती है। एल्टन के बड़े भाई बारी-बारी से उसे अपने कंधे पर उठा लेते थे और उसके हाथ में एक ट्रैक्ट थमा देते थे। ज़्यादातर लोगों पर इसका अच्छा असर पड़ता था क्योंकि जब वे दरवाज़ा खोलते और इस नन्हे से प्यारे बच्चे को अपने भाई के कंधे पर बैठा देखते, तो अकसर हर व्यक्ति राज्य संदेश सुनता था। लड़कों ने एल्टन को सिखा रखा था कि बातचीत खत्म होने पर वह कुछ कहे और घरवाले को ट्रैक्ट दे। इसी तरह उसने प्रचार करना शुरू किया।
इन सालों के दौरान हमने बहुत लोगों को यहोवा को जानने में मदद दी है। 1975 के बाद हम लूइविल से शलबीविल, कॆनटॆकी आ गए क्योंकि यहाँ की एक कलीसिया में मदद की ज़रूरत थी। जब हम वहाँ थे, तो हमने कलीसिया को न सिर्फ बढ़ते देखा, बल्कि हमने एक किंगडम हॉल के लिए जगह ढूँढ़ने और उसे बनाने में भी मदद की। बाद में हमें पास की एक दूसरी कलीसिया में सेवा करने के लिए कहा गया।
परिवार के सदस्य कौन-सी राह पकड़े, इसका कोई भरोसा नहीं
काश! मैं यह कह सकता कि हमारे सभी बच्चे आज भी यहोवा की राह पर चल रहे हैं, मगर अफसोस, ऐसा नहीं है। बड़े होने पर और घर से दूर जाने के बाद, हमारे चार में से तीन बच्चों ने सच्चाई की राह छोड़ दी। मगर, हमारे एक बेटे इवरॆट ने मेरी तरह पूरे समय की सेवकाई शुरू की। बाद में उसने न्यू यॉर्क में यहोवा के साक्षियों के वर्ल्ड हैडक्वार्टर में सेवा की और 1984 में गीलियड की 77वीं क्लास में हाज़िर होने का न्योता स्वीकार किया। वहाँ से ग्रैजुएट होने के बाद, वह सीएरा-लीओन, पश्चिम अफ्रीका में सेवा करने के लिए चला गया। 1988 में उसने मारिआन से शादी कर ली जो बेलजियम में पायनियरिंग कर रही थी। तब से वे दोनों मिशनरी सेवा कर रहे हैं।
अपने बच्चे को सच्चाई की राह से दूर जाते देख हर माता-पिता का दिल टूट जाता है। हमारा भी वही हाल हुआ जब हमने अपने तीन बच्चों को उस राह से दूर जाते हुए देखा जिस पर चलने से आज ज़िंदगी को संतुष्टि मिलती है और भविष्य में पृथ्वी पर हमेशा-हमेशा जीने की आशा। कभी-कभी तो इसके लिए मैं खुद को ही दोषी मानता हूँ। मगर फिर मुझे इस बात से तसल्ली मिलती है कि खुद यहोवा के ही कुछ आत्मिक बेटों या स्वर्गदूतों ने उसकी सेवा करनी छोड़ दी थी, हालाँकि यहोवा ने उन्हें प्यार से ताड़ना दी, उन्हें दया दिखायी थी। और यहोवा तो कभी गलती ही नहीं करता। (व्यवस्थाविवरण 32:4; यूहन्ना 8:44; प्रकाशितवाक्य 12:4, 9) इससे मैंने यह सीखा कि यहोवा की राह के मुताबिक माता-पिता अपने बच्चों की परवरिश करने की चाहे कितनी भी कोशिश और मेहनत क्यों न करें, इसके बावजूद भी कुछ बच्चे सच्चाई को अपनाने से इंकार कर सकते हैं।
जिस तरह तेज़ हवा चलने पर एक पेड़ थोड़ा-बहुत झुक जाता है, उसी तरह जब हम अलग-अलग दुःख-तकलीफों और समस्याओं का सामना करते हैं, तो हमें भी कभी-कभी स्थिति के मुताबिक अपनी ज़िंदगी में फेरबदल करना पड़ता है। कई सालों के दौरान मुझे यह एहसास हुआ है कि लगातार बाइबल स्टडी करने से और सभाओं में हाज़िर होने से मुझे ज़रूरत पड़ने पर इस तरह झुकने और आध्यात्मिक रूप से ज़िंदा और मज़बूत बने रहने में मदद मिली है। जैसे-जैसे मेरी उम्र बढ़ती है और मैं अपनी पिछली गलतियों के बारे में सोचता हूँ, तो मैं उनमें कुछ फायदों को देखने की कोशिश याकूब 1:2, 3.
करता हूँ। अगर हम बस वफादार बने रहते हैं, तो ये अनुभव हमारे आध्यात्मिक विकास के लिए मददगार साबित होते हैं। अगर हम अपनी गलतियों से सीखने की कोशिश करते हैं, तो ज़िंदगी के कटु अनुभवों से भी हम मीठे फल पा सकते हैं।—अब मैं और डॉरोथी यहोवा की सेवा में उतना नहीं कर पा रहे हैं जितना करने की हमें इच्छा है, क्योंकि हमारी पहली जैसी न सेहत रही, ना ही ताकत। मगर हम अपने अज़ीज़ मसीही भाई-बहनों के सहारे के लिए बेहद शुक्रगुज़ार हैं। लगभग हर मीटिंग में, भाई-बहन हमें यह बताते हैं कि वे हमारी मौजूदगी की कितनी कदर करते हैं। और वे हर तरह से हमारी मदद करने के लिए हमेशा तैयार रहते हैं, चाहे ये घर की या कार की मरम्मत करने जैसे काम ही क्यों न हों।
कभी-कभार हम ऑक्जिलियरी पायनियरिंग कर पाते हैं और दिलचस्पी दिखानेवाले लोगों के साथ बाइबल स्टडी करते हैं। सबसे ज़्यादा खुशी तो हमें तब होती है जब हमें अफ्रीका में सेवा कर रहे अपने बेटे से कोई खबर मिलती है। आज भी हम फैमिली बाइबल स्टडी करते हैं, बस फरक इतना है कि आजकल इसमें सिर्फ हम दोनों ही होते हैं। यहोवा की सेवा में हम इतने साल बिता पाए हैं, इससे हमें बेहद खुशी होती है। और यहोवा की यह बात हमारा हौसला बुलंद करती है कि वह ‘हमारे काम, और उस प्रेम को नहीं भूलेगा, जो हम ने उसके नाम के लिये दिखाया है।’—इब्रानियों 6:10.
[पेज 25 पर तसवीर]
अप्रैल 18, 1940 में टॆड क्लाएन द्वारा बपतिस्मा लेते हुए वेल्वा, बॆनॆट, और मैं
[पेज 26 पर तसवीरें]
1942 के आस-पास के साल में अपनी पत्नी डॉरोथी के साथ, और फिर 1997 में
[पेज 27 पर तसवीर]
बारबेडॆस शहर में, एक बस में लगे विज्ञापन द्वारा जन भाषण, “शांति का राजकुमार” का प्रसार हो रहा है
[पेज 27 पर तसवीर]
मिशनरी घर के सामने मेरा भाई बॆनॆट