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यहोवा के क्रोध के दिन से पहले उसे ढूँढ़िए

यहोवा के क्रोध के दिन से पहले उसे ढूँढ़िए

यहोवा के क्रोध के दिन से पहले उसे ढूँढ़िए

“[यहोवा को] ढूंढ़ते रहो; धर्म को ढूंढ़ो, नम्रता को ढूंढ़ो; सम्भव है तुम यहोवा के क्रोध के दिन में शरण पाओ।”—सपन्याह 2:3.

1. सपन्याह ने जब भविष्यवाणी करनी शुरू की थी तो यहूदा की आध्यात्मिक दशा कैसी थी?

 सपन्याह ने जब भविष्यवाणी करनी शुरू की थी उस वक्‍त यहूदा देश की हालत बहुत नाज़ुक थी। यहूदियों की आध्यात्मिक दशा बहुत खराब थी। वे यहोवा पर भरोसा रखने के बजाय झूठे धर्म के पंडितों और ज्योतिषियों के पास मार्गदर्शन के लिए जा रहे थे। देश-भर में लोग बाल देवता की पूजा और उससे जुड़ी कई ऐसी रस्में मनाने में ज़ोर-शोर से लगे हुए थे जिनमें नीच लैंगिक काम किए जाते थे। देश के बड़े लोग जैसे प्रधान, हाकिम और न्यायाधीश प्रजा की हिफाज़त करने के बजाय उन पर ज़ुल्म ढा रहे थे। (सपन्याह 1:9; 3:3) इसलिए इसमें कोई ताज्जुब की बात नहीं कि क्यों यहोवा ने यहूदा और यरूशलेम को नाश करने के लिए ‘अपना हाथ उठाने’ का फैसला किया।—सपन्याह 1:4.

2. यहूदा में परमेश्‍वर के वफादार सेवकों के लिए आशा की कौन-सी किरण बाकी थी?

2 हालाँकि हालत इतनी खराब हो चुकी थी मगर फिर भी आशा की किरण बाकी थी। क्योंकि अब अम्मोन का बेटा योशिय्याह राज कर रहा था। हालाँकि वह उम्र में छोटा तो था, लेकिन उसके दिल में यहोवा के लिए सच्चा प्यार था। अगर यह नया राजा यहूदा में दोबारा शुद्ध उपासना शुरू करवाता तो उन थोड़े से लोगों का हौसला बहुत बुलंद होता जो वफादारी से परमेश्‍वर की सेवा कर रहे थे। और फिर शायद उनसे प्रेरित होकर दूसरे लोग भी परमेश्‍वर की सेवा करने लगते, और इस तरह यहोवा के क्रोध के दिन उनकी जान भी बख्श दी जाती।

बचाव के लिए माँगे

3, 4. ‘यहोवा के क्रोध के दिन’ में बचने के लिए एक इंसान को अभी कौन-सी तीन माँगें पूरी करने की ज़रूरत है?

3 यहोवा के क्रोध के दिन में क्या वाकई कुछ लोग बच सकते थे? बेशक बच सकते थे, लेकिन इसके लिए उन्हें सपन्याह 2:2, 3 में दी गई तीन माँगों को पूरा करना था। आइए इन वचनों को पढ़ते वक्‍त हम इन माँगों पर खास ध्यान दें। सपन्याह ने लिखा: “इस से पहिले कि दण्ड की आज्ञा पूरी हो और बचाव का दिन भूसी की नाईं निकले, और यहोवा का भड़कता हुआ क्रोध तुम पर आ पड़े, और यहोवा के क्रोध का दिन तुम पर आए, तुम इकट्ठे हो। हे पृथ्वी के सब नम्र लोगो, हे यहोवा के नियम के माननेवालो, उसको ढूंढ़ते रहो; धर्म को ढूंढ़ो, नम्रता को ढूंढ़ो; सम्भव है तुम यहोवा के क्रोध के दिन में शरण पाओ।”

4 इससे साफ ज़ाहिर है कि बचने के लिए एक इंसान को (1) यहोवा को ढूँढ़ना था, (2) धर्म को ढूँढ़ना था, और (3) नम्रता को ढूँढ़ना था। आज हमें भी उन माँगों के बारे में जानना बहुत ज़रूरी है। क्यों? क्योंकि जिस तरह सा.यु.पू. सातवीं सदी में यहूदा और यरूशलेम को अपने कामों का लेखा देना पड़ा था, ठीक उसी तरह आनेवाले “भारी क्लेश” में ईसाईजगत के देशों के साथ-साथ सभी दुष्ट लोगों से परमेश्‍वर यहोवा लेखा लेगा। (मत्ती 24:21) इसलिए जो लोग यहोवा के क्रोध के दिन में बचना चाहते हैं उन्हें आज और अभी से कदम उठाने की ज़रूरत है। उन्हें क्या करना होगा? इससे पहले कि देर हो, उन्हें यहोवा को ढूँढ़ना है, धर्म को ढूँढ़ना है और नम्रता को ढूँढ़ना है।

5. ‘यहोवा को ढूँढ़ने’ के लिए हमें क्या करने की ज़रूरत है?

5 आप शायद कहें: ‘मैं अपना समर्पण करके बपतिस्मा ले चुका हूँ, और यहोवा का साक्षी बन गया हूँ। तो क्या मैंने ये सारी माँगे पूरी नहीं कर ली हैं?’ सच तो यह है कि यहोवा को सिर्फ समर्पण कर देना ही काफी नहीं है। इस्राएल जाति भी एक समर्पित जाति थी। मगर सपन्याह के दिनों में यहूदा के लोग अपने समर्पण के मुताबिक नहीं जी रहे थे। नतीजा क्या हुआ? आखिर में जाकर, परमेश्‍वर ने पूरी जाति को ठुकरा दिया। आज ‘यहोवा को ढूंढ़ने’ का मतलब है, यहोवा के साथ एक नज़दीकी रिश्‍ता बनाना और उसे कायम रखना। ऐसा हमें पृथ्वी पर उसके संगठन के साथ-साथ चलते हुए करना हैं। ‘यहोवा को ढूँढ़ने’ का यह भी मतलब है कि हम हर मामले में यहोवा के नज़रिए को जानने की कोशिश करें और देखें कि फलाना काम करने से यहोवा को कैसा महसूस होगा। यहोवा को ढूँढ़ने के लिए ज़रूरी है कि हम उसके वचन का ध्यान से अध्ययन करें, उस पर मनन करें, और उसकी सलाहों को अपने जीवन में लागू करें। यहोवा को ढूँढ़ने के लिए यह भी आवश्‍यक है कि हम मन लगाकर यहोवा से प्रार्थना करके उससे मार्गदर्शन माँगें, और पवित्र आत्मा द्वारा दिखाए गए मार्ग पर चलें। ऐसा करने पर हम यहोवा के और करीब जाएँगे, और हमें ‘सारे मन, सारे जीव, सारी शक्‍ति के साथ’ यहोवा की सेवा करने की प्रेरणा मिलेगी।—व्यवस्थाविवरण 6:5; गलतियों 5:22-25; फिलिप्पियों 4:6, 7; प्रकाशितवाक्य 4:11.

6. हम किस तरह ‘धर्म को ढूँढ़’ सकते हैं और इस दुष्ट संसार में भी ऐसा करना क्यों संभव है?

6 सपन्याह 2:3 के अनुसार दूसरी माँग है: “धर्म को ढूंढ़ो।” हममें से ज़्यादातर लोगों ने अपनी ज़िंदगी में बड़ी-बड़ी तबदीलियाँ की थीं ताकि हम मसीही बपतिस्मा लेने के योग्य बन सकें। मगर अब हमें ज़िंदगी भर यहोवा के धार्मिक स्तरों पर लगातार चलते रहने की ज़रूरत है। कुछ भाई-बहन बपतिस्मा के बाद कुछ समय तक परमेश्‍वर के धार्मिक स्तरों पर चले तो सही, मगर धीरे-धीरे वे इस संसार की मलिनता से दूषित हो गए। माना कि आज धर्म को ढूँढ़ना इतना आसान नहीं है, क्योंकि हम ऐसे लोगों से घिरे हुए हैं जिन्हें लैंगिक अनैतिकता, झूठ बोलने और दूसरे गलत काम करने में कोई बुराई नज़र नहीं आती। हमारे अंदर भी इस दुष्ट संसार के लोगों के रंग में रंगने और उनकी वाह-वाही पाने की इच्छा पैदा हो सकती है। लेकिन अगर यहोवा को खुश करने का हमारा इरादा मज़बूत हो तो हम ऐसी हर इच्छा पर काबू पा सकते हैं। याद कीजिए कि यहोवा ने यहूदा को इसीलिए ठुकरा दिया था क्योंकि उसके लोग अपने आस-पास की जातियों के भक्‍तिहीन लोगों के रंग में रंग गए थे। इसलिए आइए हम दुनिया की नकल करने के बजाय “परमेश्‍वर के सदृश्‍य” बने, और ‘नया मनुष्यत्व’ बढ़ाते रहें जो “परमेश्‍वर के अनुसार सत्य की धार्मिकता, और पवित्रता में सृजा गया है।”—इफिसियों 4:24; 5:1.

7. हम ‘नम्रता’ को कैसे ढूँढ़ सकते हैं?

7 सपन्याह 2:3 के मुताबिक यहोवा के क्रोध के दिन से बचने की तीसरी माँग है, ‘नम्रता को ढूंढ़ना।’ हर दिन हमें ऐसे स्त्री, पुरुष और जवानों के साथ उठना-बैठना पड़ता है जिनमें नम्रता नाम की कोई चीज़ नहीं होती। उनकी नज़र में विनम्र इंसान बुज़दिल होता है। वे सोचते हैं कि सिर्फ कमज़ोर लोग ही दूसरों के अधीन रहते हैं। इसलिए वे दूसरों से हद-से-ज़्यादा की माँग करते हैं, अपनी बात पर अड़े रहते हैं और स्वार्थी बने रहते हैं। वे समझते हैं कि किसी भी कीमत पर उन्हें अपना “हक” मिलना ही चाहिए और हर काम उनकी पसंद के मुताबिक होना चाहिए। अगर हम भी उनकी तरह बनने लगे तो यह कितने दुःख की बात होगी! इसलिए यही समय है कि हम ‘नम्रता को ढूँढ़ें।’ मगर कैसे? परमेश्‍वर के अधीन रहें, दीन होकर उसका अनुशासन स्वीकार करें और उसकी इच्छा के मुताबिक खुद को ढालें।

शरण पाना, “सम्भव” क्यों?

8. सपन्याह 2:3 में “सम्भव” शब्द क्यों इस्तेमाल किया गया है?

8 ध्यान दीजिए कि सपन्याह 2:3 में क्या लिखा है: “सम्भव है तुम यहोवा के क्रोध के दिन में शरण पाओ।” इस आयत में “पृथ्वी के सब नम्र लोगों” के लिए “सम्भव” शब्द क्यों इस्तेमाल किया गया है? इन नम्र लोगों ने परमेश्‍वर की माँगें पूरी करने के लिए वाकई सही कदम उठाए थे। मगर वे यकीन के साथ यह नहीं कह सकते थे कि वे अपने विश्‍वास से कभी नहीं डगमगाएँगे। क्योंकि उन्हें अपनी वफादारी का सबूत मरते दम तक देना था। “सम्भव” शब्द से ज़ाहिर होता है कि शायद कुछ लोग पाप में दोबारा गिर जाते। यही बात हम पर भी लागू होती है। यीशु ने कहा: “जो अन्त तक धीरज धरे रहेगा, उसी का उद्धार होगा।” (मत्ती 24:13) जी हाँ, यहोवा के रोष के दिन में उद्धार पाना इस बात पर निर्भर करता है कि हम अंत तक वही करते रहें जो परमेश्‍वर की नज़र में सही है। क्या यह आपका भी अटल फैसला है?

9. जवान राजा योशिय्याह ने कौन-से सही कदम उठाए?

9 सपन्याह की भविष्यवाणी से राजा योशिय्याह के अंदर ‘यहोवा को ढूँढ़ने’ की प्रेरणा जागी। शास्त्रवचन कहता है: “[योशिय्याह लगभग 16 साल का] लड़का ही था, अर्थात्‌ उसको गद्दी पर बैठे आठ वर्ष पूरे भी न हुए थे कि अपने मूलपुरुष दाऊद के परमेश्‍वर की खोज करने लगा।” (2 इतिहास 34:3) योशिय्याह ‘धर्म को भी ढूँढ़ता रहा’ क्योंकि बाइबल कहती है: “बारहवें वर्ष में [करीब 20 साल की उम्र में] वह ऊंचे स्थानों और अशेरा नाम मूरतों को और खुदी और ढली हुई मूरतों को दूर करके, यहूदा और यरूशलेम को शुद्ध करने लगा। और बालदेवताओं की वेदियां उसके साम्हने तोड़ डाली गईं।” (2 इतिहास 34:3, 4) इतना ही नहीं, योशिय्याह ने ‘नम्रता को भी ढूँढा।’ उसने यहोवा के सामने खुद को नम्र किया और उसे खुश करने के लिए उसने देश में चल रही मूर्तिपूजा और झूठे धर्म के दूसरे रीति-रिवाज़ों को बंद करवा दिया। इस तरह के अच्छे कार्यों को देखकर उसके देश में रहनेवाले नम्र लोगों को कितनी खुशी हुई होगी!

10. सामान्य युग पूर्व 607 में यहूदा में क्या हुआ, मगर किन्हें बचाया गया?

10 योशिय्याह के राज के दौरान बहुत-से यहूदी बुरे काम छोड़कर यहोवा की उपासना करने लगे थे। मगर राजा के मरने के बाद वे फिर से उन बुरे कामों को करने लगे जिनसे यहोवा को सख्त नफरत थी। आखिरकार यहोवा ने पहले जो फैसला सुनाया था, उसके मुताबिक सा.यु.पू. 607 में बाबुल की सेना ने यहूदा को अपने पैरों तले रौंद डाला और उसकी राजधानी यरूशलेम को खाक में मिला दिया। मगर उस समय कुछ लोगों को बचाया भी गया था। भविष्यवक्‍ता यिर्मयाह, कूशी एबेदमेलेक, योनादाब के वंशज और कुछ दूसरे वफादार लोगों को यहोवा के क्रोध के दिन में शरण मिली थी।—यिर्मयाह 35:18, 19; 39:11, 12, 15-18.

परमेश्‍वर के दुश्‍मनो—सबक सीखो!

11. यहोवा के वफादार सेवक बने रहना आज क्यों मुश्‍किल है, और यहोवा के लोगों के दुश्‍मनों के लिए कौन-सा सबक सीखना अच्छा होगा?

11 जब तक इस दुष्ट संसार पर यहोवा के रोष का दिन नहीं आता तब तक हमें “नाना प्रकार की परीक्षाओं” का सामना करना पड़ेगा। (याकूब 1:2) कई देशों के बारे में यह दावा तो किया जाता है कि वहाँ लोगों को अपनी पसंद का धर्म मानने की छूट है। मगर उन्हीं देशों में पादरियों ने षड्यंत्र रचकर सरकारी अधिकारियों को इस्तेमाल करके परमेश्‍वर के लोगों पर वहशियों की तरह अत्याचार करवाए हैं। कुछ चरित्रहीन लोग यहोवा के साक्षियों को “खतरनाक पंथ” का नाम देकर उन्हें बदनाम करते हैं। यहोवा उनकी एक-एक करतूत से अच्छी तरह वाकिफ है और वह उन्हें उनके किए की सज़ा ज़रूर देगा। परमेश्‍वर के इन दुश्‍मनों के लिए अच्छा होगा कि वे पलिश्‍ती जैसी पुराने ज़माने की जातियों से सबक सीखें, जिन्होंने परमेश्‍वर के लोगों से लड़ने की जुर्रत की थी। उनके बारे में भविष्यवाणी कहती है: “अज्जा तो निर्जन और अश्‍कलोन उजाड़ हो जाएगा; अशदोद के निवासी दिनदुपहरी निकाल दिए जाएंगे, और एक्रोन उखाड़ा जाएगा।” जी हाँ, पलिश्‍तियों के शहर, अज्जा, अश्‍कलोन, अशदोद और एक्रोन को पूरी तरह खाक में मिला दिया जाता।—सपन्याह 2:4-7.

12. पलिश्‍ती, मोआब और अम्मोन देशों का क्या हुआ?

12 भविष्यवाणी आगे कहती है: “मोआब ने जो मेरी प्रजा की नामधराई और अम्मोनियों ने जो उसकी निन्दा करके उसके देश की सीमा पर चढ़ाई की, वह मेरे कानों तक पहुंची है।” (सपन्याह 2:8) यह सच है कि मिस्र और कूश देश को भी बाबुल के हाथों मात खानी पड़ी थी। मगर इब्राहीम के भतीजे लूत से निकली मोआब और अम्मोन जाति के लिए यहोवा ने कैसा न्यायदंड सुनाया था? यहोवा ने कहा: “निश्‍चय मोआब सदोम के समान, और अम्मोनी अमोरा की नाईं . . . हो जाएंगे।” बेशक सदोम और अमोरा के नाश से मोआब और अम्मोन की पुरखिन यानी लूत की बेटियाँ बच गईं थीं मगर परमेश्‍वर के क्रोध के दिन घमंडी मोआब और अम्मोन को बचने के लिए कोई शरण नहीं मिली। (सपन्याह 2:9-12; उत्पत्ति 19:16, 23-26, 36-38) आज पलिश्‍ती देश और उसके शहर कहाँ हैं? घमंडी मोआब और अम्मोन देश का क्या हुआ? आप चाहे उन्हें जितना भी ढूँढ़े मगर वे नहीं मिलेंगे क्योंकि उन्हें पूरी तरह मिट्टी में मिला दिया गया था।

13. नीनवे में की गई खुदाई से क्या पता चला है?

13 सपन्याह के दिनों में विश्‍व-शक्‍ति अश्‍शूर का साम्राज्य अपनी बुलंदियों पर था। पुरातत्वज्ञानी ऑस्टन लेयार्ड को अश्‍शूर की राजधानी नीनवे में खुदाई करने पर राजमहल का एक भाग मिला। उसका ब्योरा देते हुए वह लिखता है: “महल की छत . . . पर चौकोर खाने बने हुए थे, और उन खानों पर बने फूलों और जानवरों के चित्र रंगे हुए थे। कुछ पर हाथी दाँत मढ़ा हुआ था। खानों के किनारों पर बहुत सुंदर नक्काशी भी की गई थी। छत की कड़ियों और दीवारों के कोनों को शायद सोने या चाँदी से मढ़ा हुआ था। लकड़ी का सारा सामान कीमती-से-कीमती लकड़ियों का बना हुआ था, खासकर देवदारू की लकड़ी इस्तेमाल की गई थी।” मगर जैसे सपन्याह ने भविष्यवाणी की थी, अश्‍शूर का नाश होनेवाला था और उसकी राजधानी नीनवे “उजाड़” बननेवाली थी।—सपन्याह 2:13.

14. सपन्याह की भविष्यवाणी की पूर्ति नीनवे पर कैसे हुई?

14 सपन्याह द्वारा भविष्यवाणी करने के सिर्फ 15 साल बाद, शक्‍तिशाली नीनवे को तबाह कर दिया गया, उसके शाही महल को मलबे का ढेर बना दिया गया। जी हाँ, उस घमंडी नगरी को धूल चाटनी पड़ी। उस भयानक विनाश के बारे में पहले से ही बता दिया गया था: “उसके [गिरे हुए] खम्भों की कंगनियों पर धनेश और साही दोनों रात को बसेरा करेंगे और उसकी खिड़कियों में बोला करेंगे; उसकी डेवढ़ियां सूनी पड़ी रहेंगी।” (सपन्याह 2:14, 15) नीनवे की शानदार इमारतें सिर्फ धनेश और साही के बसेरे के लायक बन जाती। उसकी सड़कों से व्यापारियों के लेन-देन का शोर-शराबा, सैनिकों का हुल्लड़ और पंडितों के जपने की आवाज़ें बंद हो जाती। एक समय था जब वहाँ के रास्तों पर बहुत चहल-पहल रहती थी मगर अब सिर्फ पंछियों के रोने की आवाज़ें या हवा की साँय-साँय सुनाई देती। आज परमेश्‍वर के हर दुश्‍मन का भी यही हश्र हो!

15. पलिश्‍ती, मोआब, अम्मोन, और अश्‍शूर का जो हश्र हुआ उससे हम क्या सीखते हैं?

15 पलिश्‍ती, मोआब, अम्मोन, और अश्‍शूर का जो हश्र हुआ, उससे हम क्या सीख सकते हैं? यही कि यहोवा के सेवक होने के नाते, हमें अपने दुश्‍मनों से डरने की ज़रूरत नहीं है। यहोवा उन विरोधियों के हर काम का हिसाब रख रहा है। प्राचीनकाल में जिस तरह यहोवा ने अपने दुश्‍मनों को दण्ड दिया था, उसी तरह आगे भी यहोवा पूरी दुनिया को न्यायदंड देनेवाला है। लेकिन उस समय कुछ बचनेवाले भी होंगे—‘हर एक जाति में से निकलकर आए लोगों की एक बड़ी भीड़’ को बचाया जाएगा। (प्रकाशितवाक्य 7:9) चाहे तो आप भी उस भीड़ का भाग बन सकते हैं, बशर्ते कि आप लगातार यहोवा, उसके धर्म और नम्रता को ढूँढ़ते रहें।

ढीठ पापियों पर हाय!

16. यहूदा के हाकिमों और धार्मिक अगुवों के बारे में सपन्याह ने क्या भविष्यवाणी की और वह आज ईसाईजगत पर कैसे सही बैठती है?

16 सपन्याह एक बार फिर यहूदा और यरूशलेम के बारे में भविष्यवाणी करता है। सपन्याह 3:1, 2 कहता है: “हाय बलवा करनेवाली और अशुद्ध और अन्धेर से भरी हुई नगरी! उस ने मेरी नहीं सुनी, उस ने ताड़ना से भी नहीं माना, उस ने यहोवा पर भरोसा नहीं रखा, वह अपने परमेश्‍वर के समीप नहीं आई।” कितने दुःख की बात है कि यहोवा के अपने ही लोगों ने उसकी ताड़ना को नहीं माना! प्रधानों, हाकिमों और न्यायियों ने प्रजा पर जो ज़ुल्म ढाएँ, वह सचमुच दुःख की बात थी। सपन्याह ने धार्मिक अगुवों की बेशर्मी की निंदा करते हुए कहा: “उसके भविष्यद्वक्‍ता व्यर्थ बकनेवाले और विश्‍वासघाती हैं, उसके याजकों ने पवित्रस्थान को अशुद्ध किया और व्यवस्था में खींच-खांच की है।” (सपन्याह 3:3, 4) ये वचन आज ईसाईजगत के भविष्यवक्‍ताओं और पादरियों पर भी कितने सही बैठते हैं! उन्होंने परमेश्‍वर के खिलाफ इतनी बड़ी गुस्ताखी की है कि अपने बाइबल अनुवादों में से उसका नाम ही निकाल दिया और जिस परमेश्‍वर की उपासना करने का वे दावा करते हैं, उसी के बारे में लोगों को झूठी शिक्षाएँ सिखाते हैं।

17. चाहे लोग सुनें या ना सुनें आपको क्यों सुसमाचार का ऐलान करते रहना चाहिए?

17 अपने लोगों के प्रति चिंता दिखाते हुए यहोवा ने उन्हें चेतावनी दी थी कि वह क्या करनेवाला है। उसने उनके पास सपन्याह और यिर्मयाह जैसे बहुत-से भविष्यवक्‍ताओं को भी भेजा ताकि वे मन फिराव करने के लिए लोगों से आग्रह कर सकें। जी हाँ, ‘यहोवा . . . कुटिलता न करेगा; उसने अपना न्याय प्रति भोर प्रगट किया, और वह नहीं चूका।’ इसके बदले में लोगों की क्या प्रतिक्रिया रही थी? सपन्याह कहता है, “परन्तु कुटिल जन को लज्जा आती ही नहीं।” (सपन्याह 3:5) आज भी वैसी ही एक चेतावनी दी जा रही है। अगर आप सुसमाचार के प्रचारक हैं तो आप भी यह चेतावनी देने में शामिल हैं। इसलिए हार मत मानिए बल्कि राज्य के सुसमाचार का ऐलान करते रहिए! चाहे लोग सुनें या ना सुनें, अगर आप वफादारी से प्रचार के काम में लगे रहेंगे तो यहोवा की नज़रों में आपकी सेवकाई सफल साबित होगी। अगर आप जोश के साथ यहोवा का काम कर रहे हैं, तो आपको शर्मिंदा होने की कोई ज़रूरत नहीं।

18. सपन्याह 3:6 की भविष्यवाणी किस तरह पूरी होगी?

18 यहोवा जब न्यायदंड देगा, तो सिर्फ ईसाईजगत ही नाश नहीं होगा। यहोवा पृथ्वी के सभी राष्ट्रों के खिलाफ सज़ा सुनाता है: ‘मैं ने अन्यजातियों को यहां तक नाश किया, कि उनके कोनेवाले गुम्मट उजड़ गए; मैं ने उनकी सड़कों को यहां तक सूनी किया, कि कोई उन पर नहीं चलता; उनके नगर तक नाश हुए।’ (सपन्याह 3:6) यहोवा की इस बात का पूरा होना इतना पक्का है कि यहोवा विनाश के बारे में इस तरह कहता है मानो यह विनाश हो चुका हो। पलिश्‍ती, मोआब और अम्मोन देशों का क्या हुआ? अश्‍शूर की राजधानी नीनवे का क्या हुआ? उनके विनाश से आज दुनिया के राष्ट्रों को सबक सीखना चाहिए। परमेश्‍वर को कभी ठट्टों में नहीं उड़ाया जा सकता।

यहोवा को ढूँढ़ते रहिए

19. हम खुद से कौन-से अहम सवाल पूछ सकते हैं?

19 सपन्याह के दिनों में परमेश्‍वर का प्रकोप उन सभी दुष्ट लोगों पर भड़क उठा था जो ‘सब प्रकार के बुरे बुरे काम यत्न से कर रहे थे।’ (सपन्याह 3:7) हमारे समय में भी वैसा ही होगा। क्या आप यहोवा के दिन के नज़दीक आने का सबूत देख सकते हैं? क्या आप नियमित रूप से यानी हर दिन उसका वचन पढ़कर लगातार ‘यहोवा को ढूँढ़’ रहे हैं? क्या आप परमेश्‍वर के स्तरों के मुताबिक शुद्ध चाल चलते हुए, ‘धर्म को ढूँढ़’ रहे हैं? और क्या आप परमेश्‍वर के सामने दीन होते हैं और उद्धार के लिए उसके द्वारा किए गए इंतज़ामों के अधीन होकर ‘नम्रता को ढूँढ़’ रहे हैं?

20. सपन्याह की भविष्यवाणी पर आधारित आखिरी लेख में हम किन सवालों पर चर्चा करेंगे?

20 अगर हम वफादारी से यहोवा, धर्म और नम्रता को ढूँढ़ते रहें तो हम आज भी ढेरों आशीषें पाने की उम्मीद कर सकते हैं, जी हाँ, इन “अन्तिम दिनों” में भी जबकि हमारे विश्‍वास की परीक्षा हो रही है। (2 तीमुथियुस 3:1-5; नीतिवचन 10:22) मगर हमारे मन में शायद ये सवाल उठ सकते हैं, ‘आज हम, यहोवा के सेवकों को कौन-सी आशीषें मिल रही हैं? सपन्याह की भविष्यवाणी के मुताबिक तेज़ी से आ रहे यहोवा के क्रोध के दिन में शरण पानेवालों को भविष्य में कौन-सी आशीषें मिलेंगी?’

आप क्या जवाब देंगे?

• ‘यहोवा को ढूँढ़ने’ का मतलब क्या है?

• ‘धर्म को ढूंढ़ने’ में क्या-क्या शामिल है?

• हम “नम्रता” को कैसे ढूँढ़ सकते हैं?

• हमें यहोवा, धर्म और नम्रता को ढूँढ़ने में क्यों लगे रहना चाहिए?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 18 पर तसवीर]

क्या आप बाइबल का अध्ययन करने और मन लगाकर प्रार्थना करने के ज़रिए यहोवा को ढूँढ़ रहे हैं?

[पेज 21 पर तसवीर]

यहोवा के क्रोध के दिन से एक बड़ी भीड़ बच जाएगी क्योंकि वह लगातार यहोवा को ढूँढ़ रही है