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क्या आपके लिए सच्ची खुशी पाना मुमकिन है?

क्या आपके लिए सच्ची खुशी पाना मुमकिन है?

क्या आपके लिए सच्ची खुशी पाना मुमकिन है?

जॉर्ज बड़ा ही हँसमुख व्यक्‍ति था। वह सबसे मुस्कुराकर बात करता था और ज़िंदगी को एक अनमोल तोहफा समझकर खुशी-खुशी जीता था। हमेशा खुश रहना और अच्छे की उम्मीद करना उसकी शख्सियत की पहचान बन गई थी। यहाँ तक कि बुढ़ापे में भी तकलीफों के बावजूद उसकी खुशी कम नहीं हुई। अपनी ज़िंदगी की आखिरी घड़ी तक वह एक खुश-मिज़ाज इंसान के तौर पर जाना गया। क्या आप भी जॉर्ज की तरह हमेशा खुश रहते हैं? क्या आप हर नए दिन को बहुमोल समझकर उसका पूरा-पूरा आनंद लेते हैं? या क्या नए दिन का ख्याल आते ही आपका जोश कम हो जाता है या आपके दिल में घबराहट पैदा होने लगती है? क्या कोई बात आपसे आपकी खुशी छीन रही है?

खुशी की परिभाषा यूँ दी गई है: सुख-चैन की ऐसी हालत जो लंबे अरसे तक कायम रहती है। इसकी निशानियाँ हैं, दिली सुकून, अथाह हर्ष और यूँ ही खुश रहने की तमन्‍ना जो इंसान के अंदर स्वाभाविक ही पैदा होती है। मगर क्या ऐसी खुशी पाना वाकई मुमकिन है?

आज समाज में यह धारणा फैल रही है कि इंसान को खुशी तभी मिल सकती है जब वह ज़्यादा-से-ज़्यादा धन का मालिक हो। इसलिए लाखों-करोड़ों लोग अमीर बनने की धुन में दिन-रात एक कर देते हैं। बहुत-से लोग तो रिश्‍ते-नातों और ज़िंदगी के दूसरे अहम कामों को भी नज़रअंदाज़ कर देते हैं। वे धन कमाने के लिए टीलों पर चीटियों की तरह हमेशा यहाँ-वहाँ दौड़ते रहते हैं। उन्हें यह सोचने तक की फुरसत नहीं मिलती कि वे क्या कर रहे हैं। और ना ही वे दूसरों के लिए वक्‍त निकाल पाते हैं। इसलिए लॉस ऐन्जलॆस टाइम्स अखबार की इस रिपोर्ट से कोई ताज्जुब नहीं होता कि “आज हताश लोगों की संख्या बढ़ती जा रही है, और कम उम्र के लोग ही ज़्यादातर इसका [हताशा का] शिकार हो रहे हैं। . . . दवाखानों में आज हताशा दूर करनेवाली दवाइयाँ ही सबसे ज़्यादा बिक रही हैं।” इसके अलावा, करोड़ों लोग नशीली दवाइयाँ लेते हैं या शराब की बोतल के सहारे अपना गम भुलाने की कोशिश करते हैं। कुछ लोग मायूसी के दलदल से निकलने के लिए खरीदारी करने निकल पड़ते हैं और पैसा पानी की तरह बहा देते हैं। ब्रिटेन के द गार्डियन अखबार के मुताबिक एक सर्वे से पता चला कि “हताशा से पीछा छुड़ाने के लिए खरीदारी करनेवालों में स्त्रियाँ अव्वल नंबर पर आती हैं। पुरुषों के मुकाबले स्त्रियों में यह भावना तीन गुना ज़्यादा पाई गई।”

मगर सच्ची खुशी खरीदारी से या शराब की बोतल से नहीं मिलती। और ना ही यह किसी गोली या सिरिंज से या बैंक में बहुत बड़ा खाता होने पर मिल सकती है। खुशी खरीदी नहीं जाती, यह तो मुफ्त में मिलनेवाला एक तोहफा है। मगर सवाल यह है कि यह बेशकीमती तोहफा हमें मिलेगा कहाँ से? आइए इस बारे में हम अगले लेख में देखते हैं।