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सारी ज़िंदगी यहोवा ने मुझे सँभाला

सारी ज़िंदगी यहोवा ने मुझे सँभाला

जीवन कहानी

सारी ज़िंदगी यहोवा ने मुझे सँभाला

फॉरेस्ट ली की ज़ुबानी

जुलाई 4, 1940 की बात है। पुलिस ने हमारे ग्रामोफोन और बाइबल साहित्य हमसे छीन लिए। दूसरा विश्‍व युद्ध चल रहा था। हमारे विरोधियों ने सोचा कि यह अच्छा मौका है। इसलिए उन्होंने हम यहोवा के साक्षियों के काम को गैर-कानूनी घोषित करवाने के लिए कनाडा के नए गवर्नर-जनरल को मनाने की कोशिश की।

मगर हम बिल्कुल भी नहीं घबराए बल्कि कुछ ही समय बाद, जहाँ साहित्य रखा था वहाँ से और साहित्य लेकर प्रचार कार्य जारी रखा। उस वक्‍त पापा ने जो बात कही थी उसे मैं कभी नहीं भूलूँगा। उन्होंने कहा था: “हमें प्रचार करने का हुक्म यहोवा ने दिया है, हम इतनी आसानी से हार माननेवाले नहीं।” उस समय मैं 10 साल का था और बहुत जोशीला था। लेकिन, सेवकाई में निकलने का पापा का अटल इरादा और जोश आज तक मुझे इस बात की याद दिलाता है कि हमारा परमेश्‍वर, यहोवा किस तरह अपने निष्ठावान सेवकों को हमेशा सँभाले रहता है।

सितंबर 1940 में एक बार फिर पुलिस ने ससकाचवन में हमें प्रचार करने से रोका। इस बार उन्होंने हमारा साहित्य ज़ब्त करने के साथ-साथ पापा को भी गिरफ्तार कर लिया, और उन्हें जेल ले गए। अब मम्मी हम चार बच्चों के साथ अकेली रह गई। इस घटना के कुछ ही समय बाद मुझे स्कूल से निकाल दिया गया क्योंकि मैंने बाइबल के मुताबिक ढाले गए अपने विवेक की वजह से झंडे को सलामी देने और राष्ट्र-गीत गाने से इंकार कर दिया था। मगर मैंने कॉरिस्‌पॉन्‌डॅन्स के ज़रिए अपनी पढ़ाई जारी रखी। इससे मुझे यह फायदा हुआ कि मैं अपने रोज़ के कामों में फेरबदल करके प्रचार काम में और भी ज़्यादा हिस्सा लेता था।

सन्‌ 1948 में संस्था ने कहा कि कनाडा के पूर्वी तट के इलाकों में प्रचार करने के लिए पायनियरों यानी यहोवा के साक्षियों में पूर्ण-समय प्रचार करनेवालों की ज़रूरत है। इसलिए मैं नोवा स्कोशिया प्रांत में हैलीफैक्स शहर और प्रिंस एडवर्ड द्वीप के केप वुल्फ में पायनियरिंग करने के लिए निकल पड़ा। उसके अगले साल मुझे, टोरोन्टो में यहोवा के साक्षियों के शाखा दफ्तर में दो हफ्ते काम करने के लिए बुलाया गया। मैं गया तो दो हफ्तों के लिए मगर वहाँ मैंने छः साल सेवा की। वे साल मेरी ज़िंदगी की चंद सुनहरी यादों में से हैं। बाद में मेरी मुलाकात मर्ना से हुई जिसे मेरी तरह यहोवा से प्यार था। दिसंबर 1955 में हम दोनों ने शादी कर ली। फिर हम ऑन्टॆरीयो के मिल्टन शहर में जा बसे और बहुत जल्द वहाँ पर एक नयी कलीसिया भी बन गई। अपने घर के तहखाने को हमने किंगडम हॉल बना दिया था।

और ज़्यादा सेवकाई करने की इच्छा

उसके बाद के सालों में जल्द ही एक-के-बाद-एक हमारे छः बच्चे हुए। हमारी सबसे बड़ी बेटी का नाम मिरियम है, फिर शार्मेन, मार्क, ऐनट, ग्रांट और आखिर में ग्लेन पैदा हुआ। जब मैं काम से घर लौटता तो अकसर अपने नन्हे-मुन्‍नों को अंगीठी के चारों ओर बैठे देखता, और मर्ना उन्हें बाइबल पढ़कर सुना रही होती थी। वह उन्हें बाइबल की कहानियाँ सुनाती और उनके दिल में यहोवा के लिए सच्चा प्यार बिठाने की कोशिश करती। मर्ना ने जिस तरह प्यार से बच्चों की परवरिश करने में मदद दी इसके लिए मैं बहुत शुक्रगुज़ार हूँ, क्योंकि हमारे सभी बच्चों ने बहुत छोटी उम्र में ही बाइबल का अच्छा ज्ञान हासिल कर लिया था।

सेवकाई के लिए पापा के जोश ने मेरे दिलो-दिमाग पर एक गहरी छाप छोड़ी थी। (नीतिवचन 22:6) इसलिए जब 1968 में यहोवा के साक्षियों के परिवारों को सैंट्रल और साउथ अमरीका में जाकर बस जाने और वहाँ प्रचार काम में मदद देने का बुलावा दिया गया तब हमारे परिवार ने भी वहाँ जाना चाहा। उस वक्‍त हमारे बच्चों की उम्र 5 से 13 साल के बीच थी, और हम में से किसी को स्पेनिश भाषा का एक शब्द भी नहीं आता था। दिए गए निर्देशनों के मुताबिक मैंने कई देशों का दौरा किया ताकि वहाँ के हालात के बारे में जान सकूँ। वापस लौटने के बाद हम सब ने मिलकर प्रार्थना के ज़रिए यहोवा से निर्देशन माँगा, और जो चुनाव हमारे सामने थे उनके बारे में हम सब ने बातचीत की। आखिरकार हमने निकारागुआ में जाकर बस जाने का फैसला किया।

निकारागुआ में सेवकाई

अक्टूबर 1970 में हम अपने नए घर में पहुँच गए थे। तीन हफ्तों में ही वहाँ की एक कलीसिया सभा में मुझे एक छोटा-सा भाग पेश करने के लिए कहा गया। मैंने बड़ी मुश्‍किल से किसी तरह अपनी टूटी-फूटी स्पेनिश भाषा में वह भाग पेश किया, और अंत में मैंने पूरी कलीसिया को यह न्यौता दिया कि वे शनिवार के दिन सुबह साढ़े नौ बजे सर्वेसा के लिए हमारे घर आएँ। असल में मैं सर्वेसियो कहना चाहता था जिसका मतलब है, घर-घर का प्रचार काम। मगर मैंने सर्वेसा कहकर सबको बियर पीने के लिए आने का न्यौता दे दिया था। उफ! भाषा सीखना इतना आसान नहीं था।

शुरू-शुरू में मैं अपने हाथ पर यह लिख लेता था कि मुझे घर-घर जाकर लोगों से क्या कहना है। फिर एक घर से दूसरे घर में जाते वक्‍त मैं उसकी प्रैक्टिस कर लेता था। मैं उनसे कहता: “इस किताब की मदद से आपको अपने ही घर पर मुफ्त में बाइबल सिखाई जाएगी।” एक आदमी जिसने मुझसे किताब ली थी वह सभाओं में भी आने लगा। बाद में उसने मुझे बताया कि उसे मेरी बात समझ में नहीं आई थी इसीलिए वह जानकारी पाने के इरादे से सभा में आया था। आगे जाकर वह आदमी यहोवा का साक्षी बन गया। इस बात से साफ ज़ाहिर होता है कि नम्र लोगों के दिल में सच्चाई के बीज बढ़ानेवाला यहोवा ही है, ठीक जैसे प्रेरित पौलुस ने भी यह बात कबूल की थी।—1 कुरिन्थियों 3:7.

हम करीब दो साल तक निकारागुआ की राजधानी, मानॉग्वा में रहे और उसके बाद हमें उस देश के दक्षिणी भाग में जाने के लिए कहा गया। वहाँ हमने रीवॉस की कलीसिया और पास-पड़ोस में दिलचस्पी दिखानेवाले लोगों के छोटे-छोटे समूहों के साथ सेवा की। इन समूहों के पास जाते समय मेरे साथ एक वफादार बुज़ुर्ग भाई, पॆद्रो पेन्ये भी आया करता था। एक समूह लेक निकारागुआ में एक ज्वालामुखी द्वीप पर था और वहाँ सिर्फ यहोवा के साक्षियों का एक ही परिवार रहता था।

हालाँकि वह परिवार गरीब था, मगर फिर भी उन्होंने इस बात के लिए बहुत कदरदानी दिखाई कि हम उनसे मिलने आए थे। जिस शाम हम उनके घर पहुँचे उस वक्‍त उन्होंने हमारे लिए खाना एकदम तैयार रखा हुआ था। हम वहाँ एक हफ्ते तक ठहरे, और इस दौरान दूसरे कई लोगों ने भी हमारे लिए प्यार से भोजन का इंतज़ाम किया। बाइबल के लिए उनके दिल में गहरी श्रद्धा थी। रविवार के दिन जन-भाषण के लिए 101 लोगों को हाज़िर देखकर तो हमारी खुशी का ठिकाना न रहा।

एक और मौके पर मैंने देखा कि किस तरह यहोवा हमें सँभालता है। एक दिन मुझे दिलचस्पी दिखानेवाले लोगों के एक समूह के पास जाना था। वे कोस्टा रीका की सीमा के पास पहाड़ों पर रहते थे। जिस दिन मुझे जाना था उस दिन पॆद्रो मुझे लेने घर आया मगर मैं मलेरिया की वजह से बिस्तर पर पड़ा था। मैंने कहा “पॆद्रो, आज मैं नहीं जा सकता।” उसने अपना हाथ मेरे माथे पर रखते हुए कहा: “तुम्हें तेज़ बुखार है मगर फिर भी तुम्हें आना ही होगा। वहाँ भाई हमारा इंतज़ार कर रहे हैं।” फिर उसने दिल की गहराइयों से एक प्रार्थना की। ऐसी प्रार्थनाएँ मैंने बहुत कम ही सुनी है।

उसके बाद मैंने उससे कहा: “आप जाकर अपने लिए फ्रेस्को (फल का रस) ले आइए। मैं दस मिनट में तैयार हो जाता हूँ।” उस दिन हम जिस इलाके में गए वहाँ साक्षियों के दो परिवार रहते थे। उन्होंने हम दोनों की बहुत अच्छी देखभाल की। अगले दिन हम उनके साथ प्रचार में गए, हालाँकि उस दिन भी मैं बुखार की वजह से कमज़ोरी महसूस कर रहा था। रविवार के दिन 100 से भी ज़्यादा लोगों को हाज़िर देखकर हमारा विश्‍वास कितना मज़बूत हुआ था!

एक बार फिर नई जगह

सन्‌ 1975 में हमारा सातवाँ बच्चा, वॉन पैदा हुआ। उसके अगले साल पैसों की परेशानी की वजह से हमें वापस कनाडा जाना पड़ा। निकारागुआ छोड़ना हमारे लिए इतना आसान नहीं था क्योंकि वहाँ रहते समय हमने सचमुच यह महसूस किया कि यहोवा किस तरह अपनी ताकत देकर हमें सँभालता है। जब हम वहाँ से लौटने पर थे, तब हमारी कलीसिया के इलाके में 500 से ज़्यादा लोग सभाओं में हाज़िर होने लगे थे।

शुरू में जब निकारागुआ में मुझे और मेरी बेटी मिरियम को स्पेशल पायनियर नियुक्‍त किया गया, तो उसने मुझसे पूछा था: “डैडी, अगर आपको कभी वापस कनाडा जाना पड़े, तो क्या आप मुझे यहीं रहने देंगे?” उस समय निकारागुआ छोड़ने का मेरा कोई इरादा नहीं था, इसलिए मैंने उससे कह दिया था: “क्यों नहीं, रानी बिटिया, क्यों नहीं!” जब हमने निकारागुआ छोड़ा तो मिरियम वहीं रही और उसने पूर्ण समय की सेवकाई जारी रखी। बाद में उसकी शादी एन्ड्रू रीड से हो गई। सन्‌ 1984 में वे दोनों गिलियड की 77वीं क्लास में हाज़िर हुए। गिलियड, यहोवा के साक्षियों का मिशनरी स्कूल है जो उन दिनों ब्रुकलिन, न्यू यॉर्क में हुआ करता था। मिरियम आज अपने पति के साथ डोमिनिकन रिपब्लिक में सेवा कर रही है और इस तरह निकारागुआ में अच्छी मिसाल रखनेवाले मिशनरियों द्वारा उसके अंदर पैदा की गई इच्छा को पूरा कर रही है।

इस दरमियान, पापा के उन शब्दों से कि “हम इतनी आसानी से हार माननेवाले नहीं,” प्रचार के लिए मेरे दिल में आग सुलगती रही। इसलिए 1981 तक जब हमने काफी पैसे जमा कर लिए तो वापस सेंट्रल अमरीका लौटे। लेकिन इस बार हम कोस्टा रीका गए। वहाँ सेवा करने के दौरान, हमें कोस्टा रीका ब्राँच के लिए नई बिल्डिंगों के निर्माण काम में हाथ बँटाने के लिए बुलाया गया। लेकिन 1985 में हमारे बेटे ग्रांट को इलाज की ज़रूरत पड़ी और इसलिए हम वापस कनाडा चले गए। ग्लेन, ब्राँच के निर्माण काम के लिए कोस्टा रीका में ही रह गया और शार्मेन और ऐनट भी वहीं स्पेशल पायनियरों के तौर पर सेवा करती रहीं। बचे हम जो कोस्टा रीका छोड़कर आए, हमने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि हम वहाँ वापस नहीं लौटेंगे।

मुसीबतों का सामना करना

सितंबर 17, 1993 के दिन की शुरूआत बहुत अच्छी हुई, हर तरफ धूप खिली हुई थी। मैं अपने बड़े बेटे मार्क के साथ एक छत पाट रहा था। हम दोनों काम करने के साथ-साथ हमेशा की तरह आध्यात्मिक विषयों पर बातें भी कर रहे थे। तभी पता नहीं कैसे अचानक मैं अपना संतुलन खो बैठा और लुढ़ककर छत से नीचे गिर पड़ा। होश आने पर चारों तरफ मुझे सिर्फ तेज़ जलती हुई बत्तियाँ और सफेद कपड़े पहने लोग नज़र आए। मैं अस्पताल के ऐमर्जंसी वार्ड में था।

बाइबल पर विश्‍वास के कारण मेरे मुँह से सबसे पहले ये शब्द निकले: “मुझे खून मत दो, खून मत दो!” (प्रेरितों 15:28, 29) तभी शार्मेन की यह आवाज़ सुनकर मुझे कितनी तसल्ली मिली: “डैडी, चिंता मत कीजिए, हम सब यहीं हैं।” बाद में मुझे पता चला कि डॉक्टरों ने मेरा मैडिकल डॉक्यूमैंट देखा था और इसलिए खून चढ़ाने का मसला उठा ही नहीं था। उस हादसे में मेरी गरदन टूट गई थी और मेरे सारे शरीर को लकवा मार गया था। मैं सांस तक नहीं ले पा रहा था।

अब मैं बिलकुल भी हिल-डुल नहीं पा रहा था इसलिए मुझे पहले से ज़्यादा यहोवा की ताकत की ज़रूरत थी। मुझ पर ट्रॆक्योटॉमी का ऑपरेशन किया गया और साँस लेने के लिए एक नली लगाई गई। लेकिन इस नली की वजह से मेरे वाक्‌ तंतुओं तक हवा पहुँचने का रास्ता बंद हो गया था। इसलिए मैं अब बात नहीं कर सकता था। सिर्फ मेरे हिलते होठों को देखकर लोग समझने की कोशिश करते थे कि मैं क्या कहना चाहता हूँ।

अब तो मेरे इलाज का खर्च तेज़ी से बढ़ता जा रहा था। मेरी पत्नी और लगभग सभी बच्चे पूर्ण-समय की सेवकाई कर रहे थे। इसलिए मैं सोच में पड़ गया कि खर्च उठाने के लिए कहीं उनको पूर्ण समय की सेवकाई न छोड़नी पड़ जाए। लेकिन हमारे बेटे मार्क को एक ऐसा काम मिल गया जिससे सिर्फ तीन महीनों में ही मेरे इलाज का ज़्यादातर खर्च चुका दिया गया। और इस वजह से मेरी पत्नी और मुझे छोड़ बाकी सभी पूर्ण समय की सेवा जारी रख सके।

मुझे शुभकामनाएँ देने के लिए छः देशों से भाई-बहनों ने ढेरों कार्ड और पत्र भेजे, जिनसे अस्पताल में मेरे कमरे की दीवारें भर गई थीं। सचमुच यहोवा खुद अपने हाथों से मुझे थामे हुए था। साढ़े पाँच महीनों तक जब मैं इंटॆनसिव केयर यूनिट में था, तो इस दौरान काफी समय तक कलीसिया के भाई-बहनों ने भी मेरे परिवार के लिए भोजन का प्रबंध किया। हर दिन एक मसीही प्राचीन दोपहर का समय मेरे साथ बिताता था। वह मुझे बाइबल और उस पर आधारित साहित्य पढ़कर सुनाता और कुछ अनुभव बताकर मेरा हौसला मज़बूत करता था। मेरे परिवार के दो सदस्य मेरे साथ कलीसिया की हर सभा की तैयारी करते थे, इसलिए मैं अनमोल आध्यात्मिक भोजन से कभी वंचित न रहा।

जब मैं अस्पताल में ही था, तब मेरे लिए खास सम्मेलन दिन में हाज़िर होने का भी इंतज़ाम किया गया। अस्पताल के स्टाफ ने दिन-भर मेरी देखभाल करने के लिए एक रजिस्टर्ड नर्स और एक रेस्पिरेट्री टॆक्नीशियन को सम्मेलन में भेजा। एक बार फिर अपने मसीही भाई-बहनों के बीच होना कितने आनंद की बात थी! मैं सम्मेलन का वह दिन कभी नहीं भूल सकता कि मुझसे मिलने के लिए किस तरह सैकड़ों भाई-बहन अपनी बारी का इंतज़ार करते हुए कतार में खड़े थे।

अपनी आध्यात्मिकता बनाए रखना

दुर्घटना के करीब एक साल बाद मैं अपने घर लौट सका, हालाँकि अब भी मुझे चौबीसों घंटे देख-भाल की ज़रूरत पड़ती है। एक खास वैन से मुझे घर से मीटिंग ले जाया जाता है, इसलिए मैं ज़्यादातर मीटिंगों में हाज़िर हो पाता हूँ। लेकिन मुझे यह मानना पड़ेगा कि इसके लिए अटल इरादे की ज़रूरत होती है। घर लौटने के बाद से मैं सभी ज़िला अधिवेशनों में हाज़िर हो सका हूँ।

आखिरकार, फरवरी 1997 में मैं अपनी बोलने की शक्‍ति कुछ हद तक दोबारा पा सका। मैं बाइबल पर आधारित अपनी आशा के बारे में अपनी कुछ नर्सों को बताता हूँ और वे बड़े ध्यान से सुनती हैं। एक नर्स ने यहोवा के साक्षी—परमेश्‍वर के राज्य की घोषणा करनेवाले (अँग्रेज़ी), यह पूरी-की-पूरी किताब और वॉच टावर सोसाइटी की दूसरी किताबें मुझे पढ़कर सुनाई हैं। मैं एक लकड़ी के सहारे कंप्यूटर पर टाइपिंग करता हूँ और इस तरह लोगों को चिट्ठियाँ लिखकर उन्हें प्रचार करता हूँ। हालाँकि इस तरह टाइपिंग करना बहुत थकाऊ काम है मगर फिर भी इसके ज़रिए सेवकाई में भाग लेने से मुझे बहुत खुशी मिलती है।

मुझे नसों में बहुत भयानक दर्द महसूस होता है। लेकिन जब मैं दूसरों को बाइबल की सच्चाइयाँ बताता हूँ और जब दूसरे मुझे बाइबल और संस्था की किताबें पढ़कर सुनाते हैं तब मुझे कुछ राहत-सी महसूस होती है। मेरी पत्नी मेरी बहुत मदद करती है। उसके साथ कभी-कभी मैं सड़क पर गवाही देने जाता हूँ और उस वक्‍त जब मुझे मदद की ज़रूरत होती है तो वह मेरी कही बात दूसरों को समझाती है। कई बार मैंने ऑक्ज़लरी पायनियरिंग भी की है। मैं एक मसीही प्राचीन हूँ और इस हैसियत से काम करके मुझे अंदरूनी खुशी महसूस होती है। खासकर, जब मीटिंगों के बाद भाई मुझसे मिलने आते हैं या कभी मेरे घर आते हैं तो मैं उनका हौसला बढ़ाकर उन्हें मज़बूत करता हूँ और तब मुझे बहुत अच्छा लगता है।

मैं यह कबूल करता हूँ कि मैं बहुत जल्द हताश हो जाता हूँ। इसलिए जब कभी मैं निराश हो जाता हूँ तो मैं तुरंत प्रार्थना करता हूँ ताकि मेरी खुशी लौट आए। रात-दिन मैं दुआ करता हूँ कि यहोवा मुझे यूँ ही सँभालता रहे। कभी किसी की चिट्ठी मिल जाती है या कोई खुद मुझसे मिलने आ जाता है जिससे मेरे मन को तसल्ली मिलती रहती है। प्रहरीदुर्ग या सजग होइए! पत्रिकाएँ पढ़ने से भी मेरे मन में अच्छे-अच्छे विचार भर जाते हैं। अलग-अलग नर्सें मुझे ये पत्रिकाएँ पढ़कर सुनाती हैं। दुर्घटना के बाद से मैं पूरी बाइबल टेप पर सात बार सुन चुका हूँ। ये कुछेक तरीके हैं जिनसे यहोवा ने मुझे सँभाले रखा है।—भजन 41:3.

मेरे जीवन में आए इस बदलाव से मुझे इस बात पर मनन करने के लिए काफी वक्‍त मिला कि किस तरह हमारा महान उपदेशक, यहोवा हमें जीवन पाने के लिए शिक्षा देता है। वह अपनी इच्छा और मकसद के बारे में हमें सही-सही ज्ञान देता है, एक ऐसी सेवकाई देता है जिससे हमें खुशी मिलती है, सुखी पारिवारिक जीवन का राज़ क्या है इस बारे में सलाह देता है और मुश्‍किलों से निपटने की समझ भी देता है। यह यहोवा की आशीष है कि मुझे एक वफादार और भली पत्नी मिली है। मेरे बच्चों ने भी हमेशा मेरा साथ निभाया है और मैं बहुत खुश हूँ कि सभी ने पूर्ण समय की सेवा की है। मार्च 11, 2000 के दिन हमारे बेटे मार्क और उसकी पत्नी एलिसन, गिलियड स्कूल की 108वीं क्लास से ग्रैजुएट हुए। उन्हें प्रचार के लिए निकारागुआ भेजा गया। उनके ग्रैजुएशन पर मैं और मेरी पत्नी भी हाज़िर हो सके थे। मैं सच्चे दिल से कह सकता हूँ कि मुश्‍किलों ने मेरी ज़िंदगी तो बदल दी है मगर मेरा दिल नहीं बदला है।—भजन 127:3, 4.

मैं यहोवा का धन्यवाद करता हूँ कि उसने मुझे बुद्धि और समझ दी ताकि मैं अपनी आध्यात्मिक विरासत अपने परिवार को भी दे सकूँ। यह देखकर मेरा विश्‍वास मज़बूत होता है और मुझ में जोश भर जाता है कि मेरे बच्चों में भी अपने सृष्टिकर्ता की सेवा करने का वैसा ही जोश है जैसा मेरे पापा में था। उन्होंने कहा था, “हमें प्रचार करने का हुक्म यहोवा ने दिया है, हम इतनी आसानी से हार माननेवाले नहीं।” इसमें कोई शक नहीं कि सारी ज़िंदगी यहोवा ने ही मुझे और मेरे परिवार को सँभाला है।

[पेज 24 पर तसवीर]

हमारी हाउस कार जिसे हम पायनियरिंग के लिए इस्तेमाल करते थे, उसके पास पापा, बड़े भाई और दीदी के साथ मैं। मैं दायीं तरफ हूँ

[पेज 26 पर तसवीर]

अपनी पत्नी मर्ना के साथ

[पेज 26 पर तसवीर]

हमारे परिवार का यह फोटो हमने हाल ही में खींचा था

[पेज 27 पर तसवीर]

मैं आज भी खतों के ज़रिए साक्षी देता हूँ