आश्चर्यकर्म करनेवाले की ओर ध्यान दीजिए!
आश्चर्यकर्म करनेवाले की ओर ध्यान दीजिए!
“चुपचाप खड़ा रह, और ईश्वर के आश्चर्यकर्मों का विचार कर।”—अय्यूब 37:14.
1, 2. सन् 1922 में कौन-सी अद्भुत खोज की गयी और उसके लिए कैसी प्रतिक्रिया दिखायी गई?
एक पुरातत्वविज्ञानी और एक अंग्रेज़ लॉर्ड, बरसों से किसी खज़ाने की तलाश में एक-साथ काम कर रहे थे। आखिरकार 26 नवंबर, 1922 को राजाओं की मशहूर घाटी में, जहाँ मिस्र के फिरौनों को दफनाया जाता था, पुरातत्वविज्ञानी हॉवर्ड कार्टर और लॉर्ड कार्नावॉन के हाथ खज़ाना लगा। वह खज़ाना तुंतआखमन फिरौन की कब्र थी। उन्हें एक सीलबंद दरवाज़ा नज़र आया जिसमें उन्होंने ड्रिल से छेद किया। फिर कार्टर ने छेद में से मोमबत्ती अंदर डाली और अंदर की दुनिया देखने लगा।
2 कार्टर बाद में इसके बारे में यूँ कहता है: “उधर लॉर्ड कार्नावॉन की जिज्ञासा बढ़ती जा रही थी, इसलिए वे चुप नहीं रह सके और पूछ बैठे, ‘कुछ दिखायी दिया?’ जवाब में मेरे मुँह से बस इतना निकला, ‘जी हाँ, बहुत ही आश्चर्यजनक चीज़ें।’” उस कब्र में हज़ारों दूसरी कीमती चीज़ों के साथ, ठोस सोने का एक ताबूत भी था। उनमें से कुछ “आश्चर्यजनक चीज़ें” शायद आपने तसवीरों में या म्यूज़ियम में भी देखी होंगी। मगर, म्यूज़ियम की ये चीज़ें चाहे कितनी ही अद्भुत क्यों न हों, उनका आपकी ज़िंदगी से कोई ताल्लुक नहीं है। तो क्यों न हम ऐसी अद्भुत या आश्चर्यजनक चीज़ों की चर्चा करें जिनका यकीनन हमारी ज़िंदगी से ताल्लुक है और वे हमारे लिए महत्त्व भी रखती हैं?
3. आश्चर्यजनक चीज़ों के बारे में ऐसी जानकारी कहाँ मिलती है जिससे हम सभी को फायदा हो सकता है?
3 उदाहरण के लिए, आइए एक ऐसे व्यक्ति पर विचार करें जो कई सदियों पहले इस ज़मीन पर जीया था। वह किसी भी फिल्मी हीरो, खिलाड़ी या राजा-महाराजाओं से बढ़कर था। कहा जाता है कि पूर्वी देशों के रहनेवालों में वह सबसे बड़ा था। शायद आपने उसे पहचान लिया हो। जी हाँ आप उसका नाम जानते हैं, वह है अय्यूब। उसके बारे में तो बाइबल में एक पूरी किताब भी लिखी गयी थी। मगर अय्यूब के समय में रहनेवाले एलीहू नामक एक नौजवान ने अय्यूब की गलती को सुधारने के लिए उसे ताड़ना देना ज़रूरी समझा। एलीहू ने बताया कि अय्यूब अपने और अपने दोस्तों की बातों पर हद-से-ज़्यादा ध्यान दे रहा था। अय्यूब के 37वें अध्याय में हम इसके अलावा और भी खास और बुद्धिमानी से भरी सलाह पाते हैं, जिससे हममें से हरेक को बहुत ही फायदा हो सकता है।—अय्यूब 1:1-3; 32:1–33:12.
4. अय्यूब 37:14 में लिखी बात एलीहू को कब कहनी पड़ी?
4 अय्यूब के तीन दोस्त जो सिर्फ नाम के दोस्त थे, उनका मानना था कि अय्यूब ने अपनी सोच में या किसी काम में भारी गलती की है और इसलिए उन्होंने उसे लंबे-चौड़े भाषण दे डाले। (अय्यूब 15:1-6, 16; 22:5-10) इस दौरान एलीहू धीरज से उनकी बातें सुनता रहा। फिर उनकी बात खत्म होने पर उसने बुद्धि और गहरी समझ के साथ बोलना शुरू किया। उसने बहुत-सी अनमोल बातें कहीं, लेकिन ज़रा उसकी इस खास बात पर ध्यान दीजिए। उसने कहा: “हे अय्यूब! इस पर कान लगा और सुन ले; चुपचाप खड़ा रह, और ईश्वर के आश्चर्यकर्मों का विचार कर।”—अय्यूब 37:14.
एक हस्ती जिसने सारे काम किए
5. एलीहू ने ‘परमेश्वर के जिन आश्चर्यकर्मों’ की बात की, उसमें क्या-क्या शामिल है?
5 ध्यान दीजिए कि एलीहू ने यहाँ अय्यूब को अपने आप पर, या खुद एलीहू पर या फिर दूसरे इंसानों पर ध्यान देने के लिए नहीं कहा। बल्कि उसने अक्लमंदी दिखाते हुए अय्यूब को, साथ ही हमें भी उकसाया कि परमेश्वर यहोवा के आश्चर्यकर्मों पर ध्यान दें। शायद आपको पहले ही बहुत सी चिंताएँ सता रही हैं, जैसे कि स्वास्थ्य, पैसे, भविष्य, परिवार, साथ काम करनेवालों और पड़ोसियों की चिंता। इन सबके होते हुए भी आपको परमेश्वर के आश्चर्यकर्मों पर ध्यान क्यों देना चाहिए? आपके हिसाब से ‘परमेश्वर के आश्चर्यकर्मों’ में क्या-क्या शामिल है? यह बिलकुल साफ नज़र आता है कि परमेश्वर यहोवा के आश्चर्यकर्मों में उसकी अपार बुद्धि और पूरी सृष्टि पर उसका अधिकार शामिल है। (नहेमायाह 9:6; भजन 24:1; 104:24; 136:5, 6) इसे अच्छी तरह समझने के लिए यहोशू की किताब में लिखी एक बात पर गौर कीजिए।
6, 7. (क) मूसा और यहोशू के दिनों में यहोवा ने कौन-से आश्चर्यकर्म किए? (ख) अगर आपने मूसा और यहोशू के दिनों में किया गया कोई आश्चर्यकर्म देखा होता तो आप पर उसका कैसा असर होता?
6 हम जानते हैं कि यहोवा मिस्र पर विपत्तियाँ लाया था और उसने लाल समुद्र को दो हिस्सों में बाँट दिया था ताकि मूसा इस्राएलियों को पार ले जाकर उन्हें आज़ादी दिला सके। (निर्गमन 7:1–14:31; भजन 106:7, 21, 22) ऐसी ही एक घटना का ज़िक्र हमें यहोशू के तीसरे अध्याय में मिलता है। मूसा के बाद यहोशू इस्राएलियों का अगुवा बना और उसे परमेश्वर के लोगों को वादा किए हुए देश में ले जाना था। लेकिन उन्हें भी एक नदी पार करनी थी। यहोशू ने कहा: “तुम अपने आप को पवित्र करो; क्योंकि कल के दिन यहोवा तुम्हारे मध्य में आश्चर्यकर्म करेगा।” (यहोशू 3:5) यहोवा कौन-सा आश्चर्यकर्म करनेवाला था?
7 वृत्तांत बताता है कि यहोवा ने यरदन नदी में से रास्ता बनाया ताकि हज़ारों की तादाद में इस्राएली स्त्री, पुरुष और बच्चे सूखी ज़मीन पर चलकर पार निकल सकें। (यहोशू 3:7-17) अगर उस समय हम भी वहाँ होते और अपनी आँखों से देखते कि किस तरह नदी में से रास्ता बनाया गया और लोग सही-सलामत नदी पार कर रहे हैं, तो हम भी उस आश्चर्यकर्म को देखकर दंग रह जाते! उस घटना से साफ ज़ाहिर हुआ कि परमेश्वर का अपनी सृष्टि पर पूरा नियंत्रण है। लेकिन ठीक अभी, यानी हमारे समय में भी वह ऐसे ही कई आश्चर्यकर्म कर रहा है। उनमें से कुछ आश्चर्यकर्म कौन-से हैं और हमें उन पर क्यों ध्यान देना चाहिए, यह जानने के लिए आइए हम अय्यूब 37:5-7 पर गौर करें।
8, 9. अय्यूब 37:5-7 किन आश्चर्यकर्मों के बारे में बताता है, लेकिन हमें उन पर क्यों ध्यान देना चाहिए?
8 एलीहू कहता है: “ईश्वर गरजकर अपना शब्द अद्भुत रीति से सुनाता है, और बड़े-बड़े काम करता है जिनको हम नहीं समझते।” जब एलीहू ने कहा कि परमेश्वर “अद्भुत रीति से” काम करता है, तो उसके मन में कौन-सी बात थी? दरअसल एलीहू बर्फ और मूसलाधार बारिश का ज़िक्र कर रहा था। यह सच है कि इससे एक किसान की खेती-बाड़ी का काम ठप्प पड़ जाता है। उस समय किसान को परमेश्वर के आश्चर्यकर्मों के बारे में सोचने का मौका मिलता है। हालाँकि हम शायद किसान न हों, फिर भी बारिश और बर्फ का हम सभी पर असर पड़ सकता है। हम जहाँ रहते हैं उसके हिसाब से बर्फ और बारिश से हमारे काम भी ठप्प पड़ सकते हैं। क्या हम भी यह विचार करने के लिए वक्त निकालते हैं कि ये किसके हाथ के करिश्मे हैं, और इनका क्या मतलब है? क्या आपने कभी इन पर ध्यान दिया है?
9 जब हम अय्यूब का अध्याय 38 पढ़ते हैं तो यह बात गौर करने लायक है कि परमेश्वर यहोवा खुद इन बातों पर चर्चा शुरू करता है। वह अय्यूब से कुछ सवाल पूछता है, जो अय्यूब को सोचने पर मजबूर कर देते हैं। हालाँकि वे सवाल हमारे सिरजनहार ने अय्यूब से पूछे थे, मगर इसमें शक नहीं कि उनका हमारे नज़रिए से, और हमारी आज की और भविष्य की ज़िंदगी से गहरा ताल्लुक है। इसलिए आइए देखें कि परमेश्वर ने कौन-से सवाल पूछे और यह सोचें कि उनका क्या मतलब है। जी हाँ, आइए हम वही करें जो अय्यूब 37:14 हमसे करने का आग्रह करता है।
10. अय्यूब अध्याय 38 का हम पर क्या असर होना चाहिए और इससे कौन-से सवाल खड़े होते हैं?
10 अध्याय 38 इस तरह शुरू होता है: “यहोवा ने अय्यूब को आँधी में से यूं उत्तर दिया, यह कौन है जो अज्ञानता की बातें कहकर युक्ति को बिगाड़ना चाहता है? पुरुष की नाईं अपनी कमर बान्ध ले, क्योंकि मैं तुझ से प्रश्न करता हूं, और तू मुझे उत्तर दे।” (अय्यूब 38:1-3) इन बातों ने अय्यूब को आगे होनेवाली बातों के लिए तैयार किया। इससे अय्यूब को इस सच्चाई का एहसास हुआ कि वह इस विश्व के सिरजनहार यहोवा परमेश्वर के सामने खड़ा है, जिसे उसको लेखा देना है। उसी तरह अच्छा होगा कि हम और हमारे संगी मनुष्य भी इस बात को समझें। फिर जिसका ज़िक्र पहले एलीहू ने किया था, उसी विषय पर परमेश्वर कुछ ऐसा कहता है: “जब मैं ने पृथ्वी की नेव डाली, तब तू कहां था? यदि तू समझदार हो तो उत्तर दे। उसकी नाप किस ने ठहराई, क्या तू जानता है उस पर किस ने सूत खींचा? उसकी नेव कौन सी वस्तु पर रखी गई, वा किस ने उसके कोने का पत्थर बिठाया?”—अय्यूब 38:4-6.
11. जब हम अय्यूब 38:4-6 पढ़ते हैं तो हमें किस नतीजे पर पहुँचना चाहिए?
11 जब पृथ्वी बनायी गई, तब अय्यूब या हम खुद कहाँ थे? क्या हमने इस पृथ्वी का डिज़ाइन तैयार किया था, और फिर उस डिज़ाइन के मुताबिक रूलर लेकर मानो उसकी लंबाई-चौड़ाई तय की थी? बेशक नहीं! इंसान का तो उस वक्त कहीं नामो-निशान ही नहीं था। परमेश्वर पृथ्वी के बारे में इस तरह बोलता है मानो वह कोई इमारत हो: “किस ने उसके कोने का पत्थर बिठाया?” हम जानते हैं कि पृथ्वी को सूरज से बिलकुल सही दूरी पर रखा गया है ताकि इंसान पृथ्वी पर जी सकें और फूले-फलें। और पृथ्वी का आकार भी बिलकुल सही है। अगर पृथ्वी का आकार ज़रा भी बड़ा होता तो हाइड्रोजन गैस पृथ्वी के वातावरण से बाहर नहीं जा पाती और इस वजह हमारे ग्रह पर जीवन नहीं होता। इससे साफ ज़ाहिर है कि किसी ने पृथ्वी के “कोने का पत्थर” बिलकुल सही जगह पर बिठाया था। क्या इस काम का श्रेय अय्यूब को मिलना चाहिए या हममें से किसी को? या फिर यहोवा परमेश्वर को?—नीतिवचन 3:19; यिर्मयाह 10:12.
इंसान इनका क्या जवाब देगा?
12. अय्यूब 38:6 में पूछा गया सवाल हमारा ध्यान किस बात की ओर खींचता है?
12 परमेश्वर यह सवाल भी पूछता है: “उसकी नेव कौन सी वस्तु पर रखी गई?” क्या यह एक विचार करने लायक सवाल नहीं है? हमने शायद गुरुत्वाकर्षण बल के बारे में सुना होगा, जिससे अय्यूब वाकिफ नहीं था। हममें से बहुत-से लोग जानते हैं कि सूरज के गुरुत्वाकर्षण बल की बदौलत हमारी पृथ्वी अपनी जगह पर बनी रहती है या यूँ कहें कि वह अपनी नींव पर टिकी रहती है। लेकिन आज तक क्या कोई इस गुरुत्वाकर्षण बल को पूरी तरह से समझ सका है?
13, 14. (क) गुरुत्वाकर्षण बल के बारे में क्या कबूल किया जाना चाहिए? (ख) अय्यूब 38:6 में बताई गई बात का हम पर क्या असर होना चाहिए?
13 हाल ही में छपी एक किताब, दी यूनिवर्स एक्सप्लेंड में यह माना गया कि ‘हालाँकि गुरुत्वाकर्षण बल के बारे में बहुत-से लोगों ने सुना है, लेकिन कुदरत के इस बल को बहुत कम लोगों ने समझा है।’ किताब आगे कहती है: “गुरुत्वाकर्षण बल अंतरिक्ष में एक जगह से दूसरी जगह पलक झपकते ही सफर कर लेता है मगर ऐसा कोई माध्यम नज़र नहीं आता जिसके ज़रिए यह दूसरे ग्रहों तक पहुँचता है। लेकिन, हाल के सालों में भौतिकविज्ञानियों ने यह अंदाज़ा लगाया है कि यह बल तरंगों के रूप में एक जगह से दूसरी जगह पहुँचता है और ये तरंगें छोटे-छोटे कणों से मिलकर बनी होती हैं, जिन्हें ग्रैवीटोन्स कहा जाता है . . . मगर कोई भी दावे के साथ यह नहीं कह सकता कि ये कण होते भी हैं या नहीं।” तो आप ही सोचिए, आखिर यह किताब क्या कहना चाहती है।
14 यहोवा ने अय्यूब से ये सारे सवाल करीब 3,000 साल पहले किए थे और तब से विज्ञान ने काफी तरक्की की है। लेकिन आज तक ना तो हम और ना ही कोई बड़ा भौतिकविज्ञानी गुरुत्वाकर्षण बल के बारे में पूरी तरह से समझा सका है जिससे हमारी पृथ्वी अपनी कक्षा में ठीक जगह टिकी रहती है और पृथ्वी पर जीवन संभव होता है। (अय्यूब 26:7; यशायाह 45:18) यह सब कुछ बताने का हमारा मकसद यह नहीं कि आप गुरुत्वाकर्षण के बारे में गहराई से खोज-बीन करने लगें। दरअसल हम यह बताना चाहते हैं कि परमेश्वर के सिर्फ एक आश्चर्यकर्म पर ध्यान देने से ही हमें एहसास होने लगता है कि हम यहोवा की बराबरी कभी नहीं कर सकते। क्या आप उसकी अपार बुद्धि और अथाह ज्ञान के बारे में सोचकर दंग नहीं रह जाते, और क्या इससे आपके दिल में यहोवा के मकसद को और ज़्यादा जानने की इच्छा पैदा नहीं होती?
15-17. (क) अय्यूब 38:8-11 में किस ओर हमारा ध्यान खींचा गया और उससे कौन-से सवाल उठते हैं? (ख) समुद्र के बारे में और पृथ्वी पर उसके बँटवारे के बारे में जितना ज्ञान हमारे पास है, उससे क्या कबूल किया जाना चाहिए?
15 सिरजनहार अपने सवालों का सिलसिला जारी रखता है: “जब समुद्र ऐसा फूट निकला मानो वह गर्भ से फूट निकला, तब किस ने द्वार मूंदकर उसको रोक दिया; जब कि मैं ने उसको बादल पहिनाया और घोर अन्धकार में लपेट दिया, और उसके लिये सिवाना बान्धा, और यह कहकर बेंड़े और किवाड़े लगा दिए, कि यहीं तक आ, और आगे न बढ़, और तेरी उमंडनेवाली लहरें यहीं थम जाएं?”—अय्यूब 38:8-11.
16 यहाँ जो समुद्र को रोकने की बात की गई है, उसमें महाद्वीप, महासागर और ज्वार-भाटा भी शामिल हैं। कितने अरसे से इंसान इनके बारे में जानता है और अध्ययन करता आया है? हज़ारों सालों से और पिछली सदी में तो इन पर और भी गहराई से अध्ययन किया गया है। तो आप शायद अंदाज़ा लगाएँ कि अब तक तो इनके बारे में सब कुछ ठीक-ठीक समझ लिया गया होगा। लेकिन इस 2001 के साल में भी, अगर आप इस विषय की जाँच करने के लिए बड़ी-बड़ी लाइब्रेरियों में जाएँ या इंटरनॆट की दुनिया में छान-बीन करें तो आपको क्या मिलेगा?
17 दुनिया भर की जानकारी का भंडार, यानी एक इन्साइक्लोपीडिया कबूल करती है: “हमारी इस पृथ्वी पर महाद्वीपों, महासागरों, पहाड़ों और नदियों का बँटवारा कैसे किया गया है, यह समझना और समझाना वैज्ञानिकों के बस की बात नहीं है।” फिर यही इन्साइक्लोपीडिया ऐसे चार तरीके बताती है जिनसे शायद यह बँटवारा हुआ हो। वह कहती है कि ये तरीके “बहुत सारे हाइपोथीसिस में से कुछ ही हैं।” आपको शायद मालूम हो कि हाइपोथीसिस का मतलब है, “ऐसी जानकारी जिसका कोई ठोस सबूत नहीं दिया जा सकता।”
18. अय्यूब 38:8-11 को पढ़कर आप किस नतीजे पर पहुँचते हैं?
18 अय्यूब 38:8-11 में पूछे गए सवाल क्या आज भी वाजिब नहीं हैं? बेशक हमारे पृथ्वी-ग्रह से जुड़ी हर चीज़ को व्यवस्थित रूप से रखने का श्रेय हममें से किसी को नहीं जाता। हमने चाँद की स्थिति निर्धारित नहीं की जिससे कि ज्वार-भाटा पैदा होता है। और लहरों का पानी आमतौर पर समुद्र-तट पर या अगर हम समुद्र-तट के करीब रहते हैं तो हम पर हावी नहीं होता। आप जानते हैं कि यह सब किसने किया। जी हाँ, आश्चर्यकर्म करनेवाले ने यह सब किया है।—भजन 33:7; 89:9; नीतिवचन 8:29; प्रेरितों 4:24; प्रकाशितवाक्य 14:7.
यहोवा के कामों के लिए उसकी महिमा कीजिए
19. अय्यूब 38:12-14 में काव्यात्मक ढंग में जो बात लिखी है वह सृष्टि की कौन-सी हकीकत की ओर हमारा ध्यान खींचती है?
19 अय्यूब 38:12-14 में पृथ्वी की परिक्रमा के बारे में जो बताया गया है, उसका श्रेय भी इंसान नहीं ले सकते। इस परिक्रमा की बदौलत ही हर दिन हम एक नई सुबह देखते हैं, जो अपने आप में एक खूबसूरत नज़ारा होती है। जैसे-जैसे सूरज उदय होता है, हमारे ग्रह की हर चीज़ साफ नज़र आने लगती है, और यह एक मोहर की तरह पृथ्वी पर अपनी छाप छोड़ता है। जब हम पृथ्वी के घूमने की गति पर गौर करते हैं, तो यह देखकर दंग रह जाते हैं कि पृथ्वी बहुत तेज़ रफ्तार में चक्कर नहीं काटती। और आप अनुमान लगा सकते हैं कि अगर ऐसा हुआ तो यह कितना विनाशकारी होगा। ना ही यह इतनी धीमी रफ्तार में चक्कर लगाती है कि दिन और रात बहुत लंबे हों और गर्मी और सर्दी बहुत तेज़ पड़े और पृथ्वी पर मनुष्यों का जीवन असंभव हो जाए। तो वाकई, इस बात के लिए हमें परमेश्वर का एहसानमंद होना चाहिए कि पृथ्वी की परिक्रमा को तय करने का काम, इंसान नहीं बल्कि खुद परमेश्वर करता है।—भजन 148:1-5.
20. अय्यूब 38:16,18 में पूछे गए सवालों का आप क्या जवाब देंगे?
20 अब कल्पना कीजिए, यहोवा आपसे ये सवाल पूछता: “क्या तू कभी समुद्र के सोतों तक पहुंचा है, वा गहिरे सागर की थाह में कभी चला फिरा है?” सच पूछो तो इसका जवाब देना किसी समुद्र विज्ञानी के भी बस की बात नहीं! “क्या तू ने पृथ्वी की चौड़ाई को पूरी रीति से समझ लिया है? यदि तू यह सब जानता है, तो बतला दे।” (अय्यूब 38:16, 18) क्या आपने दुनिया के सभी या ज़्यादातर इलाके देखे हैं? हमारी पृथ्वी की अलग-अलग खूबसूरत जगहों और उनकी अद्भुत चीज़ों पर ध्यान देने के लिए ना जाने हमें कितनी ज़िंदगियाँ जीनी पड़ें? और अगर ऐसा हो तो वो समय क्या ही हैरतअंगेज़ समय होगा!
21. (क) अय्यूब 38:19 के सवालों से विज्ञान की दुनिया के कौन-से विचार सामने आते हैं? (ख) प्रकाश के बारे में हकीकत जानकर हमें क्या करने के लिए प्रेरित होना चाहिए?
21 अब अय्यूब 38:19 में दिए गए इन गंभीर सवालों पर गौर कीजिए: “उजियाले के निवास का मार्ग कहां है, और अन्धियारे का स्थान कहां है?” आपने शायद सुना हो कि लंबे अरसे तक वैज्ञानिक यह मानते थे कि प्रकाश, तालाब की जल-तरंगों की तरह यात्रा करता है। लेकिन 1905 में, एल्बर्ट आइंस्टीन ने बताया था कि दरअसल प्रकाश, ऊर्जा के कणों के रूप में यात्रा करता है। लेकिन क्या आइंस्टीन की यह बात एकदम सही थी? हाल ही में एक इन्साइक्लोपीडिया में यह पूछा गया: “प्रकाश एक तरंग है या एक कण?” फिर जवाब दिया गया: “ज़ाहिर है कि [प्रकाश] दोनों तो हो नहीं सकता क्योंकि [तरंग और कणों] की बनावट में ज़मीन-आसमान का फर्क है। सो यह जवाब बिलकुल सही है कि प्रकाश न तो तरंग है और न ही कण।” भले ही इंसान परमेश्वर के इस आश्चर्यकर्म के बारे में ठीक-ठीक नहीं समझा सकता, मगर एक बात तो सच है कि सूरज से निकलनेवाले प्रकाश से हमें गर्मी (सीधे, या किसी दूसरे तरीके से) ज़रूर मिलती है। हमें भोजन और ऑक्सीजन भी इसीलिए मिलते हैं क्योंकि पेड़-पौधे सूरज की रोशनी से फल, सब्ज़ी और ऑक्सीजन पैदा करते हैं। प्रकाश की वजह से ही हम पढ़ सकते हैं, अपने अज़ीज़ों का चेहरा देख सकते हैं, सूर्यास्त की लाली को निहार सकते हैं, और भी न जाने क्या-क्या कर सकते हैं। इन सबका आनंद लेते वक्त क्या हमें यह कबूल नहीं करना चाहिए कि ये सब यहोवा के ही आश्चर्यकर्म हैं?—भजन 104:1, 2; 145:5; यशायाह 45:7; यिर्मयाह 31:35.
22. प्राचीन समय के दाऊद ने परमेश्वर के आश्चर्यकर्म के प्रति कैसा रवैया दिखाया?
22 हम यहोवा के आश्चर्यकर्मों पर क्या सिर्फ इसलिए ध्यान दे रहे हैं ताकि हम उनसे इतने प्रभावित हो जाएँ कि हम यहोवा से थर-थर काँपने लगें और हमारी ज़बान ही बंद हो जाए? बिलकुल नहीं। प्राचीन समय के एक भजनहार दाऊद ने यह बात मानी कि परमेश्वर के सभी कामों को समझना या समझाना असंभव है। उसने लिखा: ‘हे मेरे परमेश्वर यहोवा, तू ने बहुत से काम किए हैं! जो आश्चर्यकर्म तू करता है वह बहुत से हैं; मैं तो चाहता हूं कि खोलकर उनकी चर्चा करूं, परन्तु उनकी गिनती नहीं हो सकती।’ (भजन 40:5) बेशक, उसके इस तरह कहने का मतलब यह नहीं था कि वह उन महान कामों के बारे में कुछ नहीं बताएगा और अपनी ज़बान बंद कर लेगा। दाऊद वाकई में चुप नहीं रहा, जैसा कि हमें उसके इस संकल्प से पता चलता है जो उसने भजन 9:1 में दर्ज़ किया: “हे यहोवा परमेश्वर मैं अपने पूर्ण मन से तेरा धन्यवाद करूंगा; मैं तेरे सब आश्चर्य कर्मों का वर्णन करूंगा।”
23. परमेश्वर के आश्चर्यकर्मों के बारे में जानकर आप कैसा महसूस करते हैं और आप दूसरों को कैसे मदद दे सकते हैं?
23 क्या हमारा रवैया भी ऐसा ही नहीं होना चाहिए? परमेश्वर ने जो महान काम किए हैं और जो वह भविष्य में करेगा, उनके बारे में जानकर क्या हमें दूसरों को बताने के लिए प्रेरित नहीं होना चाहिए? जवाब बिलकुल साफ है—हमें “अन्य जातियों में उसकी महिमा का, और देश देश के लोगों में उसके आश्चर्यकर्मों का वर्णन” करना चाहिए। (भजन 96:3-5) जी हाँ, परमेश्वर के आश्चर्यकर्मों के बारे में हमने जो सीखा है उसके बारे में दूसरों को बताकर हमें कदरदानी दिखानी चाहिए। अगर कुछ लोग ऐसे समाज में पले-बढ़े हैं जहाँ लोग सिरजनहार में विश्वास नहीं रखते, लेकिन अगर हम अपने सृष्टिकर्ता में विश्वास रखते हैं और उन्हें उसके बारे में सही-सही जानकारी देते हैं तो शायद उनकी भी आँखें खुल जाएँगी और वे परमेश्वर के अस्तित्त्व पर विश्वास करने लगेंगे। और इससे भी बढ़कर वे आश्चर्यकर्म करनेवाले परमेश्वर यहोवा के बारे में जिसने “सब वस्तुएं सृजीं” हैं, और ज़्यादा सीखने और उसकी सेवा करने के लिए प्रेरित होंगे।—प्रकाशितवाक्य 4:11.
आप कैसे जवाब देंगे?
• अय्यूब 37:14 में जो सलाह दी गई है वह परमेश्वर के कौन-से कामों के बारे में सोचने के लिए उकसाती है?
• वो कौन-सी कुछ खास बातें हैं जो अय्यूब के 37 और 38 अध्यायों में बताई गई हैं और जिन्हें विज्ञान भी पूरी तरह नहीं समझा सकता?
• परमेश्वर के आश्चर्यकर्मों के बारे में आप कैसा महसूस करते हैं और यह आपको क्या करने के लिए उकसाते हैं?
[अध्ययन के लिए सवाल]
[पेज 7 पर तसवीर]
समुद्र के द्वार को किसने मूंदकर रोक दिया है?
[पेज 7 पर तसवीर]
कौन है जिसने परमेश्वर द्वारा बनाई गई धरती की हर खूबसूरत जगह की सैर की है?