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एक-दूसरे की परवाह करनेवालों का अंतर्राष्ट्रीय भाईचारा

एक-दूसरे की परवाह करनेवालों का अंतर्राष्ट्रीय भाईचारा

एक-दूसरे की परवाह करनेवालों का अंतर्राष्ट्रीय भाईचारा

जहाँ भी नज़र दौड़ाओ आपको इंसानों की ही भीड़ नज़र आएगी। उनमें बहुत-से बूढ़े हैं, कुछ तो इतने कमज़ोर हैं कि चल भी नहीं सकते। कुछ ऐसी स्त्रियाँ हैं जो गर्भवती हैं। और ऐसे जवान जोड़े हैं जिनके साथ नन्हे-मुन्‍ने बच्चे हैं। और स्त्री, पुरुष और बच्चे, ये सभी शरणार्थी हैं। इन्हें गृह-युद्ध, प्राकृतिक विपत्ति या दूसरे हालात की वजह से मजबूरन अपना घर-बार छोड़कर पड़ोसी देश में शरण लेनी पड़ी। कुछ लोगों को तो बार-बार अपना घर छोड़कर भागना पड़ा है। जब उन्हें गृह-युद्ध या प्राकृतिक विपत्ति का पहला अंदेशा होता है, तो वे झटपट घर से कुछ ज़रूरी चीज़ें उठाकर अपने बाल-बच्चों समेत किसी सुरक्षित जगह पर आसरा पाने के लिए निकल पड़ते हैं। और जब हालात सुधरते हैं, तो कई शरणार्थी फिर से अपने देश लौटकर घर बनाते और नये सिरे से ज़िंदगी शुरू करते हैं।

कुछ सालों से केंद्रीय अफ्रीकी गणराज्य ने कई देशों के शरणार्थियों के लिए अपने देश का दरवाज़ा खोल रखा है। कॉन्गो के लोकतांत्रिक गणराज्य में गृह-युद्ध की वजह से हाल में हज़ारों लोगों को, जिनमें यहोवा के साक्षी भी शामिल थे, भागकर केंद्रीय अफ्रीकी गणराज्य में शरण लेनी पड़ी जो उनके लिए कुछ हद तक सुरक्षित जगह है।

राहत के लिए मौजूद भाई

केंद्रीय अफ्रीकी गणराज्य के साक्षी मुसीबत के समय दूसरों की मदद करना एक खुशी और सम्मान की बात समझते हैं। इसलिए उन्होंने आनेवाले सभी शरणार्थी भाई-बहनों के रहने का इंतज़ाम किया। शुरू-शुरू में तो उन्होंने भाइयों को अपने घरों में पनाह दी। मगर जैसे-जैसे उनकी संख्या बढ़ती गई, यह ज़ाहिर हो गया कि अब किसी बड़ी जगह का इंतज़ाम करना पड़ेगा जिससे सभी लोगों को सिर छिपाने की जगह मिल सके। तो साक्षियों ने अपने कुछ किंगडम हॉलों को कुछ वक्‍त के लिए, रहने की जगह में तबदील कर दिया। वहाँ शरणार्थियों की बुनियादी ज़रूरतें पूरी की जा सकें, इसलिए साक्षियों ने खुशी-खुशी और ज़्यादा बिजली के कनेंक्शन लगाए और पानी के पाइप जोड़े जिससे ज़्यादा पानी मिल सके। सीमेंट से पक्का फर्श भी तैयार किया। इस काम में शरणार्थी भाई-बहनों ने भी हाथ बँटाया। फिर लिंगाला भाषा में सभी मसीही सभाओं का अच्छा आयोजन किया गया ताकि आनेवालों को जीवनदायी आध्यात्मिक भोजन की कमी महसूस न हो। साक्षी और शरणार्थी भाई-बहनों ने जिस तरह से एक-दूसरे को सहयोग दिया, उससे अंतर्राष्ट्रीय भाईचारे का जीता-जागता सबूत मिला।

शरणार्थी परिवार हमेशा एक-साथ नहीं पहुँचते थे। कई बार किंगडम हॉल पहुँचने के बाद परिवार के सदस्य एक-दूसरे से मिलते थे। हर किंगडम हॉल में उन लोगों की लिस्ट बनायी गई थी, जो सुरक्षित पहुँच जाते थे। और जो नहीं पहुँच पाते थे, उन्हें ढूँढ़ निकालने के लिए इंतज़ाम किया गया था। यह सारा काम उस देश में यहोवा के साक्षियों के ब्राँच ऑफिस के निर्देशन के अधीन हो रहा था। इसलिए हर दिन उन साक्षियों को ढूँढ़ने के लिए जो अभी रास्ते में थे या जो भीड़ में गायब हो गए थे, ब्राँच तीन गाड़ियाँ भेजती थी। इन गाड़ियों को बड़ी आसानी से पहचाना जा सकता था क्योंकि उन पर अंग्रेज़ी के बड़े अक्षरों में लिखा था, “वॉच टावर—यहोवा के साक्षी।”

अपने-अपने माँ-बाप से बिछड़े उन सात शरणार्थी बच्चों की खुशी की कल्पना कीजिए, जब उन्होंने यहोवा के साक्षियों की गाड़ी को देखा। वे सरपट गाड़ी की तरफ दौड़े और बताया कि वे भी यहोवा के साक्षी हैं। भाइयों ने उन्हें गाड़ी में बिठाया और किंगडम हॉल ले गए। और अपने-अपने परिवारों से उनका मिलन हुआ।

इस तरह के हालात का, एक बार नहीं बल्कि बार-बार सामना करने के लिए इन नेकदिल मसीहियों को किस बात से मदद मिलती है? इन मसीहियों को पूरा यकीन है कि इस समय हम सभी आखिरी दिनों में जी रहे हैं, जैसा कि बाइबल में बताया गया है।—2 तीमुथियुस 3:1-5; प्रकाशितवाक्य 6:3-8.

इसलिए वे जानते हैं कि युद्ध, घृणा, हिंसा और लड़ाई-झगड़े, ये सब ज़्यादा दिन नहीं चलनेवाले। यहोवा परमेश्‍वर बहुत जल्द इन सबको हमेशा-हमेशा के लिए मिटा डालेगा। इसके बाद शरणार्थियों की समस्या, बीते दिनों की कहानी होगी। मगर इस दरमियान, 1 कुरिन्थियों 12:14-26 में प्रेरित पौलुस द्वारा दी गई सलाह के मुताबिक, यहोवा के साक्षी एक-दूसरे के लिए अपनी परवाह दिखाने की कोशिश करते हैं। हालाँकि आज वे नदियों, सरहदों, भाषाओं और दूरी की वजह से एक-दूसरे से अलग हो गए हैं, फिर भी वे एक-दूसरे की चिंता करते हैं, तभी तो जब कभी मदद की ज़रूरत आन पड़ती है तो वे फौरन हाज़िर हो जाते हैं।—याकूब 1:22-27.

[पेज 30 पर नक्शा]

(भाग को असल रूप में देखने के लिए प्रकाशन देखिए)

अफ्रीका

केंद्रीय अफ्रीकी गणराज्य

कॉन्गो का लोकतांत्रिक गणराज्य

[चित्र का श्रेय]

Mountain High Maps® Copyright © 1997 Digital Wisdom, Inc.

[पेज 30 पर तसवीरें]

तीन किंगडम हॉलों में शरणार्थी पहुँचाए जा रहे थे

[पेज 31 पर तसवीर]

रसोई घर की चीज़ों का तुरंत इंतज़ाम किया गया

[पेज 31 पर तसवीर]

लोगों की संख्या बढ़ती गयी

[पेज 31 पर तसवीरें]

जन्म लेते ही शरणार्थी बने