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क्या आपको याद है?

क्या आपको याद है?

क्या आपको याद है?

क्या आपने हाल की प्रहरीदुर्ग पत्रिकाओं को पढ़ा है? अगर हाँ, तो देखिए कि आप इन सवालों का जवाब दे सकते हैं या नहीं:

रोमियों 5:3-5 में पौलुस ने “आशा” का ज़िक्र एकदम आखिर में जाकर क्यों किया?

मसीही, अपनी ज़िंदगी में जिन बातों का अनुभव करते हैं, उनके बारे में पौलुस एक-के-बाद-एक इस तरह बताता है। क्लेश का सामना करना, धीरज धरना, परमेश्‍वर की मंज़ूरी पाना और फिर आशा पाना। तो यह “आशा” वह नहीं जो एक मसीही शुरू में बाइबल से ज्ञान लेते वक्‍त पाता है, बल्कि यह आशा तो वह है जो समय के गुज़रते और भी मज़बूत, पक्की, और गहरी होती जाती है।—12/15, पेज 22-3.

आज एक मसीही को प्राचीन यूनान में खेले जानेवाले खेलों में दिलचस्पी क्यों लेनी चाहिए?

वे खेल किस प्रकार के होते थे और उनके क्या नियम थे, इन्हें जानने से बाइबल के कई वचन समझने में बहुत मदद मिलती है। उनमें से कुछ ऐसे हैं, जैसे ‘नियमों के अनुसार लड़ना,’ ‘हर एक बोझ को दूर करके यीशु की ओर ताकना,’ ‘अपनी दौड़ पूरी करना’ और मुकुट या इनाम पाना। (2 तीमुथियुस 2:5; 4:7, 8; इब्रानियों 12:1, 2; 1 कुरिन्थियों 9:24, 25; 1 पतरस 5:4)—1/1, पेज 28-30.

जनवरी 1914 से सुसमाचार प्रचार करने का कौन-सा नया तरीका सामने आया?

उस समय “फोटो-ड्रामा ऑफ क्रिएशन” दिखाया गया था। यह चार भागों में था जिसमें चलचित्र के भाग और सैकड़ों नए चित्र और रेखाचित्र भी होते थे। इसके साथ-साथ इन्हें समझानेवाले भाषणों के ग्रामोफोन रिकॉर्ड भी बजाए जाते थे। इस फिल्म के 20 सॆट तैयार किए गए थे और लोगों तक बाइबल का संदेश पहुँचाने के लिए इसका बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया गया था।—1/15, पेज 8-9.

शासी निकाय कैसे कानूनी निगम से अलग है?

जबकि कानूनी निगम के निर्देशकों को, निगम के सदस्य वोट देकर चुन सकते हैं, शासी निकाय को कोई इंसान नहीं चुनता बल्कि यीशु मसीह ने उन्हें नियुक्‍त किया है। यह ज़रूरी नहीं है कि यहोवा के साक्षियों द्वारा इस्तेमाल किए जा रहे अलग-अलग निगमों के निर्देशक शासी निकाय के सदस्य हों। वॉच टावर बाइबल एण्ड ट्रैक्ट सोसाइटी ऑफ पॆंसिल्वेनिया की हाल की एक सालाना सभा में, शासी निकाय के जो सदस्य इसके निर्देशक या अफसर थे उन्होंने स्वेच्छा से अपने-अपने पदों को छोड़ दिया। इन पदों पर ‘अन्य भेड़’ के अनुभवी भाइयों को नियुक्‍त किया गया। (यूहन्‍ना 10:16) इस तरह शासी निकाय आध्यात्मिक भोजन तैयार करने में और दूसरे तरीकों से अंतर्राष्ट्रीय भाईचारे की आध्यात्मिक ज़रूरतों को पूरा करने में ज़्यादा वक्‍त बिता पाएगा।—1/15 पेज 29, 31.

निराशा की भावना से निपटने के लिए हम बाइबल के कौन-से दो उदाहरणों पर गौर कर सकते हैं?

एक है शमूएल की माँ हन्‍ना। जब इस्राएल के महायाजक एली ने उसे गलत समझ लिया था, तब भी वह निराश नहीं हुई थी। इसके बजाय उसने आदर के साथ एली को पूरी सच्चाई बतायी। इसके अलावा उसने एली से कोई मनमुटाव भी नहीं रखा। दूसरा उदाहरण है मरकुस का। जब पौलुस ने उसे अपने साथ मिशनरी दौरे पर ले जाने से मना कर दिया था, तब वह निराश हो सकता था। मगर ऐसा सुनहरा मौका खोने पर, वह निराशा में डूबने के बजाय बरनबास के साथ अपनी सेवा में लगा रहा।—2/1, पेज 20-2.

कंप्यूटर सॉफ्टवेयर प्रोग्राम की कॉपियाँ दूसरों को बनाकर मुफ्त में देने या लेने से मसीहियों को क्यों सावधान रहना चाहिए?

ज़्यादातर कंप्यूटर प्रोग्रामों के (इनमें कंप्यूटर गेम भी शामिल हैं) लाइसेंस होते हैं जिन पर प्रोग्रामों से संबंधित सुविधाएँ और पाबंदियाँ लिखी होती हैं। इन प्रोग्रामों के इस्तेमाल करनेवालों से यह माँग की जाती है कि इनका इस्तेमाल सिर्फ एक व्यक्‍ति कर सकता है, यानी ये प्रोग्राम सिर्फ एक ही कंप्यूटर में डाले जा सकते हैं। आम तौर जब हम दूसरों के लिए, चाहे वह मुफ्त में देने के लिए ही क्यों न हो, प्रोग्रामों की कॉपियाँ बनाते हैं तो हम कॉपीराइट के नियमों को तोड़ रहे हैं। मसीही कानून का पालन करना चाहते हैं और इसके ज़रिए “जो कैसर का है वह कैसर को” देते हैं। (मरकुस 12:17)—2/15, पेज 28-9.

सिरिल और मिथोडीअस कौन थे और उन्होंने बाइबल अध्ययन को बढ़ावा देने में किस तरह से मदद दी है?

ये दोनों सगे भाई थे, जिनका जन्म नौवीं सदी के दौरान यूनान के थिस्सलुनीका शहर में हुआ था। इन्होंने स्लाव भाषा में नई वर्णमाला ईजाद की और इसी भाषा में बाइबल के कई भागों का अनुवाद भी किया।—3/1, पेज 28-9.

‘आत्मा पर मन लगाने’ का मतलब क्या है?—रोमियों 8:6.

इसका मतलब है, यहोवा की सक्रिय शक्‍ति के काबू में रहना, उसके अधीन रहना और उससे प्रेरित होना। जब हम बाइबल को पढ़ते और उसका अध्ययन करते हैं, परमेश्‍वर के नियमों को तहेदिल से मानते और परमेश्‍वर की आत्मा के लिए प्रार्थना करते हैं तो परमेश्‍वर की आत्मा हमारे दिलो-दिमाग पर असर करेगी।—3/15, पेज 15.

अगर हमारे बारे में गलत राय कायम की जाती है, तो हम क्या कर सकते हैं?

ऐसे समय पर मामले को प्यार से सुलझाना सबसे ज़रूरी है। अगर इसके बावजूद बात नहीं बनती तो हार मत मानिए। यहोवा से जो ‘हृदय को सही-सही जाँच’ सकता है, मदद और समझ माँगिए। (नीतिवचन 21:2, NHT; 1 शमूएल 16:7)—4/1, पेज 21-3.