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यहोवा की राह पर आगे बढ़ते रहने से खुशी और ताकत मिलती है

यहोवा की राह पर आगे बढ़ते रहने से खुशी और ताकत मिलती है

जीवन कहानी

यहोवा की राह पर आगे बढ़ते रहने से खुशी और ताकत मिलती है

लूईजी डी. वैलेनटीनोकी ज़ुबानी

यहोवा सलाह देता है: “मार्ग यही है, इसी पर चलो।” (यशायाह 30:21) करीब 60 साल पहले बपतिस्मे के बाद से इस सलाह पर चलना मेरे जीवन का मकसद रहा है। और मेरे माता-पिता की अच्छी मिसाल की वजह से ही मैंने इतनी छोटी उम्र से इस मकसद को पूरा करने की ठान ली। असल में, मेरे माता-पिता इटली के वासी थे। सन्‌ 1921 में वे क्लीवलैंड, ओहायो, अमरीका में आकर बस गए। यहाँ उन्होंने अपने तीन बच्चों की, यानी मेरे बड़े भाई माइक, मेरी छोटी बहन लीडिया और मेरी परवरिश की।

मेरे माता-पिता ने कई धर्मों की जाँच की मगर उन्हें सिवाय निराशा के कुछ और हाथ नहीं लगा। फिर एक दिन 1932 में, मेरे पिता रेडियो पर इटली भाषा में एक कार्यक्रम सुन रहे थे। वह कार्यक्रम यहोवा के साक्षियों द्वारा प्रसारित किया गया था और उन्हें वह कार्यक्रम बेहद पसंद आया। उन्होंने और ज़्यादा जानकारी पाने के लिए ब्रुक्लिन, न्यू यॉर्क में यहोवा के साक्षियों के मुख्यालय को खत लिखा और वहाँ से एक इतालवी भाई हमसे मिलने आया। पूरे दिन की एक दिलचस्प चर्चा के बाद मेरे माता-पिता को इस बात का पूरा यकीन हो गया कि यही सच्चा धर्म है।

मेरे माता-पिता ने मसीही सभाओं में जाना शुरू कर दिया और अपने घर को सफरी ओवरसियरों के रहने के लिए खोल दिया। हालाँकि उस समय मैं काफी छोटा था फिर भी सफरी ओवरसियर मुझे प्रचार काम में अपने साथ ले जाते थे, और मैंने पूर्ण समय सेवक के तौर पर यहोवा की सेवा करने के बारे में सोचना शुरू कर दिया। उन सफरी ओवरसियरों में से एक भाई कैरी डब्ल्यू. बार्बर था, जो कि अब यहोवा के साक्षियों के शासी निकाय का सदस्य है। उसके कुछ समय बाद फरवरी 1941 में, 14 साल की उम्र में मेरा बपतिस्मा हुआ और 1944 में मैंने क्लीवलैंड में पायनियर सेवा शुरू कर दी। माइक और लीडिया ने भी बाइबल सच्चाई को अपना लिया। माइक ने मरते दम तक यहोवा की सेवा की, और लीडिया ने अपने पति हैरल्ड वाइडनर के साथ 28 साल तक सफरी काम किया। आज, वे दोनों स्पेशल पायनियर के तौर पर सेवा कर रहे हैं।

जेल की सज़ा—आगे बढ़ते रहने का मेरा इरादा और मज़बूत हुआ

सन्‌ 1945 की शुरूआत में, मुझे ओहायो के चिलाकौथी फैड्रल जेल में डाला गया। क्योंकि बाइबल के मुताबिक ढाले गए मेरे विवेक ने मुझे यशायाह 2:4 को लागू करने की प्रेरणा दी जहाँ पर तलवारों को पीटकर हल के फाल बनाने की बात लिखी है। एक समय था जब जेल के अधिकारी, साक्षियों को कुछ ही बाइबल साहित्य रखने की इज़ाज़त देते थे, जो यहोवा के साक्षियों द्वारा प्रकाशित किए जाते थे। फिर भी पास की कलीसिया के भाई, समय-समय पर कुछ प्रकाशन जेल के पास के मैदान में डाल जाते थे। अगली सुबह जब कैदियों को काम करने के लिए मैदान में ले जाया जाता तब वे उन साहित्यों को ढूँढ लेते थे और किसी तरह उन्हें जेल के अंदर ले आते थे। और जब मुझे जेल में डाला गया तब तक और प्रकाशनों को मँगवाने की इज़ाज़त मिल गई थी। फिर भी मैंने आध्यात्मिक भोजन की और भी ज़्यादा कदर करना सीखा। आज भी जब मुझे प्रहरीदुर्ग और सजग होइए! का नया अंक मिलता है तो मेरे ज़हन में वही बात आती है।

जेल में कुछ समय बाद, हमें सभा आयोजित करने की इज़ाज़त मिली मगर यहोवा के साक्षियों के अलावा किसी और को आने की मनाही थी। लेकिन फिर भी कुछ जेल के अधिकारी और कैदी चोरी-छुपे हमारी सभाओं में आते थे और उनमें से कुछ लोगों ने सच्चाई को अपनाया भी है। (प्रेरितों 16:30-34) भाई ए. एच. मैकमिलन जेल में हमसे मिलने आते और उनसे हमें बहुत दिलासा मिलता था। वे हमेशा यह कहकर हमारी हिम्मत बढ़ाते थे कि जितना समय तुमने जेल में बिताया है वो बरबाद नहीं हुआ बल्कि इससे तुम्हें आनेवाले काम की ट्रेनिंग मिल रही है। उनकी हिम्मत बढ़ानेवाली बातों ने मेरे दिल को छू लिया और यहोवा की राह पर चलते रहने का मेरा इरादा और भी मजबूत हो गया।

एक हमदम पाया

दूसरा विश्‍वयुद्ध खत्म होने के बाद, सबको जेल से रिहा किया गया, और उसके बाद मैंने फिर से पायनियर सेवा शुरू कर दी। लेकिन 1947 में मेरे पिता चल बसे। अब परिवार को चलाने की ज़िम्मेदारी मुझ पर आ गई। इसलिए मैंने नौकरी करना शुरू कर दिया और मैंने चिकित्सीय मालिश करने में भी महारत हासिल कर ली। यह एक ऐसा हुनर था जो करीब 30 साल बाद मेरे काम आता, जब मैं और मेरी पत्नी मुसीबत के समय से गुज़रते। लेकिन देखो मैं भी कहाँ बीच में से शुरू हो गया। आइए पहले मैं आपको अपनी पत्नी के बारे में बताता हूँ।

सन्‌ 1949 में, एक दिन दोपहर को जब मैं किंगडम हॉल में था, तभी फोन की घंटी बजी। मैंने फोन उठाया और एक मीठी आवाज़ ने कहा: “मेरा नाम क्रिस्टीन जेनचर है। मैं एक यहोवा की साक्षी हूँ। मैं क्लीवलैंड में नौकरी की तलाश में आई हूँ और मैं कलीसिया के साथ संगति करना चाहती हूँ।” मुझे फोन पर उसकी आवाज़ बहुत ही पसंद आयी। जहाँ वो रहती थी वहाँ से हमारा किंगडम हॉल बहुत दूर था, लेकिन मैंने उसे हॉल के आने का रास्ता समझाया और उसे उस रविवार को आने को कहा क्योंकि उस दिन मैं जन-भाषण देनेवाला था। रविवार को किंगडम हॉल पहुँचनेवालों में पहला व्यक्‍ति मैं ही था। मगर मुझे वहाँ कोई भी अपरिचित बहन दिखाई नहीं दी। पूरे भाषण के दौरान मैं बार-बार दरवाज़े की तरफ देख रहा था, लेकिन मुझे कोई भी नज़र नहीं आया। अगले दिन उसे फोन करने पर पता चला कि वह वहाँ की बस व्यवस्था से परिचित न होने की वजह से नहीं आ सकी। तो मैंने कहा कि मैं खुद आकर आपको ठीक से समझाऊँगा।

मुझे पता लगा कि उसके माता-पिता चेकोस्लोवाकिया से आकर अमरीका में बस गए थे। और उन्होंने मृतजन कहाँ हैं? (अँग्रेज़ी) पुस्तिका पढ़ने के बाद बाइबल विद्यार्थियों के साथ संगति करना शुरू किया था। फिर 1935 में उसके माता-पिता ने बपतिस्मा लिया। सन्‌ 1938, में क्रिस्टीन के पिता पॆंसिल्वेनिया, अमरीका के क्लाइमर नगर में यहोवा के साक्षियों की कलीसिया में कंपनी सरवेंट (जो आज प्रिसाइडिंग ओवरसियर के नाम से जाना जाता है) के तौर पर नियुक्‍त हुए, और 1947 में 16 साल की उम्र में क्रिस्टीन ने बपतिस्मा लिया। मुझे इस खूबसूरत आध्यात्मिक लड़की से प्यार होने में ज़रा भी देर नहीं लगी। जून 24, 1950 को हमारी शादी हुई, और तब से क्रिस्टीन मेरी वफादार साथी रही है। परमेश्‍वर के राज्य के कामों को सबसे पहला स्थान देने के लिए वह हरदम तैयार रहती है। मैं यहोवा का बहुत ही शुक्रगुज़ार हूँ कि उसने मुझे क्रिस्टीन जैसा हमदम दिया, जो शादी करके मेरे साथ ज़िंदगी बिताने को राज़ी हो गई।—नीतिवचन 31:10.

एक बड़ा अचंभा

नवंबर 1,1951 को हम दोनों ने एक-साथ पायनियर सेवा शुरू की। दो साल बाद ओहायो के टालीडो शहर में एक अधिवेशन हुआ। वहाँ पर भाई हूगो रीमर और एलबर्ट श्रोडर ने पायनियरों के एक ग्रुप से बात की जो मिशनरी सेवा करने में दिलचस्पी रखते थे। हम दोनों भी उस ग्रुप में मौजूद थे। हमें क्लीवलैंड में ही पायनियर सेवा करते रहने का प्रोत्साहन दिया गया। मगर अगले महीने जब हमें वॉच टावर बाइबल स्कूल ऑफ गिलियड की 23वीं क्लास के लिए बुलावा मिला तो हम दंग रह गए। यह क्लास फरवरी 1954 में शुरू हुई!

जब हम गाड़ी से गिलियड स्कूल जा रहे थे जो उस समय साउथ लैंसिंग, न्यू यॉर्क में था, तब क्रिस्टीन बहुत घबरायी हुई थी। वह बार-बार मुझसे कहती रही, “गाड़ी धीरे चलाइए!” मैंने कहा “क्रिस्टीन, अगर मैं इससे धीरे चलाऊँगा तो गाड़ी बंद ही हो जाएगी।” स्कूल पहुँचने पर कहीं जाकर हमने चैन की साँस ली। भाई नेथन नॉर ने हम सभी विद्यार्थियों का स्वागत किया और हमें पूरे गिलियड की सैर करायी। उसने यह भी समझाया कि किस तरह हम पानी और बिजली की बचत कर सकते हैं, और इस बात पर ज़ोर दिया कि राज्य के काम को करते वक्‍त किफायती होना भी एक गुण है। वह सलाह हमारे दिलो-दिमाग में इस कदर बस गई, जिसे हम आज भी नहीं भूले हैं।

रियो तक की उड़ान

जल्द ही हम ग्रेजुएट हो गए, और दिसंबर 10, 1954 को उस ठंडे शहर, न्यू यॉर्क से हम हवाई जहाज़ में चढ़े। हम यह सोचकर ही बहुत उत्साहित थे कि ब्राज़ील के गर्म शहर, रियो रियो दे जेनेरो में अपना नया काम शुरू करने जा रहे हैं। हमारे साथी मिशनरी पीटर और बिली कारबैलो भी हमारे साथ सफर कर रहे थे। हमारी उड़ान को उत्तरी ब्राज़ील की तीन जगहों पर रुकना था: पोर्टो रिको, वेनेज़ुएला और बलेम। असल में, रियो दे जेनेरो पहुँचने के लिए 24 घंटे लगते हैं लेकिन इंजन में कुछ खराबी होने की वजह से हमें 36 घंटे लगे। मगर शहर के ऊपर से क्या ही दिलकश नज़ारा था! रात के अंधेरे में शहर की बत्तियाँ ऐसे दमक रहीं थीं मानो काले मखमली कालीन पर बहुमूल्य हीरे चमक रहे हों, और पास ही ग्वानाबारा खाड़ी के पानी में चाँद की चाँदनी चमचमा रही थी।

बेथेल परिवार के कई सदस्य हवाई अड्डे पर हमारा इंतज़ार कर रहे थे। गर्मजोशी से हमारा स्वागत करने के बाद वे हमें शाखा दफ्तर ले गये, और करीब सुबह तीन बजे जाकर हम सोए। कुछ ही घंटों बाद बेथेल की सुबह जगानेवाली घंटी की आवाज़ ने हमें याद दिलाया कि बतौर मिशनरी सेवा करने का यह हमारा पहला दिन है!

एक शुरूआती सबक

कुछ ही समय बाद हमने एक ज़रूरी सबक सीखा। एक बार हमने एक साक्षी परिवार के साथ शाम बितायी। जब हम वापस शाखा लौटना चाहते थे, तो भाई ने हमें रोककर कहा, “नहीं, आप अभी नहीं जा सकते; बाहर बारिश हो रही है,” और उसने हमसे रात को वहीं रुकने की गुज़ारिश की। लेकिन मैंने उसकी बात हँसी में टालते हुए कहा: “जहाँ से हम आए हैं वहाँ भी तो बारिश होती है।”

रियो के चारों तरफ पहाड़ हैं जिस वजह से पानी बहुत जल्द जमा हो जाता है और शहर की ओर बहने लगता है, और अकसर बाढ़ आ जाती है। थोड़ी ही देर बाद चलते-चलते पानी हमारे घुटनों तक पहुँच गया था। शाखा के आस-पास की सड़कें उफनती नदियों में बदल गईं और पानी हमारी छाती तक पहुँच गया था। जब हम बेथेल पहुँचे तो सिर से पाँव तक तर हो चुके थे। अगले दिन क्रिस्टीन की तबियत खराब हो गयी और उसे टाइफायड हो गया, जिसकी वजह से वह लंबे समय तक कमज़ोर हो गई थी। कहना ही होगा कि नए मिशनरी होने के नाते हमें वहाँ के अनुभवी भाइयों की सलाह मान लेनी चाहिए थी।

मिशनरी सेवा और सफरी काम में पहला कदम

इस बुरी शुरूआत के बाद हमने बड़े उत्साह के साथ अपनी क्षेत्र सेवकाई शुरू कर दी। जिससे भी हम मिलते, हम उन्हें पुर्तगाली भाषा में राज्य संदेश पढ़कर सुनाते और इस भाषा को बोलने में हम दोनों एक सी तरक्की कर रहे थे। एक घर में एक व्यक्‍ति क्रिस्टीन से कहता: “मुझे आपकी बात तो समझ में आ गई है,” और फिर मेरी तरफ इशारा करते हुए कहता, “पर उनकी नहीं।” दूसरे घर में मुझसे कहा गया: “मैं आपकी बात समझ गया मगर उनकी नहीं।” इसके बावजूद भी पहले कुछ हफ्तों में हमें 100 से भी ज़्यादा प्रहरीदुर्ग अभिदान मिले जिससे हमें बड़ी खुशी हुई। दरअसल, ब्राज़ील में पहले साल के दौरान ही हमारे कई बाइबल विद्यार्थियों ने बपतिस्मा लिया। इससे इस बात का भी सबूत मिला कि यह तो सिर्फ शुरूआत है और अगर हम इसी तरह मिशनरी सेवा में लगे रहेंगे तो हमें और भी फल मिलेंगे।

लगभग 1955 में, काबिल भाइयों की कमी होने के कारण ब्राज़ील की कई कलीसियाओं में नियमित तौर पर सर्किट विज़िट नहीं होता था। उस वक्‍त मैं पुर्तगाली भाषा सीख रहा था और मैंने कभी उस भाषा में जन-भाषण नहीं दिया था, फिर भी 1956 में मुझे साओ पोलो में सर्किट काम के लिए भेजा गया।

जिस कलीसिया में मैं पहली बार सर्किट ओवरसियर बनकर गया था वहाँ करीब दो सालों से विज़िट नहीं हुआ था। इसलिए वहाँ का हरेक व्यक्‍ति बड़ी बेसब्री से जन-भाषण का इंतज़ार कर रहा था। मैंने उस भाषण को तैयार करने के लिए पुर्तगाली भाषा के प्रहरीदुर्ग लेखों से अनुच्छेद काटकर पेपर पर चिपका लिए। उस रविवार को हॉल खचाखच भरा हुआ था। यहाँ तक कि लोग स्टेज पर भी बैठे हुए थे, सभी लोग होनेवाले उस खास भाषण के इंतज़ार में थे। मैंने भाषण, यानी सीधे कागज़ से पढ़ना शुरू किया। एक-दो बार मैंने नज़र उठाकर देखा तो मुझे बड़ी हैरानी हुई कि कोई भी अपनी जगह से टस-से-मस नहीं हुआ यहाँ तक कि बच्चें भी ध्यान से सुन रहे थे। सब लोग आँखे फाड़-फाड़कर मुझे देख रहे थे। मैंने सोचा: ‘वाह वैलेनटीनो! तुम तो काफी अच्छी पुर्तगाली भाषा बोलना सीख गए! देखो तो लोग कैसे टकटकी लगाए ध्यान दे रहे हैं।’ कुछ साल बाद जब मैं दोबारा उस कलीसिया में गया तो, एक भाई जो मेरे पहले भाषण पर मौजूद था, उसने मुझसे कहा: “आपको याद है जो जन-भाषण आपने दिया था? हमें एक लफ्ज़ भी समझ नहीं आया था।” तब मैंने कबूल किया कि मुझे खुद भी कुछ समझ नहीं आया कि मैंने क्या बोला था।

सर्किट काम में अपने पहले साल के दौरान मैं अकसर जकर्याह 4:6 पढ़ता था। जिससे मुझे ये बात याद आती है कि ‘शक्‍ति से नहीं परन्तु आत्मा के द्वारा,’ यानी यहोवा की आत्मा की बदौलत ही राज्य का काम बढ़ता गया। हालाँकि हम यहाँ की भाषा से अच्छी तरह वाकिफ नहीं थे फिर भी हमारे प्रचार काम में बढ़ोतरी हुई।

चुनौतियों के साथ-साथ आशीषें

सर्किट काम का मतलब है टाइपराइटर, साहित्यों से भरे डिब्बे, सूटकेसों और ब्रीफकेसों, इन सारे सामानों के साथ देश की एक जगह से दूसरी जगह यात्रा करना। क्रिस्टीन, बड़ी अक्लमंदी से हर सामान पर नंबर लगाती थी ताकि बस बदलते वक्‍त कोई सामान छूट न जाए। अपनी अगली मंज़िल तक पहुँचने के लिए 15 घंटे धूलभरी सड़कों पर बस का सफर करना कोई नयी बात नहीं थी। कभी-कभी तो यह सफर दिल दहला देनेवाला होता था, खासकर जब दो बसें एक ही समय पर कच्चे पुल पर से उलटी दिशाओं में जाती थी, और वे इतनी नज़दीक से पार करती थीं कि उनके बीच एक टिशू-पेपर की भी जगह नहीं बचती थी। हमने रेलों, जहाज़ों और घोड़ों पर भी सफर किए हैं।

सन्‌ 1961 में हमने डिस्ट्रिक्ट काम शुरू किया, और हमें कलीसिया से कलीसिया जाने के बजाय एक सर्किट से दूसरे सर्किट जाना पड़ता था। एक हफ्ते में कई शाम हम यहोवा के संगठन द्वारा तैयार की गई फिल्में अलग-अलग जगहों में दिखाते थे। अकसर हमें इलाके के पादरियों से निपटने के लिए बहुत समझ-बूझ से काम लेना पड़ता था। क्योंकि वे हमें ये फिल्में दिखाने से रोकने की कोशिश करते थे। एक दफे एक कस्बे का पादरी हॉल के मालिक को डरा-धमकाकर हमसे किए गए कॉन्ट्रेक्ट को रद्द करवाने में कामयाब हुआ। कई दिनों तक ढूँढ़ने के बाद, हमें एक दूसरी जगह मिल गई, लेकिन हमने इस बारे में किसी को नहीं बताया और सभी को पहली जगह पर आने का निमंत्रण देते रहे। कार्यक्रम शुरू होने से पहले क्रिस्टीन उस पहले हॉल पर गई और चुपके से उन लोगों को इस नयी जगह भेजती गई जो इस फिल्म को देखना चाहते थे। उस शाम को करीब 150 लोगों ने फिल्म देखी जिसका शीर्षक था द न्यू वर्ल्ड सोसाइटी इन एक्शन।

हालाँकि कभी-कभी दूर-दराज़ के इलाकों में सफरी काम करना काफी मुश्‍किल लगता था। मगर जब भी हम वहाँ के नम्र भाइयों से मिलते तो वे हमें बहुत कदर दिखाते थे। अपने छोटे-छोटे घरों को हमारे रहने के लिए खोलकर हमारी मेहमाननवाज़ी करते थे। उनके साथ संगति करने का मौका देने के लिए हम यहोवा का बहुत धन्यवाद करते थे। उनके साथ दोस्ती करने के ज़रिए हमें कई आशीषें मिली हैं। (नीतिवचन 19:17; हाग्गै 2:7) इसलिए हम कितने दुःखी थे जब ब्राज़ील में 21 साल तक सेवा करने के बाद हमें मजबूरन मिशनरी काम छोड़ना पड़ा!

संकट की घड़ी में, यहोवा ने हमें राह दिखायी

सन्‌ 1975 में क्रिस्टीन का ऑपरेशन हुआ। उसके बाद हमने फिर से सफरी काम शुरू कर दिया मगर क्रिस्टीन की हालत दिन-पर-दिन बिगड़ती चली गई। हमने सोचा कि भलाई इसी में है कि हम अमरीका वापस लौट जाए जिससे क्रिस्टीन का इलाज हो सके। अप्रैल 1976 में हम लॉन्ग बीच, कैलीफोर्निया में पहुँचे और मेरी माँ के साथ रहने लगे। करीब 20 साल तक विदेश में रहने के बाद हमें समझ में नहीं आ रहा था कि इस परिस्थिति के साथ कैसे निपटा जाए। मैंने लोगों की मालिश करने का काम शुरू कर दिया, और जो भी कमाई होती थी उसी से गुज़ारा चलता था। कैलीफोर्निया की सरकार ने क्रिस्टीन को अस्पताल में भर्ती कराया, लेकिन वहाँ पर वह दिन-ब-दिन बहुत कमज़ोर महसूस करने लगी, क्योंकि डॉक्टरों ने बिना खून के इलाज करने से इंकार कर दिया। इस मुसीबत में हमें मदद की सख्त ज़रूरत थी और इसलिए हमने यहोवा से गिड़गिड़ाकर प्रार्थना की।

एक दोपहर को जब मैं क्षेत्र सेवकाई कर रहा था, तो मैंने एक डॉक्टर का ऑफिस देखा, और अचानक मैंने अंदर जाने का फैसला किया। हालाँकि डॉक्टर अपने घर जाने ही वाला था मगर उसने मुझे अंदर आने की इज़ाज़त दी, और हमने दो घंटे बात की। उसके बाद उसने कहा: “मिशनरी के तौर पर मैं आपके काम की कदर करता हूँ, और मैं आपसे बिना पैसा लिए और बगैर खून के आपकी पत्नी का इलाज करूँगा।” मुझे अपने कानों पर विश्‍वास नहीं हुआ कि जो मैं सुन रहा हूँ वह सही है।

इस भले डॉक्टर ने, जो एक मशहूर स्पेशलिस्ट है, क्रिस्टीन को एक दूसरे अस्पताल में भर्ती करवाया जहाँ पर वह काम करता था, और उसकी अच्छी देखरेख करने की वजह से क्रिस्टीन की हालत जल्द ही सुधर गयी। यहोवा के हम कितने आभारी हैं कि उसने हमें मुश्‍किल के समय में सही राह दिखायी!

नए काम

जैसे ही क्रिस्टीन की तबियत ठीक हो गई हमने फिर से पायनियर सेवा शुरू कर दी और लॉन्ग बीच में कई लोगों को यहोवा के सेवक बनते देख हमें बेहद खुशी मिली। सन्‌ 1982 में हमें सर्किट काम के लिए अमरीका भेजा गया। हमने हर दिन यहोवा का धन्यवाद किया कि उसने फिर से हमें सफरी काम करने का मौका दिया क्योंकि यह सेवा हमें बेहद पसंद थी। हमने कैलीफोर्निया में, फिर न्यू इंग्लैंड में सेवा की जिनके सर्किट में पुर्तगाली भाषा बोलनेवाली कुछ कलीसियाएँ भी थीं। बाद में, इनमें बरम्यूडा द्वीप भी शामिल किया गया।

चार सुखद सालों के बाद, हमें दूसरा काम दिया गया। हमसे कहा गया कि स्पेशल पायनियर के तौर पर हम जहाँ भी सेवा करना चाहते हैं, कर सकते हैं। हालाँकि सफरी काम को छोड़ने का हमें बड़ा दुःख हुआ था, फिर भी अपने काम में आगे बढ़ते रहने की हमने ठान ली। लेकिन कहाँ? अपने सफरी काम करते वक्‍त मैंने देखा कि न्यू बैडफर्ड, मैसाचुसेट्‌स में पुर्तगाली भाषा बोलनेवाली कलीसिया को मदद की ज़रूरत थी, इसलिए हम न्यू बैडफर्ड के लिए रवाना हो गए।

जब हम वहाँ पहुँचे तो कलीसिया ने हमारे स्वागत के लिए एक बड़ी पार्टी रखी। इससे साफ ज़ाहिर हुआ कि उन्हें हमारी कितनी ज़रूरत थी! यह देखकर हमारे आँसू छलक पड़े। एक दंपति, जिसके दो छोटी-छोटी बच्चियाँ थी हमें रहने के लिए अपने घर ले गये, जब तक कि हमें अपना घर नहीं मिल जाता। यहोवा ने सचमुच हमारे स्पेशल पायनियर के काम पर उम्मीदों से कहीं बढ़कर आशीषें दी हैं। सन्‌ 1986 से हमने उस शहर में करीब 40 अलग-अलग लोगों को साक्षी बनने में मदद दी। वे ही हमारे आध्यात्मिक परिवार हैं। इसके अलावा, मुझे कलीसिया के पाँच भाइयों को झुंड के प्यारे चरवाहें बनते देख बेहद खुशी हुई। इन सारी बातों से हमें लगता है कि हम सबसे ज़रूरी काम कर रहे हैं।

आज जब हम पीछे मुड़कर देखते हैं कि हम किस तरह जवानी से यहोवा की सेवा करते और सच्चाई की राह पर चलते आए हैं तो हमें बेहद खुशी मिलती है। माना कि ढलती उम्र और दूसरी दुर्बलताएँ हम पर हावी हो गयी हैं मगर अब भी यहोवा की राह पर आगे बढ़ते रहने से हमें खुशी और ताकत मिलती है।

[पेज 26 पर तसवीर]

रियो दे जेनेरो में नए-नए पहुँचे

[पेज 28 पर तसवीर]

हमारा आध्यात्मिक परिवार, न्यू बैडफर्ड, मैसाचुसेट्‌स में पुर्तगाली भाषा बोलनेवाली कलीसिया