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यहोवा की सेवा में अपनी खुशी कायम रखिए

यहोवा की सेवा में अपनी खुशी कायम रखिए

यहोवा की सेवा में अपनी खुशी कायम रखिए

“प्रभु में सदा आनन्दित रहो; मैं फिर कहता हूं, आनन्दित रहो।”—फिलिप्पियों 4:4.

1, 2. अपना सबकुछ खोने के बाद भी, एक भाई और उसका परिवार अपनी खुशी को कैसे कायम रख सका?

 जेम्स 70 साल का एक मसीही भाई है जो सीएरा लीयोन में रहता है। उसने सारी ज़िंदगी कड़ी मेहनत की है। जब वह अपने खून-पसीने की कमाई से आखिरकार इतने पैसे जोड़ सका कि एक चार कमरोंवाला सादा घर खरीद सके तो आप अंदाज़ा लगा सकते हैं कि उसे कितनी खुशी हुई होगी! जेम्स और उसका परिवार उस घर में रहने लगा। लेकिन इसके कुछ ही समय बाद उस देश में गृह-युद्ध छिड़ गया और उनका घर जलकर खाक हो गया। उनका घर मिट गया मगर उनकी खुशी नहीं मिटी। क्यों नहीं?

2 जेम्स और उसके परिवार का ध्यान उन चीज़ों पर नहीं था जिन्हें वे खो चुके थे, बल्कि उन पर था जो अब भी उनके पास थीं। जेम्स कहता है: “दहशत के उस माहौल में भी हमारी सभाएँ होती थीं, हम बाइबल पढ़ते, मिलकर प्रार्थना करते और जो कुछ हमारे पास था उसे दूसरों के साथ बाँटते थे। हम अपनी खुशी कायम रख सके क्योंकि हमारा ध्यान, यहोवा के साथ अपने बढ़िया रिश्‍ते पर लगा हुआ था।” उन्होंने अपनी आशीषों को ध्यान में रखा, जिनमें सबसे बड़ी आशीष थी, यहोवा के साथ उनका नज़दीकी रिश्‍ता। इसी तरह ये वफादार मसीही ‘आनन्दित रह’ सके। (2 कुरिन्थियों 13:11) बेशक, जो तकलीफें उन पर आ रही थीं उन्हें सहना आसान नहीं था। मगर उन्होंने यहोवा में आनंदित रहना न छोड़ा।

3. पहली सदी के मसीहियों ने अपनी खुशी कैसे कायम रखी?

3 पहली सदी के मसीहियों पर भी ऐसी ही परीक्षाएँ आयी थीं जैसी जेम्स और उसके परिवार पर आयीं। फिर भी, प्रेरित पौलुस ने इब्रानी मसीहियों को ये शब्द लिखे: “[तुमने] अपनी संपत्ति भी आनन्द से लुटने दी।” (तिरछे टाइप हमारे।) यह कहने के बाद पौलुस ने उनकी इस खुशी का राज़ बताया: “यह जानकर, कि तुम्हारे पास एक और भी उत्तम और सर्वदा ठहरनेवाली संपत्ति है।” (इब्रानियों 10:34) जी हाँ, पहली सदी के उन मसीहियों के पास बहुत ही मज़बूत और उज्ज्वल आशा थी। वे पूरे भरोसे के साथ एक ऐसा इनाम पाने की उम्मीद लगाए हुए थे जिसे कोई लूट नहीं सकता। यह इनाम था परमेश्‍वर के स्वर्गीय राज्य में कभी न मिटनेवाला “जीवन का मुकुट।” (प्रकाशितवाक्य 2:10) आज हमारी मसीही आशा चाहे स्वर्ग में जीवन पाने की हो या पृथ्वी पर जीने की, इस आशा की वजह से हम मुसीबतों का सामना करते वक्‍त भी अपनी खुशी कायम रख सकते हैं।

आशा में आनन्दित रहो”

4, 5. (क) “आशा में आनन्दित” रहने की पौलुस की सलाह रोमियों के लिए उस वक्‍त ज़रूरी क्यों थी? (ख) किस वजह से एक मसीही अपनी आशा को भूल सकता है?

4 प्रेरित पौलुस ने रोम में अपने मसीही भाइयों का हौसला बढ़ाया कि वे अनंत जीवन पाने की “आशा में आनन्दित” रहें। (रोमियों 12:12) रोम के मसीहियों के लिए यह सलाह उस वक्‍त बहुत ज़रूरी थी। पौलुस के यह लिखने के बाद, दस साल भी नहीं गुज़रे थे कि उन मसीहियों को बहुत बुरी तरह सताया जाने लगा और कुछ को सम्राट नीरो के हुक्म पर तड़पा-तड़पाकर मार डाला गया। इन तकलीफों के दौरान, उनके इस विश्‍वास से उन्हें हिम्मत मिली होगी कि परमेश्‍वर उन्हें जीवन का मुकुट ज़रूर देगा। आज हमारे बारे में क्या?

5 मसीही होने के नाते, हम भी यह उम्मीद कर सकते हैं कि हमें सताया जाएगा। (2 तीमुथियुस 3:12) और फिर, हम सभी यह जानते हैं कि हर इंसान “समय और संयोग” के वश में है। (सभोपदेशक 9:11) कोई दुर्घटना हमारे किसी अज़ीज़ की जान ले सकती है। कोई जानलेवा बीमारी हमारे माता/पिता की या किसी जिगरी दोस्त की जान ले सकती है। अगर हम राज्य की आशा पर अपना ध्यान न लगाए रखें, तो ऐसी परीक्षाएँ आने पर हम आध्यात्मिक रूप से खतरे में पड़ सकते हैं। इसलिए, हम सभी को अपने-आप से यह पूछना चाहिए, ‘क्या मैं “आशा में आनन्दित” रहता हूँ? मैं कितनी बार वक्‍त निकालकर इस आशा पर मनन करता हूँ? क्या आनेवाला फिरदौस मेरे लिए एक सच्चाई है? क्या मैं मन की आँखों से खुद को वहाँ देख सकता हूँ? क्या मैं आज भी इस दुष्ट दुनिया के अंत के लिए उसी तरह तरसता हूँ, जैसे उस वक्‍त तरसता था जब मैंने नयी-नयी सच्चाई सीखी थी?’ इस आखिरी सवाल पर हमें वाकई गंभीरता से सोचना चाहिए। क्यों? क्योंकि अगर हमारी सेहत अच्छी है, और हम इतना पैसा कमा लेते हैं कि ज़िंदगी आराम से कट रही है और हम जिस इलाके में रहते हैं वहाँ लड़ाइयों, अकाल या प्राकृतिक विपत्तियों का कोई खास खतरा नहीं है तो हो सकता है कि कुछ वक्‍त के लिए ही सही हम यह भूल जाएँ कि परमेश्‍वर की नयी दुनिया की इंसान को कितनी सख्त ज़रूरत है।

6. (क) क्लेश के दौरान पौलुस और सीलास का ध्यान किस पर लगा हुआ था? (ख) आज पौलुस और सीलास की मिसाल से कैसे हमारी हिम्मत बढ़ती है?

6 पौलुस ने रोमियों को आगे यह सलाह दी, “क्लेश में स्थिर रहो।” (रोमियों 12:12) पौलुस यह अच्छी तरह जानता था कि क्लेश क्या होता है। एक बार, उसने दर्शन में एक आदमी देखा जिसने उसे “मकिदुनिया में आ[कर]” लोगों को यहोवा के बारे में सीखने में मदद करने का बुलावा दिया। (प्रेरितों 16:9) इस पर, पौलुस और उसके साथ लूका, सीलास और तीमुथियुस यूरोप के लिए रवाना हुए। इन जोशीले मिशनरियों को वहाँ पहुँचने पर क्या मिला? क्लेश! जब पौलुस और सीलास ने मकिदुनिया के फिलिप्पी नगर में प्रचार कर लिया, तो उन्हें कोड़ों से मारा गया और जेल में डाल दिया गया। इससे साफ ज़ाहिर है कि फिलिप्पी के कुछ लोग राज्य का संदेश सुनना नहीं चाहते थे, इतना ही नहीं वे इसका कड़ा विरोध भी कर रहे थे। यह सब होने पर क्या इन जोशीले मिशनरियों की खुशी खत्म हो गयी? जी नहीं। जब उन्हें पीटकर कैदखाने में डाल दिया गया तो “आधी रात के लगभग पौलुस और सीलास प्रार्थना करते हुए परमेश्‍वर के भजन गा रहे थे।” (तिरछे टाइप हमारे।) (प्रेरितों 16:25, 26) बेशक, पौलुस और सीलास को कोड़ों की मार से होनेवाले दर्द से खुशी नहीं हुई, मगर इन मिशनरियों का ध्यान इस दर्द की ओर नहीं था। इसके बजाय, उनका सारा ध्यान यहोवा पर और इस बात पर लगा हुआ था कि वह किन-किन तरीकों से उन्हें आशीष दे रहा था। खुशी-खुशी “क्लेश में स्थिर” रहकर पौलुस और सीलास ने फिलिप्पी और दूसरी जगहों के भाइयों के लिए अच्छी मिसाल रखी।

7. हमें अपनी प्रार्थनाओं में धन्यवाद भी क्यों देना चाहिए?

7 पौलुस ने लिखा: “प्रार्थना में नित्य लगे रहो।” (रोमियों 12:12) जब आपको चिंताएँ सताती हैं, तब क्या आप प्रार्थना करते हैं? आप किस बारे में प्रार्थना करते हैं? शायद आप यहोवा को अपनी किसी खास समस्या के बारे में साफ-साफ बताते हैं और उससे मदद माँगते हैं। लेकिन आप अपनी प्रार्थनाओं में उन आशीषों के लिए यहोवा का धन्यवाद भी कर सकते हैं जो आपको मिली हैं। समस्याओं का सामना करते वक्‍त भी अगर हम “आशा में आनन्दित” रहना चाहते हैं, तो हमें इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि यहोवा ने हमारे साथ कितनी भलाई की है। ध्यान दीजिए कि ज़िंदगी में बहुत-सी तकलीफें झेलनेवाले दाऊद ने क्या लिखा: “हे मेरे परमेश्‍वर यहोवा, तू ने बहुत से काम किए हैं! जो आश्‍चर्यकर्म और कल्पनाएं तू हमारे लिये करता है वह बहुत सी हैं; तेरे तुल्य कोई नहीं! मैं तो चाहता हूं कि खोलकर उनकी चर्चा करूं, परन्तु उनकी गिनती नहीं हो सकती।” (भजन 40:5) अगर हम दाऊद की तरह, उन अनगिनत आशीषों पर ध्यान दें जो यहोवा ने हमें दी हैं तो ऐसा हो ही नहीं सकता कि हम आनन्दित न हों।

हिम्मत न हारें

8. एक मसीही को सताए जाने पर भी खुश रहने में किस बात से मदद मिलती है?

8 यीशु ने अपने चेलों को सलाह दी कि परीक्षाओं के वक्‍त भी वे हिम्मत न हारें। वह कहता है: “धन्य हो तुम, जब मनुष्य मेरे कारण तुम्हारी निन्दा करें, और सताएं और झूठ बोल बोलकर तुम्हारे विरोध में सब प्रकार की बुरी बात कहें।” (मत्ती 5:11) भला ऐसे हालात में हम किस वजह से धन्य या खुश कहलाए जा सकते हैं? क्योंकि अगर हम विरोध का सामना करने के काबिल हैं, तो यह इस बात का सबूत है कि यहोवा की आत्मा हम पर काम कर रही है। प्रेरित पतरस ने अपने ज़माने के संगी मसीहियों से कहा: “यदि मसीह के नाम के लिये तुम्हारी निन्दा की जाती है, तो धन्य हो; क्योंकि महिमा का आत्मा, जो परमेश्‍वर का आत्मा है, तुम पर छाया करता है।” (1 पतरस 4:13, 14) अपनी आत्मा के ज़रिए यहोवा, धीरज धरने में हमारी मदद करेगा और इस तरह हम अपनी खुशी कायम रख सकेंगे।

9. अपने विश्‍वास की वजह से जेल में कैद भाइयों को खुश रहने में किस बात से मदद मिली?

9 हम बदतर-से-बदतर हालात में ही क्यों न हों, हमारे पास तब भी खुश रहने की वजह है। एक मसीही जिसका नाम अडॉल्फ है उसे इस बात की सच्चाई का एहसास हुआ। अडॉल्फ एक ऐसे देश में रहता है जहाँ काफी साल से यहोवा के साक्षियों के काम पर पाबंदी लगी हुई है। उसे और उसके कई साथियों को कैद किया गया और उन्हें कई-कई साल की सज़ा सुनायी गयी। यह सज़ा इसलिए दी गयी थी क्योंकि उन्होंने बाइबल से जो विश्‍वास पाया था उसे छोड़ने से इंकार कर दिया। जेल की ज़िंदगी बहुत ही कठोर थी, मगर पौलुस और सीलास की तरह अडॉल्फ और उसके साथियों के पास भी परमेश्‍वर को धन्यवाद करने की वजह थी। उन्होंने कहा कि जेलखाने में उन पर जो गुज़री उससे न सिर्फ उनका विश्‍वास मज़बूत हुआ बल्कि वे ऐसे अनमोल मसीही गुण भी पैदा कर सके जैसे कि उदारता, हमदर्दी और भाइयों के लिए स्नेह। मिसाल के लिए, जब एक कैदी को अपने घर से कुछ मिलता था तो वह उन चीज़ों को अपने मसीही भाइयों के साथ बाँटता, जिनकी नज़र में ये सभी चीज़ें यहोवा की ओर से थीं, जो “हर एक अच्छा वरदान और हर एक उत्तम दान” का देनेवाला है। भलाई के ऐसे कामों से देनेवाले और पानेवाले दोनों को खुशी मिली। इस तरह जिस कैदखाने में डालकर उनके विश्‍वास को तोड़ने की कोशिश की गयी, उसी कैद ने उन्हें आध्यात्मिक रूप से मज़बूत किया!—याकूब 1:17; प्रेरितों 20:35.

10, 11. एक बहन ने दिन-रात पूछताछ किए जाने और उसके बाद एक लंबा अरसा जेल में काटने की तकलीफ कैसे झेली?

10 एला भी एक ऐसे देश में रहती है जहाँ काफी समय से राज्य के प्रचार काम पर पाबंदी लगी हुई थी और उसे अपनी मसीही आशा के बारे में दूसरों को बताने की वजह से गिरफ्तार किया गया। आठ महीनों के लिए, उससे दिन-रात पूछताछ की गयी। जब आखिरकार उस पर मुकद्दमा चला, तो उसे दस साल कैद की सज़ा सुनायी गयी और एक ऐसे जेल में डाला गया जहाँ यहोवा की उपासना करनेवाला कोई नहीं था। एला की उम्र उस वक्‍त सिर्फ 24 साल थी।

11 बेशक, एला यह तो नहीं चाहती थी कि उसकी जवानी के ज़्यादातर दिन सलाखों के पीछे कटें। मगर वह अपने हालात को बदल भी तो नहीं सकती थी, इसलिए उसने अपना नज़रिया बदलने का फैसला किया। वह जेल को ही प्रचार करने के लिए अपना निजी क्षेत्र मानने लगी। वह कहती है, “वहाँ इतने लोगों को प्रचार करना था कि वक्‍त मानो पंख लगाकर उड़ गया।” पाँच से ज़्यादा साल बीत गए, तब एला से फिर पूछताछ की गयी। उससे पूछताछ करनेवालों ने जाना कि जेल की सलाखें उसके विश्‍वास को मिटा नहीं सकी थीं, इसलिए उससे कहा गया: “हम तुम्हें नहीं छोड़ सकते; क्योंकि तुम बिलकुल नहीं बदली हो।” एला ने दृढ़ता से जवाब दिया, “मगर मुझमें बदलाव ज़रूर आया है! जब मैं पहले दिन जेल में आयी थी तब से मेरे रवैए में काफी सुधार हुआ है, मेरा विश्‍वास पहले से कहीं ज़्यादा मज़बूत हो गया है!” उसने आगे कहा, “अगर आप मुझे रिहा नहीं करना चाहते, तो मैं तब तक यहीं रहूँगी जब तक यहोवा मुझे छुटकारा नहीं दिलाता।” साढ़े पाँच साल तक कैद में रहने से एला की खुशी खत्म नहीं हुई थी! चाहे जैसे भी हालात हों, उसने संतुष्ट रहना सीखा। क्या आप उसकी मिसाल से कुछ सीख सकते हैं?—इब्रानियों 13:5.

12. मुश्‍किलों का सामना करते वक्‍त एक मसीही को मन की शांति कैसे मिल सकती है?

12 यह मत सोचिए कि एला के पास कोई ऐसा अनोखा वरदान है जिसकी वजह से वह ऐसी मुश्‍किलों का सामना कर सकती है। सज़ा दिए जाने से पहले, कई महीनों तक उससे पूछताछ का जो सिलसिला चलता रहा, उसके बारे में कहते हुए एला स्वीकार करती है: “मुझे याद है डर के मारे मेरे दाँत कटकटा रहे थे और मैं किसी डरी-सहमी चिड़िया की तरह महसूस कर रही थी।” मगर, यहोवा पर एला का विश्‍वास बहुत मज़बूत था। उसने परमेश्‍वर पर भरोसा रखना सीखा। (नीतिवचन 3:5-7) इसका नतीजा यह हुआ है कि परमेश्‍वर को वह और करीब से जान सकी। वह कहती है: “हर बार जब मैं पूछताछवाले कमरे में दाखिल होती थी, मुझ पर एक शांति-सी छा जाती थी। . . . मेरे हालात जितने ज़्यादा डरावने होते थे, मेरी शांति भी उतनी ही गहरी होती जाती थी।” वह शांति यहोवा की ओर से थी। प्रेरित पौलुस कहता है: “किसी भी बात की चिन्ता मत करो: परन्तु हर एक बात में तुम्हारे निवेदन, प्रार्थना और बिनती के द्वारा धन्यवाद के साथ परमेश्‍वर के सम्मुख उपस्थित किए जाएं। तब परमेश्‍वर की शान्ति, जो समझ से बिलकुल परे है, तुम्हारे हृदय और तुम्हारे विचारों को मसीह यीशु में सुरक्षित रखेगी।”—फिलिप्पियों 4:6, 7.

13. किस बात से हमें यकीन होता है कि अगर हम पर क्लेश आए, तो उसे हम सह सकेंगे?

13 उसके बाद एला को रिहा कर दिया गया और उसने दुःख-तकलीफों के होते हुए भी अपनी खुशी कायम रखी। उसने ऐसा अपने बलबूते पर नहीं किया, बल्कि यहोवा से मिलनेवाली ताकत से किया। यही बात प्रेरित पौलुस के बारे में भी सच थी, उसने लिखा: “इसलिये मैं बड़े आनन्द से अपनी निर्बलताओं पर घमण्ड करूंगा, कि मसीह की सामर्थ मुझ पर छाया करती रहे। . . . क्योंकि जब मैं निर्बल होता हूं, तभी बलवन्त होता हूं।”—2 कुरिन्थियों 12:9, 10.

14. मिसाल देकर समझाइए कि कैसे एक मसीही परेशानियों से गुज़रते वक्‍त भी अच्छा नज़रिया रख सकता है और इसका नतीजा क्या हो सकता है।

14 आप भी शायद कुछ ऐसी परेशानियों से गुज़र रहे होंगे जिनकी चर्चा यहाँ नहीं की गयी। चाहे वे किसी भी किस्म की परेशानियाँ क्यों न हों, उनका सामना करना हरगिज़ आसान नहीं है। मिसाल के लिए, आपका मालिक आपके काम में कोई-न-कोई नुक्स निकालता रहता है, और ऐसा वह ज़्यादातर आपके साथ ही करता है। बाकी धर्म के माननेवाले दूसरे कर्मचारियों के साथ वह इतनी सख्ती से पेश नहीं आता। आप इस नौकरी को छोड़ नहीं सकते क्योंकि शायद दूसरी मिलना मुमकिन न हो। ऐसे में आप अपनी खुशी कैसे कायम रख सकते हैं? अडॉल्फ और उसके साथियों को याद कीजिए। जेलखाने में उन पर जो गुज़री उसकी वजह से वे अपने अंदर बहुत ही बढ़िया और ज़रूरी गुण पैदा कर सके। अगर आप भी अपने मालिक को खुश करने के लिए पूरी ईमानदारी से मेहनत करें, चाहे वह ‘बुरे मिज़ाजवाला’ ही क्यों न हो, तो आप अपने अंदर धीरज और संयम जैसे मसीही गुणों को बढ़ा पाएँगे। (1 पतरस 2:18, हिन्दुस्तानी बाइबल) इसके अलावा, एक हुनरमंद कर्मचारी के नाते शायद आपकी अहमियत बढ़ जाए जिसकी वजह से यह गुंजाइश भी बढ़ेगी कि किसी दिन आपको कहीं और बेहतर नौकरी मिल जाए। आइए अब यहोवा की सेवा में अपनी खुशी कायम रखने के कुछ और तरीकों पर हम चर्चा करें।

ज़िंदगी की उलझनें कम करने से खुशी मिलती है

15-17. एक जोड़े ने तनाव कम करने के तरीके के बारे में क्या जाना, हालाँकि तनाव की वजह को शायद पूरी तरह से निकाला न जा सके?

15 आप किस किस्म की नौकरी करेंगे या कहाँ करेंगे, इस पर शायद आपका इख्तियार न हो। लेकिन आपकी ज़िंदगी में कुछ ऐसी बातें हैं जिन पर आपको कुछ हद तक इख्तियार है। नीचे दिए गए अनुभव पर गौर कीजिए।

16 एक मसीही जोड़े ने एक प्राचीन को अपने घर खाने पर बुलाया। उस शाम के दौरान, मेज़बान भाई और उसकी पत्नी ने अपने दिल की बात बतायी और कहा कि कुछ समय से उन्हें लग रहा है कि वे ज़िंदगी की परेशानियों के बोझ तले दबते जा रहे हैं। वे दोनों ऐसी नौकरी करते थे जिसमें उनका ज़्यादातर वक्‍त और ताकत खर्च हो जाती थी, लेकिन फिलहाल वे कोई और नौकरी ढूँढने की स्थिति में नहीं थे। वे सोच रहे थे कि इस तरह वे कब तक चलते रहेंगे।

17 जब उन्होंने सलाह माँगी, तो उस प्राचीन ने कहा, “ज़िंदगी की उलझनें सुलझाइए।” कैसे? पति-पत्नी दोनों को अपनी नौकरी के लिए आने-जाने में हर दिन तीन घंटे लगते थे। यह प्राचीन उस जोड़े को अच्छी तरह जानता था, उसने इन्हें सुझाव दिया कि वे अपना घर बदलकर ऐसी जगह पर जाकर रहें जहाँ से उनकी नौकरी की जगह पास हो। ऐसा करने से काफी हद तक उनका वह समय बचेगा, जो हर दिन सिर्फ नौकरी से आने-जाने में ही खर्च हो जाता है। ऐसा करने से जो समय बचेगा उसे दूसरे ज़रूरी कामों में या सिर्फ आराम करने में ही बिताया जा सकता है। अगर ज़िंदगी की परेशानियों के कारण आपकी भी खुशी कुछ हद तक कम हो रही है, तो क्यों न आप अपने हालात की जाँच करें ताकि कुछ हद तक फेर-बदल करके आप आराम पा सकें?

18. फैसले करने से पहले क्यों अच्छी तरह सोच लेना बेहद ज़रूरी है?

18 परेशानियाँ कम करने का एक और तरीका है, फैसले करने से पहले अच्छी तरह सोच लीजिए। मिसाल के लिए, एक मसीही घर बनाने का फैसला करता है। उसने पहले कभी घर नहीं बनवाया था, मगर फिर भी उसने अपने घर के लिए बहुत ही पेचीदा किस्म का डिज़ाइन चुना। अब उसे अफसोस हो रहा है कि अगर वह घर का डिज़ाइन चुनते वक्‍त “समझ बूझकर” काम करता तो बहुत-सी परेशानियों से बच सकता था। (नीतिवचन 14:15) दूसरी तरफ एक और मसीही है जिसने अपने आध्यात्मिक भाई के कर्ज़ की ज़िम्मेदारी स्वीकार कर ली। समझौते के मुताबिक, अगर कर्ज़ लेनेवाला इसे चुका नहीं पाता तो जिसने इसकी ज़िम्मेदारी ली है उसे यह कर्ज़ चुकाना पड़ेगा। शुरूआत में तो कोई परेशानी नहीं आयी, मगर कुछ समय के बाद कर्ज़ लेनेवाला भाई रकम लौटाने से ना-नुकुर करने लगा। कर्ज़ देनेवाला फौरन चौकन्‍ना हो गया और तकाज़ा किया कि जिसने कर्ज़ की ज़िम्मेदारी उठायी है वही सारा कर्ज़ चुकाए। इसकी वजह से ज़िम्मेदारी लेनेवाला परेशानी में पड़ गया। अगर वह सब पहलुओं के बारे में पहले अच्छी तरह सोच लेता और उसके बाद ही कर्ज़ की ज़िम्मेदारी उठाने की हामी भरता, तो क्या इस परेशानी को टाला नहीं जा सकता था?—नीतिवचन 17:18.

19. कौन-से कुछ तरीकों से हम अपनी ज़िंदगी के तनाव को कम कर सकते हैं?

19 अगर हम थक जाते हैं, तो कभी यह मत सोचिए कि हम निजी बाइबल अध्ययन, प्रचार के काम और सभाओं के वक्‍त में कटौती करके आराम करेंगे तो अपने तनाव को कम कर सकते हैं और इस तरह दोबारा खुशी हासिल कर सकते हैं। जी नहीं, ऐसा हरगिज़ न करें। क्योंकि यही तो कुछ ऐसे खास तरीके हैं जिनके ज़रिए हमें यहोवा की पवित्र आत्मा मिल सकती है, और इसी आत्मा का एक फल है आनन्द। (गलतियों 5:22) परमेश्‍वर की सेवा में किए गए कामों से हमें हमेशा ताज़गी ही मिलती है और आम तौर पर इनसे हम ज़्यादा नहीं थकते। (मत्ती 11:28-30) हाँ, यह बहुत मुमकिन है कि जो आध्यात्मिक काम नहीं हैं, यानी दुनियावी काम या मनोरंजन हमारी थकान की वजह हो सकते हैं। रात के वक्‍त सही समय पर सोने से हमारी थकान दूर हो सकती है। थोड़ा-सा ज़्यादा आराम हमारे लिए बहुत फायदेमंद हो सकता है। भाई एन. एच. नॉर जो अपनी मौत के वक्‍त तक यहोवा के साक्षियों के शासी निकाय के एक सदस्य थे, मिशनरियों से कहा करते थे: “जब आप निराश हो जाएँ तो पहला काम यह कीजिए कि थोड़ा आराम कर लीजिए। आपको यह देखकर ताज्जुब होगा कि रात को अच्छी नींद लेने के बाद, अगले दिन किसी भी समस्या को सुलझाना कितना आसान हो जाता है!”

20. (क) चंद शब्दों में बताइए कि कौन-से कुछ तरीकों से हम अपनी खुशी कायम रख सकते हैं। (ख) खुश रहने के लिए आप कौन-से कारण दे सकते हैं? (पेज 17 पर बक्स देखिए।)

20 मसीहियों को “परमधन्य परमेश्‍वर” की सेवा करने का सुनहरा अवसर मिला है। (1 तीमुथियुस 1:11) जैसा हमने देखा है, हम गंभीर समस्याओं से घिरे होने पर भी अपनी खुशी कायम रख सकते हैं। आइए हम राज्य की आशा को हमेशा अपनी नज़रों के सामने रखें, जहाँ ज़रूरी हो वहाँ अपना नज़रिया बदलें और अपनी ज़िंदगी को आसान बनाएँ। ऐसा करने पर, चाहे हम कैसी भी स्थिति में क्यों न हों हम प्रेरित पौलुस की सलाह को मानेंगे: “प्रभु में सदा आनन्दित रहो; मैं फिर कहता हूं, आनन्दित रहो।”—फिलिप्पियों 4:4.

इन सवालों पर अच्छी तरह ध्यान दीजिए:

• मसीहियों को अपनी नज़र राज्य की आशा पर क्यों टिकाए रखनी चाहिए?

• मुश्‍किल हालात में भी हमें अपनी खुशी कायम रखने में किस बात से मदद मिलेगी?

• हमें अपनी ज़िंदगी को क्यों आसान बनाने की कोशिश करनी चाहिए?

• कुछ लोगों ने किन मामलों में अपनी ज़िंदगी को आसान बनाया है?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 17 पर बक्स/तसवीरें]

खुश रहने के कुछ और कारण

मसीही होने के नाते हमारे पास खुश होने के बहुत से कारण हैं। आइए देखें:

1. हम यहोवा को जानते हैं।

2. हमने परमेश्‍वर के वचन से सच्चाई सीखी है।

3. यीशु के बलिदान पर विश्‍वास रखने से हम अपने पापों की माफी पा सकते हैं।

4. परमेश्‍वर के राज्य की हुकूमत शुरू हो चुकी है, और नयी दुनिया बहुत जल्द आनेवाली है!

5. यहोवा हमें आध्यात्मिक फिरदौस में लाया है।

6. मसीही भाई-बहनों के अच्छे साथ का हम फायदा उठाते हैं।

7. हमें प्रचार करने का सुनहरा अवसर मिला है।

8. हम ज़िंदा हैं, और हमारे शरीर में कुछ हद तक ताकत है।

इनके अलावा, आप खुश रहने के और कितने कारण बता सकते हैं?

[पेज 13 पर तसवीर]

पौलुस और सीलास कैदखाने में भी खुश थे

[पेज 15 पर तसवीरें]

क्या आपकी नज़र परमेश्‍वर की आनेवाली नयी दुनिया पर टिकी हुई है?