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सुनकर भूलनेवाले मत बनिए

सुनकर भूलनेवाले मत बनिए

सुनकर भूलनेवाले मत बनिए

“वचन पर चलनेवाले बनो, और केवल सुननेवाले ही नहीं जो अपने आप को धोखा देते हैं।”याकूब 1:22.

1. प्राचीन समय के इस्राएलियों को कौन-से चमत्कार देखने का सुअवसर मिला था?

 “ज़िंदगी भर याद रहेगा!” इन शब्दों के ज़रिए प्राचीन मिस्र में किए गए यहोवा के चमत्कारों के लिए अपनी भावना ज़ाहिर करना बिलकुल सही होगा। दस विपत्तियों में हरेक विपत्ति वाकई बेजोड़ थी। एक-के-बाद-एक विपत्ति घटने के बाद, इस्राएलियों के लिए बड़े ही अद्‌भुत तरीके से लाल समुद्र के बीचों-बीच रास्ता निकाला गया और इस तरह उनका उद्धार किया गया। (व्यवस्थाविवरण 34:10-12) अगर आप उन घटनाओं के चश्‍मदीद गवाह होते तो बेशक आप भी उस महान हस्ती को कभी नहीं भूल पाते जिसने ये सारे चमत्कार किए थे। मगर जैसा भजनहार ने गीत में गाया, “वे [इस्राएली] अपने उद्धारकर्त्ता ईश्‍वर को भूल गए, जिस ने मिस्र में बड़े-बड़े काम किए थे। उस ने तो हाम के देश में आश्‍चर्यकर्म और लाल समुद्र के तीर पर भयंकर काम किए थे।”—भजन 106:21, 22.

2. किस बात से पता चलता है कि परमेश्‍वर के महान कामों के लिए इस्राएलियों की कदर बस कुछ ही समय के लिए थी?

2 लाल समुद्र पार करने के बाद, इस्राएलियों ने “यहोवा का भय माना और यहोवा की . . . प्रतीति की।” (निर्गमन 14:31) इस्राएली पुरुषों ने मूसा के साथ विजय गीत गाया, मरियम और दूसरी स्त्रियाँ भी डफ लिए नाचती हुईं उनके पीछे हो ली थीं। (निर्गमन 15:1, 20) जी हाँ, यहोवा के लोग परमेश्‍वर के इन शक्‍तिशाली कामों से बेहद प्रभावित हुए थे। मगर जिसने ये चमत्कार किए थे उसके लिए उनकी कदर ज़्यादा दिन नहीं रही। बहुत जल्द वे उन सभी बातों को भूल गए मानो उनकी याददाश्‍त खो गई हो। वे कुड़कुड़ाने और यहोवा के खिलाफ शिकायतें करने लगे। और कुछ लोग तो मूर्तिपूजा और लैंगिक अनैतिकता में फँस गए।—गिनती 14:27; 25:1-9.

किस वजह से हम भूल सकते हैं?

3. हमारे असिद्ध होने की वजह से हम क्या भूल सकते हैं?

3 इस बात पर विश्‍वास करना कितना मुश्‍किल लगता है कि इस्राएली इतनी जल्दी एहसानफरामोश बन गए थे। मगर, आज हमारे साथ भी ऐसा हो सकता है। यह बात सच है कि हमने परमेश्‍वर के ऐसे चमत्कार नहीं देखे हैं। लेकिन हमारे जीवन में ऐसे कई अवसर आए होंगे जिन्हें हम कभी नहीं भुला सकते। हममें से कुछ लोग शायद उस समय को याद करें जब हमने बाइबल की सच्चाई अपनाई थी। ज़िंदगी के दूसरे सुनहरे पलों को भी हम याद कर सकते हैं जैसे कि प्रार्थना में अपने आपको परमेश्‍वर को समर्पित करना और सच्चे मसीही के तौर पर पानी में बपतिस्मा लेना। हममें से बहुत-से लोगों की ज़िंदगी में ऐसी कई घड़ियाँ आई होंगी जब यहोवा ने हमें अपने हाथों में थाम लिया था। (भजन 118:15) इन सबसे बढ़कर, परमेश्‍वर के अपने बेटे यीशु मसीह के बलिदान की वजह से हमें उद्धार की आशा मिली है। (यूहन्‍ना 3:16) मगर फिर भी, असिद्ध होने की वजह से, जब हम गलत इच्छाओं या जीवन की चिंताओं का सामना करते हैं, तो हम उन सब अच्छे कामों को आसानी से भूल सकते हैं जो यहोवा ने हमारे लिए किए हैं।

4, 5. (क) किस तरह याकूब सावधान करता है कि सुनकर भूलने से खतरा हो सकता है? (ख) अपना मुँह दर्पण में देखनेवाले मनुष्य के बारे में याकूब ने जो उदाहरण दिया उसे हम कैसे लागू कर सकते हैं?

4 यीशु के सौतेले भाई याकूब ने अपने पत्र में संगी मसीहियों को सावधान किया, कि सुनकर भूल जाने पर क्या खतरे हो सकते हैं। उसने लिखा: “वचन पर चलनेवाले बनो, और केवल सुननेवाले ही नहीं जो अपने आप को धोखा देते हैं। क्योंकि जो कोई वचन का सुननेवाला हो, और उस पर चलनेवाला न हो, तो वह उस मनुष्य के समान है जो अपना स्वाभाविक मुँह दर्पण में देखता है। इसलिये कि वह अपने आप को देखकर चला जाता, और तुरन्त भूल जाता है कि मैं कैसा था।” (याकूब 1:22-24) याकूब के इन शब्दों का क्या मतलब था?

5 सुबह उठने के बाद हम खुद को आइने में देखते हैं और अपना हुलिया ठीक करते हैं। फिर जब हम दिन-भर के कामों में लग जाते हैं और हमारा ध्यान दूसरी बातों की तरफ चला जाता है, तो हम भूल जाते हैं कि हमने सुबह आइने में क्या देखा था। आध्यात्मिक तौर पर भी ऐसा हो सकता है। परमेश्‍वर के वचन में देखने पर हमें मालूम पड़ता है कि हम किस हद तक परमेश्‍वर की माँगों को पूरा कर रहे हैं। इस तरह हमारी कमज़ोरियाँ हमारे सामने ज़ाहिर होती हैं। दरअसल यह बात हमें अपने आप में बदलाव करने के लिए प्रेरित करनी चाहिए। लेकिन जब हम अपने रोज़मर्रा के कामों में लग जाते हैं या जब अपनी समस्याओं से जूझते हैं, तो हम बड़ी आसानी से आध्यात्मिक बातों को भूल सकते हैं। (मत्ती 5:3; लूका 21:34) यह ऐसा है मानो जो यहोवा ने हमारे लिए किया है, हम उसे भूल गए। अगर हमारे साथ ऐसा होता है, तो गलत इच्छाओं के फँदे में फँसने में हमें ज़रा भी देर नहीं लगेगी।

6. बाइबल की किन बातों पर गौर करने से हमें यहोवा के वचन को न भूलने में मदद मिलेगी?

6 कुरिन्थ के मसीहियों को लिखी अपनी पहली पत्री में पौलुस उन इस्राएलियों का ज़िक्र करता है जो वीराने में परमेश्‍वर को जो भूल गए थे। पहली सदी के मसीहियों की तरह पौलुस के लिखे शब्दों पर गौर करने से आज हमें भी फायदा होगा ताकि हम यहोवा के वचन को न भूल न जाएँ। इसलिए आइए हम 1 कुरिन्थियों 10:1-12 पर विचार करें।

सांसारिक अभिलाषाओं से मन फिराना

7. यहोवा के प्यार के ऐसे क्या सबूत दिए गए जिन्हें इस्राएली नकार नहीं सकते थे?

7 इस्राएलियों के बारे में पौलुस की कही बात हमारे लिए एक चेतावनी है। पौलुस ने कहा: “मैं नहीं चाहता, कि तुम इस बात से अज्ञात रहो, कि हमारे सब बापदादे बादल के नीचे थे, और सब के सब समुद्र के बीच से पार हो गए। और सब ने बादल में, और समुद्र में, मूसा का बपतिस्मा लिया।” (1 कुरिन्थियों 10:1-4) मूसा के दिनों में, इस्राएलियों ने परमेश्‍वर की ताकत के बड़े-बड़े करिश्‍मे देखे, जिनमें से एक था परमेश्‍वर का चमत्कारी बादल का खंभा जो दिन में रास्ता दिखाता था और जिसने लाल समुद्र पार करने में इस्राएलियों की मदद की थी। (निर्गमन 13:21; 14:21, 22) जी हाँ, उन इस्राएलियों को परमेश्‍वर के प्यार के ऐसे-ऐसे सबूत दिए गए थे जिन्हें वे नकार नहीं सकते थे।

8. आध्यात्मिक बातों को भूल चुके इस्राएलियों को क्या अंजाम भुगतने पड़े?

8 पौलुस आगे कहता है: “परन्तु परमेश्‍वर उन में के बहुतेरों से प्रसन्‍न न हुआ, इसलिये वे जङ्‌गल में ढेर हो गए।” (1 कुरिन्थियों 10:5) कितने दुःख की बात है! मिस्र से निकल आए ज़्यादातर इस्राएलियों ने अपने विश्‍वास की कमी से यह ज़ाहिर किया कि वे वादा किए हुए देश में पहुँचने के काबिल नहीं हैं। इसलिए परमेश्‍वर ने उन्हें ठुकरा दिया और वे वीराने में ही मर गए। (इब्रानियों 3:16-19) इससे हम क्या सीख सकते हैं? पौलुस कहता है: “ये बातें हमारे लिए दृष्टान्त ठहरीं, कि जैसे उन्हों ने लालच किया, वैसे हम बुरी वस्तुओं का लालच न करें।”—1 कुरिन्थियों 10:6.

9. यहोवा ने अपने लोगों के लिए क्या इंतज़ाम किया और उन्होंने कैसी प्रतिक्रिया दिखायी?

9 वीराने से गुज़रते समय इस्राएलियों के पास मनन करने के लिए बहुत सारी आध्यात्मिक बातें थीं। परमेश्‍वर ने उनके साथ वाचा बाँधी थी और इस तरह वे परमेश्‍वर की समर्पित जाति बन गए थे। इसके अलावा, उन्हें याजकवर्ग दिया गया, उनके बीच एक निवासस्थान स्थापित किया गया जो उपासना का केंद्र था, और यहोवा को बलिदान चढ़ाने का इंतज़ाम भी था। मगर इन आध्यात्मिक तोहफों का आनंद उठाने के बजाय, इस्राएली यहोवा द्वारा किए गए भौतिक इंतज़ामों पर कुड़कुड़ाने लगे।—गिनती 11:4-6.

10. हमें क्यों परमेश्‍वर को हमेशा याद रखना चाहिए?

10 आज यहोवा के लोग उन इस्राएलियों से बिलकुल अलग हैं जो जंगल में भटक रहे थे। यहोवा उनसे खुश है और उन्हें स्वीकार करता है। मगर हममें से हरेक को परमेश्‍वर को याद रखना बेहद ज़रूरी है। ऐसा करने से हम स्वार्थी इच्छाओं में नहीं फँसेंगे जो हमारे नज़रिए को धुँधला कर सकती हैं। हम सबको ठान लेना चाहिए कि “हम अभक्‍ति और सांसारिक अभिलाषाओं से मन फेरकर इस युग में संयम और धर्म और भक्‍ति से जीवन बिताएं।” (तीतुस 2:12) जो लोग छुटपन से ही मसीही कलीसियाओं के साथ संगति करते हैं, उन्हें कभी यह नहीं सोचना चाहिए कि उनकी ज़िंदगी में कोई मज़ा नहीं है। अगर इस तरह का ख्याल हमारे मन में आता है, तो हमें उसी वक्‍त यहोवा को याद करना चाहिए, साथ ही भविष्य में मिलनेवाली उन बढ़िया आशीषों को भी याद करना चाहिए जिन्हें देने का उसने हमसे वादा किया है।—इब्रानियों 12:2, 3.

पूरी तरह से यहोवा के आज्ञाकारी होना

11, 12. एक व्यक्‍ति किसी प्रतिमा या मूर्ति का इस्तेमाल किए बिना भी कैसे मूर्तिपूजक बन सकता है?

11 पौलुस हमें एक और चेतावनी देता है: “न तुम मूरत पूजनेवाले बनो; जैसे कि उन में से कितने बन गए थे, जैसा लिखा है, कि लोग खाने-पीने बैठे, और खेलने-कूदने उठे।” (1 कुरिन्थियों 10:7) यहाँ पर पौलुस ने उस घटना का ज़िक्र किया है जब इस्राएलियों ने सोने का बछड़ा बनाने के लिए हारून को मजबूर किया था। (निर्गमन 32:1-4) हालाँकि आज खुलेआम मूर्तिपूजा करने की बात हमारे मन में न आए, लेकिन अगर हम अपनी स्वार्थी इच्छाओं पर काबू न रखें तो हम यहोवा की तन-मन से भक्‍ति करने से बहक जाएंगे और इस मायने में हम मूर्तिपूजक बन जाएंगे।—कुलुस्सियों 3:5.

12 दूसरे मौके पर, पौलुस ने उन लोगों के बारे में लिखा जो आध्यात्मिक बातों से बढ़कर भौतिक चीज़ों की चिंता करते थे। जो लोग ‘अपने चालचलन से मसीह के क्रूस के बैरी’ बनकर चल रहे थे, उनके बारे में उसने लिखा: “उन का अन्त विनाश है, उन का ईश्‍वर पेट है।” (फिलिप्पियों 3:18, 19) वे किसी प्रतिमा या मूर्ति की पूजा नहीं कर रहे थे। बल्कि भौतिक चीज़ों की लालसा करने के ज़रिए वे मूर्तिपूजक बन गए थे। बेशक, हर इच्छा बुरी नहीं होती है। यहोवा ने हमारे अंदर कुछ इच्छाएँ पैदा की हैं और अलग-अलग तरह से जीवन का आनंद लेने की काबिलीयत दी है। लेकिन जो कोई भी परमेश्‍वर के रिश्‍ते को अहमियत देने के बजाय सुख-विलास को पहला स्थान देते हैं, वह वास्तव में मूर्तिपूजक के बराबर हैं।—2 तीमुथियुस 3:1-5.

13. सोने के बछड़े के बारे में दिए गए वृत्तांत से हम क्या सीख सकते हैं?

13 मिस्र से निकलने के बाद इस्राएलियों ने उपासना के लिए सोने का बछड़ा बनाया। इस घटना से हमें न सिर्फ मूर्तिपूजा के खिलाफ चेतावनी मिलती है बल्कि एक और अहम बात सीखने को मिलती है। यहोवा ने इस्राएलियों को जो साफ-साफ आज्ञा दी थी, उसे उन्होंने तोड़ दिया। (निर्गमन 20:4-6) फिर भी वे यहोवा को अपना परमेश्‍वर मानते थे। इसीलिए जब उन्होंने सोने के बछड़े के सामने बलि चढ़ायी तो उस मौके को “यहोवा के लिये पर्ब्ब” कहा। एक तरह से उन्होंने खुद को धोखा दिया, यह सोचकर कि परमेश्‍वर आज्ञा तोड़ने की उनकी इस गुस्ताखी को नज़रअंदाज़ कर देगा। यह सरासर यहोवा की बेइज़्ज़ती थी, जिसकी वजह से यहोवा का क्रोध भड़क उठा।—निर्गमन 32:5, 7-10; भजन 106:19, 20.

14, 15. (क) सुनकर भूलनेवाले बनने की इस्राएलियों के पास कोई वजह क्यों नहीं थी? (ख) अगर हम ठान लें कि हम सुनकर भूलनेवाले नहीं बनेंगे तो हम यहोवा की आज्ञाओं को कैसे लागू करेंगे?

14 ऐसे मामले बहुत कम हैं जिनमें यहोवा का एक साक्षी किसी झूठे धर्म को अपना लेता है। लेकिन कलीसिया में रहते हुए भी कुछ लोग दूसरे तरीके से यहोवा के निर्देशन को ठुकरा देते हैं। इस्राएलियों के पास सुनकर भूलनेवाले बनने की कोई वजह नहीं थी। उन्होंने दस आज्ञाओं को सुना था और वे तब भी मौजूद थे, जब मूसा ने परमेश्‍वर की यह आज्ञा सुनायी: “तुम मेरे साथ किसी को सम्मिलित न करना, अर्थात्‌ अपने लिये चान्दी वा सोने से देवताओं को न गढ़ लेना।” (निर्गमन 20:18, 19, 22, 23) इसके बावजूद इस्राएलियों ने सोने के बछड़े की उपासना की।

15 उसी तरह हमारे पास भी ऐसा कोई जायज़ कारण नहीं है कि हम सुनकर भूलनेवाले बने। शास्त्र के द्वारा परमेश्‍वर ने हमें जीवन के हर पहलू के बारे में निर्देशन दिया है। उदाहरण के लिए, यहोवा के वचन में उधार लेने के बाद उसे वापस ना लौटाने की आदत की साफ निंदा की गई है। (भजन 37:21) बच्चों को अपने माता-पिता की आज्ञा मानने की सलाह दी गयी है, और पिताओं से यह माँग की जाती है कि वे अपने बच्चों को “प्रभु की शिक्षा, और चितावनी देते हुए, उन का पालन-पोषण” करें। (इफिसियों 6:1-4) अविवाहित मसीहियों को निर्देश दिया गया है कि वे “केवल प्रभु में” शादी करें और परमेश्‍वर के शादी-शुदा सेवकों से यह कहा गया है: “विवाह सब में आदर की बात समझी जाए, और बिछौना निष्कलंक रहे; क्योंकि परमेश्‍वर व्यभिचारियों, और परस्त्रीगामियों का न्याय करेगा।” (1 कुरिन्थियों 7:39; इब्रानियों 13:4) अगर हम सुनकर भूलनेवाले न बनने की ठान लें, तो हम इन निर्देशनों को और परमेश्‍वर से मिलनेवाले दूसरे निर्देशनों को भी गंभीरता से लेकर अपने जीवन में लागू करेंगे।

16. सोने के बछड़े की उपासना करने के क्या अंजाम हुए?

16 इस्राएलियों ने अपने तरीके से यहोवा की उपासना करने की कोशिश की, मगर यहोवा ने उसे स्वीकार नहीं किया। इसके बजाय, करीब 3,000 लोगों को मौत के घाट उतार दिया, शायद इसीलिए क्योंकि परमेश्‍वर के खिलाफ सोने के बछड़े की उपासना करने में ये लोग ही सबसे ज़्यादा ज़िम्मेदार थे। और बाकी पाप करनेवालों पर भी यहोवा की तरफ से विपत्ति आयी। (निर्गमन 32:28, 35) उन लोगों के लिए यह क्या ही बढ़िया सबक है जो परमेश्‍वर का वचन पढ़ते तो हैं, मगर अपनी मर्ज़ी के मुताबिक उसकी आज्ञाओं का पालन करते हैं!

“व्यभिचार से बचे रहो”

17. पहले कुरिन्थियों 10:8 में किस घटना का ज़िक्र है?

17 एक और पहलू है, जिसमें शारीरिक इच्छाओं की वजह से हम अपनी आध्यात्मिक याददाशत खो सकते हैं। इसके बारे में पौलुस ने बताया: “न हम व्यभिचार करें; जैसा उन में से कितनों ने किया: और एक दिन में तेईस हजार मर गये।” (1 कुरिन्थियों 10:8) यहाँ पौलुस मोआब की तराई में हुई घटना का ज़िक्र करता है जो इस्राएलियों के 40 साल वीराने में भटकने के अंत में घटी। उस घटना के कुछ ही समय पहले परमेश्‍वर ने पूर्वी यरदन के देशों पर जीत हासिल करने में इस्राएलियों की मदद की थी। लेकिन बहुत जन इस बात को भूल गए और एहसानफरामोश बन गए। वादा किए हुए देश की सरहद पर, वे लैंगिक अनैतिकता और बाल पोर देवता की उपासना के फँदे में फंस गए। इस वजह से करीब 24,000 इस्राएली मारे गए, जिनमें से 1,000 जन वे थे जिन्होंने इस बुराई के लिए दूसरों को उकसाया था।—गिनती 25:9.

18. किस तरह का व्यवहार हमें लैंगिक अनैतिकता में फँसा सकता है?

18 यहोवा के लोग आज अपने ऊँचे नैतिक स्तरों का पालन करने के लिए जाने जाते हैं। लेकिन उनमें से कुछ ऐसे हैं जो लैंगिक अनैतिकता का प्रलोभन आने पर परमेश्‍वर और उसके सिद्धांतों के बारे में सोचना छोड़ देते हैं। वे सुनकर भूलनेवाले बन जाते हैं। ज़रूरी नहीं कि वे शुरूआत में ही व्यभिचार कर बैठें। लेकिन हो सकता है कि उन्हें धीरे-धीरे अश्‍लील तसवीरें देखने का चस्का लग जाए, या वे गंदे मज़ाक करने लगें या दूसरों पर डोरे डालने की कोशिश करें या ऐसे लोगों के साथ ज़्यादा घुलने-मिलने लगें जिनके नैतिक दर्जे ऊँचे नहीं है। इन वजहों से कुछ मसीही पापपूर्ण आचरण में फँस गए हैं।—1 कुरिन्थियों 15:33; याकूब 4:4.

19. बाइबल की कौन-सी सलाह हमें ‘व्यभिचार से बचे रहने’ में मदद करती है?

19 अगर हमें अनैतिकता में फँसने का प्रलोभन आए तो हमें उस समय यहोवा को नहीं भूलना चाहिए। इसके बजाय परमेश्‍वर के वचन में दी गयी सलाहों को मानना चाहिए। (भजन 119:1, 2) मसीही होने के नाते, हममें ज़्यादातर लोग नैतिक रूप से बेदाग रहने के लिए अपनी तरफ से पूरी कोशिश करते हैं, लेकिन फिर भी जो परमेश्‍वर की नज़र में सही है, उसे करने के लिए लगातार प्रयास करते रहने की ज़रूरत है। (1 कुरिन्थियों 9:27) पौलुस ने रोम के मसीहियों को लिखा: “तुम्हारे आज्ञा मानने की चर्चा सब लोगों में फैल गई है, इसलिये मैं तुम्हारे विषय में आनन्द करता हूं; परन्तु मैं यह चाहता हूं, कि तुम भलाई के लिये बुद्धिमान, परन्तु बुराई के लिये भोले बने रहो।” (रोमियों 16:19) जिस तरह चौबीस हज़ार लोगों को अपने पापों की सज़ा मिली थी, ठीक उसी तरह बहुत जल्द परमेश्‍वर व्यभिचारियों और दूसरे पाप करनेवालों के खिलाफ न्याय करेगा। (इफिसियों 5:3-6) इसलिए सुनकर भूलनेवाले बनने के बजाय हमें हमेशा ‘व्यभिचार से बचे रहना’ चाहिए।—1 कुरिन्थियों 6:18.

हमेशा यहोवा के इंतज़ामों की कदर कीजिए

20. किस तरह इस्राएलियों ने यहोवा को परखा और उसका नतीजा क्या हुआ?

20 यह सच है कि ज़्यादातर मसीही लैंगिक अनैतिकता के फंदे में नहीं फँसते हैं। फिर भी हम सबको सावधान रहने की ज़रूरत है कि कहीं हम भी हमेशा कुड़कुड़ाने का रवैया ना अपना लें, जिससे हम परमेश्‍वर की मंज़ूरी पाने से चूक जाएं। पौलुस आगाह करता है: “और न हम प्रभु को परखें; जैसा [इस्राएलियों] में से कितनों ने किया, और सांपों के द्वारा नाश किए गए। और न तुम कुड़कुड़ाओ, जिस रीति से उन में से कितने कुड़कुड़ाए, और नाश करनेवाले के द्वारा नाश किए गए।” (1 कुरिन्थियों 10:9, 10) इस्राएली मूसा और हारून के खिलाफ कुड़कुड़ाए, यहाँ तक कि वे यहोवा के खिलाफ भी कुड़कुड़ाए और चमत्कारिक रूप से जो मन्‍ना उन्हें दिया गया था, उसके लिए शिकायत करने लगे। (गिनती 16:41; 21:5) उनके व्यभिचार पर यहोवा को जितना क्रोध आया था क्या उनके कुड़कुड़ाने पर उसे कम गुस्सा आया? बाइबल में दी गई जानकारी से पता चलता है कि कुड़कुड़ानेवाले बहुत लोगों को साँपों ने डसकर मार डाला। (गिनती 21:6) इससे पहले भी एक अवसर पर कुड़कुड़ानेवाले 14,700 से ज़्यादा विद्रोहियों का विनाश हो गया था। (गिनती 16:49) तो आइए हम यहोवा के इंतज़ामों की बेइज़्ज़ती करके उसके धीरज को कभी न परखें।

21. (क) पौलुस ने परमेश्‍वर की प्रेरणा से क्या प्रोत्साहन दिया? (ख) याकूब 1:25 के मुताबिक हम कैसे सच्ची खुशी पा सकते हैं?

21 संगी मसीहियों को लिखी अपनी चिट्ठी में पौलुस चेतावनियों की एक सूची देने के बाद अब आखिर में एक प्रोत्साहन देता है: “परन्तु ये सब बातें, जो उन पर पड़ीं, दृष्टान्त की रीति पर थीं: और वे हमारी चितावनी के लिये जो जगत के अन्तिम समय में रहते हैं लिखी गईं हैं। इसलिये जो समझता है, कि मैं स्थिर हूं, वह चौकस रहे; कि कहीं गिर न पड़े।” (1 कुरिन्थियों 10:11, 12) इस्राएलियों की तरह हमें भी बहुत-सी आशीषें मिली हैं। मगर हमें उनकी तरह नहीं बनना चाहिए, और यहोवा हमारे लिए जो कुछ अच्छा कर रहा है, उसे न तो हमें भूलना चाहिए और ना ही उसकी कदर करने से चूकना चाहिए। जब भी जीवन की चिंताएँ हम पर हावी होने लगें तो हमें यहोवा के उन शानदार वादों पर मनन करना चाहिए जो उसके वचन में लिखे गए हैं। आइए हम यहोवा के साथ अपने रिश्‍ते को याद रखें और उसके राज्य का प्रचार करते रहें जिसकी ज़िम्मेदारी हमें सौंपी गई है। (मत्ती 24:14; 28:19, 20) ये सब बातें ज़रूर हमारी ज़िंदगी में सच्ची खुशियाँ भर देंगी क्योंकि परमेश्‍वर का वचन वादा करता है: “जो व्यक्‍ति स्वतंत्रता की सिद्ध व्यवस्था पर ध्यान करता रहता है, वह अपने काम में इसलिये आशीष पाएगा कि सुनकर भूलता नहीं, पर वैसा ही काम करता है।”—याकूब 1:25.

आप क्या जवाब देंगे?

• किन कारणों से हम सुनकर भूलनेवाले बन सकते हैं?

• पूरी तरह से यहोवा के आज्ञाकारी होना क्यों ज़रूरी है?

• हम कैसे ‘व्यभिचार से बचे रह’ सकते हैं?

• यहोवा के इंतज़ामों के प्रति हमारा क्या नज़रिया होना चाहिए?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 15 पर तसवीर]

इस्राएली उन महान कामों को भूल गए जो यहोवा ने उनके लिए किए थे

[पेज 16 पर तसवीर]

यहोवा के लोगों ने ऊँचे नैतिक स्तरों को बनाए रखने की ठान ली है