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हेशमोनी और उनकी विरासत

हेशमोनी और उनकी विरासत

हेशमोनी और उनकी विरासत

जब यीशु पृथ्वी पर था, तब यहूदी धर्म कई गुटों में बँटा हुआ था और लोगों पर अधिकार जमाने के लिए उनमें आपस में होड़ लगी रहती थी। यहूदी धर्म की यही तसवीर हमें सुसमाचार की किताबों में, साथ ही पहली सदी के यहूदी इतिहासकार, जोसिफस के लेखनों में मिलती है।

इसी दौरान फरीसी और सदूकी नाम के दो गुटों का दबदबा बढ़ने लगा। वे आम-जनता को बहकाने में इतने माहिर थे कि उनके कहने में आकर लोगों ने यीशु को मसीहा मानने से इंकार कर दिया। (मत्ती 15:1, 2; 16:1; यूहन्‍ना 11:47, 48; 12:42, 43) लेकिन इन दोनों ताकतवर गुटों का इब्रानी शास्त्र में कहीं कोई ज़िक्र नहीं है।

जोसिफस ने सदूकियों और फरीसियों का पहली बार ज़िक्र सा.यु.पू. दूसरी सदी के इतिहास में किया। उस समय के दौरान, बहुत सारे यहूदी लोग यूनानी संस्कृति और तत्त्वज्ञान के रंग में रंगने लगे थे। आखिरकार, यहूदी धर्म और यूनानी संस्कृति के बीच यह तकरार अपनी चरम-सीमा पर पहुँच गई, जब सेल्युकसवंशी शासकों ने यरूशलेम के मंदिर को यूनानी देवता, ज़ियस को समर्पित करके उसे दूषित कर दिया। फिर यहूदियों के एक जोशीले नेता, यहूदा मक्काबी ने यहूदियों की एक विद्रोही सेना को लेकर मंदिर को यूनानियों के हाथ से छुड़ा दिया। यहूदा मक्काबी, हेशमोनी नाम के एक यहूदी परिवार से था। *

मक्काबियों के विद्रोह और उनकी जीत के तुरंत बाद के सालों में यहूदियों के बीच कई गुट निकलने लगे। इनकी धारणाएँ एक-दूसरे से अलग थीं और ज़्यादा-से-ज़्यादा यहूदियों को अपनी तरफ खींचने के लिए उनमें आपस में होड़ लगी रहती थी। लेकिन ऐसा होने की वजह क्या थी? आखिर, यहूदी धर्म में इतनी फूट क्यों पैदा हुई? इसका जवाब पाने के लिए आइए हम हेशमोनियों के इतिहास की जाँच करें।

बढ़ती आज़ादी और फूट

यहोवा के मंदिर में उपासना दोबारा शुरू करवाने का अपना लक्ष्य हासिल कर लेने के बाद, यहूदा मक्काबी पर राजनीति का रंग चढ़ने लगा। नतीजा यह हुआ कि बहुत सारे यहूदियों ने उसका साथ छोड़ दिया। मगर फिर भी, उसने सेल्युकसवंशी शासकों के खिलाफ अपनी लड़ाई जारी रखी। उसने रोम के साथ एक संधि की और एक आज़ाद यहूदी राष्ट्र स्थापित करने की कोशिश की। और जब एक लड़ाई में यहूदा की मौत हो गई, तो उसके बाद, योनातान और शिमोन नाम के उसके दो भाइयों ने यह लड़ाई जारी रखी। शुरू-शुरू में तो सेल्युकसवंशी शासकों ने मक्काबियों का जमकर विरोध किया था। मगर वक्‍त के गुज़रते उन शासकों ने राजनीति के मामलों में समझौते कर लिए और हेशमोनी भाइयों को कुछ हद तक सत्ता चलाने की आज़ादी दे दी।

हालाँकि हेशमोनी याजकवंश के थे मगर उनमें से कोई भी कभी महायाजक के पद पर नहीं बैठा था। ज़्यादातर यहूदियों का मानना था कि इस पद पर सादोक वंश के याजकों को बिठाया जाना चाहिए, जिसे सुलैमान ने महायाजक ठहराया था। (1 राजा 2:35; यहेजकेल 43:19) मगर योनातान ने युद्ध करके और राजनीति का खेल खेलकर सेल्युकसवंशी शासकों पर दबाव डाला कि वे उसे महायाजक नियुक्‍त कर दें। योनातान की मृत्यु के बाद, उसके बड़े भाई, शिमोन ने उससे भी ज़्यादा कामयाबी हासिल की। सा.यु.पू. 140 के सितंबर में, यरूशलेम में एक खास आदेश जारी किया गया था, जिसे यूनानी शैली में कांस्य की पट्ठियों पर लिखा गया: “राजा दिमित्रियुस [यूनान का एक सेल्युकसवंशी शासक] ने उसको [शिमोन को] महायाजक के पद पर ठहराया है, उसे अपना एक दोस्त चुना है और बहुत बड़ा सम्मान दिया है। . . . यहूदियों और उनके याजकों का यह फैसला है कि शिमोन ही हमेशा के लिए उनका शासक और महायाजक बना रहेगा, जब तक कि कोई विश्‍वासयोग्य भविष्यवक्‍ता न आए।”—1 मक्काबियों 14:38-41 (यह एक ऐतिहासिक किताब है जिसके बारे में गलत दावा किया जाता है कि यह बाइबल की एक किताब है)।

इस तरह शिमोन और उसके वंशजों को शासक और महायाजक का पद भी सौंपा गया और इसे न सिर्फ विदेशी सेल्युकसवंशी शासकों ने बल्कि उसके अपने लोगों यानी यहूदियों की “महान सभा” ने भी मंज़ूरी दे दी। इससे हेशमोनियों के इतिहास में एक नया मोड़ आ गया। जैसा कि इतिहासकार, एमील शूरर ने लिखा, एक बार जब हेशमोनियों के हाथ में सत्ता आ गई, “तब से उन्हें तोरह [यहूदी व्यवस्था] का पालन करने की खास चिंता नहीं रही बल्कि वे बस अपनी सत्ता को बनाए रखने और उसे बढ़ाने की धुन में लगे रहे।” मगर यहूदियों की भावनाओं को ठेस न पहुँचाने के इरादे से शिमोन ने “राजा” की उपाधि न लेकर “एथनार्क” या “लोगों का नेता” उपाधि ली।

लेकिन हेशमोनियों ने जिस तरह अन्याय से राजनीति और धर्म दोनों में पदवी हड़प ली थी, उससे हर कोई खुश नहीं था। कई विद्वानों के मुताबिक, कुमरान नाम का समुदाय इसी दौरान उभरकर आया था। सादोक वंश के एक याजक ने, जिसे कुमरान के लेखनों में “धार्मिकता का गुरू” कहा गया है यरूशलेम छोड़ दिया और उसकी अगुवाई में विद्रोही लोगों का एक समूह मृत सागर के पास यहूदिया के एक वीराने में जाकर बस गया। मृत सागर के पास मिले एक खर्रे में, जो हबक्कूक की किताब पर व्याख्या देती है, एक “दुष्ट याजक” की निंदा की गई है, “जो शुरू में तो सच्चाई के नाम से जाना जाता था, मगर जब वह इस्राएल पर राज करने लगा, तो उसकी छाती घमंड से फूल गई।” कई विद्वानों का मानना है कि इस समुदाय द्वारा किया गया “दुष्ट याजक” का यह वर्णन, योनातान पर या फिर शिमोन पर ठीक बैठता है।

शिमोन ने अपना इलाका बढ़ाने के लिए फौजी कार्यवाही जारी रखी। लेकिन शिमोन का शासन अचानक खत्म हो गया क्योंकि उसके दामाद, टॉल्मी ने गद्दी हड़पने के इरादे से उसकी और उसके दो बेटों की हत्या कर दी, जब वे यरीहो के पास एक जेवनार का आनंद ले रहे थे। लेकिन गद्दी पाने की टॉल्मी की यह कोशिश नाकाम रही। शिमोन के एक और बेटे, यूहन्‍ना हिरकेनस को सावधान किया गया था कि उसे मार डालने की कोशिश की जा रही है। उसने उन सभी लोगों को गिरफ्तार कर लिया जिन पर उसे शक था। और वह अपने पिता की जगह शासक और महायाजक बन बैठा।

साम्राज्य का बढ़ना और अत्याचार

शुरू-शुरू में, यूहन्‍ना हिरकेनस को सिरिया की सेना से बड़े-बड़े खतरों का सामना करना पड़ा, मगर सा.यु.पू. 129 में सेल्युकसवंशी साम्राज्य, पारथियों से एक अहम युद्ध में हार गया था। इस युद्ध का सेल्युकसवंशियों पर जो प्रभाव पड़ा, उसके बारे में यहूदी इतिहासकार, मेनकम स्टर्न ने लिखा: “सेल्युकसवंशी राज्य की तो बुनियाद ही हिल गई।” इसलिए हिरकेनस “यहूदा देश को पूरी राजनैतिक आज़ादी दिला सका और उसने अपने साम्राज्य की सरहदें चारों तरफ बढ़ानी शुरू कर दी।” और सचमुच, वह अपना साम्राज्य फैलाकर ही रहा।

अब क्योंकि हिरकेनस को सिरिया से कोई खतरा नहीं था, इसलिए वह यहूदा के बाहर के इलाकों पर भी धावा बोलने लगा और उन्हें अपने अधीन करने लगा। उन इलाकों के निवासियों पर यह दबाव डाला गया कि उन्हें अपना धर्म छोड़कर यहूदी धर्म अपना लेना चाहिए वरना उनके शहरों को मिट्टी में मिला दिया जाएगा। एक ऐसा ही अभियान इदूमिया के लोगों (एदोमियों) के खिलाफ चलाया गया। इस बारे में स्टर्न ने लिखा: “जिस तरह इदूमिया के लोगों का धर्म-परिवर्तन कराया गया, वैसा पहले कभी नहीं हुआ था। क्योंकि यहूदियों ने इस जाति के कुछ लोगों का ही नहीं बल्कि पूरी-की-पूरी जाति का धर्म-परिवर्तन करा दिया था।” हिरकेनस द्वारा कब्ज़ा किए गए कुछ और इलाकों में सामरिया भी था, जहाँ उसने गरीज्जीम पर्वत पर स्थित, सामरियों के मंदिर को तहस-नहस कर दिया। लोगों से ज़बरदस्ती धर्म-परिवर्तन करवाने की हेशमोनी साम्राज्य की इस नीति के बारे में ताना कसते हुए इतिहासकार, सॉलमन ग्रेज़ॆल ने लिखा: “यह जनाब मत्तियास [यहूदा मक्काबी का पिता] के पोता थे, जिन्होंने धार्मिक आज़ादी के उसूल को तोड़ दिया, उसी उसूल को जिसकी हिफाज़त करने के लिए उसके बाप-दादों ने जान की बाज़ी लगा दी थी।”

फरीसियों और सदूकियों का उभरना

हिरकेनस के शासन के इतिहास में ही पहली बार, जोसिफस फरीसियों और सदूकियों का ज़िक्र करता है कि किस तरह वे ज़्यादा-से-ज़्यादा लोगों पर हक जमाते थे। (जोसिफस ने योनातान के शासन में रहनेवाले फरीसियों का ज़िक्र किया था।) वह यह नहीं बताता कि फरीसियों और सदूकियों की शुरूआत कैसे हुई थी। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि वे हसीदीम समूह से निकले थे। हसीदीम एक कट्ठरपंथी समूह था जिसने धर्म के मामले में पहले तो यहूदा मक्काबी का साथ दिया था, मगर जब यहूदा पर सत्ता पाने का जुनून सवार हुआ तो उन्होंने उसे समर्थन देना छोड़ दिया।

कहा जाता है कि फरीसी नाम का इब्रानी में मूल अर्थ है, “अलग लोग” जबकि कुछ लोग मानते हैं कि यह शब्द, “समझ देनेवाले” से ताल्लुक रखता है। दरअसल, फरीसी आम जनता से ही निकले विद्वान थे, वे किसी खास वंश से नहीं आए थे। वे खास पवित्रता बनाए रखने की धारणा पर चलते थे और मंदिर में याजकों को शुद्धता बनाए रखने के लिए जो नियम दिए गए थे, उन्हें वे रोज़मर्रा की ज़िंदगी में भी अमल करने पर ज़ोर देते थे। इस तरह वे रस्मों-रिवाज़ के संबंध में हर तरह की अशुद्धता से खुद को दूर रखने की कोशिश करते थे। फरीसियों ने शास्त्र को समझाने का भी एक नया तरीका ढूँढ़ निकाला और बाद में एक नई धारणा शुरू की जिसे मौखिक नियम कहा जाने लगा। शिमोन के शासन में, लोगों पर उनका दबदबा ज़्यादा बढ़ गया क्योंकि उसी दौरान, कुछ फरीसियों को येरोसीआ (पुरनियों का परिषद्‌) में नियुक्‍त किया गया था। येरोसीआ बाद में महासभा कहलाया जाने लगा।

जोसिफस कहता है कि शुरू में यूहन्‍ना हिरकेनस फरीसियों का ही एक शिष्य और उनका हिमायती था। लेकिन एक वक्‍त ऐसा आया कि फरीसियों ने उसे महायाजक का पद न छोड़ने की वजह से फटकारा। इससे एक ज़बरदस्त बदलाव आ गया। हिरकेनस ने फरीसियों के धार्मिक नियमों पर पाबंदी लगा दी। इतना ही नहीं, उसने फरीसियों के धार्मिक विरोधी, सदूकियों का पक्ष ले लिया, जो फरीसियों के लिए जले पर नमक छिड़कने जैसा था।

सदूकी नाम शायद महायाजक, सादोक से जुड़ा है जिसके वंशज सुलैमान के समय से याजकपद पर थे। लेकिन सभी सदूकी सादोक के वंश से नहीं थे। जोसिफस के मुताबिक, सदूकी ऊँचे खानदान के और अमीर लोग थे और उन्हें आम-जनता से कोई समर्थन नहीं मिला था। प्रोफेसर शिफमन कहता है: “ज़्यादातर सदूकी . . . शायद याजक थे या फिर उन्होंने महायाजक के परिवारवालों से रिश्‍ता जोड़ लिया था।” इस तरह एक लंबे अरसे से उनका ऐसे लोगों से गहरा ताल्लुक था जिनका समाज में बड़ा ओहदा था। इसलिए जब आम लोगों पर फरीसियों का दबदबा बढ़ने लगा और जब फरीसियों की यह धारणा फैलने लगी कि सभी लोगों को याजकों जैसी शुद्धता कायम करनी चाहिए तो सदूकियों को लगा कि यह उनके जन्म-सिद्ध अधिकार के लिए खतरा है। मगर अब, हिरकेनस के शासन के आखिरी सालों में सदूकियों ने दोबारा अधिकार पा लिया।

राजनीति ज़्यादा, भक्‍ति कम

हिरकेनस के बड़े बेटे, अरिस्टब्यूलस ने अपनी मौत से पहले सिर्फ एक साल शासन किया था। उसने इतूरैया के लोगों से ज़बरदस्ती धर्म-परिवर्तन करवाया और ऊपरी गलील को हेशमोनी साम्राज्य में मिला लिया। लेकिन, उसके भाई, एलेक्ज़ैंडर जनेअस के शासन में ही, जिसने सा.यु.पू. 103-76 तक शासन किया था, हेशमोनी साम्राज्य अपनी बुलंदियों पर था।

एलेक्ज़ैंडर जनेअस ने पहले की नीति को ठुकराकर खुलेआम अपने आप को महायाजक और राजा ऐलान कर दिया। इससे हेशमोनियों और फरीसियों के बीच लड़ाई और तेज़ हो गई, जिसकी वजह से एक गृह-युद्ध भी छिड़ गया और उसमें 50,000 यहूदी मारे गए। जब यह विद्रोह थम गया, तो जनेअस ने 800 विद्रोहियों को सूली पर चढ़ा दिया। यह एक ऐसा काम था, जो आम तौर पर गैर-यहूदी राजा किया करते थे। जब ये विद्रोही आखिरी साँसे गिन रहे थे, तब उनकी आँखों के सामने ही उनकी पत्नियों और बच्चों का कत्ल किया गया, जबकि जेनअस सरेआम अपनी रखेलियों के साथ रंगरलियाँ मनाता रहा। *

फरीसियों से दुश्‍मनी होने के बावजूद, जेनअस राजनीति का खेल खेलने में बहुत माहिर था। उसने देखा कि ज़्यादा-से-ज़्यादा लोग फरीसियों का साथ दे रहे हैं। इसलिए उसने अपनी आखिरी घड़ी में अपनी पत्नी, सलोमी एलेक्ज़ैंड्रा को यह हिदायत दी कि वह फरीसियों से हाथ मिला ले। जेनअस ने अपने बेटों के बदले अपनी पत्नी को अपना उत्तराधिकारी चुना। सलोमी ने खुद को एक काबिल शासक साबित किया और उसके शासन में (सा.यु.पू. 76-67) यहूदी राष्ट्र में इतनी शांति थी जितनी हेशमोनियों के शासन में पहले कभी नहीं थी। फरीसियों को दोबारा उनके अधिकार के पद हासिल हो गए और उनके धार्मिक नियमों पर लगी पाबंदी हटा दी गई।

सलोमी की मौत के बाद, उसके बेटे हिरकेनस II, जिसने महायाजक के पद पर सेवा की थी, और अरिस्टब्यूलस II के बीच राज-गद्दी के लिए छीना-झपटी शुरू हो गई। वे दोनों न तो राजनैतिक मामलों में और ना ही फौजी मामलों में इतने होशियार थे, जितने उनके बाप-दादा थे। सेल्यूकसवंशी राज्य का पूरा पतन होने के बाद, उस इलाके पर रोम का ज़ोर बढ़ता जा रहा था मगर ऐसा लगता है कि उन दोनों में से एक भी इस बात को अच्छी तरह नहीं समझ पाया। सामान्य युग पूर्व 63 में, दोनों भाई रोमी शासक, पॉम्पी के पास गए, जब वह दमिश्‍क में था और उससे गुज़ारिश की कि वह उनके आपसी झगड़े में बीच-बचाव करे। उसी साल, पॉम्पी और उसकी सेना यरूशलेम में घुस आई और उस पर कब्ज़ा कर लिया। इससे हेशमोनी साम्राज्य के आखिरी दिन शुरू हो गए। सामान्य युग पूर्व 37 में, इदूमियाई राजा, हेरोदेस महान ने यरूशलेम पर कब्ज़ा कर लिया। हेरोदेस महान को रोम की सीनेट ने “यहूदिया का राजा” और “रोमी लोगों का सहायक और मित्र” घोषित कर दिया था। इसके बाद से हेशमोनी राज्य का कोई पता न रहा।

हेशमोनियों की विरासत

यहूदा मक्काबी से लेकर अरिस्टब्यूलस II तक चले हेशमोनियों के युग ने धार्मिक फूट के लिए एक नींव डाली और यह धार्मिक फूट उस समय भी कायम थी, जब यीशु धरती पर आया था। शुरू-शुरू में हेशमोनियों ने परमेश्‍वर की उपासना के लिए अच्छा जोश दिखाया था मगर धीरे-धीरे वे स्वार्थी हो गए और लोगों पर ज़ुल्म ढाने लगे। उनके याजकों के पास यह सुअवसर था कि वे परमेश्‍वर की व्यवस्था का पालन करने के लिए लोगों में एकता को बढ़ावा दें। मगर ऐसा करने के बजाय, उन्होंने यहूदी जाति को राजनीति की लड़ाइयों में उलझा दिया। ऐसे माहौल में अलग-अलग धारणाओं को लेकर कई धार्मिक गुट निकलने लगे। हेशमोनी तो नहीं रहे मगर सदूकियों, फरीसियों, और दूसरे गुटों के बीच धर्म को लेकर आपस में संघर्ष जारी रहा, जो अब हेरोद और रोम के अधीन यहूदी जाति की पहचान चिन्ह बन गई थी।

[फुटनोट]

^ नवंबर 15, 1998 का प्रहरीदुर्ग लेख, “मक्काबी ये कौन थे?” देखिए।

^ मृत सागर के पास मिले एक खर्रे, “नहूम पर व्याख्या” में “दहाड़ते शेर” का ज़िक्र है, जिसने “आदमियों को ज़िंदा सूली पर चढ़ा दिया था।” यह शायद ऊपर बताए गए हादसे का ही ज़िक्र है।

[पेज 30 पर चार्ट]

(भाग को असल रूप में देखने के लिए प्रकाशन देखिए)

हेशमोनी साम्राज्य

यहूदा मक्काबी

योनातान मक्काबी

शिमोन मक्काबी

यूहन्‍ना हिरकेनस

↓ ↓

सलोमी एलेक्ज़ैंड्रा—का पति—एलेक्ज़ैंडर जनेअस अरिस्टब्यूलस

↓ ↓

हिरकेनस II

अरिस्टब्यूलस II

[पेज 27 पर तसवीर]

यहूदा मक्काबी ने यहूदियों को आज़ादी दिलाने की कोशिश की

[चित्र का श्रेय]

The Doré Bible Illustrations/Dover Publications, Inc.

[पेज 29 पर तसवीरें]

हेशमोनियों ने गैर-यहूदी शहरों तक अपना साम्राज्य बढ़ाने के लिए लड़ाई की

[चित्र का श्रेय]

The Doré Bible Illustrations/Dover Publications, Inc.