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देने के ज़रिए खुशी पाइए!

देने के ज़रिए खुशी पाइए!

देने के ज़रिए खुशी पाइए!

“लेने से ज़्यादा देने में खुशी मिलती है।”—प्रेरितों 20:35, NW.

1. यहोवा ने किस तरह दिखाया कि दूसरों को देने में खुशी मिलती है?

 सच्चाई का ज्ञान और उससे मिलनेवाली आशीषें परमेश्‍वर की ओर से हमारे लिए अनमोल तोहफे हैं। जिन लोगों ने यहोवा को जाना है, उनके खुश रहने की कई वजहे हैं। लेकिन जिस तरह दूसरों से तोहफा पाने में खुशी मिलती है, उसी तरह दूसरों को तोहफा देने में भी खुशी मिलती है। यहोवा ‘हर एक अच्छे वरदान और हर एक उत्तम दान’ का दाता है और “परमधन्य [आनंदित] परमेश्‍वर है।” (याकूब 1:17; 1 तीमुथियुस 1:11) यहोवा उन सभी को खरी शिक्षाएँ देता है जो सुनने को तैयार हैं। और जो लोग उससे शिक्षा पाकर उसकी आज्ञा मानते हैं, उनसे वह खुश होता है, ठीक जैसे माँ-बाप को यह देखकर खुशी होती है कि बच्चे उनके बताए रास्ते पर चल रहे हैं।—नीतिवचन 27:11.

2. (क) देने के बारे में यीशु ने क्या कहा था? (ख) जब हम दूसरों को बाइबल की सच्चाई सिखाते हैं, तो हमें कैसी खुशी मिलती है?

2 उसी तरह, पृथ्वी पर रहते समय जब यीशु ने देखा कि लोग उसकी शिक्षा के मुताबिक काम कर रहे हैं, तो उसे बेहद खुशी हुई। प्रेरित पौलुस बताता है कि यीशु ने कहा था: “लेने से ज़्यादा देने में खुशी मिलती है।” (प्रेरितों 20:35, NW) दूसरों को बाइबल सच्चाई सिखाने पर हमें सिर्फ यह तसल्ली नहीं मिलती कि लोग हमारे धार्मिक विचारों से सहमत हो रहे हैं। बल्कि उससे ज़्यादा हमें इस बात से खुशी मिलती है कि हम उन्हें ऐसी चीज़ दे रहे हैं जो वाकई अनमोल है और जिसकी कीमत कभी नहीं घटती। आध्यात्मिक तोहफा देने के ज़रिए हम लोगों को न सिर्फ अभी बल्कि हमेशा-हमेशा के लिए फायदा पाने में मदद कर सकते हैं।—1 तीमुथियुस 4:8.

देने से खुशी मिलती है

3. (क) प्रेरित पौलुस और यूहन्‍ना ने किस तरह ज़ाहिर किया कि उन्हें दूसरों की आध्यात्मिक तरीके से मदद करने पर खुशी मिली थी? (ख) यह क्यों कहा जा सकता है कि बच्चों को बाइबल की सच्चाई सिखाना माता-पिता के प्यार का सबूत है?

3 जी हाँ, यहोवा और यीशु की तरह मसीही भी दूसरों को आध्यात्मिक तोहफे देने में आनंदित होते हैं। प्रेरित पौलुस को इस बात से खुशी मिली कि उसने दूसरों को परमेश्‍वर के वचन की सच्चाई सीखने में मदद दी थी। थिस्सलुनीके की कलीसिया को पौलुस ने लिखा: “हमारी आशा, या आनन्द या बड़ाई का मुकुट क्या है? क्या हमारे प्रभु यीशु के सम्मुख उसके आने के समय तुम ही न होगे? हमारी बड़ाई और आनन्द तुम ही हो।” (1 थिस्सलुनीकियों 2:19, 20) उसी तरह, प्रेरित यूहन्‍ना ने भी अपने आध्यात्मिक बच्चों के बारे में लिखा: “मुझे इस से बढ़कर और कोई आनन्द नहीं, कि मैं सुनूं, कि मेरे लड़के-बाले सत्य पर चलते हैं।” (3 यूहन्‍ना 4) और गौर कीजिए कि खुद अपने बच्चों को भी सच्चाई सिखाने में हमें कितनी खुशी मिलती है क्योंकि सच्चाई अपनाकर वे आध्यात्मिक मायने में भी हमारे बच्चे बन जाते हैं! जो माता-पिता “[यहोवा] की शिक्षा, और चितावनी देते हुए” अपने बच्चों की परवरिश करते हैं, वे बच्चों के लिए अपने प्यार का सबूत देते हैं। (इफिसियों 6:4) ऐसा करके माता-पिता दिखाते हैं कि वे अपने बच्चों की हमेशा की भलाई चाहते हैं। और जब बच्चे अपने माता-पिता के कहे अनुसार चलते हैं, तो माता-पिता को बेहद खुशी और संतुष्टि मिलती है।

4. किस अनुभव से पता चलता है कि आध्यात्मिक तरीके से देने में खुशी मिलती है?

4 डेल पूर्ण-समय की सेवक है और पाँच बच्चों की माँ है। वह कहती है: “मैं प्रेरित यूहन्‍ना की भावनाओं को अच्छी तरह समझ सकती हूँ क्योंकि मैं इस बात के लिए बहुत शुक्रगुज़ार हूँ कि मेरे चार बच्चे ‘सत्य पर चल रहे हैं।’ मैं जानती हूँ कि जब पूरा परिवार मिलकर सच्ची उपासना करता है, तो इससे यहोवा को आदर और महिमा मिलती है। इसलिए यह देखकर मुझे बहुत तसल्ली मिलती है कि अपने बच्चों के दिल में सच्चाई का बीज बोने की मेरी मेहनत पर यहोवा ने आशीष दी है। यह जानकर कि मैं अपने परिवार के साथ फिरदौस में हमेशा की ज़िंदगी पा सकती हूँ, मेरे अंदर उम्मीद जगती है और मुझे मुश्‍किलों और बाधाओं को भी सहने की ताकत मिलती है।” अफसोस की बात है कि डेल की एक बेटी को मसीही मार्ग के खिलाफ जाने के कारण कलीसिया से बहिष्कार कर दिया गया था। मगर फिर भी डेल उम्मीद न छोड़ने की पूरी-पूरी कोशिश करती है। वह कहती है, “मुझे उम्मीद है कि एक-न-एक दिन मेरी बेटी नम्र होकर सच्चे दिल से यहोवा के पास लौट आएगी। मगर फिर भी मैं परमेश्‍वर का धन्यवाद करती हूँ कि मेरे ज़्यादातर बच्चे उसकी सेवा वफादारी से कर रहे हैं। यही खुशी मुझे अंदरूनी ताकत देती है।”—नहेमायाह 8:10.

हमेशा के दोस्त पाना

5. जब हम चेला बनाने के काम में खुद को पूरी तरह लगा देते हैं, तो हमें किस बात से संतुष्टि मिलती है?

5 यीशु ने अपने अनुयायियों को आज्ञा दी कि वे लोगों को उसके चेले बनाएँ और उन्हें यहोवा और उसके नियमों के बारे में सिखाएँ। (मत्ती 28:19, 20) यहोवा और यीशु, दोनों ने निःस्वार्थ भाव से लोगों को सत्य का मार्ग सीखने में मदद दी है। इसलिए जब हम चेला बनाने के काम में खुद को लगा देते हैं, तो यह जानकर हमें संतुष्टि मिलती है कि हम भी पहली सदी के मसीहियों की तरह, यहोवा और यीशु की मिसाल पर चल रहे हैं। (1 कुरिन्थियों 11:1) इस तरह जब हम सर्वशक्‍तिमान परमेश्‍वर और उसके प्यारे बेटे के साथ मिलकर काम करते हैं, तो हमारी ज़िंदगी को सही मकसद मिलता है। और सोचिए, परमेश्‍वर के “सहकर्मी” कहलाना हमारे लिए कितनी बड़ी आशीष है! (1 कुरिन्थियों 3:9) साथ ही, यह जानकर भी क्या हमारा रोम-रोम खिल नहीं उठता कि सुसमाचार का प्रचार करने के इस काम में हमारे साथ स्वर्गदूत भी हिस्सा ले रहे हैं?—प्रकाशितवाक्य 14:6, 7.

6. जब हम लोगों को आध्यात्मिक रूप से देने के काम में हिस्सा लेते हैं, तो हम किनके दोस्त बन जाते हैं?

6 आध्यात्मिक रूप से देने के इस काम में जब हम हिस्सा लेते हैं, तो हम परमेश्‍वर के सहकर्मी बनने के अलावा और भी कुछ हासिल कर पाते हैं। वह यह है कि हमारे लिए परमेश्‍वर के साथ हमेशा की दोस्ती कायम करने का रास्ता खुल जाता है। अपने विश्‍वास के कारण, इब्राहीम यहोवा का मित्र कहलाया था। (याकूब 2:23) उसी तरह अगर हम परमेश्‍वर की इच्छा पर चलने की कोशिश करेंगे, तो हम भी परमेश्‍वर के दोस्त बन सकते हैं। और हम यीशु के भी दोस्त बन सकते हैं। यीशु ने अपने चेलों से कहा था: “मैं ने तुम्हें मित्र कहा है, क्योंकि मैं ने जो बातें अपने पिता से सुनीं, वे सब तुम्हें बता दीं।” (यूहन्‍ना 15:15) आम तौर पर लोग ऊँचा ओहदा रखनेवालों के दोस्त कहलाने में बड़ा गर्व महसूस करते हैं मगर हमारे पास तो विश्‍व की दो सबसे महान हस्तियों का दोस्त बनने का मौका है!

7. (क) किस तरह एक स्त्री को सच्ची दोस्त मिली? (ख) क्या आपका भी कोई ऐसा अनुभव रहा है?

7 इतना ही नहीं, परमेश्‍वर को जानने में हम जिन लोगों की मदद करते हैं, वे भी हमारे दोस्त बन जाते हैं और इससे हमें खास खुशी मिलती है। अमरीका की रहनेवाली जोन ने थॆल्मा नाम की एक स्त्री के साथ बाइबल अध्ययन शुरू किया था। हालाँकि थॆल्मा को अध्ययन करते समय अपने परिवार से विरोध का सामना करना पड़ा, मगर फिर भी उसने हिम्मत नहीं हारी और एक साल बाद उसका बपतिस्मा हो गया। जोन लिखती है: “हमारी संगति वहीं खत्म नहीं हुई; बल्कि हमारे बीच ऐसी दोस्ती कायम हुई है जो करीब 35 साल से आज तक बनी हुई है। हम दोनों अकसर साथ मिलकर सेवकाई में और अधिवेशनों में जाया करते थे। बाद में मैंने घर बदल दिया जो पुराने घर से 800 किलोमीटर दूर है। मगर थॆल्मा मुझे हमेशा प्यारे-प्यारे खत लिखती है, जिन्हें पढ़ने पर मेरे दिल को गहरी खुशी मिलती है। वह लिखती है कि वह मुझे हमेशा याद करती है। उसे बाइबल की सच्चाई सिखाने, उसका एक दोस्त होने और उसके लिए अच्छा उदाहरण रखने के लिए वह मेरा धन्यवाद करती है। मैंने थॆल्मा को यहोवा के बारे में सिखाने में जो मेहनत की थी, उसका यह कितना बढ़िया प्रतिफल है कि मुझे ऐसी अज़ीज़ और पक्की दोस्त मिली है।”

8. सेवकाई के बारे में कौन-सा सही नज़रिया रखने से हमें मदद मिलेगी?

8 प्रचार में अगर ज़्यादातर लोग यहोवा के वचन में बहुत कम दिलचस्पी दिखाते या बिलकुल सुनना नहीं चाहते हैं, तब यह बात मन में रखने से हमें धीरज धरने में मदद मिलेगी कि किसी-न-किसी दिन हमें सच्चाई में दिलचस्पी दिखानेवाला व्यक्‍ति ज़रूर मिलेगा। जब लोग दिलचस्पी नहीं दिखाते, तो इससे हमारे विश्‍वास और धीरज की परीक्षा हो सकती है। लेकिन अगर हम एक सही नज़रिया बनाए रखेंगे, तो हम धीरज धर पाएँगे। ग्वाटेमाला के फाउस्टो ने कहा: “जब मैं किसी को साक्षी देता हूँ, तो यही सोचता हूँ कि अगर वह एक आध्यात्मिक भाई या बहन बन जाए, तो कितना बढ़िया रहेगा। मैं खुद को समझाता हूँ कि एक दिन मुझे ऐसा व्यक्‍ति ज़रूर मिलेगा जो परमेश्‍वर के वचन की सच्चाई को कबूल करेगा। यही उम्मीद मुझे प्रचार में लगे रहने और सच्ची खुशी पाने में मदद करती है।”

स्वर्ग में धन इकट्ठा करना

9. यीशु ने स्वर्ग के धन के बारे में क्या कहा और इससे हम क्या सीख सकते हैं?

9 चेला बनाने का काम हमेशा आसान नहीं होता, फिर चाहे बात हमारे ही बच्चों की हो या दूसरे लोगों की। इसमें समय लग सकता है, हमें धीरज धरने और लगन से काम करने की ज़रूरत पड़ सकती है। लेकिन एक बात याद रखिए कि आज दुनिया में कई लोग ढेर सारी धन-दौलत इकट्ठा करने के लिए दिन-रात मेहनत करते हैं, जबकि ये चीज़ें उन्हें हमेशा का सुख नहीं देतीं और न ही ये हमेशा तक टिकती हैं। इसीलिए यीशु ने लोगों से कहा कि आध्यात्मिक धन के लिए मेहनत करना ज़्यादा अक्लमंदी होगी। उसने कहा: “अपने लिये पृथ्वी पर धन इकट्ठा न करो; जहां कीड़ा और काई बिगाड़ते हैं, और जहां चोर सेंध लगाते और चुराते हैं। परन्तु अपने लिये स्वर्ग में धन इकट्ठा करो, जहां न तो कीड़ा, और न काई बिगाड़ते हैं, और जहां चोर न सेंध लगाते और न चुराते हैं।” (मत्ती 6:19, 20) ज़िंदगी में आध्यात्मिक लक्ष्य रखने से, जिसमें चेला बनाने का ज़रूरी काम भी शामिल है, हमें यह जानकर संतुष्टि मिलेगी कि हम परमेश्‍वर की इच्छा पूरी कर रहे हैं और वह हमें ज़रूर प्रतिफल देगा। प्रेरित पौलुस ने लिखा: “परमेश्‍वर अन्यायी नहीं, कि तुम्हारे काम, और उस प्रेम को भूल जाए, जो तुम ने उसके नाम के लिये . . . दिखाया।”—इब्रानियों 6:10.

10. (क) यीशु ने आध्यात्मिक धन कैसे इकट्ठा किया? (ख) यीशु ने कैसे अपने आप को दे दिया और इससे किस तरह दूसरों को काफी लाभ पहुँचा?

10 अगर हम चेला बनाने के काम में मेहनत करेंगे, तो हम यीशु के कहे अनुसार अपने लिए “स्वर्ग में धन” इकट्ठा कर रहे होंगे। इससे हमें आध्यात्मिक धन पाने की खुशी मिलेगी। और जब हम निःस्वार्थ भाव से दूसरों में यह धन बाँटेंगे, तब हमारा यह धन और भी बढ़ेगा। यीशु, अनगिनित सालों से यहोवा की सेवा वफादारी से कर रहा है। कल्पना कीजिए कि स्वर्ग में उसने कितना सारा धन इकट्ठा किया होगा! लेकिन इतना होने के बावजूद, यीशु ने कभी-भी अपना स्वार्थ पूरा करने की कोशिश नहीं की। उसके बारे में प्रेरित पौलुस ने लिखा: “[यीशु] ने अपने आप को हमारे पापों के लिये दे दिया, ताकि हमारे परमेश्‍वर और पिता की इच्छा के अनुसार हमें इस वर्तमान बुरे संसार से छुड़ाए।” (तिरछे टाइप हमारे) (गलतियों 1:4) यीशु ने निःस्वार्थ भाव से न सिर्फ सेवकाई में खुद को पूरी तरह लगा दिया बल्कि अपना जीवन भी छुड़ौती बलिदान के तौर पर दे दिया ताकि दूसरों को भी स्वर्ग में धन इकट्ठा करने का मौका मिले।

11. भौतिक चीज़ों से बढ़कर आध्यात्मिक तोहफे क्यों कीमती हैं?

11 जब हम दूसरों को परमेश्‍वर के बारे में सिखाते हैं, तो हम उन्हें यह समझने में मदद देते हैं कि वे भी किस तरह आध्यात्मिक धन इकट्ठा कर सकते हैं जो कभी नाश नहीं होता। क्या आप दूसरों को इससे बढ़कर कोई तोहफा दे सकते हैं? मान लीजिए कि आपने अपने एक दोस्त को बहुत कीमती घड़ी, या कार या फिर एक घर तोहफे में दिया है। वह दोस्त ज़रूर खुश होगा और आपका एहसानमंद होगा। आपको भी उसे तोहफा देकर खुशी मिलेगी। लेकिन सोचकर देखिए कि आज से 20 साल बाद, या 200 साल बाद या फिर 2000 साल बाद उस तोहफे की क्या हालत होगी? लेकिन अगर आप किसी को यहोवा का सेवक बनने में जी-जान से मदद करते हैं, तो वह उस तोहफे से हमेशा-हमेशा के लिए फायदा पा सकता है।

उनको ढूँढ़ना जिन्हें सच्चाई की तलाश है

12. किस तरह कई लोगों ने आध्यात्मिक तौर पर दूसरों की मदद करने के लिए खुद को दे दिया?

12 आध्यात्मिक तोहफे देकर खुशी पाने के लिए यहोवा के लोग पृथ्वी के कोने-कोने तक जा चुके हैं। हज़ारों लोग अपना घर-परिवार छोड़कर दूसरे देशों में मिशनरी सेवा करते हैं, जहाँ उन्हें नयी भाषाएँ सीखनी पड़ती हैं और वहाँ के रहन-सहन के मुताबिक खुद को ढालना पड़ता है। कुछ लोग अपने ही देश के ऐसे इलाकों में जाकर बस जाते हैं जहाँ राज्य के प्रचारकों की ज़्यादा ज़रूरत है। कुछ और लोगों ने विदेशी भाषाएँ सीखी हैं, ताकि वे अपने ही इलाके में ऐसे लोगों को प्रचार कर सकें जो विदेश से आकर बस गए हैं। उदाहरण के लिए, अमरीका के न्यू जर्सी में रहनेवाले एक दंपत्ति पर गौर कीजिए, जिनके दोनों बच्चे आज यहोवा के साक्षियों के विश्‍व-मुख्यालय में सेवा कर रहे हैं। अपने बच्चों की परवरिश करने के बाद इस दंपत्ति ने पायनियरिंग करनी शुरू की और चीनी भाषा सीखी। तीन साल के अंदर, उन्होंने पास के एक कॉलेज में जानेवाले 74 लोगों के साथ बाइबल अध्ययन किया जो चीनी भाषा बोलते थे। क्या आप भी किसी तरह अपनी सेवकाई को बढ़ा सकते हैं ताकि चेला बनाने के काम में आपको और ज़्यादा खुशी मिले?

13. अगर आप सेवकाई में और कामयाबी पाना चाहते हैं, तो आप क्या कर सकते हैं?

13 हो सकता है, आप एक बाइबल अध्ययन पाने के लिए तरस रहे हों मगर आप कामयाब नहीं हो पा रहे हैं। कुछ देशों में दिलचस्पी दिखानेवालों को पाना वाकई मुश्‍किल है। हो सकता है आप प्रचार में जिनसे मिलते हैं, उन्हें बाइबल में कोई दिलचस्पी नहीं है। अगर ऐसी बात है, तो आप बाइबल अध्ययन पाने की अपनी इच्छा के बारे में बार-बार यहोवा से प्रार्थना कीजिए। यहोवा और यीशु मसीह को प्रचार काम में गहरी दिलचस्पी है इसलिए वे आपको भेड़ समान किसी व्यक्‍ति के पास ज़रूर पहुँचाएँगे। इसके अलावा, अपनी कलीसिया के ऐसे भाई-बहनों से सुझाव माँगिए जो सेवकाई में काफी तजुर्बेकार हैं या जो बहुत कामयाब हुए हैं। मसीही सभाओं से मिलनेवाली तालीम और सुझावों पर अमल कीजिए। सफरी ओवरसियरों और उनकी पत्नियों के द्वारा दी जा रही सलाह से लाभ पाइए। और सबसे ज़रूरी बात यह है कि आप हिम्मत मत हारिए। बुद्धिमान पुरुष ने लिखा था: “भोर को अपना बीज बो, और सांझ को भी अपना हाथ न रोक; क्योंकि तू नहीं जानता कि कौन सुफल होगा।” (सभोपदेशक 11:6) और जब तक आपको एक बाइबल अध्ययन नहीं मिलता, आप नूह और यिर्मयाह जैसे वफादार पुरुषों की मिसाल याद कीजिए। जब उन्होंने प्रचार किया था, तब हालाँकि बहुत कम लोगों ने सुना, मगर फिर भी उनकी सेवकाई कामयाब हुई। सबसे बढ़कर उनके प्रचार से यहोवा खुश हुआ था।

अपना भरसक करना

14. यहोवा ऐसे लोगों को किस नज़र से देखता है जिन्होंने सारी ज़िंदगी उसकी सेवा की है?

14 हो सकता है अभी आपके हालात आपका साथ न दे रहे हों जिस वजह से आप जितना चाहते हैं, उतना नहीं कर पा रहे हैं। शायद ढलती उम्र आपके लिए यहोवा की सेवा करना मुश्‍किल बना देती है। मगर याद कीजिए कि बुद्धिमान पुरुष ने क्या कहा था: “पक्के बाल शोभायमान मुकुट ठहरते हैं; वे धर्म के मार्ग पर चलने से प्राप्त होते हैं।” (नीतिवचन 16:31) यहोवा की नज़रों में ऐसे लोगों का बहुत मोल है जिन्होंने सारी ज़िंदगी उसकी सेवा की है। इसके अलावा बाइबल कहती है: “तुम्हारे बुढ़ापे में भी मैं [यहोवा] वैसा ही बना रहूंगा और तुम्हारे बाल पकने के समय तक तुम्हें उठाए रहूंगा। मैं ने तुम्हें बनाया और तुम्हें लिए फिरता रहूंगा। मैं तुम्हें उठाए रहूंगा और छुड़ाता भी रहूंगा।” (यशायाह 46:4, 5क) स्वर्ग में रहनेवाले हमारे प्यारे पिता का यह वादा है कि वह अपने वफादार लोगों को सँभाले रहेगा और उनकी मदद करेगा।

15. क्या आप मानते हैं कि यहोवा आपके हालात समझता है? आपके ऐसा मानने की वजह क्या है?

15 हो सकता है कि आप किसी बीमारी से जूझ रहे हों, या आपका जीवन-साथी अविश्‍वासी होने के कारण आपका विरोध कर रहा है, या परिवार में आप पर भारी ज़िम्मेदारियाँ हैं या आप किसी और बड़ी समस्या का सामना कर रहे हैं। लेकिन याद रखिए कि यहोवा जानता है कि हमारी मजबूरियाँ क्या हैं और हम किन हालात से गुज़र रहे हैं। उसकी सेवा करने के लिए हम सच्चे दिल से जो प्रयास करते हैं उसकी वह कदर करता है, तब भी जब हम दूसरों की तुलना में बहुत कम सेवा कर पाते हैं। (गलतियों 6:4) यहोवा जानता है कि हम असिद्ध हैं इसलिए वह हमसे हद-से-ज़्यादा की उम्मीद नहीं करता। (भजन 147:11) अगर हम उसकी सेवा में अपना भरसक करेंगे, तो हम यकीन रख सकते हैं कि हम परमेश्‍वर की नज़रों में अनमोल ठहरेंगे और वह हमारे विश्‍वास के कामों को कभी नहीं भूलेगा।—लूका 21:1-4.

16. किस तरह एक व्यक्‍ति को चेला बनाने में पूरी कलीसिया हिस्सा लेती है?

16 यह भी मत भूलिए कि चेला बनाने का काम हम अकेले नहीं कर सकते बल्कि इसमें सभी का हाथ है। कोई एक व्यक्‍ति अपने आप चेला नहीं बना सकता, ठीक जैसे एक पौधे को बढ़ने के लिए बारिश की एक बूँद काफी नहीं होती। हालाँकि शुरू में किसी एक भाई या बहन को दिलचस्पी दिखानेवाला कोई व्यक्‍ति मिलता है और वह उसके साथ बाइबल अध्ययन करता है लेकिन जब वह नया व्यक्‍ति राज्यगृह आता है, तो पूरी कलीसिया उसे सच्चाई को पहचानने में मदद देती है। हम भाई-बहनों के बीच का प्यार देखकर वह समझ पाता है कि हम पर परमेश्‍वर की आत्मा काम करती है। (1 कुरिन्थियों 14:24, 25) जब बच्चे और जवान दूसरों में जोश पैदा करनेवाले जवाब देते हैं, तो वह देख पाता है कि हमारे जवान दुनिया के जवानों से बिलकुल अलग हैं। बीमार, कमज़ोर और बूढ़े भाई-बहनों को देखकर नए लोग सीखते हैं कि धीरज धरने का मतलब क्या है। तो हम चाहे किसी भी उम्र के हों और हमारे हालात जो भी हों, नए लोगों की मदद करने में हम में से हरेक जन अहम भूमिका निभाता है। इसी वजह से बाइबल की सच्चाई के लिए उनकी कदरदानी गहरी होती जाती है और वे तरक्की करके बपतिस्मा लेते हैं। प्रचार में बिताया जानेवाला हर घंटा, हमारी हर पुन:भेंट, दिलचस्पी दिखानेवाले व्यक्‍ति के साथ राज्यगृह में की गई हर बातचीत, शायद अपने आप में कुछ खास न लगे, मगर यह उस बड़े काम का एक हिस्सा है, जो आज यहोवा पूरा करवा रहा है।

17, 18. (क) चेला बनाने के काम में हिस्सा लेने के अलावा, हम और किन तरीकों से देने के ज़रिए खुशी पा सकते हैं? (ख) देने के ज़रिए खुशी पाकर हम किसकी मिसाल पर चलते हैं?

17 बेशक, हम मसीही, चेला बनाने के ज़रूरी काम के अलावा, दूसरे तरीकों से भी देने में खुशी पाते हैं। सच्ची उपासना को बढ़ावा देने और ज़रूरतमंद लोगों की मदद करने के लिए हम हमेशा कुछ रकम दान देने के लिए अलग रख सकते हैं। (लूका 16:9; 1 कुरिन्थियों 16:1, 2) हम मेहमाननवाज़ी करने के मौके ढूँढ़ सकते हैं। (रोमियों 12:13) हम ‘सब के साथ, विशेष करके अपने विश्‍वासी भाइयों के साथ भलाई’ करने की कोशिश कर सकते हैं। (गलतियों 6:10) इसके अलावा ऐसे कई छोटे-छोटे तरीकों से भी हम दूसरों को दे सकते हैं जो काफी मायने रखते हैं—जैसे खत लिखकर, फोन करके, कोई तोहफा देकर, किसी काम में हाथ बँटाकर या हिम्मत बँधानेवाले दो-चार लफ़्ज़ बोलकर।

18 दूसरों को देने के ज़रिए हम दिखाते हैं कि हम स्वर्ग में रहनेवाले अपने पिता की मिसाल पर चलते हैं। साथ ही, हम भाई-बहनों के लिए अपना प्रेम भी ज़ाहिर करते हैं, जो कि सच्चे मसीहियों का पहचान-चिन्ह है। (यूहन्‍ना 13:35) इन बातों को याद रखने से हम दूसरों को देने के ज़रिए खुशी पा सकते हैं।

क्या आप समझा सकते हैं?

• आध्यात्मिक तरीके से देने में यहोवा और यीशु ने कैसी मिसाल कायम की?

• हम किस तरह हमेशा के दोस्त पा सकते हैं?

• अपनी सेवकाई को और कामयाब बनाने के लिए हम कौन-से कदम उठा सकते हैं?

• किस तरह कलीसिया के सभी लोग देने के ज़रिए खुशी पा सकते हैं?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 13 पर तसवीरें]

जब बच्चे माता-पिता की तालीम के मुताबिक चलते हैं, तो माता-पिता को बेहद खुशी और संतुष्टि मिलती है

[पेज 15 पर तसवीर]

चेला बनाने के ज़रिए हम सच्चे दोस्त पा सकते हैं

[पेज 16 पर तसवीर]

बुढ़ापे में यहोवा हमें थाम रहता है

[पेज 17 पर तसवीरें]

छोटे-छोटे तरीकों से, जो काफी मायने रखते हैं, हम दूसरों को देने के ज़रिए खुशी पाते हैं