इस जानकारी को छोड़ दें

विषय-सूची को छोड़ दें

मौसम के थपेड़े भी इन पेड़ों को डिगा नहीं सकते

मौसम के थपेड़े भी इन पेड़ों को डिगा नहीं सकते

मौसम के थपेड़े भी इन पेड़ों को डिगा नहीं सकते

एक खड़ी चट्टान पर घर बनाना शायद आपको सही न लगे, खासकर जब यह चट्टान ऊँचे पहाड़ों पर हो। लेकिन कुछ ऐसे पेड़ हैं, जो इन खड़ी चट्टानों पर अपनी जगह बड़ी मज़बूती से टिके रहते हैं। इन पेड़ों को आम तौर पर आल्पीय पेड़ कहा जाता है। चाहे कड़ाके की ठंड हो या सूखा, ये पेड़ मौसम के इन थपेड़ों के बावजूद सालों-साल अडिग खड़े रहते हैं।

आम तौर पर ऐसे दमदार पेड़ देखने में इतने शानदार नहीं होते जितने कि तराई में उगनेवाले इसी जाति के दूसरे पेड़ होते हैं। चट्टानों पर उगनेवाले पेड़ों के तने गाँठदार और मुड़े हो सकते हैं और उनकी लंबाई ज़्यादा नहीं होती। यहाँ तक कि कुछ पेड़ बोनसाइ जैसे दिखते हैं। निहायत खराब मौसम और बहुत ही कम मिट्टी में उगने की वजह से उनका आकार बौना रह जाता है और उनकी कटाई-छटाँई भी होती रहती है।

ये पेड़ पृथ्वी के सबसे रूखे-सूखे वातावरण में उगते हैं। इसलिए शायद आपको लगे कि इनका ज़्यादा दिन ज़िंदा रहना नामुमकिन है। मगर सच तो कुछ और ही है! कुछ लोगों का दावा है कि मेतूशेलह नामक ब्रिसलकोन चीड़ के पेड़ की उम्र 4,700 साल है। यह पेड़ कैलिफोर्निया के वाइट माउंटन्स में 10,000 फुट की ऊँचाई पर पाया जाता है। गिनिज़ बुक ऑफ रिकॉर्डस्‌ 1997 कहती है कि यह पेड़, पृथ्वी के जीवित पेड़ों में से सबसे पुराना है। इन पुराने पेड़ों का अध्ययन करनेवाले एडमंड शूलमन ने कहा: “ऐसा लगता है कि कठोर परिस्थितियों की वजह से ही ब्रिसलकोन चीड़ के पेड़ ज़िंदा रह पाते हैं। सभी पुराने [चीड़ के पेड़] वाइट माउंटन्स में करीब 10,000 फुट की ऊँचाई पर सूखे और चट्टानोंवाले वीरान इलाकों में पाए जाते हैं।” शूलमन ने यह भी खोज की है कि चीड़ के पेड़ की दूसरी जातियों में से सबसे पुराने पेड़ भी रूखे-सूखे हालात में उगते हैं।

हालाँकि उन्हें कठोर परिस्थितियों से गुज़रना पड़ता है, लेकिन फिर भी अडिग खड़े रहनेवाले इन पेड़ों को दो चीज़ों से सबसे ज़्यादा फायदा होता है। एक तो, सुनसान जगह, जहाँ बहुत कम पेड़-पौधे उगते हैं। इस वजह से वहाँ ना तो जंगल और ना ही जंगल की आग होती है, जो पुराने पेड़ों के लिए सबसे बड़े खतरों में से एक है। दूसरी, उनकी जड़ों की मज़बूत पकड़ की वजह से वे चट्टानों पर ऐसे टिके रहते हैं कि सिवाय भूकम्प के, इन्हें कोई भी नहीं डिगा सकता।

बाइबल में परमेश्‍वर के वफादार सेवकों की तुलना पेड़ों से की गई है। (भजन 1:1-3; यिर्मयाह 17:7, 8) अपने हालात की वजह से उन्हें भी मुसीबतों से गुज़रना पड़ता है। लोगों द्वारा सताये जाने, बिगड़ती सेहत या गरीबी की चक्की में पिसने की वजह से उनके विश्‍वास की कड़ी परीक्षा होती है, खासकर जब ये परीक्षाएँ सालों-साल उन पर हावी रहती हैं। फिर भी, सिरजनहार ने ऐसे पेड़ों को बनाया है, जो कठोर परिस्थितियों में भी शान से डटे रहते हैं। वही अपने उपासकों को आश्‍वासन देता है कि वह उन्हें थामे रखेगा। अपने विश्‍वास में अडिग रहनेवाले लोगों से बाइबल वादा करती है: वह “आप ही तुम्हें . . . स्थिर और बलवन्त करेगा।”—1 पतरस 5:9, 10.

‘अपने विश्‍वास में अडिग रहना, अटल या डटे रहना,’ ये सारे शब्द एक यूनानी क्रिया का मतलब समझाने के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं, जिन्हें अकसर बाइबल में “धीरज धरना” अनुवाद किया जाता है। आल्पीय पेड़ों की तरह धीरज धरने के लिए मज़बूती से जड़ पकड़ने की ज़रूरत है। जहाँ तक मसीहियों का सवाल है, उन्हें यीशु मसीह में अच्छी तरह से जड़ पकड़नी चाहिए ताकि वे दृढ़ खड़े रह सकें। पौलुस ने लिखा: “जैसे तुम ने मसीह यीशु को प्रभु करके ग्रहण कर लिया है, वैसे ही उसी में चलते रहो। और उसी में जड़ पकड़ते और बढ़ते जाओ; और जैसे तुम सिखाए गए वैसे ही विश्‍वास में दृढ़ होते जाओ, और अत्यन्त धन्यवाद करते रहो।”—कुलुस्सियों 2:6, 7.

मज़बूत आध्यात्मिक जड़ों की अहमियत पौलुस अच्छी तरह समझता था। वह खुद ‘शरीर में एक कांटे’ से जूझ रहा था और अपनी सेवकाई के दौरान उसे कड़ी परीक्षाओं से गुज़रना पड़ा था और वह लोगों द्वारा सताया भी गया था। (2 कुरिन्थियों 11:23-27; 12:7) मगर उसने पाया कि यहोवा की ताकत से वह उन सब मुश्‍किलों के बावजूद अपनी सेवकाई में लगा रहा। उसने कहा, “जो मुझे सामर्थ देता है उस में मैं सब कुछ कर सकता हूं।”—फिलिप्पियों 4:13.

पौलुस की मिसाल से साफ ज़ाहिर होता है कि धीरज धरने में एक मसीही की कामयाबी अच्छे हालात पर निर्भर नहीं करती। आल्पीय पेड़ जो सदियों तक कठोर परिस्थितियों से गुज़रने के बाद भी अडिग रहते हैं, उन्हीं की तरह हम भी अपने विश्‍वास में दृढ़ खड़े रहने में कामयाब हो सकते हैं, अगर हम मसीह में जड़ पकड़ लें और परमेश्‍वर की दी हुई ताकत पर निर्भर रहें। इतना ही नहीं, अगर हम अंत तक धीरज धरते रहें तो हम परमेश्‍वर के एक और वादे को पूरा होते देखने की आशा रख सकते हैं: “मेरी प्रजा की आयु वृक्षों की सी होगी।”—यशायाह 65:22; मत्ती 24:13.