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यहोवा के ज्ञान में आनंदित होइए

यहोवा के ज्ञान में आनंदित होइए

यहोवा के ज्ञान में आनंदित होइए

“धन्य वे हैं, जो परमेश्‍वर का वचन सुनते और मानते हैं।”—लूका 11:28.

1. यहोवा ने इंसानों को मार्गदर्शन देना कब से शुरू किया?

 यहोवा इंसानों से प्यार करता है और दिल से उनकी भलाई चाहता है। इसलिए यह ताज्जुब की बात नहीं कि वह उनको मार्गदर्शन देता है। यहोवा ने इंसान को मार्गदर्शन देना अदन के बगीचे में शुरू किया था। उत्पत्ति 3:8 कहता है कि “दिन के ठंडे समय” आदम और हव्वा को ‘यहोवा परमेश्‍वर का शब्द सुनाई दिया।’ कुछ लोगों के मुताबिक इससे ज़ाहिर होता है कि यहोवा शायद हर दिन, उसी समय आदम से बात किया करता था। इस बात में कितनी सच्चाई है, यह तो नहीं मालूम मगर बाइबल यह साफ बताती है कि परमेश्‍वर ने पहले इंसान को न सिर्फ हिदायतें देने के लिए बल्कि उसे कुछ ज़रूरी मार्गदर्शन देने के लिए भी समय निकाला था ताकि वह अपनी ज़िम्मेदारियों को सही तरह से निभा सके।—उत्पत्ति 1:28-30.

2. पहले जोड़े ने किस तरह यहोवा के मार्गदर्शन को ठुकरा दिया और इसका अंजाम क्या हुआ?

2 यहोवा ने आदम और हव्वा को जीवन दिया था, साथ ही उन्हें जानवरों और सारी धरती पर अधिकार भी सौंपा। बस एक ही पाबंदी थी कि उन्हें भले-बुरे के ज्ञान के पेड़ का फल नहीं खाना था। मगर शैतान के बहकावे में आकर आदम और हव्वा ने परमेश्‍वर की आज्ञा तोड़ दी। (उत्पत्ति 2:16, 17; 3:1-6) उन्होंने अपनी मरज़ी से चलने का चुनाव किया ताकि सही-गलत का फैसला वे खुद कर सकें। इस तरह उन्होंने अपने प्यारे सिरजनहार के मार्गदर्शन को ठुकराकर बड़ी बेवकूफी की। इसका अंजाम उनके और उनकी अजन्मी संतान के लिए बहुत भयानक साबित हुआ। आदम और हव्वा बूढ़े हुए और आखिरकार मर गए। उनके पुनरुत्थान की भी कोई आशा न रही। और उनकी संतान को विरासत में पाप और उसका अंजाम मृत्यु मिला।—रोमियों 5:12.

3. यहोवा ने कैन को चेतावनी क्यों दी, और कैन ने क्या किया?

3 अदन के बाग में हुई बगावत के बावजूद, यहोवा इंसानों को मार्गदर्शन देता रहा। आदम और हव्वा का पहला बेटा कैन जब पाप के शिकंजे में फंसनेवाला था, तब यहोवा ने उसे चेतावनी दी। यहोवा ने उसे प्यार से समझाया कि वह खुद को मुसीबत में न डाले और फिरकर “भला करे।” मगर कैन ने यहोवा की इस सलाह को ठुकरा दिया और अपने भाई की हत्या कर दी। (उत्पत्ति 4:3-8) इस तरह दुनिया के पहले तीनों इंसानों ने परमेश्‍वर द्वारा दी गयी साफ हिदायतों को ठुकरा दिया, उसी परमेश्‍वर की हिदायतों को जिसने उन्हें ज़िंदगी दी थी, जो अपने लोगों के लाभ के लिए शिक्षा देता है। (यशायाह 48:17) यह देखकर यहोवा के दिल को कितनी ठेस पहुँची होगी!

यहोवा प्राचीन समय के कुलपिताओं को मार्गदर्शन देता है

4. आदम की संतान के बारे में यहोवा को क्या भरोसा था, और इसलिए उसने आशा का कौन-सा संदेश सुनाया?

4 यहोवा चाहे तो इंसानों को मार्गदर्शन देना बंद कर सकता था। ऐसा करने का उसे पूरा-पूरा हक है। लेकिन उसने ऐसा नहीं किया क्योंकि उसे पूरा भरोसा था कि आदम की संतान में से कुछ लोग ज़रूर उसका मार्गदर्शन स्वीकार करने की अक्लमंदी दिखाएँगे। मिसाल के लिए, आदम और हव्वा पर न्यायदंड सुनाते समय, यहोवा ने एक “वंश” के आने की भविष्यवाणी की जो सर्प यानी शैतान, इब्‌लीस के विरोध में खड़ा होगा। और वक्‍त आने पर, शैतान का सिर पूरी तरह कुचल दिया जाएगा। (उत्पत्ति 3:15) यह भविष्यवाणी ‘परमेश्‍वर का वचन सुनने और उसे माननेवाले’ सभी लोगों के लिए आशा का एक संदेश था।—लूका 11:28.

5, 6. पहली सदी से पहले यहोवा ने किन तरीकों से अपने लोगों को मार्गदर्शित किया और इससे उन्हें क्या फायदा हुआ?

5 यहोवा ने नूह, इब्राहीम, इसहाक, याकूब और अय्यूब जैसे कुलपिताओं को अपने मकसद के बारे में जानकारी दी। (उत्पत्ति 6:13; निर्गमन 33:1; अय्यूब 38:1-3) और बाद में उसने मूसा के ज़रिए इस्राएल जाति को एक कानून-व्यवस्था दी। मूसा की व्यवस्था से इस्राएलियों को बहुत-से फायदे हुए। इसका पालन करने की वजह से इस्राएल जाति परमेश्‍वर के खास लोगों के तौर पर बाकी सभी जातियों से अलग बनी रही। और परमेश्‍वर ने उन्हें यह भरोसा दिलाया कि अगर वे व्यवस्था का पालन करेंगे तो वह उन्हें न सिर्फ धन-दौलत की आशीषें देगा बल्कि उन्हें याजकों का राज्य और पवित्र जाति बनाकर आध्यात्मिक तौर पर भी आशीषें देगा। व्यवस्था में खान-पान और स्वच्छता के बारे में भी कायदे-कानून दिए गए थे जिनका पालन करने पर इस्राएली अच्छी सेहत का आनंद ले सकते थे। लेकिन यहोवा ने उनको चेतावनी भी दी कि अगर वे उसकी आज्ञाओं के खिलाफ जाएँगे, तो उन्हें कैसे-कैसे अंजाम भुगतने पड़ेंगे।—निर्गमन 19:5, 6; व्यवस्थाविवरण 28:1-68.

6 समय के गुज़रते परमेश्‍वर की प्रेरणा से और भी कई किताबें लिखी गईं जो बाइबल का हिस्सा बनीं। कुछ किताबों में ऐतिहासिक घटनाएँ दर्ज़ की गई हैं जो बताती हैं कि यहोवा ने अलग-अलग जातियों और लोगों के साथ कैसा व्यवहार किया था। कुछ ऐसी किताबें लिखी गईं जिनमें कविताओं के रूप में यहोवा के गुणों का बड़े खूबसूरत अंदाज़ में वर्णन किया गया। भविष्यवाणी की किताबों में बताया गया है कि भविष्य में यहोवा का मकसद कैसे पूरा होगा। पुराने समय के वफादार लोगों ने परमेश्‍वर की प्रेरणा से लिखी गई इन सारी किताबों का ध्यान से अध्ययन किया और उन्हें अपने जीवन में लागू किया। ऐसे ही एक वफादार पुरुष ने लिखा: “तेरा वचन मेरे पांव के लिये दीपक, और मेरे मार्ग के लिये उजियाला है।” (भजन 119:105) जो लोग यहोवा की बात सुनने को तैयार थे, उन्हें यहोवा ने शिक्षा और ज्ञान की रोशनी दी।

रोशनी और बढ़ती गई

7. हालाँकि यीशु ने चमत्कार किए थे, मगर वह खासकर किस काम के लिए जाना जाता था और क्यों?

7 पहली सदी के आते-आते, यहूदी धर्म के गुटों ने व्यवस्था के साथ कई इंसानी परंपराएँ जोड़ दीं और वे व्यवस्था का गलत मतलब समझाने लगे। उन परंपराओं की वजह से व्यवस्था लोगों के लिए ज्ञान का ज़रिया बनने के बजाय एक भारी बोझ बन गई। (मत्ती 23:2-4) लेकिन सा.यु. 29 में जब यीशु, मसीहा के तौर पर प्रकट हुआ तो हालात में बदलाव आया। यीशु के आने का मकसद न सिर्फ इंसानों की खातिर अपना जीवन बलिदान करना था, बल्कि “सत्य पर गवाही” देना भी था। हालाँकि उसने बहुत-से चमत्कार किए थे, मगर वह खासकर “गुरु” के तौर पर जाना जाता था। उसकी शिक्षाएँ लोगों के मन पर छाए हुए आध्यात्मिक अंधकार को मिटानेवाले उजाले की किरण के जैसे थे। यीशु ने अपने बारे में बिलकुल सही कहा था: “जगत की ज्योति मैं हूं।”—यूहन्‍ना 8:12; 11:28; 18:37.

8. पहली सदी में परमेश्‍वर की प्रेरणा से कौन-सी किताबें लिखी गई और उनसे शुरू के मसीहियों को कैसा लाभ हुआ?

8 बाद में यीशु की जीवनी बतानेवाली चार सुसमाचार की किताबें और प्रेरितों के काम की किताब भी लिखी गई। प्रेरितों के काम में यह इतिहास दर्ज़ किया गया है कि यीशु की मौत के बाद किस तरह मसीहियत फैलाई गई थी। यीशु के शिष्यों ने भी परमेश्‍वर की प्रेरणा से कुछ पत्रियाँ लिखीं और बाद में भविष्यवाणी की किताब, प्रकाशितवाक्य लिखी गई। इन सारे लेखनों और इब्रानी शास्त्र को मिलाकर बाइबल पूरी हुई। परमेश्‍वर द्वारा दिए गए इन किताबों के भंडार से मसीही ‘सब पवित्र लोगों के साथ समझ सकते थे’ कि सच्चाई की “चौड़ाई, और लम्बाई, और ऊंचाई, और गहराई कितनी है।” (इफिसियों 3:14-18) इनकी मदद से वे “मसीह का मन” पा सकते थे। (1 कुरिन्थियों 2:16) मगर फिर भी शुरू के ये मसीही, यहोवा के उद्देश्‍यों की सभी बारीकियों को नहीं समझ पाए। प्रेरित पौलुस ने मसीही भाई-बहनों को लिखा: ‘अभी तो हमें दर्पण में धुंधला सा दिखाई देता है।’ (1 कुरिन्थियों 13:12) यह एक ऐसा दर्पण है, जिसमें किसी चीज़ की रूपरेखा तो देखी जा सकती है मगर उसकी पूरी-पूरी तसवीर साफ नज़र नहीं आती। परमेश्‍वर के वचन की पूरी-पूरी समझ भविष्य में ही मिलनेवाली थी।

9. इन “अन्तिम दिनों” के दौरान कौन-सा ज्ञान दिया गया है?

9 आज हम एक ऐसे युग में जी रहे हैं, जिन्हें ‘अन्तिम दिन’ कहा गया है और हम “कठिन समय” से गुज़र रहे हैं। (2 तीमुथियुस 3:1) भविष्यवक्‍ता दानिय्येल ने बताया था कि इसी समय के दौरान ‘सच्चा ज्ञान बढ़ जाएगा।’ (दानिय्येल 12:4) इस भविष्यवाणी के मुताबिक महान मार्गदर्शक, यहोवा ने सच्चे दिल के लोगों को उसके वचन का मतलब समझने में मदद दी है। आज लाखों लोगों ने यह समझ लिया है कि यीशु मसीह 1914 में स्वर्ग में राजा बन चुका है। वे यह भी जानते हैं कि बहुत जल्द वह सारी दुष्टता को मिटाकर इस धरती को एक खूबसूरत फिरदौस में बदल देगा। राज्य के सुसमाचार की इस खास बात का आज सारी धरती पर प्रचार किया जा रहा है।—मत्ती 24:14.

10. बीती सदियों के दौरान लोगों ने यहोवा की सलाह के प्रति कैसा रवैया दिखाया है?

10 जी हाँ, शुरू से ही यहोवा ने अपनी इच्छा और मकसद के बारे में इंसानों को जानकारी दी है। बाइबल में ऐसे बहुत सारे लोगों के बारे में लिखा है जिन्होंने परमेश्‍वर की बुद्धि पर ध्यान देकर उसे अपने जीवन में लागू किया और इसलिए उन्हें आशीष भी मिली। साथ ही यह ऐसे लोगों के बारे में भी बताती है जिन्होंने आदम और हव्वा की तरह परमेश्‍वर की प्यार-भरी सलाह को ठुकराकर अपने आप को तबाह कर लिया। इस स्थिति को समझाते हुए यीशु ने दो लाक्षणिक मार्गों का उदाहरण दिया। एक मार्ग विनाश की ओर ले जाता है। यह मार्ग चौड़ा और चाकल है जिस पर परमेश्‍वर के वचन को ठुकरानेवाले बहुत सारे लोग चल रहे हैं। दूसरा मार्ग हालाँकि सकरा है मगर यह अनंत जीवन की ओर ले जाता है। इस मार्ग पर ऐसे चंद लोग चल रहे हैं जो बाइबल को परमेश्‍वर का वचन मानते और उसके मुताबिक चलते हैं।—मत्ती 7:13, 14.

हमारे पास जो है, उसके लिए एहसानमंद

11. बाइबल के बारे में हमारा ज्ञान और उस पर हमारा विश्‍वास किस बात का सबूत है?

11 क्या आप भी उन लोगों में से हैं, जिन्होंने जीवन का मार्ग चुना है? अगर हाँ, तो आप बेशक उस पर बने रहना चाहेंगे। लेकिन इसके लिए आपको क्या करना होगा? बाइबल की सच्चाइयाँ जानने पर आपको जो-जो आशीषें मिली हैं, उन पर हमेशा मनन कीजिए और उनकी कदर कीजिए। सुसमाचार कबूल करना ही अपने आप में एक सबूत है कि आप पर परमेश्‍वर की आशीष है। यह बात हमें यीशु की इस प्रार्थना से पता चलती है: “हे पिता, स्वर्ग और पृथ्वी के प्रभु; मैं तेरा धन्यवाद करता हूं, कि तू ने इन बातों को ज्ञानियों और समझदारों से छिपा रखा, और बालकों पर प्रगट किया है।” (मत्ती 11:25) मछुओं और महसूल लेनेवालों ने यीशु की शिक्षाओं की समझ पा ली थी, मगर बड़ी-बड़ी शिक्षा हासिल कर चुके धार्मिक गुरू नहीं समझ पाए। यीशु ने यह भी कहा: “कोई मेरे पास नहीं आ सकता, जब तक पिता, जिस ने मुझे भेजा है, उसे खींच न ले।” (यूहन्‍ना 6:44) अगर आपने बाइबल का ज्ञान पाया है और उसकी शिक्षाओं पर विश्‍वास करके उन पर चलते हैं, तो यह इस बात का सबूत है कि यहोवा ने आपको अपनी ओर खींचा है। यह आपके लिए बड़ी खुशी की बात है।

12. किन तरीकों से बाइबल हमें ज्ञान की रोशनी देती है?

12 परमेश्‍वर के वचन में दी गई सच्चाइयाँ एक इंसान को आज़ाद करती और उसे ज्ञान की रोशनी देती हैं। जो लोग बाइबल के ज्ञान के अनुसार चलते हैं, वे ऐसे अंधविश्‍वास, झूठी शिक्षाओं और अज्ञानता से छुटकारा पाते हैं जिनके चंगुल में आज लाखों लोग फँसे हुए हैं। मिसाल के लिए, मरे हुओं की स्थिति के बारे में सच्चाई जानने पर हम इस डर से निजात पाते हैं कि मरे हुए लोग हमें नुकसान पहुँचाएँगे या हमारे जिन अज़ीज़ों की मौत हो चुकी है, वे कहीं यातना सह रहे होंगे। दुष्ट स्वर्गदूतों के बारे में सच्चाई जानने के कारण हम प्रेतात्मावाद के खतरों से दूर हैं। पुनरुत्थान की शिक्षा ऐसे लोगों को दिलासा देती है जिनके किसी अज़ीज़ की मौत हो गई है। (यूहन्‍ना 11:25) बाइबल की भविष्यवाणियों से हम यह जान पाते हैं कि समय की राह में हम किस मोड़ पर हैं और भविष्य में पूरे होनेवाले परमेश्‍वर के वादों पर हमारा भरोसा मज़बूत होता है। इन भविष्यवाणियों से अनंत जीवन की हमारी आशा भी पक्की होती है।

13. परमेश्‍वर के वचन पर चलने से हमें शारीरिक तौर से कैसे फायदे होते हैं?

13 बाइबल में दिए गए परमेश्‍वर के सिद्धांतों पर चलने से हमें शारीरिक तौर से भी फायदे होते हैं। मिसाल के लिए, हम शरीर को दूषित करनेवाले तंबाकू से या दूसरी नशीली दवाइयों से दूर रहना सीखते हैं। हम शराब का हद-से-ज़्यादा सेवन नहीं करते। (2 कुरिन्थियों 7:1) परमेश्‍वर के नैतिक नियमों पर चलने की वजह से हम लैंगिक बीमारियों से बचे रहते हैं। (1 कुरिन्थियों 6:18) हम परमेश्‍वर की यह सलाह मानते हैं कि हमें पैसे का लोभ नहीं करना चाहिए इसलिए हम मन की शांति नहीं खोते जैसा कि धन के पीछे भागनेवाले कितनों के साथ होता है। (1 तीमुथियुस 6:10) परमेश्‍वर के वचन पर चलने के कारण आपको शारीरिक तौर पर कौन-से फायदे मिले हैं?

14. हमारी ज़िंदगी पर पवित्र आत्मा का कैसा प्रभाव पड़ता है?

14 अगर हम परमेश्‍वर के वचन के मुताबिक जीएँगे, तो हमें यहोवा की पवित्र आत्मा मिलेगी। इसकी मदद से हम अपने अंदर ऐसे बढ़िया गुण पैदा कर पाएँगे जो मसीह में थे, जैसे दया और करुणा। (इफिसियों 4:24, 32) परमेश्‍वर की आत्मा हमारे अंदर उसके फल भी पैदा करती है—प्रेम, आनन्द, मेल, धीरज, कृपा, भलाई, विश्‍वास, नम्रता, और संयम। (गलतियों 5:22, 23) ऐसे गुण होने की वजह से हम दूसरे लोगों और अपने परिवार के सदस्यों के साथ भी अच्छा रिश्‍ता बनाए रखते हैं। साथ ही हमें मुसीबतों का डटकर सामना करने की अंदरूनी ताकत मिलती है। क्या आप देख सकते हैं कि परमेश्‍वर की पवित्र आत्मा ने आपकी ज़िंदगी को किस तरह बेहतर बनाया है?

15. हम अपनी ज़िंदगी को जैसे-जैसे परमेश्‍वर की इच्छा के मुताबिक ढालते हैं, तो हमें क्या लाभ होता है?

15 जैसे-जैसे हम अपनी ज़िंदगी को यहोवा की इच्छा के मुताबिक ढालते हैं, उसके साथ हमारा रिश्‍ता और भी गहरा होता है। हमारा यह विश्‍वास और भी पक्का होता है कि यहोवा हमें समझता और हमें प्यार करता है। हम ज़िंदगी के अनुभवों से महसूस करते हैं कि संकट के समय वह हमें थाम लेता है। (भजन 18:18) हम देख सकते हैं कि वह सचमुच हमारी प्रार्थनाओं को सुनता है। (भजन 65:2) हम उसके मार्गदर्शन पर चलते हैं, इस यकीन के साथ कि इससे हमें लाभ ही होगा। और हमें यह अनोखी आशा भी मिली है कि वक्‍त आने पर परमेश्‍वर अपने वफादार लोगों को सिद्धता की ओर ले जाएगा और उन्हें अनंत जीवन का वरदान देगा। (रोमियों 6:23) शिष्य याकूब ने लिखा: “परमेश्‍वर के निकट आओ, तो वह भी तुम्हारे निकट आएगा।” (याकूब 4:8) क्या आपने यह महसूस किया है कि जैसे-जैसे आप परमेश्‍वर के और करीब आ रहे हैं, उसके साथ आपका रिश्‍ता पहले से भी मज़बूत होता जा रहा है?

बेशकीमती खज़ाना

16. पहली सदी के कुछ मसीहियों ने अपने जीवन में कैसे-कैसे बदलाव किए थे?

16 पौलुस ने पहली सदी के आत्मा से अभिषिक्‍त मसीहियों को याद दिलाया कि उनमें से कुछ लोग पहले परस्त्रीगामी, व्यभिचारी, समलिंगी, चोर, लोभी, शराबी, झगड़ालू और लुटेरे थे। (1 कुरिन्थियों 6:9-11) मगर बाइबल की सच्चाई ने उन्हें अपनी ज़िंदगी पूरी तरह बदल डालने के लिए उकसाया; वे “धोए गए।” ज़रा सोचिए कि अगर आपने बाइबल की सच्चाइयाँ नहीं सीखी होतीं और आध्यात्मिक मायने में आज़ाद नहीं होते, तो आज आपकी ज़िंदगी कैसी होती? बाइबल की सच्चाई वाकई ऐसा खज़ाना है जिसकी कीमत नहीं आँकी जा सकती। इसलिए हम कितने धन्य हैं कि यहोवा हमें मार्गदर्शन देता है!

17. यहोवा के साक्षियों को मसीही सभाओं में किस तरह आध्यात्मिक भोजन दिया गया है?

17 इसके अलावा, सोचिए कि अलग-अलग जातियों से आए भाई-बहनों के समूह के तौर पर हमें कैसी आशीषें मिलती हैं! “विश्‍वासयोग्य और बुद्धिमान दास” हमें समय पर आध्यात्मिक भोजन देता है, जिसमें बहुत सारी भाषाओं में बाइबलें, पत्रिकाएँ और दूसरे साहित्य शामिल हैं। (मत्ती 24:45-47) साल 2000 के दौरान, कई देशों में यहोवा के साक्षियों ने मसीही सभाओं में इब्रानी शास्त्र की आठ बड़ी-बड़ी किताबों की झलकियों पर पुनर्विचार किया। इंसाइट ऑन द स्क्रिप्चर्स किताब से उन्होंने बाइबल के 40 किरदारों की जीवनी का अध्ययन किया। उन्होंने वह सर्वश्रेष्ठ मनुष्य जो कभी जीवित रहा किताब का करीब एक चौथाई हिस्सा और दानिय्येल की भविष्यवाणी पर ध्यान दें! की लगभग पूरी-की-पूरी किताब का अध्ययन किया। प्रहरीदुर्ग पत्रिका से 52 अध्ययन लेखों के अलावा छत्तीस दूसरे लेखों पर भी चर्चा की गयी। इतना ही नहीं, हमारी राज्य सेवकाई के 12 अंकों के ज़रिए यहोवा के लोगों को आध्यात्मिक भोजन दिया गया और हर हफ्ते बाइबल के अलग-अलग विषयों पर जन-भाषणों का भी इंतज़ाम किया गया। सचमुच, आध्यात्मिक ज्ञान का कितना बड़ा खज़ाना उपलब्ध कराया गया है!

18. हम मसीही कलीसिया में किन तरीकों से मदद पाते हैं?

18 आज संसार-भर में 91,000 से ज़्यादा कलीसियाएँ हैं, जहाँ सभाओं और भाई-बहनों की संगति से हमें मदद मिलती है और एक-दूसरे की हौसला-अफज़ाई होती है। हम तजुर्बेकार मसीहियों की संगति का भी आनंद लेते हैं जो हमें आध्यात्मिक तौर पर मदद करने के लिए तैयार रहते हैं। (इफिसियों 4:11-13) जी हाँ, सच्चाई का ज्ञान पाकर हमें बहुत सारे फायदे हुए हैं। यहोवा को जानना और उसकी सेवा करना वाकई खुशी की बात है। भजनहार ने कितना सच कहा था: “क्या ही धन्य है वह प्रजा जिसका परमेश्‍वर यहोवा है!”—भजन 144:15, NHT.

क्या आपको याद है?

• मसीह के आने से पहले, यहोवा ने किन लोगों को मार्गदर्शन दिया?

• पहली सदी में और हमारे समय में आध्यात्मिक रोशनी किस तरह बढ़ती गई?

• यहोवा के ज्ञान के मुताबिक जीने से कौन-से फायदे मिलते हैं?

• हम यहोवा का ज्ञान पाकर क्यों आनंदित हैं?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 8, 9 पर तसवीरें]

यहोवा ने मूसा, नूह और इब्राहीम को अपना मकसद बताया

[पेज 9 पर तसवीर]

हमारे दिनों में यहोवा ने अपने वचन पर रोशनी डाली है

[पेज 10 पर तसवीरें]

ज़रा सोचिए कि अलग-अलग जातियों से आए भाई-बहनों के समूह में हमें कितनी आशीषें मिलती हैं!