अपनी उन्नति प्रगट कीजिए
अपनी उन्नति प्रगट कीजिए
“उन बातों को सोचता रह और उन्हीं में अपना ध्यान लगाए रह, ताकि तेरी उन्नति सब पर प्रगट हो।”—1 तीमुथियुस 4:15.
1. एक फल के बारे में आप कैसे बता सकते हैं कि वह पक चुका है और उसे खाया जा सकता है?
क ल्पना कीजिए कि आपके सामने आपका मनपसंद फल रखा है—आम, नाशपाती, सेब या कोई और फल। क्या आप उसे देखकर बता सकते हैं कि वह पक गया है और उसे खाया जा सकता है या नहीं? बेशक, आप बता सकते हैं। उसकी खुशबू से, उसका रंग देखकर और उसे छूते ही आपके मुँह में पानी आने लगता है। जैसे ही आप उसका एक टुकड़ा मुँह में डालते हैं, तो आप कहते हैं, वाह कितना रसीला! कितना मीठा! उसे खाने में आपको वाकई बहुत मज़ा आता है।
2. एक इंसान की प्रौढ़ता कैसे दिखाई देती है, और यह दूसरों के साथ उसके रिश्ते पर कैसा असर करती है?
2 फल खाना एक छोटा और मज़ेदार अनुभव है। इसकी तुलना ज़िंदगी के और भी कई अनुभवों से की जा सकती है। जिस तरह एक फल पका है या नहीं, यह आसानी से मालूम किया जा सकता है उसी तरह एक व्यक्ति आध्यात्मिक तरीके से प्रौढ़ हुआ है या नहीं, यह कई तरीकों से पता लगाया जा सकता है। जब हम एक इंसान के अंदर परख-शक्ति, गहरी समझ और बुद्धि जैसे गुण देखते हैं तो हम जान लेते हैं कि वह प्रौढ़ है। (अय्यूब 32:7-9) जो लोग अपने सोच-विचार और व्यवहार में ऐसे गुण दिखाते हैं, उनके साथ संगति करने और काम करने में हमें सचमुच खुशी मिलती है।—नीतिवचन 13:20.
3. अपने समय के लोगों के बारे में यीशु ने जो कहा, इससे प्रौढ़ता के बारे में क्या पता चलता है?
3 दूसरी तरफ ऐसा भी हो सकता है कि एक इंसान शरीर से तो बड़ा हो जाता है, मगर उसके बोलने और व्यवहार करने का तरीका दिखाता है कि भावात्मक और आध्यात्मिक तरीके से उसमें अब भी बचपना है। मिसाल के लिए, अपने ज़माने की भटकी हुई पीढ़ी के बारे में यीशु मसीह ने कहा: “यूहन्ना न तो खाता और न पीता आया, पर वे कहते हैं, ‘उस में दुष्टात्मा है।’ मनुष्य का पुत्र खाता-पीता आया, और वे कहते हैं, ‘देखो, एक पेटू और पियक्कड़।’” ये लोग शरीर से तो बड़े हो चुके थे, मगर यीशु ने कहा कि वे “बच्चों” जैसा व्यवहार करते हैं यानी वे प्रौढ़ नहीं हैं। इसलिए, यीशु ने आगे कहा: “बुद्धि अपने कार्यों से प्रमाणित होती है।”—मत्ती 11:16-19, NHT.
4. किन तरीकों से उन्नति और प्रौढ़ता प्रगट होती है?
4 यीशु के शब्दों से हम समझ सकते हैं कि सच्ची बुद्धि होना प्रौढ़ता की एक खास निशानी है और एक इंसान में यह बुद्धि है या नहीं, यह उसके कामों और उनसे निकलनेवाले नतीजों को देखकर पता लगाया जा सकता है। गौर कीजिए कि इस संबंध में प्रेरित पौलुस ने तीमुथियुस को क्या सलाह दी थी। यह बताने के बाद कि तीमुथियुस को कौन-कौन-से काम करते रहने चाहिए, पौलुस ने कहा: “उन बातों को सोचता रह और उन्हीं में अपना ध्यान लगाए रह, ताकि तेरी उन्नति सब पर प्रगट हो।” (1 तीमुथियुस 4:15क) जी हाँ, एक मसीही प्रौढ़ता की ओर उन्नति करता है, तो यह सब के सामने “प्रगट” होता है या साफ-साफ देखा जा सकता है। मसीही प्रौढ़ता का गुण ऐसा नहीं कि दूसरों को नज़र न आए बल्कि यह तो जगमगाते दीपक की तरह है। (मत्ती 5:14-16) इसलिए अब हम ऐसे दो खास तरीकों पर गौर करेंगे जिनके ज़रिए हम अपनी उन्नति और प्रौढ़ता प्रगट कर सकते हैं: (1) ज्ञान, समझ और बुद्धि पाने में उन्नति करना; (2) आत्मा के फल प्रगट करने में उन्नति करना।
विश्वास और ज्ञान में एक होना
5. प्रौढ़ता की परिभाषा कैसे दी जा सकती है?
5 कई शब्दकोश प्रौढ़ता का मतलब यूँ बताते हैं: पूरी तरह विकसित होने की स्थिति, पूरी तरह बढ़ना और एक अच्छे स्तर या निर्धारित दशा तक पहुँच जाना। जैसा कि शुरू में बताया गया है, एक फल को तभी पूरी तरह पका हुआ कहा जा सकता है जब वह पकने के पूरे दौर से गुज़र चुका हो और देखने में, रंग, खुशबू और स्वाद में उस हद तक पहुँच जाता है जब उसे अच्छा कहा जा सके। इसलिए प्रौढ़ता के लिए ये शब्द भी इस्तेमाल होते हैं, श्रेष्ठ होना, पूर्ण होना, यहाँ तक कि सिद्ध होना।—यशायाह 18:5; मत्ती 5:45-48; याकूब 1:4.
6, 7. (क) क्या दिखाता है कि यहोवा को इस बात में गहरी दिलचस्पी है कि उसके सभी उपासक आध्यात्मिक प्रौढ़ता की ओर बढ़ते जाएँ? (ख) आध्यात्मिक प्रौढ़ता का किस बात से गहरा संबंध है?
6 यहोवा परमेश्वर को इस बात में गहरी दिलचस्पी है कि उसके सभी उपासक आध्यात्मिक तरीके से प्रौढ़ बनने के लिए उन्नति करें। इसी मकसद से उसने मसीही कलीसिया में बढ़िया इंतज़ाम किए हैं। इफिसुस के मसीहियों को प्रेरित पौलुस ने लिखा: “उस ने कितनों को प्रेरित नियुक्त करके, और कितनों को भविष्यद्वक्ता नियुक्त करके, और कितनों को सुसमाचार सुनानेवाले नियुक्त करके, और कितनों को रखवाले और उपदेशक नियुक्त करके दे दिया। जिस से पवित्र लोग सिद्ध हो जाएं, और सेवा का काम किया जाए, और मसीह की देह उन्नति पाए। जब तक कि हम सब के सब विश्वास, और परमेश्वर के पुत्र की पहिचान [“पूर्ण ज्ञान,” NHT] में एक न हो जाएं, और एक सिद्ध मनुष्य न बन जाएं और मसीह के पूरे डील डौल तक न बढ़ जाएं। ताकि हम आगे को बालक न रहें, जो मनुष्यों की ठग-विद्या और चतुराई से उन के भ्रम की युक्तियों की, और उपदेश की, हर एक बयार से उछाले, और इधर-उधर घुमाए जाते हों।”—इफिसियों 4:11-14.
7 इन आयतों में पौलुस ने समझाया कि परमेश्वर ने जिन कारणों से कलीसिया में ऐसे भरपूर आध्यात्मिक इंतज़ाम किए हैं, उनमें से कुछ कारण ये हैं: हम ‘विश्वास, और परमेश्वर के पुत्र के पूर्ण ज्ञान में एक हो जाएं’, ‘एक सिद्ध मनुष्य’ बन जाएं, और ‘मसीह के पूरे डील डौल तक बढ़ जाएं।’ इन सारे लक्ष्यों को हासिल करने पर ही हम आध्यात्मिक बच्चों की तरह झूठी धारणाओं और शिक्षाओं से उछाले जाने से बचे रह सकते हैं। इससे हम समझ सकते हैं कि मसीही प्रौढ़ता की ओर उन्नति करने और ‘विश्वास और परमेश्वर के पुत्र के पूर्ण ज्ञान में एक होने’ के बीच गहरा संबंध है। पौलुस की सलाह में ऐसे कई मुद्दे हैं जिन पर हमें ध्यान देने की ज़रूरत है।
8. विश्वास और पूर्ण ज्ञान में ‘एक होने’ के लिए क्या करने की ज़रूरत है?
8 हम सभी को “एक” होने की ज़रूरत है, इसलिए सबसे पहले एक प्रौढ़ मसीही को चाहिए कि विश्वास और ज्ञान के मामले में वह बाकी मसीहियों के साथ पूरी तरह एकमत हो। जहाँ बाइबल की शिक्षाओं को समझने की बात आती है, तो वह अपनी धारणाएँ न तो दूसरों पर थोपेगा और न अपनी ही विचार धारा पर कायम रहेगा। इसके बजाय, उसे पूरा भरोसा होता है कि यहोवा परमेश्वर, अपने बेटे यीशु मसीह और “विश्वासयोग्य और बुद्धिमान दास” के ज़रिए जो प्रगट करता है, वही सच्चाई है। मसीही साहित्य, सभाओं, सम्मेलनों और अधिवेशनों के ज़रिए “समय पर” मिलनेवाले आध्यात्मिक भोजन को नियमित रूप से लेने से हम यकीन रख सकते हैं कि हम विश्वास और ज्ञान में बाकी मसीहियों के साथ “एक” हैं।—मत्ती 24:45.
9. समझाइए कि इफिसियों को लिखी पत्री में पौलुस ने शब्द “विश्वास” का किस अर्थ में इस्तेमाल किया।
9 दूसरी बात यह है कि यहाँ शब्द “विश्वास” इस बात को सूचित नहीं करता कि हर मसीही क्या यकीन करने का दावा करता है। बल्कि यह शब्द उन सारी शिक्षाओं को सूचित करता है जिसे सभी मसीही मानते हैं। इसका मतलब उन शिक्षाओं की “चौड़ाई, और लम्बाई, और ऊंचाई, और गहराई” है। (इफिसियों 3:18; 4:5; कुलुस्सियों 1:23; 2:7) अगर एक मसीही, इस “विश्वास” के सिर्फ किसी एक भाग को मानता या स्वीकार करता है, तो यह कैसे कहा जा सकता है कि वह बाकी सभी मसीहियों के साथ एक है? इससे ज़ाहिर होता है कि हमारे लिए बाइबल की बुनियादी शिक्षाओं से वाकिफ होना या सच्चाई के बारे में अधूरा ज्ञान होना काफी नहीं है। इसके बजाय हमें यहोवा के संगठन के सारे इंतज़ामों से पूरी-पूरी मदद लेकर उसके वचन में गहराई तक खोजबीन करनी चाहिए। जहाँ तक हो सके हमें परमेश्वर की इच्छा और उसके मकसद की सही-सही और पूरी समझ हासिल करने के लिए हर संभव कोशिश करनी चाहिए। इसके लिए हमें बाइबल और बाइबल के साहित्य पढ़ने और उनका अध्ययन करने, परमेश्वर से मदद और मार्गदर्शन के लिए प्रार्थना करने, मसीही सभाओं में लगातार हाज़िर होने और राज्य के प्रचार और चेला बनाने के काम में पूरी तरह हिस्सा लेने के लिए समय निकालना होगा।—नीतिवचन 2:1-5.
10. इफिसियों 4:13 में इस्तेमाल किए गए शब्दों ‘जब तक कि हम सब के सब न बढ़ जाएं’ का मतलब क्या है?
10 गौर करनेवाली तीसरी बात यह है कि पौलुस ने उन तीनों लक्ष्यों का ज़िक्र करने से पहले कहा, ‘जब तक कि हम सब के सब न बढ़ जाएं।’ “हम सब के सब” के बारे में बाइबल पर व्याख्या देनेवाली एक किताब यह मतलब बताती है: “एक-एक करके अलग से नहीं बल्कि सभी एक-साथ मिलकर।” दूसरे शब्दों में कहें तो हम में से हरेक को अपने सभी आध्यात्मिक भाई-बहनों के साथ मिलकर मसीही प्रौढ़ता का लक्ष्य हासिल करने की हर संभव कोशिश करनी चाहिए। दि इंटरप्रेटर्स बाइबल कहती है: “कोई एक व्यक्ति दूसरों से अलग रहकर अकेले, आध्यात्मिक लक्ष्य हासिल नहीं कर सकता, ठीक जैसे शरीर का एक हिस्सा अलग से तब तक पूरी तरह विकास नहीं कर सकता जब तक कि सारा शरीर विकास न कर ले।” पौलुस ने इफिसुस के मसीहियों को याद दिलाया कि उन्हें “सब पवित्र लोगों के साथ” मिलकर ही विश्वास को पूरी तरह समझने की कोशिश करनी चाहिए।—इफिसियों 3:18क.
11. (क) आध्यात्मिक उन्नति करने का मतलब क्या नहीं है? (ख) उन्नति करने के लिए हमें क्या करने की ज़रूरत है?
11 पौलुस के शब्दों से यह साफ मालूम पड़ता है कि आध्यात्मिक उन्नति करने का मतलब सिर्फ अपने दिमाग को जानकारी और ज्ञान की बड़ी-बड़ी बातों से भरना नहीं है। प्रौढ़ मसीही वह नहीं होता जो दूसरों को अपने ज्ञान से हैरत में डाल दे। इसके बजाय, बाइबल कहती है: “धर्मियों का पथ भोर के प्रकाश के समान होता है, जो दिन की पूर्णता तक अधिकाधिक बढ़ता जाता है।” (नीतिवचन 4:18, NHT) जी हाँ, व्यक्ति के “पथ” का, न कि खुद व्यक्ति का ‘प्रकाश अधिकाधिक बढ़ता जाता है।’ यहोवा अपने वचन के बारे में अपने लोगों को दिन-ब-दिन बढ़ती समझ की जो रोशनी दे रहा है, उसके साथ अगर हम कदम-से-कदम मिलाकर चलें तो हम आध्यात्मिक उन्नति कर पाएँगे। इस मामले में कदम-से-कदम मिलाकर चलने का मतलब है लगातार आगे बढ़ते रहना। और यह हम सभी के लिए मुमकिन है।—भजन 97:11; 119:105.
‘आत्मा के फल’ प्रगट कीजिए
12. आध्यात्मिक उन्नति करने की कोशिश में हमारे लिए आत्मा के फल प्रगट करना क्यों ज़रूरी है?
12 ‘विश्वास और पूर्ण ज्ञान में एक होना’ हमारे लिए जितना ज़रूरी है, उतना ही ज़रूरी है ज़िंदगी के हर पहलू में आत्मा के फल प्रगट करना। क्यों? क्योंकि जैसा हमने पहले देखा, प्रौढ़ता कोई अंदरूनी या छिपी हुई बात नहीं है बल्कि यह ऐसे गुणों से साफ ज़ाहिर होती है जिनसे दूसरों को फायदा हो सकता है और उनका हौसला बंध सकता है। बेशक, आध्यात्मिक उन्नति करने का मतलब यह नहीं कि हम सभ्य होने का या अपने हाव-भाव से संतों की तरह धार्मिक होने का दिखावा करें। इसके बजाय, जैसे-जैसे हम परमेश्वर की आत्मा के निर्देशन में आध्यात्मिक उन्नति करते जाएँगे, तो हमारे विचारों और व्यवहार में बहुत ही बढ़िया बदलाव नज़र आएगा। प्रेरित पौलुस ने कहा: “आत्मा के अनुसार चलो, तो तुम शरीर की लालसा किसी रीति से पूरी न करोगे।”—गलतियों 5:16.
13. एक व्यक्ति में होनेवाले किस बदलाव से यह साफ दिखता है कि वह उन्नति कर रहा है?
13 इसके बाद, पौलुस ‘शरीर के कामों’ की सूची देता है, जो बहुत सारे हैं और “प्रगट” हैं। परमेश्वर के नियमों की अहमियत समझने से पहले एक इंसान दुनिया के तौर-तरीकों के मुताबिक ज़िंदगी जीता है और शायद कुछ ऐसे कामों में डूबा रहता है जिनका ज़िक्र पौलुस ने किया: “व्यभिचार, गन्दे काम, लुचपन। मूर्त्ति पूजा, टोना, बैर, झगड़ा, ईर्ष्या, क्रोध, विरोध, फूट, विधर्म। डाह, मतवालपन, लीलाक्रीड़ा, और इन के ऐसे और और काम।” (गलतियों 5:19-21) लेकिन जैसे-जैसे वह आध्यात्मिक उन्नति करने लगता है, तो वह ‘शरीर के’ इन बुरे ‘कामों’ को धीरे-धीरे छोड़ता जाता है और उनकी जगह ‘आत्मा के फल’ ज़ाहिर करने लगता है। उसमें नज़र आनेवाला यह बदलाव इस बात की साफ निशानी होती है कि वह व्यक्ति मसीही प्रौढ़ता की ओर उन्नति कर रहा है।—गलतियों 5:22.
14. “शरीर के काम” और ‘आत्मा के फल’ इन दोनों वाक्यांशों का मतलब समझाइए।
14 “शरीर के काम” और ‘आत्मा के फल,’ इन दोनों वाक्यांशों पर हमें ध्यान देना चाहिए। “काम” का मतलब है, एक व्यक्ति के व्यवहार का नतीजा। दूसरे शब्दों में, पौलुस ने शरीर के कामों के तहत जिन बुराइयों की सूची दी, वे एक व्यक्ति द्वारा जान-बूझकर किए गए काम हैं या फिर पापी शरीर के काबू में आने का नतीजा है। (रोमियों 1:24,28; 7:21-25) दूसरी ओर, ‘आत्मा के फल’ शब्दों का मतलब है कि जिन गुणों की सूची दी गई है, वे अपने चरित्र को सुधार कर सत्पुरुष बनने की कोशिशों का नतीजा नहीं हैं। इसके बजाय ये गुण एक व्यक्ति में तभी ज़ाहिर होते हैं जब उस पर परमेश्वर की पवित्र-आत्मा काम करती है। जिस तरह एक पेड़ की सही देखभाल करने पर उसमें फल लगते हैं, उसी तरह जब एक व्यक्ति की ज़िंदगी में पवित्र आत्मा भरपूर मात्रा में काम करती है, तो उसमें आत्मा के फल साफ-साफ दिखाई देते हैं।—भजन 1:1-3.
15. ‘आत्मा के फल’ के तहत बताए गए सभी गुणों पर ध्यान देना क्यों ज़रूरी है?
15 गौर करने लायक एक और मुद्दा यह है कि पौलुस ने सभी अच्छे गुणों के लिए शब्द “फल” इस्तेमाल किया। ऐसा नहीं कि आत्मा तरह-तरह के फल पैदा करती है और हम अपनी पसंद का फल चुनकर उस गुण को प्रगट करने की सोच सकते हैं। पौलुस ने जितने गुणों की सूची दी—प्रेम, आनन्द, मेल, धीरज, कृपा, भलाई, विश्वास, नम्रता, और संयम—इन सबकी अहमियत एक बराबर है और इन सारे गुणों के होने पर ही हमारे लिए नया मसीही मनुष्यत्व धारण करना मुमकिन होता है। (इफिसियों 4:24; कुलुस्सियों 3:10) हो सकता है कि इनमें से कुछ गुण हमारे अंदर पैदाइशी हों और हमारे स्वभाव में हों, इसलिए उन गुणों को ज़ाहिर करना हमारे लिए आसान होगा। मगर हमें पौलुस द्वारा बताए गए सभी गुणों को अपने अंदर बढ़ाने पर ध्यान देना चाहिए। अगर हम ऐसा करेंगे, तो अपनी ज़िंदगी में मसीह के जैसे गुणों को और अच्छी तरह ज़ाहिर कर सकेंगे।—1 पतरस 2:12,21.
16. मसीही प्रौढ़ता हासिल करने की कोशिश में हमारा मकसद क्या है और यह हम कैसे हासिल कर सकते हैं?
16 पौलुस की चर्चा से हम यह ज़रूरी सबक सीखते हैं कि मसीही प्रौढ़ता हासिल करने की कोशिश में हमारा मकसद यह नहीं कि हम ज़्यादा-से-ज़्यादा ज्ञान और जानकारी हासिल करें, न ही यह कि हम अपनी शख्सियत को निखारने के गुण पैदा करें। बल्कि हमारा मकसद है कि परमेश्वर की आत्मा भरपूर मात्रा में पाएँ। परमेश्वर की आत्मा के निर्देशन के मुताबिक हम जितना ज़्यादा अपने सोच-विचार और व्यवहार को ढालने की कोशिश करेंगे, उतना ही ज़्यादा हम आध्यात्मिक रूप से प्रौढ़ बनेंगे। हम यह लक्ष्य कैसे हासिल कर सकते हैं? हमें अपना मन और हृदय खोल देना चाहिए ताकि परमेश्वर की आत्मा हम पर काम करे। इसमें मसीही सभाओं में बिना नागा हाज़िर होना और उनमें भाग लेना शामिल है। साथ ही हमें परमेश्वर के वचन का लगातार अध्ययन करना और उस पर मनन करना चाहिए और उसमें दिए गए सिद्धांतों को ध्यान में रखते हुए दूसरों के साथ व्यवहार करना चाहिए और ज़िंदगी के चुनाव और फैसले करने चाहिए। तब ज़रूर हमारी उन्नति अच्छी तरह प्रगट होगी।
परमेश्वर की महिमा के लिए उन्नति कीजिए
17. जब हम उन्नति करते हैं तो इससे स्वर्ग में रहनेवाले हमारे पिता की महिमा कैसे होती है?
17 जब हम अपनी उन्नति प्रगट करते हैं, तो इससे हमारी नहीं बल्कि स्वर्ग में रहनेवाले हमारे पिता, यहोवा की महिमा और स्तुति होती है, जो हमारे लिए आध्यात्मिक प्रौढ़ता हासिल करना मुमकिन बनाता है। यीशु ने मार डाले जाने से पहली रात, अपने शिष्यों से कहा था: “मेरे पिता की महिमा इसी से होती है, कि तुम बहुत सा फल लाओ, तब ही तुम मेरे चेले ठहरोगे।” (यूहन्ना 15:8) शिष्यों ने आत्मा के फल प्रगट करने और अपनी सेवकाई में राज्य के फल लाने के ज़रिए यहोवा की महिमा की थी।—प्रेरितों 11:4,18; 13:48.
18. (क) आज किस तरह कटनी के काम से खुशियाँ मिल रही हैं? (ख) इस कटनी के काम से कौन-सी चुनौतियाँ खड़ी होती हैं?
18 आज यहोवा के लोग संसार-भर में एक आध्यात्मिक कटनी के काम में लगे हैं और उन पर यहोवा की आशीष है। कई सालों से करीब 3,00,000 नए जन हर साल अपना जीवन यहोवा को समर्पित करके पानी में बपतिस्मा ले रहे हैं। इससे हमें बहुत खुशी मिलती है और बेशक यहोवा का मन भी आनंदित होता है। (नीतिवचन 27:11) लेकिन, अगर इससे यहोवा को लगातार खुशी और स्तुति मिलनी है, तो ऐसे सभी नए जनों को ‘मसीह में चलते रहना है और उसी में जड़ पकड़ते और बढ़ते जाना है और विश्वास में दृढ़ होते’ जाना है। (कुलुस्सियों 2:6,7) इससे परमेश्वर के लोगों के सामने दो चुनौतियाँ आ खड़ी होती हैं। एक तो यह है कि अगर आपका अभी-अभी बपतिस्मा हुआ है, तो क्या आप ‘अपनी उन्नति सब पर प्रगट करने’ के लिए कड़ी मेहनत करने की चुनौती स्वीकार करेंगे? या अगर आप काफी समय से सच्चाई में हैं, तो क्या आप नए लोगों को आध्यात्मिक तरीके से मदद करने की ज़िम्मेदारी उठाने की चुनौती स्वीकार करेंगे? दोनों मामलों में प्रौढ़ता की ओर बढ़ते जाने की ज़रूरत साफ नज़र आती है।—फिलिप्पियों 3:16; इब्रानियों 6:1.
19. अगर आप अपनी उन्नति प्रगट करेंगे, तो आपको कौन-सा सुअवसर और आशीषें मिलेंगी?
19 जो लोग अपनी उन्नति प्रगट करने के लिए कड़ी मेहनत करते हैं, उन सभी को बढ़िया आशीषें मिलेंगी। याद कीजिए कि पौलुस ने तीमुथियुस को उन्नति करने के लिए कहने के बाद, उसका हौसला बढ़ाते हुए क्या कहा था: “अपनी और अपने उपदेश की चौकसी रख। इन बातों पर स्थिर रह, क्योंकि यदि ऐसा करता रहेगा, तो तू अपने, और अपने सुननेवालों के लिये भी उद्धार का कारण होगा।” (1 तीमुथियुस 4:15ख,16) अगर आप अपनी उन्नति प्रगट करने के लिए खूब मेहनत करेंगे, तो आपको भी परमेश्वर के नाम की महिमा करने और उसकी आशीषों का आनंद उठाने का सुअवसर मिलेगा।
क्या आपको याद है?
• किन तरीकों से आध्यात्मिक प्रौढ़ता प्रगट की जा सकती है?
• किस तरह के ज्ञान और समझ से प्रौढ़ता ज़ाहिर होती है?
• किस तरह ‘आत्मा के फल’ प्रगट करने से हमारी आध्यात्मिक उन्नति नज़र आती है?
• प्रौढ़ता की ओर बढ़ते समय हमें कौन-सी चुनौतियाँ स्वीकार करनी चाहिए?
[अध्ययन के लिए सवाल]
[पेज 13 पर तसवीर]
फल का पकना या प्रौढ़ता साफ-साफ देखे जा सकते हैं
[पेज 15 पर तसवीर]
प्रगट की गयी सच्चाई के साथ कदम-से-कदम मिलाकर चलने से हमारी आध्यात्मिक उन्नति होती है
[पेज 17 पर तसवीर]
‘आत्मा के फल’ प्रगट करने में प्रार्थना हमारी मदद करती है