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इब्राहीम—विश्‍वास की एक मिसाल

इब्राहीम—विश्‍वास की एक मिसाल

इब्राहीम—विश्‍वास की एक मिसाल

‘इब्राहीम उन सब का पिता ठहरा, जो विश्‍वास करते हैं।’रोमियों 4:11.

1, 2. (क) आज सच्चे मसीही, इब्राहीम को किस बात के लिए याद करते हैं? (ख) इब्राहीम के बारे में यह क्यों कहा गया है कि वह ‘उन सब का पिता ठहरा, जो विश्‍वास करते हैं’?

 वह एक बड़ी जाति का मूलपिता था। साथ ही वह एक भविष्यवक्‍ता, एक व्यापारी और एक प्रधान भी था। लेकिन, आज मसीहियों के बीच उसे एक ऐसे गुण के लिए बार-बार याद किया जाता है, जिसकी वजह से खुद यहोवा परमेश्‍वर ने उसे अपना मित्र कहा। यह गुण था उसका अटल विश्‍वास। (यशायाह 41:8; याकूब 2:23) उस इंसान का नाम था इब्राहीम और बाइबल कहती है कि वह ‘उन सब का पिता ठहरा, जो विश्‍वास करते हैं।’—रोमियों 4:11.

2 लेकिन, क्या इब्राहीम से पहले भी ऐसे पुरुष नहीं थे जिन्होंने विश्‍वास दिखाया था, जैसे कि हाबिल, हनोक और नूह? बेशक ये लोग थे, मगर परमेश्‍वर ने सिर्फ इब्राहीम से ही यह वाचा बाँधी थी कि उसके वंश से पृथ्वी की सारी जातियाँ आशीष पाएँगी। (उत्पत्ति 22:18) इस तरह इब्राहीम उन सभी का पिता कहलाया जो वादा किए गए वंश पर विश्‍वास लाते हैं। (गलतियों 3:8,9) तो एक मायने में हम भी इब्राहीम को अपना पिता मान सकते हैं, क्योंकि उसका विश्‍वास हमारे लिए एक मिसाल है जिस पर हमें चलना चाहिए। उसकी सारी ज़िंदगी ही विश्‍वास की कहानी मानी जा सकती है, क्योंकि उसे अनगिनत परीक्षाओं से गुज़रना पड़ा। जी हाँ, एक ऐसा वक्‍त भी आया जब इब्राहीम के विश्‍वास की सबसे बड़ी परीक्षा हुई, उसे अपने ही बेटे इसहाक का बलिदान चढ़ाने की आज्ञा दी गयी। लेकिन इससे भी पहले, इब्राहीम कई छोटी-छोटी परीक्षाओं में अपने विश्‍वास का लोहा साबित कर चुका था। (उत्पत्ति 22:1,2) आइए अब हम इब्राहीम की ज़िंदगी में शुरू-शुरू में आयी ऐसी ही कुछ परीक्षाओं पर गौर करें और देखें कि इनसे हम आज क्या सबक सीख सकते हैं।

ऊर को छोड़ने की आज्ञा

3. अब्राम की ज़िंदगी और रहन-सहन के बारे में बाइबल हमें क्या-क्या जानकारी देती है?

3 बाइबल हमें उत्पत्ति 11:26 में अब्राम (जो आगे चलकर इब्राहीम के नाम से मशहूर हुआ) का परिचय देती है। वहाँ लिखा है: “जब तक तेरह सत्तर वर्ष का हुआ, तब तक उसके द्वारा अब्राम, और नाहोर, और हारान उत्पन्‍न हुए।” अब्राम, शेम के वंश का था जो परमेश्‍वर का भय माननेवाला इंसान था। (उत्पत्ति 11:10-24) उत्पत्ति 11:31 के मुताबिक, अब्राम अपने परिवार के साथ “कस्‌दियों के ऊर नगर” में रहता था। यह एक समृद्ध नगर था जो उस वक्‍त फरात नदी के पूर्व में बसा हुआ था। * इसलिए हम कह सकते हैं कि अब्राम का बचपन तंबुओं में रहनेवाले खानाबदोशों की तरह नहीं बीता था, बल्कि वह एक ऐसे शहर में बड़ा हुआ था जिसमें धन-दौलत और ऐशो-आराम की ज़िंदगी बड़ी आसानी से हासिल की जा सकती थी। ऊर के बाज़ारों में विदेशी सामान भी खरीदा जा सकता था। नगर की सड़कों के दोनों किनारे चूना पुते हुए 14 कमरोंवाले मकानों से सजे हुए थे जिनके अंदर पानी के लिए नलकारी व्यवस्था थी।

4. (क) सच्चे परमेश्‍वर के उपासकों को ऊर नगर में किन मुश्‍किलों का सामना करना पड़ता था? (ख) अब्राम का विश्‍वास यहोवा पर क्यों था?

4 बेशुमार धन-दौलत के अलावा ऊर नगर में सच्चे परमेश्‍वर के लोगों के लिए रहना इसलिए भी मुश्‍किल था क्योंकि इस नगर में हर तरफ मूर्तिपूजा और अंधविश्‍वास का बोलबाला था। यही नहीं, नगर के बीच, चंद्र-देवता नान्‍ना के सम्मान में एक ऊँचा और विशालकाय ज़िग्गुरत या सीढ़ीदार मंदिर-टीला भी बनाया गया था। बेशक, अब्राम को इस घृणित किस्म की उपासना में शामिल होने का दबाव झेलना पड़ा होगा, हो सकता है कि उसके अपने ही रिश्‍तेदारों ने उस पर दबाव डाला हो। यहूदियों की परंपराओं के मुताबिक कहा जाता है कि अब्राम का पिता तेरह, खुद मूर्तियाँ बनाने का काम करता था। (यहोशू 24:2,14,15) बात चाहे जो भी हो, अब्राम उस घिनौनी झूठी उपासना में शामिल नहीं था। उसका पुरखा शेम उस वक्‍त भी ज़िंदा था, हालाँकि उसकी उम्र काफी हो चुकी थी। उसने अब्राम को सच्चे परमेश्‍वर के बारे में ज़रूर सिखाया होगा। इसलिए, अब्राम का विश्‍वास यहोवा पर था, नान्‍ना पर नहीं!—गलतियों 3:6.

विश्‍वास की परीक्षा

5. अब्राम जब ऊर में ही था, तब परमेश्‍वर ने उसे क्या आज्ञा दी और उससे क्या वादा किया?

5 अब्राम के विश्‍वास की परीक्षा होनी थी। परमेश्‍वर ने उसे दर्शन देकर आज्ञा दी: “अपने देश, और अपनी जन्मभूमि, और अपने पिता के घर को छोड़कर उस देश में चला जा जो मैं तुझे दिखाऊंगा। और मैं तुझ से एक बड़ी जाति बनाऊंगा, और तुझे आशीष दूंगा, और तेरा नाम बड़ा करूंगा, और तू आशीष का मूल होगा। और जो तुझे आशीर्वाद दें, उन्हें मैं आशीष दूंगा; और जो तुझे कोसे, उसे मैं शाप दूंगा; और भूमण्डल के सारे कुल तेरे द्वारा आशीष पाएंगे।”—उत्पत्ति 12:1-3; प्रेरितों 7:2,3.

6. ऊर छोड़ने के लिए अब्राम को सच्चे विश्‍वास की ज़रूरत क्यों थी?

6 अब्राम बूढ़ा हो चुका था और उसकी कोई औलाद नहीं थी। तो फिर, उससे एक “बड़ी जाति” कैसे निकल सकती थी? और जिस देश में उसे जाने का हुक्म दिया गया था, वह आखिर कहाँ था? उस वक्‍त परमेश्‍वर ने उसे यह सब नहीं बताया था। इसलिए, ऊर की समृद्धि और उसके ऐशो-आराम को छोड़ने के लिए अब्राम को सच्चे विश्‍वास की ज़रूरत थी। प्राचीनकाल के बारे में, परिवार, प्यार और बाइबल (अँग्रेज़ी) किताब बताती है: “उस ज़माने में अगर परिवार का कोई सदस्य संगीन जुर्म करता था, तो उसके लिए सबसे बड़ी सज़ा यही थी कि उसे खानदान से निकाल दिया जाए, जिसके बाद परिवार उसके साथ कोई ‘नाता’ नहीं रखता था। . . . इसीलिए, जब परमेश्‍वर की आज्ञा मानने के लिए, इब्राहीम ने न सिर्फ अपने देश को बल्कि अपने सगे-संबंधियों को भी छोड़ दिया तो उसने, बिना सवाल किए परमेश्‍वर की आज्ञा मानने और उस पर भरोसा करने की एक बेजोड़ मिसाल कायम की।”

7. आज कैसे मसीहियों पर भी वैसी ही परीक्षाएँ आ सकती हैं जैसी अब्राम पर आयी थीं?

7 आज मसीहियों पर भी ऐसी ही परीक्षाएँ आ सकती हैं। जैसे अब्राम के साथ हुआ, वैसे ही हम पर भी परमेश्‍वर के काम को दिल में पहली जगह देने के बजाय, पैसा और सुख-चैन की ज़िंदगी हासिल करने पर ज़्यादा ध्यान लगाने का दबाव आ सकता है। (1 यूहन्‍ना 2:16) परिवार के अविश्‍वासी सदस्य शायद हमारा विरोध करें, यहाँ तक कि कलीसिया से बहिष्कृत हुए हमारे रिश्‍तेदार हमें ललचाकर गलत संगति में फँसाने की कोशिश करें। (मत्ती 10:34-36; 1 कुरिन्थियों 5:11-13; 15:33) इन सब बातों में अब्राम ने हमारे लिए एक बेहतरीन मिसाल कायम की है। उसने यहोवा के साथ अपनी दोस्ती को बाकी सब बातों से, यहाँ तक कि पारिवारिक रिश्‍तों से भी आगे रखा। उसे ठीक-ठीक पता नहीं था कि परमेश्‍वर के वादे कैसे, कब और कहाँ पूरे होंगे। फिर भी, वह उन वादों के लिए अपनी ज़िंदगी दाँव पर लगाने को तैयार था। उसकी मिसाल से हमें कितना हौसला मिलता है कि आज हम अपनी ज़िंदगी में राज्य को सबसे पहला स्थान दें!—मत्ती 6:33.

8. अब्राम के विश्‍वास का उसके अपने घरवालों पर कैसा असर हुआ, और इससे मसीही क्या सीख सकते हैं?

8 अब्राम के अपने घरवालों पर उसके विश्‍वास का कैसा असर पड़ा? ज़ाहिर है कि अब्राम के विश्‍वास और पक्के भरोसे का उन पर बहुत ज़बरदस्त असर हुआ, क्योंकि न सिर्फ उसकी पत्नी सारै बल्कि उसका यतीम भतीजा, लूत भी परमेश्‍वर की आज्ञा मानकर ऊर छोड़ने के लिए तैयार हो गया। अब्राम के भाई नाहोर और उसकी कुछ संतानों ने बाद में ऊर छोड़ा और हारान आकर बस गए, जहाँ उन्होंने यहोवा की उपासना की। (उत्पत्ति 24:1-4,10,31; 27:43; 29:4,5) इतना ही नहीं, अब्राम का पिता, तेरह भी अपने बेटे के साथ ऊर छोड़ने के लिए राज़ी हो गया! इसलिए बाइबल कहती है कि परिवार का मुखिया होने के नाते, तेरह अपने परिवार को कनान की ओर ले गया। (उत्पत्ति 11:31) अगर हम समझदारी से अपने सगे-संबंधियों को साक्षी दें, तो हो सकता है कि हमें भी काफी हद तक कामयाबी मिल जाए।

9. इब्राहीम को सफर के लिए क्या-क्या तैयारियाँ करनी पड़ीं, और इन तैयारियों में कैसे उसे त्याग करना पड़ा होगा?

9 अपना सफर शुरू करने से पहले, अब्राम को बहुत काम करना था। उसे अपनी ज़मीन-जायदाद और सामान बेचकर तंबू, ऊँट, भोजन और दूसरा ज़रूरी सामान खरीदना था। जल्दबाज़ी में सारी तैयारियाँ करने की वजह से अब्राम को शायद काफी घाटा उठाना पड़ा हो, मगर उसे इस बात की खुशी थी कि वह यहोवा की आज्ञा का पालन कर रहा है। वह कितना बड़ा दिन रहा होगा जब अब्राम की सारी तैयारियाँ खत्म हो गयीं और ऊर की शहरपनाह के बाहर, उसका कारवाँ सफर के लिए तैयार खड़ा था! फरात नदी के घुमाव के साथ-साथ, यह कारवाँ उत्तर-पश्‍चिम दिशा की ओर चलने लगा। कई हफ्तों तक करीब 1,000 किलोमीटर की दूरी तय करने के बाद, यह कारवाँ उत्तरी मिसुपुतामिया के हारान नाम के नगर में पहुँचा, जिसे किसी भी कारवाँ के रुकने का सबसे बड़ा पड़ाव माना जाता था।

10, 11. (क) अब्राम कुछ समय के लिए हारान में शायद क्यों बस गया था? (ख) बुज़ुर्ग माता-पिता की देखभाल करनेवाले मसीहियों को किस बात से हौसला दिया जा सकता है?

10 अब्राम जब हारान पहुँचा तो वह वहीं बस गया, शायद इस लिहाज़ से कि उसका पिता बहुत बूढ़ा हो चुका था। (लैव्यव्यवस्था 19:32) उसी तरह आज बहुत-से मसीहियों पर अपने बुज़ुर्ग या बीमार माता-पिता की देखभाल करने की ज़िम्मेदारी है और इसलिए कई भाई-बहनों को अपनी ज़िंदगी में बदलाव करना पड़ा है। ज़रूरत पड़ने पर ऐसे बदलाव करनेवाले ये भाई-बहन यकीन रख सकते हैं कि उनका प्यार और त्याग “परमेश्‍वर को भाता है।”—1 तीमुथियुस 5:4.

11 अब्राम को हारान में बसे वक्‍त गुज़रता गया। “जब तेरह दो सौ पांच वर्ष का हुआ, तब वह हारान देश में मर गया।” अब्राम को पिता की मौत से बहुत दुःख हुआ होगा, मगर जब शोक करने का समय बीत गया, तब वह बिना देर किए वहाँ से निकल पड़ा। “जब अब्राम हारान देश से निकला उस समय वह पचहत्तर वर्ष का था। सो अब्राम अपनी पत्नी सारै, और अपने भतीजे लूत को, और जो धन उन्हों ने इकट्ठा किया था, और जो प्राणी उन्हों ने हारान में प्राप्त किए थे, सब को लेकर कनान देश में जाने को निकल चला।”—उत्पत्ति 11:32; 12:4,5.

12. हारान में रहते वक्‍त अब्राम ने क्या किया?

12 यह गौर करने लायक बात है कि जब अब्राम हारान में था तो उसने ‘धन इकट्ठा किया।’ हालाँकि अब्राम ने ऊर छोड़ते वक्‍त धन का बहुत नुकसान उठाया था, फिर भी जब वह हारान से निकला तब तक उसके पास काफी दौलत इकट्ठी हो चुकी थी। ज़ाहिर है कि यह दौलत उसे परमेश्‍वर की आशीष से ही मिली थी। (सभोपदेशक 5:19) हालाँकि आज परमेश्‍वर अपने सभी लोगों को दौलत की आशीष देने का वादा नहीं करता, मगर फिर भी वह उन लोगों की ज़रूरतें पूरी करने का वादा ज़रूर करता है जो राज्य की खातिर ‘घर या भाइयों या बहिनों को छोड़’ चुके हैं। (मरकुस 10:29,30) अब्राम ने ‘प्राणी [भी] प्राप्त किए,’ यानी उसके कई दास भी थे। द जेरूसलेम टारगम और कैल्डी पैराफ्रेस अनुवाद कहते हैं कि अब्राम ने ‘प्रचार करके चेले बनाए।’ (उत्पत्ति 18:19) क्या आपका विश्‍वास आपको अपने पड़ोसियों, साथ काम करनेवालों और साथ पढ़नेवालों को गवाही देने के लिए प्रेरित करता है? परमेश्‍वर की आज्ञा को भूलकर अब्राम हारान में ही नहीं बस गया, बल्कि वहाँ रहते वक्‍त उसने समय का बहुत अच्छा इस्तेमाल किया। मगर अब उस जगह को छोड़ने का वक्‍त आ गया था। इसलिए “यहोवा के इस वचन के अनुसार अब्राम चला।”—उत्पत्ति 12:4.

फरात पार करना

13. अब्राम ने फरात नदी कब पार की और इस घटना की अहमियत क्या थी?

13 एक बार फिर अब्राम सफर के लिए निकल पड़ा। हारान को पीछे छोड़, उसका कारवाँ पश्‍चिम की ओर चला। वे करीब 90 किलोमीटर का रास्ता तय करके फरात नदी के पास एक जगह पर आकर रुके। नदी की दूसरी तरफ प्राचीनकाल का व्यापार केंद्र, कर्कमीश था। यही वह खास जगह थी जहाँ से कारवाँ फरात नदी पार करते थे। * किस तारीख को अब्राम के कारवाँ ने यह नदी पार की? बाइबल बताती है कि अब्राम ने जिस तारीख को फरात पार की, उसके ठीक 430 साल बाद यानी सा.यु.पू. 1513 के निसान 14 को यहूदी मिस्र की गुलामी से निकल आए थे। निर्गमन 12:41 कहता है: “उन चार सौ तीस वर्षों के बीतने पर, ठीक उसी दिन, यहोवा की सारी सेना मिस्र देश से निकल गई।” (तिरछे टाइप हमारे।) तो फिर, इससे ज़ाहिर होता है कि इब्राहीमी वाचा सा.यु.पू. 1943 में निसान 14 को शुरू हुई, जब अब्राम ने आज्ञा का पालन करते हुए फरात नदी पार की।

14. (क) अब्राम अपनी विश्‍वास की आँखों से क्या देख सका था? (ख) आज किस मायने में परमेश्‍वर के लोगों को अब्राम से कहीं ज़्यादा आशीष मिली है?

14 अब्राम एक समृद्ध शहर को पीछे छोड़ आया था। मगर, अब वह विश्‍वास की आँखों से “उस स्थिर नेववाले नगर” को, यानी सब इंसानों पर एक धर्मी सरकार को राज करता हुआ देख सका। (इब्रानियों 11:10) जी हाँ, थोड़ी-सी जानकारी से ही अब्राम के मन में, मरनहार इंसानों को छुटकारा दिलाने के परमेश्‍वर के उद्देश्‍य की धुँधली-सी तसवीर उभरने लगी थी। आज, हमारे लिए बहुत बड़ी आशीष है कि हम परमेश्‍वर के उद्देश्‍यों के बारे में अब्राम से कहीं ज़्यादा समझ हासिल कर पाए हैं। (नीतिवचन 4:18) जिस “नगर” या राज्य सरकार की आशा अब्राम को थी वह 1914 से स्वर्ग में स्थापित हो चुकी है और अब सचमुच में राज्य कर रही है। इसलिए, क्या हमें ऐसे काम नहीं करने चाहिए जिससे हमारा विश्‍वास और यहोवा पर भरोसा साफ नज़र आए?

वादा किए हुए देश में पड़ाव डालना

15, 16. (क) यहोवा के लिए वेदी बनाने में अब्राम को हिम्मत की ज़रूरत क्यों थी? (ख) आज मसीही कैसे अब्राम के जैसी हिम्मत दिखा सकते हैं?

15 उत्पत्ति 12:5,6 हमें बताता है: “और वे कनान देश में आ भी गए। उस देश के बीच से जाते हुए अब्राम शकेम में, जहां मोरे का बांज वृक्ष है, पहुंचा।” शकेम, यरूशलेम से 50 किलोमीटर उत्तर में था और एक ऐसी उपजाऊ वादी में बसा हुआ था, जिसे “पवित्र देश का फिरदौस” कहा गया है। मगर, “उस समय उस देश में कनानी लोग रहते थे।” कनानी बहुत ही घिनौने लैंगिक काम करते थे, इसलिए शायद अब्राम को इस भ्रष्ट माहौल से अपने परिवार को बचाने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ी होगी।—निर्गमन 34:11-16.

16 अब दूसरी बार, “यहोवा ने अब्राम को दर्शन देकर कहा, यह देश मैं तेरे वंश को दूंगा।” यह सुनकर अब्राम को कितनी खुशी हुई होगी! बेशक, जो आशीष भविष्य में उसकी संतान को मिलनेवाली थी, उससे खुश होने के लिए अब्राम को विश्‍वास की ज़रूरत थी। मगर, अब्राम ने यह वादा सुनकर, “वहां यहोवा के लिये जिस ने उसे दर्शन दिया था, एक वेदी बनाई।” (उत्पत्ति 12:7) एक बाइबल विद्वान कहते हैं: “उस देश में एक वेदी बनाना, दरअसल इस बात की निशानी थी कि वह अपने विश्‍वास की वजह से मिले हक के आधार पर, अब उस ज़मीन का मालिक है।” ऐसी वेदी बनाने के लिए हिम्मत की भी ज़रूरत थी। बेशक, यह वेदी वैसी ही थी जैसी बाद में मूसा की व्यवस्था वाचा में बनाने की आज्ञा दी गयी थी, इसके पत्थरों को ज़मीन से इकट्ठा किया (लेकिन तराशा नहीं) गया था। (निर्गमन 20:24,25) अब्राम की इस वेदी और कनानियों की बनायी हुई वेदियों के बीच ज़मीन-आसमान का फर्क था। ऐसा करके उसने बड़ी हिम्मत दिखाते हुए यह बात जग-ज़ाहिर कर दी कि वह सच्चे परमेश्‍वर यहोवा का उपासक है। इस वजह से शायद उसने कनानियों की दुश्‍मनी और अपनी जान का खतरा भी मोल लिया हो। आज हमारे बारे में क्या? क्या हममें से कुछ लोग, खासकर नौजवान, अपने पड़ोसियों या स्कूल के साथियों को यह नहीं बताते कि हम यहोवा के उपासक हैं? ऐसा हो कि हम अब्राम की मिसाल पर चलकर उसी के जैसी हिम्मत दिखाएँ और इस बात पर गर्व महसूस करें कि हम यहोवा के सेवक हैं!

17. अब्राम ने कैसे सबूत दिया कि वह परमेश्‍वर के नाम का प्रचारक है, और यह आज मसीहियों को क्या याद दिलाता है?

17 अब्राम जहाँ कहीं गया, यहोवा की उपासना हमेशा उसकी ज़िंदगी में पहले स्थान पर आती थी। “फिर वहां से कूच करके, वह उस पहाड़ पर आया, जो बेतेल के पूर्व की ओर है; और अपना तम्बू उस स्थान में खड़ा किया जिसकी पच्छिम की ओर तो बेतेल, और पूर्व की ओर ऐ है; और वहां भी उस ने यहोवा के लिये एक वेदी बनाई: और यहोवा [“के नाम को पुकारा,” NW] से प्रार्थना की।” (उत्पत्ति 12:8) जिन इब्रानी शब्दों का अनुवाद “के नाम को पुकारा” किया गया है, उनका मतलब “उसके नाम का ऐलान (प्रचार) करना” भी है। जी हाँ, अब्राम ने बड़ी हिम्मत से अपने कनानी पड़ोसियों के सामने यहोवा के नाम का ऐलान किया। (उत्पत्ति 14:22-24) इससे हमें अपनी इस ज़िम्मेदारी का एहसास होता है कि आज हम ज़्यादा-से-ज़्यादा लोगों के सामने “उसके नाम का अंगीकार” करते रहें।—इब्रानियों 13:15; रोमियों 10:10.

18. कनान के लोगों के साथ अब्राम का कैसा संबंध था?

18 अब्राम इनमें से किसी भी जगह पर ज़्यादा समय तक नहीं रुका। “और अब्राम कूच करके दक्खिन देश [“नेगेव,” NHT] की ओर चला गया।” (उत्पत्ति 12:9) नेगेव, यहूदा के पहाड़ों के दक्षिण में एक इलाका था जो लगभग बंजर था। जगह-जगह घूमते रहने से और हर नए इलाके में यह ज़ाहिर करने से कि वह यहोवा का उपासक है, अब्राम और उसके घराने ने “मान लिया [“सबके सामने ऐलान किया,” NW], कि हम पृथ्वी पर परदेशी और बाहरी हैं।” (इब्रानियों 11:13) इस सारे वक्‍त, उन्होंने झूठा धर्म माननेवाले अपने पड़ोसियों के साथ ज़्यादा दोस्ती नहीं बढ़ायी। उसी तरह आज मसीहियों के लिए ज़रूरी है कि वे इस ‘संसार के न’ हो जाएँ। (यूहन्‍ना 17:16) हालाँकि हम अपने पड़ोसियों और साथ काम करनेवालों के साथ प्यार और इज़्ज़त से पेश आते हैं, फिर भी हम इस बात का ध्यान रखते हैं कि हम ऐसा व्यवहार न करने लगें जिसमें परमेश्‍वर से दूर जा चुके इस संसार की आत्मा नज़र आए।—इफिसियों 2:2,3.

19. (क) अब्राम और सारै के लिए खानाबदोशों की ज़िंदगी जीना क्यों मुश्‍किल रहा होगा? (ख) अब्राम पर जल्द ही और कैसी परीक्षाएँ आनेवाली थीं?

19 हम यह बात न भूलें कि खानाबदोशों की ज़िंदगी में आनेवाली मुश्‍किलों के हिसाब से खुद को ढाल लेना, न तो अब्राम के लिए न ही सारै के लिए आसान रहा होगा। ऊर के भरे-पूरे बाज़ारों से मिलनेवाले भोजन के बजाय उन्हें अपने मवेशियों से मिलनेवाले भोजन से ही गुज़ारा करना पड़ता था; वे पक्के मकान के बजाय तंबुओं में रहते थे। (इब्रानियों 11:9) अब्राम दिन-भर काम में लगा रहता था; भेड़-बकरियों और सेवकों की निगरानी करने का ही काम बहुत बड़ा था। सारै भी वे काम करती होगी जो आम तौर पर उस संस्कृति में महिलाएँ करती थीं जैसे कि आटा गूँधना, रोटियाँ सेंकना, ऊन कातना, कपड़े सिलना। (उत्पत्ति 18:6,7; 2 राजा 23:7; नीतिवचन 31:19; यहेजकेल 13:18) लेकिन, जल्द ही नयी किस्म की परीक्षाएँ उन पर आनेवाली थीं। बहुत जल्द अब्राम और उसके घराने को एक ऐसी स्थिति का सामना करना पड़ता जिसमें उनकी अपनी जान खतरे में पड़नेवाली थी! क्या इस मुसीबत का सामना करते वक्‍त भी अब्राम का विश्‍वास मज़बूत रहता?

[फुटनोट]

^ हालाँकि आज फरात नदी उस जगह से सोलह किलोमीटर दूर पूर्व में है जहाँ पहले ऊर था, मगर सबूत दिखाते हैं कि प्राचीनकाल में ऊर नगर फरात के किनारे पर बसा हुआ था और यह नदी ऊर नगर के पश्‍चिम से बहती थी। इसीलिए, बाद में यह कहा जा सका कि अब्राम “[फरात] महानद के उस पार से” आया।—यहोशू 24:3.

^ इस घटना के कई सदियों बाद, अश्‍शूर के राजा अश्‍शूरबनीपाल II ने कर्कमीश के पास, लकड़ी के बड़े-बड़े लट्ठों से बने बेड़ों पर फरात नदी पार की। अब्राम को नदी पार करने के लिए खुद ऐसे बेड़े बनाने पड़े या उसके कारवाँ ने पानी में चलकर नदी पार की, इस बारे में बाइबल कुछ नहीं बताती।

क्या आपने ध्यान दिया?

• अब्राम को “उन सब का पिता” क्यों कहा गया है, ‘जो विश्‍वास करते हैं’?

• कसदियों का ऊर छोड़ने के लिए अब्राम को विश्‍वास की ज़रूरत क्यों थी?

• अब्राम ने कैसे दिखाया कि यहोवा की उपासना उसकी ज़िंदगी में पहले स्थान पर आती है?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 16 पर नक्शा]

(भाग को असल रूप में देखने के लिए प्रकाशन देखिए)

अब्राम का सफर

ऊर

हारान

कर्कमीश

कनान

महा सागर

[चित्र का श्रेय]

Based on a map copyrighted by Pictorial Archive (Near Eastern History) Est. and Survey of Israel

[पेज 15 पर तसवीर]

ऊर में ज़िंदगी के ऐशो-आराम को छोड़ने के लिए अब्राम को विश्‍वास की ज़रूरत थी

[पेज 18 पर तसवीर]

तंबुओं में रहकर, अब्राम और उसके घराने ने ‘सबके सामने ऐलान किया कि वे परदेशी और बाहरी हैं’