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आप एक गुमराह बच्चे की मदद कैसे कर सकते हैं?

आप एक गुमराह बच्चे की मदद कैसे कर सकते हैं?

आप एक गुमराह बच्चे की मदद कैसे कर सकते हैं?

‘आनन्द मनाओ, क्योंकि वह खो गया था, अब मिल गया है।’लूका 15:32, NHT.

1, 2. (क) कुछ बच्चों ने मसीही सच्चाई के बारे में कैसा रवैया अपनाया है? (ख) ऐसे हालात में माता-पिता और बच्चे कैसा महसूस कर सकते हैं?

 “मुझे अब सच्चाई में नहीं रहना!” अपनी औलाद के मुँह से ये शब्द सुनकर, माँ-बाप का जिगर कैसे टुकड़े-टुकड़े हो जाता है! उन्होंने खून-पसीना एक करके अपने बच्चे की परवरिश की और उसे परमेश्‍वर का वफादार सेवक बनाने की पूरी कोशिश की, मगर वही अब सच्चाई से मुँह मोड़ रहा है। ऐसे माँ-बाप भी हैं जो अपने बच्चों के मुँह से ये शब्द तो नहीं सुनते, मगर फिर भी, उनके बच्चे धीरे-धीरे सच्चाई से ‘दूर चले जाते’ हैं। (इब्रानियों 2:1) इनमें से कई बच्चे यीशु की कहानी के उस उड़ाऊ पुत्र की तरह होते हैं, जिसने अपने पिता का घर छोड़ दिया और दूर एक देश में जाकर अपने पिता से मिली सारी संपत्ति लुटा दी।—लूका 15:11-16.

2 साक्षियों के ज़्यादातर परिवारों में बच्चे सच्चाई में टिके रहते हैं, मगर जो परिवार बच्चों के सच्चाई छोड़ने के इस हादसे से गुज़रते हैं, उन्हें चाहे आप कितना ही दिलासा क्यों न दें, उनका दुःख पूरी तरह कभी नहीं मिटता। और फिर, जो बच्चा सच्चाई को छोड़ जाता है उस पर भी बहुत तकलीफें आ सकती हैं। उसका विवेक उसे अंदर-ही-अंदर कचोटता रह सकता है। यीशु की कहानी में, उड़ाऊ पुत्र आखिरकार “अपने आपे में आया” और इससे उसका पिता बेहद खुश हुआ। आज भी, माता-पिता और कलीसिया के दूसरे भाई-बहन ऐसे गुमराह बच्चों को ‘अपने आपे में आने’ में कैसे मदद दे सकते हैं?—लूका 15:17.

कुछ बच्चे सच्चाई क्यों छोड़ देते हैं

3. किन वजहों से कुछ नौजवान, मसीही कलीसिया को छोड़कर चले जाते हैं?

3 मसीही कलीसिया में ऐसे लाखों नौजवान हैं जो खुशी-खुशी यहोवा की सेवा करते हैं। तो फिर, कुछ नौजवान क्यों कलीसिया छोड़ जाते हैं? उन्हें शायद लगता है कि संसार में रहकर वे जो हासिल कर सकते हैं, वह सच्चाई में रहकर कभी नहीं कर सकते। (2 तीमुथियुस 4:10) या उन्हें लगता है कि यहोवा ने अपने झुंड की हिफाज़त के लिए जो बाड़ा बाँधा है, उसमें रहकर उन्हें पूरी आज़ादी नहीं मिलती। कुछ नौजवानों के लिए सच्चाई से दूर चले जाने की और भी वजहें हो सकती हैं, जैसे कि उनका विवेक उन्हें किसी गलती के लिए दोषी ठहराता रहता है, या फिर वे सच्चाई से बाहर किसी लड़के/लड़की को पसंद करने लगते हैं या अपने हमउम्र दोस्तों की रज़ामंदी पाना चाहते हैं। एक नौजवान सच्चाई से इसलिए भी दूर जा सकता है क्योंकि उसे लगता है कि उसके माता-पिता या कोई और मसीही, परमेश्‍वर की सेवा करने का सिर्फ पाखंड करते हैं।

4. नौजवानों के भटक जाने की समस्या की असली जड़, अकसर क्या होती है?

4 अगर एक बच्चा, माँ-बाप का कहना नहीं मानता और उनका विरोध करता है तो अकसर ये आध्यात्मिक कमज़ोरी की निशानियाँ होती हैं। इससे ज़ाहिर होता है कि उसके दिल में क्या है। (नीतिवचन 15:13; मत्ती 12:34) एक नौजवान के सच्चाई से भटक जाने की वजह चाहे जो भी हो, अकसर “सत्य के सम्पूर्ण ज्ञान” का न होना इस समस्या की असली जड़ होती है। (2 तीमुथियुस 3:7, ईज़ी-टू-रीड वर्शन) सिर्फ नाम के लिए यहोवा की उपासना करने के बजाय, यह ज़रूरी है कि बच्चे परमेश्‍वर के साथ एक करीबी रिश्‍ता कायम करें। ऐसा करने में उन्हें किस बात से मदद मिलेगी?

परमेश्‍वर के निकट आओ

5. परमेश्‍वर के साथ एक करीबी रिश्‍ता कायम करने के लिए, एक नौजवान को क्या करना चाहिए?

5 शिष्य याकूब ने लिखा, “परमेश्‍वर के निकट आओ, तो वह भी तुम्हारे निकट आएगा।” (याकूब 4:8) इसके लिए नौजवान के मन में परमेश्‍वर के वचन के लिए लगाव पैदा करना ज़रूरी है। (भजन 34:8) शुरू-शुरू में उसके लिए “दूध” यानी बाइबल की बुनियादी शिक्षाएँ समझना ज़रूरी है। लेकिन जब धीरे-धीरे परमेश्‍वर के वचन के लिए उसका लगाव बढ़ता है और उसे “अन्‍न” यानी गहरी आध्यात्मिक बातों का स्वाद अच्छा लगने लगता है, तब आध्यात्मिक प्रौढ़ता तक पहुँचने में उसे ज़्यादा वक्‍त नहीं लगता। (इब्रानियों 5:11-14; भजन 1:2) एक नौजवान ने बताया कि एक वक्‍त पर वह इस दुनिया के रंग में पूरी तरह रंग गया था, लेकिन अब वह आध्यात्मिक आदर्शों की कदर करता है। उसे बदलने में किस बात ने मदद दी? उसने पूरी बाइबल पढ़ने की सलाह पर अमल किया, और इसे नियमित रूप से पढ़ने के लिए एक कार्यक्रम भी बनाया। जी हाँ, यहोवा के साथ एक करीबी रिश्‍ता कायम करने के लिए परमेश्‍वर का वचन नियमित रूप से पढ़ना ज़रूरी है।

6, 7. माता-पिता अपने बच्चों के मन में परमेश्‍वर के वचन के लिए प्यार कैसे पैदा कर सकते हैं?

6 माता-पिता के लिए अपने बच्चों के मन में परमेश्‍वर के वचन के लिए प्यार पैदा करना बेहद ज़रूरी है। गौर कीजिए, एक लड़की के परिवार में नियमित बाइबल अध्ययन होता था, फिर भी वह ऐसे नौजवानों के साथ मेल-जोल रखती थी जो बुरे काम करते थे। अपने पारिवारिक अध्ययन के बारे में वह कहती है: “जब पिताजी सवाल पूछते थे, तो मैं बिना सिर उठाए किताब से जवाब पढ़ देती थी।” पारिवारिक अध्ययन में सिर्फ किसी विषय का सरसरी तौर पर अध्ययन करने के बजाय, समझदार माता-पिता सिखाने की कला इस्तेमाल करते हैं। (2 तीमुथियुस 4:2) बच्चों को अध्ययन तभी अच्छा लगेगा जब उन्हें महसूस होगा कि यह खास तौर पर उनके लिए है और इससे उन्हें फायदा होगा। क्यों न आप अपने बच्चे से ऐसे सवाल करें जिससे उसके मन की बात पता लगे? बच्चे को उकसाइए कि वह सीखी हुई बातों पर अमल करे। *

7 इसके अलावा, बाइबल की चर्चाओं को मज़ेदार बनाइए। जब मुनासिब हो, तब बच्चों को बाइबल की घटनाओं और कहानियों का अभिनय करने के लिए कहिए। अध्ययन के दौरान आप जिन घटनाओं की चर्चा करते हैं, वे किस जगह घटीं और वह देश देखने में कैसा था, इसकी कल्पना करने में उनकी मदद कीजिए। नक्शे और चार्ट का इस्तेमाल करना भी फायदेमंद हो सकता है। जी हाँ, थोड़ी सूझ-बूझ से पारिवारिक अध्ययन बहुत ही जानदार और आम अध्ययन से हटकर होगा। और माता-पिता को चाहिए कि यहोवा के साथ अपने रिश्‍ते की भी जाँच करें। जब वे खुद यहोवा के करीब आएँगे, तो वे अपने बच्चों को भी उसके करीब आने में मदद दे सकेंगे।—व्यवस्थाविवरण 6:5-7.

8. प्रार्थना हमें परमेश्‍वर के करीब आने में कैसे मदद देती है?

8 प्रार्थना से भी हमें परमेश्‍वर के करीब आने में मदद मिलती है। एक लड़की जिसने अभी-अभी जवानी में कदम रखा था, यह फैसला नहीं कर पा रही थी कि मसीही तरीके से जीवन जीए या ऐसे दोस्तों से संगति रखे जो उन बातों को नहीं मानते थे जिन पर उसे विश्‍वास था। (याकूब 4:4) उसने इस बारे में क्या किया? वह कहती है: “पहली बार, मैंने यहोवा को प्रार्थना में बताया कि मैं कैसा महसूस कर रही हूँ।” आखिर में जब उसे मसीही कलीसिया में ही ऐसी सहेली मिली जिससे वह अपने दिल की बात कह सकती थी, तो उसे लगा कि यही उसकी प्रार्थना का जवाब है। उसने महसूस किया कि यहोवा उसे राह दिखा रहा है, और वह परमेश्‍वर के साथ एक नज़दीकी रिश्‍ता कायम करने में लग गयी। माता-पिता दिल से की गयी अपनी प्रार्थनाओं से अपने बच्चों की मदद कर सकते हैं। जब पूरा परिवार मिलकर प्रार्थना करता है, तब माता-पिता को दिल खोलकर प्रार्थना करनी चाहिए जिससे बच्चों को भी महसूस होगा कि उनके माता-पिता और यहोवा के बीच कितना करीबी रिश्‍ता है।

धीरज धरिए मगर समझौता मत कीजिए

9, 10. गुमराह इस्राएलियों के साथ धीरज से पेश आने में यहोवा ने क्या मिसाल कायम की?

9 जब एक नौजवान सच्चाई से दूर जाने लगता है, तो वह सबसे कटने लगता है और जब माता-पिता आध्यात्मिक बातों पर चर्चा करके उसकी मदद करना चाहते हैं तो वह उनकी हर कोशिश का विरोध करता है। माता-पिता ऐसी मुश्‍किल का सामना कैसे कर सकते हैं? ध्यान दीजिए कि यहोवा प्राचीन इस्राएल के साथ कैसे पेश आया। परमेश्‍वर ने 900 से भी ज़्यादा साल “हठीले” इस्राएलियों को बर्दाश्‍त किया और जब उन्होंने गलत मार्ग को नहीं छोड़ा तो उसने उन्हें त्याग दिया। (निर्गमन 34:9; 2 इतिहास 36:17-21; रोमियों 10:21) वे बार-बार परमेश्‍वर की “परीक्षा करते” रहे, फिर भी यहोवा उनकी तरफ “दयालु” बना रहा। ‘वह बारबार अपने क्रोध को ठण्डा करता रहा, और अपनी जलजलाहट को पूरी रीति से भड़कने नहीं दिया।’ (भजन 78:38-42) इस्राएलियों के साथ परमेश्‍वर के व्यवहार में कोई खोट नहीं निकाला जा सकता। बच्चों से प्यार करनेवाले माता-पिता भी यहोवा की तरह पेश आते हैं, और बार-बार मदद करने पर भी जब उनका बच्चा फौरन बदलाव नहीं करता तब भी वे धीरज से काम लेते हैं।

10 धीरज धरनेवाला या सहनशील व्यक्‍ति, बिगड़े हुए रिश्‍ते के सुधरने की उम्मीद नहीं छोड़ता। धीरज से काम लेने के बारे में, यहोवा ने एक मिसाल कायम की है। वह खुद इस्राएलियों की मदद करने के लिए आगे आया और उनके पास “बार बार” अपने दूत भेजे। यहोवा को ‘अपनी प्रजा पर तरस आता था,’ लेकिन “वे परमेश्‍वर के सन्देशवाहकों का निरन्तर ठट्ठा करते, उसके वचनों से घृणा करते” रहे। (2 इतिहास 36:15,16, NHT) परमेश्‍वर ने इस्राएलियों से यह गुज़ारिश की: “अपनी अपनी बुरी चाल . . . से फिरो।” (यिर्मयाह 25:4,5) लेकिन यहोवा ने अपने धर्मी सिद्धांतों के मामले में कभी कोई समझौता नहीं किया। उसने इस्राएलियों को आदेश दिया कि वे उसकी और उसके मार्गों की ओर ‘फिरें।’

11. माता-पिता अपने गुमराह बच्चे के साथ व्यवहार करते वक्‍त कैसे समझौता किए बगैर धीरज से काम ले सकते हैं?

11 धीरज धरने में माता-पिता, यहोवा के जैसे यह उम्मीद करना नहीं छोड़ते कि एक-न-एक दिन उनका गुमराह बच्चा ज़रूर लौट आएगा। निराश होने के बजाय, वे अपने बच्चे के साथ बातचीत जारी रखने या उसे दोबारा शुरू करने के लिए अपनी तरफ से पहल कर सकते हैं। धर्मी सिद्धांतों के मामले में समझौता किए बगैर, वे “बार बार” अपने बच्चे से सच्चाई की राह पर लौट आने की गुज़ारिश कर सकते हैं।

एक नाबालिग का कलीसिया से बहिष्कार

12. कलीसिया से बहिष्कार किए गए, मगर माता-पिता के साथ रहनेवाले नाबालिग बच्चे के मामले में माता-पिता की क्या ज़िम्मेदारी है?

12 अपने माता-पिता के साथ रहनेवाला एक नाबालिग लड़का (या, लड़की) अगर कोई गंभीर पाप कर बैठे और पछतावा न दिखाने के कारण कलीसिया उसका बहिष्कार करे, तब क्या? ऐसे में भी, क्योंकि बच्चा माता-पिता के साथ रहता है इसलिए यह उनकी ज़िम्मेदारी है कि उसे परमेश्‍वर के वचन से सिखाएँ और अनुशासन दें। यह कैसे किया जा सकता है?—नीतिवचन 6:20-22; 29:17.

13. माता-पिता गलत राह पर चल रहे अपने बच्चे के दिल तक कैसे पहुँच सकते हैं?

13 माता-पिता अपने बच्चे को यह शिक्षा और अनुशासन तब दे सकते हैं, जब वे उसके साथ बाइबल का अध्ययन करते हैं। माता या पिता को बच्चे के ढीठ रवैए पर ध्यान देने के बजाय यह समझने की कोशिश करनी चाहिए कि उसके दिल में क्या है। उसकी आध्यात्मिक बीमारी कितनी गंभीर है? (नीतिवचन 20:5) क्या उसके दिल में अभी-भी कुछ अच्छाई बाकी है, जिसे जगाया जा सकता है? किन शास्त्रवचनों को इस्तेमाल करने का अच्छा असर होगा? प्रेरित पौलुस ने पूरे भरोसे के साथ कहा: “परमेश्‍वर का वचन जीवित, और प्रबल, और हर एक दोधारी तलवार से भी बहुत चोखा है, और जीव, और आत्मा को, और गांठ गांठ, और गूदे गूदे को अलग करके, वार पार छेदता है; और मन की भावनाओं और विचारों को जांचता है।” (इब्रानियों 4:12) जी हाँ, माता-पिता अपने बच्चों से सिर्फ यह नहीं कहेंगे कि ‘फिर ऐसा बुरा काम मत करना।’ इसके बजाय, वे अपने बच्चे को सही राह पर लाने और उस पर चलते रहने में लगातार उसकी मदद करने की कोशिश करेंगे।

14. बुराई के मार्ग पर भटके नौजवान को यहोवा के साथ अपना रिश्‍ता फिर से कायम करने के लिए सबसे पहले क्या करना चाहिए, और इसमें माता-पिता उसकी कैसे मदद कर सकते हैं?

14 बुराई के मार्ग पर भटके एक नौजवान को फिर से यहोवा के साथ एक अच्छा रिश्‍ता जोड़ने की ज़रूरत है। सबसे पहले उसे ‘मन फिराना और लौट आना’ है। (प्रेरितों 3:19; यशायाह 55:6,7) माता-पिता, साथ रहनेवाले अपने बच्चे की मदद कर सकते हैं, ताकि वह पश्‍चाताप दिखाकर मन फिराए। अगर बच्चा उनकी बात नहीं सुनना चाहता, तो उन्हें ‘सहनशील होकर’ उसे ‘नम्रता से समझाना’ है। (2 तीमुथियुस 2:24-26) बाइबल में जैसे बताया है, उस अर्थ में उन्हें अपने बच्चे को ‘डांटना’ भी चाहिए। जिस यूनानी शब्द का अनुवाद ‘डांटना’ किया गया है उसे ‘सिद्ध करना’ भी कहा जा सकता है। (प्रकाशितवाक्य 3:19; यूहन्‍ना 16:8, नयी हिन्दी बाइबिल) इसलिए, डाँटने का मतलब यह भी है कि माता-पिता बच्चे को यह साबित या “सिद्ध” करके दिखाएँ कि उसने जो रास्ता अपनाया है, वह पाप का रास्ता है। बेशक, ऐसा करना आसान नहीं है। जहाँ मुमकिन हो, वहाँ माता-पिता अपने गुमराह बच्चे को समझाने और उसके दिल तक पहुँचने के लिए ऐसे सभी तरीके आज़मा सकते हैं जो बाइबल के मुताबिक सही हैं। माता-पिता को अपने बच्चे को यह समझाने की कोशिश करनी चाहिए कि “बुराई से बैर और भलाई से प्रीति” रखना क्यों ज़रूरी है। (आमोस 5:15) क्योंकि हो सकता है कि वह “सचेत होकर शैतान के फंदे से छूट जाए।”

15. एक पापी इंसान का यहोवा के साथ दोबारा रिश्‍ता कायम करने में, प्रार्थना की क्या अहमियत है?

15 प्रार्थना के बिना, एक इंसान यहोवा के साथ दोबारा रिश्‍ता नहीं जोड़ सकता। बेशक, हममें से कोई भी ऐसे कठोर पापी के लिए ‘बिनती नहीं करेगा’ जो पहले मसीही कलीसिया में था मगर अब बिना किसी पछतावे के पाप के मार्ग पर बढ़ता जा रहा है। (1 यूहन्‍ना 5:16,17; यिर्मयाह 7:16-20; इब्रानियों 10:26,27) ऐसी स्थिति से निपटने के लिए भी, माता-पिता यहोवा से बुद्धि माँग सकते हैं। (याकूब 1:5) कलीसिया से बहिष्कार किया गया नौजवान अगर साफ-साफ पश्‍चाताप ज़ाहिर करता है, मगर प्रार्थना के ज़रिए “परमेश्‍वर के सम्मुख साहस के साथ” नहीं जा सकता, तो माता-पिता उसकी तरफ से प्रार्थना कर सकते हैं कि अगर परमेश्‍वर के पास उनके बच्चे का पाप माफ करने का आधार है, तो उसकी इच्छा पूरी हो। (1 यूहन्‍ना 3:21, नयी हिन्दी बाइबिल) इन प्रार्थनाओं को सुनने से वह नौजवान यह समझ पाएगा कि यहोवा परमेश्‍वर दयालु है। *निर्गमन 34:6,7; याकूब 5:16.

16. कलीसिया से जिन नाबालिग बच्चों का बहिष्कार किया गया है, हम उनके परिवार के लोगों की कैसे मदद कर सकते हैं?

16 अगर एक बपतिस्मा पाए हुए नौजवान को कलीसिया से बहिष्कृत किया जाता है, तो कलीसिया के सदस्यों से यही उम्मीद की जाती है कि वे ‘उस की संगति न करें।’ (1 कुरिन्थियों 5:11; 2 यूहन्‍ना 10,11) इस वजह से शायद वह आगे चलकर ‘अपने आपे में आए’ और परमेश्‍वर के झुंड में वापस आ जाए जहाँ उसे हिफाज़त मिलती है। (लूका 15:17) चाहे वह वापस आए या न आए, फिर भी कलीसिया के भाई-बहनों को उस बहिष्कृत नौजवान के परिवार की हिम्मत बँधानी चाहिए। हम सब ऐसे मौके ढूँढ़ सकते हैं जब हम उनके लिए “परस्पर सहानुभूति” दिखाएँ और “करुणामय” हों।—1 पतरस 3:8,9, नयी हिन्दी बाइबिल।

दूसरे कैसे मदद दे सकते हैं

17. भटकनेवाले बच्चे की मदद करने की कोशिश करते वक्‍त, कलीसिया के भाई-बहनों को क्या बात याद रखनी चाहिए?

17 ऐसे नौजवान के बारे में क्या जिसका मसीही कलीसिया से बहिष्कार नहीं हुआ, मगर वह विश्‍वास में कमज़ोर हो गया है? प्रेरित पौलुस ने लिखा, “यदि एक [व्यक्‍ति] दुःख पाता है, तो सब . . . उसके साथ दुःख पाते हैं।” (1 कुरिन्थियों 12:26) कलीसिया के बाकी लोगों को ऐसे नौजवानों में खास दिलचस्पी लेनी चाहिए। लेकिन हाँ, कुछ हद तक सावधानी बरतने की भी ज़रूरत है, क्योंकि हो सकता है कि आध्यात्मिक रूप से बीमार नौजवान का कलीसिया के दूसरे नौजवानों पर बुरा असर पड़े। (गलतियों 5:7-9) एक कलीसिया में, कुछ प्रौढ़ लोगों ने आध्यात्मिक तरीके से कमज़ोर नौजवानों की मदद करने के नेक इरादे से, उन्हें पार्टियों में आने का न्यौता दिया और उन्हें लोकप्रिय संगीत बजाने के लिए कहा। हालाँकि नौजवानों ने फौरन न्यौता स्वीकार किया और उन्हें ऐसी पार्टियों में मज़ा भी आने लगा, मगर इस दौरान उनका एक-दूसरे पर ऐसा असर हुआ कि उन्होंने कलीसिया से नाता तोड़ लिया। (1 कुरिन्थियों 15:33; यहूदा 22,23) परमेश्‍वर की सेवा में कमज़ोर हो चुके नौजवान की मदद करने के लिए, ऐसी पार्टियों की ज़रूरत नहीं जिनमें आध्यात्मिक बातों को कोई अहमियत नहीं दी जाती, बल्कि उसे ऐसे लोगों की संगति चाहिए जो उसके अंदर आध्यात्मिक बातों के लिए लगाव पैदा कर सकें। *

18. हम, यीशु की कहानी में उड़ाऊ बेटे के पिता की तरह कैसे हो सकते हैं?

18 जब एक नौजवान कलीसिया को छोड़ने के कुछ समय बाद दोबारा किंग्डम हॉल में आता है या किसी सम्मेलन में हाज़िर होता है तो ज़रा सोचिए कि उसे कैसा महसूस होता होगा। यीशु की कहानी के उस उड़ाऊ बेटे के पिता की तरह, क्या हमें भी उसका स्वागत नहीं करना चाहिए? (लूका 15:18-20,25-32) मसीही कलीसिया को छोड़ चुका एक किशोर, एक ज़िला अधिवेशन में हाज़िर हुआ। उसने कहा: “मुझे लगा कि लोग मेरे जैसे लड़के से मिलना तक पसंद नहीं करेंगे, मगर भाई-बहन मेरे पास आए और उन्होंने मेरा स्वागत किया। उनका प्यार मेरे दिल को छू गया।” उसने फिर-से बाइबल का अध्ययन करना शुरू किया और बाद में बपतिस्मा लिया।

हिम्मत मत हारिए

19, 20. गुमराह बच्चे के बारे में हमें उम्मीद क्यों नहीं छोड़नी चाहिए?

19 गुमराह बच्चे को ‘अपने आपे में आने’ के लिए मदद करना, माता-पिता और दूसरों के लिए बहुत मुश्‍किल हो सकता है और इसके लिए सहनशील होना भी ज़रूरी है। लेकिन हिम्मत मत हारिए। यहोवा “अपनी प्रतिज्ञा के विषय में देर नहीं करता, जैसी देर कितने लोग समझते हैं; पर तुम्हारे विषय में धीरज धरता है, और नहीं चाहता, कि कोई नाश हो; बरन यह कि सब को मन फिराव का अवसर मिले।” (2 पतरस 3:9) बाइबल हमें इस बात का आश्‍वासन देती है कि यहोवा चाहता है कि उसके लोग पश्‍चाताप दिखाएँ और जीते रहें। दरअसल, उसने इंसानों के साथ मेल-मिलाप करने के लिए अपनी तरफ से एक इंतज़ाम किया है। (2 कुरिन्थियों 5:18,19) उसके धीरज की वजह से लाखों लोग अपने आपे में आ पाए हैं।—यशायाह 2:2,3.

20 तो फिर क्या माता-पिता को भी, गलत राह पर चलनेवाले अपने नाबालिग बच्चे की मदद करने के लिए ऐसा हर मुमकिन तरीका नहीं आज़माना चाहिए जो बाइबल के मुताबिक सही है? यहोवा के जैसे बनिए, और अपने बच्चे को यहोवा की ओर वापस लाने के लिए ज़रूरी कदम उठाने के साथ-साथ धीरज से काम लीजिए। बाइबल के सिद्धांतों का कड़ाई से पालन कीजिए और यहोवा के प्रेम, न्याय, और बुद्धि जैसे गुण ज़ाहिर करने की कोशिश कीजिए, साथ ही प्रार्थना के ज़रिए उससे मदद माँगिए। यहोवा के प्यार-भरे बुलावे पर जैसे कई पत्थर-दिल विद्रोही बुराई का मार्ग छोड़कर वापस आए हैं, वैसे ही आपका गुमराह बेटा या बेटी परमेश्‍वर के झुंड में वापस आ सकते हैं, जहाँ उन्हें सच्ची हिफाज़त मिलेगी।—लूका 15:6,7.

[फुटनोट]

^ बच्चों को अच्छी तरह कैसे सिखाया जाए, इस बारे में और अधिक सुझावों के लिए, जुलाई 1,1999 की प्रहरीदुर्ग के पेज 13-17 देखिए।

^ बहिष्कार किए गए नाबालिग बच्चे के लिए ऐसी प्रार्थना, कलीसिया की प्रार्थनाओं में शामिल नहीं की जानी चाहिए, क्योंकि बाकी लोगों को शायद उसकी मौजूदा हालत के बारे में पता न हो।—अक्टूबर 15,1979 की प्रहरीदुर्ग (अँग्रेज़ी) के पेज 31 देखिए।

^ स्पष्ट सुझावों के लिए, सजग होइए! के जून 22,1972 (अँग्रेज़ी), पेज 13-16; और अक्टूबर 8,1996 के पेज 22-4 देखिए।

क्या आपको याद है?

• नौजवानों के मसीही कलीसिया को छोड़ जाने की असली वजह क्या हो सकती है?

• यहोवा के साथ एक करीबी रिश्‍ता कायम करने में बच्चों की मदद कैसे की जा सकती है?

• गुमराह बच्चे की मदद करते वक्‍त माता-पिता को क्यों धीरज से मगर समझौता किए बिना काम करना चाहिए?

• कलीसिया के लोग गुमराह बच्चे को लौट आने में कैसे मदद दे सकते हैं?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 15 पर तसवीर]

यहोवा के साथ एक मज़बूत रिश्‍ता कायम करने के लिए परमेश्‍वर का वचन पढ़ना बेहद ज़रूरी है

[पेज 15 पर तसवीर]

माता-पिता के दिल से निकली प्रार्थना से बच्चों को यह समझने में मदद मिल सकती है कि उनके माता-पिता और यहोवा के बीच कितना करीबी रिश्‍ता है

[पेज 17 पर तसवीर]

जब एक गुमराह बच्चा ‘अपने आपे में आता’ है तो उसका स्वागत कीजिए

[पेज 18 पर तसवीर]

अपने बच्चे को यहोवा के पास लौट आने में मदद देने के लिए ज़रूरी कदम उठाइए