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बच्चों को सिखाते वक्‍त यहोवा जैसे बनिए

बच्चों को सिखाते वक्‍त यहोवा जैसे बनिए

बच्चों को सिखाते वक्‍त यहोवा जैसे बनिए

“वह कौन सा पुत्र है, जिस की ताड़ना पिता नहीं करता?”इब्रानियों 12:7.

1, 2. माता-पिता के लिए बच्चों की परवरिश करना आज एक समस्या क्यों है?

 कुछ साल पहले जापान में लिए गए एक सर्वे में प्रौढ़ लोगों से पूछताछ की गयी। उनमें से आधे लोगों के हिसाब से माता-पिता और बच्चों के बीच बातचीत की भारी कमी है और बच्चों को हद-से-ज़्यादा ढील दी जाती है। उसी देश के एक और सर्वे में, जवाब देनेवाले एक-चौथाई लोगों ने माना कि असल में उन्हें पता ही नहीं कि बच्चों के साथ कैसे पेश आना चाहिए। यह हाल सिर्फ पूर्वी देशों का ही नहीं है। द टोरोन्टो स्टार अखबार ने रिपोर्ट दी: “कनाडा में कई माता-पिता इस उलझन में हैं कि वे बच्चों की परवरिश करने की ज़िम्मेदारी को अच्छी तरह कैसे निभाएँ।” जी हाँ, दुनिया के हर कोने में, माता-पिताओं को अपने बच्चों की परवरिश करने में मुश्‍किल हो रही है।

2 माता-पिता के लिए बच्चों की परवरिश करना आज एक समस्या क्यों है? इसकी एक बड़ी वजह यह है कि हम “अन्तिम दिनों” में जी रहे हैं और यह “कठिन समय” चल रहा है। (2 तीमुथियुस 3:1) इसके अलावा, बाइबल कहती है कि “मनुष्य के मन में बचपन से जो कुछ उत्पन्‍न होता है सो बुरा ही होता है।” (उत्पत्ति 8:21) यही नहीं, एक “गर्जनेवाले सिंह” की तरह शैतान, खासकर नौजवानों पर वार करता है, और बच्चे नादान होने के कारण बड़ी आसानी से उसके फंदों में फँस जाते हैं। (1 पतरस 5:8) मसीही माता-पिता, जो अपने बच्चों का पालन-पोषण यहोवा की “शिक्षा और अनुशासन” के मुताबिक करना चाहते हैं, उनके सामने बेशक बहुत बड़ी बाधाएँ हैं। (इफिसियों 6:4, NHT) माता-पिता अपने बच्चों की मदद कैसे कर सकते हैं ताकि वे बड़े होकर यहोवा की सेवा में आध्यात्मिक रूप से मज़बूत हों और “भले बुरे में” भेद करने के काबिल हों?—इब्रानियों 5:14.

3. बच्चों की अच्छी परवरिश करने में कामयाब होने के लिए, क्यों ज़रूरी है कि माता-पिता उन्हें सिखाएँ और सही राह दिखाएँ?

3 बुद्धिमान राजा सुलैमान ने कहा, “लड़के के मन में मूढ़ता बन्धी रहती है।” (नीतिवचन 13:1; 22:15) बच्चों के मन से ऐसी मूर्खता निकालने के लिए ज़रूरी है कि माता-पिता उन्हें प्यार से ताड़ना दें। लेकिन, बच्चे ऐसी ताड़ना हमेशा खुशी-खुशी कबूल नहीं करते। दरअसल, जब उन्हें समझाया-बुझाया जाता है तो वे अकसर समझानेवाले पर गुस्सा हो जाते हैं। इसलिए माता-पिता को यह सीखना होगा कि कैसे ‘लड़के को उसी मार्ग की शिक्षा दें जिस में उसको चलना चाहिये।’ (नीतिवचन 22:6) जब बच्चे ऐसे अनुशासन पर कड़ाई से चलते हैं, तो उन्हें ज़िंदगी मिल सकती है। (नीतिवचन 4:13) इसलिए, कितना ज़रूरी है कि माता-पिता भी यह समझें कि बच्चों को सिखाना एक बहुत बड़ी ज़िम्मेदारी है!

ताड़ना—इसका क्या मतलब है

4. बाइबल में “ताड़ना” शब्द का खास मतलब क्या है?

4 कुछ माता-पिता अपने बच्चों को इस डर से ताड़ना नहीं देते कि कहीं उन पर बच्चों को मारने-पीटने, बुरा-भला बोलने या उनकी भावनाओं को ठेस पहुँचाने का दोष न लगाया जाए। लेकिन इस तरह डरने की कोई ज़रूरत नहीं। बाइबल में “ताड़ना” शब्द का मतलब यह नहीं कि हम बच्चों से बुरा सलूक करें या उन्हें बेरहमी से मारे-पीटें। “ताड़ना” के लिए यूनानी शब्द का खास मतलब है, उपदेश, शिक्षा, सुधार और कभी-कभी कड़ाई से मगर प्यार की खातिर दी गयी फटकार।

5. यहोवा ने अपने लोगों से कैसा व्यवहार किया है, इस पर गौर करना हमारे लिए फायदेमंद क्यों है?

5 ऐसी ताड़ना देने में, यहोवा परमेश्‍वर का आदर्श सर्वश्रेष्ठ है। यहोवा की तुलना एक इंसानी पिता के साथ करते हुए प्रेरित पौलुस ने लिखा: “वह कौन सा पुत्र है, जिस की ताड़ना पिता नहीं करता? . . . हमारे शारीरिक पिता भी . . . अपनी अपनी समझ के अनुसार थोड़े दिनों के लिये ताड़ना करते थे, पर [परमेश्‍वर] तो हमारे लाभ के लिये करता है, कि हम भी उस की पवित्रता के भागी हो जाएं।” (इब्रानियों 12:7-10) जी हाँ, यहोवा अपने लोगों को इसलिए ताड़ना देता है कि वे पवित्र या शुद्ध हो जाएँ। अगर हम इस बात पर गौर करें कि यहोवा ने अपने लोगों को कैसे सिखाया है, तो बच्चों को ताड़ना कैसे दी जाए इस बारे में काफी कुछ सीख सकते हैं।—व्यवस्थाविवरण 32:4; मत्ती 7:11; इफिसियों 5:1.

प्रेम की शक्‍ति

6. माता-पिता के लिए, यहोवा की तरह प्रेम करना क्यों मुश्‍किल हो सकता है?

6 प्रेरित यूहन्‍ना कहता है: “परमेश्‍वर प्रेम है।” यहोवा हमसे प्रेम करता है इसलिए वह हमें सिखाता है। (1 यूहन्‍ना 4:8; नीतिवचन 3:11,12) क्या इसका मतलब यह है कि माता-पिता को यहोवा की तरह सिखाने में कोई दिक्कत महसूस नहीं होगी, क्योंकि उनके दिल में भी अपने बच्चों के लिए प्यार और ममता है? नहीं, ऐसी बात नहीं है। परमेश्‍वर का प्रेम सिद्धांतों के मुताबिक होता है। और यूनानी भाषा के एक विद्वान कहते हैं कि ऐसा प्रेम, “अकसर हमारी भावनाओं से मेल नहीं खाता।” परमेश्‍वर भावनाओं में बहकर कुछ नहीं करता। बल्कि वह हमेशा यह देखता है कि उसके लोगों की भलाई किसमें है।—यशायाह 30:20; 48:17.

7, 8. (क) अपने लोगों से व्यवहार करते वक्‍त, सिद्धांतों के मुताबिक प्रेम दिखाने की यहोवा ने कैसी मिसाल कायम की? (ख) बच्चों को बाइबल के सिद्धांतों पर चलने के काबिल बनाने के लिए माता-पिता कैसे यहोवा जैसे बन सकते हैं?

7 गौर कीजिए कि यहोवा ने इस्राएलियों से व्यवहार करते वक्‍त उन्हें कैसा प्रेम दिखाया। इस्राएल जाति हाल में बनी थी और यहोवा को इस जाति के लिए कैसा प्रेम है, यह समझाने के लिए मूसा ने एक बेजोड़ मिसाल दी। उसने कहा: “जैसे उकाब अपने घोंसले को हिला हिलाकर अपने बच्चों के ऊपर ऊपर मण्डलाता है, वैसे ही उस ने अपने पंख फैलाकर उसको अपने परों पर उठा लिया। यहोवा अकेला ही [याकूब की] अगुवाई करता रहा।” (व्यवस्थाविवरण 32:9,11,12) अपने बच्चों को उड़ना सिखाने के लिए, मादा उकाब ‘अपने घोंसले को हिलाती’ है, जो अकसर एक ऊँचे टीले पर बना होता है। अपने पंख फड़फड़ाकर वह अपने बच्चों को उड़ने के लिए उकसाती है। जब आखिरकार बच्चा, अपने घोंसले से छलाँग लगाता है तो उसकी माँ उसके ऊपर ‘मंडराती’ रहती है। जब उसे लगता है कि बच्चा ज़मीन से जा टकराएगा, तो वह झपट्टा मारकर उसके नीचे चली जाती है और उसे “अपने परों पर” उठा लेती है। यहोवा ने भी इसी तरह बड़े प्यार से इस्राएल जाति की देखभाल की थी जिसका जन्म अभी-अभी हुआ था। उसने उन्हें मूसा के ज़रिए कानून-व्यवस्था दी। (भजन 78:5-7) और फिर, परमेश्‍वर लगातार इस जाति पर नज़र लगाए रहा, और जब कभी उसके लोगों पर मुसीबत आती तो वह उन्हें बचाने के लिए फौरन कार्यवाही करता।

8 मसीही माता-पिता भी यहोवा के जैसा प्यार कैसे दिखा सकते हैं? सबसे पहले, उन्हें अपने बच्चों को परमेश्‍वर के वचन में दिए गए सिद्धांतों और स्तरों के बारे में सिखाना ज़रूरी है। (व्यवस्थाविवरण 6:4-9) वे ऐसा इसलिए करते हैं कि बच्चे बाइबल के सिद्धांतों के मुताबिक फैसले करना सीखें। इस तरह, अपने बच्चों से प्यार करनेवाले माता-पिता मानो उन पर मंडराते रहते हैं और नज़र रखते हैं कि बच्चे सीखे हुए सिद्धांतों पर कैसे अमल करते हैं। जैसे-जैसे बच्चे बड़े होते हैं और उन्हें ज़्यादा आज़ादी दी जाती है, तो परवाह करनेवाले माता-पिता जब कभी खतरे को भाँपते हैं तो फौरन “झपट्टा मारकर” अपने ‘बच्चों को परों पर उठा लेते हैं।’ कैसा खतरा देखकर वे ऐसा करते हैं?

9. बच्चों से प्रेम करनेवाले माता-पिता को खास तौर पर किस खतरे के बारे में सावधान रहना चाहिए? उदाहरण देकर समझाइए।

9 यहोवा परमेश्‍वर ने इस्राएलियों को आगाह किया था कि गलत किस्म के लोगों से संगति करने का अंजाम बुरा होगा। (गिनती 25:1-18; एज्रा 10:10-14) गलत सोहबत में पड़ने का खतरा आज भी हर तरफ मौजूद है। (1 कुरिन्थियों 15:33) इस मामले में, मसीही माता-पिताओं को यहोवा के जैसा होना चाहिए। मसलन, लीसा जब 15 साल की थी, तो वह एक लड़के को पसंद करने लगी। मगर वह लड़का, चालचलन और धर्म के मामले में उन आदर्शों को नहीं मानता था जिनकी लीसा के परिवार में बहुत कदर की जाती थी। लीसा बताती है: “बहुत जल्द मेरे माता-पिता ने मेरे अंदर आ रहे बदलाव को देखा और उन्होंने अपनी चिंता ज़ाहिर की। कभी-कभी वे मुझे ताड़ना देते थे और कई बार प्यार से समझाते-बुझाते थे।” उन्होंने लीसा के साथ बैठकर बड़े सब्र से उसकी बातें सुनी और तब उन्होंने जाना कि लीसा की असली समस्या यह थी कि वह अपने हमउम्र साथियों को खुश करना चाहती थी। लीसा के माता-पिता ने उसे इस समस्या पर काबू पाने में मदद दी। *

बातचीत जारी रखिए

10. यहोवा ने इस्राएलियों के साथ बात करने में कैसे एक अच्छी मिसाल रखी?

10 बच्चों को सिखाने में कामयाब होने के लिए, माता-पिता को चाहिए कि वे अपने बच्चों के साथ खुलकर बातचीत करते रहें। यहोवा अच्छी तरह जानता है कि हमारे दिल में क्या है, फिर भी वह हमें उकसाता है कि हम उससे बात करें। (1 इतिहास 28:9) इस्राएलियों को कानून-व्यवस्था देने के बाद, यहोवा ने उन्हें उपदेश देने के लिए लेवियों को ठहराया और समझाने और सुधारने के लिए भविष्यवक्‍ता भेजे। वह यह भी चाहता था कि वे उससे प्रार्थना के ज़रिए बात करें।—2 इतिहास 17:7-9; भजन 65:2; यशायाह 1:1-3,18-20; यिर्मयाह 25:4; गलतियों 3:22-24.

11. (क) माता-पिता अपने बच्चों को खुलकर बात करने में कैसे मदद दे सकते हैं? (ख) बच्चों से बात करते वक्‍त, यह क्यों ज़रूरी है कि माता-पिता उनकी बात ध्यान से सुनें?

11 अपने बच्चों से बातचीत करते वक्‍त माता-पिता कैसे यहोवा जैसे बन सकते हैं? सबसे पहले, उन्हें बच्चों के लिए वक्‍त निकालना चाहिए। इसके अलावा, उन्हें बिना सोचे-समझे ऐसी बातें नहीं कहनी चाहिए जिससे बच्चों को लगे कि उनका मज़ाक उड़ाया जा रहा है, जैसे कि “बस इतनी-सी बात है? मुझे लगा कोई पहाड़ टूट पड़ा”; “कैसी बेवकूफों जैसी बातें कर रहे हो”; “यह तो होना ही था। आखिर तुम्हारी उम्र ही क्या है।” (नीतिवचन 12:18) बच्चे को दिल खोलकर बात करने में मदद देने के लिए समझदार माता-पिता कोशिश करते हैं कि बच्चों की बात हमेशा ध्यान से सुनें। जो माता-पिता अपने बच्चों पर ध्यान नहीं देते, उनके बच्चे भी बड़े होकर उन पर ध्यान नहीं देंगे। यहोवा हमेशा अपने लोगों की बात सुनने के लिए तैयार रहता है। जो लोग नम्रता के साथ उससे प्रार्थना करते हैं, वह उनकी बात कान लगाकर सुनता है।—भजन 91:15; यिर्मयाह 29:12; लूका 11:9-13.

12. माता-पिता के किन गुणों की वजह से बच्चों के लिए उनके पास आना आसान हो सकता है?

12 गौर कीजिए कि परमेश्‍वर के कुछ खास गुणों की वजह से लोग उसके पास बेझिझक आ सकते थे। मिसाल के लिए, प्राचीन इस्राएल के राजा दाऊद ने बतशेबा के साथ व्यभिचार करके बहुत बड़ा पाप किया। असिद्धता की वजह से, दाऊद ने ज़िंदगी में और भी कई गंभीर पाप किए। मगर वह हर बार यहोवा के पास गया और उससे माफी माँगी और ताड़ना स्वीकार की। बेशक, परमेश्‍वर की वफा, प्यार और उसकी दया की वजह से दाऊद के लिए यहोवा के पास लौटना आसान हो गया। (भजन 103:8) अगर बच्चे कोई गलत कदम उठा लेते हैं, तो करुणा और दया जैसे ईश्‍वरीय गुण दिखाकर, माता-पिता अपने बच्चों को ऐसे वक्‍त में भी बातचीत जारी रखने में मदद दे सकते हैं।—भजन 103:13; मलाकी 3:17.

कोमलता दिखाइए

13. कोमल होने का क्या मतलब है?

13 बच्चों की बात सुनते वक्‍त, माता-पिता को कोमल होना चाहिए और “ईश्‍वरीय बुद्धि” से काम लेना चाहिए। (याकूब 3:17, नयी हिन्दी बाइबिल) प्रेरित पौलुस ने लिखा: “तुम्हारी कोमलता सब मनुष्यों पर प्रगट हो।” (फिलिप्पियों 4:5) कोमल होने का क्या मतलब है? जिस यूनानी शब्द का अनुवाद “कोमल” किया जाता है, उसकी एक परिभाषा यूँ दी गयी है, “लिखे हुए कानून की एक-एक बात पर अड़े न रहना।” चालचलन और उपासना के स्तरों के मामले में समझौता किए बिना, माता-पिता कैसे कोमलता दिखा सकते हैं?

14. लूत के साथ व्यवहार करते वक्‍त यहोवा ने कोमलता कैसे दिखायी?

14 कोमलता दिखाने में यहोवा परमेश्‍वर की मिसाल सर्वोत्तम है। (भजन 10:17) जब यहोवा ने सदोम नगर का विनाश करने की ठान ली, तो लूत और उसके परिवार को उस नगर से निकल जाने की आज्ञा दी, मगर लूत “विलम्ब करता रहा।” बाद में, जब यहोवा के स्वर्गदूत ने उसे पहाड़ी इलाके की ओर भाग जाने का हुक्म दिया, तो लूत ने कहा: “मैं पहाड़ पर भाग नहीं सकता। . . . वह नगर [सोअर] ऐसा निकट है कि मैं वहां भाग सकता हूं, और वह छोटा भी है: मुझे वहीं भाग जाने दे, क्या वह छोटा नहीं है?” लूत की यह बात सुनकर यहोवा ने क्या किया? उसने कहा: “देख, मैं ने इस विषय में भी तेरी बिनती अंगीकार की है, कि जिस नगर की चर्चा तू ने की है, उसको मैं नाश न करूंगा।” (उत्पत्ति 19:16-21,30) यहोवा लूत की बिनती सुनने के लिए तैयार था। यह सच है कि माता-पिता को बाइबल में बताए गए यहोवा परमेश्‍वर के स्तरों का पालन हर हाल में करना चाहिए। मगर फिर भी, वे बच्चों की ऐसी ख्वाहिशें पूरी कर सकते हैं जो बाइबल के सिद्धांतों के खिलाफ नहीं हैं।

15, 16. यशायाह 28:24,25 के दृष्टांत से माता-पिता क्या सबक सीख सकते हैं?

15 कोमल होने का मतलब यह भी है कि बच्चों के मन को ताड़ना पाने के लिए तैयार करना। एक दृष्टांत में, यशायाह ने यहोवा की तुलना एक किसान से की और कहा: “जो किसान बीज बोने के लिए हल चलाता है, क्या वह निरन्तर हल चलाता ही रहता है? क्या वह खेत को हल से लगातार चीरता और हेंगा फेरता रहता है? नहीं, वह खेत को चौरस करने के बाद उस पर सौंफ छितराता है, जीरे को बिखराता है; वह पक्‍तियों में गेहूं, तथा जौ को उसके नियत स्थान में और कठिए गेहूं को किनारे पर बोता है।”—यशायाह 28:24,25, नयी हिन्दी बाइबिल।

16 यहोवा “बीज बोने के लिए हल चलाता है” और “खेत को . . . चीरता और हेंगा फेरता” है। इस तरह, वह अपने लोगों को अनुशासन देने से पहले उनके मन को तैयार करता है। माता-पिता अपने बच्चों को ताड़ना देते वक्‍त, कैसे उनके दिलों में मानो ‘हल चला’ सकते हैं? एक पिता अपने चार साल के बेटे को ताड़ना देते वक्‍त यहोवा की तरह पेश आया। उसके बेटे ने पड़ोस के एक लड़के को मारा था। पहले तो पिता अपने बेटे के बहानों को ध्यान से सुनता रहा। उसके बाद, मानो अपने बेटे के दिल में ‘हल चलाने’ के लिए, पिता ने उसे एक कहानी सुनायी। कहानी में एक छोटा लड़का है जिसे हमेशा एक बड़ा लड़का तंग करता रहता है और उसे बहुत सताता है। कहानी सुनकर बेटा बोल उठा कि उस धौंस जमानेवाले बड़े लड़के को सज़ा मिलनी चाहिए। इस तरह ‘हल चलाने’ से लड़के के मन की ज़मीन मानो तैयार की गयी। अब उसके लिए यह समझना आसान था कि पड़ोस के लड़के को मारने से वह उस धौंस जमानेवाले बड़े लड़के की तरह गलत काम कर रहा था।—2 शमूएल 12:1-14.

17. यशायाह 28:26-29 में माता-पिता के ताड़ना देने के मामले में क्या सबक सीखने को मिलता है?

17 यशायाह ने, यहोवा के ताड़ना देने की तुलना किसान के एक और काम से की। वह है अनाज दाँवने का काम। अनाज की भूसी कितनी सख्त है, यह देखकर एक किसान तय करता है कि उसे दाँवने के लिए कौन-सा औज़ार इस्तेमाल किया जाना चाहिए। सौंफ दाँवने के लिए छड़ी काम आती है, जीरे के लिए सोंटा, और जिस अनाज की भूसी सख्त होती है उसके लिए दाँवने का तख्ता या पटिया, या फिर बैलगाड़ी का पहिया इस्तेमाल होता है। अनाज चाहे कितना ही सख्त हो, फिर भी किसान उसके दानों को इतना ज़्यादा नहीं दाँवता कि वे पिस जाएँ। उसी तरह, जब यहोवा अपने लोगों में से कुछ बुराइयों को निकालना चाहता है तो वह ज़रूरत के हिसाब से और हालात देखकर अलग-अलग तरीके से पेश आता है। वह कभी-भी क्रूरता या कठोरता से काम नहीं लेता। (यशायाह 28:26-29) बच्चों के मामले में भी ऐसा ही है। कुछ बच्चों के लिए माता-पिता की एक नज़र ही काफी है, और वे संभल जाते हैं। लेकिन, कुछ बच्चों को बार-बार बोलने की ज़रूरत पड़ती है, और कुछ को डाँट-फटकार के साथ समझाने की ज़रूरत होती है। जो माता-पिता कोमल हैं, वे अपने हर बच्चे की ज़रूरत के मुताबिक उसे ताड़ना देंगे।

परिवार की चर्चाओं को मज़ेदार बनाइए

18. माता-पिता अपने परिवार के नियमित बाइबल अध्ययन के लिए कैसे वक्‍त निकाल सकते हैं?

18 बच्चों को सिखाने का एक सबसे बेहतरीन तरीका है परिवार के साथ नियमित रूप से बाइबल का अध्ययन करना और हर दिन शास्त्र पर चर्चा करना। बिना नागा किए जाने पर ही पारिवारिक अध्ययन का सबसे ज़्यादा फायदा होता है। अगर हम अध्ययन के लिए पहले से वक्‍त तय न करें या मौका मिलने पर किसी भी वक्‍त अध्ययन करें तो मुमकिन है कि हमारा पारिवारिक अध्ययन नियमित नहीं होगा। इसलिए माता-पिता को पारिवारिक अध्ययन के लिए “समय का पूरा पूरा उपयोग” करना चाहिए। (इफिसियों 5:15-17, NHT) सबकी सहूलियत के हिसाब से वक्‍त तय करना आसान नहीं है। एक परिवार के मुखिया ने देखा कि जैसे-जैसे उनके बच्चे बड़े हो रहे थे, उनके रोज़ के अलग-अलग शेड्‌यूल की वजह से पूरे परिवार को इकट्ठा करना मुश्‍किल हो रहा था। फिर भी, जिस दिन कलीसिया की सभाएँ होती थीं, उस दिन शाम को पूरा परिवार हमेशा एक-साथ होता था। इसलिए पिता ने ऐसी ही एक शाम को पारिवारिक अध्ययन करने का फैसला किया। यह इंतज़ाम कामयाब रहा। उसके तीनों बच्चे अब यहोवा के बपतिस्मा-प्राप्त सेवक हैं।

19. पारिवारिक अध्ययन चलाते वक्‍त, माता-पिता कैसे यहोवा के जैसे हो सकते हैं?

19 लेकिन, बाइबल की कुछ जानकारी पर थोड़ी-बहुत चर्चा कर लेना काफी नहीं है। यहोवा ने याजकों के ज़रिए, इस्राएलियों की बहाल की गयी जाति को सिखाया। याजक, मूसा की कानून-व्यवस्था से “पढ़कर अर्थ समझा दिया” करते थे, और लोग “पाठ को समझ” लेते थे। (नहेमायाह 8:8) एक पिता अपने सातों बच्चों को यहोवा से प्रेम करना सिखाने में कामयाब रहा। वह अपने परिवार के साथ बाइबल अध्ययन करने से पहले, हमेशा तैयारी के लिए अपने कमरे में चला जाता था, ताकि वह अध्ययन के विषय को अपने हर बच्चे की ज़रूरत के मुताबिक ढाल सके। वह कोशिश करता था कि बच्चों को अध्ययन में मज़ा आए। उसी परिवार का बड़ा हो चुका एक बेटा कहता है: “हमें अध्ययन करना हमेशा अच्छा लगता था। अगर हमें आँगन में खेलते वक्‍त अध्ययन के लिए बुलाया जाता था, तो हम अपना खेल वहीं छोड़-छाड़कर, भागे-भागे अंदर जाते थे। पूरे हफ्ते में वही शाम हमारी सबसे मज़ेदार होती थी।”

20. बच्चों की परवरिश में और कौन-सी समस्या आ सकती है जिस पर चर्चा की जानी है?

20 भजनहार ने कहा: “देखो, लड़के यहोवा के दिए हुए भाग हैं, गर्भ का फल उसकी ओर से प्रतिफल है।” (भजन 127:3) बच्चों को सिखाने में वक्‍त और मेहनत ज़रूर लगती है, मगर सही तरीके से सिखाए जाने पर हमारे बच्चों को अनंतकाल की ज़िंदगी मिल सकती है। और यह हमारी मेहनत का कितना बढ़िया फल होगा! तो फिर, ऐसा हो कि हम अपने बच्चों को सिखाते वक्‍त, यहोवा के जैसे बनने की जी-जान से कोशिश करें। यह सच है कि माता-पिता को “प्रभु की शिक्षा और अनुशासन में [बच्चों का] पालन-पोषण” करने की ज़िम्मेदारी सौंपी गयी है, लेकिन फिर भी इस बात की कोई गारंटी नहीं कि वे इसमें कामयाब होंगे। (इफिसियों 6:4) सबसे बेहतरीन देखभाल के बाद भी, कोई बच्चा माता-पिता के खिलाफ बगावत करके यहोवा की सेवा छोड़ सकता है। ऐसी हालत में क्या किया जाना चाहिए? इसी विषय पर हमारा अगला लेख चर्चा करेगा।

[फुटनोट]

^ इस लेख में दिए गए अनुभव जिन देशों से हैं, उनकी संस्कृति शायद आपके देश की संस्कृति से बिलकुल अलग हो। फिर भी, इन अनुभवों में जो सिद्धांत शामिल हैं, उन्हें समझने की कोशिश कीजिए और अपनी संस्कृति के मुताबिक उन पर अमल कीजिए।

आपका जवाब क्या है?

व्यवस्थाविवरण 32:11,12 के मुताबिक माता-पिता कैसे यहोवा जैसा प्रेम दिखा सकते हैं?

• यहोवा ने इस्राएलियों के साथ जिस तरीके से बात की, उससे आपने क्या सीखा?

• लूत की बिनती पर यहोवा के कान लगाने से हम क्या सीख सकते हैं?

यशायाह 28:24-29 से, बच्चों को ताड़ना देने के बारे में आपने क्या सबक सीखा?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 8, 9 पर तसवीर]

मूसा ने बताया कि जैसे उकाब अपने बच्चों को सिखाता है, उसी तरीके से यहोवा अपने लोगों को सिखाता है

[पेज 10 पर तसवीरें]

माता-पिता को अपने बच्चों के लिए वक्‍त निकालना चाहिए

[पेज 12 पर तसवीर]

“पूरे हफ्ते में वही शाम हमारी सबसे मज़ेदार होती थी”