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ऐसा हृदय पाइए जिसे यहोवा स्वीकार करे

ऐसा हृदय पाइए जिसे यहोवा स्वीकार करे

ऐसा हृदय पाइए जिसे यहोवा स्वीकार करे

“हे परमेश्‍वर, मुझ में शुद्ध हृदय उत्पन्‍न कर, और मेरे भीतर स्थिर आत्मा फिर से जागृत कर।”भजन 51:10, NHT.

1, 2. हमें अपने हृदय के बारे में जानने में क्यों दिलचस्पी लेनी चाहिए?

 यिशै का बड़ा बेटा, ऊँचे कद का और बड़ा ही सजीला नौजवान था। भविष्यवक्‍ता शमूएल तो बस उसे देखता ही रह गया और उसने सोचा, हो-ना-हो परमेश्‍वर ने ज़रूर इसे ही शाऊल के बदले राजा चुना होगा। लेकिन यहोवा ने कहा: “उसके रूप को मत देख, न उसके कद की ऊंचाई पर ध्यान दे, क्योंकि मैंने उसको अस्वीकार किया है, . . . मनुष्य तो बाहरी रूप को देखता है, परन्तु परमेश्‍वर हृदय को देखता है।” (NHT) फिर यहोवा ने यिशै के सबसे छोटे बेटे, दाऊद, को चुना क्योंकि वह उसके “हृदय के अनुरूप एक पुरुष” था। (नयी हिन्दी बाइबिल)—1 शमूएल 13:14; 16:7.

2 परमेश्‍वर देख सकता है कि इंसान के हृदय में क्या है। इस बारे में उसने बाद में साफ बताया: “मैं यहोवा हृदय की खोजबीन करता हूं और मन को जांचता हूं कि प्रत्येक को उसके चाल-चलन के अनुसार और उसके कार्यों के फल के अनुसार बदला दूं।” (यिर्मयाह 17:10, NHT) जी हाँ, “यहोवा हृदयों को परखता है।” (नीतिवचन 17:3, NHT) लेकिन इंसान का वह हृदय क्या है जिसे यहोवा परखता है? और हम ऐसा हृदय कैसे पा सकते हैं जिसे यहोवा स्वीकार करे?

“गुप्त मनुष्यत्व”

3, 4. बाइबल में “हृदय” का ज़िक्र खासकर किन अर्थों में किया गया है? कुछ मिसाल दीजिए।

3 पवित्र शास्त्र में शब्द “हृदय” करीब हज़ार बार आता है। लेकिन हमारी हिंदी बाइबल में इसका अनुवाद ज़्यादातर बार “मन” किया गया है। और इब्रानी शब्द को अकसर आध्यात्मिक अर्थ में इस्तेमाल किया गया है। मिसाल के लिए, यहोवा ने भविष्यवक्‍ता मूसा से कहा: “इस्राएलियों से यह कहना, कि मेरे लिये भेंट लाएं; जितने अपनी इच्छा से देना चाहें [“जितनों के हृदय उन्हें उकसाए,” NW] उन्हीं सभों से मेरी भेंट लेना।” तब “प्रत्येक मनुष्य, जिसका हृदय उल्लसित हुआ” उसने आगे बढ़कर दान दिया। (नयी हिन्दी बाइबिल) (निर्गमन 25:2; 35:21) इससे साफ ज़ाहिर होता है कि हृदय का एक काम हमें उकसाना है। यह ऐसी अंदरूनी शक्‍ति है जो हमें कुछ करने के लिए उकसाती है। शब्द हृदय हमारी भावनाओं और जज़्बातों, साथ ही हमारी ख्वाहिशों और पसंद-नापसंद को भी दर्शाता है। हृदय गुस्से से जल सकता है, डर से काँप सकता है, दुःख में तड़प सकता है और खुशी से मग्न हो सकता है। (भजन 27:3; 39:3; यूहन्‍ना 16:22; रोमियों 9:2) यह घमंडी या नम्र हो सकता है, प्यार या नफरत से भर सकता है।—नीतिवचन 16:5; मत्ती 11:29; 1 पतरस 1:22.

4 इन सारी बातों को ध्यान में रखते हुए, इब्रानी भाषा में “हृदय” का ज़िक्र अकसर हमारे उकसाए जाने या भावनाओं के संबंध में किया जाता है जबकि “मन” का संबंध खासकर विचारों या समझ से होता है। जब किसी आयत में मन और हृदय दोनों शब्दों का इस्तेमाल होता है, तो उनका यही मतलब है। (मत्ती 22:37; फिलिप्पियों 4:7) लेकिन बाइबल में मन और हृदय दोनों का मतलब एक-दूसरे से पूरी तरह अलग भी नहीं है। मिसाल के लिए, मूसा ने इस्राएलियों से आग्रह किया: “अपने मन में [इब्रानी में, “हृदय”] सोच भी रख, कि . . . यहोवा ही परमेश्‍वर है।” (व्यवस्थाविवरण 4:39) यीशु ने अपने खिलाफ साज़िश रचनेवाले शास्त्रियों से कहा: “तुम क्यों अपने दिलों में बुरे ख़्याल लाते हो?” (मत्ती 9:4हिन्दुस्तानी बाइबल) हृदय का ताल्लुक “विवेक,” “ज्ञान” और ‘विचार करने’ से भी हो सकता है। (1 राजा 3:12; नीतिवचन 15:14; मरकुस 2:6) इस तरह हमारे हृदय का मतलब हमारी बुद्धि यानी हमारे विचार या हमारी समझ भी हो सकता है।

5. हृदय किन बातों को सूचित करता है?

5 एक किताब के मुताबिक, हृदय हमारे “भीतरी मुनष्यत्व को या दूसरे शब्दों में कहें तो भीतरी इंसान को सूचित करता है, जो अपने अलग-अलग कामों, अपनी ख्वाहिशों, पसंद-नापसंद, भावनाओं, उमंगों, अपने मकसदों, विचारों, अपनी समझ-बूझ, कल्पनाओं, बुद्धि, ज्ञान, कुशलताओं, धारणाओं, दलीलों, अपनी याददाश्‍त और चेतना से ज़ाहिर होता है।” हमारा हृदय सूचित करता है कि हम अंदर से कैसे इंसान हैं, हमारा “गुप्त मनुष्यत्व” कैसा है। (1 पतरस 3:4) यही है वह बात जिसे यहोवा देखता और परखता है। इसीलिए दाऊद ने प्रार्थना की: “हे परमेश्‍वर, मुझ में शुद्ध हृदय उत्पन्‍न कर, और मेरे भीतर स्थिर आत्मा फिर से जागृत कर।” (भजन 51:10, NHT) हम एक शुद्ध हृदय कैसे पा सकते हैं?

परमेश्‍वर के वचन को “अपने हृदय में बैठा लो”

6. जब इस्राएली मोआब की तराई में डेरा डाले हुए थे, तब मूसा ने उन्हें क्या सलाह दी?

6 जब इस्राएली, वादा किए हुए देश में जाने से कुछ समय पहले मोआब की तराई में इकट्ठा हुए, तब मूसा ने उनसे कहा: “जो शब्द मैं आज गम्भीर साक्षी के रूप में तुमसे कह रहा हूं, उन्हें अपने हृदय में बैठा लो, और अपने बच्चों को सिखाओ, जिससे वे इस व्यवस्था के सब वचनों के अनुसार कार्य कर सकें।” (व्यवस्थाविवरण 32:46, नयी हिन्दी बाइबिल) इस्राएलियों को इन बातों पर “अच्छी तरह ध्यान” देना था। (नॉक्स बाइबल) परमेश्‍वर की आज्ञाओं से खुद अच्छी तरह वाकिफ होने पर ही वे अपनी संतान के हृदय में भी ये बातें बिठा सकते थे।—व्यवस्थाविवरण 6:6-8.

7. परमेश्‍वर के वचन को ‘अपने हृदय में बैठा लेने’ का मतलब क्या है?

7 शुद्ध हृदय पाने के लिए एक ज़रूरी कदम है, परमेश्‍वर की इच्छा और उसके मकसद के बारे में सही-सही ज्ञान पाना। यह ज्ञान सिर्फ परमेश्‍वर की प्रेरणा से लिखे गए उसके वचन से मिल सकता है। (2 तीमुथियुस 3:16,17) लेकिन अगर हम सिर्फ अपने दिमाग को ऐसे ज्ञान से भर लें तो हम ऐसा हृदय नहीं पा सकते जिससे यहोवा खुश होगा। अगर हम चाहते हैं कि ऐसा ज्ञान हमारे भीतरी मनुष्यत्व पर असर करे तो हमें सीखनेवाली बातों को ‘अपने हृदय में बिठाना’ यानी उन बातों पर “दिल लगाना” चाहिए। (व्यवस्थाविवरण 32:46, किताब-ए-मुकद्दस) यह कैसे किया जाता है? भजनहार दाऊद समझाता है: “मुझे प्राचीनकाल के दिन स्मरण आते हैं, मैं तेरे सब अद्‌भुत कामों पर ध्यान करता हूं, और तेरे काम को सोचता हूं।”—भजन 143:5.

8. अध्ययन करते समय हम किन सवालों पर गहराई से सोच सकते हैं?

8 दाऊद की तरह हमें भी यहोवा के कामों पर एहसान भरे दिल से मनन करना चाहिए। बाइबल या उससे संबंधित साहित्य पढ़ते वक्‍त हमें ऐसे सवालों पर गहराई से सोचना चाहिए जैसे: ‘इस भाग से मैं यहोवा के बारे में क्या सीख सकता हूँ? इस मामले में यहोवा ने कौन-से गुण दिखाए हैं? इस भाग से मैं यहोवा की पसंद-नापसंद के बारे में क्या सीख सकता हूँ? यहोवा को जो मार्ग पसंद है, उस पर चलने के क्या नतीजे होंगे और जिस मार्ग से उसे नफरत है, उस पर चलने का क्या अंजाम होगा? इस बारे में मुझे पहले जो जानकारी थी, उसका इस जानकारी से क्या ताल्लुक है?’

9. निजी तौर पर अध्ययन और मनन करने की क्या अहमियत है?

9 बत्तीस साल की एक बहन, लीसा * बताती है कि उसने सही तरह से अध्ययन और मनन करने की अहमियत कैसे जानी: “सन्‌ 1994 में अपने बपतिस्मे के बाद, मैं करीब दो साल तक सच्चाई में काफी जोशीली थी। मैं सभी मसीही सभाओं में जाती थी, हर महीने 30 से 40 घंटे प्रचार करती और भाई-बहनों के साथ मिलती-जुलती भी थी। लेकिन बाद में, मैं धीरे-धीरे सच्चाई से दूर होती गयी। और इतनी दूर हो गयी कि मैंने परमेश्‍वर का नियम भी तोड़ दिया। लेकिन फिर मेरी आँखें खुल गयीं और मैंने फैसला किया कि अब मुझे अपने तौर-तरीके बदलने होंगे। मैं इस बात से बेहद खुश हूँ कि यहोवा ने मेरा पश्‍चाताप देखा और मुझे दोबारा कबूल कर लिया! कभी-कभी मैं सोचती हूँ: ‘आखिर मैं क्यों सच्चाई से दूर चली गयी थी?’ रह-रहकर मेरे दिमाग में एक ही जवाब आता है कि मैंने सही तरह से अध्ययन करने और मनन करने की बात को नज़रअंदाज़ कर दिया था। दरअसल, बाइबल की सच्चाई मेरे दिल की गहराई तक नहीं बैठी थी। इसलिए मैंने ठान लिया है कि अब से अध्ययन करना और मनन करना मेरी ज़िंदगी का एक अहम हिस्सा बना रहेगा।” यहोवा, उसके बेटे और उसके वचन के ज्ञान में बढ़ने के साथ-साथ यह कितना ज़रूरी है कि हम वक्‍त निकालकर सीखी हुई बातों पर मनन भी करें!

10. निजी अध्ययन और मनन के लिए समय निकालना क्यों बेहद ज़रूरी है?

10 यह सच है कि आज की इस भाग-दौड़ से भरी ज़िंदगी में अध्ययन और मनन के लिए समय निकालना बहुत मुश्‍किल है। मगर मसीही जानते हैं कि वे जल्द ही वादा किए गए एक खूबसूरत देश यानी परमेश्‍वर की धर्मी नयी दुनिया में प्रवेश करनेवाले हैं। (2 पतरस 3:13) बस थोड़ी देर रह गयी है, हम ‘बड़े बाबुल’ का विनाश, यहोवा के लोगों पर “मागोग देश के गोग” का आक्रमण और ऐसी दूसरी हैरतअंगेज़ घटनाएँ देखेंगे। (प्रकाशितवाक्य 17:1,2,5, 15-17; यहेजकेल 38:1-4, 14-16; 39:2) भविष्य में होनेवाली इन घटनाओं से यहोवा के लिए हमारे प्यार की परीक्षा हो सकती है। तो यह कितना ज़रूरी है कि आज हम अपने कीमती समय का सही इस्तेमाल करें और परमेश्‍वर का वचन अपने हृदय में बिठा लें!—इफिसियों 5:15,16.

‘परमेश्‍वर के वचन का अध्ययन करने के लिए अपने हृदय को तैयार कीजिए’

11. हमारे हृदय की तुलना ज़मीन से कैसे की जा सकती है?

11 हृदय की तुलना ऐसी ज़मीन से की जा सकती है जिस पर सच्चाई का बीज बोया जा सकता है। (मत्ती 13:18-23) आम तौर पर खेत में बीज बोने से पहले ज़मीन को नरम किया जाता है ताकि अच्छी फसल हो सके। उसी तरह हमें भी अपने हृदय को तैयार करना चाहिए ताकि परमेश्‍वर के वचन का बीज आसानी से जड़ पकड़ सके। याजक एज्रा ने “यहोवा की व्यवस्था का अर्थ बूझ लेने और उसके अनुसार चलने . . . के लिए अपना मन लगाया [“अपने हृदय को तैयार किया,” NW] था।” (एज्रा 7:10) हम अपने हृदय को कैसे तैयार कर सकते हैं?

12. अध्ययन के लिए हृदय को तैयार करने में कौन-सी बात हमारी मदद करेगी?

12 अपने हृदय को तैयार करने का सबसे बढ़िया तरीका है, परमेश्‍वर का वचन पढ़ते समय दिल लगाकर प्रार्थना करना। सच्चे उपासकों की मसीही सभाएँ प्रार्थना से ही शुरू और खत्म होती हैं। तो यह कितना सही होगा कि हम जब कभी निजी अध्ययन करने के लिए बैठते हैं, तब हम प्रार्थना से अध्ययन शुरू करें और अध्ययन के दौरान भी परमेश्‍वर से मदद माँगे!

13. यहोवा को स्वीकार होने जैसा हृदय पाने के लिए हमें क्या करना चाहिए?

13 गलत धारणाओं को ठुकराने के लिए भी अपने हृदय को तैयार करने की ज़रूरत है। यीशु के दिनों के धर्मगुरू ऐसा करने को तैयार नहीं थे। (मत्ती 13:15) मगर यीशु की माँ, मरियम उनसे कितनी अलग थी क्योंकि उसने जो सच्चाइयाँ सुनी थीं, उनके बारे में वह “अपने दिल में” विचार करके सही नतीजों पर पहुँची। (लूका 2:19,51, हिन्दुस्तानी बाइबल) इसलिए वह यीशु की एक वफादार अनुयायी बनी। थुआथीरा की रहनेवाली लुदिया ने पौलुस की बात सुनी और यहोवा ने ‘उसके हृदय के द्वार खोल दिये ताकि वह ध्यान दे सके।’ वह भी एक विश्‍वासी बन गयी। (प्रेरितों 16:14,15, ईज़ी-टू-रीड वर्शन) आइए हम भी कभी अपनी विचारधाराओं पर और पुरानी समझ पर अड़े न रहें। इसके बजाय, हम यह मानने को तैयार हों कि ‘परमेश्‍वर सच्चा है, फिर चाहे हर एक मनुष्य झूठा ठहरे।’—रोमियों 3:4.

14. मसीही सभाओं में सुनने के लिए हम अपने हृदय को कैसे तैयार कर सकते हैं?

14 मसीही सभाओं में सुनने के लिए अपने हृदय को तैयार करना खासकर ज़रूरी है। कभी-कभी कुछ आवाज़ों वगैरह से हमारा ध्यान भटक सकता है। इसके अलावा, अगर हम दिन-भर में हुई घटनाओं की याद में खो जाएँ या सोचते रहें कि अगले दिन हमें क्या-क्या करना है, तो बतायी जा रही बातों का हम पर कोई असर नहीं पड़ेगा। अगर हम सभाओं से पूरा फायदा पाना चाहते हैं तो हमें ठान लेना चाहिए कि हम ध्यान से सुनेंगे और सीखेंगे। अगर हम ठान ले कि सभाओं में जब आयतों के बारे में खुलकर समझाया जाता है, तब हम ध्यान से सुनेंगे, तो सोचिए हमें कितना फायदा होगा!—नहेमायाह 8:5-8,12.

15. नम्रता का गुण कैसे हमें सीखने के लिए और भी तैयार कर सकता है?

15 जिस तरह ज़मीन में सही उर्वरक मिलाए जाने पर वह और भी उपजाऊ बन जाती है, ठीक उसी तरह अगर हम अपने अंदर नम्रता, आध्यात्मिक बातों के लिए भूख, विश्‍वास, परमेश्‍वर के लिए भय और प्यार बढ़ाएँगे, तो हमारे हृदय की स्थिति और भी बेहतर बन सकती है। नम्रता का गुण हमारे हृदय को कोमल बना सकता है जिससे हम सिखलाए जाने के लिए अच्छी तरह तैयार होंगे। यहोवा ने यहूदा के राजा, योशिय्याह से कहा: ‘तुम्हारा हृदय कोमल है और जब तुमने वह सुना जो मैंने कहा, तो तुम्हें दुःख हुआ और तुम रोने लगे। यही कारण है कि मैंने तुम्हारी बात सुनी।’ (2 राजा 22:19ईज़ी-टू-रीड वर्शन) योशिय्याह का हृदय नम्र था, इसलिए वह सिखलाए जाने को तैयार था। उसी तरह यीशु के चेले भी नम्र थे। इसलिए “अनपढ़ और साधारण” होने के बावजूद, वे उन आध्यात्मिक सच्चाइयों को समझ पाए और लागू कर सके जिन्हें समझने से ‘ज्ञानी और समझदार’ लोग भी चूक गए थे। (प्रेरितों 4:13; लूका 10:21) आइए हम भी “परमेश्‍वर के साम्हने दीन” बने रहें ताकि उसे स्वीकार होनेवाला हृदय पा सकें।—एज्रा 8:21.

16. आध्यात्मिक भोजन के लिए भूख बढ़ाने की लगातार कोशिश करना क्यों ज़रूरी है?

16 यीशु ने कहा था: “खुश हैं वे जो अपनी आध्यात्मिक ज़रूरत के प्रति सचेत हैं।” (मत्ती 5:3, NW) यह सच है कि हमारे अंदर आध्यात्मिकता बढ़ाने की काबिलीयत पैदाइशी होती है, मगर इस दुष्ट संसार से आनेवाले दबावों या अपने आलसीपन की वजह से हम अपनी आध्यात्मिक ज़रूरतें पूरी करने में ढीले पड़ सकते हैं। (मत्ती 4:4) इसलिए हमें आध्यात्मिक भोजन खाने की अच्छी भूख पैदा करनी चाहिए। हो सकता है शुरू-शुरू में हमें बाइबल पढ़ना और अध्ययन करना इतना अच्छा न लगे। लेकिन अगर इसके लिए हमारे अंदर लगन होगी, तो ज्ञान हमें “मनभाऊ लगेगा” और हम अध्ययन के लिए तय किए गए समय का बेसब्री से इंतज़ार करेंगे।—नीतिवचन 2:10,11.

17. (क) यहोवा पर हम क्यों पूरा भरोसा रख सकते हैं? (ख) हम परमेश्‍वर पर भरोसा कैसे पैदा कर सकते हैं?

17 राजा सुलैमान ने सलाह दी: “तू सम्पूर्ण हृदय से यहोवा पर भरोसा रखना, और अपनी समझ का सहारा न लेना।” (नीतिवचन 3:5, NHT) जो इंसान यहोवा पर भरोसा रखता है, उसे यकीन रहता है कि यहोवा अपने वचन के ज़रिए उससे जो भी माँग करता या हिदायतें देता है, वह हमेशा सही होंगी। (यशायाह 48:17) यहोवा पर हम बेशक पूरा भरोसा रख सकते हैं क्योंकि वह अपना हर मकसद पूरा करने की सामर्थ रखता है। (यशायाह 40:26,29) यहाँ तक कि उसके नाम का शाब्दिक अर्थ है, “वह बनने का कारण होता है।” यह नाम हमारे अंदर दृढ़ विश्‍वास पैदा करता है कि यहोवा अपने वादों को पूरा करने की ताकत रखता है। वह “अपनी सब गति में धर्मी और अपने सब कामों में करुणामय है।” (भजन 145:17) मगर हाँ, यहोवा पर भरोसा पैदा करने के लिए ज़रूरी है कि हम ‘परखकर देखें कि यहोवा कैसा भला है!’ ऐसा हम बाइबल से सीखी बातों को ज़िंदगी में अमल करने और इससे होनेवाले फायदों पर मनन करने के ज़रिए कर सकते हैं।—भजन 34:8.

18. परमेश्‍वर का भय हमें उसका मार्गदर्शन स्वीकार करने में कैसे मदद देता है?

18 सुलैमान ने एक और गुण के बारे में बताया जिससे हमारा हृदय परमेश्‍वर की हिदायतें मानने के लिए तैयार हो सकता है। उसने कहा: “यहोवा का भय मानना, और बुराई से अलग रहना।” (नीतिवचन 3:7) यहोवा ने प्राचीन समय के इस्राएलियों के बारे में कहा: “काश, उनमें ऐसा हृदय होता कि वे मेरा भय मानते तथा मेरी सब आज्ञाओं का सदा पालन करते जिस से उन का तथा उन के वंशजों का सदा भला होता!” (व्यवस्थाविवरण 5:29NHT) जी हाँ, जो परमेश्‍वर का भय रखते हैं, वे उसकी आज्ञाओं को मानते हैं। ‘जिनका हृदय सम्पूर्ण रीति से यहोवा का है, वह उनके प्रति अपने सामर्थ्य को दिखा सकता है’ और जो उसकी आज्ञा नहीं मानते उनको दंड दे सकता है। (2 इतिहास 16:9, NHT) तो आइए हम अपने कामों, अपने विचारों और भावनाओं से दिखाएँ कि हम परमेश्‍वर को नाराज़ करने से डरते और उस पर श्रद्धा रखते हैं।

यहोवा से ‘अपने सारे हृदय से प्रेम कर’

19. प्रेम हमारे हृदय को यहोवा की हिदायतें मानने के लिए कैसे तैयार करता है?

19 सभी गुणों से बढ़कर सचमुच प्रेम हमारे हृदय को यहोवा की हिदायतें मानने के लिए तैयार करता है। जिसके हृदय में परमेश्‍वर के लिए प्रेम भरा हो, वह यह सीखने के लिए उत्सुक होगा कि कौन-सी बातें परमेश्‍वर को खुश करती हैं और कौन-सी बातें उसे नाराज़ करती हैं। (1 यूहन्‍ना 5:3) यीशु ने कहा: “तू प्रभु अपने परमेश्‍वर से अपने सारे हृदय और अपने सारे प्राण और अपनी सारी बुद्धि से प्रेम कर।” (मत्ती 22:37, NHT) आइए हम परमेश्‍वर के लिए अपने प्यार को और भी गहरा करते जाएँ। ऐसा करने के लिए हम उसके भले कामों पर मनन करने की आदत बनाएँ, उसे एक करीबी दोस्त समझकर उससे लगातार बात करें और उसके बारे में दूसरों को पूरे उत्साह के साथ बताएँ।

20. हम ऐसा हृदय कैसे पा सकते हैं जो यहोवा को स्वीकार हो?

20 अब तक हमने जो चर्चा की उसका निचोड़ यह है: यहोवा को स्वीकार होनेवाला हृदय पाने के लिए ज़रूरी है कि हम अपने गुप्त मनुष्यत्व यानी अपने अंदरूनी स्वभाव पर परमेश्‍वर के वचन को असर करने दें। बाइबल का सही तरह से अध्ययन करना और एहसान भरे दिल से मनन करना निहायत ज़रूरी है। यह हम तभी अच्छी तरह कर पाएँगे जब हमारा हृदय तैयार होगा, यानी हृदय हमारी अपनी विचारधाराओं से नहीं बल्कि ऐसे गुणों से भरा होगा जो हमें सिखलाए जाने के योग्य बनाते हैं! जी हाँ, यहोवा की मदद से ऐसा हृदय पाना मुमकिन है जो उसे स्वीकार हो। लेकिन हम अपने हृदय की रक्षा करने के लिए कौन-से कदम उठा सकते हैं?

[फुटनोट]

^ नाम बदल दिया गया है।

आप क्या जवाब देंगे?

• वह हृदय क्या है जिसे यहोवा परखता है?

• हम परमेश्‍वर के वचन को कैसे “अपने हृदय में बैठा” सकते हैं?

• परमेश्‍वर का वचन पढ़ने से पहले हमें हृदय को कैसे तैयार करना चाहिए?

• यह लेख पढ़ने के बाद आपके अंदर क्या करने की इच्छा पैदा हुई?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 17 पर तसवीर]

दाऊद ने एहसान भरे दिल से आध्यात्मिक बातों पर मनन किया। क्या आप भी ऐसा करते हैं?

[पेज 18 पर तसवीरें]

परमेश्‍वर के वचन का अध्ययन करने से पहले अपने हृदय को तैयार कीजिए