इस जानकारी को छोड़ दें

विषय-सूची को छोड़ दें

परमेश्‍वर के प्रेम से हमें कौन अलग कर सकता है?

परमेश्‍वर के प्रेम से हमें कौन अलग कर सकता है?

परमेश्‍वर के प्रेम से हमें कौन अलग कर सकता है?

“हम इसलिये प्रेम करते हैं, कि पहिले उस ने हम से प्रेम किया।”1 यूहन्‍ना 4:19.

1, 2. (क) हमारे लिए यह जानना क्यों मायने रखता है कि दूसरे हमसे प्यार करते हैं? (ख) हमें खासकर किसके प्रेम की ज़रूरत है?

 यह जानना आपके लिए कितना मायने रखता है कि दूसरे आपसे प्यार करते हैं? बचपन से लेकर बड़े होने तक एक इंसान प्यार के सहारे फलता-फूलता है। क्या आपने कभी एक छोटे बच्चे को अपनी माँ की बाहों में सिमटे हुए देखा है? आस-पास कुछ भी होता रहे, बच्चे को उसकी बिलकुल परवाह नहीं होती। वह तो अपनी माँ की बाहों में महफूज़ रहता और उसकी प्यार और ममता भरी आँखों में देखता रहता है। या क्या आपको अपनी किशोरावस्था के वे दिन याद हैं जब आपको बहुत-से उतार-चढ़ाव का सामना करना पड़ा था? (1 थिस्सलुनीकियों 2:7) उन सालों के दौरान कभी-कभी आपको शायद यह भी नहीं मालूम था कि आपको कैसी मदद चाहिए या ऐसा भी वक्‍त आया होगा जब आप अपनी भावनाओं को नहीं समझ पाए। लेकिन ऐसे में इस बात से आपको कितनी हिम्मत मिली होगी कि आपके माता और पिता दोनों आपसे प्यार करते हैं! क्या यह जानकर आपको तसल्ली नहीं होती थी कि आप अपनी हर समस्या या सवाल के बारे में उनसे बात कर सकते थे? जी हाँ, हमें ज़िंदगी के हर दौर में जिस चीज़ की सख्त ज़रूरत है, वह है प्यार। यही प्यार हमें यकीन दिलाता है कि हमारी भी कुछ कीमत है।

2 माता-पिता अपनी औलाद से हमेशा प्यार करते हैं और यह प्यार बच्चों को सही तरीके से बढ़ने और उनकी ज़िंदगी को एक मज़बूत बुनियाद देने में वाकई मददगार होता है। लेकिन इससे भी बढ़कर हमें यकीन होना चाहिए कि स्वर्ग में रहनेवाला पिता, यहोवा हमसे प्रेम करता है। तब हम आध्यात्मिक और भावात्मक रूप से मज़बूत रह पाएँगे। यह पत्रिका पढ़नेवाले कुछ लोगों को शायद अपने माता-पिता का प्यार न मिला हो। अगर आप भी उनमें से एक हैं, तो हिम्मत रखिए। अगर आपने माता-पिता का प्यार नहीं पाया, या जितना प्यार उन्हें आपको देना था, उतना उन्होंने नहीं दिया, तो परमेश्‍वर का सच्चा प्यार इस कमी को पूरा कर देगा।

3. यहोवा ने अपने प्रेम के बारे में अपने लोगों को क्या तसल्ली दी है?

3 यहोवा ने अपने भविष्यवक्‍ता यशायाह के ज़रिए कहा कि एक माँ भी अपने दूध पीते बच्चे को “भूल” सकती है, मगर वह अपने लोगों को कभी नहीं भूल सकता। (यशायाह 49:15) उसी तरह, दाऊद ने भी पूरे भरोसे के साथ कहा: “चाहे मेरा अपना पिता और मेरी अपनी माँ भी मुझे छोड़ दे, मगर यहोवा खुद मुझे थाम लेगा।” (भजन 27:10, NW) यह जानकर हमें कितनी तसल्ली मिलती है, है ना? अगर आप यहोवा को समर्पित होकर उसके साथ एक रिश्‍ते में बँध गए हैं, तो आपको चाहे जैसे भी हालात से गुज़रना पड़े, आप हमेशा याद रखिए कि किसी भी इंसान से बढ़कर यहोवा आपसे प्रेम करता है!

खुद को परमेश्‍वर के प्रेम में बनाए रखिए

4. पहली सदी के मसीहियों को परमेश्‍वर के प्रेम के बारे में कैसे यकीन हुआ?

4 आपने यहोवा के प्रेम के बारे में सबसे पहले कब जाना था? शायद इस मामले में आपका तजुर्बा पहली सदी के मसीहियों के तजुर्बे से मिलता-जुलता होगा। पौलुस ने रोमियों को लिखी अपनी पत्री के 5वें अध्याय में बड़े ही सुंदर शब्दों में समझाया कि पापी इंसान, जो कभी परमेश्‍वर से दूर जा चुके थे, वे किस तरह यहोवा के प्रेम से वाकिफ हुए। पाँचवीं आयत में हम पढ़ते हैं: “पवित्र आत्मा जो हमें दिया गया है उसके द्वारा परमेश्‍वर का प्रेम हमारे मन में डाला गया है।” और आगे आयत 8 में पौलुस कहता है: “परमेश्‍वर हम पर अपने प्रेम की भलाई इस रीति से प्रगट करता है, कि जब हम पापी ही थे तभी मसीह हमारे लिये मरा।”

5. परमेश्‍वर के प्रेम की गहराई को आपने कैसे जाना और कैसे उसकी कदर कर पाए?

5 उसी तरह, जब आपको भी परमेश्‍वर के वचन की सच्चाई बतायी गयी और आप उस पर विश्‍वास करने लगे, तो यहोवा की पवित्र आत्मा आपके मन में काम करने लगी। तब आप इस बात को अच्छी तरह समझने और उसकी कदर करने लगे कि यहोवा ने अपने प्यारे बेटे को कुरबान करके आप पर कितना बड़ा उपकार किया है। इस तरह यहोवा ने आपको यह ठीक-ठीक जानने में मदद दी कि वह इंसानों से किस कदर प्रेम करता है। जब आपने जाना कि पाप में पैदा होने की वजह से हालाँकि आप यहोवा से दूर थे, मगर फिर भी उसने आपको धर्मी करार देने का रास्ता खोला ताकि आपको अनंत जीवन मिले, तब क्या आपका दिल यहोवा के लिए एहसान से नहीं भर गया? और क्या इससे आप में यहोवा के लिए प्यार नहीं उमड़ आया?—रोमियों 5:10.

6. कभी-कभी हमें क्यों ऐसा लग सकता है कि हम यहोवा से थोड़े दूर होते जा रहे हैं?

6 इस तरह आप स्वर्ग में रहनेवाले अपने पिता के प्रेम से खिंच गए और उसे खुश करने के लिए अपनी ज़िंदगी में बदलाव किए और अपनी ज़िंदगी समर्पित कर दी। तब से आप परमेश्‍वर के साथ शांति के रिश्‍ते में बँध गए। लेकिन इतना कुछ होने के बावजूद, क्या आपको कभी-कभी ऐसा लगता है कि आप यहोवा से थोड़े दूर होते जा रहे हैं? ऐसा हममें से किसी के साथ भी हो सकता है। लेकिन हमेशा याद रखिए कि परमेश्‍वर कभी बदलता नहीं। जिस तरह सूरज अपनी जगह पर हमेशा अटल रहता और पृथ्वी को गर्मी देने के लिए लगातार अपनी किरणें भेजता रहता है, उसी तरह परमेश्‍वर का प्यार भी हमेशा कायम रहता है, कभी कम नहीं होता। (मलाकी 3:6; याकूब 1:17) मगर हाँ, हम इंसानों के बदल जाने की गुंजाइश रहती है, कम-से-कम कुछ देर के लिए ही सही। जिस तरह सूरज की परिक्रमा करते वक्‍त पृथ्वी के आधे हिस्से पर अंधेरा छा जाता है, उसी तरह जब हम थोड़ी देर के लिए भी परमेश्‍वर से दूर चले जाते हैं, तो हमें एहसास होने लगता है कि हमारे और उसके बीच का रिश्‍ता कुछ ठंडा पड़ गया है। अगर ऐसा है तो हालात को ठीक करने के लिए हम क्या कदम उठा सकते हैं?

7. खुद की जाँच करने से कैसे हमें परमेश्‍वर के प्रेम में बने रहने में मदद मिलेगी?

7 अगर कभी हमें लगता है कि हम परमेश्‍वर के प्रेम से दूर जा रहे हैं, तो हमें खुद से पूछना चाहिए: ‘क्या मैं परमेश्‍वर के प्रेम को बहुत हल्का समझने लगा हूँ? क्या मैं अपने जीवित और प्यारे परमेश्‍वर से धीरे-धीरे दूर होता जा रहा हूँ और क्या मेरे विश्‍वास के कमज़ोर पड़ जाने की कुछ निशानियाँ नज़र आ रही हैं? क्या मैंने अपना मन “आत्मा की बातों” के बजाय “शरीर की बातों” पर लगा रखा है?’ (रोमियों 8:5-8; इब्रानियों 3:12) अगर हम यहोवा से दूर जा चुके हैं, तो उस फासले को मिटाने के लिए हम कुछ कदम उठा सकते हैं, ताकि उसके साथ दोबारा एक नज़दीकी और गहरा रिश्‍ता कायम कर सकें। याकूब हमसे आग्रह करता है: “परमेश्‍वर के निकट आओ, तो वह भी तुम्हारे निकट आएगा।” (याकूब 4:8) यहूदा के इन शब्दों को भी मानिए: “हे प्रियो, तुम अपने अति पवित्र विश्‍वास में अपनी उन्‍नति करते हुए और पवित्र आत्मा में प्रार्थना करते हुए। अपने आप को परमेश्‍वर के प्रेम में बनाए रखो।”—यहूदा 20,21.

बदलते हालात का परमेश्‍वर के प्रेम पर कोई असर नहीं पड़ता

8. हमारी ज़िंदगी अचानक कैसे बदल सकती है?

8 इस दुनिया में हमारी ज़िंदगी में कई उतार-चढ़ाव आते रहते हैं। राजा सुलैमान ने कहा कि हम ‘सब समय और संयोग के वश में हैं।’ (सभोपदेशक 9:11) हो सकता है, रातों-रात हमारी ज़िंदगी का पूरा रुख ही बदल जाए। एक दिन हम पूरी तरह तंदुरुस्त हों तो अगले दिन शायद हम गंभीर रूप से बीमार पड़ जाएँ। एक पल को हम शायद सोचें कि हमारे पास पक्की नौकरी है, मगर अगले ही पल हम नौकरी से हाथ धो बैठ सकते हैं। या हो सकता है, मौत अचानक हमारे किसी अज़ीज़ को हमसे छीन ले। कुछ देशों में मसीही शायद शांति से जी रहे हों, मगर अचानक ही उन पर भयानक अत्याचार होने लगते हैं। या शायद लोग हम पर झूठे इलज़ाम लगाएँ जिसकी वजह से हम अन्याय के शिकार हों जाएँ। जी हाँ, ज़िंदगी में कब क्या हो जाए, इसका कोई भरोसा नहीं।—याकूब 4:13-15.

9. रोमियों के अध्याय 8 की कुछ आयतों पर ध्यान देना क्यों अच्छा होगा?

9 जब हमारे साथ कुछ बुरा घटता है, तो हम शायद अपने आपको त्यागा हुआ महसूस करें और यह भी सोचें कि अब परमेश्‍वर हमसे पहले जैसा प्यार नहीं करता। हम सभी की ज़िंदगी में कभी-न-कभी बुरी घटनाएँ होती हैं इसलिए अच्छा होगा कि हम रोमियों के अध्याय 8 में दिए गए प्रेरित पौलुस के शब्दों की ध्यान से जाँच करें जिनसे हमें बहुत तसल्ली मिलती है। ये शब्द आत्मा से अभिषिक्‍त मसीहियों को लिखे गए थे। लेकिन ये अन्य भेड़ों पर भी लागू होते हैं जिन्हें प्राचीन समय के इब्राहीम की तरह परमेश्‍वर के दोस्त और धर्मी गिना गया है।—रोमियों 4:20-22; याकूब 2:21-23.

10, 11. (क) परमेश्‍वर के लोगों के खिलाफ दुश्‍मन अकसर कैसे इलज़ाम लगाते हैं? (ख) ऐसे इलज़ामों का मसीहियों पर क्यों कोई फर्क नहीं पड़ता?

10 रोमियों 8:31-34 पढ़िए। पौलुस पूछता है: “यदि परमेश्‍वर हमारी ओर है, तो हमारा विरोधी कौन हो सकता है?” यह सच है कि शैतान और उसका दुष्ट संसार हमारे खिलाफ है। हमारे दुश्‍मन हम पर गलत इलज़ाम लगा सकते हैं और हमें अदालत में भी ले जा सकते हैं। कुछ मसीही माता-पिताओं ने जब अपने बच्चों का ऐसे तरीकों से इलाज करवाने से इंकार किया जो परमेश्‍वर के नियम के खिलाफ हैं या उन्हें झूठे धर्म से जुड़े त्योहारों में शामिल नहीं होने दिया, तो उन पर यह इलज़ाम लगाया गया कि वे अपने बच्चों की जान के दुश्‍मन हैं। (प्रेरितों 15:28,29; 2 कुरिन्थियों 6:14-16) कुछ और वफादार मसीहियों पर देश से गद्दारी करने का इलज़ाम लगाया गया क्योंकि उन्होंने युद्ध में भाग लेकर दूसरों की हत्या करने या राजनीति में शरीक होने से इंकार कर दिया था। (यूहन्‍ना 17:16) कुछ विरोधियों ने अखबारों वगैरह के ज़रिए हमारे बारे में अफवाहें फैलायी हैं, यहाँ तक कि यह कहकर हमें बदनाम किया है कि यहोवा के साक्षी एक खतरनाक पंथ से हैं।

11 लेकिन मत भूलिए कि प्रेरितों के दिनों में मसीहियों के बारे में ऐसा कहा गया था: “हम जानते हैं, कि हर जगह इस मत के विरोध में लोग बातें कहते हैं।” (प्रेरितों 28:22) मगर क्या ऐसे झूठे आरोपों का मसीहियों पर कुछ फर्क पड़ता है? परमेश्‍वर ने खुद सच्चे मसीहियों को धर्मी ठहराया है क्योंकि वे मसीह के बलिदान पर विश्‍वास करते हैं। जब यहोवा ने अपने उपासकों की खातिर अपने जिगर के टुकड़े, अपने प्यारे बेटे को ही कुरबान कर दिया, तो भला वह उनसे प्यार करना कैसे छोड़ सकता है? (1 यूहन्‍ना 4:10) और अब मसीह मरे हुओं में से जी उठाया जा चुका है और उसे परमेश्‍वर के दाहिनी ओर बिठाया गया है, इसलिए वह पूरे जी-जान से मसीहियों के पक्ष में सफाई देता है। जब मसीह अपने अनुयायियों की तरफ से पैरवी करता है और परमेश्‍वर ने खुद उनको धर्मी ठहराया है, तो कौन है जो उनको झूठा साबित कर सके? कोई नहीं!—यशायाह 50:8,9; इब्रानियों 4:15,16.

12, 13. (क) किस तरह के हालात हमें परमेश्‍वर के प्रेम से अलग नहीं कर सकते? (ख) इब्‌लीस किस इरादे से हम पर मुश्‍किलें लाता है? (ग) मसीही क्यों पूरी जीत हासिल करते हैं?

12 रोमियों 8:35-37 पढ़िए। ज़रा सोचिए कि खुद हमारे सिवाय क्या कोई और व्यक्‍ति या चीज़ हमें यहोवा और उसके बेटे, यीशु मसीह के प्रेम से अलग कर सकती है? शैतान, पृथ्वी पर के अपने पैरोकारों के ज़रिए मसीहियों को बहुत सता सकता है। पिछली सदी में कई देशों में हमारे बहुत-से मसीही भाई-बहनों पर भयानक ज़ुल्म ढाए गए। आज कुछ जगहों में हमारे भाई-बहनों को हर रोज़ आर्थिक संकट से गुज़रना पड़ता है। कुछ भाई-बहनों को खाने-पहनने की तंगी से गुज़रना पड़ रहा है। ऐसे बुरे हालात पैदा करने के पीछे इब्‌लीस का इरादा क्या है? उसका एक इरादा तो यह है कि वह हमें यहोवा की सच्ची उपासना से दूर करना चाहता है। शैतान हमारे दिमाग में यह बात भरना चाहता है कि परमेश्‍वर अब हमसे पहले जैसा प्रेम नहीं करता। लेकिन क्या यह सच है?

13 पौलुस ने परमेश्‍वर के वचन का अध्ययन किया था, इसीलिए वह भजन 44:22 का हवाला दे पाया। उसी तरह हम भी परमेश्‍वर के वचन का अध्ययन करने की वजह से जानते हैं कि परमेश्‍वर की “भेड़ों” यानी हमें उसके नाम की खातिर ही ऐसे हालात से गुज़रना पड़ता है। परमेश्‍वर के नाम के पवित्र किए जाने और उसकी हुकूमत पर लगे दोष को मिटाए जाने का मसला इससे जुड़ा हुआ है। ऐसे गंभीर मसलों को सुलझाने के लिए ही परमेश्‍वर हम पर परीक्षाएँ आने देता है, इसलिए नहीं कि वह अब हमसे प्रेम नहीं करता। चाहे हमें कितने भी बदतर हालात से क्यों न गुज़रना पड़े, मगर हमें पूरा यकीन है कि अपने लोगों के लिए, जी हाँ, हम में से किसी के लिए भी परमेश्‍वर का प्रेम कम नहीं हुआ है। कभी-कभी ऐसा लग सकता है कि हम परीक्षा में हार रहे हैं, लेकिन अगर हम अपनी खराई बनाए रखेंगे, तो जीत हमारी ही होगी। यह जानकर हमें बड़ा हौसला मिलता है कि परमेश्‍वर हमें कभी नहीं त्यागेगा, वह हमसे हमेशा प्रेम करता रहेगा।

14. पौलुस को क्यों यकीन था कि मसीहियों को चाहे मुश्‍किलों से भी गुज़रना पड़े, मगर परमेश्‍वर उन्हें कभी नहीं त्यागेगा?

14 रोमियों 8:38,39 पढ़िए। पौलुस को किस बात ने यकीन दिलाया कि कोई भी चीज़ मसीहियों को परमेश्‍वर के प्रेम से अलग नहीं कर सकती? बेशक, पौलुस को सेवकाई में जो अनुभव हुए उनसे उसका विश्‍वास और पक्का हुआ कि हम पर जो मुश्‍किलें आती हैं उनसे परमेश्‍वर के प्रेम पर कोई असर नहीं पड़ता। (2 कुरिन्थियों 11:23-27; फिलिप्पियों 4:13) पौलुस यह भी जानता था कि यहोवा ने अनंतकाल के लिए क्या मकसद रखा है और बीते समयों में उसने अपने लोगों की खातिर क्या-क्या किया। क्या मौत में भी इतना दम है कि वह परमेश्‍वर के वफादार सेवकों को उसके प्रेम से अलग कर सके? हरगिज़ नहीं! क्योंकि जो वफादार जन मर जाते हैं, वे परमेश्‍वर की याद में ज़िंदा रहते हैं और वक्‍त आने पर वह उन्हें दोबारा जिलाएगा।—लूका 20:37,38; 1 कुरिन्थियों 15:22-26.

15, 16. कौन-सी बातें परमेश्‍वर को अपने वफादार सेवकों से प्रेम करने से कभी नहीं रोक सकतीं?

15 आज हम पर चाहे जो भी मुसीबत टूट पड़े, चाहे हमारे साथ कोई बड़ी दुर्घटना हो जाए, हमें कोई जानलेवा बीमारी लग जाए या पैसों की तंगी से गुज़रना पड़े लेकिन दुनिया की कोई भी चीज़ अपने लोगों के लिए परमेश्‍वर के प्रेम को नहीं मिटा सकती। शैतान के जैसे विद्रोही और शक्‍तिशाली स्वर्गदूत भी यहोवा को हमें प्यार करने से नहीं रोक सकते। (अय्यूब 2:3) हो सकता है सरकारें परमेश्‍वर के सेवकों पर पाबंदियाँ लगा दें, उन्हें जेल में डाल दें या उनके साथ बुरा सलूक करें और उन पर ठुकराए हुए लोग (परसोना नॉन ग्राटा) होने का ठप्पा लगा दें। (1 कुरिन्थियों 4:13) जब सरकारें बिना किसी वाजिब कारण के हमसे नफरत करती हैं, तो शायद लोग भी हमारे खिलाफ हो सकते हैं। मगर इससे सारे विश्‍व के मालिक पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा, वह हमें कभी नहीं त्यागेगा।

16 पौलुस ने जिन “वर्तमान” चीज़ों यानी आज इस दुनिया में होनेवाली घटनाओं और हालात का ज़िक्र किया, न तो उनसे और न ही “भविष्य” में होनेवाली घटनाओं से हम मसीहियों को घबराने की ज़रूरत है। इनमें से कोई भी चीज़ परमेश्‍वर को हमें प्रेम करने से रोक नहीं सकती। हालाँकि इंसान और दुष्ट आत्मिक प्राणी हमारे खिलाफ जंग लड़ते हैं मगर फिर भी परमेश्‍वर का सच्चा प्रेम हमें सहने की ताकत देता है। जैसा कि पौलुस ने ज़ोर देकर बताया, “न ऊंचाई, न गहिराई” परमेश्‍वर को हमें प्रेम करने से रोक सकती है। जी हाँ, चाहे कोई भी चीज़ हमें निराश करने या फिर हमें अपने काबू में करने की कोशिश करे, मगर वह हमें परमेश्‍वर के प्रेम से अलग नहीं कर सकती। ना ही कोई और सृष्टि, सिरजनहार और उसके वफादार सेवकों के बीच के रिश्‍ते को तोड़ सकती है। परमेश्‍वर का प्रेम कभी नहीं टलता; वह सदा कायम रहता है।—1 कुरिन्थियों 13:8.

परमेश्‍वर के प्रेम और उसकी वफादारी की हमेशा कदर कीजिए

17. (क) परमेश्‍वर का प्रेम पाना क्यों “जीवन से भी उत्तम है”? (ख) यह हम कैसे दिखा सकते हैं कि हम परमेश्‍वर के प्रेम और उसकी वफादारी की कदर करते हैं?

17 आप परमेश्‍वर के प्रेम की कितनी कदर करते हैं? क्या आप भी दाऊद की तरह महसूस करते हैं, जिसने लिखा था: “क्योंकि तेरी करुणा जीवन से भी उत्तम है, मैं तेरी प्रशंसा करूंगा। इसी प्रकार मैं जीवन भर तुझे धन्य कहता रहूंगा; और तेरा नाम लेकर अपने हाथ उठाऊंगा”। (भजन 63:3,4) क्या इस दुनिया में ऐसी कोई चीज़ है जो परमेश्‍वर के प्रेम और उसकी सच्ची दोस्ती से वाकई ज़्यादा कीमती हो? मिसाल के लिए, परमेश्‍वर के साथ एक नज़दीकी रिश्‍ता होने पर जो मन की शांति और खुशी मिलती है, उसे छोड़कर क्या पैसा कमाने की धुन में लग जाना ज़्यादा बेहतर होगा? (लूका 12:15) कुछ मसीहियों के सामने यह चुनाव पेश किया गया कि उन्हें यहोवा चाहिए या ज़िंदगी चाहिए। दूसरे विश्‍व युद्ध के दौरान नात्ज़ी यातना शिविरों में बहुत-से यहोवा के साक्षियों के साथ यही हुआ। तब उनमें बस कुछ को छोड़, हमारे सभी मसीही भाई-बहनों ने परमेश्‍वर के प्रेम में बने रहने का चुनाव किया और इसके लिए वे अपनी जान की बाज़ी तक लगाने को तैयार थे। जो लोग इस तरह परमेश्‍वर के वफादार रहते हुए उसके प्रेम में बने रहते हैं, वे यकीन रख सकते हैं कि परमेश्‍वर उन्हें हमेशा की ज़िंदगी देगा। यह एक ऐसी चीज़ है जो संसार हमें कभी नहीं दे सकता। (मरकुस 8:34-36) लेकिन हमेशा की ज़िंदगी के अलावा, परमेश्‍वर हमें और भी बहुत कुछ देनेवाला है।

18. हमेशा की ज़िंदगी हमें क्यों इतनी अज़ीज़ है?

18 हालाँकि यहोवा के बिना हमेशा ज़िंदा रहना मुमकिन नहीं है मगर फिर भी कल्पना कीजिए कि अगर हमें उसके बगैर जीना पड़े तो वह ज़िंदगी कितनी उबाऊ लगेगी। सिरजनहार के बिना ज़िंदगी में कोई मकसद नहीं होगा, हम खालीपन महसूस करेंगे। यहोवा ने इन अंतिम दिनों में भी अपने लोगों को ऐसा काम दिया है जिससे उन्हें संतोष मिलता है। इसलिए हम भरोसा रख सकते हैं कि अपने उद्देश्‍यों को पूरा करनेवाला महान परमेश्‍वर, यहोवा जब हमें हमेशा की ज़िंदगी देगा, तब ज़िंदगी और भी मज़ेदार होगी, साथ ही सीखने और करने के लिए हमारे पास काफी अच्छी बातें होंगी। (सभोपदेशक 3:11) आनेवाले हज़ारों सालों के दौरान, हम चाहे जितनी भी नयी-नयी बातें सीखें, मगर हम ‘परमेश्‍वर के धन और बुद्धि और ज्ञान की गहराई’ को कभी-भी पूरी तरह नहीं समझ पाएँगे।—रोमियों 11:33, हिन्दुस्तानी बाइबल।

पिता तुम से प्रीति रखता है

19. यीशु मसीह ने अपने शिष्यों से जुदा होने से पहले कैसे उनकी हिम्मत बँधाई?

19 सामान्य युग 33 के निसान 14 को जब यीशु ने अपने ग्यारह वफादार प्रेरितों के साथ अपनी आखिरी शाम बितायी, तब उसने कई बातें बताकर होनेवाली घटनाओं का सामना करने के लिए उनकी हिम्मत बँधाई। उन सभी ने यीशु की परीक्षाओं में उसका साथ निभाया था और हरेक ने यह महसूस किया कि यीशु उनसे कितना प्यार करता है। (लूका 22:28,30; यूहन्‍ना 1:16; 13:1) फिर यीशु ने यह कहकर उनको यकीन दिलाया: “पिता तो आप ही तुम से प्रीति रखता है।” (यूहन्‍ना 16:27) यीशु की यह बात सुनकर शिष्यों को यह समझने में कितनी मदद मिली होगी कि स्वर्ग में रहनेवाले पिता को उनसे कितना प्यार और हमदर्दी है!

20. आपने क्या करने की ठानी है और आप किस बात का पूरा भरोसा रख सकते हैं?

20 हमारे बहुत-से भाई-बहन परीक्षाओं के बावजूद बरसों से यहोवा की सेवा वफादारी से करते आए हैं। और बेशक, इस दुष्ट संसार के अंत से पहले हमें और भी कई परीक्षाएँ झेलनी होंगी। मगर ऐसी परीक्षाओं और तकलीफों के बावजूद, कभी-भी शक मत कीजिए कि परमेश्‍वर पहले की तरह आपसे प्यार करता है या नहीं। यह शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता कि यहोवा को आपसे कितना गहरा प्रेम है। (याकूब 5:11) इसलिए आइए हममें से हर कोई परमेश्‍वर की आज्ञाओं को लगातार मानने के लिए अपनी तरफ से पूरी-पूरी कोशिश करे। (यूहन्‍ना 15:8-10) हम मिलनेवाले हर अवसर पर उसके नाम की स्तुति करें। हमें अपना यह इरादा और मज़बूत कर लेना चाहिए कि यहोवा से प्रार्थना करने और उसके वचन का अध्ययन करने के ज़रिए हम हमेशा उसके करीब बने रहेंगे। आनेवाला कल चाहे जैसा भी हो, लेकिन अगर हम यहोवा को खुश करने के लिए अपना भरसक करेंगे, तो हमें हमेशा की शांति मिलेगी और हम पूरा भरोसा रख सकेंगे कि वह हमसे प्रेम करना कभी नहीं छोड़ेगा।—2 पतरस 3:14.

आपका जवाब क्या होगा?

• आध्यात्मिक और भावात्मक रूप से मज़बूत बने रहने के लिए हमें खासकर किसके प्यार की ज़रूरत है?

• कौन-सी बातें यहोवा को अपने सेवकों को प्यार करने से कभी नहीं रोक सकतीं?

• यहोवा का प्रेम पाना क्यों “जीवन से भी उत्तम है?”

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 13 पर तसवीरें]

अगर हमें लगता है कि हम परमेश्‍वर के प्रेम से दूर होते जा रहे हैं, तो हम मामले को सुधारने के लिए कदम उठा सकते हैं

[पेज 15 पर तसवीर]

पौलुस जानता था कि उसे क्यों सताया जा रहा है