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“धीरज को धारण करो”

“धीरज को धारण करो”

“धीरज को धारण करो”

“सहानुभूति . . . और धीरज को धारण करो।”कुलुस्सियों 3:12, ईज़ी-टू-रीड वर्शन।

1. धीरज धरने की एक बढ़िया मिसाल बताइए।

 दक्षिण-पश्‍चिम फ्रांस में रहनेवाले रेज़ीस ने 1952 में, बपतिस्मा लिया और यहोवा का एक साक्षी बना। कई सालों तक उसकी पत्नी ने उसे यहोवा की सेवा करने से रोकने के लिए जो हो सका किया। उसने गाड़ी के टायर पंक्चर करने की कोशिश की ताकि वह सभाओं में न जा सके। एक बार जब रेज़ीस घर-घर जाकर बाइबल का संदेश सुना रहा था, तो वह हर जगह उसका पीछा करती रही। जब वह लोगों को राज्य का सुसमाचार सुनाता तो वह पीछे खड़ी होकर उसकी खिल्ली उड़ाती। पत्नी के लगातार विरोध करने के बावजूद, रेज़ीस धीरज धरता रहा। इसलिए, वह सभी मसीहियों के लिए एक बढ़िया मिसाल है, क्योंकि यहोवा चाहता है कि उसके सभी उपासक दूसरों के साथ धीरज से पेश आएँ।

2. “धीरज” के लिए यूनानी शब्द का शाब्दिक अर्थ क्या है, और यह किन गुणों को दिखाता है?

2 “धीरज” के लिए यूनानी शब्द का शाब्दिक अर्थ है “आत्मा की दीर्घता।” हिन्दी बाइबल में इस यूनानी शब्द का अनुवाद छः बार “धीरज,” पाँच बार “सहनशीलता,” और तीन बार “धीरज धरना” किया गया है। इब्रानी और यूनानी दोनों भाषाओं के जिन शब्दों का अनुवाद “धीरज” किया गया है, उनमें धैर्य, सहनशीलता और जल्दी क्रोध न करने का अर्थ भी शामिल है।

3. धीरज के बारे में, पहली सदी के मसीहियों का नज़रिया उस वक्‍त के यूनानियों से कैसे अलग था?

3 पहली सदी के यूनानी, धीरज को अच्छा गुण नहीं मानते थे। स्तोइकी तत्त्वज्ञानियों ने कभी इस शब्द का इस्तेमाल नहीं किया। बाइबल विद्वान विलियम बार्कले कहते हैं कि “यूनानी समाज में जिन गुणों को सद्‌गुण माना जाता था,” धीरज “उनसे एकदम उलटा है।” यूनानी इस बात पर घमंड करते थे कि वे “कभी कोई बेइज़्ज़ती या ज़ुल्म बरदाश्‍त नहीं करते।” बार्कले कहते हैं: “एक यूनानी की नज़र में बड़ा आदमी वह है जो बदला लेने के लिए कुछ भी कर सकता है। मगर एक मसीही के लिए, बड़ा आदमी वह है जो मौका मिलने पर भी बदला नहीं लेता।” यूनानी शायद धीरज धरने के गुण को बुज़दिली मानते थे। मगर, और मामलों की तरह इसमें भी “परमेश्‍वर की मूर्खता मनुष्यों के ज्ञान से ज्ञानवान है; और परमेश्‍वर की निर्बलता मनुष्यों के बल से बहुत बलवान है।”—1 कुरिन्थियों 1:25.

धीरज धरने में मसीह की मिसाल

4, 5. यीशु ने धीरज धरने की कौन-सी बढ़िया मिसाल कायम की?

4 यहोवा के बाद, यीशु मसीह ने धीरज धरने की बेहतरीन मिसाल कायम की। यह देखकर हैरानी होती है कि ज़बरदस्त दबाव में भी यीशु ने खुद पर किस कदर काबू रखा। उसके बारे में यह भविष्यवाणी की गयी थी: “वह सताया गया, तौभी वह सहता रहा और अपना मुंह न खोला; जिस प्रकार भेड़ बध होने के समय वा भेड़ी ऊन कतरने के समय चुपचाप शान्त रहती है, वैसे ही उस ने भी अपना मुंह न खोला।”—यशायाह 53:7.

5 इस ज़मीन पर अपनी पूरी सेवकाई के दौरान, यीशु का धीरज वाकई लाजवाब था! उसने अपने दुश्‍मनों के छल-पूर्ण सवालों और विरोधियों की तरफ से अपमान बरदाश्‍त किया। (मत्ती 22:15-46; 1 पतरस 2:23) वह अपने चेलों के साथ भी धीरज से पेश आया, हालाँकि वे बार-बार एक ही बात को लेकर झगड़ा करते थे कि उनमें सबसे बड़ा कौन है। (मरकुस 9:33-37; 10:35-45; लूका 22:24-27) जिस रात यीशु को पकड़वाया गया, उस रात उसने पतरस और यूहन्‍ना को ‘जागते रहने’ के लिए कहा, मगर वे सो गए। ऐसे हालात में यीशु का धीरज धरना वाकई तारीफ के काबिल है!—मत्ती 26:36-41.

6. पौलुस को यीशु के धीरज धरने से कैसे फायदा हुआ, और इससे हम क्या सीखते हैं?

6 यीशु ने अपनी मौत और पुनरुत्थान के बाद भी धीरज का गुण दिखाना नहीं छोड़ा। प्रेरित पौलुस को खासकर इस बात का एहसास था, क्योंकि पहले वह मसीहियों को सताया करता था। उसने लिखा: “यह बात सच और हर प्रकार से मानने के योग्य है, कि मसीह यीशु पापियों का उद्धार करने के लिये जगत में आया, जिन में सब से बड़ा मैं हूं। पर मुझपर इसलिये दया हुई, कि मुझ सब से बड़े पापी में यीशु मसीह अपनी पूरी सहनशीलता दिखाए, कि जो लोग उस पर अनन्त जीवन के लिये विश्‍वास करेंगे, उन के लिये मैं एक आदर्श बनूं।” (1 तीमुथियुस 1:15,16) चाहे हमारी बीती ज़िंदगी कैसी भी क्यों ना रही हो, अगर हम यीशु पर विश्‍वास रखें तो वह हमारे साथ धीरज से पेश आएगा। लेकिन साथ ही वह हमसे यह उम्मीद भी करता है कि हम “मन फिराव के योग्य काम” करें। (प्रेरितों 26:20; रोमियों 2:4) मसीह ने एशिया माइनर की सात कलीसियाओं को जो संदेश भेजे, वे दिखाते हैं कि धीरज धरने के साथ, वह यह भी उम्मीद करता है कि हम अपने व्यवहार में सुधार करें।—प्रकाशितवाक्य, 2 और 3 अध्याय।

आत्मा का फल

7. धीरज और पवित्र आत्मा के बीच क्या संबंध है?

7 गलतियों को लिखी पत्री के 5वें अध्याय में, पौलुस ने शरीर के कामों और आत्मा के फल के बीच फर्क दिखाया। (गलतियों 5:19-23) यहोवा के कई गुणों में से एक है, धीरज। इसलिए इस गुण की शुरूआत परमेश्‍वर से ही होती है और यह उसकी आत्मा का एक फल है। (निर्गमन 34:6,7) जी हाँ, पौलुस ने आत्मा के फलों का जब वर्णन किया तो उनमें चौथा था धीरज और उसके साथ “प्रेम, आनन्द, मेल, . . . कृपा, भलाई, विश्‍वास, नम्रता, और संयम” भी हैं। (गलतियों 5:22,23) इसलिए, जब परमेश्‍वर के सेवक उसकी तरह धीरज दिखाते हैं तो पवित्र आत्मा उन पर काम करती है।

8. धीरज के साथ-साथ आत्मा के दूसरे फल पैदा करने में हमें क्या बात मदद करेगी?

8 लेकिन, इसका मतलब यह नहीं कि यहोवा ज़बरदस्ती किसी पर अपनी आत्मा थोपता है। उसकी आत्मा का खुद पर असर होने देने लिए हममें मन से इच्छा होना ज़रूरी है। (2 कुरिन्थियों 3:17; इफिसियों 4:30) अगर हम अपने हर काम में, परमेश्‍वर की आत्मा के फल पैदा करने की कोशिश करें, तो हम इसे अपनी ज़िंदगी में काम करने देते हैं। शरीर के कामों और आत्मा के फलों की सूची देने के बाद, पौलुस ने आगे कहा: “यदि हम आत्मा के द्वारा जीवित है, तो आत्मा के अनुसार चलें भी। धोखा न खाओ, परमेश्‍वर ठट्ठों में नहीं उड़ाया जाता, क्योंकि मनुष्य जो कुछ बोता है, वही काटेगा। क्योंकि जो अपने शरीर के लिये बोता है, वह शरीर के द्वारा विनाश की कटनी काटेगा; और जो आत्मा के लिये बोता है, वह आत्मा के द्वारा अनन्त जीवन की कटनी काटेगा।” (गलतियों 5:25; 6:7,8) अगर हम अपने अंदर धीरज का गुण पैदा करना चाहते हैं, तो हमें पवित्र आत्मा के ज़रिए मसीहियों में पैदा होनेवाले आत्मा के बाकी फल भी पैदा करने चाहिए।

“प्रेम धीरजवन्त है”

9. किस वजह से शायद पौलुस ने कुरिन्थियों से कहा कि “प्रेम धीरजवन्त है”?

9 प्रेम और धीरज के बीच के खास रिश्‍ते को समझाते हुए, पौलुस ने कहा: “प्रेम धीरजवन्त है।” (1 कुरिन्थियों 13:4) एक बाइबल विद्वान, अल्बर्ट बार्न्ज़ इस बात की ओर संकेत करते हैं कि पौलुस ने कुरिन्थ की मसीही कलीसिया में मौजूद अनबन और झगड़ों को देखते हुए शायद प्रेम और धीरज के खास रिश्‍ते पर ज़ोर दिया। (1 कुरिन्थियों 1:11,12) बार्न्ज़ बताते हैं: “[धीरज के लिए] यहाँ इस्तेमाल किया गया शब्द, उतावलेपन से बिलकुल उलटा है: यह, गुस्से से भरी बातों और विचारों, और चिड़चिड़ेपन से बिलकुल अलग है। यह शब्द मन की ऐसी स्थिति की ओर इशारा करता है, जिसमें एक व्यक्‍ति सताए जाने, गुस्सा दिलाए जाने पर देर तक सहन कर सकता है।” आज भी प्रेम और धीरज की वजह से मसीही कलीसिया की शांति बहुत बढ़ सकती है।

10. (क) किस तरह प्रेम धीरज धरने में हमारी मदद करता है और प्रेरित पौलुस इस बारे में हमें क्या सलाह देता है? (ख) परमेश्‍वर के धीरज और कृपा के बारे में बाइबल के एक विद्वान ने क्या कहा? (फुटनोट देखिए।)

10 “प्रेम धीरजवन्त है, और कृपाल है; प्रेम . . . अपनी भलाई नहीं चाहता, झुंझलाता नहीं।” इसलिए, प्रेम कई तरीकों से हमें धीरज धरने में मदद देता है। * (1 कुरिन्थियों 13:4,5) प्रेम एक-दूसरे की कमियों को सहने और यह याद रखने में हमारी मदद करता है कि हम सभी असिद्ध हैं और कई बार पाप करते हैं। यह दूसरों की भावनाओं का लिहाज़ करने और उनकी गलतियों को माफ करने में हमारी मदद करता है। प्रेरित पौलुस हमें सलाह देता है: “सदा नम्रता और कोमलता के साथ, धैर्यपूर्वक आचरण करो। एक दूसरे की प्रेम से सहते रहो। वह शांति, जो तुम्हें आपस में बाँधती है, उससे उत्पन्‍न आत्मा की एकता को बनाये रखने के लिये हर प्रकार का यत्न करते रहो।”—इफिसियों 4:1-3, ईज़ी-टू-रीड वर्शन।

11. साक्षी जहाँ समूहों में रहते हैं, वहाँ खास तौर पर धीरज धरना क्यों ज़रूरी है?

11 जहाँ कई मसीही, एक-साथ समूहों में रहते हैं, जैसे कि कलीसियाओं, बेथेल घरों, मिशनरी घरों, निर्माण दलों या संस्था के स्कूलों में, वहाँ शांति और खुशी बनाए रखने के लिए ज़रूरी है कि सभी धीरज से काम लें। अलग-अलग शख्सियतों, पसंद-नापसंद, परवरिश की वजह से, और आदर-सत्कार, यही नहीं साफ-सफाई के अलग-अलग तौर-तरीकों की वजह से कई बार परेशानियाँ खड़ी हो सकती हैं। परिवार के बारे में भी यह बात उतनी ही सच है। इसलिए बेहद ज़रूरी है कि हम क्रोध करने में धीमे हों। (नीतिवचन 14:29; 15:18; 19:11) धीरज धरना—इस उम्मीद के साथ सब्र करना कि एक-न-एक दिन हालात बेहतर होंगे, सबके लिए ज़रूरी है।—रोमियों 15:1-6.

धीरज तकलीफें सहने में हमारी मदद करता है

12. तकलीफों के दौरान धीरज धरना क्यों ज़रूरी है?

12 धीरज हमें ऐसे तकलीफदेह हालात का सामना करने में भी मदद करता है, जिन्हें देखकर हमें लगता है कि इनका अंत कभी नहीं होगा या जल्द-से-जल्द कोई हल नहीं निकलेगा। यही बात रेज़ीस के बारे में सच थी, जिसका ज़िक्र हम शुरू में कर चुके हैं। वह यहोवा की सेवा करना छोड़ दे, इसके लिए सालों तक उसकी पत्नी, उसका विरोध करती रही। लेकिन, एक दिन वह रोती हुई, उसके पास आयी और कहा: “मैं जानती हूँ कि यही सच्चाई है। मेरी मदद कीजिए। मुझे बाइबल सीखनी है।” आखिरकार उसकी पत्नी ने बपतिस्मा लिया और एक साक्षी बनी। रेज़ीस कहता है: “यह इस बात का सबूत था कि यहोवा ने उन सालों के दौरान मेरे संघर्ष, धैर्य और सहनशीलता को देखकर मुझे आशीष दी।” उसके धीरज का उसे प्रतिफल मिला।

13. किस बात ने पौलुस को धीरज धरने में मदद दी, और उसकी मिसाल हमें धीरज धरने में कैसे मदद दे सकती है?

13 पहली सदी में, प्रेरित पौलुस हमारे लिए धीरज धरने की एक उम्दा मिसाल था। (2 कुरिन्थियों 6:3-10; 1 तीमुथियुस 1:16) अपनी ज़िंदगी के आखिरी वक्‍त में, पौलुस ने अपने कम-उम्र साथी तीमुथियुस को सलाह देते वक्‍त उसे चेतावनी भी दी कि सभी मसीहियों को परीक्षाओं से गुज़रना पड़ेगा। पौलुस ने खुद अपनी मिसाल दी और ऐसे बुनियादी मसीही गुणों को पैदा करने का सुझाव दिया जो धीरज धरने के लिए ज़रूरी हैं। उसने लिखा: “तू ने उपदेश, चालचलन, मनसा, विश्‍वास, सहनशीलता, प्रेम, धीरज, और सताए जाने, और दुख उठाने में मेरा साथ दिया। और ऐसे दुखों में भी जो अन्ताकिया और इकुनियुम और लुस्त्रा में मुझ पर पड़े थे और और दुखों में भी, जो मैं ने उठाए हैं; परन्तु प्रभु ने मुझे उन सब से छुड़ा लिया। पर जितने मसीह यीशु में भक्‍ति के साथ जीवन बिताना चाहते हैं वे सब सताए जाएंगे।” (2 तीमुथियुस 3:10-12; प्रेरितों 13:49-51; 14:19-22) यह सब सहन करने के लिए, हम सभी को विश्‍वास, प्रेम और धीरज की ज़रूरत है।

धीरज धारण किए हुए

14. पौलुस ने धीरज जैसे ईश्‍वरीय गुणों की तुलना किससे की और उसने कुलुस्से के मसीहियों को क्या सलाह दी?

14 प्रेरित पौलुस ने धीरज और दूसरे ईश्‍वरीय गुणों की तुलना कपड़ों से की, जिन्हें एक मसीही को पहनना चाहिए। मगर इन्हें पहनने से पहले उसे “पुराने मनुष्यत्व” के कामों को उतार फेंकना है। (कुलुस्सियों 3:5-10) पौलुस ने लिखा: “तुम परमेश्‍वर के चुने हुए पवित्र और प्रिय जन हो इसलिए सहानुभूति, दया, नम्रता, कोमलता और धीरज को धारण करो। तुम्हें आपस में जब कभी किसी से कोई कष्ट हो तो एक दूसरे की सह लो और परस्पर एक दूसरे को मुक्‍त भाव से क्षमा कर दो। तुम्हें आपस में एक दूसरे को ऐसे ही क्षमा कर देना चाहिए जैसे परमेश्‍वर ने तुम्हें मुक्‍त भाव से क्षमा कर दिया। इन बातों के अतिरिक्‍त प्रेम को धारण करो। प्रेम ही सब को आपस में बाँधता और परिपूर्ण करता है।”—कुलुस्सियों 3:12-14, ईज़ी-टू-रीड वर्शन।

15. जब मसीही धीरज और दूसरे ईश्‍वरीय गुणों को ‘धारण करते हैं,’ तो इसका नतीजा क्या होता है?

15 जब कलीसिया के सदस्य सहानुभूति, दया, नम्रता, कोमलता, धीरज और प्रेम को ‘धारण करते हैं’, तो वे समस्याओं को सुलझाने और एकता से यहोवा की सेवा में बढ़ते जाने में कामयाब होते हैं। मसीही प्राचीनों को खासकर धीरज धरने की ज़रूरत है। ऐसे कई मौके आ सकते हैं जब उन्हें दूसरे मसीही को ताड़ना देनी पड़े, मगर ऐसा करने के अलग-अलग तरीके हैं। पौलुस ने तीमुथियुस को लिखते वक्‍त बताया कि उसे किस भावना से ऐसा करना चाहिए: “सब प्रकार की सहनशीलता, और शिक्षा के साथ उलाहना दे, और डांट, और समझा।” (2 तीमुथियुस 4:2) जी हाँ, यहोवा की भेड़ों के साथ व्यवहार करते वक्‍त हमेशा धीरज, इज़्ज़त और कोमलता से पेश आना चाहिए।—मत्ती 7:12; 11:28; प्रेरितों 20:28,29; रोमियों 12:10.

“सब के साथ धीरज रखो”

16. “सब के साथ धीरज” धरने का क्या नतीजा निकल सकता है?

16 इंसानों के लिए यहोवा ने जैसा धीरज दिखाया है, उसे देखकर यह हमारा फर्ज़ बनता है कि हम भी ‘सब के साथ धीरज रखें।’ (1 थिस्सलुनीकियों 5:14, ईज़ी-टू-रीड वर्शन) इसका मतलब है कि हमारे परिवार के लोग, पड़ोसी, साथ काम करनेवाले या पढ़नेवाले लोग जो सच्चाई में नहीं हैं, उनकी तरफ हम सहनशील हों। कई बार साक्षियों ने बरसों तक साथ काम करनेवालों या साथ पढ़नेवालों के ताने सहे या उनके विरोध का भी सामना किया। साक्षियों की ऐसी सहनशीलता की वजह से लोगों के मन से बहुत-सी गलत धारणाएँ मिटी हैं। (कुलुस्सियों 4:5,6) प्रेरित पतरस ने लिखा: “अन्यजातियों में तुम्हारा चालचलन भला हो; इसलिये कि जिन जिन बातों में वे तुम्हें कुकर्मी जानकर बदनाम करते हैं, वे तुम्हारे भले कामों को देखकर; उन्हीं के कारण कृपा दृष्टि के दिन परमेश्‍वर की महिमा करें।”—1 पतरस 2:12.

17. हम यहोवा जैसा प्रेम और धीरज कैसे दिखा सकते हैं, और हमें ऐसा क्यों करना चाहिए?

17 यहोवा के धीरज से करोड़ों लोगों का उद्धार होगा। (2 पतरस 3:9,15) अगर हम यहोवा जैसा प्रेम और धीरज दिखाते हैं, तो हम बड़े सब्र से परमेश्‍वर के राज्य की खुशखबरी लोगों को सुनाते रहेंगे और दूसरों को मसीह के शासन के अधीन होना सिखाएँगे। (मत्ती 28:18-20; मरकुस 13:10) अगर हम प्रचार करना छोड़ दें, तो हम यह दिखाएँगे कि हमारे हिसाब से यहोवा का धीरज अब खत्म होना चाहिए। ऐसा करके हम परमेश्‍वर के धीरज धरने के मकसद को भूल जाएँगे, जो यह है कि लोग मन फिराव करके सही राह पर आ जाएँ।—रोमियों 2:4.

18. कुलुस्से के मसीहियों के लिए पौलुस ने क्या प्रार्थना की?

18 एशिया माइनर के कुलुस्से नगर के मसीहियों के नाम पत्री में, पौलुस ने लिखा: “इसी लिये जिस दिन से यह सुना है, हम भी तुम्हारे लिये यह प्रार्थना करने और बिनती करने से नहीं चूकते कि तुम सारे आत्मिक ज्ञान और समझ सहित परमेश्‍वर की इच्छा की पहिचान में परिपूर्ण हो जाओ। ताकि तुम्हारा चाल-चलन प्रभु के योग्य हो, और वह सब प्रकार से प्रसन्‍न हो, और तुम में हर प्रकार के भले कामों का फल लगे, और परमेश्‍वर की पहिचान में बढ़ते जाओ। और उस की महिमा की शक्‍ति के अनुसार सब प्रकार की सामर्थ से बलवन्त होते जाओ, यहां तक कि आनन्द के साथ हर प्रकार से धीरज और सहनशीलता दिखा सको।”—कुलुस्सियों 1:9-11.

19, 20. (क) यहोवा का धीरज धरना हमारे लिए एक परीक्षा ना बन जाए, इसके लिए हम क्या कर सकते हैं? (ख) हमारे धीरज धरने से क्या-क्या लाभ होंगे?

19 यहोवा का धीरज धरते रहना या सहनशीलता दिखाना हमारे लिए एक परीक्षा साबित नहीं होगा, अगर हम “परमेश्‍वर की इच्छा की पहिचान में परिपूर्ण” हों, और उसकी इच्छा है कि “सब मनुष्यों का उद्धार हो; और वे सत्य को भली भांति पहचान लें।” (1 तीमुथियुस 2:4) हम “हर प्रकार के भले कामों का फल” पैदा करने, खासकर “राज्य का यह सुसमाचार” प्रचार करने में लगे रहेंगे। (मत्ती 24:14) अगर हम वफादारी से ऐसा करते रहें, तो यहोवा हमें “सब प्रकार की सामर्थ से बलवन्त” करेगा और इस काबिल बनाएगा कि हम “हर प्रकार से धीरज और सहनशीलता दिखा” सकें। ऐसा करने से, हमारा “चाल-चलन प्रभु के योग्य” होगा, और हमें इस बात से शांति मिलेगी कि हम उसे “सब प्रकार से प्रसन्‍न” कर रहे हैं।

20 आइए हम सभी यह पक्का विश्‍वास रखें कि यहोवा अपनी बुद्धि और समझ के कारण आज तक धीरज दिखा रहा है। इसी धीरज की वजह से हमारा और उन सभी का उद्धार होगा जो हमारे प्रचार और सिखाने पर ध्यान लगाते हैं। (1 तीमुथियुस 4:16) प्रेम, कृपा, भलाई, नम्रता और संयम जैसे आत्मा के फल पैदा करने से, हमें आनंद के साथ धीरज धरने में मदद मिलेगी। हम अपने परिवार और कलीसिया में अपने भाई-बहनों के साथ शांति से रहने के और ज़्यादा काबिल बन सकेंगे। धीरज धरने से हम अपने साथ काम करनेवालों या पढ़नेवालों के साथ भी सहनशील होंगे। और हमारे धीरज धरने का एक मकसद होगा। यह मकसद है, पापियों को बचाना और धीरज धरनेवाले परमेश्‍वर यहोवा की महिमा करना।

[फुटनोट]

^ पौलुस के इस वचन, “प्रेम धीरजवन्त है, और कृपाल है,” के बारे में बाइबल विद्वान गॉर्डन डी. फी लिखते हैं: “पौलुस की धर्मशिक्षा के मुताबिक ये [धीरज और कृपा], इंसान की तरफ परमेश्‍वर के रवैए के दो पहलू हैं (रोमि. 2:4 से तुलना करें)। एक तरफ, परमेश्‍वर ने प्यार और सहनशीलता दिखायी है क्योंकि उसने इंसान के विद्रोह के खिलाफ अपने क्रोध को रोक रखा है; और दूसरी तरफ, हज़ारों बार दया दिखाकर उसने हमें दिखाया है कि वह कृपालु है। पौलुस का प्रेम का वर्णन, परमेश्‍वर के इन दो गुणों से शुरू होता है, जिसने मसीह के ज़रिए दिखाया है कि जो लोग असल में उसके दंड के लायक हैं, उनके साथ वह धीरज और कृपा से पेश आता है।”

क्या आप समझा सकते हैं?

• धीरज धरने में मसीह हमारे लिए बेहतरीन मिसाल कैसे है?

• क्या बात धीरज का गुण पैदा करने में हमारी मदद करेगी?

• धीरज से परिवारों, समूहों में रहनेवाले साक्षियों और प्राचीनों को कैसे मदद मिलती है?

• हमारे धीरज धरने से कैसे हमें और दूसरों को भी फायदे होंगे?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 15 पर तसवीर]

ज़बरदस्त दबाव में भी, यीशु अपने चेलों के साथ धीरज से पेश आया

[पेज 16 पर तसवीर]

मसीही ओवरसियरों से गुज़ारिश की गयी है कि अपने भाइयों के साथ बर्ताव करने में, धीरज धरने की एक अच्छी मिसाल कायम करें

[पेज 17 पर तसवीर]

अगर हम यहोवा के जैसा प्रेम और धीरज दिखाते हैं, तो हम सुसमाचार का प्रचार करना जारी रखेंगे

[पेज 18 पर तसवीर]

पौलुस ने प्रार्थना की कि मसीही “आनन्द के साथ . . . धीरज” धरें