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यहोवा धीरज धरनेवाला परमेश्‍वर है

यहोवा धीरज धरनेवाला परमेश्‍वर है

यहोवा धीरज धरनेवाला परमेश्‍वर है

“यहोवा, ईश्‍वर दयालु और अनुग्रहकारी, कोप करने में धीरजवन्त, और अति करुणामय।”निर्गमन 34:6.

1, 2. (क) बीते ज़मानों में यहोवा के धीरज धरने से किसको फायदा हुआ? (ख) शब्द “धीरज” का क्या मतलब है?

 नूह के ज़माने के लोग, मूसा के साथ वीराने में सफर करनेवाले इस्राएली, यीशु के ज़माने के यहूदी—ये सारे लोग अलग-अलग हालात में जी रहे थे। मगर इन सभी को यहोवा के दया-भरे एक गुण से फायदा हुआ। वह गुण है धीरज। इस गुण की वजह से कई लोगों की जाने बचीं। और यहोवा के धीरज धरने से हमारी भी जान बच सकती है।

2 धीरज धरने का क्या मतलब है? यहोवा कब और क्यों धीरज दिखाता है? “धीरज” की यह परिभाषा दी गयी है, “अन्याय झेलते या गुस्सा दिलानेवाले हालात का सामना करते वक्‍त सब्र रखना और बिगड़े रिश्‍ते के सुधरने की उम्मीद ना छोड़ना।” इससे पता चलता है कि धीरज दिखाने का एक मकसद होता है। यह गुण दिखानेवाला, खास तौर पर उस व्यक्‍ति की भलाई चाहता है जिसकी वजह से उसे दुःख पहुँचा है। लेकिन, धीरज धरने का मतलब यह नहीं है कि हम उस व्यक्‍ति के बुरे कामों को अनदेखा करते हैं। जब धीरज धरने का मकसद पूरा हो जाता है या जब ऐसे हालात पैदा हो जाते हैं जिनमें और ज़्यादा सहन करने से कुछ फायदा नहीं होगा तब धीरज धरना खत्म हो जाता है।

3. यहोवा के धीरज धरने का क्या मकसद रहा है, और यह धीरज कब खत्म हो जाएगा?

3 यह सच है कि इंसानों में भी धीरज का गुण हो सकता है, मगर इस गुण को ज़ाहिर करने की सबसे श्रेष्ठ मिसाल यहोवा ने कायम की है। पाप के कारण, जब से यहोवा और इंसानों के बीच का रिश्‍ता बिगड़ा है, तब से हमारे सिरजनहार ने धीरज धरते हुए एक ऐसे ज़रिए का इंतज़ाम किया है, जिसकी मारफत पश्‍चाताप करनेवाले इंसान उसके साथ अपने रिश्‍ते को सुधार सकें। (2 पतरस 3:9; 1 यूहन्‍ना 4:10) लेकिन जब परमेश्‍वर के धीरज धरने का मकसद पूरा हो जाएगा, तब वह पाप के रास्ते पर चलनेवालों और पछतावा न दिखानेवालों के खिलाफ कार्यवाही करेगा और इस दुष्ट संसार का अंत करेगा।—2 पतरस 3:7.

परमेश्‍वर के खास गुणों के साथ मेल खानेवाला गुण

4. (क) इब्रानी शास्त्र में धीरज धरने का विचार कैसे बताया जाता है? (फुटनोट भी देखिए।) (ख) भविष्यवक्‍ता नहूम यहोवा का वर्णन कैसे करता है, और इससे यहोवा के धीरज के बारे में क्या पता चलता है?

4 इब्रानी शास्त्र में, धीरज के लिए दो इब्रानी शब्द इस्तेमाल किए गए हैं, जिनका शाब्दिक अर्थ है, “नथनों की लंबाई।” न्यू वर्ल्ड ट्रांस्लेशन में इन दो शब्दों का अनुवाद “क्रोध करने में धीमा” किया गया है। * परमेश्‍वर के धीरज के बारे में बताते हुए भविष्यवक्‍ता नहूम ने कहा: “यहोवा विलम्ब से क्रोध करनेवाला और महाशक्‍तिशाली है, और दोषी को यहोवा दण्ड दिए बिना कदापि न छोड़ेगा।” (नहूम 1:3, NHT) तो फिर, यहोवा का धीरज, कमज़ोरी की निशानी नहीं है और ऐसा भी नहीं कि वह सदा तक धीरज धरता रहेगा। सर्वशक्‍तिमान परमेश्‍वर जहाँ एक तरफ विलम्ब से क्रोध करता है, वहीं वह महाशक्‍तिशाली भी है। इससे पता चलता है कि वह सोच-समझकर, किसी खास मकसद से खुद को रोके हुए है और धीरज धर रहा है। उसके पास दंड देने की ताकत है, मगर वह जानबूझकर खुद को तुरंत ऐसा करने से रोके हुए है, ताकि पापी को बदलने का मौका दे सके। (यहेजकेल 18:31,32) इसलिए यहोवा का धीरज, असल में प्रेम दिखाने का उसका एक तरीका है, जिससे पता चलता है कि वह अपनी सामर्थ या ताकत का इस्तेमाल बुद्धि से करता है।

5. यहोवा का धीरज उसके न्याय के साथ कैसे मेल खाता है?

5 यहोवा का धीरज, उसके न्याय और धार्मिकता के गुणों के साथ भी मेल खाता है। उसने यह कहकर खुद को मूसा पर प्रकट किया: “यहोवा, ईश्‍वर दयालु और अनुग्रहकारी, कोप करने में धीरजवन्त, और अति करुणामय और सत्य।” (निर्गमन 34:6) कई साल बाद, मूसा ने यहोवा की स्तुति में यह गीत गाया: “उसकी सारी गति न्याय की है। वह सच्चा ईश्‍वर है, उस में कुटिलता नहीं, वह धर्मी और सीधा है।” (व्यवस्थाविवरण 32:4) जी हाँ, यहोवा अपनी दया, सीधाई, धीरज और न्याय, जैसे गुणों को एक-साथ ज़ाहिर करते हुए अपनी इच्छा पूरी करता है।

जलप्रलय से पहले यहोवा का धीरज

6. यहोवा ने आदम-हव्वा की संतान की खातिर धीरज धरने का क्या अनोखा सबूत दिया?

6 अदन में आदम और हव्वा की बगावत से, प्यार करनेवाले सिरजनहार यहोवा के साथ उनका अनमोल रिश्‍ता हमेशा-हमेशा के लिए खत्म हो गया। (उत्पत्ति 3:8-13,23,24) परमेश्‍वर से अलग हो जाने का बुरा असर उनकी संतान पर पड़ा और उन्हें विरासत में पाप, असिद्धता और मौत मिली। (रोमियों 5:17-19) पहले इंसानी जोड़े ने जानबूझकर पाप किया था, मगर फिर भी परमेश्‍वर ने उन्हें बच्चे पैदा करने की इजाज़त दी। इसके बाद, प्यार की खातिर उसने आदम और हव्वा के बच्चों के लिए एक ऐसा इंतज़ाम किया जिससे वे फिर से उसके साथ मेल-मिलाप कर सकें। (यूहन्‍ना 3:16,36) प्रेरित पौलुस ने इसे समझाते हुए लिखा: “परमेश्‍वर हम पर अपने प्रेम की भलाई इस रीति से प्रगट करता है, कि जब हम पापी ही थे तभी मसीह हमारे लिये मरा। सो जब कि हम, अब उसके लोहू के कारण धर्मी ठहरे, तो उसके द्वारा क्रोध से क्यों न बचेंगे? क्योंकि बैरी होने की दशा में तो उसके पुत्र की मृत्यु के द्वारा हमारा मेल परमेश्‍वर के साथ हुआ फिर मेल हो जाने पर उसके जीवन के कारण हम उद्धार क्यों न पाएंगे?”—रोमियों 5:8-10.

7. यहोवा ने जलप्रलय से पहले धीरज कैसे दिखाया और उस वक्‍त की पीढ़ी का विनाश किया जाना न्यायपूर्ण क्यों था?

7 नूह के दिनों में यहोवा का धीरज नज़र आया। जलप्रलय आने के सौ से भी ज़्यादा साल पहले, “परमेश्‍वर ने पृथ्वी पर जो दृष्टि की तो क्या देखा, कि वह बिगड़ी हुई है; क्योंकि सब प्राणियों ने पृथ्वी पर अपनी अपनी चाल चलन बिगाड़ ली थी।” (उत्पत्ति 6:12) फिर भी, कुछ समय तक यहोवा इंसानों के साथ धीरज से पेश आया। उसने कहा: “मेरा आत्मा मनुष्य से सदा लों विवाद करता न रहेगा, क्योंकि मनुष्य भी शरीर ही है: उसकी आयु एक सौ बीस वर्ष की होगी।” (उत्पत्ति 6:3) इन 120 सालों के दौरान, नूह ने अपना परिवार बढ़ाया और जब परमेश्‍वर ने आदेश दिया तो उसने एक जहाज़ बनाया और अपने ज़माने के लोगों को आनेवाले जलप्रलय के बारे में चेतावनी भी दी। इस बारे में प्रेरित पतरस ने लिखा: “परमेश्‍वर नूह के दिनों में धीरज धरकर ठहरा रहा, और वह जहाज बन रहा था, जिस में बैठकर थोड़े लोग अर्थात्‌ आठ प्राणी पानी के द्वारा बच गए।” (1 पतरस 3:20) यह सच है कि नूह के परिवार के अलावा किसी ने भी उसके प्रचार पर “ध्यान नहीं दिया।” (मत्ती 24:38,39, NW) मगर, नूह को जहाज़ बनाने का आदेश देकर और कई दशकों तक उसे “धर्म के प्रचारक” की हैसियत से इस्तेमाल कर यहोवा ने उस ज़माने के लोगों को पूरा-पूरा मौका दिया कि वे हिंसा का मार्ग छोड़ दें और पछतावा दिखाकर उसकी सेवा करें। (2 पतरस 2:5; इब्रानियों 11:7) यह सब कर लेने के बाद भी जब वे लोग नहीं सुधरे तो यहोवा का उस दुष्ट पीढ़ी को विनाश करना पूरी तरह न्यायपूर्ण था।

इस्राएल के साथ धीरज की बढ़िया मिसाल

8. इस्राएल जाति के लिए यहोवा ने कैसे धीरज दिखाया?

8 लेकिन इस्राएल के साथ यहोवा ने 120 साल से कहीं ज़्यादा समय तक धीरज से काम लिया। इस्राएल, 1,500 से ज़्यादा साल तक परमेश्‍वर की चुनी हुई जाति बना रहा। इस दौरान, शायद ही कोई ऐसा समय रहा होगा जब इस्राएलियों ने परमेश्‍वर के धीरज को उसकी आखिरी हद तक ना परखा हो। मिस्र से छुटकारा पाते वक्‍त बड़े-बड़े चमत्कार देखने के बस कुछ ही हफ्तों बाद वे मूरतों की पूजा करके अपने उद्धारकर्ता का घोर अपमान करने लगे। (निर्गमन 32:4; भजन 106:21) इसके बाद के दशकों के दौरान, इस्राएलियों ने वीराने में यहोवा से मिलनेवाले खाने को लेकर शिकायत की, मूसा और हारून के खिलाफ कुड़कुड़ाए, यहोवा के खिलाफ बातें की और दूसरी जातियों के साथ व्यभिचार किया, और-तो-और उनके साथ बाल-उपासना भी की। (गिनती 11:4-6; 14:2-4; 21:5; 25:1-3; 1 कुरिन्थियों 10:6-11) यहोवा अगर अपने लोगों का नामो-निशान वहीं मिटा देता तो कुछ गलत न करता, मगर फिर भी उसने धीरज धरा।—गिनती 14:11-21.

9. न्यायियों और राजाओं के ज़माने में यहोवा ने कैसे दिखाया कि वह धीरज धरनेवाला परमेश्‍वर है?

9 न्यायियों के ज़माने में, इस्राएली बार-बार मूर्तिपूजा में पड़े। जब वे ऐसा करते, तो यहोवा उन्हें शत्रुओं के सामने त्याग देता। लेकिन जब वे पछतावा दिखाते और उसे मदद के लिए पुकारते, तो वह उनके साथ धीरज से पेश आता और उन्हें छुटकारा दिलाने के लिए न्यायियों को खड़ा करता। (न्यायियों 2:17,18) फिर एक लंबे अरसे तक इस्राएल पर राजाओं ने राज किया। इस दौरान, बहुत कम ऐसे राजा हुए जिन्होंने तन-मन से सिर्फ यहोवा की उपासना की। मगर ऐसे वफादार राजाओं के राज में भी, आम लोग अकसर सच्ची उपासना में झूठे देवी-देवताओं की उपासना को मिला देते थे। जब यहोवा, लोगों को उनके विश्‍वासघात के बुरे अंजाम के बारे में बताने के लिए भविष्यवक्‍ताओं को खड़ा करता था, तब लोग उनकी सुनने के बजाय भ्रष्ट याजकों और झूठे भविष्यवक्‍ताओं की बातें सुनना ज़्यादा पसंद करते थे। (यिर्मयाह 5:31; 25:4-7) यही नहीं, इस्राएलियों ने यहोवा के वफादार भविष्यवक्‍ताओं को सताया और कुछ को तो मार भी डाला। (2 इतिहास 24:20,21; प्रेरितों 7:51,52) मगर फिर भी, यहोवा उनके साथ धीरज से पेश आता रहा।—2 इतिहास 36:15.

यहोवा का धीरज खत्म नहीं हुआ

10. यहोवा का धीरज कब अपनी हद तक पहुँच गया?

10 लेकिन, इतिहास गवाह है कि यहोवा सदा तक धीरज धरता नहीं रहेगा। सा.यु.पू. 740 में, उसने अश्‍शूरियों को इस्राएल के दस गोत्रों के राज्य पर कब्ज़ा करने और उसके लोगों को बंधुआ बनाकर ले जाने दिया। (2 राजा 17:5,6) और उसके बाद की सदी के आखिरी सालों में, उसने यहूदा के दो गोत्रों को बाबुलियों के हाथों बरबाद होने दिया। बाबुलियों ने यहूदा पर चढ़ाई करके यरूशलेम और उसके मंदिर को तबाह कर दिया।—2 इतिहास 36:16-19.

11. दंड देते वक्‍त भी यहोवा ने कैसे धीरज दिखाया?

11 लेकिन, इस्राएल और यहूदा को दंड देते वक्‍त भी, यहोवा धीरज के गुण को नहीं भूला। अपने भविष्यवक्‍ता यिर्मयाह के ज़रिए, यहोवा ने बताया कि उसके चुने हुए लोग अपने देश में फिर से आ बसेंगे। यहोवा ने कहा: “बाबुल के सत्तर वर्ष पूरे होने पर मैं तुम्हारी सुधि लूंगा, और अपना यह मनभावना वचन कि मैं तुम्हें इस स्थान में लौटा ले आऊंगा, पूरा करूंगा। मैं तुम्हें मिलूंगा, . . . और बंधुआई से लौटा ले आऊंगा; और तुम को उन सब जातियों और स्थानों में से जिन में मैं ने तुम को बरबस निकाल दिया है, और तुम्हें इकट्ठा करके इस स्थान में लौटा ले आऊंगा।”—यिर्मयाह 29:10,14.

12. मसीहा के आने की तैयारी में शेष बचे हुए यहूदियों का अपने देश लौटना कैसे परमेश्‍वर की ओर से था?

12 बंधुआ यहूदियों में से शेष लोग सचमुच यहूदा लौटे और यरूशलेम में मंदिर बनाकर यहोवा की उपासना दोबारा शुरू की। ये शेष बचे यहूदी, यहोवा के उद्देश्‍य को पूरा करने में ऐसे होते जैसे “यहोवा की ओर से पड़नेवाली ओस” जो ताज़गी और खुशहाली लाती है। वे “वनपशुओं में सिंह” के जैसे निडर और ताकतवर भी होते। (मीका 5:7,8) आयत 8 के शब्द, शायद मक्काबियों के वक्‍त में पूरे हुए, जब मक्काबी परिवार की अगुवाई में यहूदियों ने वादा किए हुए देश से दुश्‍मनों को खदेड़ दिया और अपवित्र किए गए मंदिर को शुद्ध करके दोबारा समर्पित किया। इस तरह, वह देश और उसका मंदिर सुरक्षित रहा ताकि वफादार यहूदियों में से दूसरे शेष लोग उस घड़ी के लिए तैयार रहते, जब परमेश्‍वर का पुत्र, मसीहा बनकर वहाँ प्रकट होता।—दानिय्येल 9:25; लूका 1:13-17, 67-79; 3:15,21,22.

13. अपने बेटे के कातिल यहूदियों के साथ यहोवा कैसे धीरज से पेश आता रहा?

13 यहूदियों ने यहोवा परमेश्‍वर के पुत्र को जान से मार डाला, मगर फिर भी वह साढ़े तीन साल तक और उनके साथ धीरज से पेश आता रहा। यहोवा ने इस दौरान, सिर्फ उन्हीं को इब्राहीम के आत्मिक वंश का भाग बनने के लिए बुलाए जाने का एकमात्र मौका दिया। (दानिय्येल 9:27) * सा.यु. 36 से पहले और उसके बाद, कुछ यहूदियों ने इस बुलावे को स्वीकार किया। और जैसे पौलुस ने बाद में कहा, इस तरह “कुछ व्यक्‍ति शेष हैं जिनको परमेश्‍वर ने अपने अनुग्रह से चुना है।”—रोमियों 11:5, नयी हिन्दी बाइबिल।

14. (क) सामान्य युग 36 में, इब्राहीम के आत्मिक वंश में शामिल होने का सुनहरा मौका किसे दिया गया? (ख) आत्मिक इस्राएल के सदस्यों को यहोवा ने जिस तरीके से चुना है, उसके बारे में पौलुस ने अपनी भावनाएँ कैसे ज़ाहिर कीं?

14 सामान्य युग 36 में, इब्राहीम के आत्मिक वंश में शामिल होने का सुनहरा मौका उन लोगों को दिया गया जो न तो जन्म से न ही धर्म-परिवर्तन करके यहूदी बने थे। जिन लोगों ने इस बुलावे को स्वीकार किया, उन्हें भी यहोवा के अपात्र अनुग्रह और धीरज से फायदा हुआ। (गलतियों 3:26-29; इफिसियों 2:4-7) आत्मिक इस्राएल की कुल संख्या को पूरा करने के लिए यहोवा ने धीरज और दया दिखाकर, अपनी बुद्धि ज़ाहिर की और अपना उद्देश्‍य पूरा किया है। परमेश्‍वर की ऐसी बुद्धि के लिए पौलुस ने गहरी कदरदानी और आश्‍चर्य से भरकर कहा: “आहा! परमेश्‍वर का धन और बुद्धि और ज्ञान क्या ही गंभीर है! उसके विचार कैसे अथाह, और उसके मार्ग कैसे अगम हैं!”—रोमियों 11:25,26,33; गलतियों 6:15,16.

अपने नाम की खातिर धीरज धरना

15. परमेश्‍वर के धीरज धरने की सबसे बड़ी वजह क्या है, और किस सवाल का जवाब दिए जाने के लिए वक्‍त की ज़रूरत थी?

15 यहोवा धीरज क्यों धरता है? सबसे बड़ी वजह यह है कि वह अपने पवित्र नाम को रोशन करना चाहता है और यह साबित करना चाहता है कि वही इस विश्‍व पर हुकूमत करने का सच्चा हकदार है। (1 शमूएल 12:20-22) शैतान ने यह मसला खड़ा किया कि यहोवा अपने अधिकार का इस्तेमाल सही तरीके से नहीं करता और इस तरह उसने यहोवा की नीयत पर सवाल उठाया। सारी सृष्टि के सामने इस सवाल का संतोषजनक जवाब दिए जाने के लिए वक्‍त की ज़रूरत थी। (अय्यूब 1:9-11; 42:2,5,6) इसलिए जब मिस्र में उसके लोगों पर ज़ुल्म ढाए जा रहे थे, तब यहोवा ने फिरौन से कहा: “मैं ने इसी कारण तुझे बनाए रखा है, कि तुझे अपना सामर्थ्य दिखाऊं, और अपना नाम सारी पृथ्वी पर प्रसिद्ध करूं।”—निर्गमन 9:16.

16. (क) यहोवा के धीरज धरने से कैसे उसके नाम के लिए लोग तैयार करना मुमकिन हुआ? (ख) यहोवा का नाम कैसे पवित्र किया जाएगा और उसकी हुकूमत कैसे बुलंद की जाएगी?

16 प्रेरित पौलुस ने, फिरौन से कहे गए यहोवा के इन्हीं शब्दों का हवाला दिया जब वह समझा रहा था कि परमेश्‍वर के पवित्र नाम की महिमा करने में उसके धीरज की क्या अहमियत है। फिर इसके बाद, पौलुस ने लिखा: “परमेश्‍वर ने अपना क्रोध दिखाने और अपनी सामर्थ प्रगट करने की इच्छा से क्रोध के बरतनों की, जो विनाश के लिये तैयार किए गए थे बड़े धीरज से सही। और दया के बरतनों पर जिन्हें उस ने महिमा के लिये पहिले से तैयार किया, अपने महिमा के धन को प्रगट करने की इच्छा की? अर्थात्‌ हम पर जिन्हें उस ने न केवल यहूदियों में से, बरन अन्यजातियों में से भी बुलाया। जैसा वह होशे की पुस्तक में भी कहता है, कि जो मेरी प्रजा न थी, उन्हें मैं अपनी प्रजा कहूंगा, और जो प्रिया न थी, उसे प्रिया कहूंगा।” (रोमियों 9:17,22-25) धीरज धरने की वजह से, यहोवा सब देशों में से “अपने नाम के लिये एक लोग” निकाल सका है। (प्रेरितों 15:14) ये ‘पवित्र लोग’ अपने मुखिया, यीशु मसीह के अधीन उस राज्य के वारिस हैं, जिसके ज़रिए यहोवा अपने महान नाम को पवित्र करेगा और सारे जहान पर अपनी हुकूमत को बुलंद करेगा।—दानिय्येल 2:44; 7:13,14,27; प्रकाशितवाक्य 4:9-11; 5:9,10.

यहोवा का धीरज उद्धार दिलाता है

17, 18. (क) क्या करने से हम अनजाने में ही यहोवा के धीरज धरने को गलत ठहराएँगे? (ख) यहोवा के धीरज को किस नज़र से देखने की हमें सलाह दी गयी है?

17 इंसान के पहली बार पाप के दलदल में गिरने से लेकर आज तक, यहोवा ने दिखाया है कि वह धीरज धरनेवाला परमेश्‍वर है। जलप्रलय से पहले उसके धीरज की वजह से इतनी मोहलत दी गयी कि सभी को आगाह किया जाए और उद्धार का ज़रिया तैयार हो सके। लेकिन एक ऐसा वक्‍त आया जब उसके धीरज धरने की हद खत्म हुई और तब जलप्रलय आ गया। वैसे ही आज भी, यहोवा बहुत बड़े पैमाने पर धीरज दिखा रहा है और उसका धीरज आज कई लोगों की उम्मीद से कहीं ज़्यादा वक्‍त तक चला है। लेकिन, इस वजह से हमें हिम्मत नहीं हारनी चाहिए। अगर हम हारकर बैठ गए तो ऐसा होगा कि हम परमेश्‍वर के धीरज धरने को गलत ठहरा रहे हैं। पौलुस ने पूछा: “क्या तू उस की कृपा, और सहनशीलता, और धीरजरूपी धन को तुच्छ जानता है? और क्या यह नहीं समझता, कि परमेश्‍वर की कृपा तुझे मन फिराव को सिखाती है?”—रोमियों 2:4.

18 हममें से कोई नहीं जानता कि हमें किस हद तक परमेश्‍वर के धीरज की ज़रूरत है, ताकि हम यकीन के साथ कह सकें कि वह हमसे खुश होगा और हमारा उद्धार करेगा। पौलुस हमें सलाह देता है कि हम “डरते और कांपते हुए अपने अपने उद्धार का कार्य्य पूरा करते जा[एँ]।” (फिलिप्पियों 2:12) प्रेरित पतरस ने अपने संगी मसीहियों को लिखा: “प्रभु अपनी प्रतिज्ञा के विषय में देर नहीं करता, जैसी देर कितने लोग समझते हैं; पर तुम्हारे विषय में धीरज धरता है, और नहीं चाहता, कि कोई नाश हो; बरन यह कि सब को मन फिराव का अवसर मिले।” (तिरछे टाइप हमारे।)—2 पतरस 3:9.

19. यहोवा के धीरज से हम कैसे फायदा पा सकते हैं?

19 इसलिए, हम कभी-भी यहोवा के काम करने के तरीके से बेचैन न हों। इसके बजाय, आइए हम पतरस की आगे की सलाह को मानें और ‘हमारे प्रभु के धीरज को उद्धार समझें।’ किसका उद्धार? हमारा और उन अनगिनित लोगों का उद्धार जिन्हें अभी “राज्य का . . . सुसमाचार” सुनाया जाना बाकी है। (2 पतरस 3:15; मत्ती 24:14) इस तरह हम, धीरज दिखाने में यहोवा की उदारता की दिल से कदर करेंगे और हमें प्रेरणा मिलेगी कि दूसरों के साथ व्यवहार करते वक्‍त हम भी धीरज दिखाएँ।

[फुटनोट]

^ इब्रानी भाषा में, “नाक” या “नथने” के लिए शब्द (आफ) को अकसर लाक्षणिक भाषा में क्रोध के लिए इस्तेमाल किया जाता है। यह इसलिए क्योंकि क्रोध करनेवाले की साँस तेज़ी से चलती है या वह नथनों से फुफकारता है।

^ इस भविष्यवाणी के बारे में और जानकारी के लिए, यहोवा के साक्षियों द्वारा प्रकाशित दानिय्येल की भविष्यवाणी पर ध्यान दें! किताब के पेज 191-4 देखिए।

क्या आप समझा सकते हैं?

• बाइबल में दिए गए शब्द “धीरज” का क्या मतलब है?

• यहोवा ने जलप्रलय से पहले, बाबुल की बंधुआई के बाद और पहली सदी में कैसे धीरज दिखाया?

• किन ज़रूरी कारणों से यहोवा ने धीरज दिखाया है?

• यहोवा के धीरज धरने को हमें किस नज़र से देखना चाहिए?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 9 पर तसवीर]

जलप्रलय से पहले यहोवा के धीरज से, लोगों को पश्‍चाताप करने का पूरा-पूरा मौका मिला

[पेज 10 पर तसवीर]

बाबुल गिरने के बाद, यहूदियों को यहोवा के धीरज से फायदा हुआ

[पेज 11 पर तसवीर]

पहली सदी में, यहूदी और गैर-यहूदी दोनों को यहोवा के धीरज से फायदा हुआ

[पेज 12 पर तसवीरें]

आज मसीही, यहोवा के धीरज का पूरा-पूरा फायदा उठा रहे हैं