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यहोवा हमको अपने दिन गिनना सिखाता है

यहोवा हमको अपने दिन गिनना सिखाता है

यहोवा हमको अपने दिन गिनना सिखाता है

“हमको अपने दिन गिनना सिखा, कि हम बुद्धि से भरा मन पाएं।”भजन 90:12, NHT.

1. यहोवा से हमारा यह याचना करना क्यों सही होगा कि वह हमें “अपने दिन गिनना” सिखाए?

 यहोवा परमेश्‍वर, हमारा सिरजनहार और जीवनदाता है। (भजन 36:9; प्रकाशितवाक्य 4:11) इसलिए उसे छोड़ हमें कोई और नहीं सिखा सकता कि हम अपनी ज़िंदगी को बुद्धिमानी से कैसे बिताएँ। भजनहार का परमेश्‍वर से यह याचना करना बिलकुल सही था: “हमको अपने दिन गिनना सिखा, कि हम बुद्धि से भरा मन पाएं।” (भजन 90:12, NHT) यह याचना हमें भजन 90 में मिलती है और यह पूरा भजन वाकई हमारे ध्यान देने के लायक है। लेकिन इससे पहले, आइए हम ईश्‍वर-प्रेरणा से लिखे इस गीत का सार देखें।

2. (क) भजन 90 को किसने लिखा और शायद कब लिखा? (ख) भजन 90 के मुताबिक हमें अपनी ज़िंदगी को किस नज़र से देखना चाहिए?

2 भजन 90 के उपरिलेख के मुताबिक यह “परमेश्‍वर के जन मूसा की प्रार्थना” है। मूसा ने शायद यह भजन, इस्राएलियों के मिस्र से छूटने के बाद लिखा हो। क्योंकि इसमें इंसान के जीवन की नश्‍वरता पर ज़ोर दिया गया है, इसलिए कहा जा सकता है कि इसे वीराने में 40 साल के सफर के दौरान लिखा गया था, जब विश्‍वास न दिखानेवाले हज़ारों इस्राएलियों की मौत से एक अविश्‍वासी पीढ़ी खत्म हो गयी थी। (गिनती 32:9-13) चाहे इसे कभी-भी क्यों ना लिखा गया हो, यह भजन दिखाता है कि असिद्ध इंसानों की ज़िंदगी सिर्फ चार दिन की है। ज़ाहिर है कि हमें अपनी ज़िंदगी का हर दिन अनमोल समझकर बुद्धिमानी से इस्तेमाल करना चाहिए।

3. भजन 90 का सार क्या है?

3 भजन 90 की 1 से 6 आयत, यहोवा को हमारा अनन्तकाल का निवासस्थान कहती है। छाया की तरह ढलती ज़िंदगी को यहोवा की मर्ज़ी के मुताबिक बिताने के लिए हमें क्या करना चाहिए, यह 7 से 12 आयत बताती है। और 13 से 17 आयत में, यह बताया गया है कि भजनहार की तरह हम भी यहोवा की करुणा और आशीष पाने के लिए कितना तरसते हैं। हालाँकि इस भजन में यह भविष्यवाणी नहीं की गयी है कि यहोवा का हर सेवक कैसे अनुभवों से गुज़रेगा, फिर भी भजनहार ने जिस भक्‍ति की भावना के साथ यह प्रार्थना की, वही भावना हमें भी पैदा करनी चाहिए। इसे ध्यान में रखते हुए आइए हम परमेश्‍वर के एक समर्पित सेवक की नज़र से भजन 90 की एक-एक आयत की करीब से जाँच करें।

यहोवा—हमारा “सच्चा निवासस्थान”

4-6. यहोवा कैसे हमारे लिए “एक सच्चा निवासस्थान” है?

4 भजनहार सबसे पहले कहता है: “हे यहोवा, तू ही पीढ़ी-दर-पीढ़ी हमारा एक सच्चा निवासस्थान साबित हुआ है। इससे पहले कि पहाड़ों का जन्म हुआ, या तू ने मानो प्रसव-पीड़ा से पृथ्वी और उपजाऊ ज़मीन पैदा करना शुरू किया, यहाँ तक कि अनिश्‍चितकाल से अनिश्‍चितकाल तक तू ही परमेश्‍वर [या, एकमात्र ईश्‍वर] है।”—भजन 90:1,2, NW, फुटनोट।

5 हमारे लिए “अनन्त परमेश्‍वर,” यहोवा “एक सच्चा निवासस्थान,” एक आध्यात्मिक शरणस्थान है। (रोमियों 16:26, NHT) यह जानकर हम सुरक्षित महसूस करते हैं कि हमारा स्वर्गीय पिता ‘प्रार्थना का सुननेवाला’ है और हमारी मदद करने के लिए हमेशा मौजूद है। (भजन 65:2) जब हम उसके प्रिय पुत्र के ज़रिए अपनी सारी चिंताओं का बोझ उस पर डाल देते हैं, तब ‘परमेश्‍वर की शान्ति, जो समझ से बिलकुल परे है, हमारे हृदय और विचारों को सुरक्षित रखती है।’—फिलिप्पियों 4:6,7; मत्ती 6:9; यूहन्‍ना 14:6,14.

6 हम आध्यात्मिक तौर पर सुरक्षित महसूस करते हैं क्योंकि यहोवा हमारे लिए “एक सच्चा निवासस्थान” है। उसने आध्यात्मिक मायनो में हमें पनाह देने के लिए ‘कोठरियों’ का भी इंतज़ाम किया है जो शायद उसके लोगों की कलीसियाओं से गहरा नाता रखती हैं। यहाँ प्यार करनेवाले रखवालों की निगरानी में हम और भी सुरक्षित महसूस करते हैं। (यशायाह 26:20; 32:1,2; प्रेरितों 20:28,29) इतना ही नहीं, हममें से कुछ ऐसे परिवारों में जन्म लिया है जो बरसों से परमेश्‍वर की सेवा करते आए हैं और हमने खुद अनुभव किया है कि यहोवा वाकई ‘पीढ़ी-दर-पीढ़ी तक एक सच्चा निवासस्थान’ है।

7. किस मायने में कहा जा सकता है कि पहाड़ों का “जन्म” हुआ और पृथ्वी मानो “प्रसव-पीड़ा” से पैदा हुई?

7 पहाड़ों के “जन्म” या पृथ्वी के मानो ‘प्रसव-पीड़ा से पैदा’ होने से भी पहले यहोवा अस्तित्त्व में रहा है। अगर इंसान की नज़र से देखा जाए तो पृथ्वी और उसकी विशेषताओं, रासायनिक गुणों और जटिलताओं की सृष्टि करने में कितनी मेहनत लगी होगी। और यह कहकर कि पहाड़ों का “जन्म” हुआ और पृथ्वी को मानो “प्रसव-पीड़ा” से पैदा किया गया, भजनहार उस परिश्रम के लिए गहरा आदर दिखाता है जो यहोवा ने इन्हें बनाते वक्‍त किया था। क्या हमें भी यहोवा की कारीगरी के लिए गहरा आदर और एहसानमंदी नहीं दिखानी चाहिए?

यहोवा हमेशा हमारी मदद के लिए मौजूद है

8. यहोवा परमेश्‍वर “अनिश्‍चितकाल से अनिश्‍चितकाल” तक है, इसका क्या मतलब है?

8 भजनहार गाता है: “अनिश्‍चितकाल से अनिश्‍चितकाल तक तू ही परमेश्‍वर है।” “अनिश्‍चितकाल” शब्द ऐसी चीज़ों को सूचित कर सकता है जिनका अंत तो निश्‍चित है, मगर ये कितने काल या समय तक रहेंगी यह निश्‍चित नहीं है। (निर्गमन 31:16,17, NW; इब्रानियों 9:15) लेकिन भजन 90:2 और इब्रानी शास्त्र की दूसरी आयतों में जहाँ शब्द “अनिश्‍चितकाल” इस्तेमाल किया गया है, वह “अनन्तकाल” की तरफ इशारा करता है। (सभोपदेशक 1:4, NW) हम यह कभी नहीं समझ सकते कि कैसे यहोवा अनादिकाल से वजूद में रहा है। मगर फिर भी इस बात को नकारा नहीं जा सकता कि यहोवा की न तो कोई शुरूआत थी और न कोई अंत होगा। (हबक्कूक 1:12, ईज़ी-टू-रीड वर्शन) वह सदा बना रहेगा और हमारी मदद करने के लिए हमेशा मौजूद रहेगा।

9. भजनहार ने इंसान के हज़ार साल की तुलना किससे की?

9 परमेश्‍वर की प्रेरणा से भजनहार तुलना करके बताता है कि अनन्त सिरजनहार के अनुभव के सामने इंसान के हज़ार साल न के बराबर हैं। वह परमेश्‍वर से कहता है: “तू मनुष्य को धूल में पुनः लौटा देता है। और कहता है, ‘हे मनुष्य की सन्तान, लौट जाओ।’ क्योंकि हज़ार वर्ष तेरी दृष्टि में कल के दिन के समान हैं, जो बीत गया, या जैसे रात का एक पहर।”भजन 90:3,4, NHT.

10. परमेश्‍वर कैसे एक इंसान को “धूल में पुनः लौटा देता है”?

10 इंसान नश्‍वर है और परमेश्‍वर उसको “धूल में पुनः लौटा देता है।” इसका मतलब है कि मरने के बाद इंसान “मिट्टी में” मिलकर धूल बन जाता है। मानो यहोवा उससे कहता है: ‘तू वापस ज़मीन की मिट्टी में मिल जा जिसमें से तुझे बनाया गया है।’ (उत्पत्ति 2:7; 3:19) हम चाहे ताकतवर हों या कमज़ोर, अमीर हों या गरीब, यह बात हम सब पर लागू होती है। क्योंकि कोई भी असिद्ध इंसान “मूल्य देकर अपने भाई को कभी नहीं छुड़ा सकता, न उसकी फिरौती में परमेश्‍वर को कुछ दे सकता है . . . कि वह अनन्तकाल तक जीवित रहे।” (भजन 49:6-9, NHT) लेकिन हम परमेश्‍वर के कितने एहसानमंद हैं कि ‘उस ने अपना एकलौता पुत्र दे दिया, ताकि जो कोई उस पर विश्‍वास करे, वह अनन्त जीवन पा सके’!—यूहन्‍ना 3:16; रोमियों 6:23.

11. हम यह क्यों कह सकते हैं कि जिसे हम एक युग समझते हैं, वह परमेश्‍वर के लिए बस पल भर का समय है?

11 यहोवा की नज़र में, 969 साल के मतूशेलह की ज़िंदगी भी एक दिन से कम थी। (उत्पत्ति 5:27) परमेश्‍वर के लिए एक हज़ार साल बीते हुए कल यानी सिर्फ 24 घंटे के बराबर हैं। भजनहार ने यह भी कहा कि परमेश्‍वर की नज़र में एक हज़ार साल, रात में डेरे में बिताए गए एक पहर यानी चार घंटे के बराबर हैं। (न्यायियों 7:19) इससे साफ पता चलता है कि हम जिसे एक युग समझते हैं वह अनन्त परमेश्‍वर, यहोवा के लिए बस पल भर का समय है।

12. परमेश्‍वर, इंसानों को कैसे “बहा देता है”?

12 अनन्त परमेश्‍वर के सामने आज इंसान की ज़िंदगी वाकई बहुत छोटी है। भजनहार कहता है: “तू मनुष्यों को धारा में बहा देता है; वे स्वप्न से [“नींद के झोंके,” NHT] ठहरते हैं, वे भोर को बढ़नेवाली घास के समान होते हैं। वह भोर को फूलती और बढ़ती है, और सांझ तक कटकर मुर्झा जाती है।” (भजन 90:5,6) मूसा ने वीराने में हज़ारों इस्राएलियों को मौत के मुँह में जाते देखा था मानो परमेश्‍वर ने उन्हें बाढ़ की ‘धारा में बहा दिया हो।’ भजन के इस भाग का अनुवाद इस तरह भी किया गया है: “तू इंसानों को मौत की नींद में सुलाकर बुहार देता है।” (न्यू इंटरनैश्‍नल वर्शन) दूसरी तरफ, असिद्ध इंसानों का जीवनकाल बस “नींद के झोंके” या रात की नींद के बराबर होता है जो देखते-देखते खत्म हो जाती है।

13. हम “घास के समान” कैसे हैं, और इसका हमारे सोचने के ढंग पर क्या असर पड़ना चाहिए?

13 हम सब ‘घास के समान हैं जो भोर को तो फूलती है,’ मगर कड़कती धूप में शाम तक मुर्झा जाती है। जी हाँ, हम आज हैं तो कल नहीं ठीक घास की तरह जो एक ही दिन में मुर्झा जाती है। हमारा हर दिन अनमोल है, इसलिए हमें इन्हें यूँ ही गँवाना नहीं चाहिए। इसके बजाय हमें परमेश्‍वर से बिनती करनी चाहिए कि वह हमें इस बुरे संसार में अपनी ज़िंदगी के बाकी दिन सही तरह से बिताना सिखाए।

यहोवा “अपने दिन गिनने” में हमारी मदद करता है

14, 15. भजन 90:7-9 की इस्राएलियों पर किस तरह पूर्ति हुईं?

14 परमेश्‍वर के बारे में भजनहार आगे कहता है: “तेरे क्रोध से हम भस्म हुए हैं, और तेरे कोप से हम घबरा गए हैं। तू ने हमारे अधर्मों को अपने सामने, और हमारे गुप्त पापों को अपने मुख के प्रकाश में रखा है। क्योंकि हमारे सब दिन तेरे क्रोध में कट जाते हैं, हम अपने वर्ष आह के समान बिताते हैं।”भजन 90:7-9, NHT.

15 अविश्‍वासी इस्राएली ‘परमेश्‍वर के क्रोध से भस्म हो गए थे।’ वे ‘उसके कोप से घबरा गए थे।’ उनमें से कुछ पर उसका न्यायदंड आ पड़ा और वे “जङ्‌गल में ढेर हो गए” थे। (1 कुरिन्थियों 10:5) यहोवा ने ना सिर्फ सरेआम किए गए ‘उनके अधर्मों’ का उनसे लेखा लिया बल्कि उनके ‘गुप्त पाप’ भी उसके “मुख के प्रकाश” से छिप ना सके। (नीतिवचन 15:3) पश्‍चाताप न दिखानेवाले इस्राएली, परमेश्‍वर के क्रोध का पात्र बन चुके थे, इसलिए ‘उनके वर्ष आह के समान’ खत्म हो गए। और जब हमारी बात आती है तो हमारी छोटी-सी ज़िंदगी भी एक आह या होंठों से निकलनेवाली फुसफुसाहट के समान है।

16. अगर कोई चोरी-छिपे पाप करता है, तो उसे क्या करना चाहिए?

16 अगर हम चोरी-छिपे कोई पाप करते हैं, तो हो सकता है कि हम कुछ समय के लिए दूसरों की नज़रों से इसे छिपाने में कामयाब हों। मगर हमारा यह गुप्त पाप भी ‘यहोवा के मुख के प्रकाश’ से छिप नहीं सकता और हमारे कामों की वजह से उसके साथ का हमारा रिश्‍ता बिगड़ जाएगा। तो फिर उसके साथ दोबारा एक नज़दीकी रिश्‍ता कायम करने के लिए हमें प्रार्थना करके उससे माफी माँगनी होगी, अपने पापों को छोड़ना होगा, और एहसानमंदी दिखाते हुए मसीही प्राचीनों से आध्यात्मिक मदद स्वीकार करनी होगी। (नीतिवचन 28:13; याकूब 5:14,15) अपनी हमेशा की ज़िंदगी को दाँव पर लगाकर ‘अपने वर्षों को आह के समान’ गँवाने के बजाय इस मदद का फायदा उठाना क्या ही बेहतर होगा!

17. आम आदमी कितने साल तक जीता है, और हमारी ज़िंदगी किससे भरी होती है?

17 असिद्ध इंसानों के जीवनकाल के बारे में भजनहार कहता है: “हमारी आयु के वर्ष सत्तर हैं; यदि वे बल के कारण अस्सी भी हो जाएं, तो भी उनकी अवधि दुख और कष्ट में बीतती है। वे अविलम्ब व्यतीत हो जाते हैं और हमारे प्राण-पखेरू उड़ जाते हैं।” (भजन 90:10, नयी हिन्दी बाइबिल) एक आम आदमी लगभग 70 साल जीता है और कालेब ने जब अपने असाधारण बल के बारे में बताया तब वह 85 साल का था। कुछ लोग इससे भी ज़्यादा साल जीए थे जैसे हारून (123), मूसा (120), और यहोशू (110)। (गिनती 33:39; व्यवस्थाविवरण 34:7; यहोशू 14:6,10,11; 24:29) मगर जहाँ तक मिस्र से निकलनेवाले इस्राएलियों की अविश्‍वासी पीढ़ी की बात है, उनमें से जितनों की उम्र पंजीकरण के मुताबिक 20 और उससे ज़्यादा थी, वे सभी 40 साल के अंदर मर गए। (गिनती 14:29-34) आज बहुत-से देशों में लोग लगभग 70-80 साल जीते हैं जैसे भजनहार ने कहा था। मगर हमारी यह ज़िंदगी भी “दुख और कष्ट” से भरी होती हैं। पलक झपकते ही उम्र बीत जाती है “और हमारे प्राण-पखेरू उड़ जाते हैं।”—अय्यूब 14:1,2.

18, 19. (क) इसका मतलब क्या है कि हम ‘अपने दिन गिनना सीखें कि बुद्धि से भरा मन पाएं’? (ख) जब हम बुद्धि का इस्तेमाल करेंगे तो यह हमें क्या करने के लिए उकसाएगा?

18 भजनहार आगे अपने गीत में कहता है: “तेरे क्रोध की शक्‍ति को, और तेरे भययोग्य रोष को कौन समझता है? अतः हमको अपने दिन गिनना सिखा, कि हम बुद्धि से भरा मन पाएं।” (भजन 90:11,12, NHT) हममें से कोई भी यहोवा के क्रोध की शक्‍ति या उसके रोष की सीमा को पूरी तरह नहीं समझ सकता। इस वजह से हमें यहोवा का और भी भय मानना चाहिए, साथ ही उसके लिए हमारी श्रद्धा और भी गहरी होनी चाहिए। दरअसल, इससे हमारे अंदर परमेश्‍वर से यह बिनती करने की इच्छा पैदा होनी चाहिए कि वह ‘हमें अपने दिन गिनना सिखाए’ ताकि “हम बुद्धि से भरा मन पाएं।”

19 भजनहार के ये शब्द असल में, यहोवा से की गयी एक प्रार्थना हैं कि वह अपने लोगों को बुद्धि का इस्तेमाल करना सिखाए ताकि वे अपनी ज़िंदगी के बचे हुए एक-एक दिन की कीमत जानें और उन्हें इस तरह बिताएँ जिससे वह खुश हो। सत्तर साल की ज़िंदगी का मतलब है करीब 25,500 दिन। चाहे हमारी उम्र कितनी ही क्यों न हो, ‘हम यह नहीं जानते कि कल क्या होगा, हम तो मानो भाप समान हैं, जो थोड़ी देर दिखाई देती है, फिर लोप हो जाती है।’ (याकूब 4:13-15) इसके अलावा, ‘हम सब समय और संयोग के वश में हैं,’ इसलिए कोई नहीं कह सकता कि वह कितने दिन जीएगा। तो आइए हम बुद्धि के लिए प्रार्थना करें ताकि हम परीक्षाओं का सामना कर पाएँ, दूसरों से अच्छी तरह पेश आएँ और आज, जी हाँ इसी वक्‍त से परमेश्‍वर की सेवा पूरे तन-मन से करने में लग जाएँ! (सभोपदेशक 9:11; याकूब 1:5-8) यहोवा अपने वचन, अपनी पवित्र आत्मा और संगठन के ज़रिए हमें मार्गदर्शन देता है। (मत्ती 24:45-47; 1 कुरिन्थियों 2:10; 2 तीमुथियुस 3:16,17) परमेश्‍वर से मिली बुद्धि का इस्तेमाल करने से हम ‘पहिले परमेश्‍वर के राज्य की खोज करेंगे’ और अपने दिन इस तरह बिताएँगे जिससे यहोवा की महिमा हो और उसका मन आनन्दित हो। (मत्ती 6:25-33; नीतिवचन 27:11) यह सच है कि तन-मन से उसकी उपासना करने से हमारी हर समस्या दूर नहीं होगी, मगर हाँ, ऐसा करने से हमें बड़ी खुशी महसूस होगी।

यहोवा की आशीष से हमें खुशी मिलती है

20. (क) किस अर्थ में कहा जा सकता है कि परमेश्‍वर ‘खेदित’ महससू करता है? (ख) अगर हम कोई गंभीर पाप कर बैठें, लेकिन सच्चा पश्‍चाताप दिखाएँ तो यहोवा हमारे साथ कैसे पेश आएगा?

20 यह कितना बढ़िया होगा अगर हम अपनी बाकी ज़िंदगी खुशी-खुशी बिता पाएँ! इस सिलसिले में मूसा बिनती करता है: “हे यहोवा लौट आ! कब तक? और अपने दासों पर तरस खा! [“खेदित हो!” NW] भोर को हमें अपनी करुणा [या, “सच्चे प्रेम,” NW, फुटनोट] से तृप्त कर, कि हम जीवन भर जयजयकार और आनन्द करते रहें।” (भजन 90:13,14) परमेश्‍वर कभी कोई गलती नहीं करता। लेकिन फिर भी वह उस वक्‍त ‘खेदित’ महसूस करता है जब लोग उसकी चेतावनी सुनकर मन फिराते और अपने सोच-विचार और चालचलन में बदलाव लाते हैं। ऐसे में वह अपना क्रोध ‘शान्त करके’ उन्हें सज़ा नहीं देता। (व्यवस्थाविवरण 13:17) इसलिए चाहे हमने कितना भी गंभीर पाप क्यों न किया हो, लेकिन अगर हम सच्चा पश्‍चाताप दिखाएँगे तो यहोवा ‘हमें अपनी करुणा से तृप्त करेगा’ और तब हम ‘खुशी के मारे जयजयकार’ कर पाएँगे। (भजन 32:1-5) और धार्मिकता के मार्ग पर चलकर हम यहोवा के सच्चे प्रेम को महसूस कर पाएँगे और “हम जीवन भर” जी हाँ, ज़िंदगी के बाकी दिन ‘आनन्द करते रहेंगे।’

21. भजन 90:15,16 के शब्दों में मूसा शायद क्या गुज़ारिश कर रहा था?

21 भजनहार बड़ी लालसा के साथ बिनती करता है: “जितने दिन तू हमें दुःख देता आया, और जितने वर्ष हम क्लेश भोगते आए हैं उतने ही वर्ष हम को आनन्द दे। तेरा काम तेरे दासों को, और तेरा प्रताप उनकी सन्तान पर प्रगट हो।” (भजन 90:15,16) मूसा शायद परमेश्‍वर से यह बिनती कर रहा था कि इस्राएल ने जितने दिन दुःख देखे और जितने साल क्लेश भोगे, उतनी ही यहोवा उन्हें खुशियों की आशीष दे। मूसा ने परमेश्‍वर से गुज़ारिश की कि उसके दासों के सामने उसके “काम” या आशीषें ज़ाहिर हो जाएँ और कि उसका प्रताप इस्राएल की सन्तान पर प्रकट हो। उसी तरह हम भी परमेश्‍वर से प्रार्थना कर सकते हैं कि वह अपनी नयी दुनिया में आज्ञाकारी इंसानों पर आशीषें बरसाए।—2 पतरस 3:13.

22. भजन 90:17 के मुताबिक, हमारा किस बात के लिए प्रार्थना करना सही है?

22 भजन 90 इस याचना से खत्म होता है: “हमारे परमेश्‍वर यहोवा की मनोहरता हम पर प्रगट हो, तू हमारे हाथों का काम हमारे लिये दृढ़ कर, हमारे हाथों के काम को दृढ़ कर।” (भजन 90:17) ये शब्द दिखाते हैं कि परमेश्‍वर की सेवा में अपनी मेहनत पर उसकी आशीष के लिए प्रार्थना करना सही है। चाहे हम अभिषिक्‍त जन में से हों या उनके साथी ‘अन्य भेड़ों’ में से, हम इस बात से हर्षित हैं कि “यहोवा की मनोहरता” हम पर बनी रहती है। (यूहन्‍ना 10:16, NW) हम कितने खुश हैं कि परमेश्‍वर ने राज्य की घोषणा करने और दूसरी बातों में ‘हमारे हाथों के कामों को दृढ़ किया है’!

आइए हम अपने दिन गिनना न छोड़ें

23, 24. भजन 90 पर मनन करने से हमें क्या फायदा हो सकता है?

23 भजन 90 पर गहराई से मनन करने से अपने ‘सच्चे निवासस्थान,’ यहोवा पर हमारा भरोसा और भी बढ़ना चाहिए। उसमें छोटे-से जीवनकाल के बारे में लिखी गयी बातों पर विचार करने से हमारा एहसास और भी गहरा होना चाहिए कि अपने दिन गिनने के लिए हमें परमेश्‍वर के मार्गदर्शन की सख्त ज़रूरत है। और अगर हम लगातार परमेश्‍वर से बुद्धि माँगते रहेंगे और उसे काम में लाएँगे, तो हमें उसकी करुणा और आशीष ज़रूर मिलेगी।

24 यहोवा हमें अपने दिन गिनना सिखाता रहेगा। और अगर हम उसकी हिदायतों का पालन करेंगे, तो हमें सदा के लिए अपने दिन गिनते रहने की आशीष मिलेगी। (यूहन्‍ना 17:3) अगर हम सचमुच अनन्त जीवन पाना चाहते हैं, तो हमें ज़रूर यहोवा को अपना शरणस्थान बनाना होगा। (यहूदा 20,21) यह बात हिम्मत बँधानेवाले भजन 91 में एकदम साफ-साफ समझायी गयी है जिसके बारे में हम अगले लेख में पढ़ेंगे।

आप क्या जवाब देंगे?

• यहोवा कैसे हमारा “सच्चा निवासस्थान” है?

• हम क्यों कह सकते हैं कि यहोवा हमारी मदद करने के लिए हमेशा मौजूद है?

• यहोवा “अपने दिन गिनने” में कैसे हमारी मदद करता है?

• कौन-सी बात हमारे लिए ‘जीवन भर आनन्द करना’ मुमकिन बनाती है?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 11 पर तसवीर]

‘पहाड़ों के जन्म होने के पहले’ से ही यहोवा, परमेश्‍वर रहा है

[पेज 12 पर तसवीर]

यहोवा की नज़र में 969 साल का मतूशेलह एक दिन से कम जीया

[पेज 14 पर तसवीरें]

यहोवा ने “हमारे हाथों के काम को दृढ़” किया है