इस जानकारी को छोड़ दें

विषय-सूची को छोड़ दें

यहोवा हमारा शरणस्थान है

यहोवा हमारा शरणस्थान है

यहोवा हमारा शरणस्थान है

“तू ने कहा: ‘यहोवा मेरा शरणस्थान है,’ . . . इसलिए कोई विपत्ति तुझ पर आ न पड़ेगी।”भजन 91:9,10, NW.

1. हम क्यों कह सकते हैं कि यहोवा हमारा शरणस्थान है?

 यहोवा अपने लोगों के लिए एक सच्चा शरणस्थान है। अगर हम पूरे तन-मन से उसकी भक्‍ति करते हैं तो चाहे ‘हम चारों ओर से क्लेश भोगें पर संकट में नहीं पड़ते; निरुपाय हों पर निराश नहीं होते। सताए जाएँ; तो भी त्यागे नहीं जाते; गिराए जाएँ, मगर नाश नहीं होते।’ क्यों? क्योंकि यहोवा हमें “असीम सामर्थ” देता है। (2 कुरिन्थियों 4:7-9) जी हाँ, हमारा स्वर्गीय पिता धार्मिकता की ज़िंदगी जीने में हमारी मदद करता है। इसलिए हम भजनहार के इन शब्दों को अपने दिल में बिठा सकते हैं: “तू ने कहा: ‘यहोवा मेरा शरणस्थान है,’ तू ने परमप्रधान को अपना निवासस्थान बनाया है; इसलिए कोई विपत्ति तुझ पर आ न पड़ेगी।”—भजन 91:9,10, NW.

2. भजन 91 के बारे में क्या कहा जा सकता है और यह क्या वादा करता है?

2 भजन 91 की रचना शायद मूसा ने की थी। ऐसा इसलिए कहा जा सकता है क्योंकि भजन 90 के उपरिलेख में मूसा का नाम दिया गया है, और भजन 91 इसी की अगली कड़ी है और इन दोनों के बीच किसी और लेखक का नाम नहीं पाया जाता। भजन 91 शायद दो समूहों द्वारा गाया जानेवाला भजन है; पहले एक गायक (91:1,2) आयत गाकर शुरू करता, उसके बाद गायकों की एक मंडली साथ मिलकर (91:3-8) गाती है। फिर शायद एक गायक (91:9क) गाता है और जवाब में गायकों का समूह (91:9ख-13) आयतें गाने लगता है। और आखिर में एक गायक (91:14-16) आयतें गाकर समाप्त करता है। भजन 91 को चाहे जैसे भी गाया जाता हो, मगर एक समूह के तौर पर अभिषिक्‍त मसीहियों से यह भजन वादा करता है कि आध्यात्मिक मायने में उन्हें सुरक्षित रखा जाएगा। और उनके समर्पित साथियों को भी यही यकीन दिलाता है। * आइए हम यहोवा के ऐसे सभी सेवकों के नज़रिए से इस भजन पर विचार करें।

‘परमेश्‍वर के छाए हुए स्थान’ में सुरक्षित

3. (क) ‘परमप्रधान का छाया हुआ स्थान’ क्या है? (ख) ‘सर्वशक्‍तिमान की छाया में ठिकाना पाने’ पर हम क्या अनुभव करते हैं?

3 भजनहार गाता है: “जो परमप्रधान के छाए हुए स्थान में बैठा रहे, वह सर्वशक्‍तिमान की छाया में ठिकाना पाएगा। मैं यहोवा के विषय कहूंगा, कि वह मेरा शरणस्थान और गढ़ है; वह मेरा परमेश्‍वर है, मैं उस पर भरोसा रखूंगा।” (भजन 91:1,2) ‘परमप्रधान का छाया हुआ स्थान’ आध्यात्मिक मायनो में हमारे लिए हिफाज़त पाने की जगह है। इस हिफाज़त की अभिषिक्‍त जनों को बहुत ज़रूरत है क्योंकि इब्‌लीस ने उन्हें अपना खास निशाना बना रखा है। (प्रकाशितवाक्य 12:15-17) अगर परमेश्‍वर ने हमें मेहमान बनाकर अपने आध्यात्मिक धाम में सुरक्षित न रखा होता तो इब्‌लीस हमें कब का मिटा चुका होता। ‘सर्वशक्‍तिमान की छाया में ठिकाना पाने’ की वजह से हम यह अनुभव करते हैं कि परमेश्‍वर अपनी आड़ या छाया में हमारी हिफाज़त करता है। (भजन 15:1,2; 121:5) विश्‍व के सम्राट, हमारे प्रभु यहोवा से बढ़कर कोई दूसरा शरणस्थान या मज़बूत गढ़ नहीं है।—नीतिवचन 18:10.

4. ‘बहेलिया’ यानी शैतान किन फँदों का इस्तेमाल करता है, मगर हम कैसे छुड़ाए जाते हैं?

4 भजनहार आगे गाता है: [यहोवा] तो तुझे बहेलिये के जाल से, और महामारी [“विपत्तियाँ लानेवाली महामारी,” NW] से बचाएगा।” (भजन 91:3) प्राचीन इस्राएल में बहेलिया चिड़ियों को पकड़ने के लिए अकसर जाल या फँदा बिछाता था। शैतान वह ‘बहेलिया’ है जो हमें फँसाने के लिए कई जाल बिछाता है। वह अपने दुष्ट संगठन और धूर्त “युक्‍तियों” को फँदों की तरह इस्तेमाल करता है। (इफिसियों 6:11) बड़ी चतुराई से हमारे रास्ते में ऐसे जाल बिछाए गए हैं जो हमें बुराई में फँसाकर आध्यात्मिक तौर पर तबाह कर सकते हैं। (भजन 142:3) मगर हमने बुराई का मार्ग छोड़ दिया है, इसलिए ‘हमारा जीव उस पक्षी की नाईं है जो जाल से छूट गया’ हो। (भजन 124:7,8) हम यहोवा के कितने एहसानमंद हैं कि वह हमें उस दुष्ट “बहेलिये” के हाथों से छुड़ाता है!—मत्ती 6:13.

5, 6. कौन-सी “महामारी” “विपत्तियाँ” लायी है, मगर यहोवा के लोग इसके शिकार क्यों नहीं होते?

5 भजनहार “विपत्तियाँ लानेवाली महामारी” का ज़िक्र करता है। यह महामारी छूत की बीमारी की तरह फैलती जा रही है और पूरे मानव परिवार के साथ-साथ यहोवा की हुकूमत के पक्ष में रहनेवालों पर भी “विपत्तियाँ” लाती है। इस बारे में, इतिहासकार आर्नल्ड टॉयन्बी ने लिखा: “दूसरे विश्‍व-युद्ध के बाद से अपना-अपना राष्ट्र होने की भावना ने दुनिया को टुकड़ों में बाँट दिया है, जिससे स्वतंत्र राष्ट्रों की संख्या दुगुनी हो गयी है . . . आज लोगों में विभाजन की भावना बढ़ती ही जा रही है।”

6 सदियों से कुछ शासकों ने विभाजन करनेवाली अंतर्राष्ट्रीय बैर की आग को हवा दी है। उन्होंने यह भी माँग की है कि लोग उनकी या अलग-अलग मूर्तियों और प्रतीकों की पूजा करें। लेकिन यहोवा ने अपने वफादार लोगों को कभी इस “महामारी” का शिकार नहीं होने दिया। (दानिय्येल 3:1,2,20-27; 6:7-10,16-22) आज अलग-अलग देशों में रहनेवाले यहोवा के लोग प्यार और भाईचारे के बंधन में बंधे हैं। हम यहोवा को छोड़ किसी और को भक्‍ति नहीं देते, बाइबल पर अमल करते हुए संसार का भाग नहीं बनते और बिना किसी पक्षपात के यह कबूल करते हैं कि “हर जाति में जो [परमेश्‍वर] से डरता और धर्म के काम करता है, वह उसे भाता है।” (प्रेरितों 10:34,35; निर्गमन 20:4-6; यूहन्‍ना 13:34,35; 17:16; 1 पतरस 5:8,9) हालाँकि, हम मसीहियों पर “विपत्तियाँ” आती हैं यानी हमें सताया जाता है, फिर भी हम “परमप्रधान के छाए हुए स्थान” में खुश और आध्यात्मिक रूप से महफूज़ हैं।

7. यहोवा “अपने पंखों की आड़ में” कैसे हमारी हिफाज़त करता है?

7 यहोवा हमारा शरणस्थान है, इसलिए हमें इन शब्दों से दिलासा मिलता है: “वह तुझे अपने पंखों की आड़ में ले लेगा, और तू उसके परों के नीचे शरण पाएगा; उसकी सच्चाई तेरे लिये ढाल और झिलम [“दीवार,” ईज़ी-टू-रीड वर्शन] ठहरेगी।” (भजन 91:4) जैसे एक पक्षी अपने बच्चों की हिफाज़त करने के लिए उनके ऊपर मँडराता रहता है, वैसे परमेश्‍वर भी हमारी रक्षा करता है। (यशायाह 31:5) वह हमें ‘अपने पंखों की आड़’ रख लेता है ताकि कोई हम तक पहुँच ना सके। इसके अलावा, एक पक्षी अपने बच्चों को शिकारी से बचाने के लिए उन्हें अपने पंखों में समेट लेता है, उसी तरह यहोवा हमें अपने परों के नीचे शरण देता है। हम यहोवा के पंखों तले महफूज़ हैं क्योंकि हमने उसके सच्चे मसीही संगठन की शरण ली है।—रूत 2:12; भजन 5:1,11.

8. यहोवा की “सच्चाई” कैसे एक बड़ी ढाल और दीवार की तरह है?

8 परमेश्‍वर सच्चा या वफादार है और उसने हमें बचाने का जो वादा किया है, उस पर हमें भरोसा है। उसका यह वादा या “सच्चाई” एक बड़ी और चौड़ी ढाल की तरह है जो एक सैनिक के पूरे शरीर को छिपा सकती है। (भजन 5:12) ऐसी सुरक्षा पाने का भरोसा हमारा डर दूर कर देता है। (उत्पत्ति 15:1; भजन 84:11) विश्‍वास की तरह परमेश्‍वर की सच्चाई भी एक बड़ी ढाल है जो हमें शैतान के जलते तीरों और दुश्‍मन के वारों से बचाती है। (इफिसियों 6:16) परमेश्‍वर की सच्चाई, रक्षा करनेवाली ऐसी मज़बूत दीवार की तरह है जिसकी आड़ में हम दृढ़ खड़े रहते हैं।

‘हम भयभीत नहीं होंगे’

9. रात का समय क्यों खतरनाक हो सकता है, लेकिन हम क्यों नहीं डरते?

9 परमेश्‍वर के इस वादे को मन में रखते हुए भजनहार कहता है: “तू न रात के आतंक से, और न दिन के उड़ते तीर से भयभीत होगा; न उस महामारी से जो अन्धकार में फैलती, और न उस विनाश से जो दोपहर में उजाड़ता है।” (भजन 91:5,6, NHT) अकसर संगीन जुर्म अंधेरे में किए जाते हैं, इसलिए रात का समय काफी खतरनाक हो सकता है। आज दुनिया में जो आध्यात्मिक अंधकार छाया हुआ है उसका फायदा उठाते हुए हमारे दुश्‍मन अकसर धूर्त तरीके अपनाकर आध्यात्मिक तौर पर हमें घात करने और प्रचार काम को रोकने की कोशिश करते हैं। मगर ‘हम इस रात के आतंक से भयभीत नहीं होते’ क्योंकि यहोवा हमारी चौकसी करता है।—भजन 64:1,2; 121:4; यशायाह 60:2.

10. (क) “दिन के उड़ते तीर” का मतलब क्या हो सकता है लेकिन हम उसका सामना कैसे करते हैं? (ख) ‘अन्धकार में फैलती महामारी’ का कैसा असर होता है, और हम इससे क्यों नहीं डरते?

10 “दिन के उड़ते तीर” का मतलब सरेआम हमारे विरोध में कही जानेवाली बातें हो सकती हैं। (भजन 64:3-5; 94:20) लेकिन ऐसी बातें नाकाम हो जाती हैं क्योंकि हम लोगों को सच्चाई के बारे में बताना नहीं छोड़ते। हम “उस महामारी से” भी नहीं डरते “जो अन्धकार में फैलती है।” यह एक लाक्षणिक महामारी है जो अनैतिक और धार्मिक रूप से रोगग्रस्त शैतान की दुनिया के अंधेरे में पनपती है। (1 यूहन्‍ना 5:19) यह लोगों के दिलो-दिमाग पर ऐसा घातक असर करती है कि वे यहोवा, उसके उद्देश्‍यों और प्यार भरे इंतज़ामों से मुँह मोड़ लेते हैं। (1 तीमुथियुस 6:4) लेकिन हम इस अंधकार से नहीं डरते क्योंकि हमारे पास आध्यात्मिक रोशनी की कोई कमी नहीं है।—भजन 43:3.

11. ‘दोपहर के उजाड़’ का अनुभव करनेवालों का क्या हाल होता है?

11 हम “उस विनाश” से भी नहीं डरते “जो दोपहर में उजाड़ता है।” “दोपहर” का मतलब संसार की बुद्धि या ज्ञान हो सकता है। संसार का नज़रिया धन-दौलत और ऐशो-आराम पाने का है और जो लोग इसके लालच में पड़ जाते हैं, उनका आध्यात्मिक विनाश हो जाता है। (1 तीमुथियुस 6:20,21) हम अपने किसी भी दुश्‍मन से नहीं डरते और निधड़क होकर राज्य का संदेश सुनाते हैं क्योंकि हमें मालूम है कि यहोवा हमारी हिफाज़त करनेवाला है।—भजन 64:1; नीतिवचन 3:25,26.

12. किसकी ओर हज़ारों लोग ‘गिर पड़ते’ हैं और किस मायने में?

12 भजनहार आगे कहता है: “तेरे निकट हजार, और तेरी दहिनी ओर दस हजार गिरेंगे; परन्तु वह तेरे पास न आएगा। परन्तु तू अपनी आंखों से दृष्टि करेगा और दुष्टों के अन्त को देखेगा।” (भजन 91:7,8) बहुत-से लोग यहोवा को अपना शरणस्थान नहीं मानते, इसलिए आध्यात्मिक मायने में वे हमारे ‘निकट गिर जाते’ या मर जाते हैं। इस हिसाब से आज आध्यात्मिक इस्राएलियों की “दहिनी ओर दस हजार” लोग गिर चुके हैं। (गलतियों 6:16) मगर चाहे हम अभिषिक्‍त मसीही हों या उनके समर्पित साथी, हम परमेश्‍वर के “छाए हुए स्थान” में पूरी तरह सुरक्षित हैं। हम केवल ‘दृष्टि करते और उन दुष्टों के अन्त को देखते हैं’ जो कारोबार में, धर्म में और दूसरे मामलों में अपने ही उपद्रव की कटनी काट रहे हैं।—गलतियों 6:7.

‘हम पर कोई विपत्ति नहीं आएगी’

13. कौन-सी विपत्तियाँ हम पर नहीं आतीं, और क्यों?

13 हालाँकि इस संसार की सुरक्षा की दीवारें ढहती जा रही हैं, मगर जहाँ तक हमारी बात है हम परमेश्‍वर को अपने जीवन में पहला स्थान देते हैं और भजनहार के इन शब्दों से हौसला पाते हैं: “तू ने कहा: ‘यहोवा मेरा शरणस्थान है,’ तू ने परमप्रधान को अपना निवासस्थान बनाया है; इसलिए कोई विपत्ति तुझ पर आ न पड़ेगी, और एक महामारी तक तुम्हारे डेरे के निकट न आएगी।” (भजन 91:9,10, NW) जी हाँ, यहोवा हमारा शरणस्थान है। साथ ही हम परमप्रधान परमेश्‍वर को “अपना निवासस्थान” भी बनाते हैं, जिसमें हम महफूज़ रहते हैं। हम यहोवा का गुणगान करते हैं कि वही पूरे जहान का महाराजा और मालिक है। हम उसे अपना रक्षक मानकर उसमें ‘निवास’ करते हैं और उसके राज्य की खुशखबरी सुनाते हैं। (मत्ती 24:14) इसलिए ऐसी ‘कोई भी विपत्ति हम पर नहीं आएगी,’ जिसका ज़िक्र इस भजन की शुरूआत में किया गया है। यहाँ तक कि जब हम दूसरों की तरह भूकंप, तूफान, बाढ़, अकाल या युद्ध जैसी विपत्तियों का शिकार होते हैं, तब भी ये विपत्तियाँ हमारे विश्‍वास या हमारी आध्यात्मिक सुरक्षा को खतरा नहीं पहुँचा पातीं।

14. यहोवा के सेवक होने के नाते हम क्यों जानलेवा बीमारियों के शिकार नहीं होते?

14 अभिषिक्‍त मसीही, परदेशियों की तरह इस दुनिया से अलग अपने आध्यात्मिक डेरों में रहते हैं। (1 पतरस 2:11) ‘एक महामारी तक उनके डेरे के निकट नहीं आती।’ लेकिन चाहे हमारी आशा स्वर्ग में जीने की हो या इस धरती पर, हम इस संसार के भाग नहीं हैं। और न तो हम अनैतिकता, धन-दौलत के लालच और झूठे धर्म जैसी जानलेवा बीमारियों के शिकार होते हैं और ना ही हम “पशु” और उसकी “मूरत” यानी संयुक्‍त राष्ट्र की उपासना करते हैं।—प्रकाशितवाक्य 9:20,21; 13:1-18; यूहन्‍ना 17:16.

15. स्वर्गदूत किन तरीकों से हमारी मदद करते हैं?

15 हमारी हिफाज़त के बारे में भजनहार आगे कहता है: “वह [यहोवा] अपने दूतों को तेरे निमित्त आज्ञा देगा, कि जहां कहीं तू जाए वे तेरी रक्षा करें। वे तुझ को हाथों हाथ उठा लेंगे, ऐसा न हो कि तेरे पांवों में पत्थर से ठेस लगे।” (भजन 91:11,12) स्वर्गदूतों को हमारी हिफाज़त करने की ताकत दी गयी है। (2 राजा 6:17; भजन 34:7-9; 104:4; मत्ती 26:53; लूका 1:19) ‘हम जहां कहीं जाते हैं,’ वे हमारी रक्षा करते हैं। (मत्ती 18:10) जब हम, राज्य का ऐलान करते हैं तो हम पाते हैं कि स्वर्गदूत हमें मार्गदर्शन देते और हमारी रखवाली करते हैं और हम आध्यात्मिक तौर पर ठोकर नहीं खाते। (प्रकाशितवाक्य 14:6,7) और ना ही प्रतिबंधों जैसे “पत्थर” हमें ठोकर खिलाकर परमेश्‍वर के अनुग्रह से दूर कर पाते हैं।

16. “सिंह” और “नाग” के हमलों में क्या फर्क है, और इन हमलों का हम कैसे सामना करते हैं?

16 इसके बाद, भजनहार कहता है: “तू सिंह और नाग को कुचलेगा, तू जवान सिंह और अजगर को लताड़ेगा [“रौंदेगा,” NHT]।” (भजन 91:13) जिस तरह एक सिंह सामने से अपने शिकार पर हमला करता है, उसी तरह हमारे कुछ दुश्‍मन, प्रचार काम को रोकने के लिए कानूनी फरमान जारी करके खुलेआम हमारा विरोध करते हैं। लेकिन हम पर छिपकर या पीछे से भी हमले किए जाते हैं, जैसे एक नाग छिपकर अपने शिकार को डसता है। कई पादरी कानून बनानेवालों, जजों और दूसरों की आड़ में छिपकर हम पर हमला करते हैं। मगर यहोवा की मदद से, हम शांति से इन मुसीबतों को पार करने के लिए कानून का दरवाज़ा खटखटाते हैं और इस तरह ‘सुसमाचार की रक्षा और उसका पुष्टिकरण’ करते हैं।—फिलिप्पियों 1:7, NHT; भजन 94:14,20-22.

17. “जवान सिंह” को हम कैसे रौंद डालते हैं?

17 भजनहार, “जवान सिंह और अजगर” को रौंदने की बात करता है। एक जवान सिंह काफी खूँखार और एक अजगर बहुत विशाल हो सकता है। (यशायाह 31:4) जवान सिंह जैसे लोग या संगठन, सामने से हमला करते वक्‍त चाहे कितने ही खूँखार क्यों न हों, मगर हम उनकी आज्ञा के बजाय परमेश्‍वर की आज्ञा मानते हैं और इस मायने में हम उन्हें अपने पैरों तले रौंद डालते हैं। (प्रेरितों 5:29) इसलिए खतरनाक “सिंह” भी हमें आध्यात्मिक तरीके से घायल नहीं कर सकता।

18. “अजगर” हमें किसकी याद दिलाता है, और जब वह हम पर हमला करता है तो हमें क्या करना चाहिए?

18 भजन में बताया गया “अजगर” हमें ‘बड़े अजगर’ की याद दिलाता है, “वही पुराना सांप, जो इब्‌लीस और शैतान कहलाता है।” (प्रकाशितवाक्य 12:7-9; उत्पत्ति 3:15) वह एक विशाल भयानक साँप की तरह है जो अपने शिकार को लपेटकर चकनाचूर कर देता और निगल जाता है। (यिर्मयाह 51:34) जब यह “अजगर” यानी शैतान दुनिया की ओर से दबाव डालकर हमें अपनी कुंडली में लपेटने और निगलने की कोशिश करे, तब आइए हम झटककर उसकी पकड़ से खुद को छुड़ा लें और उसे अपने पैरों तले रौंद डालें। (1 पतरस 5:8) आज अभिषिक्‍त मसीहियों को हर हाल में ऐसा करना होगा, तभी वे रोमियों 16:20 को पूरा करने में हिस्सा ले पाएँगे।

यहोवा—हमारे उद्धार का सोता

19. हम क्यों यहोवा की शरण में जाते हैं?

19 परमेश्‍वर की तरफ से भजनहार, सच्चे उपासक के बारे में कहता है: “उस ने जो मुझ से स्नेह किया है, इसलिये मैं उसको छुड़ाऊंगा; मैं उसको ऊंचे स्थान पर रखूंगा, क्योंकि उस ने मेरे नाम को जान लिया है।” (भजन 91:14) “मैं उसको ऊंचे स्थान पर रखूंगा” का मतलब है कि यहोवा अपने उपासकों को ऐसी जगह रखता है जहाँ तक दुश्‍मन का पहुँचना नामुमकिन है। हम यहोवा के उपासक, उसकी शरण में खासकर इसलिए जाते हैं क्योंकि ‘हम उससे स्नेह करते हैं।’ (मरकुस 12:29,30; 1 यूहन्‍ना 4:19) बदले में, परमेश्‍वर हमें अपने दुश्‍मनों से ‘छुड़ाता’ है। हमें कभी-भी इस धरती से मिटाया नहीं जाएगा, बल्कि हमारा उद्धार होगा क्योंकि हमने परमेश्‍वर के नाम को जाना है और हम पूरे विश्‍वास के साथ उस नाम को पुकारते हैं। (रोमियों 10:11-13) और हमने यह फैसला कर लिया है कि हम “यहोवा का नाम लेकर सदा सर्वदा चलते रहेंगे।”—मीका 4:5; यशायाह 43:10-12.

20. भजन 91 की आखिरी आयतों में यहोवा अपने वफादार सेवक से क्या वादा करता है?

20 भजन 91 के अंत में यहोवा अपने वफादार सेवक के बारे में कहता है: “जब वह मुझ को पुकारे, तब मैं उसकी सुनूंगा; संकट में मैं उसके संग रहूंगा, मैं उसको बचाकर उसकी महिमा बढ़ाऊंगा। मैं उसको दीर्घायु से तृप्त करूंगा, और अपने किए हुए उद्धार का दर्शन दिखाऊंगा।” (भजन 91:15,16) जब हम परमेश्‍वर की इच्छा के मुताबिक उससे प्रार्थना करते हैं तब वह हमारी प्रार्थनाओं का जवाब देता है। (1 यूहन्‍ना 5:13-15) हम पहले भी शैतान के हमलों का सामना करके काफी संकटों से गुज़र चुके हैं। मगर यहोवा के इन शब्दों से हमें भविष्य में आनेवाली परीक्षाओं का सामना करने की हिम्मत मिलती है कि “संकट में मैं उसके संग रहूंगा।” यह वादा हमें यकीन दिलाता है कि जब परमेश्‍वर इस दुष्ट संसार का नाश करेगा, तब वह हमें बचाए रखेगा।

21. कैसे अभिषिक्‍त मसीहियों की पहले ही महिमा की जा चुकी है?

21 शैतान के ज़बरदस्त विरोध के बावजूद, आज हमारे बीच मौजूद बचे हुए सभी अभिषिक्‍त जन पृथ्वी पर “दीर्घायु” के बाद यानी परमेश्‍वर के ठहराए हुए वक्‍त पर स्वर्ग में महिमा पाएँगे। मगर परमेश्‍वर ने अभिषिक्‍त जनों की पहले ही अनोखे ढंग से रक्षा करके आध्यात्मिक मायनो में उनकी महिमा की है। और यह उनके लिए कितने बड़े सम्मान की बात है कि वे इन अंतिम दिनों में यहोवा के साक्षियों के रूप में अगुवाई कर रहे हैं! (यशायाह 43:10-12) अपने लोगों को बचाने का सबसे महान काम, यहोवा अरमगिदोन के महायुद्ध में करेगा जब वह अपने नाम पर लगा कलंक मिटाकर उसे पवित्र कर देगा और यह साबित कर देगा कि वही पूरे जहान का महाराजा और मालिक है।—भजन 83:18; यहेजकेल 38:23; प्रकाशितवाक्य 16:14,16.

22. ‘यहोवा के उद्धार’ को कौन देखेंगे?

22 हम चाहे अभिषिक्‍त मसीही हों या उनके समर्पित साथी, हम सभी उद्धार के लिए परमेश्‍वर की ओर ताकते हैं। वफादारी से परमेश्‍वर की सेवा करनेवालों को “यहोवा के . . . बड़े और भयानक दिन” में बचाया जाएगा। (योएल 2:30-32) हममें से जो लोग परमेश्‍वर की नयी दुनिया में कदम रखनेवाली “बड़ी भीड़” के होंगे और आखिरी परीक्षा से वफादार निकलेंगे, उन्हें “दीर्घायु से तृप्त” किया जाएगा, यानी वे अनंत जीवन का आनंद उठाएँगे। परमेश्‍वर बड़ी तादाद में मरे हुओं को भी ज़िंदा करेगा। (प्रकाशितवाक्य 7:9; 20:7-15) यीशु मसीह के ज़रिए ‘हमें उद्धार का दर्शन दिखाने’ में यहोवा को वाकई बड़ी खुशी होगी। (भजन 3:8) जब ऐसा उज्ज्वल भविष्य हमारे सामने है तो आइए हम अपने दिन गिनने में हमेशा परमेश्‍वर की मदद लेते रहें जिससे उसकी महिमा हो। आइए हम अपनी बोली और अपने कामों से हमेशा दिखाएँ कि हमने यहोवा को अपना शरणस्थान बनाया है।

[फुटनोट]

^ मसीही यूनानी शास्त्र के लेखकों ने भजन 91 की चर्चा करते वक्‍त उसे मसीहा पर लागू होनेवाली भविष्यवाणी नहीं बताया। मगर इसमें कोई शक नहीं कि जब यीशु इस धरती पर था तब यहोवा उसके लिए शरणस्थान और दृढ़ गढ़ रहा था। उसी तरह यहोवा इस ‘अन्त के समय’ में रहनेवाले यीशु के अभिषिक्‍त चेलों के समूह और उनके समर्पित साथियों के लिए भी एक शरणस्थान है।—दानिय्येल 12:4.

आप कैसे जवाब देंगे?

• ‘परमप्रधान का छाया हुआ स्थान’ क्या है?

• हम क्यों नहीं डरते?

• ‘कोई विपत्ति हम पर नहीं आएगी,’ इसका मतलब क्या है?

• हम क्यों कह सकते हैं कि यहोवा ही हमारे उद्धार का सोता है?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 17 पर तसवीर]

क्या आप जानते हैं कि यहोवा की सच्चाई कैसे हमारे लिए एक बड़ी ढाल है?

[पेज 18 पर तसवीरें]

हालाँकि यहोवा के सेवकों का खुलेआम विरोध किया जाता है और उन पर अचानक हमले होते हैं, मगर फिर भी यहोवा उन्हें अपनी सेवा करने में मदद देता है

[चित्र का श्रेय]

कोबरा: A. N. Jagannatha Rao, Trustee, Madras Snake Park Trust