इस जानकारी को छोड़ दें

विषय-सूची को छोड़ दें

आप आध्यात्मिक दिल के दौरे से बच सकते हैं

आप आध्यात्मिक दिल के दौरे से बच सकते हैं

आप आध्यात्मिक दिल के दौरे से बच सकते हैं

एक विश्‍व-प्रसिद्ध खिलाड़ी, जिसे अपने हुनर में महारत हासिल थी और जो देखने में पूरी तरह चुस्त-दुरुस्त था, एक दिन अभ्यास करते वक्‍त अचानक गिर पड़ा और उसकी मौत हो गयी। यह खिलाड़ी था, स्यिरग्ये ग्रीनकोफ जिसने ऑलिम्पिक खेलों में आइस स्केटिंग में दो बार स्वर्ण-पदक जीते थे। वह सिर्फ 28 साल का था और उसके कैरियर की अभी-अभी शुरूआत हुई थी। कितने दुःख की बात है! उसकी मौत की वजह क्या थी? उसे दिल का दौरा पड़ा था। कहा गया है कि किसी ने सोचा भी नहीं था कि उसकी मौत हो जाएगी। उसे दिल की बीमारी थी, मगर इसका एक भी लक्षण नज़र नहीं आया था। लेकिन उसकी जाँच करने पर यह बात सामने आयी कि उसका दिल फूलकर बढ़ गया था और धमनियों में बुरी तरह अवरोध पैदा हो गया था।

हालाँकि ऐसा लगता है कि ज़्यादातर लोगों को बिना किसी संकेत के अचानक दौरा पड़ जाता है लेकिन डॉक्टरों का कहना है कि ऐसा बहुत कम मामलों में होता है। सच तो यह है कि लोग अकसर खतरे की निशानियों और उन वजहों को नज़रअंदाज़ कर देते हैं जिनसे दिल का दौरा पड़ सकता है जैसे कि साँस फूलना, वज़न बढ़ना, छाती में दर्द उठना वगैरह। नतीजा यह होता है कि हालाँकि दिल का दौरा पड़ने पर लोगों की मौत नहीं होती मगर फिर भी वे ज़िंदगी भर के लिए अपाहिज बनकर रह जाते हैं।

आज चिकित्सा क्षेत्र यही मानता है कि दिल के दौरे से बचने के लिए खान-पान और जीने के तरीके पर हमेशा ध्यान देना ज़रूरी है, साथ ही नियमित तौर पर डॉक्टर से जाँच भी कराते रहनी चाहिए। * जो लोग ऐसा करते हैं और ज़रूरत के मुताबिक बदलाव करते हैं, वे काफी हद तक दिल के दौरे के खतरनाक अंजामों से बच सकते हैं।

लेकिन, हमारे हृदय से जुड़ा एक और पहलू है जिस पर खास ध्यान दिया जाना चाहिए। बाइबल चेतावनी देती है: “सबसे अधिक अपने हृदय की रक्षा कर; क्योंकि जीवन के स्रोत उससे ही फूटते हैं।” (नीतिवचन 4:23, नयी हिन्दी बाइबिल) बेशक, इस आयत में लाक्षणिक हृदय की बात की गयी है। अपने शारीरिक दिल को बीमारी से बचाने के लिए सावधानी बरतना तो ज़रूरी है ही, लेकिन उससे भी ज़्यादा ज़रूरी है अपने लाक्षणिक हृदय की रक्षा करने के लिए चौकस रहना। ऐसा करने पर हमारा दिल उन बीमारियों से बच सकता है जो हमें आध्यात्मिक मौत की तरफ ले जा सकती हैं।

लाक्षणिक दिल के दौरे का करीब से मुआयना

दिल के दौरे से बचने का सबसे भरोसेमंद तरीका है, यह पता लगाना कि दिल का दौरा किन कारणों से होता है और फिर उन्हें दूर करने के लिए कुछ कदम उठाना। यही तरीका अपनाकर आध्यात्मिक दिल के दौरे से भी बचा जा सकता है। इसलिए आइए, हम शारीरिक और लाक्षणिक दिल की बीमारी के कुछ अहम कारणों पर गौर करें।

खान-पान। आम तौर पर माना जाता है कि चटपटा और मसालेदार खाना बड़ा स्वादिष्ट होता है मगर इससे हमारी सेहत को बहुत कम फायदा होता है या ज़रा भी नहीं। उसी तरह हमारे दिमाग में भरने के लिए रोचक जानकारी बड़ी आसानी से उपलब्ध है जो देखने, पढ़ने और सुनने में हमें बड़ी दिलचस्प लगती है और मज़ा आता है। मगर इससे हमारे आध्यात्मिक स्वास्थ्य का खतरा बढ़ता है। आज मीडिया के ज़रिए बड़ी चालाकी से ऐसी जानकारी दी जा रही है जिससे नाजायज़ लैंगिक संबंधों, ड्रग्स, हिंसा और तंत्र-मंत्र को बढ़ावा दिया जाता है। अपने दिमाग को ऐसी खुराक देने पर एक इंसान लाक्षणिक हृदय को जोखिम में डाल सकता है। परमेश्‍वर का वचन चेतावनी देता है: “जो कुछ संसार में है, अर्थात्‌ शरीर की अभिलाषा, और आंखों की अभिलाषा और जीविका का घमण्ड, वह पिता की ओर से नहीं, परन्तु संसार ही की ओर से है। और संसार और उस की अभिलाषाएं दोनों मिटते जाते हैं, पर जो परमेश्‍वर की इच्छा पर चलता है, वह सर्वदा बना रहेगा।”—1 यूहन्‍ना 2:16,17.

जिस इंसान को चटपटा और मसालेदार खाना खाने की आदत लग जाती है, वह फल और हरी सब्ज़ियों जैसे पौष्टिक आहार को देखते ही नाक-भौं सिकोड़ने लगता है। ठीक उसी तरह, जिसे दुनियावी बातों से अपने दिलो-दिमाग को भरने की लत पड़ जाती है उसका मन पौष्टिक और ठोस आध्यात्मिक आहार खाने में नहीं लगता। हो सकता है वह कुछ समय के लिए परमेश्‍वर के वचन का “दूध” पीकर काम चला ले। (इब्रानियों 5:13) लेकिन समय के गुज़रते वह आध्यात्मिक प्रौढ़ता हासिल नहीं कर पाता है, जो मसीही कलीसिया और सेवकाई में अपनी बुनियादी आध्यात्मिक ज़िम्मेदारियाँ निभाने के लिए ज़रूरी है। (मत्ती 24:14; 28:19; इब्रानियों 10:24,25) ऐसे में कई साक्षी आध्यात्मिक रूप से इतने कमज़ोर हो गए कि वे अब सच्चाई में ठंडे पड़ गए हैं!

एक और खतरा यह है कि बाहरी रंग-रूप, नज़र का धोखा हो सकता है। एक मसीही शायद दिखावे के लिए अपनी ज़िम्मेदारियाँ निभाता हो जिससे उसके आध्यात्मिक हृदय में पनप रही बीमारी छिप सकती है। वह चोरी-छिपे धन-दौलत कमाने के पीछे लगा रह सकता है या ऐसे मनोरंजन से अपना मन बहला सकता है जिनमें अनैतिकता, हिंसा या जादू-टोने के बारे में दिखाया जाता है। शुरूआत में शायद ऐसा घटिया आहार उसकी आध्यात्मिकता के लिए ज़्यादा नुकसानदेह न लगे, मगर बाद में चलकर इससे उसके आध्यात्मिक दिल को लकवा मार सकता है, ठीक जैसे पौष्टिक आहार न लेने से शारीरिक दिल की धमनियाँ कड़ी हो जाती हैं और दिल को नुकसान होता है। यीशु ने चेतावनी दी कि हमें अपने दिल में गंदे विचारों को जगह नहीं देनी चाहिए। उसने कहा: “जो कोई किसी स्त्री पर कुदृष्टि डाले वह अपने मन में उस से व्यभिचार कर चुका।” (मत्ती 5:28) जी हाँ, आध्यात्मिक पौष्टिक भोजन नहीं खाने से आध्यात्मिक दिल का दौरा पड़ सकता है। लेकिन ऐसे और भी कारण हैं जिन पर ध्यान देना ज़रूरी है।

कसरत। यह एक जानी-पहचानी बात है कि एक ही जगह बैठकर काम करने से शारीरिक दिल के दौरे के बहुत आसार रहते हैं। उसी तरह, आध्यात्मिक मायने में सुस्त ज़िंदगी बिताने के गंभीर परिणाम हो सकते हैं। उदाहरण के लिए, एक मसीही, प्रचार काम में थोड़ा-बहुत हिस्सा लेने में ही खुश रहता है मगर उससे ज़्यादा करने के लिए वह अपने चैन-आराम त्यागना नहीं चाहता। वह “ऐसा काम करनेवाला” बनने की थोड़ी या बिलकुल भी कोशिश नहीं करता कि उसे ‘लज्जित होना न पड़े, और वह सत्य के वचन को ठीक रीति से काम में लाता हो।’ (2 तीमुथियुस 2:15) या हो सकता है, एक मसीही कभी-कभार सभाओं में जाता हो, मगर उनकी तैयारी करने या उनमें भाग लेने के लिए कुछ खास कोशिश न करता हो। शायद उसकी ज़िंदगी में न तो कोई आध्यात्मिक लक्ष्य हों न ही आध्यात्मिक बातों की तलब या जोश। इसलिए उसके अंदर जो थोड़ा-बहुत विश्‍वास होता है, वह भी आध्यात्मिक कसरत न करने की वजह से धीरे-धीरे कमज़ोर होता जाता है, यहाँ तक कि पूरी तरह मिट जाता है। (याकूब 2:26) प्रेरित पौलुस ने इसी खतरे के बारे में इब्रानी मसीहियों को लिखा क्योंकि उस वक्‍त कुछ लोग आध्यात्मिक मायने में सुस्त हो गए थे। इससे वे आध्यात्मिक तौर पर सुन्‍न पड़ सकते थे। ध्यान दीजिए कि पौलुस ने इसके बारे में क्या कहा: “हे भाइयो, चौकस रहो, कि तुम में ऐसा बुरा और अविश्‍वासी मन न हो, जो जीवते परमेश्‍वर से दूर हट जाए। बरन जिस दिन तक आज का दिन कहा जाता है, हर दिन एक दूसरे को समझाते रहो, ऐसा न हो, कि तुम में से कोई जन पाप के छल में आकर कठोर हो जाए।”—इब्रानियों 3:12,13.

तनाव। दिल के दौरे का एक और बड़ा कारण है, भारी तनाव। उसी तरह तनाव या ‘जीवन की चिंताएँ’ एक इंसान के लाक्षणिक हृदय के लिए जानलेवा साबित हो सकती हैं, जिससे वह परमेश्‍वर की सेवा करना हमेशा के लिए छोड़ देता है। इस मामले में यीशु की यह चेतावनी वक्‍त के मुताबिक बिलकुल सही है: “सावधान रहो, ऐसा न हो कि तुम्हारे मन खुमार और मतवालेपन, और इस जीवन की चिन्ताओं से सुस्त हो जाएं, और वह दिन तुम पर फन्दे की नाईं अचानक आ पड़े।” (लूका 21:34) इसके अलावा अगर हम किसी गुप्त पाप की वजह से लंबे समय तक मन-ही-मन खुद को धिक्कारते रहते हैं, तो भी तनाव पैदा हो सकता जो हमारे लाक्षणिक दिल पर बहुत बुरा असर कर सकता है। राजा दाऊद ने भी अपने अनुभव से सीखा कि ऐसे नुकसानदेह तनाव से कितना दर्द महसूस होता है। उसने कहा: “मेरे पाप के कारण मेरी हड्डियों में कुछ भी चैन नहीं। क्योंकि मेरे अधर्म के कामों में मेरा सिर डूब गया, और वे भारी बोझ की नाईं मेरे सहने से बाहर हो गए हैं।”—भजन 38:3,4.

खुद पर हद-से-ज़्यादा भरोसा होना। दिल के दौरे का शिकार होने से पहले बहुत-से लोगों को अपने आप पर कुछ ज़्यादा ही भरोसा होता है कि उनकी सेहत को कुछ नुकसान नहीं हो सकता। कई बार तो वे डॉक्टर के पास दिल की जाँच कराने की बात को टाल देते हैं या इसे हँसी में उड़ाते हुए कहते हैं कि मुझे किसी डॉक्टर की क्या ज़रूरत है। उसी तरह कुछ मसीही सोच सकते हैं कि वे काफी समय से सच्चाई में हैं, इसलिए उनकी आध्यात्मिकता को कोई खतरा नहीं हो सकता। वे शायद तब तक अपने आध्यात्मिक हृदय की जाँच करवाने या खुद-ब-खुद इसका मुआयना करने की बात टालते रहें जब तक कि उन पर कोई विपत्ति न टूट पड़े। लेकिन खुद पर हद-से-ज़्यादा भरोसा रखने के बारे में प्रेरित पौलुस की इस बढ़िया सलाह को मन में रखना बेहद ज़रूरी है: “जो समझता है, कि मैं स्थिर हूं, वह चौकस रहे; कि कहीं गिर न पड़े।” इसलिए यह कबूल करना कि हम असिद्ध हैं, साथ ही समय-समय पर अपना आध्यात्मिक मुआयना करना अक्लमंदी होगी।—1 कुरिन्थियों 10:12; नीतिवचन 28:14.

खतरे की निशानियों को नज़रअंदाज़ मत कीजिए

बाइबल में हमारे लाक्षणिक हृदय की हालत पर खास ज़ोर दिया गया है और इसका वाजिब कारण भी है। यिर्मयाह 17:9,10 में हम पढ़ते हैं: “मन [“हृदय,” नयी हिन्दी बाइबिल] तो सब वस्तुओं से अधिक धोखा देनेवाला होता है, उस में असाध्य रोग लगा है; उसका भेद कौन समझ सकता है? मैं यहोवा मन को खोजता और हृदय को जांचता हूं ताकि प्रत्येक जन को उसकी चाल-चलन के अनुसार अर्थात्‌ उसके कामों का फल दूं।” लेकिन यहोवा न सिर्फ हमारे दिल की जाँच करता है बल्कि वह ऐसा इंतज़ाम भी करता है जिससे हम खुद अपना मुआयना कर सकें जो ज़रूरी है।

“विश्‍वासयोग्य और बुद्धिमान दास” के ज़रिए हमें सही वक्‍त पर चितौनियाँ मिलती रहती हैं। (मत्ती 24:45) उदाहरण के लिए, एक तरीका है जिससे हमारा लाक्षणिक हृदय हमें धोखा दे सकता है, वह है दुनियावी ख्वाबों-ख्यालों में डूबे रहने पर हमें मजबूर करना। इसमें काल्पनिक बातों में खोना, दिन में ख्वाब देखना और बेमतलब दिमाग को यहाँ-वहाँ भटकने देना शामिल है। खासकर अगर ये कल्पनाएँ हमारे मन में गंदे विचार पैदा करने लगें तो यह खतरनाक साबित हो सकता है। इसलिए हमें उनको पूरी तरह अपने मन से निकाल देना चाहिए। अगर हम यीशु की तरह अधर्म से घृणा करेंगे तो हम अपने दिल को दुनियावी खयालों में डूबने से बचा पाएँगे।—इब्रानियों 1:8,9.

इसके अलावा, मसीही कलीसिया के प्राचीन भी प्यार से हमारी मदद करते हैं। हालाँकि दूसरों से मिलनेवाली मदद की हम बेशक कदर करते हैं, मगर अपने लाक्षणिक हृदय की देखभाल करना खासकर हममें से हरेक की अपनी ज़िम्मेदारी है। यह हम पर है कि हम ‘सब बातों को परखें’ और ‘अपने आप को परखते रहें, कि विश्‍वास में हैं कि नहीं।’—1 थिस्सलुनीकियों 5:21; 2 कुरिन्थियों 13:5.

अपने दिल की रक्षा कीजिए

बाइबल का सिद्धांत कि “मनुष्य जो कुछ बोता है, वही काटेगा” यह हमारे आध्यात्मिक दिल की सेहत के मामले में भी लागू होता है। (गलतियों 6:7) अकसर देखने पर ऐसा लगता है कि एक इंसान आध्यात्मिक मायने में अचानक तबाह हो गया है। लेकिन सच तो यह है कि यह अचानक नहीं बल्कि उसकी तबाही लंबे समय से धीरे-धीरे होती आयी है। हो सकता है, उसने काफी समय से चोरी-छिपे पोर्नोग्राफी या अश्‍लीलता से मन बहलाने की आदत बना ली हो, धन-दौलत कमाने में लग गया होगा या शायद उस पर शोहरत या ओहदा पाने का जुनून सवार हो गया हो।

तो अपने दिल की रक्षा करने के लिए अपनी आध्यात्मिक खुराक पर ध्यान देना ज़रूरी है। अपने दिलो-दिमाग को परमेश्‍वर के वचन से पोषित करते रहिए। मानसिक चटपटा और मसालेदार खाना खाने से परहेज़ कीजिए जो आज बड़ी आसानी से मिल रहा है। यह शरीर को तो बहुत भाता है, मगर लाक्षणिक हृदय को कठोर बना सकता है। भजनहार ने हमें चेतावनी देने के लिए एकदम सही मिसाल दी जो चिकित्सीय रूप से भी सही है: “उनके हृदय पर चर्बी छा गई है।”—भजन 119:70, NHT.

अगर आपके आध्यात्मिक दिल में लंबे समय से कुछ गंभीर कमज़ोरियाँ छिपी हैं, तो उन्हें जड़ से उखाड़ फेंकने की जी-तोड़ कोशिश कीजिए वरना ये आपकी लाक्षणिक धमनियों में अवरोध पैदा कर सकती हैं। अगर आप संसार की बातों की ओर लुभाए जा रहे हैं और आपको ऐसा लगने लगे कि संसार में सुख-विलास और खुशियाँ पाने के ज़्यादा मौके हैं, तो आप प्रेरित पौलुस की इस बुद्धिभरी सलाह पर मनन कीजिए: “हे भाइयो, मैं यह कहता हूं, कि समय कम किया गया है, इसलिये . . . इस संसार के बरतनेवाले ऐसे हों, कि संसार ही के न हो लें; क्योंकि इस संसार की रीति और व्यवहार बदलते जाते हैं।” (1 कुरिन्थियों 7:29-31) और अगर धन-दौलत और ऐशो-आराम की ओर आपका मन ललचाने लगे तो अय्यूब के इन शब्दों को दिल में बिठा लीजिए: “यदि मैं ने सोने का भरोसा किया होता, वा कुन्दन को अपना आसरा कहा होता, तो यह भी न्यायियों से दण्ड पाने के योग्य अधर्म का काम होता; क्योंकि ऐसा करके मैं ने सर्वश्रेष्ठ ईश्‍वर का इनकार किया होता।”—अय्यूब 31:24,28; भजन 62:10; 1 तीमुथियुस 6:9,10.

बाइबल पर आधारित सलाहों को नज़रअंदाज़ करने की आदत बना लेना कितना गंभीर हो सकता है, इसे समझाते हुए बाइबल चेतावनी देती है: “जो बार बार डांटे जाने पर भी हठ करता है, वह अचानक नाश हो जाएगा और उसका कोई भी उपाय काम न आएगा।” (नीतिवचन 29:1) दूसरी तरफ अगर, हम अपने लाक्षणिक हृदय की अच्छी देखभाल करते रहेंगे तो हमें खुशी और मन की शांति मिलेगी क्योंकि हमारी ज़िंदगी गैर-ज़रूरी कामों में उलझी नहीं रहेगी। दरअसल शुरू से ही सच्चे मसीहियों को ऐसा सादगी भरा जीवन बिताने के लिए उकसाया गया है। प्रेरित पौलुस ने ईश्‍वर-प्रेरणा से यह लिखा: “सन्तोष सहित भक्‍ति बड़ी कमाई है। क्योंकि न हम जगत में कुछ लाए हैं और न कुछ ले जा सकते हैं। और यदि हमारे पास खाने और पहिनने को हो, तो इन्हीं पर सन्तोष करना चाहिए।”—1 तीमुथियुस 6:6-8.

जी हाँ, परमेश्‍वर के लिए भक्‍ति पैदा करने और उसके मार्ग पर चलते रहने से हम अपने लाक्षणिक हृदय को मज़बूत और सेहतमंद बनाए रख सकेंगे। अगर हम अपनी आध्यात्मिक खुराक पर कड़ी नज़र रखेंगे तो हम अपनी आध्यात्मिकता पर दुनिया के खतरनाक तौर-तरीकों और सोच-विचार का ज़रा-भी असर नहीं पड़ने देंगे जो उसे नुकसान पहुँचा सकते हैं। सबसे अहम बात यह है कि यहोवा ने अपने संगठन के ज़रिए जो इंतज़ाम किए हैं, आइए हम उनके मुताबिक चलकर अपने लाक्षणिक हृदय की नियमित तौर पर जाँच करते रहें। पूरी लगन के साथ ऐसा करते रहने से हम आध्यात्मिक दिल के दौरे के बुरे अंजामों से बच सकते हैं।

[फुटनोट]

^ ज़्यादा जानकारी के लिए जनवरी 8,1997 की सजग होइए! का श्रृंखला लेख, “दिल का दौरा—क्या किया जा सकता है?” देखिए। इसे यहोवा के साक्षियों ने प्रकाशित किया है।

[पेज 10 पर बड़े अक्षरों में लेख की खास बात]

जैसे चटपटा मसालेदार खाना, धमनियों में अवरोध पैदा करके दिल को नुकसान पहुँचाता है, वैसे ही आध्यात्मिक तौर पर घटिया भोजन लेने से हमारे लाक्षणिक हृदय को लकवा मार सकता है

[पेज 10 पर बड़े अक्षरों में लेख की खास बात]

आध्यात्मिक रूप से एक सुस्त ज़िंदगी बिताने के बुरे अंजाम हो सकते हैं

[पेज 11 पर बड़े अक्षरों में लेख की खास बात]

‘जीवन की चिन्ताएं,’ लाक्षणिक हृदय के लिए जानलेवा साबित हो सकती हैं

[पेज 11 पर तसवीर]

आध्यात्मिक सेहत का खयाल न रखने से बाद में बड़ी-बड़ी मुसीबतें पैदा हो सकती हैं

[पेज 13 पर तसवीरें]

अच्छी आध्यात्मिक आदतें डालने से लाक्षणिक हृदय सुरक्षित रहता है

[पेज 9 पर चित्र का श्रेय]

AP Photo/David Longstreath