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सभी सच्चे मसीही खुशखबरी सुनाते हैं

सभी सच्चे मसीही खुशखबरी सुनाते हैं

सभी सच्चे मसीही खुशखबरी सुनाते हैं

“यहोवा के लिये गाओ, उसके नाम को धन्य कहो; दिन दिन उसके किए हुए उद्धार का शुभसमाचार सुनाते रहो।”भजन 96:2.

1. कौन-सी खुशखबरी लोगों तक पहुँचाना ज़रूरी है, और यहोवा के साक्षियों ने सुसमाचार सुनाने में कैसे बढ़िया मिसाल कायम की है?

 एक तरफ जहाँ संसार में आए दिन विपत्तियाँ आती रहती हैं, वहीं बाइबल के इस संदेश से कितना सुकून मिलता है कि बहुत जल्द युद्ध, अपराध, भुखमरी और ज़ुल्म का नामोनिशान मिट जाएगा। (भजन 46:9; 72:3, 7, 8, 12, 16) क्या यह वाकई खुशखबरी नहीं जिसे सबको सुनने की ज़रूरत है? यहोवा के साक्षी समझते हैं कि यह खुशखबरी सभी को दी जानी चाहिए। दुनिया भर में वे “कल्याण का शुभ समाचार” प्रचार करने के लिए जाने जाते हैं। (यशायाह 52:7) साक्षी ऐसा इसलिए करते हैं क्योंकि उन्होंने खुशखबरी सुनाने की ठान ली है। यह सच है कि उनके इस पक्के इरादे की वजह से उन्हें बुरी तरह सताया गया है। मगर वे सारे ज़ुल्म सहने के लिए तैयार हैं, क्योंकि उन्हें लोगों की परवाह है और वे उनकी भलाई चाहते हैं। खुशखबरी सुनाने के जोश और अपने काम में टिके रहने के लिए, उन्होंने क्या ही नाम कमाया है!

2. यहोवा के साक्षियों के जोश से प्रचार करने की एक वजह क्या है?

2 आज यहोवा के साक्षी, पहली सदी के मसीहियों की तरह जोश दिखाते हैं। उन शुरूआती मसीहियों के बारे में रोमन कैथोलिक समाचार-पत्र लॉ ओसेरवातोरे रोमानो ने एकदम सही कहा: “शुरू के मसीहियों का जैसे ही बपतिस्मा होता था वे समझते थे कि सुसमाचार प्रचार करना उनका फर्ज़ है। वे सभी लोगों के पास जाकर उन्हें सुसमाचार सुनाते थे।” यहोवा के साक्षी, उनकी तरह जोश क्यों दिखाते हैं? पहली वजह तो यह है कि जिस सुसमाचार या खुशखबरी का वे प्रचार करते हैं, वह परमेश्‍वर यहोवा की तरफ से है। क्या उनका जोश दिखाने की इससे बड़ी कोई वजह हो सकती है? वे भजनहार के इन शब्दों के मुताबिक अपना प्रचार काम करते हैं: “यहोवा के लिये गाओ, उसके नाम को धन्य कहो; दिन दिन उसके किए हुए उद्धार का शुभसमाचार सुनाते रहो।”—भजन 96:2.

3. (क) यहोवा के साक्षियों के जोश से प्रचार करने की दूसरी वजह क्या है? (ख) ‘[परमेश्‍वर] की ओर से उद्धार’ में क्या शामिल है?

3 भजनहार के शब्दों में यहोवा के साक्षियों के जोश का दूसरा कारण बताया गया है। वे उद्धार का संदेश देते हैं। कुछ लोग दूसरों की ज़िंदगी को बेहतर बनाने के लिए चिकित्सीय, सामाजिक, आर्थिक और दूसरे क्षेत्रों में मेहनत करते हैं जो काबिले-तारीफ है। लेकिन एक इंसान चाहे दूसरों के लिए कितनी ही मेहनत क्यों न करे, उससे उतना फायदा नहीं होता है जितना “[परमेश्‍वर के] किए हुए उद्धार” से होता है। यहोवा, यीशु के ज़रिए नम्र लोगों को पाप, बीमारी और मौत की जकड़ से छुड़ाएगा और उन्हें हमेशा की ज़िंदगी देगा! (यूहन्‍ना 3:16,36; प्रकाशितवाक्य 21:3,4) आज मसीही, भजनहार के शब्दों के मुताबिक परमेश्‍वर के जिन “आश्‍चर्यकर्मों” के बारे में बताते हैं उनमें एक है, परमेश्‍वर से मिलनेवाला उद्धार: “अन्य जातियों में उसकी महिमा का, और देश देश के लोगों में उसके आश्‍चर्यकर्मों का वर्णन करो। क्योंकि यहोवा महान और अति स्तुति के योग्य है; वह तो सब देवताओं से अधिक भययोग्य है।”—भजन 96:3, 4.

हमारे स्वामी की मिसाल

4-6. (क) यहोवा के साक्षियों के जोश से प्रचार करने की तीसरी वजह क्या है? (ख) यीशु ने खुशखबरी सुनाने में कैसा जोश दिखाया?

4 यहोवा के साक्षियों के जोश की तीसरी वजह यह है कि वे यीशु मसीह की मिसाल पर चलते हैं। (1 पतरस 2:21) उस सिद्ध इंसान ने ‘खेदित मन के लोगों को सुसमाचार सुनाने’ का काम पूरे दिल से स्वीकार किया। (यशायाह 61:1; लूका 4:17-21) इस तरह वह प्रचारक यानी खुशखबरी सुनानेवाला बन गया। उसने पूरे गलील और यहूदिया ज़िले में “राज्य का सुसमाचार प्रचार” किया। (मत्ती 4:23) और वह जानता था कि बहुत-से लोग इस सुसमाचार को स्वीकार करेंगे, इसलिए उसने अपने चेलों से कहा: “पक्के खेत तो बहुत हैं पर मजदूर थोड़े हैं। इसलिये खेत के स्वामी से बिनती करो कि वह अपने खेत काटने के लिये मजदूर भेज दे।”—मत्ती 9:37, 38.

5 अपनी बिनती के मुताबिक यीशु ने दूसरों को भी प्रचार करना सिखाया। कुछ समय बाद, उसने प्रेरितों को यह कहकर भेजा: ‘चलते चलते प्रचार करते हुए कहो कि स्वर्ग का राज्य निकट आ गया है।’ लेकिन क्या यह बेहतर नहीं होता कि वे प्रचार करने के बजाय समाज सुधार के अभियान चलाते? या क्या उन्हें समाज में फैले भ्रष्टाचार को जड़ से उखाड़ फेंकने के लिए राजनीति में शामिल नहीं होना था? नहीं। इसके बजाय, यीशु मसीह ने सभी मसीही प्रचारकों के लिए एक स्तर बनाया जब उसने कहा: “चलते चलते प्रचार कर।”—मत्ती 10:5-7.

6 बाद में, यीशु ने चेलों का एक और समूह बनाया और उन्हें यह घोषणा करने के लिए भेजा: “परमेश्‍वर का राज्य तुम्हारे निकट आ पहुंचा है।” जब चेलों ने अपने प्रचार के दौरे से वापस लौटकर यीशु को अपनी सफलता की खबर दी तो यीशु की खुशी की सीमा नहीं रही। उसने प्रार्थना की: “हे पिता, स्वर्ग और पृथ्वी के प्रभु, मैं तेरा धन्यवाद करता हूं, कि तू ने इन बातों को ज्ञानियों और समझदारों से छिपा रखा, और बालकों पर प्रगट किया।” (लूका 10:1, 8, 9, 21) यीशु के चेले, जो पहले मछुवाई और खेती-बाड़ी जैसे पेशे में मेहनत करते थे, वे यहूदी राष्ट्र के बहुत पढ़े-लिखे धार्मिक अगुओं के सामने तो मानो बालक थे। लेकिन फिर भी उन चेलों को सबसे बेहतरीन खुशखबरी का प्रचार करना सिखाया गया था।

7. यीशु के स्वर्ग जाने के बाद, उसके चेलों ने सबसे पहले किसको खुशखबरी सुनायी?

7 यीशु के स्वर्ग जाने के बाद, उसके चेलों ने चारों तरफ उद्धार की खुशखबरी सुनाना जारी रखा। (प्रेरितों 2:21, 38-40) उन्होंने सबसे पहले किसे प्रचार किया? क्या उन्होंने उन जातियों को प्रचार किया जो परमेश्‍वर को नहीं जानते थे? नहीं, शुरू में उन्होंने इस्राएल जाति को प्रचार किया, जो 1,500 से भी ज़्यादा सालों से यहोवा को जानते थे। क्या उनका उन जगहों पर प्रचार करना सही था जहाँ लोग पहले से यहोवा के उपासक थे? बिलकुल सही था। यीशु ने उनसे कहा था: “तुम . . . यरूशलेम और सारे यहूदिया और सामरिया में, और पृथ्वी की छोर तक मेरे गवाह होगे।” (प्रेरितों 1:8) इस्राएल जाति को भी खुशखबरी सुनने की उतनी ही ज़रूरत थी जितनी कि दूसरी जातियों को।

8. यहोवा के साक्षी पहली सदी में रहनेवाले यीशु के शिष्यों की मिसाल पर कैसे चलते हैं?

8 ठीक उसी तरह आज, यहोवा के साक्षी धरती के कोने-कोने में जाकर प्रचार करते हैं। वे उस स्वर्गदूत के साथ मिलकर काम करते हैं जिसे यूहन्‍ना ने अपने दर्शन में देखा था और “जिस के पास पृथ्वी पर के रहनेवालों की हर एक जाति, और कुल, और भाषा, और लोगों को सुनाने के लिये सनातन सुसमाचार था।” (प्रकाशितवाक्य 14:6) साल 2001 में साक्षियों ने पूरे जोश के साथ 235 देशों और इलाकों में प्रचार किया, यहाँ तक कि उन देशों में भी जिन्हें आम तौर पर ईसाई देश माना जाता है। क्या यहोवा के साक्षियों का ऐसी जगहों में प्रचार करना गलत है जहाँ ईसाईजगत के चर्च पहले से ही मौजूद हैं? कुछ लोग कहते हैं कि ऐसा करना गलत है और वे यह भी सोचते हैं कि सुसमाचार के ये प्रचारक “भेड़ें चुराते” हैं। लेकिन ऐसे में यहोवा के साक्षी याद करते हैं कि यीशु ने आम यहूदियों के लिए कैसी भावनाएँ दिखायी थी। हालाँकि उन्हें धर्म की शिक्षा देने के लिए याजकवर्ग मौजूद था, फिर भी यीशु उन्हें खुशखबरी सुनाने से न झिझका। उसे “लोगों पर तरस आया, क्योंकि वे उन भेडों की नाईं जिनका कोई रखवाला न हो, ब्याकुल और भटके हुए से थे।” (मत्ती 9:36) आज भी ऐसे नम्र लोग हैं जो यहोवा और उसके राज्य के बारे में नहीं जानते। तो क्या यहोवा के साक्षियों को सिर्फ इसलिए उन्हें खुशखबरी नहीं सुनानी चाहिए क्योंकि वे किसी और धर्म के माननेवाले हैं? हम यीशु के प्रेरितों के उदाहरण पर चलते हैं इसलिए हमारा जवाब है, नहीं। खुशखबरी हर हाल में “सब जातियों में प्रचार” की जानी चाहिए।—मरकुस 13:10.

पहली सदी के सभी मसीही, प्रचारक थे

9. पहली सदी में, मसीही कलीसिया के किन लोगों ने प्रचार काम में हिस्सा लिया?

9 पहली सदी के प्रचार काम में किन लोगों ने हिस्सा लिया? सबूत दिखाते हैं कि सभी मसीही, प्रचारक थे। लेखक डब्ल्यू. एस. विलियम्स कहते हैं: “ज़्यादातर सबूतों से यही बात सामने आती है कि शुरू के चर्च के सभी मसीही . . . सुसमाचार का प्रचार करते थे।” सा.यु. 33 के पिन्तेकुस्त के दिन की घटना के बारे में बाइबल कहती है: “वे सब [आदमी और औरत] पवित्र आत्मा से भर गए, और जिस प्रकार आत्मा ने उन्हें बोलने की सामर्थ दी, वे अन्य अन्य भाषा बोलने लगे।” जी हाँ, आदमी, औरत, जवान और बूढ़े, दास और मालिक सभी ने प्रचार काम में हिस्सा लिया। (प्रेरितों 1:14; 2:1, 4, 17, 18; योएल 2:28, 29; गलतियों 3:28) जब मसीहियों को बहुत सताया गया और उन्हें यरूशलेम छोड़कर भागना पड़ा तो “तितर-बितर हुए लोग हर कहीं जा कर सुसमाचार का संदेश देने लगे।” (प्रेरितों 8:4, ईज़ी-टू-रीड वर्शन) इस तरह प्रचार का काम सिर्फ कुछ नियुक्‍त किए गए व्यक्‍तियों ने नहीं बल्कि “तितर-बितर हुए” सभी ‘लोगों’ ने किया।

10. यहूदी व्यवस्था के नाश होने से पहले मसीहियों ने कौन-से दो काम पूरे किए?

10 उन शुरूआती सालों में सभी मसीहियों ने प्रचार किया। यीशु ने भविष्यवाणी की: “राज्य का यह सुसमाचार सारे जगत में प्रचार किया जाएगा, कि सब जातियों पर गवाही हो, तब अन्त आ जाएगा।” (मत्ती 24:14) यह भविष्यवाणी पहली सदी में पूरी हुई थी, क्योंकि रोमियों द्वारा यहूदियों की धार्मिक और राजनीतिक व्यवस्था के विनाश से पहले, चारों तरफ राज्य की खुशखबरी सुनायी गयी थी। (कुलुस्सियों 1:23) इसके अलावा, यीशु के सभी चेलों ने उसकी यह आज्ञा भी मानी: “तुम जाकर सब जातियों के लोगों को चेला बनाओ और उन्हें पिता और पुत्र और पवित्रात्मा के नाम से बपतिस्मा दो। और उन्हें सब बातें जो मैं ने तुम्हें आज्ञा दी है, मानना सिखाओ।” (मत्ती 28:19,20) पहली सदी के मसीही आज के कुछ प्रचारकों की तरह नहीं थे जो पहले तो नम्र लोगों को यीशु पर विश्‍वास करना सिखाते हैं और फिर बिना मार्गदर्शन दिए उन्हें अपनी मर्ज़ी से परमेश्‍वर की सेवा करने के लिए छोड़ देते हैं। इसके बजाय, वे लोगों को यीशु का चेला बनना सिखाते थे, उन्हें कलीसिया में संगठित करते थे और फिर उन्हें तालीम देते थे ताकि वे भी दूसरों को खुशखबरी सुना सकें और चेला बना सकें। (प्रेरितों 14:21-23) आज, यहोवा के साक्षी उन्हीं की मिसाल पर चलते हैं।

11. आज कौन पूरी मानवजाति के लिए सबसे बढ़िया खुशखबरी का ऐलान कर रहे हैं?

11 यहोवा के कई साक्षी, पौलुस, बरनबास और उनके जैसी दूसरी मिसालों पर चलते हुए मिशनरी काम के लिए विदेशों में जाकर बस गए हैं। उनकी मेहनत वाकई रंग लायी है क्योंकि वे राजनीति में दखलअंदाज़ी नहीं करते, न ही किसी दूसरे काम में उलझकर प्रचार करने की ज़िम्मेदारी से भटकते हैं। वे बस यीशु मसीह की इस आज्ञा का पालन करते हैं: “चलते चलते प्रचार कर।” मगर ज़्यादातर साक्षी दूसरे देशों में जाकर प्रचार नहीं करते। उनमें से बहुतों का नौकरी-पेशा है, दूसरे स्कूल की पढ़ाई कर रहे हैं और कुछ पर अपने बच्चों की परवरिश करने की ज़िम्मेदारी है। इन सबके बावजूद, वे सभी उस खुशखबरी को सुनाने में शामिल हैं जो उन्होंने सीखी है। जवान और बुज़ुर्ग, स्त्री और पुरुष सभी खुशी-खुशी बाइबल की इस सलाह को मानते हैं: “वचन को प्रचार कर; समय और असमय तैयार रह।” (2 तीमुथियुस 4:2) पहली सदी के मसीहियों की तरह वे ‘इस बात का सुसमाचार सुनाने से, कि यीशु ही मसीह है नहीं रुकते।’ (प्रेरितों 5:42) वे पूरी मानवजाति के लिए सबसे बढ़िया खुशखबरी का ऐलान कर रहे हैं।

प्रचार करना या ज़बरदस्ती धर्म-परिवर्तन कराना?

12. आज बहुत-से लोग यह क्यों मानते हैं कि धर्म परिवर्तन कराना पाप है?

12 आज कुछ लोगों का कहना है कि धर्म-परिवर्तन कराना नुकसानदेह है। यहाँ तक कि विश्‍व के चर्च परिषद्‌ द्वारा छापे गए एक लेख ने कहा कि “धर्म परिवर्तन कराना पाप है।” क्यों? कैथोलिक वर्ल्ड रिपोर्ट कहती है: “ऑर्थोडॉक्स चर्च से बार-बार मिली शिकायतों की वजह से धर्म-परिवर्तन का ज़िक्र सुनते ही लोगों के मन में ज़बरदस्ती धर्म-परिवर्तन कराने की बात आती है।”

13. ऐसे कुछ उदाहरण दीजिए जिनमें धर्म-परिवर्तन कराना नुकसानदेह साबित हुआ है?

13 क्या धर्म-परिवर्तन कराना नुकसानदेह है? हो सकता है। यीशु ने कहा कि शास्त्री और फरीसी, लोगों का धर्म-परिवर्तन कराने में कोई कसर नहीं छोड़ते थे, मगर वे ऐसा उन लोगों की भलाई के लिए नहीं करते थे। (मत्ती 23:15) बेशक, किसी का “ज़बरदस्ती धर्म-परिवर्तन” कराना गलत है। उदाहरण के लिए, इतिहासकार जोसीफस के मुताबिक मक्काबी जॉन हेरिकेनस ने पराजित एदोमियों को “इस शर्त पर अपने देश में रहने की इजाज़त दी कि उन्हें अपना खतना करवाना है और यहूदियों के नियमों का पालन करना है।” अगर एदोमी, यहूदी शासन के अधीन रहना चाहते थे तो उन्हें यहूदी धर्म अपनाना था। इतिहासकार बताते हैं कि आठवीं सदी में शार्लमेन ने उत्तरी यूरोप के मूर्तिपूजा करनेवाले, सैक्सन नागरिकों को युद्ध में हरा दिया और उनका बड़ी बेरहमी से धर्म-परिवर्तन कराया। * एदोमियों और सैक्सन नागरिकों का धर्म-परिवर्तन कराना कहाँ तक सही था? मसलन, क्या वह एदोमवंशी राजा हेरोदेस, परमेश्‍वर द्वारा मूसा को दी गयी व्यवस्था को सच्चे मन से मानता था जिसने नन्हे यीशु को मरवाने की कोशिश की?—मत्ती 2:1-18.

14. ईसाईजगत के कुछ मिशनरी, लोगों को अपना धर्म बदलने के लिए उन पर क्या दबाव डालते हैं?

14 क्या आज भी ज़बरदस्ती किसी का धर्म-परिवर्तन किया जाता है? एक तरह से ऐसा किया जा रहा है। यह रिपोर्ट मिली है कि ईसाईजगत के कुछ मिशनरी धर्म-परिवर्तन कराने के लिए लोगों को विलायत में पढ़ाई करने के लिए वज़ीफे का लालच देते हैं। या वे भूखे शरणार्थियों को पहले बिठाकर भाषण सुनाते हैं और उसके बाद ही उन्हें खाना देते हैं। सन्‌ 1992 में ऑर्थोडॉक्स चर्च के पादरियों की सभा द्वारा जारी किए गए बयान के मुताबिक “कभी आर्थिक चीज़ों का लालच देकर, तो कभी अलग-अलग तरीकों से ज़ुल्म ढाकर लोगों का धर्म-परिवर्तन किया जाता है।”

15. क्या यहोवा के साक्षी लोगों का धर्म बदलने के लिए उनके साथ ज़बरदस्ती करते हैं?

15 धर्म-परिवर्तन कराने के लिए किसी के साथ ज़बरदस्ती करना गलत है। यहोवा के साक्षी ऐसा हरगिज़ नहीं करते। * वे किसी पर अपनी राय नहीं थोपते। इसके बजाय वे पहली सदी के मसीहियों की तरह हर जगह जाकर सब लोगों को खुशखबरी सुनाते हैं। जो लोग खुद अपनी इच्छा से इस खुशखबरी के बारे में जानना चाहते हैं, उन्हें वे बाइबल अध्ययन के ज़रिए ज़्यादा ज्ञान लेने का बढ़ावा देते हैं। दिलचस्पी दिखानेवाले ऐसे लोग बाइबल का सही ज्ञान पाकर परमेश्‍वर और उसके उद्देश्‍यों में विश्‍वास करना सीखते हैं। और इसका नतीजा यह होता है कि वे उद्धार के लिए यहोवा परमेश्‍वर का नाम पुकारते हैं। (रोमियों 10:13, 14, 17) चाहे वे संदेश को स्वीकार करें या नहीं, यह उनका खुद का फैसला है। उन पर किसी भी तरह का दबाव नहीं डाला जाता। अगर उनके साथ ज़ोर-ज़बरदस्ती की जाती है तो उस धर्म-परिवर्तन के कोई मायने नहीं रह जाते क्योंकि परमेश्‍वर, सिर्फ सच्चे दिल से की गयी उपासना को ही स्वीकार करता है।—व्यवस्थाविवरण 6:4, 5; 10:12.

हमारे ज़माने में प्रचार

16. आज, यहोवा के साक्षियों के काम में कैसी बढ़ोतरी हुई है?

16 हमारे समय में यहोवा के साक्षी, राज्य की खुशखबरी सुना रहे हैं और उनके इसी काम के ज़रिए मत्ती 24:14 की भविष्यवाणी बड़े पैमाने पर पूरी हो रही है। यहोवा के साक्षियों के प्रचार काम का एक खास ज़रिया है, प्रहरीदुर्ग पत्रिका। * जब 1879 में प्रहरीदुर्ग छपनी शुरू हुई, तब उसकी 6,000 कॉपियाँ बाँटी जाती थीं और वह भी एक ही भाषा में। उसके 122 से भी ज़्यादा साल बाद यानी सन्‌ 2001 में यह पत्रिका 141 भाषाओं में छापी गयी और इसकी 2,30,42,000 कॉपियाँ बाँटी गयीं। इसके साथ-साथ यहोवा के साक्षियों के प्रचार काम में भी बढ़ोतरी हुई है। उन्‍नीसवीं सदी में उन्होंने हर साल कुछ हज़ार घंटे प्रचार में बिताए थे मगर 2001 में उन्होंने प्रचार काम में 1,16,90,82,225 घंटे बिताए। इस बात पर भी गौर कीजिए कि हर महीने औसतन 49,21,702 लोगों के साथ मुफ्त में बाइबल अध्ययन किया गया। प्रचार के बढ़िया काम को कितने बड़े पैमाने पर पूरा किया गया! और यह करीब 61,17,666 राज्य प्रचारकों की बदौलत हुआ है।

17. (क) आज किन झूठे देवी-देवताओं को पूजा जाता है? (ख) लोगों की भाषा, उनका देश और समाज में उनकी हैसियत चाहे जो भी हो, उन्हें क्या जानने की ज़रूरत है?

17 भजनहार कहता है: “देश देश के सब देवता तो मूरतें ही हैं; परन्तु यहोवा ही ने स्वर्ग को बनाया है।” (भजन 96:5) आज की दुनिया में जहाँ भी देखो लोगों में देशभक्‍ति की भावना दिखायी देती है, राष्ट्रीय चिन्हों और जानी-मानी हस्तियों को पूजा जाता है, ऐशो-आराम की चीज़ों, यहाँ तक कि धन-दौलत को भी ईश्‍वर का दर्जा दिया जाता है। (मत्ती 6:24; इफिसियों 5:5; कुलुस्सियों 3:5) मोहनदास के. गाँधी ने कहा था: “इसमें कोई दो राय नहीं कि . . . आज यूरोप के लोग सिर्फ नाम के वास्ते ईसाई हैं। असल में, वे धन-संपत्ति की पूजा कर रहे हैं।” तो कहने का मतलब यह है कि आज हर तरफ खुशखबरी सुनाने की ज़रूरत है। लोग चाहे कोई भी भाषा बोलते हों, किसी भी देश के हों और समाज में उनकी जो भी हैसियत हो, सबको यहोवा और उसके उद्देश्‍यों को जानने की ज़रूरत है। हम यही कामना करते हैं कि सभी इंसान, भजनहार के इन शब्दों पर अमल करें: “यहोवा की महिमा और सामर्थ्य को मानो! यहोवा के नाम की ऐसी महिमा करो जो उसके योग्य है”! (भजन 96:7, 8) यहोवा के साक्षी दूसरों को यहोवा के बारे में सीखने में मदद देते हैं ताकि वे सही तरह से उसकी महिमा कर सकें। और जो यहोवा के बारे में सीखने में दिलचस्पी दिखाते हैं, उन्हें इससे बहुत फायदा होता है। उन्हें कौन-से फायदे होते हैं? इस बारे में अगले लेख में चर्चा की जाएगी।

[फुटनोट]

^ कैथोलिक इनसाइक्लोपीडिया के मुताबिक, धर्म-सुधार आंदोलन के दौरान, एक धर्म को मानने के लिए लोगों के साथ ज़बरदस्ती की गयी थी। यह बात इस संदेश से जानने को मिलती है: क्यूइअस रिगो, इलीअस एट रिलीगिओ (इसका सार है: “जो कोई शासन करता है, वही प्रजा के लिए धर्म भी तय करता है।”)

^ नवंबर 16, 2000 को संयुक्‍त राष्ट्र अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक आज़ादी आयोग की एक सभा आयोजित की गयी। उसमें भाग लेनेवाले एक शख्स ने यहोवा के साक्षियों के काम और उन लोगों के काम में फर्क बताया जो ज़बरदस्ती धर्म-परिवर्तन कराते हैं। यह बताया गया था कि प्रचार में जब लोग यहोवा के साक्षियों से कहते हैं: “मुझे दिलचस्पी नहीं है” और दरवाज़ा बंद कर लेते हैं, तो साक्षी उन्हें ज़बरदस्ती संदेश नहीं सुनाते।

^ इस पत्रिका का पूरा शीर्षक है, प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है।

क्या आप समझा सकते हैं?

• यहोवा के साक्षी जोश से क्यों प्रचार करते हैं?

• यहोवा के साक्षी उन जगहों पर भी क्यों प्रचार करते हैं, जहाँ ईसाईजगत के चर्च पहले से ही मौजूद हैं?

• यहोवा के साक्षी ऐसे कई लोगों से क्यों अलग हैं जो दूसरों का धर्म-परिवर्तन कराते हैं?

• आज, यहोवा के साक्षियों के काम में कैसी बढ़ोतरी हुई है?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 9 पर तसवीर]

यीशु, एक जोशीला प्रचारक था और उसने दूसरों को भी यही काम करना सिखाया

[पेज 10 पर तसवीर]

पहली सदी की कलीसिया के सभी सदस्यों ने प्रचार काम में हिस्सा लिया था

[पेज 11 पर तसवीर]

लोगों से ज़बरदस्ती उनका धर्म-परिवर्तन करवाना गलत है