परमेश्वर के वचन के सिखानेवाले अपनी ज़िम्मेदारी निभाने के लिए उकसाए गए
परमेश्वर के वचन के सिखानेवाले अपनी ज़िम्मेदारी निभाने के लिए उकसाए गए
पिछले कुछ महीनों के दौरान लाखों शिक्षक हिदायतें पाने के लिए इकट्ठे हुए। वे दुनिया भर की सैकड़ों जगहों पर यहोवा के साक्षियों के ज़िला अधिवेशनों में हाज़िर हुए। इन अधिवेशनों का शीर्षक था, “परमेश्वर के वचन के सिखानेवाले” और ये पिछले साल मई महीने से शुरू हुए। इनमें हाज़िर सभी लोगों को उकसाया गया कि वे खुद को तालीम दें, अपनी काबिलीयत में निखार लाएँ और दूसरों को सिखाने की अपनी ज़िम्मेदारी पूरी करें।
क्या आप भी उनमें से किसी एक अधिवेशन में हाज़िर हुए थे? अगर हाँ, तो बेशक आप उस बढ़िया आध्यात्मिक दावत के लिए आभारी होंगे जो सच्चे परमेश्वर, यहोवा की उपासना करने के लिए आयोजित इन अधिवेशनों में दी गयी थी। क्यों न आप भी हमारे साथ अधिवेशन के फायदेमंद कार्यक्रम की याद ताज़ा करें?
पहला दिन—परमेश्वर की प्रेरणा से रचा गया पवित्रशास्त्र सिखाने के लिए लाभदायक है
अधिवेशन के सभापति ने “परमेश्वर के वचन के सिखानेवालो, आप भी सीखो” भाषण के ज़रिए हाज़िर सभी लोगों का हार्दिक स्वागत किया। “महान उपदेशक,” यहोवा ने यीशु मसीह को सिखाया था, जिस वजह से वह भी एक महान शिक्षक बना। (यशायाह 30:20, NW; मत्ती 19:16) इसलिए अगर हम भी परमेश्वर के वचन के सिखानेवालों के तौर पर तरक्की करना चाहते हैं तो हमें यहोवा से सीखने की ज़रूरत है।
अगला भाषण था, “राज्य की शिक्षा देने से बढ़िया प्रतिफल मिलता है।” इसमें परमेश्वर का वचन सिखानेवाले ऐसे लोगों का इंटरव्यू लिया गया जिन्हें कई सालों का तजुर्बा है। उनके इंटरव्यू से इस बात पर ज़ोर दिया गया कि चेले बनाने के काम से खुशियाँ और आशीषें मिलती हैं।
प्रेरितों 2:11) आज हम भी ऐसे “बड़े बड़े कामों” का ऐलान करके लोगों को सही कदम उठाने के लिए प्रेरित कर सकते हैं जैसे कि बाइबल में दी गयी छुड़ौती, पुनरुत्थान और नयी वाचा की शिक्षाएँ वगैरह।
इसके बाद, “‘परमेश्वर के बड़े बड़े कामों’ से प्रेरित होना,” शीर्षक पर भाषण देकर सभी में उत्साह पैदा किया गया। पहली सदी में परमेश्वर के राज्य से संबंधित “बड़े बड़े कामों” की घोषणा करके लोगों को सही कदम उठाने के लिए उकसाया गया था। (अगले भाषण में सभी को यह बढ़ावा दिया गया: “यहोवा की धार्मिकता में खुशी पाइए।” (भजन 35:27) इस भाषण से हमने सीखा कि धार्मिकता का पीछा करने के लिए हमें धार्मिकता से प्रेम और बुराई से घृणा करना सीखना है। बाइबल का अध्ययन करना और ऐसी बातों का डटकर विरोध करना है जो आध्यात्मिक तरीके से हमें नुकसान पहुँचा सकती हैं। साथ ही हमें नम्रता का गुण पैदा करना है। ये सारे कदम उठाने से हम बुरी संगति, धन-दौलत के बारे में संसार के रवैए और ऐसे मनोरंजन से बचेंगे जिसमें अनैतिक कामों और हिंसा को बढ़ावा दिया जाता है।
मूल-विचार भाषण का विषय था, “परमेश्वर के वचन के सिखानेवालों के तौर पर पूरी तरह योग्य।” इस भाषण ने हमें याद दिलाया कि यहोवा अपने वचन, अपनी पवित्र आत्मा और पृथ्वी पर अपने संगठन के ज़रिए हमें सेवक बनने के योग्य ठहराता है। परमेश्वर के वचन का इस्तेमाल करने के बारे में वक्ता ने हमसे यह आग्रह किया: “हमारा यह मकसद होना चाहिए कि बाइबल के पन्नों पर लिखा संदेश लोगों के दिलो-दिमाग में अच्छी तरह बिठा दें।”
अधिवेशन की पहली परिचर्चा थी, “दूसरों को सिखाते वक्त खुद को भी सिखाना।” परिचर्चा के पहले भाग में यह ज़ोर दिया गया कि हमें भी उन्हीं ऊँचे मसीही आदर्शों पर चलना चाहिए जिन पर हम दूसरों को चलना सिखाते हैं। दूसरे भाग में हमें ‘सत्य के वचन को ठीक रीति से काम में लाने’ की सलाह दी गयी। (2 तीमुथियुस 2:15) खुद को सिखाने के लिए ज़रूरी है कि हम निरंतर मन लगाकर बाइबल का निजी अध्ययन करें, फिर चाहे हम परमेश्वर की सेवा कितने ही सालों से क्यों न करते आ रहे हों। परिचर्चा के आखिरी भाग में यह समझाया गया कि इब्लीस हम पर हमला करने के लिए इस ताक में बैठा है कि हमारे अंदर ऐसे रवैए पैदा हों जैसे घमंड, अपनी मनमानी करने की भावना, खुद को बहुत ज़्यादा अहमियत देना, जलन और ईर्ष्या, द्वेष, कुढ़न और दूसरों में नुक्स निकालना। लेकिन अगर हम इब्लीस का डटकर विरोध करें तो वह हमारे पास से भाग निकलेगा। और उसका विरोध करने के लिए यह बेहद ज़रूरी है कि हम परमेश्वर के करीब आएँ।—याकूब 4:7, 8.
हबक्कूक 1:13) हमें “बुराई से घृणा” करनी चाहिए। (रोमियों 12:9) माता-पिता को यह सलाह दी गयी कि अपने बच्चों पर नज़र रखें कि वे इंटरनॆट और टीवी पर क्या देखते हैं। वक्ता ने बताया कि जो लोग पोर्नोग्राफी की तरफ प्रलोभित महसूस करते हैं, उन्हें आध्यात्मिक बातों में तजुर्बा रखनेवाले किसी दोस्त की मदद लेनी चाहिए। इसके अलावा, भजन 97:10; मत्ती 5:28; 1 कुरिन्थियों 9:27; इफिसियों 5:3, 12; कुलुस्सियों 3:5; और 1 थिस्सलुनीकियों 4:4, 5 जैसी आयतों पर मनन करना और उनको मुँहज़बानी याद करना भी काफी मददगार साबित होगा।
आज के समय को मद्देनज़र रखते हुए “पोर्नोग्राफी जैसी अश्लीलता की दुनियावी बीमारी से घृणा कीजिए” भाषण हमारे लिए वाकई फायदेमंद था। इसमें यह समझाया गया कि पोर्नोग्राफी हमारी आध्यात्मिकता के लिए नुकसानदेह है और कि हम इससे कैसे दूर रहने में कामयाब हो सकते हैं। भविष्यवक्ता हबक्कूक ने यहोवा के बारे में कहा: “तेरी आंखें ऐसी शुद्ध हैं कि तू बुराई को देख ही नहीं सकता, और उत्पात को देखकर चुप नहीं रह सकता।” (अगला भाषण था, “परमेश्वर की शांति आपकी रक्षा करे।” इस भाषण ने हमें यकीन दिलाया और दिलासा दिया कि जब हम चिंता के बोझ तले दब जाते हैं, तो हम अपना बोझ यहोवा पर डाल सकते हैं। (भजन 55:22) अगर हम प्रार्थना में दिल खोलकर अपनी बात यहोवा को बताएँगे, तो वह हमें “परमेश्वर की शांति” देगा यानी हमारे दिल को ऐसा चैन और सुकून देगा जो यहोवा के साथ एक बढ़िया रिश्ता कायम करने से मिलता है।—फिलिप्पियों 4:6, 7.
पहले दिन के आखिर में, “यहोवा उजियाला देकर अपने लोगों की शोभा बढ़ाता है” भाषण सुनकर सब लोग बड़े खुश हुए। इसमें यशायाह के 60वें अध्याय की पूर्ति के बारे में समझाया गया। इस संसार पर छाए घोर अंधकार में, “परदेशी” यानी भेड़ समान लोगों की उमड़ती बड़ी भीड़, अभिषिक्त मसीहियों के संग यहोवा से मिलनेवाले प्रकाश का आनंद ले रही है। उन्नीस और बीस आयतों का ज़िक्र करते हुए वक्ता ने समझाया: “यहोवा न तो सूर्य की तरह ‘अस्त’ होगा, ना ही चन्द्रमा की ज्योति की तरह ‘मलिन’ होगा। वह अपने लोगों पर उजियाला चमकाने के ज़रिए हमेशा उनकी शोभा बढ़ाता रहेगा। घोर अंधकार से भरी इस दुनिया के आखिरी दिनों से गुज़रनेवाले हम लोगों को यह पढ़कर कितनी तसल्ली मिलती है!” भाषण के अंत में वक्ता ने किताब, यशायाह की भविष्यवाणी—सारे जगत के लिए उजियाला, भाग दो के रिलीज़ की घोषणा की। क्या आपने इस नयी किताब को पूरा पढ़ लिया है?
दूसरा दिन—दूसरों को सिखाने के लिए अच्छी तरह योग्य
दूसरे दिन, दैनिक पाठ पर की गयी चर्चा के बाद हमने गहरी दिलचस्पी के साथ अधिवेशन की दूसरी परिचर्चा को सुना जिसका शीर्षक था, “सेवक जिनके ज़रिए दूसरे भी विश्वासी बनते हैं।” इस परिचर्चा के तीन भागों में वक्ताओं ने लोगों को विश्वासी बनाने में इन तीन चरणों के बारे में बात की: राज्य का संदेश फैलाना, दिलचस्पी को बढ़ाना और सही प्रतिक्रिया दिखानेवालों को वे सब बातें मानना सिखाना जिनके बारे में मसीह ने आज्ञा दी है। इंटरव्यू और अभिनय प्रदर्शनों से हमने देखा कि हम किन-किन तरीकों से दूसरों को सिखाकर चेला बना सकते हैं।
कार्यक्रम के अगले भाग का विषय था, “धीरज पर परमेश्वर के लिए भक्ति बढ़ाते जाइए।” वक्ता ने समझाया कि जो बात सबसे ज़्यादा मायने रखती है, वह यह है कि हम ‘अन्त तक धीरज धरे रहें।’ (मत्ती 24:13) ईश्वरीय भक्ति बढ़ाने के लिए हमें परमेश्वर के ठहराए गए सारे इंतज़ामों का पूरा-पूरा इस्तेमाल करना चाहिए जैसे कि प्रार्थना करना, निजी अध्ययन करना, सभाओं में जाना और सेवकाई में हिस्सा लेना। हमें दुनियावी इच्छाओं और कामों से खुद को दूर रखने के लिए कड़ा प्रयास करने की ज़रूरत है ताकि उनके कारण परमेश्वर के लिए हमारी भक्ति खतरे में न पड़े।
परिश्रम करनेवाले और बोझ से दबे हुए लोग, आज कैसे विश्राम पा सकते हैं? इस सवाल का जवाब “यीशु का जूआ उठाकर ताज़गी पाना” भाषण में दिया गया। यीशु बड़े प्यार से अपने शिष्यों को उसका जूआ उठाने और उससे सीखने का न्यौता देता है। (मत्ती 11:28-30) यीशु की मिसाल पर चलकर एक सादगी भरा जीवन जीने और संतुलन बनाए रखने के ज़रिए हम उसका जूआ उठा सकते हैं। अपनी ज़िंदगी में बदलाव करके एक सादगी भरा जीवन जी रहे, कुछ लोगों के इंटरव्यू से इस भाषण के अहम मुद्दे हमारे दिलो-दिमाग में और भी अच्छी तरह बैठ गए।
यहोवा के साक्षियों के बड़े-बड़े समूहों में इकट्ठा होने की एक खासियत होती है, परमेश्वर के नए समर्पित सेवकों का बपतिस्मा। “बपतिस्मा लेने पर दूसरों को सिखाने के ज़्यादा मौके मिलते हैं” विषय पर भाषण देनेवाले भाई ने बपतिस्मा लेनेवालों का हार्दिक स्वागत किया और उन्हें सेवकाई में अच्छी प्रगति करने का बढ़ावा दिया। परमेश्वर के वचन के सिखानेवाले जिन नए लोगों का बपतिस्मा हुआ है, वे अगर बाइबल में दी गयी माँगों को पूरा करें तो वे कलीसिया की कई ज़िम्मेदारियाँ उठाने के काबिल बन सकते हैं।
दोपहर के पहले भाषण का विषय था, “महान शिक्षक की मिसाल पर चलिए।” यीशु ने अनगिनत युगों से अपने पिता के साथ स्वर्ग में रहते वक्त उस पर अच्छी तरह ध्यान दिया और उसका अनुकरण किया, इसीलिए वह एक महान शिक्षक बना। जब वह इस धरती पर था, तब उसने सिखाने के असरदार तरीके अपनाए जैसे कि वह सोचने पर मजबूर करनेवाले सवाल पूछता था, साथ ही सरल और जीते-जागते दृष्टांत बताता था। वह हमेशा परमेश्वर के वचन के आधार पर शिक्षा देता था। वह पूरे जोश और अधिकार के साथ बात करता था और उसकी बातों में प्यार झलकता था। यह भाषण सुनकर क्या हमारे अंदर महान शिक्षक के नक्शेकदम पर चलने की प्रेरणा नहीं जागी?
एक और हौसला बढ़ानेवाला भाषण था, “क्या आप दूसरों की सेवा करने के लिए तैयार हैं?” इस भाषण ने हमें यीशु की मिसाल पर चलकर दूसरों की सेवा करने की प्रेरणा दी। (यूहन्ना 13:12-15) वक्ता ने काबिल भाइयों से सीधे आग्रह किया कि वे तीमुथियुस की तरह बनें और हर मौके पर दूसरों की मदद करें। (फिलिप्पियों 2:20, 21) माता-पिताओं को यह बढ़ावा दिया गया कि वे एल्काना और हन्ना की मिसाल पर चलकर अपने बच्चों में पूर्ण-समय की सेवा करने का जोश पैदा करें। और जवानों को यह उपदेश दिया गया कि वे यीशु मसीह के आदर्श और नौजवान तीमुथियुस के उदाहरण पर चलें जिन्होंने खुशी-खुशी दूसरों की सेवा करने के लिए खुद को दे दिया था। (1 पतरस 2:21) हमें उन लोगों के अनुभव सुनकर भी प्रेरणा मिली जिन्होंने दूसरों की सेवा करने के अवसर को हाथ से नहीं जाने दिया।
अधिवेशन की तीसरी परिचर्चा का विषय था, “परमेश्वर की शिक्षा से पूरा-पूरा लाभ पाइए।” पहले वक्ता ने इस बात पर ज़ोर दिया कि ध्यान देने की अपनी क्षमता को और भी बढ़ाना कितना ज़रूरी है। इसकी शुरूआत हम अध्ययन में थोड़ा-थोड़ा समय बिताने के ज़रिए कर सकते हैं और फिर हमें धीरे-धीरे अध्ययन के समय को बढ़ाने की कोशिश करनी चाहिए। उसने श्रोताओं को यह भी बढ़ावा दिया कि सभाओं के दौरान बतायी जानेवाली सभी आयतों को वे बाइबल से खोलकर देखें और नोट्स लें। दूसरे वक्ता ने हमें ध्यान दिलाया कि हमेशा ‘खरी बातों के आदर्श’ पर चलना कितना महत्त्वपूर्ण है। (2 तीमुथियुस 1:13, 14) अगर हम खुद को ऐसे टीवी कार्यक्रमों और पत्रिकाओं वगैरह से बचाए रखना चाहते हैं जिनमें अनैतिकता को बढ़ावा दिया जाता है, साथ ही इंसानी तत्त्वज्ञानों, बाइबल का खंडन करनेवाली विचार-धाराओं और धर्मत्यागी शिक्षाओं से अपनी हिफाज़त करना चाहते हैं, तो हमें निजी अध्ययन करने और सभाओं में हाज़िर होने के लिए समय मोल लेने की ज़रूरत है। (इफिसियों 5:15, 16) परिचर्चा के आखिरी वक्ता ने बताया कि परमेश्वर की शिक्षा से लाभ पाने के लिए हमें सीखी हुई बातों पर अमल करने की ज़रूरत है।—फिलिप्पियों 4:9.
“हमारी आध्यात्मिक तरक्की के लिए नए इंतज़ाम” भाषण ने
हमारे अंदर कैसी उमंग पैदा कर दी! हमें यह जानकर कितनी खुशी हुई कि बहुत जल्द एक नयी किताब, बॆनिफिट फ्रॉम थियोक्रैटिक मिनिस्ट्री स्कूल एजुकेशन प्रकाशित होनेवाली है। जब वक्ता इस किताब की खास बातें बता रहा था तो उस किताब को पाने की हमारी उत्सुकता और भी बढ़ गयी। किताब के एक हिस्से में बातचीत सुधारने के लिए कई मुद्दे दिए गए हैं। उनके बारे में वक्ता ने कहा: “इस नयी किताब में अच्छी तरह पढ़ने, बोलने और सिखाने के बारे में जो 53 मुद्दे दिए गए हैं, ये दुनियावी जानकारी के आधार पर नहीं बल्कि बाइबल के सिद्धांतों के आधार पर पेश किए गए हैं।” यह किताब दिखाती है कि भविष्यवक्ताओं, यीशु और उसके शिष्यों ने किन बेहतरीन तरीकों से दूसरों को सिखाया था। जी हाँ, इस किताब और ईश्वरशासित सेवकाई स्कूल के नए इंतज़ामों की मदद से हम परमेश्वर के वचन के सिखानेवालों के तौर पर दूसरों को और भी अच्छी तरह सिखा पाएँगे।तीसरा दिन—समय के विचार से शिक्षक बनिए
आखिरी दिन, दैनिक पाठ की चर्चा के बाद हाज़िर सभी लोगों ने अधिवेशन की अंतिम परिचर्चा पर ध्यान दिया जिसका विषय था, “मलाकी की भविष्यवाणी हमें यहोवा के दिन के लिए तैयार करती है।” मलाकी ने बाबुल से यहूदियों के लौटने के करीब सौ साल बाद भविष्यवाणी की थी। तब तक यहूदी दोबारा सच्ची उपासना से बहक गए थे और बुराइयाँ करने लगे। वे यहोवा के धर्मी नियमों को तोड़कर साथ ही अंधे, लंगड़े और बीमार पशुओं की बलि चढ़ाकर उसके नाम का अपमान कर रहे थे। इतना ही नहीं, वे अपनी जवानी की पत्नियों को तलाक दे रहे थे, शायद इसलिए ताकि वे झूठे धर्मों की जवान औरतों से शादी कर सकें।
मलाकी की भविष्यवाणी का पहला अध्याय हमें यकीन दिलाता है कि यहोवा अपने लोगों से बेहद प्यार करता है। उसमें यह बताया गया है कि हमारे दिल में परमेश्वर के लिए गहरी श्रद्धा और भय होना चाहिए और हमें पवित्र बातों के लिए कदरदानी दिखानी चाहिए। यहोवा चाहता है कि हम उसे अपना सर्वोत्तम दें और निस्वार्थ प्रेम से उसकी सच्ची उपासना करें। हमें परमेश्वर की सेवा सिर्फ दिखावे के लिए नहीं करनी चाहिए। भाषण में यह भी बताया गया कि हममें से हरेक को उसे अपना लेखा देना होगा।
मलाकी के दूसरे अध्याय का हमारे दिन के साथ क्या संबंध है, इस बारे में समझाते हुए परिचर्चा के दूसरे वक्ता ने पूछा: “क्या हम में से हरेक सावधान है कि ‘हमारे मुंह से कोई कुटिल बात न निकले’?” (मलाकी 2:6) शिक्षा देने में अगुवाई लेनेवालों को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि वे जो सिखाते हैं, वह सिर्फ परमेश्वर के वचन पर आधारित हो। हमें बिना किसी शास्त्रीय आधार के तलाक देने जैसे विश्वासघात से घृणा करनी चाहिए।—मलाकी 2:14-16.
“यहोवा के दिन में कौन बच पाएगा?” विषय पर परिचर्चा के आखिरी वक्ता ने हमें बताया कि हम यहोवा के दिन के लिए कैसे तैयार हो सकते हैं। उसने कहा: “यहोवा के सेवकों को यह जानकर कितनी तसल्ली मिलती है कि मलाकी के तीसरे अध्याय की , आज बड़े पैमाने में उन पर पूरी हो रही है! यह आयत कहती है: ‘सेनाओं का यहोवा यह कहता है, कि जो दिन मैं ने ठहराया है, उस दिन वे लोग मेरे वरन मेरे निज भाग ठहरेंगे, और मैं उन से ऐसी कोमलता करूंगा जैसी कोई अपने सेवा करनेवाले पुत्र से करे।’” 17वीं आयत
अधिवेशन की एक और खास बात थी, “यहोवा के अधिकार का आदर कीजिए” शीर्षक पर ड्रामा, जो पुराने ज़माने की वेश-भूषा में पेश किया गया था। इस ड्रामे में खासकर कोरह के बेटों को दिखाया गया था। हालाँकि उनका पिता मूसा और हारून के खिलाफ बगावत कर रहा था, मगर फिर भी वे यहोवा और उसके ठहराए हुए सेवकों के वफादार बने रहे। इसलिए जब कोरह और उसके गुट के सभी लोग मारे गए तो कोरह के बेटे बच गए। इसके बाद “वफादारी से परमेश्वर के अधिकार के अधीन रहिए” भाषण दिया गया जिसमें बताया गया कि इस ड्रामे से आज हम क्या सबक सीखते हैं। वक्ता ने ऐसे छः क्षेत्रों के बारे में चेतावनी दी जिनमें कोरह और उसका साथ देनेवाले नाकाम हुए थे: वे वफादारी से यहोवा के अधिकार के अधीन नहीं रहे; वे जलन और घमंड के काबू में आ गए, साथ ही ऊँचा रुतबा हासिल करने के जुनून में अंधे हो गए; उन्होंने यहोवा के ठहराए हुए सेवकों की खामियों पर ज़्यादा ध्यान दिया; शिकायतें करने की आदत बना ली; सेवा करने का जो सम्मान उन्हें मिला था, उससे उन्हें तसल्ली नहीं थी; और यहोवा से बढ़कर अपने दोस्तों और घरवालों के वफादार रहे।
जन भाषण का विषय था, “आज कौन सभी जातियों को सच्चाई सिखा रहे हैं?” इस भाषण में आम बातों की सच्चाई के बारे में नहीं बल्कि यहोवा के उद्देश्यों से जुड़ी सच्चाई के बारे में चर्चा की गयी जिसकी यीशु मसीह ने भी गवाही दी थी। वक्ता ने बाइबल की शिक्षाओं, उपासना करने के तरीकों और खुद के चालचलन से जुड़ी सच्चाई के बारे में बात की। जब उसने पहली सदी के मसीहियों की तुलना आज के यहोवा के साक्षियों के साथ की, तो हमारा यह विश्वास वाकई मज़बूत हुआ कि ‘सचमुच परमेश्वर हमारे बीच में है।’—1 कुरिन्थियों 14:25.
हफ्ते के प्रहरीदुर्ग अध्ययन लेख के सारांश के बाद आखिरी भाषण, “सख्त ज़रूरत की घड़ी में सिखाने की अपनी ज़िम्मेदारी पूरी करना” पेश किया गया। इस भाषण ने हाज़िर सभी परमेश्वर के वचन के सिखानेवालों में अपनी ज़िम्मेदारी निभाने का जोश भर दिया। अधिवेशन के पूरे कार्यक्रम का संक्षिप्त में पुनर्विचार करते हुए इस बात पर ज़ोर दिया गया कि हमें दूसरों को सिखाते वक्त बाइबल की आयतों का इस्तेमाल करना चाहिए। यह भी बताया गया कि हम किन-किन तरीकों से सिखाने की अपनी काबिलीयत बढ़ा सकते हैं, साथ ही जो सच्चाई हम दूसरों को सिखाते हैं उस पर खुद हमें भी पूरा विश्वास करना चाहिए। वक्ता ने हमें उकसाया कि हम ‘अपनी उन्नति सब पर प्रगट’ करें, साथ ही ‘अपनी और अपने उपदेश की चौकसी’ करें।—1 तीमुथियुस 4:15, 16.
“परमेश्वर के वचन के सिखानेवाले” ज़िला अधिवेशन में हमने वाकई बढ़िया आध्यात्मिक दावत का आनंद लिया! दूसरों को परमेश्वर का वचन सिखाने में आइए हम अपने महान उपदेशक, यहोवा और महान शिक्षक, यीशु मसीह के आदर्श पर चलते रहें।
[पेज 28 पर बक्स/तसवीरें]
खास ज़रूरतों को पूरा करने के लिए नए प्रकाशन
“परमेश्वर के वचन के सिखानेवाले” ज़िला अधिवेशन में आए लोग, दो नए प्रकाशन पाकर उमंग से भरे हुए थे। ये प्रकाशन दुनिया के कुछ हिस्सों में लोगों को बाइबल की सच्चाई सिखाने में काफी मददगार साबित होंगे। उनमें से एक ट्रैक्ट है, क्या आप में कोई अमर आत्मा वास करती है? (अँग्रेज़ी) यह ट्रैक्ट उन देशों के लोगों के साथ बातचीत शुरू करने में असरदार साबित होगा जहाँ की प्रांतीय भाषा में शब्द “प्राण” और “आत्मा” के लिए अलग-अलग शब्द नहीं हैं। इस नए ट्रैक्ट में साफ-साफ समझाया गया है कि जीवन-शक्ति, एक आत्मिक प्राणी से अलग है और कि मरने के बाद एक इंसान आत्मिक प्राणी नहीं बन जाता।
दूसरा प्रकाशन है, ब्रोशर संतोष से भरी ज़िंदगी—कैसे हासिल की जा सकती है। इसे अधिवेशन के दूसरे दिन के आखिर में रिलीज़ किया गया था। इस ब्रोशर को खासकर ऐसे लोगों के साथ बाइबल अध्ययन शुरू करने के लिए तैयार किया गया है जो नहीं मानते कि सिरजनहार का एक व्यक्तित्व है और ना ही वे परमेश्वर की प्रेरणा से लिखी गयी किताब की कदर करते हैं। क्या आप इन प्रकाशनों को अपनी सेवकाई में इस्तेमाल कर पाए हैं?
[पेज 26 पर तसवीरें]
मिलान, इटली और दुनिया-भर के दूसरे अधिवेशनों में सैकड़ों लोगों ने बपतिस्मा लिया
[पेज 29 पर तसवीर]
“यहोवा के अधिकार का आदर कीजिए” ड्रामे ने श्रोताओं पर गहरा असर किया