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क्या आपको “सत्य का आत्मा” मिला है?

क्या आपको “सत्य का आत्मा” मिला है?

क्या आपको “सत्य का आत्मा” मिला है?

“पिता . . . तुम्हें एक और सहायक देगा, कि वह सर्वदा तुम्हारे साथ रहे। अर्थात्‌ सत्य का आत्मा।”यूहन्‍ना 14:16, 17.

1. ऊपरी कोठरी में चेलों के साथ आखिरी लम्हें बिताते वक्‍त यीशु ने उन्हें कौन-सी अहम बात बतायी?

 “हे प्रभु तू कहाँ जाता है?” यह सवाल यीशु के प्रेरितों ने उससे यरूशलेम की ऊपरी कोठरी में पूछा जब उसने उनके साथ आखिरी लम्हें बिताए। (यूहन्‍ना 13:36) उस मुलाकात के दौरान यीशु ने उन्हें बताया कि अब उसका अपने पिता के पास लौटने का वक्‍त आ पहुँचा है। (यूहन्‍ना 14:28; 16:28) उन्हें सिखाने और उनके सवालों के जवाब देने के लिए अब वह उनके साथ शारीरिक रूप में नहीं रहनेवाला था। मगर, फिर भी यीशु ने यह कहकर उनकी हिम्मत बंधायी: “मैं पिता से बिनती करूंगा, और वह तुम्हें एक और सहायक [“शान्तिदाता,” नयी हिन्दी बाइबिल, फुटनोट] देगा, कि वह सर्वदा तुम्हारे साथ रहे।”—यूहन्‍ना 14:16.

2. अपने चेलों को छोड़ते वक्‍त, यीशु ने उनके लिए क्या भेजने का वादा किया?

2 यीशु ने बताया कि वह सहायक क्या है और फिर समझाया कि कैसे वह उसके चेलों की सहायता करेगा। उसने उनसे कहा: “मैं ने आरम्भ में तुम से ये बातें इसलिये नहीं कहीं क्योंकि मैं तुम्हारे साथ था। अब मैं अपने भेजनेवाले के पास जाता हूं . . . मेरा जाना तुम्हारे लिये अच्छा है, क्योंकि यदि मैं न जाऊं, तो वह सहायक तुम्हारे पास न आएगा, परन्तु यदि मैं जाऊंगा, तो उसे तुम्हारे पास भेज दूंगा। . . . जब वह अर्थात्‌ सत्य का आत्मा आएगा, तो तुम्हें सब सत्य का मार्ग बताएगा।”—यूहन्‍ना 16:4, 5, 7, 13.

3. (क) शुरू के मसीहियों को “सत्य का आत्मा” कब भेजा गया था? (ख) एक अहम तरीका क्या है जिससे आत्मा उनके लिए “सहायक” साबित हुआ?

3 यीशु मसीह का यह वादा सा.यु. 33 के पिन्तेकुस्त के दिन पूरा हुआ। इसका सबूत देते हुए प्रेरित पतरस ने कहा: “इसी यीशु को परमेश्‍वर ने जिलाया, जिस के हम सब गवाह हैं। इस प्रकार परमेश्‍वर के दहिने हाथ से सर्वोच्च पद पाकर, और पिता से वह पवित्र आत्मा प्राप्त करके जिस की प्रतिज्ञा की गयी थी, उस ने यह उंडेल दिया है जो तुम देखते और सुनते हो।” (प्रेरितों 2:32, 33) जैसा कि हम बाद में देखेंगे, पिन्तेकुस्त के दिन उँडेले गए पवित्र आत्मा ने शुरू के मसीहियों के लिए बहुत कुछ किया। यीशु ने यह भी वादा किया कि “सत्य का आत्मा” ‘वह सब उन्हें स्मरण कराएगा जो उसने उनसे कहा था।’ (यूहन्‍ना 14:26) यह उनको यीशु की सेवकाई और शिक्षाएँ याद करने में मदद देता, यहाँ तक कि उसके कहे एक-एक शब्द की याद दिलाता ताकि वे उन्हें लिख पाएँ। इस तरीके से की गयी मदद खास तौर पर बुज़ुर्ग प्रेरित, यूहन्‍ना के लिए काफी मददगार साबित होती, जिसने सा.यु. पहली सदी के अंत में अपनी सुसमाचार की किताब लिखनी शुरू की। उस किताब में यीशु की वह अनमोल सलाह भी दर्ज़ है जो उसने अपनी मौत का स्मारक मनाने की शुरूआत में दी थी।—यूहन्‍ना, अध्याय 13-17.

4. ‘सत्य के आत्मा’ ने शुरू के मसीहियों की कैसे मदद की?

4 यीशु ने शुरू के उन चेलों से यह वादा भी किया कि आत्मा उन्हें “सब बातें सिखाएगा” और “सब सत्य का मार्ग बताएगा।” आत्मा उनको बाइबल की गूढ़ बातें समझने और उन सभी को एक ही विचार, समझ और मकसद रखने में मदद देता। (1 कुरिन्थियों 2:10; इफिसियों 4:3) इस तरह पवित्र आत्मा ने शुरू के उन मसीहियों को सामर्थ दी ताकि वे मिलकर “विश्‍वासयोग्य और बुद्धिमान दास” के तौर पर काम कर सकें और अपने हरेक अभिषिक्‍त सदस्य को “समय पर” आध्यात्मिक “भोजन दे” सकें।—मत्ती 24:45.

आत्मा गवाही देता है

5. (क) सामान्य युग 33 के निसान 14 की रात, यीशु ने अपने शिष्यों को कौन-सी नयी आशा दी? (ख) यीशु के वादे को पूरा करने में पवित्र आत्मा क्या भूमिका निभाता है?

5 सामान्य युग 33 के निसान 14 की रात, यीशु ने अपने चेलों को यह संकेत दिया कि भविष्य में वह उन्हें स्वर्ग ले जाएगा ताकि वे वहाँ उसके और उसके पिता के साथ रह सके। उसने उनसे कहा: “मेरे पिता के घर में बहुत से रहने के स्थान हैं, यदि न होते, तो मैं तुम से कह देता क्योंकि मैं तुम्हारे लिये जगह तैयार करने जाता हूं। और यदि मैं जाकर तुम्हारे लिये जगह तैयार करूं, तो फिर आकर तुम्हें अपने यहां ले जाऊंगा, कि जहां मैं रहूं वहां तुम भी रहो।” (यूहन्‍ना 13:36; 14:2, 3) वे उसके साथ उसके राज्य में शासन करते। (लूका 22:28-30) इस स्वर्गीय आशा को पाने के लिए उन्हें परमेश्‍वर के आत्मिक पुत्रों के तौर पर ‘आत्मा से जन्म’ लेना पड़ता और स्वर्ग में मसीह के साथ राजा और याजक बनकर सेवा करने के लिए उनका अभिषेक किया जाता।—यूहन्‍ना 3:5-8; 2 कुरिन्थियों 1:21, 22; तीतुस 3:5-7; 1 पतरस 1:3,4; प्रकाशितवाक्य 20:6.

6. (क) स्वर्गीय बुलाहट कब शुरू हुई, और कितने लोगों को यह बुलावा दिया गया? (ख) बुलाए गए लोगों ने कौन-से बपतिस्मे लिए?

6 इस “स्वर्गीय बुलाहट” की शुरूआत सा.यु. 33 के पिन्तेकुस्त में हुई और ऐसा लगता है कि यह मोटे तौर पर 1935 में खत्म हुआ। (इब्रानियों 3:1) आत्मिक इस्राएल का भाग होने के लिए जिन लोगों पर पवित्र आत्मा ने मुहर लगाया, उनकी गिनती 1,44,000 है और इन्हें ‘मनुष्यों में से मोल लिया गया है।’ (प्रकाशितवाक्य 7:4; 14:1-4) उन्होंने मसीह की आत्मिक देह में बपतिस्मा लिया, इस तरह उसकी कलीसिया के सदस्य बन गए और उसकी मृत्यु में बपतिस्मा लिया। (रोमियों 6:3; 1 कुरिन्थियों 12:12, 13, 27; इफिसियों 1:22, 23) पानी में बपतिस्मा लेने और पवित्र आत्मा से अभिषेक किए जाने के बाद वे त्याग की ज़िंदगी जीने लगे, जिसका मतलब यह था कि उन्हें अपनी मृत्यु और आत्मिक पुनरुत्थान तक वफादार बने रहना था।—रोमियों 6:4, 5.

7. स्मारक में इस्तेमाल किए जानेवाले प्रतीकों को खाने-पीने का हक सिर्फ अभिषिक्‍त मसीहियों को क्यों है?

7 आत्मिक इस्राएली होने के नाते ये अभिषिक्‍त मसीही उस नयी वाचा में आ गए जो यहोवा और “परमेश्‍वर के इस्राएल” के बीच बाँधी गयी थी। (गलतियों 6:16; यिर्मयाह 31:31-34) इस नई वाचा को मसीह का बहाया हुआ लहू जायज़ ठहराता है। यीशु ने इसका ज़िक्र अपनी मृत्यु की यादगार मनाने की शुरूआत करते समय किया था। इस बारे में लूका लिखता है: “उस ने रोटी ली, और धन्यवाद करके तोड़ी, और उन को यह कहते हुए दी, कि यह मेरी देह है, जो तुम्हारे लिये दी जाती है: मेरे स्मरण के लिये यही किया करो। इसी रीति से उस ने बियारी के बाद कटोरा भी यह कहते हुए दिया, कि यह कटोरा मेरे उस लोहू में जो तुम्हारे लिये बहाया जाता है नई वाचा है।” (लूका 22:19, 20) एक लाख चौआलीस हज़ार के जो बचे हुए सदस्य आज धरती पर ज़िंदा हैं, सिर्फ उन्हें यीशु की मौत के स्मारक में प्रतीकों यानी रोटी और दाखरस को खाने-पीने का हक है।

8. अभिषिक्‍त लोगों को यह कैसे पता चलता है कि उन्हें स्वर्गीय बुलावा मिला है?

8 अभिषिक्‍त लोगों को कैसे मालूम चलता है कि उन्हें स्वर्गीय बुलावा मिला है या नहीं? बेशक उनको पवित्र आत्मा गवाही देता है। ऐसे लोगों को प्रेरित पौलुस ने लिखा: “जितने लोग परमेश्‍वर के आत्मा के चलाए चलते हैं, वे ही परमेश्‍वर के पुत्र हैं। . . . आत्मा आप ही हमारी आत्मा के साथ गवाही देता है, कि हम परमेश्‍वर की सन्तान हैं। और यदि सन्तान हैं, तो वारिस भी, बरन परमेश्‍वर के वारिस और मसीह के संगी वारिस हैं, जब कि हम उसके साथ दुख उठाएं कि उसके साथ महिमा भी पाएं।” (रोमियों 8:14-17) आत्मा की इस गवाही में बहुत ताकत होती है। और अगर किसी को ज़रा भी शक हो कि उसे स्वर्गीय बुलावा नहीं है, तो उसका इस नतीजे पर पहुँचना सही होगा कि उसे स्वर्गीय बुलावा नहीं मिला है। इसलिए उसे स्मारक के प्रतीकों को खाने-पीने से दूर रहना चाहिए।

आत्मा और अन्य भेड़ें

9. प्रकाशितवाक्य और सुसमाचार की किताबों में किन दो अलग समूहों के बारे में बताया गया है?

9 इस बात को ध्यान में रखते हुए कि आत्मिक इस्राएल के सदस्यों की संख्या सीमित है, यीशु ने उन्हें ‘छोटा झुंड’ कहा। उन्हें नई वाचा की “भेड़शाला” में शामिल किया जाता है। दूसरी तरफ ऐसी अनगिनत ‘अन्य भेड़ें’ भी हैं जिनके बारे में यीशु ने कहा कि उनको भी इकट्ठा करना है। (लूका 12:32; यूहन्‍ना 10:16, NW) अन्य भेड़ों में से जो लोग अंत के समय में इकट्ठे किए जाते हैं, यही लोग मिलकर एक “बड़ी भीड़” बनेंगे जिन्हें “बड़े क्लेश” से बचकर धरती पर फिरदौस में सर्वदा जीने की आशा है। दिलचस्पी की बात है कि यूहन्‍ना ने पहली सदी के अंत में जो दर्शन देखा था, उसमें इस बड़ी भीड़ और 1,44,000 जनों के आत्मिक इस्राएल के बीच फर्क बताया गया। (प्रकाशितवाक्य 7:4,9,14) क्या अन्य भेड़ों को भी पवित्र आत्मा मिलता है? अगर हाँ, तो यह उनकी ज़िंदगी पर कैसे असर करता है?

10. अन्य भेड़ के लोग किस अर्थ में “पिता और पुत्र और पवित्रात्मा के नाम” से बपतिस्मा लेते हैं?

10 पवित्र आत्मा, अन्य भेड़ के लोगों की ज़िंदगी में बेशक एक अहम भूमिका निभाता है। ये लोग यहोवा को किए गए अपने समर्पण की निशानी में “पिता और पुत्र और पवित्रात्मा के नाम” से बपतिस्मा लेते हैं। (मत्ती 28:19) वे कबूल करते हैं कि यहोवा ही इस जहान का महाराजाधिराज है, वे मसीह को अपना राजा और उद्धारकर्त्ता मानकर उसके अधीन रहते हैं और परमेश्‍वर के पवित्र आत्मा या सक्रिय शक्‍ति के मार्गदर्शन के मुताबिक अपनी ज़िंदगी बिताते हैं। दिन-ब-दिन वे अपनी ज़िंदगी में ‘आत्मा के फल’ पैदा करने की कोशिश करते हैं जिनमें “प्रेम, आनन्द, मेल, धीरज, कृपा, भलाई, विश्‍वास, नम्रता, और संयम हैं।”—गलतियों 5:22, 23.

11, 12. (क) अभिषिक्‍त लोगों को कैसे एक खास तरीके से शुद्ध किया गया है? (ख) अन्य भेड़ के लोग किस तरह शुद्ध और पवित्र किए जाते हैं?

11 अन्य भेड़ के लोगों को भी चाहिए कि वे परमेश्‍वर के वचन और उसकी पवित्र आत्मा को उन्हें पवित्र या शुद्ध करने दें। जहाँ तक अभिषिक्‍त जनों की बात है, वे एक खास तरीके से शुद्ध किए जा चुके हैं क्योंकि उन्हें मसीह की दुल्हन के तौर पर धर्मी और पवित्र करार दे दिया गया है। (यूहन्‍ना 17:17; 1 कुरिन्थियों 6:11; इफिसियों 5:23-27) भविष्यवक्‍ता दानिय्येल ने कहा कि वे “परमप्रधान के पवित्र लोग” हैं जिन्हें “मनुष्य के सन्तान,” मसीह यीशु के अधीन राज्य प्राप्त होगा। (दानिय्येल 7:13, 14, 18, 27) बहुत पहले यहोवा ने मूसा और हारून के ज़रिए, इस्राएल जाति को भी यह आज्ञा दी थी: “मैं तुम्हारा परमेश्‍वर यहोवा हूं; इस कारण अपने को शुद्ध करके पवित्र बने रहो, क्योंकि मैं पवित्र हूं।”—लैव्यव्यवस्था 11:44.

12 शब्द ‘शुद्ध करने’ का मूल अर्थ है, “यहोवा की सेवा या उसके इस्तेमाल के लिए पवित्र या अलग किए जाने की प्रक्रिया या काम; पवित्रता या शुद्धता की स्थिति।” यहाँ तक कि 1938 के वॉचटावर में बताया गया कि योनादाब यानी अन्य भेड़ के लोगों को “यह सीखना था कि बड़ी भीड़ का भाग होने और धरती पर जीने की इच्छा रखनेवाले हर इंसान से माँग की जाती है कि वह खुद को समर्पित और पवित्र करे।” प्रकाशितवाक्य की किताब में दर्ज़ बड़ी भीड़ के दर्शन में उनके बारे में कहा गया है कि उन्होंने “अपने अपने वस्त्र मेम्ने के लोहू में धोकर श्‍वेत किए हैं” और वे यहोवा के “मन्दिर में दिन रात उस की सेवा” करते हैं। (प्रकाशितवाक्य 7:9, 14, 15) पवित्र आत्मा की मदद से अन्य भेड़ें, पवित्रता के मामले में यहोवा की माँगों को पूरा करने का भरसक कर रही हैं।—2 कुरिन्थियों 7:1.

मसीह के भाइयों की मदद करना

13, 14. (क) यीशु ने जो भेड़ों और बकरियों का दृष्टांत दिया उसके मुताबिक भेड़ों का उद्धार किस बात पर निर्भर है? (ख) इस अंत के समय में अन्य भेड़ों ने अपने मसीही भाइयों की मदद कैसे की?

13 यीशु ने “जगत के अन्त” के बारे में भविष्यवाणी करते वक्‍त भेड़ और बकरियों के दृष्टांत में बताया कि अन्य भेड़ों और छोटे झुंड के बीच कैसा गहरा रिश्‍ता होगा। उस दृष्टांत में मसीह ने साफ बताया कि अन्य भेड़ों का उद्धार इस बात पर निर्भर है कि वे उन अभिषिक्‍त लोगों के साथ कैसा सलूक करते हैं जिनको यीशु ‘मेरे भाई’ कहता है। उसने कहा: “तब राजा अपनी दहिनी ओर वालों से कहेगा, हे मेरे पिता के धन्य लोगो, आओ, उस राज्य के अधिकारी हो जाओ, जो जगत के आदि से तुम्हारे लिये तैयार किया हुआ है। . . . मैं तुम से सच कहता हूं, कि तुम ने जो मेरे इन छोटे से छोटे भाइयों में से किसी एक के साथ किया, वह मेरे ही साथ किया।”—मत्ती 24:3; 25:31-34, 40.

14 ‘तुम ने जो किया,’ इन शब्दों का मतलब है, मसीह के आत्मा से अभिषिक्‍त भाइयों की प्यार से मदद करना। उनके साथ शैतान के संसार ने अजनबियों-सा सलूक किया, और कुछ को तो कैदखानों में भी डाल दिया। उन्हें खाने-पहनने की तंगी पड़ी और बीमार पड़ने पर उन्हें देखभाल की ज़रूरत पड़ी थी। (मत्ती 25:35, 36) सन्‌ 1914 से इन अंतिम दिनों में, बहुत-से अभिषिक्‍त लोगों ने ऐसे ही हालात का सामना किया था। लेकिन उनके वफादार साथी यानी अन्य भेड़ों ने पवित्र आत्मा से उकसाए जाकर उनकी मदद की है। यहोवा के साक्षियों का आधुनिक इतिहास इस बात का गवाह है।

15, 16. (क) पृथ्वी पर खासकर कौन-सा काम पूरा करने में अन्य भेड़ों ने मसीह के अभिषिक्‍त भाइयों की मदद की है? (ख) अभिषिक्‍त लोगों ने अन्य भेड़ों के लिए अपनी कदरदानी कैसे ज़ाहिर की?

15 अभिषिक्‍त भाइयों को खासकर इस अंत के समय में अन्य भेड़ के लोगों से मदद मिली है। इस वजह से वे परमेश्‍वर से मिली ज़िम्मेदारी निभा पाए हैं कि ‘राज्य का यह सुसमाचार सारे जगत में प्रचार किया जाए कि सब जातियों पर गवाही हो।’ (मत्ती 24:14; यूहन्‍ना 14:12) जबकि पृथ्वी पर अभिषिक्‍त लोगों की संख्या घटती जा रही है, मगर अन्य भेड़ों की संख्या इतनी तेज़ी से बढ़ती जा रही है कि आज यह लाखों की तादाद में है। इनमें से हज़ारों लोग पूरे समय के प्रचारक हैं यानी वे पायनियर और मिशनरी बनकर राज्य का सुसमाचार “पृथ्वी की छोर तक” सुना रहे हैं। (प्रेरितों 1:8) और बाकी लोगों से जितना बन पड़ता है, वे साक्षी देने के काम में हिस्सा लेते हैं और खुशी से दान देकर इस ज़रूरी काम में हाथ बँटाते हैं।

16 मसीह के अभिषिक्‍त भाई, अपने साथी, अन्य भेड़ों से लगातार मिलनेवाली मदद के लिए कितने शुक्रगुज़ार हैं! सन्‌ 1986 में दास वर्ग द्वारा उपलब्ध करायी गयी किताब “शांति के शासक” के अधीन विश्‍वव्यापी शांति (अँग्रेज़ी) में बड़े ही सुंदर शब्दों में उनकी भावनाएँ व्यक्‍त की गयी हैं। यह किताब कहती है: “‘जगत के अन्त’ के बारे में यीशु की भविष्यवाणी की पूर्ति में दूसरे विश्‍वयुद्ध के बाद से खासकर ‘अन्य भेड़ों’ की ‘बड़ी भीड़’ का बड़ा हाथ रहा है . . . इसलिए अलग-अलग देशों और भाषाओं से निकली ‘बड़ी भीड़’ का बहुत-बहुत शुक्रिया कि उन्होंने मत्ती 24:14 में दी गयी यीशु की भविष्यवाणी को पूरा करने में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया है!”

“हमारे बिना सिद्धता को न पहुंचें”

17. इसका मतलब क्या है कि पृथ्वी पर पुनरुत्थान पानेवाले प्राचीन समय के वफादार जन, अभिषिक्‍त लोगों के ‘बिना सिद्धता को नहीं पहुंचेंगे?’

17 प्रेरित पौलुस जो खुद एक अभिषिक्‍त मसीही था, उसने मसीह से पहले के वफादार स्त्री-पुरुषों का ज़िक्र करते हुए लिखा: “विश्‍वास ही के द्वारा इन सब के विषय में अच्छी गवाही दी गयी, तौभी उन्हें प्रतिज्ञा की हुई वस्तु न मिली। क्योंकि परमेश्‍वर ने हमारे [अभिषिक्‍त जनों के] लिये पहिले से एक उत्तम बात ठहराई, कि वे हमारे बिना सिद्धता को न पहुंचें।” (इब्रानियों 11:35, 39, 40) हज़ार साल के राज्य के दौरान, यीशु और उसके 1,44,000 अभिषिक्‍त भाई, राजा और याजक के तौर पर स्वर्ग में सेवा करेंगे और पृथ्वी पर रहनेवालों को यीशु की छुड़ौती बलिदान के फायदे पहुँचाएँगे। इस तरह अन्य भेड़ के लोग शरीर और मन से ‘सिद्धता को पहुँचेंगे।’—प्रकाशितवाक्य 22:1, 2.

18. (क) बाइबल में बतायी गयी सच्चाइयों से अन्य भेड़ के लोगों को कौन-सी बात समझने में मदद मिलनी चाहिए? (ख) किस उम्मीद के साथ अन्य भेड़ के लोग “परमेश्‍वर के पुत्रों के प्रगट होने” की बाट जोह रहे हैं?

18 इन सब बातों से अन्य भेड़ के लोगों को यह अच्छी तरह समझने में मदद मिलनी चाहिए कि मसीही यूनानी शास्त्र में यीशु और उसके अभिषिक्‍त भाइयों और यहोवा के उद्देश्‍यों में उनकी अहम भूमिका पर इतना ज़ोर क्यों दिया गया है। इसलिए आज जब अन्य भेड़ के लोग हरमगिदोन के आने और हज़ार साल के दौरान “परमेश्‍वर के पुत्रों के प्रगट” होने की बाट जोह रहे हैं, तो वे अभिषिक्‍त दास वर्ग की हर मुमकिन तरीके से मदद करने को एक सुनहरा मौका समझते हैं। वे उस दिन को देखने की उम्मीद कर सकते हैं जब वे “विनाश के दासत्व से छुटकारा पाकर, परमेश्‍वर की सन्तानों की महिमा की स्वतंत्रता प्राप्त” करेंगे।—रोमियों 8:19-21.

स्मारक के मौके पर आत्मा में एक

19. ‘सत्य के आत्मा’ ने अभिषिक्‍त लोगों और उनके साथियों के लिए क्या किया है और मार्च 28 की शाम को खासकर वे किस तरीके से एक होंगे?

19 सामान्य युग 33 के निसान 14 की रात, यीशु ने अपनी प्रार्थना में कहा: ‘मैं बिनती करता हूँ कि जैसा तू हे पिता मुझ में है, और मैं तुझ में हूं, वैसे ही वे भी हम में हों, इसलिये कि जगत प्रतीति करे, कि तू ही ने मुझे भेजा।’ (यूहन्‍ना 17:20, 21) प्रेम की खातिर परमेश्‍वर ने अपने बेटे को अपनी जान देने के लिए भेजा ताकि अभिषिक्‍त जनों और आज्ञाकारी इंसानों का उद्धार हो सके। (1 यूहन्‍ना 2:2) ‘सत्य के आत्मा’ ने मसीह के भाइयों और उनके साथियों को एकता के बँधन में बाँधा है। मार्च 28 की शाम, सूर्यास्त के बाद दोनों वर्ग के लोग, मसीह की मौत का स्मारक मनाने के लिए एक साथ इकट्ठा होंगे और वे इस बात को याद करेंगे कि यहोवा ने अपने प्यारे बेटे, यीशु मसीह के बलिदान के ज़रिए उनके लिए क्या-क्या उपकार किए हैं। इस खास मौके पर जब वे इकट्ठे होंगे, तो उनकी आपसी एकता और भी मज़बूत हो और परमेश्‍वर की इच्छा पूरी करने का उनका इरादा और भी पक्का हो। इस तरह वे यह साबित करेंगे कि उन्हें ऐसे लोग होने में खुशी है जिनसे यहोवा प्रेम रखता है।

सीखी बातों पर एक नज़र

• “सत्य का आत्मा” शुरू के मसीहियों पर कब उँडेला गया, और यह कैसे एक “सहायक” साबित हुआ?

• अभिषिक्‍त लोगों को कैसे मालूम पड़ता है कि उन्हें स्वर्गीय बुलावा मिला है?

• किन तरीकों से परमेश्‍वर का आत्मा अन्य भेड़ों पर काम करता है?

• अन्य भेड़ों ने कैसे मसीह के भाइयों की मदद की है और वे क्यों अभिषिक्‍त जनों के ‘बिना सिद्धता को नहीं पहुंच सकेंगे’?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 21 पर तसवीर]

सामान्य युग 33 के पिन्तेकुस्त में “सत्य का आत्मा” चेलों पर उंडेला गया

[पेज 23 पर तसवीरें]

परमेश्‍वर से मिली प्रचार की ज़िम्मेदारी पूरी करने में अन्य भेड़ों ने मसीह के भाइयों की मदद की