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यहोवा ने हमें धीरज धरना और दृढ़ रहना सिखाया

यहोवा ने हमें धीरज धरना और दृढ़ रहना सिखाया

जीवन कहानी

यहोवा ने हमें धीरज धरना और दृढ़ रहना सिखाया

आरिस्टोटलीस आपोस्टोलीडीस की ज़ुबानी

पीआटिगोर्स्क, एक रूसी शहर है जो उत्तरी कॉकैसस पहाड़ियों के निचले हिस्से में बसा हुआ है। यह शहर सुहावने मौसम और ऐसे सोतों के लिए मशहूर है जिनमें खनिज पाए जाते हैं। सन्‌ 1929 में यहीं मेरा जन्म हुआ। मेरे माता-पिता यूनान के रहनेवाले थे मगर यहाँ शरणार्थी बनकर रह रहे थे। दस साल बाद, स्टालिनवादियों द्वारा दूसरी जातियों को देश से निकाल देने के खौफनाक दौर ने चारों तरफ आतंक फैलाया और जातियों का संहार होने लगा। ऐसे में हम दोबारा शर्णार्थी बन गए और हमें मजबूरन अपने देश यूनान भागना पड़ा।

यूनानी शहर, पाइरीअस जाने के बाद हमारे लिए शब्द “शरणार्थी” का मतलब पूरी तरह बदल चुका था। हम अपने ही देश में अजनबी बन गए। हालाँकि मेरे और मेरे भाई का नाम दो मशहूर यूनानी तत्त्वज्ञानी, सुकरात और अरस्तू के नाम पर रखा गया था, फिर भी लोग हमें अकसर इन नामों से नहीं बल्कि नन्हे रूसी कहकर पुकारते थे।

दूसरे विश्‍वयुद्ध शुरू होने के कुछ ही समय बाद मेरी प्यारी माँ चल बसी। पूरा घर बस उसी पर निर्भर था, इसलिए उसकी मौत के बाद घर सूना हो गया। मरने से पहले वह काफी समय तक बीमार रहती थी, इसलिए उसने मुझे घर के बहुत-से काम-काज सँभालने की ट्रेनिंग दी। यह ट्रेनिंग आगे चलकर मेरे बहुत काम आयी।

युद्ध और आज़ादी

युद्ध, नात्ज़ियों का कब्ज़ा और गठबंधन देशों की सेना द्वारा लगातार बमबारी की वजह से हर दिन हम पर मौत का साया मँडराता रहता। चारों तरफ गरीबी थी, लोग भूख से तड़प रहे थे और जहाँ देखो वहाँ लाशें ही लाशें थीं। उस दौर में मुझे गयारह साल की उम्र से ही अपने पिताजी के साथ बहुत मेहनत-मशक्कत करनी पड़ी, ताकि हम तीनों का गुज़ारा हो सके। मैं अपने स्कूल की पढ़ाई पूरी नहीं कर पाया क्योंकि एक तो मुझे ठीक से यूनानी भाषा नहीं आती थी, ऊपर से युद्ध और उसके बाद होनेवाली तबाही से भी मेरी पढ़ाई रुक गयी।

अक्टूबर 1944 में यूनान, जर्मनी के कब्ज़े से आज़ाद हुआ। उसके कुछ समय बाद मेरी मुलाकात यहोवा के साक्षियों से हुई। उस वक्‍त निराशा और दुःख-तकलीफों का दौर चल रहा था, ऐसे में परमेश्‍वर के राज्य में मिलनेवाले एक उज्ज्वल भविष्य की आशा मेरे दिल को भा गयी। (भजन 37:29) परमेश्‍वर ने जो वादा किया कि इस धरती पर सबको अमन-चैन का जीवन मिलेगा, उसने मेरे ज़ख्मों पर मरहम का काम किया। (यशायाह 9:7) सन्‌ 1946 में मैंने और मेरे पिताजी ने यहोवा को किए गए अपने समर्पण की निशानी में बपतिस्मा लिया।

अगले साल मुझे बड़ी खुशी हुई जब पहली बार पाइरीअस में बनी दूसरी कलीसिया में मुझे एडवरटाइज़िंग सर्वेंट (बाद में मैंगज़ीन सर्वेंट कहा जाने लगा) की ज़िम्मेदारी सौंपी गयी। हमारी कलीसिया का प्रचार क्षेत्र, पाइरीअस से लेकर इलूसस तक था और इन दोनों जगहों के बीच करीब 50 किलोमीटर की दूरी थी। उस वक्‍त हमारी कलीसिया में बहुत-से अभिषिक्‍त मसीही सेवा करते थे। मुझे उनके साथ काम करने और उनसे बहुत-कुछ सीखने का सुनहरा मौका मिला। मुझे उनका साथ बहुत पसंद था क्योंकि उनके पास सुनाने के लिए अनगिनत अनुभव थे कि प्रचार के लिए उन्हें कैसे जी-तोड़ मेहनत करनी पड़ती थी। उनके जीने के तरीके से साफ ज़ाहिर हुआ कि वफादारी से यहोवा की सेवा करने में बहुत सब्र और दृढ़ता की ज़रूरत होती है। (प्रेरितों 14:22) मैं कितना खुश हूँ कि आज इस इलाके में यहोवा के साक्षियों की 50 से भी ज़्यादा कलीसियाएँ मौजूद हैं!

एक चुनौती जिसकी मैंने उम्मीद नहीं की थी

कुछ समय बाद मेरी जान-पहचान पतरस शहर की एक जवान मसीही एलेनी से हुई। वह बहुत प्यारी और जोशीली थी। सन्‌ 1952 के खतम होते-होते हमारी सगाई हो गयी। उसके कुछ ही महीनों बाद एलेनी बहुत बीमार हो गयी। डॉक्टरों की जाँच से पता चला कि उसे ब्रेन ट्यूमर है और उसकी हालत बहुत ही नाज़ुक थी। उसका जल्द-से-जल्द ऑपरेशन होना था। बहुत ढूँढ़ने पर कहीं जाकर ऐथेंस में एक डॉक्टर मिला। हालाँकि उस ज़माने में ऑपरेशन करने के लिए बढ़िया सुविधाएँ नहीं थीं मगर फिर भी वह हमारे धार्मिक विश्‍वास का आदर करते हुए बगैर खून के ऑपरेशन करने को राज़ी हो गया। (लैव्यव्यवस्था 17:10-14; प्रेरितों 15:28, 29) ऑपरेशन के बाद डॉक्टर ने कहा कि मेरी मँगेतर के ठीक होने की उम्मीद है मगर साथ ही उसने मुझे सावधान किया कि उसका ट्यूमर दोबारा वापस आ सकता है।

ऐसे हालात में मैं क्या करता? क्या मुझे उस परिस्थिति में सगाई तोड़कर अपने आपको ज़िम्मेदारी से मुक्‍त कर लेना चाहिए था? नहीं! सगाई के वक्‍त मैंने शादी का वादा किया था, इसलिए मैं अपनी हाँ को हाँ ही रखना चाहता था। (मत्ती 5:37) एक पल के लिए भी मैंने उसे छोड़ने का ख्याल अपने मन में नहीं आने दिया। एलेनी की बड़ी बहन ने उसकी देखभाल की और वह थोड़ी-बहुत अच्छी हो गयी थी। और फिर हमने दिसंबर 1954 में शादी कर ली।

तीन साल बाद एलेनी फिर से बीमार हो गयी और उसी डॉक्टर ने दोबारा उसका ऑपरेशन किया। इस बार उसने मस्तिष्क की एकदम गहराई तक ऑपरेशन करके पूरे ट्यूमर को निकाल दिया। नतीजा यह हुआ कि मेरी पत्नी के शरीर के कुछ हिस्सों को लकवा मार गया और इससे उसके बोलने की शक्‍ति पर बुरा असर पड़ा। अब हम दोनों के सामने कुछ नयी और पेचीदा समस्याएँ खड़ी हुईं। यहाँ तक कि छोटे-से-छोटा काम करना मेरी प्यारी पत्नी के लिए बड़ा मुश्‍किल हो गया। उसकी बिगड़ती हालत की वजह से हमने अपनी रोज़ाना की ज़िंदगी में बड़े-बड़े बदलाव किए। मगर इससे बढ़कर हमें धीरज धरने और दृढ़ता से काम लेने की बेहद ज़रूरत थी।

अब उस ट्रेनिंग को इस्तेमाल करने का वक्‍त आ गया था जो बचपन में मुझे मेरी माँ से मिली थी। हर सुबह मैं खाना बनाने की पूरी तैयारी करके रखता और एलेनी पकाती। अकसर हम पूरे समय के सेवकों, अपने बाइबल विद्यार्थियों और कलीसिया के ज़रूरतमंद भाई-बहनों को खाने पर बुलाते थे। और वे सभी हमारे खाने की तारीफ करते! मैं और एलेनी घर के दूसरे काम भी मिल-जुलकर करते थे ताकि हमारा घर साफ-सुथरा रहे। और ऐसा 30 साल तक चलता रहा।

बीमार फिर भी जोशीली

इस बात ने मेरे और दूसरों के दिल को छू लिया कि मेरी पत्नी के इतनी बीमार होने के बावजूद भी सेवकाई के लिए उसका जोश और यहोवा के लिए उसका प्यार ज़रा-भी कम नहीं हुआ। समय के गुज़रते, साथ ही एलेनी की कड़ी मेहनत से वह चंद शब्दों के ज़रिए अपनी बातों को ज़ाहिर करने लगी। उसे सड़क पर लोगों को बाइबल से खुशखबरी सुनाना बहुत ही पसंद था। जब मैं अपने काम के सिलसिले से बाहर जाता था तो उसे भी अपने साथ ले जाता और अपनी कार ऐसे फुटपाथ के पास खड़ी करता जहाँ पर लोगों का आना-जाना लगा रहता था। वह कार की खिड़की खोलकर सड़क से गुज़रनेवालों को प्रहरीदुर्ग और सजग होइए! पत्रिकाएँ लेने के लिए बुलाती। एक मौके पर तो उसने दो घंटे में 80 पत्रिकाएँ बाँटी। इस तरह वह अकसर कलीसिया में उपलब्ध सारी पुरानी पत्रिकाएँ बाँट देती थी। एलेनी प्रचार काम के दूसरे पहलुओं में भी लगातार हिस्सा लेती थी।

विकलांग होने के बावजूद मेरी पत्नी उन सालों में मेरे साथ हर सभा में हाज़िर होती थी। ऐसा कोई भी सम्मेलन और अधिवेशन नहीं था जिसमें वह हाज़िर न हुई हो, यहाँ तक कि उस वक्‍त भी जब यूनान में यहोवा के साक्षियों को सताया गया और उन्हें अधिवेशन के लिए दूसरे देश जाना पड़ा। उसका स्वास्थ्य अच्छा न होने के बावजूद वह खुशी-खुशी आस्ट्रिया, जर्मनी, साइप्रस और दूसरे देशों के अधिवेशनों में हाज़िर हुई। कलीसिया में मेरी ज़िम्मेदारियाँ बढ़ने की वजह से कभी-कभी उसे परेशानी होती थी, मगर उसने कभी-भी शिकायत नहीं की, न ही उस पर ज़्यादा ध्यान देने की मांग की।

जहाँ तक मेरा सवाल है, इस हालात ने मुझे ज़िंदगी-भर धीरज धरना और दृढ़ रहना सिखाया। कई बार मैंने महसूस किया कि यहोवा खुद अपना हाथ बढ़ाकर मेरी मदद कर रहा है। भाई-बहनों ने हर मुमकिन तरीके से हमारी मदद करने के लिए त्याग किए और डॉक्टरों ने भी बड़े प्यार से हमारा साथ दिया। ऐसे मुश्‍किल हालात की वजह से मेरे लिए पूरे समय की नौकरी करना नामुमकिन था, फिर भी उन सालों में हमें कभी-भी रोज़मर्रा की चीज़ों की कमी महसूस नहीं हुई। अपनी ज़िंदगी में हम हमेशा यहोवा के काम और उसकी सेवा को सबसे पहला स्थान देते थे।—मत्ती 6:33.

बहुत-से लोगों ने पूछा कि उन मुश्‍किलों के दौर में हमें किस बात ने सँभाले रखा। आज जब मैं पीछे मुड़कर देखता हूँ तो पाता हूँ कि बाइबल का निजी अध्ययन, यहोवा से दिल से की गयी प्रार्थनाएँ, कलीसिया की सभाओं में नियमित रूप से हाज़िर होना और जोश के साथ प्रचार काम में हिस्सा लेना, इन सबने हमारे धीरज और दृढ़ता को मज़बूत किया है। हम हमेशा भजन 37:3-5 में कहे गए इन शब्दों को याद करके हिम्मत पाते थे: “यहोवा पर भरोसा रख, और भला कर; . . . यहोवा को अपने सुख का मूल जान . . . अपने मार्ग की चिन्ता यहोवा पर छोड़; और उस पर भरोसा रख, वही पूरा करेगा।” एक और आयत जो हमारे लिए काफी अनमोल साबित हुई, वह थी भजन 55:22: “अपना बोझ यहोवा पर डाल दे वह तुझे सम्भालेगा।” जिस तरह एक बच्चे को अपने पिता पर पूरा भरोसा होता है, ठीक उसी तरह हम न सिर्फ अपना बोझ यहोवा पर डाल देते थे बल्कि उसी के पास छोड़ देते थे।—याकूब 1:6.

अप्रैल 12, 1987 को जब मेरी पत्नी हमारे घर के सामने प्रचार कर रही थी तो भारी लोहे का दरवाज़ा धड़ाक से उसके पीछे बंद हो गया। इससे उसे इतनी ज़ोर का धक्का लगा कि वह फुटपाथ के किनारे बड़ी ज़ोर से गिर पड़ी और बुरी तरह ज़ख्मी हो गयी। और उसके बाद वह अगले 3 साल के लिए कोमा में चली गयी। सन्‌ 1990 के शुरूआती महीनों में वह चल बसी।

यहोवा की सेवा में अपनी काबिलीयत का पूरा इस्तेमाल करना

सन्‌ 1960 की बात थी जब मुझे पाइरीअस के निकेआ में कान्ग्रीगेशन सर्वेंट (प्रिसाइडिंग ओवरसियर) के तौर पर सेवा करने के लिए नियुक्‍त किया गया। तब से मुझे पाइरीअस की कई कलीसियाओं में सेवा करने का मौका मिला। हालाँकि मेरे खुद के बच्चे नहीं थे, फिर भी मुझे कई आध्यात्मिक बच्चों की मदद करने में बहुत खुशी मिली जो आगे चलकर सच्चाई में डटे रहे। उनमें से कुछ आज कलीसिया के प्राचीन, सहायक सेवक, पायनियर और बेथेल परिवार के सदस्य भी हैं।

सन्‌ 1975 में यूनान में फिर से लोकतंत्र बहाल होने से यहोवा के साक्षी बिना किसी बाधा के अपने अधिवेशन आयोजित कर पाए, अब उन्हें जंगलों में छिपकर अधिवेशन करने की ज़रूरत नहीं थी। हममें से कुछ भाइयों ने दूसरे देशों में अधिवेशन आयोजित करने का जो तजुर्बा हासिल किया था वह अब बहुत काम आया। इस तरह मुझे कई सालों तक अधिवेशन की अलग-अलग कमीटियों में काम करने का मौका और खुशी मिली।

फिर 1979 में ऐथेंस की सीमा पर यूनान का सबसे पहला असेंबली हॉल बनाने की योजना तैयार की गयी। मुझे इस बड़े निर्माण कार्य को संगठित करने की ज़िम्मेदारी सौंपी गयी। इस काम को करने के लिए भी धीरज और दृढ़ता की बहुत ज़रूरत थी। इस काम में सैकड़ों भाई-बहनों ने खुद को पूरी तरह लगा दिया था और तीन साल तक एक-साथ काम करने से हम सब प्यार और एकता के अनूठे बंधन में बँध गए थे। इस परियोजना की यादें आज भी मेरे दिल में ताज़ा हैं।

कैदियों की आध्यात्मिक ज़रूरतें पूरी करना

कुछ साल बाद सेवा का एक नया मौका सामने आया। हमारी कलीसिया के इलाके के पास, कोरीडालोस में यूनान की सबसे बड़ी जेल है। अप्रैल 1991 से यहोवा के साक्षियों की तरफ से मुझे इस जेल में कैदियों से मिलने के लिए नियुक्‍त किया गया। वहाँ मुझे दिलचस्पी दिखानेवालों के साथ बाइबल अध्ययन करने और सभाएँ रखने की इजाज़त थी। बहुतों ने बड़े-बड़े बदलाव करके यह साबित कर दिया कि परमेश्‍वर का वचन वाकई प्रबल है। (इब्रानियों 4:12) इससे जेल के कर्मचारी और दूसरे कैदी काफी प्रभावित हुए। कुछ कैदी जिनके साथ मैंने बाइबल अध्ययन किया, वे रिहा हो चुके हैं और आज परमेश्‍वर की खुशखबरी के प्रचारक हैं।

कुछ समय के लिए मैंने ड्रग्स बेचनेवाले तीन कुख्यात अपराधियों के साथ अध्ययन किया। जैसे-जैसे वे आध्यात्मिक उन्‍नति करने लगे, वे बाइबल अध्ययन के लिए दाढ़ी बनाते, अच्छी तरह से अपने बाल बनाते, और यूनान के सबसे गरम महीने, अगस्त में भी वे शर्ट और टाई पहनते! जेल के निर्देशक, चीफ वार्डन और कुछ कर्मचारी इस करिश्‍मे को देखने के लिए अपने ऑफिस से दौड़े-दौड़े आते थे। उन्हें अपनी आँखों पर विश्‍वास ही नहीं होता था!

जेल में औरतों के ब्लॉक में एक और उत्साह बढ़ानेवाला अनुभव हुआ। मैंने एक औरत के साथ बाइबल अध्ययन शुरू किया जिसे हत्या के जुर्म में उम्र कैद की सज़ा सुनायी गयी थी। वह अपने अक्खड़पन के लिए जानी जाती थी। जल्द ही उसने अपने अंदर ऐसे बदलाव लाने शुरू कर दिए कि बहुतों ने कहा कि वह खूँखार शेरनी थी जो अब भेड़ बन गयी! (यशायाह 11:6, 7) कुछ ही समय के अंदर उसने जेल की निर्देशक का आदर और विश्‍वास जीत लिया। मैं बहुत खुश हुआ जब उसने इतनी बढ़िया आध्यात्मिक तरक्की की कि वह यहोवा को अपना समर्पण ज़ाहिर करने के मुकाम तक पहुँच गयी।

बीमारों और बुज़ुर्गों की मदद करना

अपनी पत्नी को लंबे समय तक बीमारी से जूझता देख मैं, बीमारों और बूढ़ों की ज़रूरतों को और अच्छी तरह से समझ पाया हूँ। जब भी हमारे प्रकाशनों में ऐसे लेख आते, जो हमें बीमार और बुज़ुर्गों की मदद करने का बढ़ावा देते तो इन लेखों को पढ़ने से मेरी दिलचस्पी और भी बढ़ जाती थी। ये लेख मेरे लिए बहुत अनमोल थे और मैंने इन्हें इकट्ठा करना शुरू कर दिया। कुछ सालों बाद मेरे पास सौ से भी ज़्यादा पन्‍नोंवाला एक फोल्डर तैयार हो गया जिसका पहला लेख है, “बुज़ुर्गों और पीड़ितों के लिए परवाह दिखाना।” यह लेख जुलाई 15, 1962 के वॉचटावर से लिया गया था। इनमें से बहुत-से लेखों में यह बताया गया कि हर कलीसिया में बूढ़ों और बीमारों को मदद देने का इंतज़ाम करना काफी फायदेमंद है।—1 यूहन्‍ना 3:17, 18.

हमारी कलीसिया के प्रचीनों ने ऐसे भाई-बहनों का समूह बनाया जो बीमार और बुज़ुर्ग लोगों की मदद करने के लिए तैयार थे। हमने इन भाई-बहनों को अलग-अलग दलों में बाँट दिया। जैसे कि एक दल जो दिन में मदद कर सकता था, दूसरा जो रात में, और बाकी जो आने-जाने के साधन मुहैया करा सकते थे और जो 24 घंटे सहायता देने के लिए मौजूद रहते। आखिरी कुछ दल उड़ान दस्ते की तरह थे जिनको बुलावा देने से वे मदद करने के लिए तुरंत दौड़े आते थे।

इससे जो नतीजे सामने आए वे वाकई उत्साह बढ़ानेवाले थे। उदाहरण के लिए, एक बीमार बहन जो अकेली रहती थी, उसके पास रोज़ाना कोई-न-कोई जाता था। मगर एक दिन वह फर्श पर बेहोश पड़ी मिली। इस पर हमने पास में रहनेवाली एक बहन को खबर दी जिसके पास कार थी। उसने बीमार बहन को सबसे नज़दीकी अस्पताल में बस दस मिनट में पहुँचा दिया जो वाकई अपने-आप में एक रिकार्ड था! डॉक्टरों ने कहा कि उसे ऐन वक्‍त पर अस्पताल लाकर उस बहन की जान बच गयी।

बीमारों और बुज़ुर्गों ने जो आभार उस समूह के लोगों को दिखाया उससे वाकई संतुष्टि मिली। परमेश्‍वर की नयी दुनिया में एकदम अलग परिस्थितियों में इन भाई-बहनों के साथ जीने की आशा वाकई हमारे दिल को छू जाती है। और उनको मिली मदद की वजह से वे अपनी तकलीफें सह पाए हैं यह जानना एक और आशीष है।

दृढ़ता बनाए रखने से आशीषें मिली हैं

आज मैं पाइरीअस कलीसिया में प्राचीन के तौर पर सेवा कर रहा हूँ। बुढ़ापे की वजह से मेरा स्वास्थ्य अच्छा नहीं रहता मगर मैं खुश हूँ कि आज भी मैं कलीसिया के कामों में जोश के साथ हिस्सा ले सकता हूँ।

सालों से मैं ऐसी कठिन परिस्थितियों, मुश्‍किल भरी चुनौतियों और हादसों से गुज़रा हूँ जिनमें धीरज धरने और दृढ़ता से काम लेने की बेहद ज़रूरत पड़ी थी। इन सारी समस्याओं का सामना करने के लिए यहोवा ने हमेशा मुझे ताकत दी है। बार-बार मैंने भजनहार के इन शब्दों की सच्चाई को महसूस किया है: “जब मैं ने कहा, कि मेरा पांव फिसलने लगा है, तब हे यहोवा, तेरी करुणा ने मुझे थाम लिया। जब मेरे मन में बहुत सी चिन्ताएं होती हैं, तब हे यहोवा, तेरी दी हुई शान्ति से मुझ को सुख होता है।”—भजन 94:18, 19.

[पेज 25 पर तसवीर]

सन्‌ 1957 में, अपनी पत्नी एलेनी के साथ उसके दूसरे ऑपरेशन के बाद

[पेज 26 पर तसवीर]

सन्‌ 1969 में, न्यूरमबर्ग, जर्मनी में हुए अधिवेशन में

[पेज 28 पर तसवीर]

भाई-बहनों का समूह जिसने बीमारों और बुज़ुर्गों की मदद की