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एक शुद्ध विवेक किस कीमत पर?

एक शुद्ध विवेक किस कीमत पर?

एक शुद्ध विवेक किस कीमत पर?

“सरकार को हुक्म, कि 20,000 रेआल वापस ले ले।” यह अनोखा शीर्षक, हाल ही में ब्राज़ील के एक अखबार, कोरेयू दू पोवू की सुर्खियों में छपा। उस लेख ने लूइज़ एलवो दी ऑरॉउज़्हू नाम के एक डाकिए के साथ हुई घटना की खबर दी, जिसने अपनी ज़मीन का एक टुकड़ा, राज्य सरकार को बेचा था। अपनी ज़मीन, सरकार के नाम कर देने के बाद लूइज़ यह देखकर दंग रह गया कि उसे, तय किए गए रकम से 20,000 रेआल (लगभग 3,60,000 रुपए) ज़्यादा भुगतान कर दिया गया।

यह अतिरिक्‍त रकम, सरकार को लौटाना लूइज़ के लिए इतना आसान नहीं था। वह सरकारी विभागों में बार-बार चक्कर काटने के बाद भी नाकाम रहा। आखिर में, उसे सलाह दी गयी कि एक वकील की मदद से अदालत में मामला निपटा लेना ठीक रहेगा। फिर अदालत ने सरकार को यह हुक्म दिया कि वह पैसे वापस ले और इस कानूनी कार्यवाही में हुए खर्च की भरपाई करे। जिस जज ने यह फैसला सुनाया, वह कहता है: “शायद किसी से कुछ गलती हो गयी और मामले को सुलझाने की दफ्तरी कार्यवाही इतनी पेचीदा थी कि कोई नहीं जानता था कि क्या किया जाए। ऐसा मामला मैंने ज़िंदगी में पहली बार देखा है।”

लूइज़, यहोवा का एक साक्षी है। वह कहता है: “बाइबल के मुताबिक ढाला गया मेरा विवेक, मुझे ऐसी चीज़ अपने पास रखने की इजाज़त नहीं देता जिस पर मेरा हक नहीं बनता है। मुझे हर हाल में पैसे वापस करना था।”

शायद कई लोग सोचें कि ऐसी ईमानदारी दिखाना तो बिलकुल अनोखी बात है या फिर उनको यकीन करना मुश्‍किल लगे कि यह कैसे हो सकता है। लेकिन परमेश्‍वर का वचन बताता है कि सच्चे मसीहियों को सरकारी अधिकारियों के साथ पेश आते वक्‍त एक शुद्ध विवेक बनाए रखने पर खास ध्यान देने की ज़रूरत है। (रोमियों 13:5) यहोवा के साक्षियों ने यह ठान लिया है कि वे अपना ‘विवेक शुद्ध बनाए रखेंगे और सब बातों में अच्छी चाल चलेंगे।’—इब्रानियों 13:18.