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जागते रहो, हिम्मत के साथ आगे बढ़ते चलो!

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खास सभाओं की रिपोर्ट

कौन इस बात से इनकार कर सकता है कि आज हम “कठिन समय” में जी रहे हैं? हम यहोवा के साक्षियों को भी “अन्तिम दिनों” की कठिनाइयों से गुज़रना पड़ रहा है। (2 तीमुथियुस 3:1-5) फिर भी, हमें इस बात का एहसास है कि लोगों को मदद की ज़रूरत है। वे नहीं जानते कि संसार में होनेवाली घटनाओं की वजह क्या है। उनको सांत्वना देना और उनकी उम्मीद बँधाना ज़रूरी है। हम दूसरों की मदद खासकर कैसे कर सकते हैं?

हमें परमेश्‍वर ने अपने स्थापित राज्य का सुसमाचार सुनाने का काम सौंपा है। (मत्ती 24:14) लोगों को जानने की ज़रूरत है कि सिर्फ स्वर्ग का यह राज्य ही दुनिया की सभी समस्याओं का हल कर सकता है। लेकिन हमारे संदेश को हर कोई स्वीकार नहीं करता। कुछ जगहों में हमारे काम पर पाबंदी लगायी गयी है और भाइयों को सताया जा रहा है। फिर भी हम हिम्मत नहीं हारते। यहोवा पर पूरा भरोसा रखकर हमने यह ठान लिया है कि हम जागते रहेंगे और सुसमाचार सुनाना नहीं छोड़ेंगे बल्कि हिम्मत से आगे बढ़ते रहेंगे।—प्रेरितों 5:42.

हमारा यह अटल इरादा, अक्टूबर 2001 में हुई खास सभाओं में साफ ज़ाहिर हुआ। शनिवार, 6 अक्टूबर को वॉच टावर बाइबल एण्ड ट्रैक्ट सोसाइटी ऑफ पॆन्सिलवेनिया की सालाना सभा जर्सी सिटी, न्यू जर्सी, अमरीका में यहोवा के साक्षियों के असेंबली हॉल में हुई थी। * अगले दिन चार जगहों में अतिरिक्‍त सभाएँ रखी गयीं, तीन अमरीका में और एक कनाडा में। *

सालाना सभा के सभापति, यहोवा के साक्षियों के शासी निकाय के सदस्य सैमयल एफ. हर्ड थे। उन्होंने सभा की शुरूआत में भजन 92:1, 4 का ज़िक्र करते हुए कहा: “हम अपनी एहसानमंदी ज़ाहिर करना चाहते हैं।” संसार भर से पेश की गयी पाँच रिपोर्टों से सचमुच यहोवा को धन्यवाद देने का कारण मिला।

दूर-दूर से मिली खबरें

भाई ऐल्फ्रड क्वाची ने घाना, जो पहले गोल्ड कोस्ट कहलाता था, में प्रचार काम में हो रही बढ़ोतरी के बारे में रिपोर्ट पेश की। उस देश में हमारे काम पर कई सालों तक पाबंदी लगी हुई थी। लोग पूछते थे: “इस पाबंदी की वजह क्या है? आप लोगों ने क्या गलती की है?” भाई क्वाची ने कहा कि लोगों के ऐसा पूछने पर उनको गवाही देने के मौके मिलते थे। सन्‌ 1991 में जब घाना में से पाबंदी हटा दी गयी, उस वक्‍त वहाँ 34,421 यहोवा के साक्षी थे। अगस्त 2001 तक साक्षियों की कुल गिनती 68,152 हो गयी, जो कि 98 प्रतिशत बढ़ोतरी थी। इस देश में एक असेंबली हॉल का निर्माण करने की योजनाएँ बनायी जा रही हैं जिसमें 10,000 लोग बैठ सकते हैं। बेशक, घाना में हमारे आध्यात्मिक भाई-बहन अपनी धार्मिक आज़ादी का सबसे अच्छा इस्तेमाल कर रहे हैं।

आयरलैंड में राजनीतिक उथल-पुथल के बावजूद, हमारे भाई सेवकाई में गरम-जोशी से हिस्सा लेते हैं और संसार के मामलों में निष्पक्ष रहने के कारण उनका आदर किया जाता है। आयरलैंड की ब्रांच कमेटी के कोऑर्डिनेटर, पीटर ऐन्ड्रूज़ ने बताया कि इस देश में 6 सर्किट हैं जिनमें 115 कलीसियाएँ हैं। भाई ऐन्ड्रूज़ ने लीऐम नाम के एक 10 साल के लड़के का अनुभव सुनाया जो निडर होकर स्कूल में गवाही देता है। लीऐम ने यहोवा के साक्षियों द्वारा प्रकाशित किताब, बाइबल कहानियों की मेरी पुस्तक अपनी क्लास के 25 बच्चों को और अपनी टीचर को भी दी। लीऐम बपतिस्मा लेना चाहता था मगर किसी ने उससे पूछा कि क्या आप अभी बपतिस्मे के लिए बहुत छोटे नहीं हो। इस पर लीऐम का जवाब था: “मुझे बपतिस्मा लेना है या नहीं, यह बात मेरी उम्र से नहीं बल्कि इस बात से तय होनी चाहिए कि यहोवा के लिए मेरे दिल में कितना प्यार है। मेरा बपतिस्मा यह दिखाएगा कि मैं यहोवा से कितना प्यार करता हूँ।” लीऐम बड़ा होकर मिशनरी बनना चाहता है।

सन्‌ 1968 में वेनेज़ुइला में 5,400 सुसमाचार के प्रचारक थे। लेकिन अब वहाँ 88,000 से ज़्यादा प्रचारक हैं। यह बात वहाँ की ब्रांच कमेटी के कोऑर्डिनेटर, स्टीफान योहानसन ने बतायी। वहाँ और भी बढ़ोतरी की गुंजाइश है क्योंकि 2001 में स्मारक के लिए 2,96,000 से ज़्यादा लोग हाज़िर हुए थे। दिसंबर 1999 को मूसलाधार बारिश से भू-स्खलन हुआ जिससे तकरीबन 50,000 लोगों की जानें गयीं। उनमें कई साक्षी भी थे। एक किंगडम हॉल के अंदर इतना कीचड़ भर गया कि वह लगभग छत तक पहुँच गया। जब किसी ने भाइयों से कहा कि वे उस बिल्डिंग को छोड़ दें, तो भाइयों ने कहा: “बिलकुल नहीं! यह हमारा किंगडम हॉल है, इस खस्ताहाल में हम इसे नहीं छोड़ेंगे।” वे किंगडम हॉल की सफाई में लग गए और उन्होंने अंदर से कई टन कीचड़, पत्थर और बाकी मलबा निकाल दिया। उस इमारत को एक नया आकार दिया गया और भाई कहते हैं कि अब वह हॉल पहले से ज़्यादा खूबसूरत दिखता है!

फिलीपींस की ब्रांच कमेटी के कोऑर्डिनेटर, भाई डॆन्टन हॉपकिनसन ने बताया कि वहाँ 87 भाषाएँ और बोलियाँ बोली जाती हैं। पिछले सेवा साल में न्यू वर्ल्ड ट्रांस्लेशन ऑफ द होली स्क्रिप्चर्स्‌ की पूरी बाइबल उस देश की तीन प्रमुख भाषाओं में रिलीज़ की गयी। ये भाषाएँ थीं—सेबवॉनो, इलोको और टागालोग। भाई हॉपकिनसन ने नौ साल के एक लड़के का अनुभव बताया जिसने यहोवा के साक्षियों के ज़रिए प्रकाशित की गयी किताब आप के लिए आनन्द का सुसमाचार पढ़ा था। उसने ब्रांच से दूसरे प्रकाशन भी पाए और उन्हें भी पढ़ा लेकिन उसके परिवार के लोग उसका विरोध करने लगे। सालों बाद जब वह एक मॆडिकल स्कूल में पढ़ाई कर रहा था तो उसने ब्रांच से संपर्क किया और बाइबल अध्ययन की गुज़ारिश की। सन्‌ 1996 में उसने बपतिस्मा लिया और जल्द ही पूर्ण समय की सेवा शुरू कर दी। वह और उसकी पत्नी अब ब्रांच ऑफिस में सेवा कर रहे हैं।

पोर्टो रिको की ब्रांच कमेटी के कोऑर्डिनेटर, रॉनल्ड पॉर्कन ने कहा कि ‘यह देश “साक्षियों का निर्यात” कर रहा है।’ इस द्वीप में लगभग 25,000 प्रकाशक हैं और कई सालों से इस संख्या में कोई बढ़ोतरी नहीं हुई है। ऐसा क्यों? अनुमान लगाया गया है कि पोर्टो रिको हर साल करीब 1,000 प्रचारकों को “निर्यात” करके अमरीका भेजता है, जिनमें से कई आर्थिक कारणों से वहाँ जाकर बस जाते हैं। भाई पार्कन ने अदालत के एक महत्त्वपूर्ण फैसले के बारे में बताया। यह लूयीस नाम के एक 17 साल के साक्षी के बारे में था जिसे लूकीमीया हो गया था। लूयीस ने जब खून लेने से इनकार कर दिया तो उसका मामला अदालत तक ले जाया गया। जज खुद लूयीस से बात करना चाहती थी इसलिए वह उससे मिलने अस्पताल गयी। लूयीस ने उससे पूछा: “अगर मैं कोई संगीन जुर्म करूँ तो आप मुझे बालिग समझकर मेरा फैसला करेंगी लेकिन अब जब मैं परमेश्‍वर की आज्ञा मानना चाहता हूँ, तो आप मेरे साथ एक नाबालिग की तरह क्यों सलूक करती हैं?” जज को यकीन हो गया कि वह लड़का सयाना है और अपने फैसले खुद कर सकता है।

दूर-दूर के देशों से पेश की गयी रिपोर्टों के बाद, अमरीका की ब्रांच कमेटी के सदस्य हैरल्ड कॉकर्न ने लंबे समय से यहोवा की सेवा कर रहे चार भाइयों का इंटरव्यू लिया। आर्थर बोनो को पूरे समय की सेवा में 51 साल बीत गए हैं और अब वे इक्वेडोर की ब्रांच कमेटी के सदस्य हैं। आन्जेलो काटान्डज़ारो ने पूर्ण समय की सेवा में 59 साल बिताए, जिनमें से ज़्यादातर साल वे सफरी ओवरसियर रहे थे। रिचर्ड एब्रहैमसन 1953 में गिलियड स्कूल से ग्रेजुएट हुए और उन्हें 26 साल डेनमार्क में प्रचार काम की निगरानी करने का सुअवसर मिला था। फिर वे ब्रुकलिन बेथेल लौट आए। आखिर में सभी लोग 96 साल के बुज़ुर्ग भाई कैरी डब्ल्यू. बार्बर का इंटरव्यू सुनकर बहुत खुश हुए। उनका बपतिस्मा 1921 में हुआ था और वे 78 सालों से पूरे समय के सेवक हैं और 1978 से शासी निकाय के सदस्य हैं।

जोश दिलानेवाले भाषण

सालाना सभा में एक-के-बाद-एक ऐसे कई भाषण दिए गए जिनसे श्रोता सोचने पर मजबूर हुए। भाई रॉबर्ट डब्ल्यू. वॉलन ने “उसके नाम के लिए लोग” विषय पर भाषण दिया। हम सभी परमेश्‍वर के नाम के लिए अलग किए गए लोग हैं और हम 230 से ज़्यादा देशों में हैं। यहोवा ने हमें एक “भविष्य और आशा” दी है। (यिर्मयाह 29:11, NHT) हमें दूर-दूर तक परमेश्‍वर के राज्य का प्रचार करना जारी रखना चाहिए और लोगों को शांति और सांत्वना देनेवाला बढ़िया संदेश सुनाना चाहिए। (यशायाह 61:1) भाई वॉलन ने अपने भाषण के आखिर में कहा: “आइए हम अपना हर दिन इस तरह बिताएँ कि हम यहोवा के साक्षी, अपने इस नाम को सार्थक बनाएँ।”—यशायाह 43:10.

कार्यक्रम का आखिरी भाग, एक परिचर्चा थी जिसे शासी निकाय के तीन सदस्यों ने पेश किया। विषय था: “जागते रहने, विश्‍वास में स्थिर रहने और बलवन्त होने का यही समय है।”—1 कुरिन्थियों 16:13.

परिचर्चा में सबसे पहले भाई स्टीवन लॆट ने “इस आखिरी घड़ी में जागते रहो” विषय पर बात की। भाई लॆट ने कहा कि शारीरिक नींद एक वरदान है क्योंकि इससे हमारे अंदर दोबारा चुस्ती आ जाती है। लेकिन आध्यात्मिक नींद हमेशा नुकसानदेह होती है। (1 थिस्सलुनीकियों 5:6) तो फिर हम आध्यात्मिक तरीके से हमेशा कैसे जागे रह सकते हैं? भाई लॆट ने तीन आध्यात्मिक नुसखे बताए: (1) प्रभु के काम में हमेशा व्यस्त रहिए। (1 कुरिन्थियों 15:58) (2) अपनी आध्यात्मिक ज़रूरतों का हमेशा खयाल रखिए। (मत्ती 5:3) (3) बाइबल के आधार पर आपको जो भी सलाह दी जाती है उसे मानिए, ताकि आप बुद्धिमानी से काम कर पाएँ।—नीतिवचन 13:20.

भाई थियोडोर जारज़ ने “परीक्षा के दौरान स्थिर रहो” विषय पर एक ज़बरदस्त भाषण दिया। प्रकाशितवाक्य 3:10 का ज़िक्र करके उन्होंने पूछा: “‘परीक्षा की घड़ी’ क्या है?” यह परीक्षा “प्रभु के दिन” में आती है, यानी हमारे दिनों में। (प्रकाशितवाक्य 1:10) यह परीक्षा इस खास मसले को लेकर है कि हम परमेश्‍वर के स्थापित राज्य के पक्ष में हैं या शैतान के दुष्ट संसार के पक्ष में? जब तक परीक्षा की यह घड़ी खत्म नहीं हो जाती, तब तक हमें परीक्षाओं या तकलीफों का सामना करना ही पड़ेगा। क्या हम यहोवा और उसके संगठन के वफादार बने रहेंगे? भाई जारज़ ने कहा: ‘हम में से हरेक को ऐसी वफादारी दिखानी होगी।’

आखिर में, भाई जॉन ई. बार ने ‘आध्यात्मिक व्यक्‍ति के तौर पर बलवन्त होते जाओ’ विषय पर भाषण दिया। उन्होंने लूका 13:23-25 का ज़िक्र करके बताया कि हमें “सकेत द्वार से प्रवेश” करने के लिए कठिन परिश्रम करना होगा। कई लोग इसमें नाकाम हो जाते हैं क्योंकि वे बलवन्त होने के लिए अच्छी मेहनत नहीं करते। प्रौढ़ मसीही बनने के लिए हमें ज़िंदगी के हर क्षेत्र में बाइबल के उसूलों को अमल करना सीखना चाहिए। भाई बार ने आग्रह किया: “मुझे यकीन है, आप इस बात से सहमत होंगे कि यह समय (1) यहोवा को ज़िंदगी में पहला, जी हाँ सबसे पहला स्थान देने का; (2) बलवन्त होने का; और (3) यहोवा की इच्छा पूरी करने में कठिन परिश्रम करने का है। अगर हम ऐसा करते रहेंगे, तो उस सकेत द्वार से प्रवेश कर पाएँगे जो हमें हमेशा की खुशहाल ज़िंदगी की ओर ले जाता है।”

सालाना सभा खतम होने पर थी, मगर एक सवाल का जवाब पाना अब भी बाकी था: सन्‌ 2002 के सेवा साल का सालाना पाठ क्या होगा? इसका जवाब अगले दिन दिया गया।

अतिरिक्‍त सभा

रविवार की सुबह, जब अतिरिक्‍त सभा शुरू हुई तो सभी के अंदर उत्सुकता बढ़ने लगी। इस सभा की शुरूआत में उस हफ्ते के प्रहरीदुर्ग पाठ का सारांश पेश किया गया और उसके बाद चंद शब्दों में सालाना सभा की कुछ झलकियाँ पेश की गयीं। फिर, सभी लोग 2002 के इस सालाना पाठ पर दिए गए भाषण को सुनकर बेहद खुश हुए: “मेरे पास आओ; मैं तुम्हें विश्राम दूँगा।” (मत्ती 11:28) यह भाषण उन अध्ययन लेखों पर आधारित था, जो बाद में दिसंबर 15, 2001 की प्रहरीदुर्ग में छापे गए।

इसके बाद, अगस्त 2001 में फ्रांस और इटली में आयोजित, “परमेश्‍वर के वचन के सिखानेवाले” खास अधिवेशनों में हाज़िर भाइयों के दल में से कुछ ने बताया कि उन अधिवेशनों की किन बातों ने उन पर गहरी छाप छोड़ी। * आखिर में, उस दिन के कार्यक्रम का खास भाग पेश किया गया जिसके तहत ब्रुकलिन बेथेल से आए दो मेहमान वक्‍ताओं ने भाषण दिए।

पहले भाषण का विषय था, “इन कठिन समयों के दौरान पूरी हिम्मत के साथ यहोवा पर भरोसा रखना।” भाई ने इन खास मुद्दों को खुलकर समझाया: (1) हिम्मत के साथ यहोवा पर भरोसा रखना उसके लोगों के लिए हमेशा ज़रूरी रहा है। बाइबल में ऐसे कई लोगों का उदाहरण दर्ज़ है जिन्होंने साहस और विश्‍वास के साथ विरोध सहा था। (इब्रानियों 11:1–12:3) (2) यहोवा हमें उस पर पूरा भरोसा रखने का ठोस कारण देता है। उसके काम और उसके वचन से यह पक्का यकीन होता है कि वह अपने सेवकों की परवाह करता है और उन्हें कभी नहीं भूलेगा। (इब्रानियों 6:10) (3) हिम्मत और भरोसे की आज खासकर ज़रूरत है। जैसा कि यीशु ने बताया, हमसे “बैर” किया जाता है। (मत्ती 24:9) सहन करने के लिए ज़रूरी है कि हम परमेश्‍वर के वचन को अपना सहारा बनाएँ, यह भरोसा रखें कि उसकी आत्मा हमारे साथ है और हियाव के साथ सुसमाचार सुनाते रहें। (4) यह कहने के लिए हमारे सामने कई मिसालें हैं कि आज भी हम विरोध का सामना कर रहे हैं। जब भाई बताने लगे कि अरमिनिया, कज़ाकस्तान, जॉर्जिया, तर्कमनस्तान, फ्रांस, और रशिया में हमारे भाइयों ने कैसे-कैसे ज़ुल्म सहे हैं, तो सभी का दिल भर आया। यह वक्‍त सचमुच निडर होकर काम करने और यहोवा पर भरोसा रखने का है!

आखिरी वक्‍ता का विषय था, “एकता में रहकर यहोवा के संगठन के साथ आगे बढ़ना।” इस भाषण में ऐसे कई मुद्दे बताए गए जो वक्‍त के हिसाब से बहुत अहम हैं। (1) कई जगहों में लोग ध्यान दे रहे हैं कि यहोवा के लोग आगे बढ़ते ही जा रहे हैं। हमारे प्रचार काम और अधिवेशनों की वजह से आम जनता का ध्यान हमारी ओर खिंचता है। (2) यहोवा ने एक संगठन स्थापित किया है जिसमें एकता है। सा.यु. 29 में पवित्र आत्मा से यीशु का अभिषेक किया गया था ताकि “सब कुछ” यानी स्वर्ग जाने की आशा रखनेवालों और पृथ्वी पर जीने की आशा रखनेवालों को यहोवा के उस परिवार में लाया जाए जो एकता में हैं। (इफिसियों 1:8-10) (3) अधिवेशन, सभी देशों के भाई-बहनों के बीच की एकता का शानदार सबूत हैं। यह बात पिछले अगस्त में फ्रांस और इटली में हुए खास अधिवेशनों में साफ देखी गयी। (4) फ्रांस और इटली में उत्साह बढ़ानेवाला एक प्रस्ताव स्वीकार किया गया। वक्‍ता ने भाषण में उस प्रस्ताव की चंद बातें बतायीं। पूरा प्रस्ताव नीचे दिया गया है।

अंतिम भाषण के आखिर में, मेहमान वक्‍ता ने शासी निकाय की एक घोषणा पढ़ी जिसने सब पर गहरा असर किया। इस घोषणा की कुछ बातें हैं: “जागते रहने और सतर्क रहने का सही समय यही है, यानी हमें परखना चाहिए कि संसार की घटनाएँ कैसा मोड़ लेती हैं। . . . हम आपको बताना चाहते हैं कि शासी निकाय आपसे और परमेश्‍वर के बाकी सभी लोगों से बहुत प्यार करता और आपकी परवाह करता है। तन-मन से यहोवा की इच्छा पूरी करने में वह आपकी कोशिशों पर भरपूर आशीषें दे।” इन कठिन समयों में हर जगह रहनेवाले यहोवा के लोगों ने यह ठान लिया है कि वे जागते रहेंगे और एकता से काम करनेवाले यहोवा के संगठन के साथ हिम्मत से आगे बढ़ते रहेंगे।

[फुटनोट]

^ सालाना सभा का कार्यक्रम, इलैक्ट्रॉनिक माध्यम से कई दूसरी जगहों तक भी प्रसारित किया गया, इसलिए सभा की कुल हाज़िरी 13,757 थी।

^ अतिरिक्‍त सभाएँ, लॉन्ग बीच, कैलिफोर्निया; पॉन्टीऐक, मिशिगन; यूनियन डेल, न्यू यॉर्क; और हैमिल्टन, ऑन्टॆरीयो में रखी गयी थीं। इन जगहों पर हाज़िर लोगों और दूसरी जगहों में इलैक्ट्रॉनिक माध्यम से सुननेवालों की कुल हाज़िरी 1,17,885 थी।

^ फ्रांस में पैरिस, बॉरडो और लीओं, इन जगहों पर तीन खास अधिवेशन आयोजित किए गए। अमरीका से कुछ भाइयों के दल को इटली के रोम और मिलान भेजा गया, हालाँकि इटली में नौ अधिवेशन एक-साथ रखे गए थे।

[पेज 29-31 पर बक्स/तसवीरें]

प्रस्ताव

अगस्त 2001 में फ्रांस और इटली में “परमेश्‍वर के वचन के सिखानेवाले” खास अधिवेशन आयोजित किए गए। उन अधिवेशनों में उत्साह बढ़ानेवाला एक प्रस्ताव पेश किया गया। उसमें यह कहा गया था।

“हम सभी यहोवा के साक्षियों ने, ‘परमेश्‍वर के वचन के सिखानेवाले’ अधिवेशन में हाज़िर होकर ऐसी शिक्षा पायी जो बहुत फायदेमंद है। हमें साफ बताया गया है कि यह शिक्षा किसकी ओर से है। यह किसी इंसान की शिक्षा नहीं है बल्कि उस व्यक्‍ति की ओर से है जिसे प्राचीन समय के भविष्यवक्‍ता, यशायाह ने हमारा ‘महान उपदेशक’ कहा था। (यशायाह 30:20, NW) यशायाह 48:17 में दी गयी यहोवा की इस चितौनी पर ध्यान दीजिए: ‘मैं ही तेरा परमेश्‍वर यहोवा हूं जो तुझे तेरे लाभ के लिये शिक्षा देता हूं, और जिस मार्ग से तुझे जाना है उसी मार्ग पर तुझे ले चलता हूं।’ यहोवा हमें कैसे सिखाता है? वह खासकर दुनिया की सबसे ज़्यादा भाषाओं में अनुवाद की गयी और सबसे ज़्यादा बाँटी गयी किताब, बाइबल के ज़रिए हमें सिखाता है। इसमें साफ-साफ बताया गया है: ‘हर एक पवित्रशास्त्र परमेश्‍वर की प्रेरणा से रचा गया है और लाभदायक है।’—2 तीमुथियुस 3:16.

“आज इंसानों को ऐसी फायदेमंद शिक्षा की सख्त ज़रूरत है। ऐसा क्यों कहा जा सकता है? इस दुनिया के बदलते और मुश्‍किल हालात को देखते हुए, समझ रखनेवाले लोग क्या कबूल करते हैं? यही कि करोड़ों लोगों ने दुनिया के शिक्षा संस्थानों से शिक्षा हासिल तो कर ली है, मगर फिर भी वे सही आदर्शों पर नहीं चलते और सही-गलत के बीच फर्क करने में नाकाम हो रहे हैं। (यशायाह 5:20, 21) लोगों में बाइबल के ज्ञान की बहुत कमी है। कहने को तो आज टॆक्नॉलजी, कंप्यूटरों के माध्यम से जानकारी का भंडार पेश करती है, मगर क्या वह ऐसे अहम सवालों के जवाब दे पायी है जैसे, ज़िंदगी का मकसद क्या है? हमारे दिनों में होनेवाली घटनाओं का हमें क्या मतलब निकालना चाहिए? क्या भविष्य के बारे में कोई पक्की आशा है? क्या कभी सचमुच शांति और सुरक्षा हासिल होगी? इसके अलावा, लाइब्रेरियाँ ऐसी लाखों मोटी-मोटी किताबों से भरी पड़ी हैं, जिनमें तकरीबन ऐसे हर क्षेत्र के बारे में जानकारी दी गयी है जिसमें इंसान ने कदम रखा है। फिर भी इंसान वही गलतियाँ बार-बार दोहराता है जो उसने पहले किए थे। अपराध हद-से-ज़्यादा बढ़ रहा है। जिन बीमारियों के बारे में पहले समझा जाता था कि वे मिट गयी हैं, वे फिर से पैदा हो रही हैं और एड्‌स जैसी बीमारियों का खतरा दिन-ब-दिन बढ़ता ही जा रहा है। परिवारों के टूटने का कोई हिसाब नहीं। प्रदूषण से वातावरण बिगड़ता जा रहा है। आतंकवाद और जनसंहार के लिए तैयार किए जानेवाले हथियारों से शांति और सुरक्षा खतरे में पड़ गयी है। ऐसी समस्याओं की गिनती बढ़ती जा रही है जिनका कोई हल नहीं है। इन कठिन समयों में हमारे लिए दूसरों की मदद करने का सबसे सही तरीका क्या है? क्या ऐसी कोई शिक्षा मौजूद है जो इंसानों की इस दुर्दशा की वजह समझाए और न सिर्फ अभी एक बेहतरीन ज़िंदगी जीना सिखाए बल्कि भविष्य के लिए भी एक पक्की और उज्जवल आशा दे सके?

“बाइबल में हमें यह आज्ञा दी गयी है कि ‘जाकर, सभी जातियों के लोगों को चेला बनाओ और उन्हें वे सब बातें मानना सिखाओ जिसकी मसीह ने आज्ञा दी थी।’ (मत्ती 28:19, 20) यह काम यीशु मसीह ने अपनी मृत्यु और पुनरुत्थान के बाद सौंपा था, जब उसे स्वर्ग और पृथ्वी पर सारा अधिकार मिल चुका था। यह काम उन सभी कामों से श्रेष्ठ है जिनका इंसान बढ़ावा देते हैं। हमारा यह काम, धार्मिकता के प्यासे लोगों की आध्यात्मिक ज़रूरतों को पूरा करता है और परमेश्‍वर की नज़र से देखें तो इसी काम को सबसे ज़्यादा अहमियत दी जानी चाहिए। वाकई, इस काम को गंभीरता से लेने के लिए हमें बाइबल ठोस कारण बताती है।

“इस काम को गंभीरता से लेने के लिए ज़रूरी है कि हम इस काम को अपनी ज़िंदगी में सबसे पहला स्थान दें। परमेश्‍वर की आशीष और मदद से यह काम पूरा हो जाएगा, फिर चाहे धर्म और राजनीति के गुट, संसार भर में चलाए जानेवाले शिक्षा के कार्यक्रम में अड़चनें पैदा करने के लिए हम पर कितने ही बुरे प्रभाव डालें, रुकावटें पैदा करें या हमारा विरोध करें। हमें पूरा भरोसा है और हम विश्‍वास रखते हैं कि यह काम आगे बढ़ता ही जाएगा और बड़े ही शानदार तरीके से पूरा होगा। हम क्यों इतना पक्का यकीन रख सकते हैं? क्योंकि प्रभु यीशु मसीह ने वादा किया है कि परमेश्‍वर से मिली सेवकाई को पूरा करते वक्‍त वह जगत के अंत तक हमारे साथ रहेगा।

“इंसान के सभी दुःखों का बहुत जल्द अंत होनेवाला है। अंत आने से पहले हमें प्रचार करने की अपनी ज़िम्मेदारी पूरी करनी है। इसलिए हम यहोवा के साक्षी संकल्प करते हैं कि:

“पहला: समर्पित सेवकों के तौर पर हम हमेशा अपनी ज़िंदगी में राज्य के कामों को पहला स्थान देंगे और आध्यात्मिक तरीके से प्रगति करते रहेंगे। अपना यह मकसद हासिल करने के लिए, हम वही प्रार्थना करते हैं, जो भजन 143:10 में दर्ज़ है: ‘मुझ को यह सिखा, कि मैं तेरी इच्छा क्योंकर पूरी करूं, क्योंकि मेरा परमेश्‍वर तू ही है!’ इसके लिए ज़रूरी है कि हम बाइबल के अच्छे विद्यार्थी बनें। हमें हर रोज़ बाइबल पढ़ने, निजी अध्ययन करने और खोजबीन करने की कोशिश करनी चाहिए। अपनी उन्‍नति सब पर प्रगट करने के लिए, हम मसीही सभाओं, सर्किट सम्मेलनों और ज़िला, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय अधिवेशनों में हाज़िर होने की तैयारी करने और उनमें दी जानेवाली परमेश्‍वर की शिक्षा से लाभ पाने की हर मुमकिन कोशिश करेंगे।—1 तीमुथियुस 4:15; इब्रानियों 10:23-25.

“दूसरा: परमेश्‍वर से सिखलाए जाने के लिए हम सिर्फ उसी की मेज़ से भोजन करेंगे और पिशाचों की गुमराह करनेवाली शिक्षाओं के बारे में बाइबल में दी गयी चेतावनी का ध्यान से पालन करेंगे। (1 कुरिन्थियों 10:21; 1 तीमुथियुस 4:1) हम ऐसे खतरों से बचने की खास सावधानी बरतेंगे, जैसे झूठे धर्मों की शिक्षाएँ, बेमतलब की दलीलें, घिनौने लैंगिक काम, पोर्नोग्राफी की महामारी, घटिया मनोरंजन और ऐसी हर बात जो “खरी शिक्षा” से हटकर है। (रोमियों 1:26, 27; 1 कुरिन्थियों 3:20; 1 तीमुथियुस 6:3; 2 तीमुथियुस 1:13) ‘मनुष्यों में दान’ हमें खरी बातें सिखाने के योग्य हैं। उनके लिए अपने दिल में आदर की भावना होने की वजह से हम सच्चे दिल से उनकी मेहनत की कदर करेंगे। और हम परमेश्‍वर के वचन में दिए गए नैतिक और आध्यात्मिक स्तरों का, जो कि शुद्ध और धर्मी हैं, पालन करने में उनको पूरा-पूरा सहयोग देंगे।—इफिसियों 4:7, 8, 11, 12; 1 थिस्सलुनीकियों 5:12, 13; तीतुस 1:9.

“तीसरा: हम मसीही माता-पिता अपने बच्चों को न सिर्फ अपनी बातों से बल्कि अपनी मिसाल से भी सिखाने की अपनी तरफ से पूरी-पूरी कोशिश करेंगे। हमारी पहली चिंता है, शिशुपन से उनकी मदद करना ताकि वे ‘पवित्र शास्त्र को सीखें और उद्धार प्राप्त करने के लिये बुद्धिमान बनें।’ (2 तीमुथियुस 3:15) हम अपने मन से यह बात कभी नहीं हटने देंगे कि अगर हम बच्चों को यहोवा के सिद्धांतों के मुताबिक ताड़ना और शिक्षा देकर उनका पालन-पोषण करेंगे, तो उन्हें परमेश्‍वर का यह वादा पूरा होते देखने का बढ़िया मौका मिलेगा ‘कि तेरा भला हो, और तू धरती पर बहुत दिन जीवित रहे।’—इफिसियों 6:1-4.

“चौथा: जब हमारे सामने चिंताएँ और गंभीर समस्याएँ पैदा होंगी, तो हम सबसे पहले ‘अपने निवेदन परमेश्‍वर के सम्मुख उपस्थित’ करेंगे क्योंकि हमें यकीन है कि ‘परमेश्‍वर की शान्ति, जो इंसान की समझ से बिलकुल परे है’ हमारी रक्षा करेगी। (फिलिप्पियों 4:6, 7) हमने मसीह का जूआ अपने ऊपर उठाया है, इसलिए हमें विश्राम मिलेगा। हम जानते हैं कि परमेश्‍वर हमारी परवाह करता है इसलिए हम अपनी चिंताओं का बोझ उस पर डालने से नहीं झिझकेंगे।—मत्ती 11:28-30; 1 पतरस 5:6, 7.

“पाँचवाँ: यहोवा ने हमें अपने वचन के सिखानेवाले होने का जो सम्मान दिया है, उसके लिए अपना एहसान ज़ाहिर करते हुए, हम ‘सत्य के वचन को ठीक रीति से काम में लाने’ और ‘अपनी सेवा को पूरा करने’ की अपनी कोशिशों में सुधार लाएँगे। (2 तीमुथियुस 2:15; 4:5) हमें इस बात का पूरा-पूरा एहसास है कि ऐसा करने में क्या शामिल है इसलिए हमारी यह दिली तमन्‍ना है कि हम योग्य लोगों को ढूँढ़ें और उन में सच्चाई का बीज बोकर उसे सींचें। इसके अलावा, हम असरदार तरीके से, ज़्यादा-से-ज़्यादा बाइबल अध्ययन चलाने के ज़रिए अपने सिखाने की कला को निखारेंगे। ऐसा करने पर हम परमेश्‍वर की मरज़ी और बेहतर तरीके से पूरी कर पाएँगे, जो चाहता है कि ‘सब मनुष्यों का उद्धार हो; और वे सत्य को भली भांति पहचान लें।’—1 तीमुथियुस 2:3, 4.

“छठा: पिछली सदी में शुरू से आखिर तक और इस सदी में भी, यहोवा के साक्षियों ने कई देशों में तरह-तरह के विरोध और ज़ुल्म सहे हैं। लेकिन यहोवा हमेशा हमारे साथ रहा है। (रोमियों 8:31) उसका अचूक वचन हमारे अंदर यह भरोसा पैदा करता है कि राज्य का प्रचार करने और सिखाने के हमारे काम को रोकने या उसे धीमा करने के लिए ‘जितने हथियार बनाए जाएं उनमें से कोई भी’ सफल न होगा। (यशायाह 54:17) हालात चाहे अच्छे हों या बुरे, हम सच्चाई के बारे में बताना कभी बंद नहीं करेंगे। हमारा यह संकल्प है कि हम प्रचार करने और सिखाने की अपनी ज़िम्मेदारी जल्द-से-जल्द पूरी करें। (2 तीमुथियुस 4:1, 2) हमारा यह लक्ष्य है कि हम सभी जातियों के लोगों को परमेश्‍वर के राज्य की खुशखबरी सुनाने की भरसक कोशिश करें। ऐसा करने से उन्हें, धर्मी नए संसार में अनंत जीवन पाने के इंतज़ाम के बारे में सीखने का मौका मिलता रहेगा। परमेश्‍वर के वचन के सिखानेवाले हम सभी ने एक जुट होकर यह ठान लिया है कि हम अपने महान शिक्षक, यीशु मसीह की मिसाल पर चलते रहेंगे और उसकी तरह परमेश्‍वर के गुण दिखाएँगे। यह सब हम अपने महान उपदेशक और जीवन-दाता यहोवा परमेश्‍वर की महिमा और स्तुति के लिए करेंगे।

“इस अधिवेशन में हाज़िर आप सभी जन जो इस प्रस्ताव को स्वीकार करते हैं, कृपया ‘हाँ’ कहिए!”

फ्रांस के तीन अधिवेशनों में हाज़िर 1,60,000 और इटली की नौ जगहों में हाज़िर 2,89,000 जनों के सामने जब इस प्रस्ताव का आखिरी सवाल पूछा गया तो अलग-अलग भाषाएँ बोलनेवाले उन सभी भाई-बहनों ने ज़ोरदार आवाज़ में “जी हाँ” कहा।