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स्थिर हृदय से यहोवा की सेवा करते रहिए

स्थिर हृदय से यहोवा की सेवा करते रहिए

स्थिर हृदय से यहोवा की सेवा करते रहिए

“हे परमेश्‍वर, मेरा हृदय स्थिर है, मेरा हृदय स्थिर है।”भजन 57:7, NHT.

1. हम दाऊद की तरह पक्का यकीन क्यों रख सकते हैं?

 यहोवा हमें मसीही विश्‍वास में स्थिर रहने में मदद दे सकता है, ताकि हम उसके समर्पित सेवकों के तौर पर सच्चे मसीही धर्म में टिके रहें। (रोमियों 14:4) इसलिए हम भजनहार दाऊद की तरह पूरा यकीन रख सकते हैं, जो यह गाने को प्रेरित हुआ: “हे परमेश्‍वर, मेरा हृदय स्थिर है।” (भजन 108:1) अगर हमारा हृदय स्थिर होगा, तो हम परमेश्‍वर को किए अपने समर्पण का वादा दिलो-जान से पूरा करेंगे। अगर हम यहोवा से मार्गदर्शन और ताकत के लिए बिनती करें, तो वह हमें दृढ़ और अटल करेगा और हम खराई के मार्ग पर चलते हुए, पक्के विश्‍वास से ‘प्रभु के काम में सर्वदा बढ़ते’ जाएँगे।—1 कुरिन्थियों 15:58.

2, 3. पहला कुरिन्थियों 16:13 में दी गयी पौलुस की सलाह का मतलब क्या है?

2 प्रेरित पौलुस ने प्राचीन कुरिन्थ में रहनेवाले यीशु के शिष्यों को कुछ सलाहें दीं जो आज के मसीहियों पर भी लागू होती हैं: “जागते रहो, विश्‍वास में स्थिर रहो, पुरुषार्थ करो, बलवन्त होओ।” (1 कुरिन्थियों 16:13) यूनानी भाषा में इनमें से हर आज्ञा वर्तमानकाल में दी गयी है, जो दिखाता है कि हमें लगातार ऐसा करने की ज़रूरत है। पौलुस की इस सलाह का मतलब क्या है?

3 अगर हम इब्‌लीस का विरोध करेंगे और हमेशा परमेश्‍वर के करीब रहेंगे, तो हम आध्यात्मिक तरीके से ‘जागते रह’ सकते हैं। (याकूब 4:7, 8) यहोवा पर भरोसा होने की वजह से हमें एकता में रहने और मसीही “विश्‍वास में स्थिर” रहने में मदद मिलती है। हम सभी, जिनमें हमारी बहुत-सी बहनें भी शामिल हैं, राज्य प्रचारकों के नाते, परमेश्‍वर की सेवा निडरता से करते हुए ‘पुरुषार्थ करते’ हैं। (भजन 68:11) हम अपने स्वर्गीय पिता की इच्छा पूरी करने के लिए हमेशा उससे सामर्थ माँगते हैं, इसलिए हम “बलवन्त” होते जाते हैं।—फिलिप्पियों 4:13.

4. मसीहियों के तौर पर बपतिस्मा लेने से पहले हमने कौन-से कदम उठाए?

4 जब हमने बिना किसी शर्त के यहोवा को अपना जीवन समर्पित किया और उसकी निशानी के तौर पर पानी में डुबोए जाकर बपतिस्मा लिया, तो उस वक्‍त हमने यह ज़ाहिर किया कि हमने सच्चाई कबूल की है। लेकिन बपतिस्मे से पहले हमने कौन-से कदम उठाए? सबसे पहले हमने परमेश्‍वर के वचन का सही ज्ञान हासिल किया। (यूहन्‍ना 17:3) इससे हमारे दिलों में विश्‍वास पैदा हुआ और हमने पिछली गलतियों पर सच्चे दिल से खेद प्रकट करते हुए पश्‍चाताप किया। (प्रेरितों 3:19; इब्रानियों 11:6) इसके बाद हमारा मन-फिराव हुआ, यानी हमने गलत कामों को छोड़ दिया ताकि आगे से अपनी ज़िंदगी परमेश्‍वर की मरज़ी के मुताबिक जीएँ। (रोमियों 12:2; इफिसियों 4:23, 24) फिर हमने प्रार्थना में पूरे दिल से अपना जीवन यहोवा को समर्पित किया। (मत्ती 16:24; 1 पतरस 2:21) हमने परमेश्‍वर से एक शुद्ध विवेक देने की बिनती की और उसको किया अपना समर्पण सबके सामने ज़ाहिर करने के लिए बपतिस्मा लिया। (1 पतरस 3:21) इन सारे कदमों पर गहराई से सोचने से हमें यह याद रखने में मदद मिलेगी कि हमें अपने समर्पण के मुताबिक जीने और स्थिर हृदय से यहोवा की सेवा करने के लिए लगातार कोशिश करने की ज़रूरत है।

सही ज्ञान पाना जारी रखिए

5. हमें लगातार बाइबल का ज्ञान क्यों हासिल करते रहना चाहिए?

5 परमेश्‍वर को किए अपने समर्पण के मुताबिक जीने के लिए, हमें लगातार बाइबल से विश्‍वास बढ़ानेवाला ज्ञान हासिल करना चाहिए। ज़रा याद कीजिए कि जब हम पहली बार परमेश्‍वर की सच्चाई से वाकिफ हुए, तब आध्यात्मिक भोजन लेने में हमें कितना आनंद आया था! (मत्ती 24:45-47) वह आध्यात्मिक “खाना” बहुत स्वादिष्ट था और उससे हमें बढ़िया आध्यात्मिक ताकत मिली। लेकिन अब ज़रूरी है कि हम पौष्टिक आध्यात्मिक भोजन लेना जारी रखें ताकि हम यहोवा के समर्पित सेवकों के तौर पर स्थिर हृदय कायम रख सकें।

6. बाइबल की सच्चाई के लिए अपने दिल में कदरदानी पैदा करने में किस तरह आपकी मदद की गयी थी?

6 बाइबल से और ज़्यादा ज्ञान हासिल करने के लिए हमें मेहनत करने की ज़रूरत है। यह छिपे हुए खज़ाने को ढूँढ़ने के बराबर है, जिसके लिए यत्न करना पड़ता है। लेकिन ऐसी मेहनत करने पर जब हमें “परमेश्‍वर का ज्ञान” मिलता है तो हमें कितनी खुशी होती है! (नीतिवचन 2:1-6) जब राज्य के किसी प्रचारक ने पहली बार आपके साथ बाइबल का अध्ययन किया, तब उसने आपको सिखाने के लिए शायद, ज्ञान जो अनन्त जीवन की ओर ले जाता है किताब का इस्तेमाल किया होगा। उस किताब के हर अध्याय पर चर्चा करने के लिए काफी समय लगा होगा, शायद एक से ज़्यादा बार चर्चा करनी पड़ी होगी। और उन अध्यायों में जिन आयतों का हवाला दिया गया है, उन्हें जब पढ़ा गया और उन पर चर्चा की गयी, तो आपको काफी लाभ हुआ। जो मुद्दा आपको समझने में मुश्‍किल लगा, उसे अच्छी तरह समझाया गया। आपको सिखानेवाला प्रचारक, बाइबल अध्ययन के लिए पहले से अच्छी तैयारी करता था, परमेश्‍वर की आत्मा के लिए प्रार्थना करता था और उसने सच्चाई के लिए अपने दिल में कदरदानी पैदा करने में आपकी मदद की।

7. क्या बात हमें परमेश्‍वर की सच्चाई दूसरों को सिखाने के योग्य बनाती है?

7 उस प्रचारक का ऐसी मेहनत करना सही था क्योंकि पौलुस ने लिखा: “जो वचन की शिक्षा पाता है, वह सब अच्छी वस्तुओं में सिखानेवाले को भागी करे।” (गलतियों 6:6) इस आयत के यूनानी पाठ से ज़ाहिर होता है कि ‘शिक्षा पानेवाले’ के दिलो-दिमाग में परमेश्‍वर के वचन की शिक्षाएँ, गहराई तक बिठाई जाती थीं। आपको इस तरह सिखाए जाने की वजह से आप भी दूसरों को सिखाने के योग्य बनते हैं। (प्रेरितों 18:25) अपने समर्पण का वादा निभाने के लिए ज़रूरी है कि आप परमेश्‍वर के वचन का लगातार अध्ययन करने से अपनी आध्यात्मिक सेहत का खयाल रखें और हमेशा स्थिर रहें।—1 तीमुथियुस 4:13; तीतुस 1:13; 2:2.

अपने पश्‍चाताप और मन-फिराव को याद रखिए

8. आप परमेश्‍वर को भानेवाला चाल-चलन कैसे बनाए रख सकते हैं?

8 क्या आपको याद है कि जब आपने सच्चाई सीखी, पश्‍चाताप किया और फिर आपको यह एहसास हुआ कि यीशु के छुड़ौती बलिदान पर विश्‍वास करने की वजह से परमेश्‍वर ने आपको माफ किया है, तो उस वक्‍त आपको कितनी राहत महसूस हुई थी? (भजन 32:1-5; रोमियों 5:8; 1 पतरस 3:18) बेशक, आप दोबारा पाप की राह में नहीं लौटना चाहेंगे। (2 पतरस 2:20-22) अगर आप चाहते हैं कि आपका चालचलन परमेश्‍वर को भाए, आप अपने समर्पण का वादा निभाएँ और यहोवा की सेवा वफादारी से करते रहें, तो कई बातें आपकी मदद कर सकती हैं जिनमें से एक है, लगातार यहोवा से प्रार्थना करना।—2 पतरस 3:11, 12.

9. गलत कामों को छोड़ देने के बाद, अब हमें किस मार्ग पर चलना चाहिए?

9 अब जब आपने गलत कामों को छोड़कर मन-फिराव किया है, तो परमेश्‍वर से लगातार बिनती कीजिए कि एक स्थिर हृदय बनाए रखने में वह आपकी मदद करे। पहले, आप मानो एक गलत रास्ते पर निकल पड़े थे मगर जब आपने सही दिशा दिखानेवाला नक्शा देखा, तो आपने वह रास्ता छोड़ दिया और सही रास्ते पर आ गए। अब इस रास्ते से कभी भटकिए मत। हमेशा परमेश्‍वर से मार्गदर्शन माँगिए और ठान लीजिए कि आप जीवन के मार्ग से कभी नहीं हटेंगे।—यशायाह 30:20, 21; मत्ती 7:13, 14.

अपना समर्पण और बपतिस्मा कभी मत भूलिए

10. परमेश्‍वर को किए अपने समर्पण के बारे में हमें कौन-सी बातें मन में रखनी चाहिए?

10 यह बात हमेशा मन में रखिए कि आपने अनंतकाल तक वफादारी से यहोवा की सेवा करने के लिए अपना जीवन उसे समर्पित किया था। (यहूदा 20, 21) समर्पण का मतलब, किसी पवित्र काम के लिए अलग किया जाना है। (लैव्यव्यवस्था 15:31; 22:2) आपका समर्पण, थोड़े समय के लिए किया गया कोई समझौता या इंसानों से किया गया कोई वादा नहीं है। आपने विश्‍व के महाराजाधिराज को अपना जीवन हमेशा के लिए सौंप दिया है और उसके मुताबिक जीने के लिए ज़रूरी है कि आप मरते दम तक परमेश्‍वर के वफादार रहें। जी हाँ, “हम जीएं या मरें, हम प्रभु ही के हैं।” (रोमियों 14:7, 8) हमारी खुशी, परमेश्‍वर की मरज़ी पूरी करने और स्थिर हृदय से लगातार उसकी सेवा करने पर निर्भर है।

11. आपको अपना बपतिस्मा और उसका मतलब क्यों याद रखना चाहिए?

11 अपने बपतिस्मे को हमेशा याद रखिए जो इस बात की निशानी है कि आपने पूरे दिल से अपना जीवन परमेश्‍वर को समर्पित किया है। किसी ने आप पर बपतिस्मा लेने की ज़ोर-ज़बरदस्ती नहीं की थी, यह आपका अपना फैसला था। अब क्या आपने यह संकल्प किया है कि आप अपनी बाकी ज़िंदगी वैसे ही बिताएँगे, जैसे परमेश्‍वर चाहता है? आपने परमेश्‍वर से एक शुद्ध विवेक देने की बिनती की थी और उसको किया अपना समर्पण ज़ाहिर करने के लिए बपतिस्मा लिया था। अपना शुद्ध विवेक कायम रखने के लिए समर्पण का वादा निभाइए। ऐसा करने से आपको यहोवा की ढेरों आशीषें मिलेंगी।—नीतिवचन 10:22.

आपकी मरज़ी अहमियत रखती है

12, 13. समर्पण और बपतिस्मा के साथ हमारी मरज़ी का क्या ताल्लुक है?

12 संसार भर में रहनेवाले लाखों लोगों ने समर्पण और बपतिस्मे का कदम उठाकर बेशुमार आशीषें पायी हैं। जब हम परमेश्‍वर को किया अपना समर्पण सबके सामने ज़ाहिर करने के लिए पानी में बपतिस्मा लेते हैं, तो हम अपनी पिछली ज़िंदगी के लिए मानो मर जाते हैं, लेकिन हमारी आज़ाद मरज़ी का अंत नहीं होता। बपतिस्मे के बाद भी हम अपनी मरज़ी के मालिक बने रहते हैं। अच्छी तरह सीखने और विश्‍वास करने के बाद, हमने प्रार्थना में परमेश्‍वर को अपना जीवन समर्पित किया और बपतिस्मा लिया था। यह सब हमने अपनी मरज़ी से किया था। समर्पण और बपतिस्मा का कदम उठाने के लिए, ज़रूरी है कि हम परमेश्‍वर की मरज़ी जानें और फिर सोच-समझकर उसकी मरज़ी को पूरा करने का फैसला करें। (इफिसियों 5:17) ऐसा करने से हम यीशु के नक्शे-कदम पर चलते हैं। यीशु ने अपनी मरज़ी से बढ़ई का काम छोड़ा, बपतिस्मा लिया और अपने स्वर्गीय पिता की मरज़ी पूरी करने में खुद को पूरी तरह लगा दिया।—भजन 40:7, 8; यूहन्‍ना 6:38-40.

13 यहोवा परमेश्‍वर का यह मकसद था कि उसका पुत्र “दुख उठाने के द्वारा सिद्ध” हो। इसलिए यीशु को अपनी मरज़ी से उन सारे दुःखों को सहते हुए वफादार रहना था। ऐसा करने के लिए उसने “ऊंचे शब्द से पुकार पुकारकर, और आंसू बहा बहाकर . . . प्रार्थनाएं और बिनती की और भक्‍ति के कारण उस की सुनी गई।” (इब्रानियों 2:10, 18; 5:7, 8) अगर हम परमेश्‍वर के लिए ऐसा ही भय और ऐसी ही श्रद्धा रखें, तो हमारी प्रार्थनाएँ भी ज़रूर “सुनी” जाएँगी और हम पक्का विश्‍वास रख सकते हैं कि यहोवा, हमें अपने समर्पित साक्षी बनकर स्थिर रहने में मदद देगा।—यशायाह 43:10.

आप स्थिर हृदय बनाए रख सकते हैं

14. हमें रोज़ाना बाइबल क्यों पढ़नी चाहिए?

14 स्थिर हृदय बनाए रखने और परमेश्‍वर को किए अपने समर्पण के मुताबिक जीने में कौन-सी बात आपकी मदद करेगी? इसके लिए आपको हर रोज़ बाइबल पढ़नी होगी ताकि आप परमेश्‍वर के वचन से दिन-ब-दिन बढ़ता ज्ञान हासिल कर सकें। “विश्‍वासयोग्य और बुद्धिमान दास” हमेशा यही करने के लिए हमें उकसाता है। वह हमें यह सलाह इसलिए देता है क्योंकि अपने समर्पण के मुताबिक जीने के लिए, हमें परमेश्‍वर की सच्चाई की राह पर हमेशा चलने की ज़रूरत है। अगर यहोवा का संगठन जानबूझकर गलत शिक्षाएँ देता, तो यहोवा के साक्षियों को और जिनको वे प्रचार करते हैं, उनको बाइबल पढ़ने की सलाह कभी नहीं दी जाती।

15. (क) ज़िंदगी के फैसले करते वक्‍त हमें क्या बात ध्यान में रखनी चाहिए? (ख) ऐसा क्यों कहा जा सकता है कि नौकरी या पेशा, मसीहियों की ज़िंदगी में पहले स्थान पर नहीं आता?

15 जब आप ज़िंदगी के फैसले करते हैं, तो हमेशा यह सोचिए कि उन फैसलों का आपके समर्पण पर कैसा असर पड़ेगा। ये फैसले शायद आपकी नौकरी के बारे में हों। क्या आप कोशिश करते हैं कि सच्ची उपासना जी-जान से करने में आपकी नौकरी आपके लिए मददगार साबित हो? आम तौर पर, मालिक पाते हैं कि यहोवा के साक्षी, भरोसेमंद और हुनरमंद तो होते ही हैं, इसके अलावा उन पर दुनिया में बड़ा नाम कमाने का जुनून सवार नहीं होता, ना ही वे दूसरों से होड़ लगाकर ऊँची पदवियाँ हासिल करने की कोशिश करते हैं। इसका कारण यह है कि साक्षियों का मकसद दौलत, शोहरत, नाम या ताकत पाना नहीं है। जो लोग अपने समर्पण के मुताबिक जीते हैं, उनकी ज़िंदगी में परमेश्‍वर की मरज़ी पूरी करना ही सबसे अहम बात होती है। अपनी ज़रूरतें पूरी करने के लिए वे कोई छोटी-मोटी नौकरी करते हैं और यह उनकी ज़िंदगी में सबसे पहले स्थान पर नहीं होती। प्रेरित पौलुस की तरह उनका सबसे मुख्य काम है, मसीही सेवकाई। (प्रेरितों 18:3, 4; 2 थिस्सलुनीकियों 3:7, 8; 1 तीमुथियुस 5:8) क्या आप राज्य के कामों को अपने जीवन में सबसे पहला स्थान देते हैं?—मत्ती 6:25-33.

16. अगर चिंताओं का बोझ हमारे लिए समर्पण के मुताबिक जीना मुश्‍किल बना देता है, तो हम क्या कर सकते हैं?

16 कुछ लोग सच्चाई सीखने से पहले तरह-तरह की चिंताओं के बोझ तले दबे हुए थे। लेकिन जब उन्होंने राज्य की आशा कबूल की तो उनके दिलों में खुशी, एहसानमंदी और परमेश्‍वर के लिए प्यार उमड़ आया! तब से उन्हें जो आशीषें मिली हैं, उन पर मनन करने से उन्हें यहोवा को किए अपने समर्पण के मुताबिक जीने में मदद मिल सकती है। लेकिन अगर जीवन की आम समस्याओं की वजह से आपको हद-से-ज़्यादा चिंता होने लगे और जिस तरह काँटे, छोटे पौधों को बढ़ने और फलने-फूलने से रोक देते हैं, उसी तरह अगर आपकी चिंताएँ ‘परमेश्‍वर के वचन’ को दबाने लगें, तो आप क्या कर सकते हैं? (लूका 8:7, 11, 14; मत्ती 13:22; मरकुस 4:18, 19) अगर आपको लगता है कि आप या आपके परिवार के सदस्य ऐसी चिंताओं से दबे हुए हैं, तो अपनी चिंताएँ यहोवा पर डाल दीजिए और उससे प्रार्थना कीजिए कि वह आपको दिल में प्यार और कदरदानी पैदा करने में मदद दे। अगर आप अपना बोझ यहोवा पर डाल देंगे, तो वह आपको सँभालेगा और आपको हिम्मत देगा ताकि आप स्थिर हृदय से और खुशी से उसकी सेवा करते रहें।—भजन 55:22; फिलिप्पियों 4:6, 7; प्रकाशितवाक्य 2:4.

17. कठिन परीक्षाओं का सामना कैसे किया जा सकता है?

17 यहोवा परमेश्‍वर से लगातार प्रार्थना करते रहिए, जैसे आपने समर्पण के वक्‍त भी प्रार्थना की थी। (भजन 65:2) अगर आपको कोई गलत काम करने का प्रलोभन आता है या आपके सामने कोई कठिन परीक्षा आती है, तो उसे पार करने के लिए परमेश्‍वर से मार्गदर्शन और मदद माँगिए। मत भूलिए कि आपको विश्‍वास की ज़रूरत है, क्योंकि शिष्य याकूब ने लिखा था: “यदि तुम में से किसी को [परीक्षा का सामना करने में] बुद्धि की घटी हो, तो परमेश्‍वर से मांगे, जो बिना उलाहना दिए सब को उदारता से देता है; और उस को दी जाएगी। पर विश्‍वास से मांगे, और कुछ सन्देह न करे; क्योंकि सन्देह करनेवाला समुद्र की लहर के समान है जो हवा से बहती और उछलती है। ऐसा मनुष्य यह न समझे, कि मुझे प्रभु से कुछ मिलेगा। वह व्यक्‍ति दुचित्ता है, और अपनी सारी बातों में चंचल है।” (याकूब 1:5-8) अगर हमें लगता है कि अपनी परीक्षा को सहना हमारे बस की बात नहीं, तो हम इस बात का पक्का यकीन रख सकते हैं: “तुम किसी ऐसी परीक्षा में नहीं पड़े, जो मनुष्य के सहने से बाहर है: और परमेश्‍वर सच्चा है: वह तुम्हें सामर्थ से बाहर परीक्षा में न पड़ने देगा, बरन परीक्षा के साथ निकास भी करेगा; कि तुम सह सको।”—1 कुरिन्थियों 10:13.

18. अगर गुप्त रूप से किए गए किसी पाप की वजह से, अपने समर्पण के मुताबिक जीने का हमारा इरादा कमज़ोर हो जाए, तो हम क्या कर सकते हैं?

18 अगर गुप्त रूप से किए गए किसी पाप की वजह से आपका विवेक आपको कचोट रहा है और अपने समर्पण के मुताबिक जीने के आपके इरादे को कमज़ोर कर रहा है, तो आप क्या कर सकते हैं? अगर आपने पश्‍चाताप किया है, तो आप यह जानकर तसल्ली पा सकते हैं कि यहोवा “टूटे और पिसे हुए मन को तुच्छ नहीं जानता।” (भजन 51:17) प्यार करनेवाले मसीही प्राचीनों की मदद लीजिए, क्योंकि यहोवा की मिसाल पर चलते हुए वे ज़रूर आपकी मदद करेंगे ताकि आप अपने स्वर्गीय पिता के साथ अच्छा रिश्‍ता दोबारा कायम कर सकें। (भजन 103:10-14; याकूब 5:13-15) इससे आध्यात्मिक मायने में आप दोबारा शक्‍ति पाएँगे और आपका हृदय स्थिर होगा। फिर आप अपने कदमों के लिए सीधा रास्ता निकाल सकेंगे और अपने समर्पण के मुताबिक जी सकेंगे।—इब्रानियों 12:12, 13.

स्थिर हृदय से सेवा करते रहिए

19, 20. अपने समर्पण के वादे को निभाते रहना क्यों बेहद ज़रूरी है?

19 इस मुश्‍किल समय में अपने समर्पण के मुताबिक जीने और स्थिर हृदय से परमेश्‍वर की सेवा करते रहने के लिए हमें कड़ी मेहनत करनी होगी। यीशु ने कहा था: “जो अन्त तक धीरज धरे रहेगा, उसी का उद्धार होगा।” (मत्ती 24:13) आज हम “अन्तिम दिनों” में जी रहे हैं, इसलिए अंत किसी भी वक्‍त आ सकता है। (2 तीमुथियुस 3:1) इसके अलावा, हम में से कोई भी पक्का नहीं बता सकता कि हम कल तक ज़िंदा रहेंगे भी या नहीं। (याकूब 4:13, 14) तो यह बेहद ज़रूरी है कि हम आज ही अपने समर्पण के मुताबिक जीएँ!

20 इसी बात पर प्रेरित पतरस ने अपनी दूसरी पत्री में ज़ोर दिया था। उसने बताया कि जैसे जलप्रलय में अधर्मी लोग मिट गए थे, उसी तरह लाक्षणिक पृथ्वी या दुष्ट इंसानों का समाज भी “प्रभु के दिन” में नाश किया जाएगा। इसलिए पतरस ने कहा: “तुम्हें पवित्र चालचलन और भक्‍ति में कैसे मनुष्य होना चाहिए।” उसने यह कहकर भी उकसाया: “हे प्रियो तुम लोग पहिले ही से इन बातों को जानकर चौकस रहो, ताकि [झूठे शिक्षकों और अधर्मी लोगों] के भ्रम में फंसकर अपनी स्थिरता को हाथ से कहीं खो न दो।” (2 पतरस 3:5-17) कितने दुःख की बात होगी अगर एक बपतिस्मा पाया हुआ मसीही, अपने हृदय को स्थिर न रख पाने की वजह से सच्चाई से भटक जाए और उसी हालत में उसकी मौत हो जाए!

21, 22. भजन 57:7 के शब्द दाऊद और सच्चे मसीहियों के मामले में कैसे सच साबित हुए हैं?

21 अगर आप समर्पण के मुताबिक जीने का अपना इरादा मज़बूत रखना चाहते हैं, तो आपको अपने बपतिस्मे का वह खुशी का दिन हमेशा मन में ताज़ा रखना होगा और परमेश्‍वर से मदद माँगनी होगी ताकि आप अपनी कथनी और करनी से यहोवा के मन को आनंदित कर पाएँ। (नीतिवचन 27:11) यहोवा कभी अपने लोगों को निराश नहीं करता, इसलिए हमें भी हर हाल में उसके वफादार रहना चाहिए। (भजन 94:14) उसने दाऊद पर दया दिखायी और उस पर तरस खाया, इसलिए उसके दुश्‍मनों के सभी मंसूबों को नाकाम कर दिया और उसे उनके हाथ से छुड़ाया। यहोवा के इस उपकार के लिए एहसानमंद होकर दाऊद ने कहा कि उसके दिल में अपने छुड़ानेवाले लिए प्यार उमड़ता रहेगा, और हमेशा बरकरार रहेगा। उसने अपनी गहरी भावनाओं को ज़ाहिर करते हुए यह गीत गाया: “हे परमेश्‍वर, मेरा हृदय स्थिर है, मेरा हृदय स्थिर है। मैं गाऊंगा, हां, स्तुति के गीत गाऊंगा।”—भजन 57:7, NHT.

22 दाऊद की तरह, सच्चे मसीही यहोवा की भक्‍ति करने से कभी पीछे नहीं हटे। उनका हृदय स्थिर है और वे अपने छुटकारे और अपनी सुरक्षा का श्रेय यहोवा को देते हैं और उसकी स्तुति में खुशी से गीत गाते हैं। अगर आपका हृदय स्थिर है, तो वह यहोवा पर भरोसा रखेगा और उसकी मदद से आप अपने समर्पण के वादे को पूरा कर पाएँगे। जी हाँ, आप उस “धर्मी” की तरह हो सकते हैं जिसके बारे में भजनहार ने गाया: “वह बुरे समाचार से नहीं डरता; उसका हृदय यहोवा पर भरोसा रखने से स्थिर रहता है।” (भजन 112:6, 7) परमेश्‍वर पर विश्‍वास और पूरा भरोसा रखने से आप अपने समर्पण के मुताबिक जी सकते हैं और स्थिर हृदय से लगातार यहोवा की सेवा कर सकते हैं।

क्या आपको याद है?

• हमें नियमित रूप से बाइबल का सही ज्ञान क्यों लेते रहना चाहिए?

• हमें अपने पश्‍चाताप और मन-फिराव को हमेशा क्यों याद रखना चाहिए?

• अपने समर्पण और बपतिस्मे को याद रखने से हमें क्या लाभ होता है?

• स्थिर हृदय से यहोवा की सेवा करते रहने में कौन-सी बात हमारी मदद करेगी?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 18 पर तसवीरें]

क्या आप परमेश्‍वर का वचन रोज़ाना पढ़ने से अपनी आध्यात्मिक सेहत का खयाल रखते हैं?

[पेज 18 पर तसवीर]

मसीही सेवकाई को अपनी ज़िंदगी में पहला स्थान देने से हमें स्थिर हृदय से यहोवा की सेवा करते रहने में मदद मिलती है