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परमेश्‍वर के नियम हमारे फायदे के लिए हैं

परमेश्‍वर के नियम हमारे फायदे के लिए हैं

परमेश्‍वर के नियम हमारे फायदे के लिए हैं

“अहा! मैं तेरी व्यवस्था में कैसी प्रीति रखता हूं!”भजन 119:97.

1. परमेश्‍वर के नियमों को मानने के बारे में ज़्यादातर लोगों का रवैया कैसा है?

 आज परमेश्‍वर के नियम माननेवाले बहुत कम हैं। ज़्यादातर लोगों को लगता है कि ऐसे अधिकारी की आज्ञा मानना बेमतलब है, जो दिखायी नहीं देता। हम एक ऐसे युग में जी रहे हैं जिसमें क्या भला है, क्या बुरा, क्या सही है, क्या गलत इसका फैसला हर कोई अपने तरीके से करता है। आज सही-गलत के बीच कोई खास फर्क नज़र नहीं आता। और ऐसी बहुत-सी बातें हैं जिन्हें सही या गलत ठहराना मुश्‍किल है। (नीतिवचन 17:15; यशायाह 5:20) हाल ही में अमरीका में किया गया एक सर्वे दिखाता है कि धर्म को न माननेवाले बहुत-से समाजों में लोगों का आम तौर पर कैसा रवैया है। उस सर्वे के मुताबिक “अमरीका के ज़्यादातर लोग खुद तय करना चाहते हैं कि उनके लिए क्या बात सही, भली और फायदेमंद है।” वे “ऐसा परमेश्‍वर [चाहते हैं] जो उन्हें अपनी मन-मरज़ी करने दे। वे नहीं चाहते कि उनसे नियमों का सख्ती से पालन करने की माँग की जाए। उन्हें ऐसा कोई भी अधिकारी नहीं चाहिए जो भले-बुरे के बारे में या किसी और मामले में उसूलों का पक्का हो।” समाज के हालात का अध्ययन करनेवाले एक शोधकर्ता ने पाया कि आज “हर इंसान से उम्मीद की जाती है कि उसके लिए भला और सही रास्ता कौन-सा होगा, इसका फैसला वह खुद करे।” उसने आगे कहा: “हर बड़े अधिकारी को चाहिए कि वह अपने कायदे-कानून, लोगों की ज़रूरतों के मुताबिक बदलता रहे।”

2. बाइबल में व्यवस्था या कानून का पहला ज़िक्र कैसे दिखाता है कि इसका परमेश्‍वर की आशीष और उसकी मंज़ूरी पाने के साथ गहरा नाता है?

2 आज बहुत सारे लोग यहोवा के नियमों की अहमियत पर सवाल उठाने लगे हैं, इसलिए हमें अपना यह विश्‍वास मज़बूत करना चाहिए कि उसके नियम सचमुच हमारे फायदे के लिए हैं। बाइबल के उस वृत्तांत पर गौर करना बड़ा दिलचस्प होगा, जहाँ परमेश्‍वर की व्यवस्था या उसके कानून का पहली बार ज़िक्र किया गया है। उत्पत्ति 26:5 में परमेश्‍वर ने कहा: “इब्राहीम ने, . . . जो मैं ने उसे सौंपा था उसको और मेरी आज्ञाओं विधियों, और व्यवस्था का पालन किया।” यह बात यहोवा ने, इब्राहीम की संतानों को मूसा की ब्यौरेदार व्यवस्था देने से सदियों पहले कही। जब इब्राहीम ने परमेश्‍वर की बात मानी और उसके कायदे-कानूनों का पालन किया, तो परमेश्‍वर ने उसे इसका क्या सिला दिया? यहोवा परमेश्‍वर ने उससे वादा किया: “पृथ्वी की सारी जातियां अपने को तेरे वंश के कारण धन्य मानेंगी।” (उत्पत्ति 22:18) यह दिखाता है कि परमेश्‍वर के नियमों को मानने का, उसकी आशीषें और मंज़ूरी पाने के साथ गहरा नाता है।

3. (क) यहोवा की व्यवस्था के बारे में एक भजनहार ने कैसी भावना ज़ाहिर की? (ख) हमें किन सवालों पर ध्यान देना चाहिए?

3 एक भजनहार ने परमेश्‍वर की व्यवस्था या उसके कायदे-कानूनों के बारे में ऐसी भावना ज़ाहिर की, जो आम तौर पर इस सिलसिले में ज़ाहिर नहीं की जाती। वह भजनहार, शायद यहूदा देश का राजकुमार और भविष्य में होनेवाला राजा था। उसने परमेश्‍वर से कहा: “अहा! मैं तेरी व्यवस्था में कैसी प्रीति रखता हूं!” (तिरछे टाइप हमारे।) (भजन 119:97) यह बात उसने जज़्बाती होकर नहीं कही थी। इसके बजाय, वह यह कह रहा था कि परमेश्‍वर ने अपनी व्यवस्था के ज़रिए जो इच्छा ज़ाहिर की है, उससे वह प्रीति रखता है। परमेश्‍वर का सिद्ध बेटा, यीशु मसीह भी ऐसा ही महसूस करता था। यीशु के बारे में एक भविष्यवाणी में उसे ऐसा कहते हुए बताया गया: “हे मेरे परमेश्‍वर मैं तेरी इच्छा पूरी करने से प्रसन्‍न हूं; और तेरी व्यवस्था मेरे अन्त:करण में बसी है।” (भजन 40:8; इब्रानियों 10:9) हमारे बारे में क्या? क्या हम परमेश्‍वर की इच्छा पूरी करने से प्रसन्‍न होते हैं? क्या हमें यकीन है कि परमेश्‍वर के नियम हमारी भलाई के लिए हैं और उन्हें मानने से हमें फायदा होगा? हम अपनी उपासना में, रोज़ाना ज़िंदगी में, फैसले करते वक्‍त और दूसरों के साथ अपने रिश्‍ते में परमेश्‍वर के नियमों को कितनी अहमियत देते हैं? परमेश्‍वर के नियमों से प्यार करने के लिए, हमें यह समझना चाहिए कि परमेश्‍वर को नियम बनाने और उन्हें लागू करवाने का हक क्यों है।

यहोवा—नियम बनाने का असली हकदार

4. सिर्फ यहोवा ही नियम बनाने का असली हकदार क्यों है?

4 सिरजनहार होने के नाते, पूरे विश्‍वमंडल में सिर्फ यहोवा ही नियम बनाने का असली हकदार है। (प्रकाशितवाक्य 4:11) भविष्यवक्‍ता यशायाह ने कहा: “यहोवा हमारा व्यवस्था देनेवाला है।” (यशायाह 33:22, NHT) उसने ऐसे भौतिक नियम ठहराए हैं, जिनसे वह जीवित प्राणियों और निर्जीव सृष्टि को चलाता है। (अय्यूब 38:4-38; 39:1-12; भजन 104:5-19) इंसान भी परमेश्‍वर के हाथों की रचना है, इसलिए उस पर भी यहोवा के भौतिक नियम लागू होते हैं। हालाँकि परमेश्‍वर ने इंसान को इस तरह बनाया है कि वह अपनी मरज़ी से चुनाव करने के लिए आज़ाद है और उसके पास सोचने-समझने की काबिलीयत है, फिर भी वह अच्छे-बुरे के बारे में और उपासना के बारे में परमेश्‍वर के नियमों पर चलकर ही खुश रह सकता है।—रोमियों 12:1; 1 कुरिन्थियों 2:14-16.

5. गलतियों 6:7 में दिया गया उसूल, परमेश्‍वर के नियमों के मामले में कैसे सच है?

5 जैसा कि हम जानते हैं, यहोवा के भौतिक नियमों को तोड़ा नहीं जा सकता। (यिर्मयाह 33:20,21) अगर एक व्यक्‍ति गुरुत्वाकर्षण जैसे भौतिक नियमों के खिलाफ काम करे, तो वह अंजाम से बच नहीं सकता। ठीक उसी तरह, अच्छे-बुरे के बारे में परमेश्‍वर के नियम भी अटल हैं, उन्हें तोड़ने पर सज़ा से बचा नहीं जा सकता। हालाँकि ये नियम न मानने के अंजाम शायद फौरन नज़र नहीं आएँ, फिर भी उनका पालन करना उतना ही ज़रूरी है, जितना कि भौतिक नियमों का। “परमेश्‍वर ठट्ठों में नहीं उड़ाया जाता, क्योंकि मनुष्य जो कुछ बोता है, वही काटेगा।”—गलतियों 6:7; 1 तीमुथियुस 5:24.

यहोवा की व्यवस्था का पैमाना

6. परमेश्‍वर के नियम किस तरह ज़िंदगी के हर पहलू पर लागू होते हैं?

6 परमेश्‍वर के नियमों की एक बढ़िया मिसाल थी, मूसा की व्यवस्था। (रोमियों 7:12) समय आने पर, यहोवा ने मूसा की व्यवस्था हटाकर उसकी जगह “मसीह की व्यवस्था” दी। * (गलतियों 6:2; 1 कुरिन्थियों 9:21) हम मसीही, “स्वतंत्रता की सिद्ध व्यवस्था” के अधीन हैं, इसलिए हम समझते हैं कि परमेश्‍वर ने ज़िंदगी के सिर्फ कुछ ही पहलुओं के लिए कायदे-कानून नहीं दिए हैं, जैसे कि धार्मिक विश्‍वास और रस्मो-रिवाज़ों के बारे में। इसके बजाय, उसने ज़िंदगी के सभी पहलुओं के लिए नियम दिए हैं, जैसे कि परिवार, बिज़नेस में लेन-देन, विपरीत लिंग के व्यक्‍ति के साथ बर्ताव, मसीहियों का एक-दूसरे के बारे में नज़रिया और सच्ची उपासना से जुड़े काम।—याकूब 1:25, 27.

7. परमेश्‍वर के कुछ खास नियम क्या हैं?

7 मिसाल के लिए, बाइबल कहती है: “न वेश्‍यागामी, न मूर्त्तिपूजक, न परस्त्रीगामी, न लुच्चे, न पुरुषगामी। न चोर, न लोभी, न पियक्कड़, न गाली देनेवाले, न अन्धेर करनेवाले परमेश्‍वर के राज्य के वारिस होंगे।” (1 कुरिन्थियों 6:9, 10) जी हाँ, व्यभिचार और परस्त्रीगमन का मतलब सिर्फ “प्यार-मुहब्बत” जताना नहीं है। और एक ही लिंग के लोगों का साथ रहना सिर्फ ‘जीने का एक अलग तरीका’ नहीं है। ये सारे काम यहोवा के नियमों के खिलाफ पाप हैं। चोरी, झूठ और दूसरों की निंदा करने के बारे में भी यही कहा जा सकता है। (भजन 101:5; कुलुस्सियों 3:9; 1 पतरस 4:15) याकूब ने डींग मारने की निंदा की और पौलुस ने सलाह दी कि हम मूढ़ता की बातें और गंदे किस्म का मज़ाक करने से दूर रहें। (इफिसियों 5:4; याकूब 4:16) चालचलन के बारे में मसीहियों को दिए सारे नियम परमेश्‍वर की सिद्ध व्यवस्था के भाग हैं।—भजन 19:7.

8. (क) यहोवा की व्यवस्था के बारे में क्या कहा जा सकता है? (ख) “व्यवस्था” के लिए इस्तेमाल किए गए इब्रानी शब्द का मतलब क्या है?

8 यहोवा के वचन में बताए ऐसे बुनियादी नियमों से पता चलता है कि उसकी व्यवस्था सिर्फ कानूनों की एक लंबी-चौड़ी सूची नहीं है। परमेश्‍वर की व्यवस्था पर चलने से हम एक संतुलित और सार्थक ज़िंदगी जी पाएँगे, क्योंकि इससे हमारे चालचलन पर हर मामले में अच्छा असर होगा। परमेश्‍वर के नियम हमारी ज़िंदगी को बेहतर बनाते हैं, सही-गलत के बीच फर्क सिखाते हैं और हमारा ज्ञान बढ़ाते हैं। (भजन 119:72) “व्यवस्था” के लिए भजनहार ने जिस इब्रानी शब्द का इस्तेमाल किया, वह है तोराह। एक बाइबल विद्वान कहता है: “यह शब्द एक ऐसे क्रिया-पद से बना है जिसका मतलब है, निर्देश देना, रास्ता दिखाना, निशाना लगाना, उकसाना। इसलिए इस शब्द का . . . मतलब होगा, चालचलन के बारे में नियम।” भजनहार, व्यवस्था को परमेश्‍वर से मिला एक तोहफा समझता था। तो क्या हमारे दिल में भी यहोवा के कायदे-कानूनों के लिए ऐसी ही कदरदानी नहीं होनी चाहिए और उनके मुताबिक अपने जीवन में बदलाव नहीं करने चाहिए?

9, 10. (क) हमें भरोसेलायक निर्देशन की ज़रूरत क्यों है? (ख) अगर हम चाहते हैं कि हमारी ज़िंदगी खुशियों से भर जाए और कामयाब हो, तो हमें क्या करना होगा?

9 सभी प्राणियों को ऐसे मार्गदर्शन और सिद्धांतों की ज़रूरत है जिन पर भरोसा किया जा सके। यही ज़रूरत यीशु और दूसरे स्वर्गदूतों की भी है, जिनका दर्जा इंसानों से कहीं ऊँचा है। (भजन 8:5; यूहन्‍ना 5:30; 6:38; इब्रानियों 2:7; प्रकाशितवाक्य 22:8, 9) जब इन सिद्ध प्राणियों को परमेश्‍वर के नियमों पर चलने से फायदा हो सकता है, तो हम असिद्ध इंसानों को और कितना फायदा होगा! इतिहास में हुई घटनाओं और खुद अपने तजुर्बे से हम जानते हैं कि भविष्यवक्‍ता यिर्मयाह के ये शब्द बिलकुल सच हैं: “हे यहोवा, मैं जान गया हूं, कि मनुष्य का मार्ग उसके वश में नहीं है, मनुष्य चलता तो है, परन्तु उसके डग उसके अधीन नहीं हैं।”—यिर्मयाह 10:23.

10 अगर हम चाहते हैं कि हमारी ज़िंदगी खुशियों से भर जाए और कामयाब हो, तो हमें मार्गदर्शन के लिए परमेश्‍वर की ओर देखना होगा। राजा सुलैमान जानता था कि परमेश्‍वर के नियमों को ठुकराकर, अपनी मन-मरज़ी से जीना कितना खतरनाक है: “ऐसा मार्ग है, जो मनुष्य को ठीक देख पड़ता है, परन्तु उसके अन्त में मृत्यु ही मिलती है।”—नीतिवचन 14:12.

यहोवा की व्यवस्था को सीने से लगाए रखने के कारण

11. हमें परमेश्‍वर की व्यवस्था को समझने की इच्छा क्यों पैदा करनी चाहिए?

11 हमें अपने अंदर यहोवा की व्यवस्था को समझने की गहरी इच्छा पैदा करनी चाहिए। भजनहार ने ऐसी ही लालसा दिखाते हुए कहा: “मेरी आंखें खोल दे, कि मैं तेरी व्यवस्था की अद्‌भुत बातें देख सकूं।” (भजन 119:18) हम परमेश्‍वर और उसके मार्गों के बारे में जितना ज़्यादा सीखेंगे, उतनी ही गहराई से हम यशायाह के इन शब्दों की सच्चाई समझ पाएँगे: “मैं ही तेरा परमेश्‍वर यहोवा हूं जो तुझे तेरे लाभ के लिये शिक्षा देता हूं, और जिस मार्ग से तुझे जाना है उसी मार्ग पर तुझे ले चलता हूं। भला होता कि तू ने मेरी आज्ञाओं को ध्यान से सुना होता!” (यशायाह 48:17, 18) यहोवा दिल से चाहता है कि उसके लोग उसकी आज्ञाओं को मानकर मुसीबतों से बचें और जीवन का आनंद लें। आइए अब हम परमेश्‍वर की व्यवस्था को सीने से लगाए रखने की कुछ खास वजहों पर गौर करें।

12. हमारे बारे में अच्छी जानकारी होने की वजह से, यहोवा हमारे लिए कैसे बढ़िया नियम देनेवाला बनता है?

12 व्यवस्था देनेवाला परमेश्‍वर, हमारे बारे में सबसे बेहतर जानता है। यहोवा हमारा सिरजनहार है, इसलिए यह कहना सही होगा कि वह हम इंसानों के बारे में सबकुछ जानता है। (भजन 139:1, 2; प्रेरितों 17:24-28) वह हमें जितना करीब से जानता है, उतना हमारे जिगरी दोस्त, रिश्‍तेदार, यहाँ तक कि हमारे माता-पिता भी नहीं जान सकते। वह तो हमारे बारे में हमसे भी बेहतर जानता है! उसे हमारी आध्यात्मिक, भावनात्मक, मानसिक और शारीरिक ज़रूरतों के बारे में जितनी अच्छी समझ है, उतनी किसी को भी नहीं है। हमारे साथ उसके व्यवहार से यह ज़ाहिर होता है कि उसे हमारी रचना, हमारी इच्छाओं और ख्वाहिशों की गहरी समझ है। यहोवा न सिर्फ हमारी सीमाओं को जानता है बल्कि यह भी जानता है कि हमारे अंदर अच्छे काम करने की कितनी क्षमता है। भजनहार कहता है: “वह हमारी सृष्टि जानता है; और उसको स्मरण रहता है कि मनुष्य मिट्टी ही हैं।” (भजन 103:14) इसलिए अगर हम परमेश्‍वर की व्यवस्था का पालन करेंगे और खुशी-खुशी उसके निर्देशन को मानेंगे, तो हम आध्यात्मिक तौर पर सुरक्षित महसूस करेंगे।—नीतिवचन 3:19-26.

13. हम क्यों इस बात का यकीन रख सकते हैं कि यहोवा हमेशा हमारी भलाई चाहता है?

13 नियम देनेवाला परमेश्‍वर हमसे प्यार करता है। परमेश्‍वर दिल की गहराइयों से चाहता है कि हम सदा के लिए सुखी रहें। क्या इसीलिए उसने भारी कीमत चुकाकर अपने बेटे को “बहुतों की छुड़ौती के लिये” नहीं दिया? (मत्ती 20:28) क्या यहोवा ने यह वादा नहीं किया कि वह हमें “सामर्थ से बाहर परीक्षा में न पड़ने देगा”? (1 कुरिन्थियों 10:13) क्या बाइबल हमें विश्‍वास नहीं दिलाती कि वह ‘हमारी चिन्ता करता है’? (1 पतरस 5:7, NHT) इंसानों की भलाई चाहनेवाला और उन्हें नियम देकर प्यार दिखानेवाला, यहोवा से बढ़कर और कोई नहीं है। वह ठीक-ठीक जानता है कि हमारी भलाई किसमें है, क्या करने पर हमें खुशी मिलेगी और क्या करने पर हम मुसीबत में फँस सकते हैं। हालाँकि हम असिद्ध हैं और गलतियाँ करते हैं, फिर भी अगर हम धार्मिकता के मार्ग पर चलें, तो वह अपना प्यार इस तरह ज़ाहिर करता है जिससे हमें ज़िंदगी और आशीषें मिलें।—यहेजकेल 33:11.

14. परमेश्‍वर के नियमों और इंसान की विचारधाराओं में कौन-सा खास फर्क है?

14 परमेश्‍वर के नियम कभी नहीं बदलते। आज के इस मुश्‍किलों से भरे समय में, यहोवा हमारे लिए एक मज़बूत चट्टान की तरह है। वह अनादिकाल से अनन्तकाल तक है। (भजन 90:2) अपने बारे में उसने कहा: “मैं यहोवा बदलता नहीं।” (मलाकी 3:6) बाइबल में दर्ज़ परमेश्‍वर के नियम अटल हैं। वे इंसान की बदलती विचारधाराओं की तरह नहीं हैं, जो दलदल की तरह स्थिर नहीं रहते। (याकूब 1:17) मिसाल के लिए, कई सालों तक, मनोवैज्ञानिकों ने यह सलाह दी कि माँ-बाप को बच्चों के साथ सख्ती नहीं बरतनी चाहिए, मगर बाद में कुछ मनोवैज्ञानिकों ने अपनी राय बदल दी और कबूल किया कि उनकी वह सलाह गलत थी। इस मामले में संसार के स्तर और सिद्धांत हमेशा बदलते रहते हैं, मानो वे हवा के थपेड़ों से कभी इधर तो कभी उधर भटकते रहते हैं। लेकिन यहोवा का वचन हमेशा अटल है। सदियों से बाइबल ने यह सलाह दी है कि बच्चों की परवरिश कैसे प्यार से की जानी चाहिए। प्रेरित पौलुस ने लिखा: “हे बच्चेवालो अपने बच्चों को रिस न दिलाओ परन्तु प्रभु की शिक्षा, और चितावनी देते हुए, उन का पालन-पोषण करो।” (इफिसियों 6:4) यह जानकर हमें कितना दिलासा मिलता है कि हम यहोवा के स्तरों पर भरोसा रख सकते हैं; वे कभी नहीं बदलेंगे!

परमेश्‍वर के नियम माननेवालों के लिए आशीषें

15, 16. (क) अगर हम यहोवा के नियमों पर चलेंगे तो इसका क्या नतीजा निकलेगा? (ख) शादी के मामले में परमेश्‍वर के नियम कैसे भरोसेमंद मार्गदर्शन दे सकते हैं?

15 अपने भविष्यवक्‍ता यशायाह के ज़रिए, परमेश्‍वर ने कहा: “मेरा वचन . . . जो मेरे मुख से निकलता है . . . वह सुफल [हो]गा।” (यशायाह 55:11) इसी तरह हमें भी यकीन है कि अगर हम परमेश्‍वर के वचन में दिए गए नियमों पर चलने की सच्चे दिल से कोशिश करेंगे, तो हम ज़रूर सफल होंगे, भले काम कर पाएँगे और खुशी पाएँगे।

16 मिसाल के लिए, ध्यान दीजिए कि शादी-शुदा ज़िंदगी में सफल होने के लिए परमेश्‍वर के नियम कैसे भरोसेमंद मार्गदर्शन देते हैं। पौलुस ने लिखा: “विवाह सब में आदर की बात समझी जाए, और बिछौना निष्कलंक रहे; क्योंकि परमेश्‍वर व्यभिचारियों, और परस्त्रीगामियों का न्याय करेगा।” (इब्रानियों 13:4) पति-पत्नी को चाहिए कि वे एक-दूसरे का आदर करें और एक-दूसरे से प्यार करें: “तुम में से हर एक अपनी पत्नी से अपने समान प्रेम रखे, और पत्नी भी अपने पति का भय माने।” (इफिसियों 5:33) इस आयत में जिस प्रेम की बात की गयी है, उसके बारे में 1 कुरिन्थियों 13:4-8 में समझाया गया है: “प्रेम धीरजवन्त है, और कृपाल है; प्रेम डाह नहीं करता; प्रेम अपनी बड़ाई नहीं करता, और फूलता नहीं। वह अनरीति नहीं चलता, वह अपनी भलाई नहीं चाहता, झुंझलाता नहीं, बुरा नहीं मानता। कुकर्म से आनन्दित नहीं होता, परन्तु सत्य से आनन्दित होता है। वह सब बातें सह लेता है, सब बातों की प्रतीति करता है, सब बातों की आशा रखता है, सब बातों में धीरज धरता है। प्रेम कभी टलता नहीं।” जिस शादी की बुनियाद ऐसा प्रेम हो, वह कभी नाकाम नहीं हो सकती।

17. शराब पीने के मामले में यहोवा के स्तर मानने से कौन-से फायदे मिलेंगे?

17 यहोवा के नियम हमारे फायदे के लिए हैं, इसका एक और सबूत यह है कि यहोवा पियक्कड़पन की निंदा करता है। वह तो ‘बहुत ज़्यादा दाखमधु पीने’ की भी मनाही करता है। (1 तीमुथियुस 3:3, 8, NW; रोमियों 13:13) परमेश्‍वर के इस स्तर को न माननेवाले बहुत-से लोग हद-से-ज़्यादा शराब पीने की वजह से बीमारियों के शिकार हुए हैं या उनकी बीमारियाँ और भी बदतर हो गयी हैं। शराब पीने में संयम बरतने की बाइबल की सलाह को कुछ लोगों ने ठुकरा दिया है और “तनाव से छुटकारा पाने के लिए” हद-से-ज़्यादा शराब पीने की आदत डाल ली है। ऐसे लोग कई मुसीबतों को बुलावा देते हैं। मसलन, वे अपनी ही नज़रों में गिर जाते हैं, उनके पारिवारिक रिश्‍तों में दरार आ जाती है या परिवार टूट जाते हैं, उनकी मेहनत की कमाई यूँ ही बरबाद हो जाती है और वे नौकरी से हाथ धो बैठते हैं। (नीतिवचन 23:19-21, 29-35) तो क्या शराब पीने के मामले में यहोवा के स्तर से हमारी हिफाज़त नहीं होती?

18. क्या परमेश्‍वर के नियमों को मानना, पैसे के मामले में भी फायदेमंद होता है? समझाइए।

18 परमेश्‍वर के नियमों को मानना, पैसे के मामले में भी फायदेमंद होता है। बाइबल, मसीहियों को ईमानदार और मेहनती होने का बढ़ावा देती है। (लूका 16:10; इफिसियों 4:28; कुलुस्सियों 3:23) इस सलाह को मानने की वजह से, बहुत-से मसीहियों ने नौकरी में तरक्की पायी है या ऐसा हुआ है कि जब कई लोगों को नौकरी से निकाला जा रहा था, तब भी उनकी नौकरी बरकरार रही। इतना ही नहीं, जब एक व्यक्‍ति, ऐसी आदतों से दूर रहता है जिनकी बाइबल में निंदा की गयी है, जैसे जूएबाज़ी, धूम्रपान और नशीली दवाइयों का इस्तेमाल, तो इससे भी उसके पैसे बचते हैं। बेशक, आप ऐसी और भी कई मिसालें दे सकते हैं, जिनमें परमेश्‍वर के स्तरों पर चलने से हमारे पैसों की बचत होती है।

19, 20. परमेश्‍वर के नियमों को कबूल करना और उन्हें मानना क्यों बुद्धिमानी की बात है?

19 असिद्ध होने की वजह से हम, परमेश्‍वर के नियमों और स्तरों से बड़ी आसानी से भटक सकते हैं। सीनै पर्वत के पास इकट्ठे हुए इस्राएलियों को याद कीजिए। परमेश्‍वर ने उनसे कहा: “यदि तुम निश्‍चय मेरी मानोगे, और मेरी वाचा को पालन करोगे, तो सब लोगों में से तुम ही मेरा निज धन ठहरोगे।” तब उन्होंने जवाब दिया: “जो कुछ यहोवा ने कहा है वह सब हम नित करेंगे।” मगर बाद में उन्होंने जो रास्ता इख्तियार किया, वह उनके वादे से कितना हटकर था! (निर्गमन 19:5, 8; भजन 106:12-43) इसलिए आइए हम ऐसा करने के बजाय परमेश्‍वर के स्तरों को कबूल करें और उनको मानते रहें।

20 यहोवा ने हमें जीवन में मार्गदर्शन देने के लिए जो बेजोड़ नियम दिए हैं, उनका सख्ती से पालन करना वाकई बुद्धिमानी है और इससे हमें खुशियाँ मिल सकती हैं। (भजन 19:7-11) लेकिन यहोवा के नियमों का पालन करने के लिए हमें यह भी समझने की ज़रूरत है कि इनके पीछे छिपे उसके सिद्धांत कितने अनमोल हैं। हमारे अगले लेख में इसी विषय पर चर्चा की गयी है।

[फुटनोट]

^ “मसीह की व्यवस्था” के बारे में ब्यौरेदार जानकारी के लिए सितंबर 1, 1996 की प्रहरीदुर्ग के पेज 14-24 देखिए।

क्या आपको याद है?

• हम क्यों यकीन रख सकते हैं कि परमेश्‍वर के नियम हमारे फायदे के लिए हैं?

• किन कारणों से हमें यहोवा के नियम, सीने से लगाए रखने चाहिए?

• किन तरीकों से परमेश्‍वर के नियम फायदेमंद हैं?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 13 पर तसवीर]

यहोवा की व्यवस्था का पालन करने से इब्राहीम को ढेर सारी आशीषें मिलीं

[पेज 15 पर तसवीरें]

ज़िंदगी की भाग-दौड़ और परेशानियाँ, बहुत-से लोगों का ध्यान परमेश्‍वर के नियमों से हटा देती हैं

[पेज 17 पर तसवीर]

चट्टान पर बने लाइटहाऊस की तरह, परमेश्‍वर के नियम अटल हैं और कभी नहीं बदलते