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परमेश्‍वर के सिद्धांत आपको राह दिखाते रहें

परमेश्‍वर के सिद्धांत आपको राह दिखाते रहें

परमेश्‍वर के सिद्धांत आपको राह दिखाते रहें

‘[यहोवा] तुझे तेरे लाभ के लिये शिक्षा देता है।’—यशायाह 48:17.

1. सिरजनहार, इंसानों को कैसे राह दिखाता है?

 जब वैज्ञानिक विश्‍वमंडल के रहस्यों को समझने की जी-जान से कोशिश करते हैं, तो वे यह देखकर दंग रह जाते हैं कि हमारे चारों ओर अंतरिक्ष में फैले पिंडों में कितनी बेहिसाब ऊर्जा जमा है। हमारा सूर्य, जो एक मध्यम आकार का तारा है, “हर सेकंड इतनी ऊर्जा पैदा करता है, जितनी एक खरब हाइड्रोजन बमों के विस्फोट से निकल सकती है।” सिरजनहार के पास इतनी बेहिसाब शक्‍ति है कि वह उन विशाल आकाशीय पिंडों को काबू में रख सकता है और उन्हें चला सकता है। (अय्यूब 38:32; यशायाह 40:26) हम इंसानों के बारे में क्या, जिन्हें अपनी मरज़ी से चलने की आज़ादी, साथ ही अच्छे-बुरे, सही-गलत में फर्क करने और आध्यात्मिक बातों को समझने की काबिलीयत दी गयी है? हमारे बनानेवाले ने किन तरीकों से हमें मार्गदर्शन देना ठीक समझा है? वह बड़े प्यार से हमें अपने श्रेष्ठ नियमों और बेहतरीन सिद्धांतों के ज़रिए राह दिखाता है, साथ ही उसने हमें विवेक दिया है जो अच्छी तालीम पाकर हमारी मदद कर सकता है।—2 शमूएल 22:31; रोमियों 2:14, 15.

2, 3. किस भावना के साथ आज्ञा मानने से यहोवा खुश होता है?

2 यहोवा उन बुद्धिमान प्राणियों से खुश होता है जो अपनी मरज़ी से उसकी आज्ञा मानते हैं। (नीतिवचन 27:11) यहोवा ने हमें रोबोट की तरह नहीं बनाया कि हम बिना सोचे-समझे आँख मूंदकर उसका हुक्म मानें। इसके बजाय उसने हमें अपनी मरज़ी से काम करने की आज़ादी दी है, ताकि हम सबकुछ जानने और समझने के बाद सही काम करने का फैसला कर सकें।—इब्रानियों 5:14.

3 यीशु, जो बिलकुल अपने पिता जैसा था, उसने अपने चेलों से कहा: “जो कुछ मैं तुम्हें आज्ञा देता हूं, यदि उसे करो, तो तुम मेरे मित्र हो। अब से मैं तुम्हें दास न कहूंगा।” (यूहन्‍ना 15:14, 15) प्राचीन समय में, एक दास को अपनी मरज़ी से चलने की आज़ादी नहीं थी बल्कि उसे अपने मालिक के हुक्मों को मानना पड़ता था। दूसरी तरफ, दो दोस्तों के बीच के रिश्‍ते में आज़ादी होती है और ऐसी दोस्ती एक-दूसरे के गुण देखकर दिल से पैदा होती है। यही वजह है कि हम यहोवा के दोस्त बन सकते हैं। (याकूब 2:23) एक-दूसरे के लिए प्यार इस दोस्ती को मज़बूत करता है। परमेश्‍वर के लिए अपना प्यार दिखाने का एक तरीका है उसकी आज्ञाओं को मानना। यीशु ने भी बताया था कि प्रेम के गुण का आज्ञा मानने से कितना गहरा रिश्‍ता है: “यदि कोई मुझ से प्रेम रखे, तो वह मेरे वचन को मानेगा, और मेरा पिता उस से प्रेम रखेगा।” (यूहन्‍ना 14:23) यहोवा हमसे प्रेम करता है और हमें सही राह दिखाना चाहता है, इसलिए वह हमसे उसके सिद्धांतों पर चलने की गुज़ारिश करता है।

परमेश्‍वर के सिद्धांत

4. आप सिद्धांतों का मतलब किस तरह समझाएँगे?

4 सिद्धांतों का मतलब क्या है? सिद्धांत का मतलब है, “एक आम या बुनियादी सच्चाई: एक ऐसा विशाल और बुनियादी नियम, सच्चाई या धारणा, जिससे कई और नियम और सिद्धांत निकलते हैं।” (वैबस्टर्स थर्ड न्यू इंटरनैश्‍नल डिक्शनरी) बाइबल का ध्यान से अध्ययन करने पर हम पाते हैं कि हमारा स्वर्गीय पिता हमें कुछ ऐसे बुनियादी सिद्धांत देता है, जो ज़िंदगी के कई हालात और पहलुओं पर लागू होते हैं। वह ये सिद्धांत इसलिए देता है, ताकि इनसे हमेशा हमारा भला हो। यह बात बुद्धिमान राजा सुलैमान की इस बात से मेल खाती है: “हे मेरे पुत्र, मेरी बातें सुनकर ग्रहण कर, तब तू बहुत वर्ष तक जीवित रहेगा। मैं ने तुझे बुद्धि का मार्ग बताया है; और सीधाई के पथ पर चलाया है।” (नीतिवचन 4:10, 11) यहोवा ने जो बुनियादी सिद्धांत दिए हैं उनका, खुद यहोवा और दूसरों के साथ हमारे रिश्‍ते पर, हमारी उपासना पर और रोज़मर्रा की ज़िंदगी पर असर होता है। (भजन 1:1) आइए हम इनमें से कुछ बुनियादी सिद्धांतों पर गौर करें।

5. परमेश्‍वर के बुनियादी सिद्धांतों की कुछ मिसाल दीजिए।

5 यहोवा के साथ हमारे रिश्‍ते के बारे में यीशु ने कहा: “तू परमेश्‍वर अपने प्रभु से अपने सारे मन और अपने सारे प्राण और अपनी सारी बुद्धि के साथ प्रेम रख।” (मत्ती 22:37) और लोगों के साथ हमें कैसे पेश आना है, इस बारे में भी परमेश्‍वर ने कुछ सिद्धांत दिए हैं। इसकी एक मिसाल है, सुनहरा नियम: “इस कारण जो कुछ तुम चाहते हो, कि मनुष्य तुम्हारे साथ करें, तुम भी उन के साथ वैसा ही करो।” (मत्ती 7:12; गलतियों 6:10; तीतुस 3:2) उपासना के बारे में हमें यह सलाह दी गयी है: “प्रेम, और भले कामों में उस्काने के लिये एक दूसरे की चिन्ता किया करें। और एक दूसरे के साथ इकट्ठा होना न छोड़ें।” (इब्रानियों 10:24, 25) रोज़ाना ज़िंदगी से ताल्लुक रखनेवाली बातों के बारे में प्रेरित पौलुस कहता है: “तुम चाहे खाओ, चाहे पीओ, चाहे जो कुछ करो, सब कुछ परमेश्‍वर की महिमा के लिये करो।” (1 कुरिन्थियों 10:31) परमेश्‍वर के वचन में और भी अनगिनत सिद्धांत दर्ज़ हैं।

6. सिद्धांतों और नियमों में क्या फर्क है?

6 सिद्धांत ऐसी बुनियादी और कारगर सच्चाइयाँ हैं, जिनके लिए समझदार मसीही दिल में लगाव पैदा करना सीखते हैं। यहोवा ने सुलैमान को यह लिखने की प्रेरणा दी: “मेरे वचन ध्यान धरके सुन, और अपना कान मेरी बातों पर लगा। इनको अपनी आँखों की ओट न होने दे; वरन अपने मन में धारण कर। क्योंकि जिनको वे प्राप्त होती हैं, वे उनके जीवित रहने का, और उनके सारे शरीर के चंगे रहने का कारण होती हैं।” (नीतिवचन 4:20-22) सिद्धांतों और नियमों में क्या फर्क है? सिद्धांतों की बुनियाद पर नियम बनाए जाते हैं। नियम ठीक-ठीक बताते हैं कि क्या करना है और क्या नहीं, और अकसर वे किसी खास वक्‍त या हालात को ध्यान में रखकर बनाए जाते हैं। मगर सिद्धांतों के लिए कोई ठहराया हुआ वक्‍त नहीं होता, ये हर वक्‍त में लागू होते हैं। (भजन 119:111) परमेश्‍वर के सिद्धांत कभी पुराने नहीं पड़ते, ना ही मिटते हैं। उनके बारे में भविष्यवक्‍ता यशायाह की ईश्‍वर-प्रेरणा से कही यह बात सच साबित होती है: “घास तो सूख जाती, और फूल मुर्झा जाता है; परन्तु हमारे परमेश्‍वर का वचन सदैव अटल रहेगा।”—यशायाह 40:8.

सिद्धांतों के आधार पर सोचिए और काम कीजिए

7. परमेश्‍वर का वचन हमें सिद्धांतों के आधार पर सोचने और काम करने का बढ़ावा कैसे देता है?

7 “हमारे परमेश्‍वर का वचन” हमें बार-बार यही बढ़ावा देता है कि हम सिद्धांतों के आधार पर सोचें और काम करें। जब यीशु से पूछा गया कि पूरी व्यवस्था का निचोड़ क्या है, तो जवाब में उसने दो संक्षिप्त वाक्य कहे। एक में उसने यहोवा से प्रेम करने और दूसरे में पड़ोसी से प्रेम करने पर ज़ोर दिया। (मत्ती 22:37-40) ऐसा कहकर, यीशु ने व्यवस्थाविवरण 6:4, 5 का हवाला दिया, जिसमें एक लंबे अरसे पहले मूसा की व्यवस्था के सिद्धांतों का सार दिया गया था: “यहोवा हमारा परमेश्‍वर है, यहोवा एक ही है; तू अपने परमेश्‍वर यहोवा से अपने सारे मन, और सारे जीव, और सारी शक्‍ति के साथ प्रेम रखना।” ज़ाहिर है कि यीशु के मन में लैव्यव्यवस्था 19:18 में दिया गया परमेश्‍वर का आदेश भी था। उसी तरह, सभोपदेशक की किताब के आखिर में राजा सुलैमान ने थोड़े मगर ज़बरदस्त शब्दों में परमेश्‍वर के ज़्यादातर नियमों का निचोड़ बताया: “सब कुछ सुना गया; अन्त की बात यह है कि परमेश्‍वर का भय मान और उसकी आज्ञाओं का पालन कर; क्योंकि मनुष्य का सम्पूर्ण कर्त्तव्य यही है। क्योंकि परमेश्‍वर सब कामों और सब गुप्त बातों का, चाहे वे भली हों या बुरी, न्याय करेगा।”—सभोपदेशक 12:13, 14; मीका 6:8.

8. बाइबल के बुनियादी सिद्धांतों को अच्छी तरह समझने से हमारी हिफाज़त क्यों होगी?

8 अगर हम ऐसे बुनियादी सिद्धांतों को अच्छी तरह समझ लेंगे, तो उन नियमों को समझना और उन पर अमल करना हमारे लिए आसान होगा, जिनमें बताया गया है कि क्या करना है और क्या नहीं। इतना ही नहीं, अगर हम बुनियादी सिद्धांतों को अच्छी तरह समझकर स्वीकार नहीं करेंगे, तो हो सकता है कि हम सही फैसले न कर पाएँ और हमारा विश्‍वास बड़ी आसानी से डगमगा जाए। (इफिसियों 4:14) लेकिन अगर हम ऐसे सिद्धांतों को अपने दिलो-दिमाग में अच्छी तरह बिठा लें, तो हम ज़िंदगी के फैसले उनके आधार पर कर सकते हैं। और जब हम समझ के साथ उनको लागू करेंगे, तो हमें कामयाबी हासिल होगी।—यहोशू 1:8; नीतिवचन 4:1-9.

9. बाइबल के सिद्धांतों को समझना और उन पर अमल करना हमेशा आसान क्यों नहीं होता?

9 बाइबल के सिद्धांतों को समझना और उन्हें लागू करना उतना आसान नहीं है, जितना कि कुछ नियमों को मानना। अपनी तर्क-शक्‍ति का इस्तेमाल करते हुए, सिद्धांतों के बारे में गहराई से सोचकर सही नतीजे पर पहुँचने के लिए मेहनत करने की ज़रूरत होती है, लेकिन हम असिद्ध इंसानों के लिए ऐसी मेहनत से जी चुराना बहुत आसान है। इसलिए जब हमें कोई फैसला करना पड़ता है या फिर हम किसी दुविधा में पड़ जाते हैं, तो हम उसका हल जानने के लिए चाहेंगे कि उसके लिए ठीक-ठीक कोई नियम दिया जाए। कभी-कभी हम शायद कलीसिया के किसी प्राचीन या किसी दूसरे प्रौढ़ मसीह से सलाह माँगें और उम्मीद करें कि वह हमें अपनी समस्या को सुलझाने के लिए ठीक-ठीक कोई नियम बता दे। लेकिन, हो सकता है कि बाइबल में या बाइबल पर आधारित साहित्य में आपके हालात के बारे में ठीक-ठीक कोई नियम न हो और अगर हो भी तो वह शायद हर समय और किसी भी हालात पर लागू नहीं होता होगा। शायद आपको याद होगा कि एक आदमी ने यीशु से पूछा था: “हे गुरु, मेरे भाई से कह, कि पिता की संपत्ति मुझे बांट दे।” भाइयों के आपसी झगड़े को सुलझाने के लिए फौरन कोई कानून देने के बजाय यीशु ने एक सिद्धांत बताया जो कई बातों में लागू किया जा सकता है: “चौकस रहो, और हर प्रकार के लोभ से अपने आप को बचाए रखो।” इस तरह यीशु ने एक ऐसी हिदायत दी जो उस ज़माने में कारगर थी और आज भी कारगर है।—लूका 12:13-15.

10. सिद्धांतों के मुताबिक जीने से, कैसे ज़ाहिर होगा कि हमारे दिल में क्या है?

10 आपने शायद ऐसे लोगों को देखा होगा जो बेदिली से और सज़ा पाने के डर से कानून मानते हैं। लेकिन अगर हम मन से सिद्धांतों की कदर करते हैं तो हमारा रवैया ऐसा नहीं होगा। सिद्धांत होते ही ऐसे हैं कि उन्हें माननेवाले दिल से उन्हें मानते हैं। दरअसल, ज़्यादातर सिद्धांत ऐसे होते हैं कि उनके खिलाफ जाने पर फौरन सज़ा नहीं मिलती। इससे हमें यह दिखाने का मौका मिलता है कि हम यहोवा की आज्ञा क्यों मानते हैं और इस तरह ज़ाहिर होता है कि हमारे दिल में क्या है। इसकी एक मिसाल हम यूसुफ में देख सकते हैं। जब पोतीपर की पत्नी ने उसे अनैतिक काम करने के लिए लुभाने की कोशिश की, तो यूसुफ ने उसका विरोध किया। उस वक्‍त तक, यहोवा ने व्यभिचार के खिलाफ कोई नियम नहीं लिखवाया था, ना ही उसने बताया था कि किसी दूसरे पुरुष की पत्नी के साथ लैंगिक संबंध रखने की सज़ा क्या होगी। फिर भी यूसुफ, परमेश्‍वर के सिद्धांतों से वाकिफ था कि पति-पत्नी को एक-दूसरे का वफादार रहना है। (उत्पत्ति 2:24; 12:18-20) यूसुफ ने जो जवाब दिया, उससे पता चलता है कि ये सिद्धांत उसके दिल में अच्छी तरह बैठ गए थे: “भला, मैं ऐसी बड़ी दुष्टता करके परमेश्‍वर का अपराधी क्योंकर बनूं?”—उत्पत्ति 39:9.

11. मसीही किन मामलों में यहोवा के सिद्धांतों के मुबातिक जीना चाहेंगे?

11 आज, सच्चे मसीही हर मामले में यहोवा के सिद्धांतों के मुताबिक जीना चाहते हैं। चाहे दोस्त चुनने की बात हो या फिर मनोरंजन, संगीत और पढ़ने के लिए किताबें चुनने की बात, वे हमेशा यहोवा के सिद्धांतों के मुताबिक काम करना चाहते हैं। (1 कुरिन्थियों 15:33; फिलिप्पियों 4:8) जब यहोवा और उसके स्तरों के बारे में हमारा ज्ञान और समझ बढ़ती है और हम उनकी ज़्यादा कदर करने लगते हैं, तब विवेक यानी अच्छे-बुरे की समझ हमारी मदद करती है कि परमेश्‍वर के सिद्धांतों को हम हर हाल में, अपने निजी मामलों में भी लागू करें। बाइबल के सिद्धांतों को मानते हुए, हम परमेश्‍वर के नियमों में खामियाँ नहीं ढूँढ़ेंगे, और न ही हम उन लोगों की तरह होंगे जो यह जानने की कोशिश में रहते हैं कि बिना किसी नियम को तोड़े वे किस हद तक गलत काम कर सकते हैं। दरअसल ऐसी सोच और ऐसा काम न सिर्फ खतरनाक है बल्कि अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मारने जैसा है।—याकूब 1:22-25.

12. परमेश्‍वर के सिद्धांतों के मुताबिक चलने के लिए सबसे ज़रूरी क्या है?

12 प्रौढ़ मसीही जानते हैं कि किसी भी मामले में परमेश्‍वर के सिद्धांतों को मानने के लिए, सबसे ज़रूरी है यह समझना कि यहोवा उसके बारे में कैसा महसूस करता है। भजनहार हमें सलाह देता है: “हे यहोवा के प्रेमियो, बुराई से घृणा करो।” (भजन 97:10) परमेश्‍वर जिन बातों से घृणा करता है, उनकी एक सूची देते हुए नीतिवचन 6:16-19 कहता है: “छ: वस्तुओं से यहोवा बैर रखता है, वरन सात हैं जिन से उसको घृणा है: अर्थात्‌ घमण्ड से चढ़ी हुई आंखें, झूठ बोलनेवाली जीभ, और निर्दोष का लोहू बहानेवाले हाथ, अनर्थ कल्पना गढ़नेवाला मन, बुराई करने को वेग दौड़नेवाले पांव, झूठ बोलनेवाला साक्षी और भाइयों के बीच में झगड़ा उत्पन्‍न करनेवाला मनुष्य।” ऐसी बुनियादी बातों के बारे में यहोवा जैसा महसूस करता है, वैसा ही महसूस करने की इच्छा अगर हमारे अंदर होगी, तो उसके सिद्धांतों के मुताबिक जीना हमारी आदत बन जाएगी।—यिर्मयाह 22:16.

नेक इरादा ज़रूरी है

13. यीशु ने अपने पहाड़ी उपदेश में किस बात को ध्यान में रखने पर ज़ोर दिया?

13 यहोवा के सिद्धांतों के बारे में जानने और उनके मुताबिक चलने से, हम खोखली और बनावटी किस्म की उपासना करने से दूर रहते हैं। सिद्धांतों को मानना एक बात है मगर कायदे-कानूनों के एक-एक अक्षर पर अड़े रहना, दूसरी बात। यीशु ने अपने पहाड़ी उपदेश में यह बात साफ ज़ाहिर की। (मत्ती 5:17-48) याद रखिए कि यीशु का उपदेश सुननेवाले यहूदी थे, इसलिए उन्हें मूसा की व्यवस्था का पालन करना चाहिए था। लेकिन सच्चाई तो यह थी कि उन्होंने व्यवस्था को तोड़-मरोड़कर उसका गलत मतलब निकाल लिया था। वे व्यवस्था के एक-एक शब्द का कड़ाई से पालन करने पर ज़ोर देते थे, जबकि इसके असली मतलब को नज़रअंदाज़ कर देते थे। साथ ही, वे अपनी परंपराओं को मानने पर ज़्यादा अहमियत देते थे और उन्हें परमेश्‍वर की शिक्षाओं से भी ऊँचा दर्जा देते थे। (मत्ती 12:9-12; 15:1-9) नतीजा यह हुआ कि, ज़्यादातर लोगों को यह नहीं सिखाया गया कि सिद्धांतों को ध्यान में रखते हुए फैसले कैसे किए जाएँ।

14. यीशु ने अपने सुननेवालों को सिद्धांतों के आधार पर सोचने में कैसे मदद दी?

14 यीशु उन यहूदियों से बिलकुल अलग था। उसने अपने पहाड़ी उपदेश में ऐसे सिद्धांत दिए जो चालचलन के पाँच मामलों में लागू होते हैं: क्रोध, शादी और तलाक, वादे करना, बदला लेना, और प्यार और नफरत। यीशु ने समझाया कि इनमें से हरेक मामले में, सिद्धांतों को मानने का क्या फायदा है। इस तरह उसने अपने सेवकों को और ऊँचे आदर्श दिए। मिसाल के लिए, व्यभिचार के मामले में उसने एक ऐसा सिद्धांत दिया जिसे मानने पर, हम न सिर्फ गलत काम करने से बल्कि गलत विचारों और इच्छाओं से भी दूर रह सकते हैं: “जो कोई किसी स्त्री पर कुदृष्टि डाले वह अपने मन में उस से व्यभिचार कर चुका।”—मत्ती 5:28.

15. कानूनों के एक-एक अक्षर पर अड़े रहने के रवैए से हम कैसे बच सकते हैं?

15 यह मिसाल दिखाती है कि हमें यह कभी नहीं भूलना चाहिए कि यहोवा के सिद्धांतों का असली मतलब क्या है और यह किस लिए दिए गए हैं। हमें सिर्फ अच्छे चालचलन का दिखावा करके परमेश्‍वर का अनुग्रह पाने की कोशिश नहीं करनी चाहिए। यीशु ने परमेश्‍वर के प्रेम और उसकी दया पर ज़ोर देकर यह ज़ाहिर किया कि इस तरह का रवैया रखना कितना बड़ा धोखा है। (मत्ती 12:7; लूका 6:1-11) अगर हम बाइबल के सिद्धांतों के मुताबिक जीएँगे, तो हम ऐसे ढेर सारे कायदे-कानूनों का सख्ती से पालन करने की कोशिश नहीं करेंगे, जो बाइबल की शिक्षाओं से परे हैं, ना ही दूसरों से ऐसा करने की माँग करेंगे। उपासना का दिखावा करने के बजाय हम परमेश्‍वर के लिए प्यार और उसकी आज्ञा मानने के सिद्धांतों का पालन करने की ज़्यादा कोशिश करेंगे।—लूका 11:42.

अच्छे नतीजे

16. बाइबल के कुछ नियमों के पीछे छिपे सिद्धांतों की मिसालें दीजिए।

16 यहोवा की आज्ञाओं को मानने की कोशिश करते वक्‍त, हमारे लिए यह समझना ज़रूरी है कि उसके नियम, उसके बुनियादी सिद्धांतों पर आधारित हैं। मसलन, मसीहियों को मूर्तिपूजा, लैंगिक अनैतिकता और लहू के गलत इस्तेमाल से दूर रहना है। (प्रेरितों 15:28, 29) इन मामलों पर मसीही जो मानते हैं उसका आधार क्या है? ये सिद्धांत: परमेश्‍वर हमारी एकनिष्ठ भक्‍ति पाने का हकदार है; हमें अपने जीवन-साथी का वफादार होना है; और यहोवा हमारा जीवनदाता है। (उत्पत्ति 2:24; निर्गमन 20:5; भजन 36:9) अगर हम नियमों के पीछे छिपे इन सिद्धांतों को समझ लेंगे, तो इनके आधार पर बने नियमों को कबूल करना और उनका पालन करना हमारे लिए आसान होगा।

17. बाइबल के सिद्धांतों को समझने और उन पर अमल करने से कौन-से अच्छे नतीजे निकल सकते हैं?

17 जब हम नियमों के पीछे छिपे सिद्धांतों को समझेंगे और उनका पालन करेंगे, तो हम पाएँगे कि ये नियम हमारी भलाई के लिए हैं। यहोवा के लोगों को जब आध्यात्मिक आशीषें मिलती हैं, तो अकसर उसके साथ-साथ उन्हें शारीरिक फायदे भी मिलते हैं। मिसाल के तौर पर, जो लोग धूम्रपान नहीं करते, शुद्ध चालचलन बनाए रखते हैं और लहू को पवित्र मानने की आज्ञा का पालन करते हैं, वे कई तरह की बीमारियों से बचते हैं। परमेश्‍वर की सच्चाई के मुताबिक जीने से हमें पैसे के मामले में, समाज में या घर-गृहस्थी में भी फायदा हो सकता है। ऐसे सभी फायदों से साबित होता है कि यहोवा के स्तर कितने अनमोल हैं और वाकई फायदेमंद हैं। लेकिन सच्चे मसीही सिर्फ ऐसे फायदे पाने के लिए सिद्धांतों को नहीं मानते। बल्कि यहोवा की आज्ञा मानने का सबसे बड़ा कारण है कि वे उससे प्यार करते हैं, और यहोवा उनकी उपासना पाने का हकदार है। साथ ही उसकी आज्ञा मानना सही है।—प्रकाशितवाक्य 4:11.

18. अगर हम मसीही जीवन में सफल होना चाहते हैं, तो हमें अपनी ज़िंदगी कैसे जीनी चाहिए?

18 बाइबल के सिद्धांतों के मुताबिक जीने से हम एक ऊँचे दर्जे की ज़िंदगी जी पाएँगे और इसे देखकर शायद कुछ लोग परमेश्‍वर के मार्ग की ओर आकर्षित हो सकते हैं। सबसे बड़ी बात तो यह है कि हमारे जीने के तरीके से यहोवा की महिमा होती है। हमें यह एहसास होता है कि यहोवा वाकई प्यार करनेवाला परमेश्‍वर है जो हमारा भला चाहता है। जब हम अपने फैसले बाइबल के सिद्धांतों के आधार पर करते हैं और पाते हैं कि यहोवा हमें कैसी आशीषें देता है, तो हम खुद को उसके और भी करीब महसूस करते हैं। जी हाँ, हमारे स्वर्गीय पिता के साथ हमारा प्यार-भरा रिश्‍ता और भी मज़बूत होता है।

क्या आपको याद है?

• सिद्धांत का मतलब क्या है?

• सिद्धांतों और नियमों में क्या फर्क है?

• सिद्धांतों के आधार पर सोचना और काम करना हमारे लिए क्यों फायदेमंद है?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 20 पर बक्स]

विल्सन, घाना देश का रहनेवाला एक मसीही है। उसे बताया गया कि कुछ ही दिनों में उसे नौकरी से निकाल दिया जाएगा। नौकरी के आखिरी दिन, उसे कंपनी के मैनेजिंग डाइरेक्टर की कार धोने का काम सौंपा गया। विल्सन को उस कार में एक बड़ी रकम मिली। विल्सन के अधिकारी ने उससे कहा कि भगवान ने उसके लिए यह पैसे भेजे हैं क्योंकि उस दिन विल्सन की नौकरी छूटनेवाली थी। मगर, विल्सन ने ईमानदारी के बारे में बाइबल के सिद्धांतों का पालन करते हुए, पैसे डाइरेक्टर को लौटा दिए। इससे डाइरेक्टर को इतना ताज्जुब हुआ और उस पर ऐसा अच्छा असर हुआ कि उसने फौरन विल्सन को न सिर्फ पक्की नौकरी दी बल्कि उसे नौकरी में तरक्की देकर कंपनी का एक सीनियर सदस्य बना दिया।—इफिसियों 4:28.

[पेज 21 पर बक्स]

रूकिया, अल्बेनिया की रहनेवाली एक स्त्री है जिसकी उम्र 60 से ऊपर है। परिवार में हुई कुछ अनबन की वजह से, वह 17 से ज़्यादा साल से अपने भाई से बात नहीं करती थी। उसने यहोवा के साक्षियों से बाइबल सीखनी शुरू की और जाना कि सच्चे मसीहियों को दूसरों के साथ शांति से रहना चाहिए और मन में दुश्‍मनी की भावना नहीं रखनी चाहिए। उसने सारी रात प्रार्थना की और अगले दिन वह अपने भाई के घर चली। उसका दिल ज़ोर से धड़क रहा था। उसकी भांजी ने दरवाज़ा खोला। वह रूकिया को देखकर दंग रह गयी और उससे पूछा: “कौन मर गया? यहाँ क्यों आयी हो?” रूकिया ने कहा कि वह अपने भाई से मिलना चाहती है। फिर उसने, शांति से उन्हें समझाया कि बाइबल के सिद्धांतों और यहोवा के बारे में सीखने की वजह से वह अपने भाई से सुलह करने आयी है। फिर आँसू बहे और बरसों के दुश्‍मन एक-दूसरे से गले मिले, इसके बाद उन्होंने इस खास मिलन का जश्‍न मनाया!—रोमियों 12:17, 18.

[पेज 23 पर तसवीर]

मत्ती 5:27, 28

[पेज 23 पर तसवीर]

मत्ती 5:3

[पेज 23 पर तसवीर]

मत्ती 5:24

[पेज 23 पर तसवीर]

“वह इस भीड़ को देखकर, पहाड़ पर चढ़ गया; और जब बैठ गया, तो उसके चेले उसके पास आए। और वह अपना मुंह खोलकर उन्हें यह उपदेश देने लगा।”—मत्ती 5:1, 2