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यहोवा की माँगें पूरी करने से उसकी बड़ाई होती है

यहोवा की माँगें पूरी करने से उसकी बड़ाई होती है

यहोवा की माँगें पूरी करने से उसकी बड़ाई होती है

‘मैं धन्यवाद करते हुए तेरी बड़ाई करूंगा।’भजन 69:30.

1. (क) यहोवा की बड़ाई क्यों की जानी चाहिए? (ख) हम धन्यवाद के साथ उसकी बड़ाई कैसे कर सकते हैं?

 यहोवा सर्वशक्‍तिमान परमेश्‍वर, सारे जहान का महाराजा और मालिक, और सिरजनहार है। इसलिए उसके नाम और मकसद की बड़ाई होनी चाहिए। यहोवा की बड़ाई करने का मतलब है, उसे सबसे ज़्यादा सम्मान देना, अपनी कथनी और करनी से उसका गुणगान करना और उसकी स्तुति करना। अगर हम ‘धन्यवाद के साथ’ उसकी बड़ाई करना चाहते हैं तो जो कुछ वह आज कर रहा है और आनेवाले भविष्य में करेगा, उसके लिए हमें हमेशा एहसानमंद होना चाहिए। प्रकाशितवाक्य 4:11 में बताया गया है कि हमारा रवैया कैसा होना चाहिए। इस आयत में, स्वर्ग में रहनेवाले वफादार आत्मिक प्राणी घोषणा करते हैं: “हे हमारे प्रभु, और परमेश्‍वर, तू ही महिमा, और आदर, और सामर्थ के योग्य है; क्योंकि तू ही ने सब वस्तुएं सृजीं और वे तेरी ही इच्छा से थीं, और सृजी गईं।” मगर हम किस तरह यहोवा की बड़ाई कर सकते हैं? परमेश्‍वर के बारे में सीखने और वह हमसे जो माँग करता है, उसके मुताबिक काम करने के ज़रिए हम ऐसा कर सकते हैं। हमें भजनहार की तरह महसूस करना चाहिए जिसने कहा: “मुझ को यह सिखा, कि मैं तेरी इच्छा क्योंकर पूरी करूं, क्योंकि मेरा परमेश्‍वर तू ही है!”—भजन 143:10.

2. यहोवा अपनी बड़ाई करनेवालों को किस नज़र से देखता है और जो उसकी बड़ाई नहीं करते, उनके साथ वह कैसा सलूक करता है?

2 जो यहोवा की बड़ाई करते हैं, उन्हें वह अनमोल समझता है। इसलिए वह “अपने खोजनेवालों को प्रतिफल देता है।” (इब्रानियों 11:6) वह प्रतिफल क्या है? यीशु ने स्वर्ग में रहनेवाले अपने पिता से यह प्रार्थना की: “अनन्त जीवन यह है, कि वे तुझ अद्वैत सच्चे परमेश्‍वर को और यीशु मसीह को, जिसे तू ने भेजा है, जानें।” (यूहन्‍ना 17:3) जी हाँ, जो लोग ‘धन्यवाद करते हुए यहोवा की बड़ाई करते हैं’ वे “पृथ्वी के अधिकारी होंगे, और उस में सदा बसे रहेंगे।” (भजन 37:29) दूसरी तरफ, “बुरे मनुष्य को अन्त में कोई फल न मिलेगा।” (नीतिवचन 24:20) इन अंतिम दिनों में, यहोवा की बड़ाई और भी ज़ोर-शोर से करने की ज़रूरत है क्योंकि बहुत जल्द वह दुष्टों का सर्वनाश करेगा और धर्मियों को बचाएगा। “संसार और उस की अभिलाषाएं दोनों मिटते जाते हैं, पर जो परमेश्‍वर की इच्छा पर चलता है, वह सर्वदा बना रहेगा।”—1 यूहन्‍ना 2:17; नीतिवचन 2:21, 22.

3. हमें मलाकी की किताब पर क्यों ध्यान देना चाहिए?

3 यहोवा की इच्छा के बारे में हम बाइबल से सीख सकते हैं क्योंकि “हर एक पवित्रशास्त्र परमेश्‍वर की प्रेरणा से रचा गया है।” (2 तीमुथियुस 3:16) परमेश्‍वर के वचन में ऐसी कई घटनाओं का ज़िक्र है जिनसे पता चलता है कि जो यहोवा की बड़ाई करते हैं, उन्हें वह क्या आशीषें देता है और जो ऐसा नहीं करते उनका क्या हश्र होता है। एक ऐसी ही घटना, इस्राएल देश में भविष्यवक्‍ता मलाकी के दिनों में हुई। मलाकी ने अपने नाम की किताब सा.यु.पू. 443 के आस-पास लिखी जब नहेमायाह, यहूदा का गवर्नर था। इस किताब में बहुत ही दमदार और रोमांचक जानकारी और भविष्यवाणियाँ हैं। ये ‘जगत के अन्तिम समय में रहनेवाले हम लोगों की चितावनी के लिये लिखी गईं हैं।’ (1 कुरिन्थियों 10:11) मलाकी के शब्दों पर ध्यान देने से हम “यहोवा के उस बड़े और भयानक दिन” का सामना करने के लिए तैयार हो सकते हैं, जब वह इस दुष्ट संसार का नाश करेगा।—मलाकी 4:5.

4. मलाकी के पहले अध्याय में कौन-से छः मुद्दों की ओर हमारा ध्यान दिलाया गया है?

4 दो हज़ार चार सौ से भी ज़्यादा साल पहले लिखी गयी मलाकी की किताब, आज 21वीं सदी में हमें परमेश्‍वर के उस महान और भयानक दिन के लिए तैयार होने में कैसे मदद देती है? इसका पहला अध्याय, कम-से-कम छः ज़रूरी मुद्दों की ओर हमारा ध्यान दिलाता है। ये मुद्दे, एहसान भरे दिल से यहोवा की बड़ाई करने, उसका अनुग्रह और अनंत जीवन पाने के लिए बहुत ज़रूरी हैं: (1) यहोवा अपने लोगों से प्रेम करता है। (2) हमें पवित्र वस्तुओं के लिए कदरदानी दिखानी चाहिए। (3) यहोवा चाहता है कि हम उसे अपनी उत्तम-से-उत्तम चीज़ दें। (4) सच्ची उपासना नि:स्वार्थ प्रेम से की जाती है, लालच से नहीं। (5) परमेश्‍वर को स्वीकार होनेवाली सेवा, रस्मो-रिवाज़ों से भरा कोई बोझ नहीं है। (6) हममें से हरेक को परमेश्‍वर के सामने अपना लेखा देना होगा। आइए अब हम, मलाकी की किताब पर आधारित इन तीन लेखों में से पहले लेख में मलाकी के अध्याय 1 की करीब से जाँच करें और इनमें से एक-एक मुद्दे पर विचार करें।

यहोवा अपने लोगों से प्रेम करता है

5, 6. (क) यहोवा ने याकूब से क्यों प्यार किया? (ख) अगर हम भी याकूब की तरह वफादार रहेंगे, तो बदले में हम क्या उम्मीद कर सकते हैं?

5 मलाकी की भविष्यवाणी की शुरूआती आयतों में यहोवा के प्रेम के बारे में साफ बताया गया है। इस किताब की शुरूआत इन शब्दों से होती है: “इस्राएल के विषय में कहा हुआ यहोवा का भारी वचन।” आगे परमेश्‍वर कहता है: “मैं ने तुमसे प्रेम किया है।” उसी आयत में यहोवा एक उदाहरण देकर कहता है: “मैं ने याकूब से प्रेम किया।” याकूब को यहोवा पर पूरा विश्‍वास था। यहोवा ने बाद में याकूब का नाम बदलकर इस्राएल रख दिया और याकूब, इस्राएल जाति का पुरखा बना। यहोवा ने याकूब से इसलिए प्रेम रखा क्योंकि वह एक वफादार इंसान था। इस्राएलियों में जिन लोगों ने याकूब की तरह वफादारी दिखायी उनसे भी यहोवा ने प्रेम रखा।—मलाकी 1:1, 2.

6 अगर हम भी यहोवा से प्रेम करते हैं और उसके लोगों के साथ वफादारी निभाते हैं, तो हम 1 शमूएल 12:22 में बतायी गयी इस बात से हौसला पा सकते हैं: “यहोवा तो अपने बड़े नाम के कारण अपनी प्रजा को न तजेगा।” यहोवा, अपने लोगों से बेहद प्यार करता है और उन्हें प्रतिफल देता है। वह भविष्य में उन्हें अनंत जीवन का वरदान भी देगा। इसलिए हम पढ़ते हैं: “यहोवा पर भरोसा रख, और भला कर; देश में बसा रह, और सच्चाई में मन लगाए रह। यहोवा को अपने सुख का मूल जान, और वह तेरे मनोरथों को पूरा करेगा।” (भजन 37:3, 4) यहोवा से प्यार करने में जो दूसरी बात शामिल है, उसके बारे में मलाकी अध्याय 1 आगे बताता है।

पवित्र वस्तुओं के लिए कदरदानी दिखाइए

7. यहोवा ने एसाव को अप्रिय क्यों जाना?

7 मलाकी 1:2, 3 में, “मैं ने याकूब से प्रेम किया,” यह कहने के बाद यहोवा कहता है: ‘परन्तु एसाव को अप्रिय जाना है।’ यहोवा ऐसा क्यों कहता है? याकूब ने यहोवा की बड़ाई की, मगर उसके जुड़वा भाई, एसाव ने ऐसा नहीं किया। एसाव का दूसरा नाम एदोम भी था। मलाकी 1:4 में एदोम देश को दुष्ट जाति कहा गया है और उसके निवासियों की निंदा की गयी है। एदोम नाम (जिसका मतलब है, “लाल”) एसाव को इसलिए दिया गया था क्योंकि उसने थोड़ी-सी लाल दाल के लिए अपने बहुमूल्य पहिलौठे का हक याकूब को बेच दिया था। उत्पत्ति 25:34 कहता है: “यों एसाव ने अपना पहिलौठे का अधिकार तुच्छ जाना।” उसी तरह प्रेरित पौलुस ने भाई-बहनों से आग्रह किया कि वे सावधान रहें, कहीं “ऐसा न हो, कि कोई जन व्यभिचारी, या एसाव की नाईं अधर्मी हो, जिस ने एक बार के भोजन के बदले अपने पहिलौठे होने का पद बेच डाला।”—इब्रानियों 12:14-16.

8. पौलुस ने एसाव की तुलना एक व्यभिचारी से क्यों की?

8 इन आयतों में पौलुस ने एसाव के व्यवहार की तुलना व्यभिचार के साथ क्यों की? क्योंकि जिस व्यक्‍ति का सोच-विचार एसाव जैसा होगा वह पवित्र वस्तुओं की कदर करने से चूक सकता है। नतीजा यह होगा कि वह व्यभिचार जैसे गंभीर पाप कर सकता है। इसलिए हम अपने आप से ये सवाल पूछ सकते हैं: ‘क्या मैं कभी-कभी कुछ पल की खुशी के लिए या दूसरे शब्दों में कहें तो बस एक कटोरी लाल दाल के लालच में अपनी मसीही विरासत यानी अनंत जीवन का सौदा कर लेता हूँ? क्या कहीं ऐसा तो नहीं कि मैं पवित्र वस्तुओं को तुच्छ समझने लगा हूँ और मुझे इसका एहसास तक नहीं?’ एसाव अपने शरीर की इच्छा पूरी करने के लिए बहुत ही बेसब्र था। उसने याकूब से कहा: ‘जल्दी कर! वह जो लाल वस्तु है, उसमें से मुझे कुछ खिला।’ (उत्पत्ति 25:30, NW) अफसोस कि आज परमेश्‍वर के कुछ सेवकों ने भी ऐसा ही कहा है: “जल्दी कर! भला शादी करने तक रुकने की क्या ज़रूरत है?” वे हर कीमत पर अपनी लैंगिक इच्छाएँ पूरी करना चाहते हैं और ऐसी ख्वाहिश उनके लिए एसाव की कटोरी भर लाल दाल की तरह बन गयी है।

9. हम यहोवा के लिए गहरी श्रद्धा और भय कैसे दिखा सकते हैं?

9 हम अपनी पवित्रता को नष्ट करके, खराई का रास्ता छोड़कर और अपनी आध्यात्मिक विरासत की बेकदरी करके पवित्र वस्तुओं को तुच्छ समझने की गलती कभी न करें। एसाव की तरह बनने के बजाय, आइए हम वफादार याकूब की तरह परमेश्‍वर के लिए गहरी श्रद्धा और भय दिखाएँ और पवित्र वस्तुओं के लिए गहरी कदरदानी दिखाते रहें। हम यह कैसे कर सकते हैं? यहोवा की माँगों को ध्यान से पूरा करने के ज़रिए हम ऐसा कर सकते हैं। यह हमें मलाकी अध्याय 1 में बताए गए तीसरे मुद्दे की ओर ले जाता है। वह मुद्दा क्या है?

यहोवा को अपनी उत्तम-से-उत्तम चीज़ देना

10. याजक, यहोवा की मेज़ की बेकदरी कैसे रहे थे?

10 मलाकी के दिनों में यरूशलेम के मंदिर में सेवा करनेवाले यहूदा के याजक, यहोवा को उत्तम बलिदान नहीं चढ़ा रहे थे। मलाकी 1:6-8 कहता है: “पुत्र पिता का, और दास स्वामी का आदर करता है। यदि मैं पिता हूं, तो मेरा आदर मानना कहां है? और यदि मैं स्वामी हूं, तो मेरा भय मानना कहां? सेनाओं का यहोवा, तुम याजकों से भी जो मेरे नाम का अपमान करते हो यही बात पूछता है।” बदले में याजक यहोवा से पूछते हैं: “हम ने किस बात में तेरे नाम का अपमान किया है?” यहोवा जवाब देता है, “तुम मेरी वेदी पर अशुद्ध भोजन चढ़ाते हो।” याजक फिर पूछते हैं: “हम किस बात में तुझे अशुद्ध ठहराते हैं?” तब यहोवा उन्हें बताता है: ‘इस बात में कि तुम कहते हो, यहोवा की मेज़ तुच्छ है।’ ये दुष्ट याजक जब भी दोषपूर्ण बलिदान चढ़ाते और कहते थे कि “यह बुरा नहीं,” तो यह ज़ाहिर होता था कि उन्हें यहोवा की पवित्र मेज़ की कदर नहीं थी।

11. (क) यहोवा को चढ़ाए गए तुच्छ बलिदानों के बारे में उसने क्या कहा? (ख) आम जनता किस तरह कसूरवार थी?

11 इसलिए अब यहोवा इन तुच्छ बलिदानों के बारे में तर्क करते हुए उनसे पूछता है: “अपने हाकिम के पास ऐसी भेंट ले जाओ; क्या वह तुम से प्रसन्‍न होगा वा तुम पर अनुग्रह करेगा?” बिलकुल नहीं, उनका हाकिम या गवर्नर ऐसे तोहफे से हरगिज़ खुश नहीं होगा। तो फिर, सारे विश्‍व का सम्राट उनके ऐसे तुच्छ बलिदानों को भला कैसे कबूल करेगा! मगर इसमें कसूर सिर्फ याजकों का ही नहीं था। यह सच है कि वे ऐसी बलि चढ़ाकर यहोवा का अपमान कर रहे थे। मगर क्या इसका मतलब यह है कि आम जनता बेकसूर थी? बिलकुल नहीं! आखिर वे ही तो बलि चढ़ाने के लिए अंधे, लंगड़े और बीमार पशुओं को चुनकर याजकों के पास लाया करते थे। सचमुच, कितना घोर पाप!

12. यहोवा को अपनी उत्तम-से-उत्तम चीज़ देने के लिए कौन-सा इंतज़ाम ठहराया गया है?

12 यहोवा को अपनी उत्तम-से-उत्तम चीज़ देकर हम यह दिखाते हैं कि हम उससे सच्चा प्यार करते हैं। (मत्ती 22:37, 38) आज यहोवा का संगठन, मलाकी के दिनों के भटके हुए याजकों की तरह नहीं है। वह हमें बाइबल से ऐसी शिक्षा देता है, जिससे हमें यहोवा की माँगें पूरी करके धन्यवाद के साथ उसकी बड़ाई करने में मदद मिलती है। इससे जुड़ा एक चौथा खास मुद्दा है, जिसे हम मलाकी के पहले अध्याय से मालूम कर सकते हैं।

सच्ची उपासना प्रेम से की जाती है, लालच से नहीं

13. याजकों के किन कामों से पता चलता है कि वे लालची थे?

13 मलाकी के दिनों के याजक स्वार्थी, कठोर और पैसे के लोभी थे। यह हम कैसे जानते हैं? मलाकी 1:10 (NW) कहता है: ‘क्या तुम में से ऐसा कोई है जो मन्दिर के फाटकों को बन्द करता? और तुम बिना कोई कीमत लिए मेरी वेदी पर आग नहीं जलाते। सेनाओं के यहोवा का यह वचन है, मैं तुम से कदापि प्रसन्‍न नहीं हूं, और न तुम्हारे हाथ से भेंट ग्रहण करूंगा।’ जी हाँ, वे याजक इतने लालची थे कि मंदिर के फाटक बंद करने या वेदी पर आग जलाने जैसी छोटी-सी सेवा के लिए भी पैसे माँगते थे! इसलिए ताज्जुब की बात नहीं कि यहोवा ने उनके हाथों से भेंट ग्रहण नहीं की!

14. हम यह क्यों कह सकते हैं कि यहोवा के साक्षियों को लालच नहीं बल्कि प्रेम उकसाता है?

14 प्राचीन यरूशलेम के पापी याजकों के लोभ और स्वार्थ से हमें शायद परमेश्‍वर के वचन में लिखी इस बात की याद आए कि लोभी जन, परमेश्‍वर के राज्य के वारिस नहीं होंगे। (1 कुरिन्थियों 6:9, 10) जब हम इस बात पर विचार करते हैं कि किस तरह याजक अपने मतलब के लिए सेवा करते थे, तो आज यहोवा के साक्षियों के ज़रिए किए जानेवाले प्रचार काम के लिए हमारी कदरदानी और भी बढ़ जाती है। हम अपनी सेवकाई खुशी से करते हैं और इसके लिए कभी पैसे नहीं माँगते। जी हाँ, हम ‘परमेश्‍वर के वचन को अपने लाभ के लिए बेचनेवाले नहीं हैं।’ (2 कुरिन्थियों 2:17, ईज़ी-टू-रीड वर्शन) पौलुस की तरह आज हममें से हर कोई सच्चे दिल से कह सकता है: “मैं ने तुम्हें खुशी से परमेश्‍वर का सुसमाचार सेत मेंत सुनाया।” (2 कुरिन्थियों 11:7, NW) गौर कीजिए कि पौलुस ने ‘खुशी से सुसमाचार सुनाया’ था। इससे हमारा ध्यान मलाकी अध्याय 1 के पाँचवें मुद्दे की तरफ जाता है।

परमेश्‍वर की सेवा रस्मों-रिवाज़ों से भरा कोई बोझ नहीं

15, 16. (क) बलिदान चढ़ाने का काम, याजकों को कैसा लगता था? (ख) यहोवा के साक्षी किस भावना के साथ बलिदान चढ़ाते हैं?

15 प्राचीन यरूशलेम के याजकों में विश्‍वास की कमी थी, इसलिए उन्हें यहोवा को बलिदान चढ़ाने का काम बोझ लगता था। जैसा कि मलाकी 1:13 में बताया गया है, परमेश्‍वर ने उनसे कहा: ‘तुम यह भी कहते हो, कि यह कैसा बड़ा उपद्रव है! तुम ने उस के प्रति नाक-भौं सिकोड़ी।’ उन याजकों ने परमेश्‍वर की पवित्र चीज़ों पर नाक-भौं सिकोड़ी थी यानी उन्हें एकदम तुच्छ समझा। लेकिन आइए हम दिल से यह दुआ माँगें कि हम कभी-भी उनकी तरह न बनें। इसके बजाय, हमारी सोच हमेशा वैसी हो जैसा 1 यूहन्‍ना 5:3 में बताया गया है: “परमेश्‍वर का प्रेम यह है, कि हम उस की आज्ञाओं को मानें; और उस की आज्ञाएं कठिन नहीं।”

16 आइए हम परमेश्‍वर को आत्मिक बलिदान खुशी से चढ़ाएँ और इसे कभी-भी एक बोझ न समझें। बल्कि हम भविष्यवाणी के इन शब्दों को मानें: “[यहोवा] से कह, सब अधर्म दूर कर; अनुग्रह से हम को ग्रहण कर; तब हम धन्यवाद रूपी बलि [“बैल अपने होंठ,” फुटनोट] चढ़ाएंगे।” (होशे 14:2) शब्द, “बैल अपने होंठ” का मतलब आत्मिक बलिदान या ऐसे शब्द हैं जो हम यहोवा की स्तुति में और उसके उद्देश्‍यों के संबंध में बोलते हैं। इब्रानियों 13:15 कहता है: “हम [यीशु मसीह के] द्वारा स्तुतिरूपी बलिदान, अर्थात्‌ उन होठों का फल जो उसके नाम का अंगीकार करते हैं, परमेश्‍वर के लिये सर्वदा चढ़ाया करें।” यह हमारे लिए कितनी खुशी की बात है कि हम अपने आत्मिक बलिदान बस एक रिवाज़ के तौर पर नहीं चढ़ाते बल्कि ये बलिदान इस बात का सबूत है कि हम पूरे दिल से यहोवा को प्यार करते हैं! यह हमें मलाकी अध्याय 1 में दिए गए छठे मुद्दे की ओर ले जाता है।

हरेक को लेखा देना होगा

17, 18. (क) ‘छल’ से काम करनेवालों को यहोवा ने शाप क्यों दिया? (ख) छल से काम करनेवाले कौन-सी बात भूल रहे थे?

17 मलाकी के दिनों में रहनेवाला हर शख्स यहोवा के सामने अपने कामों के लिए ज़िम्मेदार था और आज हमारे बारे में भी यह बात सच है। (रोमियों 14:12; गलतियों 6:5) इसलिए मलाकी 1:14 कहता है: “जिस छली के झुण्ड में [निष्कलंक] नरपशु हो परन्तु वह मन्‍नत मानकर परमेश्‍वर को बर्जा हुआ पशु चढ़ाए, वह शापित है।” जिस आदमी के पास जानवरों का एक झुंड हो, उसके पास सिर्फ एक ही जानवर नहीं होता। या उसके पास एक ही भेड़ नहीं होती मानो बलि के लिए उसके पास और कुछ है ही नहीं। बलिदान के लिए जानवर चुनते समय, ज़रूरी नहीं कि वह एक अंधे, लंगड़े या बीमार जानवर को ही चुने। अगर वह ऐसे रोगी पशु को चुनता भी है, तो इससे यह ज़ाहिर होता कि बलिदान के संबंध में यहोवा के ठहराए गए इंतज़ाम को वह तुच्छ समझता है। क्योंकि जिस आदमी के पास जानवरों का एक झुंड हो, वह बेशक बलिदान के लिए एक अच्छा जानवर चुन सकता है!

18 तो यहोवा ने वाजिब कारण से ही ऐसे व्यक्‍ति को शाप दिया जो छल करता था, यानी अपने पास अच्छा नर जानवर होने के बावजूद, याजक के पास बलिदान के लिए अंधे, लंगड़े या बीमार जानवर को लाता था, वह भी शायद घसीटते हुए। फिर भी इस बात का ज़रा भी संकेत नहीं मिलता कि किसी याजक ने परमेश्‍वर की व्यवस्था का हवाला देते हुए लोगों को समझाया हो कि बीमार पशु बलिदान के लिए स्वीकार नहीं किए जाएँगे। (लैव्यव्यवस्था 22:17-20) हर समझदार व्यक्‍ति इस बात से वाकिफ था कि अगर वह ऐसा तोहफा अपने गवर्नर को भेंट करता मानो वह बहुत कीमती तोहफा दे रहा हो, तो अंजाम कितना बुरा होता। लेकिन अब तो वे एक ऐसे शख्स को ये भेंट दे रहे थे जो किसी गवर्नर से कहीं महान है। मलाकी 1:14 में यूँ बताया गया है: “मैं तो महाराजा हूं, और मेरा नाम अन्यजातियों में भययोग्य है, सेनाओं के यहोवा का यही वचन है।”

19. हम किस दिन को देखने के लिए तरस रहे हैं, और तब तक हमें क्या करते रहने की ज़रूरत है?

19 परमेश्‍वर के वफादार सेवकों के तौर पर, हम उस दिन को देखने के लिए कितने तरस रहे हैं, जब सारा जगत हमारे महान राजा, यहोवा का आदर करेगा। उस वक्‍त, “पृथ्वी यहोवा के ज्ञान से ऐसी भर जाएगी जैसा जल समुद्र में भरा रहता है।” (यशायाह 11:9) उस दिन के आने तक आइए हम यहोवा की माँगों को पूरा करने के लिए अपनी तरफ से हर संभव कोशिश करें और भजनहार की मिसाल पर चलें जिसने कहा: ‘मैं धन्यवाद करते हुए तेरी बड़ाई करूंगा।’ (भजन 69:30) ऐसा करने में हमारी मदद करने के लिए मलाकी और भी कुछ सलाहें देता है जिनसे हमें बहुत फायदा हो सकता है। इसलिए आइए अगले दो लेखों में मलाकी की किताब के बाकी हिस्सों की जाँच करें।

क्या आपको याद है?

• हमें यहोवा की बड़ाई क्यों करनी चाहिए?

• मलाकी के दिनों में, यहोवा ने याजकों के बलिदानों को क्यों ठुकरा दिया?

• हम यहोवा के लिए स्तुतिरूपी बलिदान किस तरह चढ़ाते हैं?

• सच्ची उपासना करने के पीछे हमारा इरादा क्या होना चाहिए?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 9 पर तसवीर]

मलाकी की भविष्यवाणी हमारे दिनों की ओर इशारा करती है

[पेज 10 पर तसवीर]

एसाव ने पवित्र वस्तुओं की कदर नहीं की

[पेज 11 पर तसवीर]

याजक और आम जनता ने तुच्छ बलिदान चढ़ाए

[पेज 12 पर तसवीर]

विश्‍व-भर में यहोवा के साक्षी रुपया-पैसा लिए बिना स्तुतिरूपी बलिदान चढ़ाते हैं