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खराई, सीधे लोगों की अगुवाई करती है

खराई, सीधे लोगों की अगुवाई करती है

खराई, सीधे लोगों की अगुवाई करती है

बाइबल कहती है: “मनुष्य जो स्त्री से उत्पन्‍न होता है, वह थोड़े दिनों का और दुख से भरा रहता है।” (अय्यूब 14:1) सचमुच, ऐसा लगता है जैसे दुःख-तकलीफ झेलना तो इंसान की ज़िंदगी की रीत है। यहाँ तक कि रोज़मर्रा की ज़िंदगी भी ढेर सारी चिंताओं और परेशानियों से भरी रहती है! जब हमारे सामने मुश्‍किल हालात पैदा होते हैं, ऐसे वक्‍त में उनका सामना करने और परमेश्‍वर की नज़रों में धर्मी बने रहने में कौन-सी बात हमारी मदद कर सकती है?

अय्यूब नाम के एक धनवान आदमी के उदाहरण पर ध्यान दीजिए, जो करीब 3,500 साल पहले उस इलाके में रहता था जो आज अरब के नाम से जाना जाता है। परमेश्‍वर का भय माननेवाले इस इंसान पर शैतान ने विपत्तियों का क्या ही कहर ढाया! वह अपने सारे मवेशियों को खो बैठा और मौत ने उसके अज़ीज़ बच्चों को उससे छीन लिया। कुछ ही समय बाद, शैतान ने अय्यूब को सिर से पाँव तक बड़े-बड़े फोड़ों से पीड़ित किया। (अय्यूब, अध्याय 1, 2) अय्यूब इस बात से बिलकुल अनजान था कि उसके साथ ऐसे हादसे क्यों हो रहे हैं। फिर भी “अय्यूब ने अपने मुंह से कोई पाप नहीं किया।” (अय्यूब 2:10) उसने कहा: “जब तक मेरा प्राण न छूटे तब तक मैं अपनी खराई से न हटूंगा।” (अय्यूब 27:5) जी हाँ, अय्यूब की खराई ने परीक्षाओं के दौर में उसकी अगुवाई की।

खराई की यह परिभाषा दी जाती है कि यह नैतिक शुद्धता या सम्पूर्णता है और इसमें परमेश्‍वर की नज़र में निर्दोष और खरा रहना शामिल है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि असिद्ध इंसानों से बातचीत और चालचलन में कभी कोई गलती नहीं होनी चाहिए। ऐसा इसलिए मुमकिन नहीं क्योंकि इंसान, परमेश्‍वर के स्तरों पर पूरी तरह खरा नहीं उतर सकता। इसके बजाय, इंसानों के लिए खराई बनाए रखने का मतलब है, पूरे दिल से यहोवा की भक्‍ति करना, उसकी इच्छा और उसके मकसद को पूरा करना। परमेश्‍वर के लिए ऐसी भक्‍ति की भावना, हर तरह के हालात और हर समय में खरे लोगों की अगुवाई करती है। बाइबल की नीतिवचन की किताब के 11वें अध्याय का पहला भाग दिखाता है कि कैसे हमारी खराई, ज़िंदगी के अलग-अलग दायरों में हमारी अगुवाई कर सकती है और इसकी वजह से हम कौन-सी आशीषें पाने का यकीन रख सकते हैं। तो आइए हम पूरे ध्यान से देखें कि उस अध्याय में क्या लिखा है।

खराई, बिज़नेस में ईमानदार रहने की अगुवाई करती है

प्राचीन इस्राएल का राजा, सुलैमान ईमानदारी के उसूल पर ज़ोर देते हुए उसके बारे में कानूनी भाषा में नहीं बल्कि कविता के रूप में कहता है: “छल के तराजू से यहोवा को घृणा आती है, परन्तु वह पूरे बटखरे से प्रसन्‍न होता है।” (नीतिवचन 11:1) नीतिवचन की किताब के चार में से यह पहला वाकया है जिसमें तराज़ू और बटखरे का ज़िक्र यह बताने के लिए किया गया है कि यहोवा अपने भक्‍तों से बिज़नेस में ईमानदार होने की माँग करता है।—नीतिवचन 16:11; 20:10, 23.

जो लोग छल का तराज़ू इस्तेमाल करते यानी बेईमानी से सौदा करते हैं, उनका फलना-फूलना देखकर शायद हमारा भी मन ललचाए। लेकिन क्या हम बिज़नॆस में बेईमानी करके, सही-गलत के बारे में परमेश्‍वर के ठहराए स्तरों को सचमुच ठुकराना चाहेंगे? अगर खराई हमारी अगुवाई करेगी, तो हम ऐसा हरगिज़ नहीं करना चाहेंगे। हम बेईमानी करने से दूर रहते हैं क्योंकि यहोवा, सच्चे तराज़ू और पूरे बटखरे से खुश होता है, जो ईमानदारी की निशानियाँ हैं।

“नम्र लोगों में बुद्धि होती है”

राजा सुलैमान आगे कहता है: “जब अभिमान होता, तब अपमान भी होता है, परन्तु नम्र लोगों में बुद्धि होती है।” (नीतिवचन 11:2) अभिमान की वजह से एक इंसान चाहे घमंडी हो जाए, कानून तोड़े या फिर जलन रखे, इससे आखिर में उसी का अपमान होता है। दूसरी तरफ, विनम्र होकर अपनी हद में रहना बुद्धिमानी की बात है। बाइबल में दिए गए कुछ उदाहरण इस नीतिवचन की सच्चाई को कितने बढ़िया तरीके से पुख्ता करते हैं!

जलन से भरे एक लेवी, कोरह ने विद्रोही लोगों की एक भीड़ को साथ लेकर यहोवा के ठहराए सेवक मूसा और हारून के अधिकार को ललकारा। उसके अभिमान का क्या अंजाम हुआ? ‘पृथ्वी ने अपना मुंह पसारा’ और उन विद्रोहियों में से कुछ को “निगल लिया” जबकि कोरह और दूसरे लोग आग में भस्म हो गए। (गिनती 16:1-3, 16-35; 26:10; व्यवस्थाविवरण 11:6) कैसा घोर अपमान! उज्जा को भी याद कीजिए। उसने अपनी सीमाओं को लाँघकर, वाचा के संदूक को पकड़ लिया ताकि वह उसे गिरने से बचा सके। उसी घड़ी परमेश्‍वर ने उसे मार डाला। (2 शमूएल 6:3-8) अभिमान से दूर रहना सचमुच कितना ज़रूरी है!

जो इंसान नम्र होता और अपनी हद को पहचानता है, उसे गलती करने पर भी अपमान नहीं सहना पड़ता। अय्यूब, कई बातों में एक अच्छी मिसाल होने के बावजूद, असिद्ध था। उसकी परीक्षाओं ने उसके सोच-विचार में एक बहुत बड़ी कमज़ोरी का खुलासा किया। जो उस पर इलज़ाम लगा रहे थे, उनके सामने खुद की सफाई देते वक्‍त, अय्यूब अपनी भावनाओं पर काबू नहीं रख पाया। उसने ऐसे बात की मानो वह परमेश्‍वर से भी ज़्यादा धर्मी है। (अय्यूब 35:2, 3) तब यहोवा ने अय्यूब की सोच को कैसे सुधारा?

यहोवा ने अय्यूब का ध्यान पृथ्वी, सागर, तारों से भरे आसमान, कुछेक जानवरों और सृष्टि के दूसरे अजूबों की तरफ लाते हुए उसे एक सबक सिखाया कि परमेश्‍वर की महानता के सामने इंसान कितना अदना-सा है। (अय्यूब, अध्याय 38-41) लेकिन यहोवा ने एक बार भी अय्यूब से इस बात का ज़िक्र नहीं किया कि उस पर तकलीफें किस वजह से आयी हैं। उसे बताने की ज़रूरत भी नहीं थी क्योंकि अय्यूब एक नम्र इंसान था। उसने नम्रता से मान लिया कि वह परमेश्‍वर की तुलना में कुछ भी नहीं है, यहोवा धर्मी और शक्‍तिमान है जबकि वह असिद्ध और कमज़ोर था। अय्यूब ने कहा: “मुझे अपने ऊपर घृणा आती है और मैं धूलि और राख में पश्‍चात्ताप करता हूं।” (अय्यूब 42:6) खराई पर चलने की वजह से अय्यूब ने ताड़ना को फौरन कबूल कर लिया। हमारे बारे में क्या? क्या हम भी खराई के रास्ते पर चलेंगे और ज़रूरत पड़ने पर दी जानेवाली ताड़ना को फौरन कबूल करेंगे?

नम्रता की एक और मिसाल है, मूसा। जब वह लोगों की समस्याएँ सुलझाते-सुलझाते पस्त हो रहा था, तो उसके ससुर, यित्रो ने उसे एक कारगर सुझाव दिया। उसने मूसा को बताया कि वह अपनी कुछ ज़िम्मेदारियाँ, दूसरे योग्य पुरुषों को सौंप दे। मूसा ने अपनी सीमा पहचानते हुए उस सुझाव को स्वीकार किया और इस तरह समझदारी दिखायी। (निर्गमन 18:17-26; गिनती 12:3) एक नम्र इंसान दूसरों को अधिकार के पद सौंपने से नहीं हिचकिचाता, न ही उसे डर रहता है कि दूसरे योग्य पुरुषों को उनकी काबिलीयत के मुताबिक कुछ ज़िम्मेदारियाँ सौंपने से वह अपना अधिकार खो बैठेगा। (गिनती 11:16, 17, 26-29) इसके बजाय, ऐसा इंसान आध्यात्मिक बातों में तरक्की करने में दूसरों की मदद करने के लिए हमेशा तैयार रहता है। (1 तीमुथियुस 4:15) क्या हमें भी ऐसा नहीं करना चाहिए?

‘खरे मनुष्य का मार्ग सीधा होता है’

खराई के रास्ते पर चलने का मतलब यह नहीं कि सीधे इंसान पर कभी कोई आफत नहीं आएँगी। यही बात सुलैमान बताता है: “सीधे लोग अपनी खराई से अगुवाई पाते हैं, परन्तु विश्‍वासघाती अपने कपट से विनाश होते हैं।” (नीतिवचन 11:3) खराई का मार्ग सीधे इंसान को मुश्‍किलों के दौर में भी वही काम करना सिखाता है, जो परमेश्‍वर की नज़र में सही है और इससे आगे चलकर उसे फायदे होते हैं। अय्यूब ने जब अपनी खराई तोड़ने से इनकार कर दिया तो यहोवा ने “अय्यूब के पिछले दिनों में उसको अगले दिनों से अधिक आशीष दी।” (अय्यूब 42:12) दूसरी तरफ विश्‍वासघाती शायद सोचें कि वे दूसरों का गला काटकर खुद को फायदा पहुँचा रहे हैं और हो सकता है वे थोड़े समय के लिए सचमुच मालामाल भी होते नज़र आएँ। लेकिन एक-न-एक दिन उनकी यही कपटता उन्हें तबाह कर डालेगी।

बुद्धिमान राजा कहता है: “कोप के दिन धन से तो कुछ लाभ नहीं होता, परन्तु धर्म [“धार्मिकता,” NHT] मृत्यु से भी बचाता है।” (नीतिवचन 11:4) अगर हम धन-दौलत कमाने के लिए खून-पसीना एक कर दें और निजी अध्ययन, प्रार्थना, सभाओं और प्रचार के काम पर बिलकुल ध्यान न दें तो यह कितनी बड़ी मूर्खता होगी। दरअसल उन आध्यात्मिक कामों के ज़रिए ही हम परमेश्‍वर के लिए अपना प्यार गहरा कर सकते हैं और उसके लिए अपनी भक्‍ति और भी बढ़ा सकते हैं! चाहे हम दुनिया-जहान की दौलत समेट लें, मगर यह हमें आनेवाले भारी क्लेश से नहीं बचा सकेगी। (मत्ती 24:21) सिर्फ धार्मिकता से ही सीधे मनुष्य की जान बच सकती है। (प्रकाशितवाक्य 7:9, 14) इसलिए सपन्याह की इस गुज़ारिश को मानना बुद्धिमानी की बात होगी: ‘इस से पहिले कि यहोवा के क्रोध का दिन तुम पर आए, हे पृथ्वी के सब नम्र लोगो, हे यहोवा के नियम के माननेवालो, उसको ढूंढ़ते रहो; धर्म को ढूंढ़ो, नम्रता को ढूंढ़ो।’ (सपन्याह 2:2, 3) यहोवा के उस दिन के आने तक आइए हम ‘अपनी संपत्ति के द्वारा यहोवा का आदर करने’ का लक्ष्य रखें।—नीतिवचन 3:9, NHT.

धार्मिकता के मार्ग पर चलना कितना ज़रूरी है, इस बात पर और ज़ोर देते हुए सुलैमान आगे बताता है कि खरे लोगों और दुष्टों को मिलनेवाले अंजाम में कितना बड़ा फर्क है। वह कहता है: “खरे मनुष्य का मार्ग धर्म के कारण सीधा होता है, परन्तु दुष्ट अपनी दुष्टता के कारण गिर जाता है। सीधे लोगों का बचाव उनके धर्म के कारण होता है, परन्तु विश्‍वासघाती लोग अपनी ही दुष्टता में फंसते हैं। जब दुष्ट मरता, तब उसकी आशा टूट जाती है, और अधर्मी की आशा व्यर्थ होती है। धर्मी विपत्ति से छूट जाता है, परन्तु दुष्ट उसी विपत्ति में पड़ जाता है।” (नीतिवचन 11:5-8) खरा इंसान न तो अपने मार्ग में कभी गिरता है, ना ही वह अपने कामों के कारण फँसता है। वह सीधे मार्ग पर चलता है और इसी वजह से वह विपत्ति से बचता है। कुछ समय के लिए भले ही दुष्ट लोग बड़े ताकतवर नज़र आएँ, मगर वे छुटकारा पाने की उम्मीद कभी नहीं कर सकते।

“नगर के लोग प्रसन्‍न होते हैं”

जिस तरह सीधे लोगों की खराई का लोगों पर असर होता है, उसी तरह दुष्टों की दुष्टता का भी असर पड़ता है। इस्राएल का राजा कहता है: “भक्‍तिहीन जन अपने पड़ोसी को अपने मुंह की बात से बिगाड़ता है, परन्तु धर्मी लोग ज्ञान के द्वारा बचते हैं।” (नीतिवचन 11:9) इस बात को कौन नकार सकता है कि जो दूसरों को बदनाम करते, नुकसानदेह गपशप करते, अश्‍लील बोल-चाल का इस्तेमाल करते और बेफज़ूल की बातें करते हैं, उनसे दूसरों का बुरा होता है? दूसरी तरफ, धर्मी इंसान की बातचीत हमेशा खरी होती है, वह दूसरों की भावनाओं का लिहाज़ करते हुए सोच-समझकर बोलता है। उसका ज्ञान उसे बचाता है क्योंकि अपनी खराई के कारण उसे ऐसे सबूत मिलते हैं जिनसे वह साबित कर सकता है कि उसकी निंदा करनेवाले झूठे हैं।

राजा आगे कहता है: “जब धर्मियों का कल्याण होता है, तब नगर के लोग प्रसन्‍न होते हैं, परन्तु जब दुष्ट नाश होते, तब जयजयकार होता है।” (नीतिवचन 11:10) आम तौर पर धर्मियों से सभी प्यार करते हैं और उनके पड़ोसी उनकी वजह से प्रसन्‍न होते हैं। लेकिन “दुष्ट” लोगों को कोई पसंद नहीं करता और उनकी मौत पर लोग आम तौर पर मातम नहीं मनाते। बेशक, जब यहोवा ‘दुष्ट लोगों को देश में से नाश करेगा और विश्‍वासघातियों को उस में से उखाड़’ डालेगा तब उनके लिए कोई रोना-पीटना नहीं होगा। (नीतिवचन 2:21, 22) इसके बजाय, उनके मिट जाने की वजह से लोग खुशियाँ मनाएँगे। लेकिन हमारे बारे में क्या? हमें खुद पर ध्यान देना अच्छा होगा कि हमारे व्यवहार से दूसरों को खुशी मिलती है या नहीं।

“नगर की बढ़ती होती है”

समाज पर खरे लोगों और दुष्टों का कैसा असर होता है, इसका फर्क और अच्छी तरह समझाते हुए सुलैमान कहता है: “सीधे लोगों के आशीर्वाद से नगर की बढ़ती होती है, परन्तु दुष्टों के मुंह की बात से वह ढाया जाता है।”—नीतिवचन 11:11.

नगर के जो लोग सीधे मार्ग पर चलते हैं, उनसे समाज में शांति और खुशहाली बढ़ती है और वे दूसरों को भी अच्छा इंसान बनने का बढ़ावा देते हैं। इस तरह नगर में बढ़ती होती है, वह समृद्ध होता जाता है। लेकिन जो लोग दूसरों को बदनाम करते और उनको चोट पहुँचानेवाली और गलत बातें करते हैं, उनसे नगर में कोलाहल मच जाता है, समस्याएँ, फूट और तकलीफें पैदा होती हैं। यह खासकर तब होता है जब ऊँची पदवी रखनेवाले ऐसी बातें करते हैं। तब पूरे नगर में गड़बड़ी और भ्रष्टाचार फैल जाता है, चालचलन गिर जाता है, यहाँ तक कि वह नगर बदहाल हो सकता है।

नीतिवचन 11:11 में दिया गया सिद्धांत, यहोवा के लोगों पर भी उतने ही ज़बरदस्त ढंग से लागू होता है क्योंकि वे भी नगर समान कलीसियाओं में एक-दूसरे के साथ संगति करते हैं। जिस कलीसिया के लोग आध्यात्मिक बातों पर मन लगानेवाले होते हैं यानी जो खराई के मार्ग पर चलनेवाले सीधे इंसान होते हैं, वे हमेशा खुशहाल, जोशीले और मददगार होते हैं और परमेश्‍वर की महिमा करते हैं। ऐसी कलीसिया पर यहोवा आशीष देता है, इसलिए वह आध्यात्मिक रूप से फलती-फूलती है। कलीसिया में शायद एकाध लोग ऐसे भी हों जो कलीसिया के इंतज़ामों से कभी-कभी नाखुश होते, कुड़कुड़ाते, उनकी नुक्‍ताचीनी करते और उनके बारे में कड़वी बातें बोलते हों। वे “कड़वी जड़” की तरह होते हैं जो दूर-दूर तक फैल जाती है। इसलिए वे अच्छे लोगों को भी अपनी ज़हरीली जकड़ में ले लेते हैं। (इब्रानियों 12:15) ऐसे लोग अकसर कलीसिया में अधिकार और बड़ा नाम पाने की ख्वाहिश रखते हैं। वे शायद कलीसिया के लोगों या प्राचीनों के बारे में अफवाहें फैलाएँ कि वे नाइंसाफी कर रहे हैं, जाति को लेकर भेद-भाव कर रहे हैं या ऐसे दूसरे गलत काम कर रहे हैं। उनके मुँह यानी उनकी बातों से सचमुच कलीसिया में फूट पैदा हो सकती है। तो क्या हमें उनकी बातों से कान नहीं फेर लेना चाहिए और ऐसे आध्यात्मिक लोग नहीं बनना चाहिए जो कलीसिया की शांति और एकता को बढ़ावा देते हैं?

सुलैमान आगे कहता है: “जो अपने पड़ोसी को तुच्छ जानता है, वह निर्बुद्धि है, परन्तु समझदार पुरुष चुपचाप रहता है। जो लुतराई करता फिरता वह भेद प्रगट करता है, परन्तु विश्‍वासयोग्य मनुष्य बात को छिपा रखता है।”नीतिवचन 11:12, 13.

सचमुच, जो “निर्बुद्धि” है यानी परख-शक्‍ति नहीं रखता, वह दूसरों को कितनी तकलीफ पहुँचा सकता है! वह अपनी ज़बान पर लगाम नहीं लगाता इसलिए वह दूसरों की निंदा करने और उनके बारे में खरी-खोटी सुनाने से भी नहीं हिचकिचाता। कलीसिया में ऐसी बुराई फैलने से रोकने के लिए प्राचीनों को फौरन कदम उठाना चाहिए। लेकिन परख-शक्‍ति रखनेवाला मनुष्य, “निर्बुद्धि” से बिलकुल अलग होता है, वह जानता है कि चुप रहने का समय कौन-सा है। वह विश्‍वासघात करने के बजाय, बात को छिपाकर रखता है। परख-शक्‍ति रखनेवाला जानता है कि अगर जीभ को वश में न किया जाए, तो वह एक चिंगारी की तरह ज्वाला भड़का सकती है, इसलिए वह “विश्‍वासयोग्य” होता है। वह अपने भाई-बहनों का वफादार रहता और उन गुप्त बातों का भेद नहीं खोलता जिनसे उन्हें खतरा हो सकता है। खराई के रास्ते पर चलनेवाले ऐसे लोग कलीसिया के लिए कितनी बड़ी आशीष हैं!

खरे लोगों के मार्ग पर चलने में हमारी मदद करने के लिए यहोवा “विश्‍वासयोग्य और बुद्धिमान दास” के ज़रिए हमें बहुतायत में आध्यात्मिक भोजन देता है। (मत्ती 24:45) इसके अलावा, हमारी नगर समान कलीसियाओं के मसीही प्राचीन भी निजी तौर पर हमारी मदद करते हैं। (इफिसियों 4:11-13) हम वाकई इस मदद के लिए एहसानमंद हैं क्योंकि “जहां बुद्धि की युक्‍ति नहीं, वहां प्रजा विपत्ति में पड़ती है; परन्तु सम्मति देनेवालों की बहुतायत के कारण बचाव होता है।” (नीतिवचन 11:14) इसलिए आइए हम ठान लें कि चाहे जो भी हो जाए, हम ‘खराई से चलते रहेंगे।’—भजन 26:1.

[पेज 26 पर बड़े अक्षरों में लेख की खास बात]

धन-दौलत के पीछे भागकर, आध्यात्मिक कामों को नज़रअंदाज़ कर देना कितनी बड़ी मूर्खता है!

[पेज 24 पर तसवीरें]

अय्यूब, खराई के मार्ग पर चला इसलिए यहोवा ने उसे आशीष दी

[पेज 25 पर तसवीर]

अपनी सीमाओं को लाँघने की वजह से उज्जा को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा