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यहोवा की निरंतर प्रेम-कृपा से लाभ पाना

यहोवा की निरंतर प्रेम-कृपा से लाभ पाना

यहोवा की निरंतर प्रेम-कृपा से लाभ पाना

“जो कोई बुद्धिमान हो, वह . . . यहोवा की करुणा [“निरंतर प्रेम-कृपा,” NW] के कामों पर ध्यान करेगा।”भजन 107:43.

1. न्यू वर्ल्ड ट्रांस्लेशन में शब्द “निरंतर प्रेम-कृपा” का सबसे पहला ज़िक्र कहाँ मिलता है, और इस गुण से जुड़े किन सवालों पर हम गौर करेंगे?

 लगभग 4,000 साल पहले, इब्राहीम के भतीजे, लूत ने यहोवा के बारे में कहा: “तू ने इस में बड़ी कृपा [“निरंतर प्रेम-कृपा,” NW] दिखाई।” (उत्पत्ति 19:19) न्यू वर्ल्ड ट्रांस्लेशन ऑफ द होली स्क्रिप्चर्स में यहाँ इस आयत में पहली बार शब्द, “निरंतर प्रेम-कृपा” का ज़िक्र मिलता है और पूरी बाइबल में यह शब्द लगभग 250 बार आता है। मगर हमारी हिंदी बाइबल में इस शब्द का अनुवाद इस तरह किया गया है: “दया,” “करुणा,” “कृपा,” “प्रीति” और “भलाई करना।” याकूब, नाओमी, दाऊद और यहोवा के दूसरे सेवकों ने भी उसके इस गुण के बारे में बताया। (उत्पत्ति 32:10; रूत 1:8; 2 शमूएल 2:6) मगर यहोवा की निरंतर प्रेम-कृपा क्या है? बीते समयों में उसके इस गुण से किन लोगों को लाभ पहुँचा? और आज इस गुण से हम कैसे लाभ पा सकते हैं?

2. जिस इब्रानी शब्द का अनुवाद “निरंतर प्रेम-कृपा” किया गया है, उसकी परिभाषा देना इतना मुश्‍किल क्यों है, और कभी-कभी “निरंतर प्रेम-कृपा” के लिए कौन-सा दूसरा शब्द इस्तेमाल किया जाता है?

2 न्यू वर्ल्ड ट्रांस्लेशन में, जिस इब्रानी शब्द का अनुवाद “निरंतर प्रेम-कृपा” किया गया है, उसमें इतना गहरा अर्थ छिपा है कि ज़्यादातर भाषाओं में किसी एक शब्द से उसका पूरा-पूरा अर्थ देना मुश्‍किल है। इसलिए “प्रीति,” “दया” और “वफादारी” जैसे शब्द इस इब्रानी शब्द का सही और पूरा मतलब नहीं दे पाते। मगर, “निरंतर प्रेम-कृपा” ये शब्द उस इब्रानी शब्द का करीब-करीब सही और पूरा अर्थ देते हैं। न्यू वर्ल्ड ट्रांस्लेशन ऑफ द होली स्क्रिप्चर्स—विद रॆफ्रॆंसेज़ में उस इब्रानी शब्द का अनुवाद, “निरंतर प्रेम-कृपा” की जगह कभी-कभी “सच्चा प्रेम” भी इस्तेमाल किया जाता है, जो उस शब्द का एक और सही मतलब है।—निर्गमन 15:13; भजन 5:7, NW, फुटनोट।

प्रेम और वफादारी से अलग

3. निरंतर प्रेम-कृपा और प्रेम में क्या फर्क है?

3 निरंतर प्रेम-कृपा या सच्चा प्रेम दिखाने के लिए, प्रेम और वफादारी जैसे गुण होना बेहद ज़रूरी है। मगर निरंतर प्रेम-कृपा, इन दोनों गुणों से काफी अलग है। आइए पहले देखें कि निरंतर प्रेम-कृपा और प्रेम में क्या फर्क है। प्रेम, वस्तुओं और धारणाओं के लिए भी दिखाया जा सकता है। बाइबल इसके कुछ उदाहरण देती है, जैसे ‘दाखमधु पीने और तेल लगाने से प्रीति रखना’ और ‘बुद्धि से प्रीति रखना।’ (नीतिवचन 21:17; 29:3) मगर निरंतर प्रेम-कृपा लोगों को दिखायी जाती है, धारणाओं या बेजान वस्तुओं को नहीं। मसलन, निर्गमन 20:6 में, यहोवा लोगों के बारे में कहता है कि वह ‘हज़ारों पर करुणा [“निरंतर प्रेम-कृपा,” NW] किया करता है।’

4. निरंतर प्रेम-कृपा और वफादारी में क्या फर्क है?

4 इतना ही नहीं, जिस इब्रानी शब्द का अनुवाद “निरंतर प्रेम-कृपा” किया गया वह “वफादारी” शब्द से भी गहरा अर्थ रखता है। कुछ भाषाओं में, “वफादारी” शब्द एक सेवक के अपने मालिक से लगाव के लिए इस्तेमाल होता है। मगर एक खोजकर्ता का कहना है कि बाइबल में निरंतर प्रेम-कृपा के मामले में “अकसर यह रिश्‍ता बिलकुल उलटा होता है: जो ताकतवर है वह कमज़ोर, ज़रूरतमंद और उस पर निर्भर रहनेवाले का वफादार होता है।” तभी तो राजा दाऊद ने यहोवा से बिनती की: “अपने दास पर अपने मुंह का प्रकाश चमका; अपनी करुणा [“निरंतर प्रेम-कृपा,” NW] से मेरा उद्धार कर।” (भजन 31:16) जी हाँ, ज़रूरतमंद दाऊद, शक्‍तिशाली यहोवा से गुज़ारिश कर रहा था कि वह उसे निरंतर प्रेम-कृपा या सच्चा प्रेम दिखाए। ऐसे हालात में ताकतवर व्यक्‍ति मजबूरी में नहीं बल्कि खुशी-खुशी निरंतर प्रेम-कृपा दिखाता है, क्योंकि जो ज़रूरतमंद है उसका ताकतवर पर कोई बस नहीं चलता।

5. (क) परमेश्‍वर के वचन में उसकी निरंतर प्रेम-कृपा के किन पहलुओं पर ज़ोर दिया गया है? (ख) हम यहोवा की निरंतर प्रेम-कृपा के ज़ाहिर होने के बारे में क्या जानेंगे?

5 भजनहार ने कहा कि ‘जो कोई बुद्धिमान है, वह यहोवा की करुणा [“निरंतर प्रेम-कृपा,” NW] के कामों पर ध्यान करेगा।’ (भजन 107:43) यहोवा की निरंतर प्रेम-कृपा की वजह से हमारा उद्धार हो सकता है और हम जीते रह सकते हैं। (भजन 6:4; 119:88, 159) इससे हमारी हिफाज़त भी होती है और परेशानियों से राहत दिलाने में इस गुण का बहुत बड़ा हाथ है। (भजन 31:16, 21; 40:11; 143:12) इस गुण की वजह से, पापों की माफी पाना मुमकिन हुआ है। (भजन 25:7) आइए हम बाइबल में दी गयी कुछ कहानियों और आयतों पर गौर करें। इनसे हम यह जान पाएँगे कि यहोवा की निरंतर प्रेम-कृपा (1) उसके कुछ खास कामों से ज़ाहिर होती है और इस गुण से (2) उसके वफादार सेवकों को लाभ पहुँचता है।

उद्धार से निरंतर प्रेम-कृपा ज़ाहिर की गयी

6, 7. (क) यहोवा ने लूत को निरंतर प्रेम-कृपा कैसे दिखायी? (ख) लूत ने यहोवा की निरंतर प्रेम-कृपा का ज़िक्र कब किया?

6 यहोवा, निरंतर प्रेम-कृपा दिखाते हुए इंसान के लिए क्या-कुछ कर सकता है यह समझने का शायद सबसे बढ़िया तरीका है, बाइबल की कुछ कहानियों को पढ़ना जिनमें इस गुण का ज़िक्र किया गया है। उत्पत्ति 14:1-16 में, हमें इब्राहीम के भतीजे, लूत की कहानी मिलती है। दुश्‍मन की सेनाएँ लूत को बंदी बनाकर ले गयी थीं। लेकिन इब्राहीम ने उसे उन दुश्‍मनों से बचाया। लूत की जान एक और बार खतरे में पड़ी जब यहोवा ने फैसला किया कि वह दुष्टता से भरे सदोम नगर का नाश कर देगा जिसमें लूत और उसका परिवार रहता था।—उत्पत्ति 18:20-22; 19:12, 13.

7 मगर सदोम को नाश करने से पहले, यहोवा के स्वर्गदूत लूत और उसके परिवार को शहर के बाहर ले गए। तभी लूत ने कहा: “तेरे दास पर तेरी अनुग्रह की दृष्टि हुई है, और तू ने इस में बड़ी कृपा [“निरंतर प्रेम-कृपा,” NW] दिखाई, कि मेरे प्राण को बचाया है।” (उत्पत्ति 19:16, 19) यह कहकर लूत ने कबूल किया कि यहोवा ने उसकी जान बचाकर उसे अनोखे तरीके से निरंतर प्रेम-कृपा दिखायी। लूत के मामले में परमेश्‍वर ने उसका उद्धार करके और उसकी जान बचाकर निरंतर प्रेम-कृपा ज़ाहिर की।—2 पतरस 2:7.

यहोवा की निरंतर प्रेम-कृपा और उसकी अगुवाई

8, 9. (क) इब्राहीम के सेवक को क्या काम सौंपा गया था? (ख) सेवक ने परमेश्‍वर से निरंतर प्रेम-कृपा दिखाने की बिनती क्यों की और जब वह प्रार्थना कर ही रहा था तो क्या हुआ?

8 उत्पत्ति अध्याय 24 में, हमें परमेश्‍वर की निरंतर प्रेम-कृपा या सच्चा प्रेम ज़ाहिर करने का एक और तरीका नज़र आता है। इस कहानी में, इब्राहीम अपने सेवक को अपने रिश्‍तेदारों के देश भेजता है ताकि वह उसके बेटे इसहाक के लिए एक पत्नी ढूँढ़ सके। (आयतें 2-4) यह काम आसान नहीं था, मगर उसके सेवक को यह भरोसा दिलाया गया था कि यहोवा का स्वर्गदूत उसकी अगुवाई करेगा। (आयत 7) आखिरकार वह “नाहोर के नगर” (हारान में या उसके आस-पास की किसी जगह) के बाहर एक कुएँ के पास पहुँचा। उसी वक्‍त वहाँ कुछ स्त्रियाँ पानी भरने के लिए कुएँ पर आयीं। (आयतें 10 और 11) उन स्त्रियों को आते देख उसे एहसास हो गया कि जिस काम के लिए वह निकला था, उसे पूरा करने की अहम घड़ी आ पहुँची है। मगर उसे कैसे पता चलेगा कि उनमें से कौन इसहाक के लिए एक अच्छी पत्नी होगी?

9 इब्राहीम के सेवक को इस बात का एहसास था कि सिर्फ यहोवा ही उसकी मदद कर सकता है, इसलिए उसने प्रार्थना की: “हे मेरे स्वामी इब्राहीम के परमेश्‍वर, यहोवा, आज मेरे कार्य को सिद्ध कर, और मेरे स्वामी इब्राहीम पर करुणा [“निरंतर प्रेम-कृपा,” NW] कर।” (आयत 12) यहोवा अपनी निरंतर प्रेम-कृपा कैसे ज़ाहिर करेगा? सेवक ने यहोवा से एक खास चिन्ह माँगा जिससे वह पहचान पाए कि परमेश्‍वर ने किस लड़की को चुना है। (आयतें 13, 14) एक लड़की ने ठीक-ठीक वही किया जो सेवक ने यहोवा से माँगा था। ऐसे लगा मानो लड़की ने सेवक की प्रार्थना की एक-एक बात सुन ली थी! (आयतें 15-20) वह सेवक हक्का-बक्का रह गया और ‘उसकी ओर ताकता हुआ सोचता रहा।’ उसे अभी-भी कुछ ज़रूरी बातों का पता लगाना था जैसे कि क्या यह खूबसूरत लड़की इब्राहीम की कोई रिश्‍तेदार है? और क्या वह अभी-भी कुँवारी है? इसलिए वह सेवक ‘चुपचाप रहा, यह जानने के लिए कि यहोवा ने मेरी यात्रा को सुफल किया है कि नहीं।’—आयतें 16, 21.

10. इब्राहीम के सेवक ने यह क्यों कहा कि यहोवा ने उसके स्वामी को निरंतर प्रेम-कृपा दिखायी है?

10 फिर इसके कुछ देर बाद, इस लड़की ने सेवक को बताया कि वह “नाहोर [इब्राहीम के भाई] के जन्माए मिल्का के पुत्र बतूएल की बेटी” है। (उत्पत्ति 11:26; 24:24) तभी वह सेवक जान गया कि यहोवा ने उसकी प्रार्थना सुन ली है। श्रद्धा से भरकर उसने यहोवा को दंडवत्‌ करते हुए कहा: “धन्य है मेरे स्वामी इब्राहीम का परमेश्‍वर यहोवा, कि उस ने अपनी करुणा [“निरंतर प्रेम-कृपा,” NW] और सच्चाई को मेरे स्वामी पर से हटा नहीं लिया: यहोवा ने मुझ को ठीक मार्ग पर चलाकर मेरे स्वामी के भाईबन्धुओं के घर पर पहुंचा दिया है।” (आयत 27) इब्राहीम के सेवक की अगुवाई करके, परमेश्‍वर ने इब्राहीम को निरंतर प्रेम-कृपा दिखायी।

परमेश्‍वर की निरंतर प्रेम-कृपा से चैन मिलता है और हिफाज़त होती है

11, 12. (क) यहोवा ने यूसुफ की किन आज़माइशों के दौरान उसे निरंतर प्रेम-कृपा दिखायी? (ख) परमेश्‍वर ने यूसुफ के लिए निरंतर प्रेम-कृपा कैसे ज़ाहिर की?

11 आइए अब हम उत्पत्ति अध्याय 39 पर एक नज़र डालें। इस अध्याय में खासकर इब्राहीम के पर-पोते यूसुफ के बारे में बताया गया है। उसे गुलामी करने के लिए मिस्र में बेच दिया गया था, फिर भी वह अकेला नहीं था, क्योंकि “यहोवा उसके संग था।” (आयतें 1, 2) और यही बात उसके मिस्री स्वामी, पोतीपर ने भी कबूल की कि यहोवा वाकई यूसुफ के संग था। (आयत 3) मगर, यूसुफ को एक बड़ी आज़माइश से गुज़रना पड़ा। पोतीपर की पत्नी ने यूसुफ पर झूठा इलज़ाम लगाया कि उसने उसका बलात्कार करने की कोशिश की। और इसलिए उसे बंदीगृह में डाल दिया गया। (आयतें 7-20) जब वह “कारागार में” था तो “लोगों ने उसके पैरों में बेड़ियां डालकर उसे दु:ख दिया; वह लोहे की सांकलों से जकड़ा गया।”—उत्पत्ति 40:15; भजन 105:18.

12 मगर क्या यहोवा ने इस कड़ी आज़माइश के दौरान यूसुफ को त्याग दिया था? बिलकुल नहीं, बल्कि “यहोवा यूसुफ के संग संग रहा, और उस पर करुणा [“निरंतर प्रेम-कृपा,” NW] की।” (आयत 21क) फिर यहोवा ने निरंतर प्रेम-कृपा दिखाते हुए उसकी खातिर ऐसा काम किया कि घटनाओं का एक सिलसिला शुरू हुआ और आखिरकार यूसुफ को अपने सारे दुःखों से छुटकारा मिला। यहोवा की बदौलत “बन्दीगृह के दारोगा के अनुग्रह की दृष्टि उस पर हुई।” (आयत 21ख) नतीजा यह हुआ कि दारोगा ने यूसुफ को एक ज़िम्मेदारी का पद सौंपा। (आयत 22) इसके बाद, यूसुफ की मुलाकात एक ऐसे आदमी से हुई जिसने आगे जाकर मिस्र के राजा, फिरौन को उसके बारे में बताया। (उत्पत्ति 40:1-4, 9-15; 41:9-14) फिर राजा ने उसे अपने अधीन मिस्र का दूसरा शासक बना दिया। इस बड़े ओहदे पर रहते हुए, यूसुफ ने एक ऐसा काम किया जिससे मिस्र में अकाल पड़ने पर लोगों की जान बची। (उत्पत्ति 41:37-55) यूसुफ ने 17 साल की उम्र से कितने दुःख झेले और उसके दुःखों का सिलसिला 12 से भी ज़्यादा साल तक चलता रहा! (उत्पत्ति 37:2, 4; 41:46) मगर दुःख और पीड़ा से भरे उन सालों के दौरान भी, यहोवा परमेश्‍वर ने यूसुफ को पूरी तरह से तबाह होने नहीं दिया और उसे बचाए रखा ताकि वह परमेश्‍वर का मकसद पूरा करने में एक अहम भूमिका निभा सके। इस तरह यहोवा ने यूसुफ के लिए निरंतर प्रेम-कृपा दिखायी।

परमेश्‍वर की निरंतर प्रेम-कृपा कभी नहीं टलती

13. (क) भजन 136 में यहोवा की निरंतर प्रेम-कृपा के किन कामों का ज़िक्र मिलता है? (ख) निरंतर प्रेम-कृपा असल में क्या है?

13 यहोवा ने इस्राएल जाति को निरंतर प्रेम-कृपा दिखायी। भजन 136 बताता है कि अपने इसी गुण की वजह से यहोवा ने अपनी जाति का उद्धार किया (आयतें 10-15), उसकी अगुवाई की (आयत 16) और उसकी हिफाज़त की। (आयतें 17-20) परमेश्‍वर ने न सिर्फ पूरी जाति को बल्कि अपने कुछ लोगों को भी निरंतर प्रेम-कृपा दिखायी। जब एक इंसान दूसरे इंसान को निरंतर प्रेम-कृपा दिखाता है तो वह अपनी खुशी से और उस व्यक्‍ति की किसी खास ज़रूरत को पूरा करने के लिए काम करता है। निरंतर प्रेम-कृपा के बारे में बाइबल का एक संदर्भ-लेख कहता है: “यह ऐसा काम है जो दूसरों की ज़िंदगी बचाता और उसे खुशहाल बनाता है। यह मुसीबत में पड़े और दुःखी लोगों की मदद करता है।” एक विद्वान के मुताबिक यह “ऐसा प्यार है जो कामों से दिखाया जाता है।”

14, 15. हम यकीन के साथ क्यों कह सकते हैं कि लूत पर परमेश्‍वर का अनुग्रह था?

14 हमने अभी-अभी उत्पत्ति की किताब से जिन कहानियों पर गौर किया, उनसे पता चलता है कि जो यहोवा से प्यार करते हैं, उनके लिए उसकी निरंतर प्रेम-कृपा कभी नहीं टलती। लूत, इब्राहीम और यूसुफ के हालात एक-जैसे नहीं थे और ना ही उनकी परीक्षाएँ एक-जैसी थीं। वे असिद्ध इंसान थे, मगर फिर भी उन पर यहोवा का अनुग्रह था और उन्हें परमेश्‍वर की मदद की ज़रूरत थी। आज हम भी इस बात से तसल्ली पा सकते हैं कि स्वर्ग में रहनेवाला हमारा प्यारा पिता ऐसे लोगों को निरंतर प्रेम-कृपा दिखाता है जो इब्राहीम, लूत और यूसुफ जैसा रवैया रखते हैं।

15 लूत के फैसले हमेशा सही नहीं थे, उसने कुछ ऐसे फैसले भी किए जिनकी वजह से उसे मुसीबतों का सामना करना पड़ा। (उत्पत्ति 13:12, 13; 14:11, 12) मगर उसमें कई अच्छे गुण भी थे। जब परमेश्‍वर के दो स्वर्गदूत सदोम आए, तो लूत ने उनकी खातिरदारी की। (उत्पत्ति 19:1-3) उसने परमेश्‍वर पर विश्‍वास दिखाते हुए अपने दामादों को सदोम पर आनेवाले नाश के बारे में चेतावनी दी। (उत्पत्ति 19:14) लूत के बारे में परमेश्‍वर की क्या राय थी, यह हम 2 पतरस 2:7-9 में पढ़ सकते हैं: “[यहोवा ने] धर्मी लूत को जो अधर्मियों के अशुद्ध चालचलन से बहुत दुखी था छुटकारा दिया। (क्योंकि वह धर्मी उन के बीच में रहते हुए, और उन के अधर्म के कामों को देख देखकर, और सुन सुनकर, हर दिन अपने सच्चे मन को पीड़ित करता था)। तो प्रभु भक्‍तों को परीक्षा में से निकाल लेना . . . भी जानता है।” जी हाँ, लूत एक धर्मी इंसान था और इन आयतों से पता चलता है कि वह परमेश्‍वर का सच्चा भक्‍त था। अगर हम भी लूत की तरह “पवित्र चालचलन और भक्‍ति में” चलते रहेंगे तो हमें भी परमेश्‍वर की निरंतर प्रेम-कृपा से लाभ होगा।—2 पतरस 3:11, 12.

16. बाइबल, इब्राहीम और यूसुफ की तारीफ में क्या कहती है?

16 उत्पत्ति अध्याय 24 की कहानी से हमें साफ पता चलता है कि इब्राहीम और यहोवा के बीच कितना अटूट रिश्‍ता था। इस अध्याय की पहली आयत कहती है कि “यहोवा ने सब बातों में [इब्राहीम को] आशीष दी थी।” इब्राहीम के सेवक ने यहोवा को “मेरे स्वामी इब्राहीम का परमेश्‍वर” कहा। (आयतें 12, 27) और शिष्य याकूब ने कहा कि इब्राहीम को ‘धर्मी ठहराया’ (NHT) गया था और “वह परमेश्‍वर का मित्र कहलाया।” (याकूब 2:21-23) यूसुफ के मामले में भी यह बात सच थी। उत्पत्ति अध्याय 39 के पूरे अध्याय में यह खुलकर दिखाया गया है कि यहोवा के साथ उसका कैसे मज़बूत रिश्‍ता था। (आयतें 2, 3, 21, 23) उसके बारे में तो शिष्य स्तिफनुस ने कहा: “परमेश्‍वर उसके साथ था।”—प्रेरितों 7:9.

17. लूत, इब्राहीम और यूसुफ के उदाहरणों से हम क्या सीख सकते हैं?

17 परमेश्‍वर की निरंतर प्रेम-कृपा से लाभ पानेवाले जिन लोगों के बारे में हमने अभी चर्चा की है, वे ऐसे जन थे जिनका यहोवा परमेश्‍वर के साथ एक मज़बूत रिश्‍ता था और जिन्होंने अलग-अलग तरीकों से परमेश्‍वर के मकसद को पूरा किया। उनके रास्ते में ऐसी-ऐसी मुश्‍किलें आयीं जिन्हें पार करना उनके बस की बात नहीं थी। लूत की जान खतरे में थी, इब्राहीम के वंश का आगे बढ़ने के आसार नज़र नहीं आ रहे थे और यूसुफ को ऐसे ओहदे पर लाना था जिससे वह अपना काम पूरा कर सके। सिर्फ यहोवा ही इन भक्‍तों की मदद करके उनकी ज़रूरतें पूरी कर सकता था। और उसने ठीक ऐसा ही किया, और उनकी खातिर निरंतर प्रेम-कृपा के काम किए। अगर हम भी यहोवा परमेश्‍वर की निरंतर प्रेम-कृपा पाना चाहते हैं, तो हमें भी उसके साथ एक करीबी रिश्‍ता कायम करना होगा और उसकी इच्छा को पूरा करते रहना होगा।—एज्रा 7:28; भजन 18:50.

परमेश्‍वर के सेवकों पर उसका अनुग्रह है

18. बाइबल की अलग-अलग आयतें हमें यहोवा की निरंतर प्रेम-कृपा के बारे में क्या बताती हैं?

18 यहोवा की निरंतर प्रेम-कृपा “पृथ्वी में भरी हुई है” और परमेश्‍वर के इस गुण के लिए हम कितने आभारी है! (भजन 119:64) हम भजनहार की इस टेक का पूरे दिल से जवाब देते हैं: “लोग यहोवा की करुणा [“निरंतर प्रेम-कृपा,” NW] के कारण, और उन आश्‍चर्यकर्मों के कारण, जो वह मनुष्यों के लिये करता है, उसका धन्यवाद करें!” (भजन 107:8, 15, 21, 31) हमें वाकई खुशी होती है कि जिन सेवकों पर यहोवा का अनुग्रह है, उन्हें वह या तो निजी तौर पर या एक समूह के तौर पर अपनी निरंतर प्रेम-कृपा दिखाता है। भविष्यवक्‍ता दानिय्येल ने यहोवा से यह प्रार्थना की: “प्रभु, तू महान्‌ और भययोग्य परमेश्‍वर है, जो अपने प्रेम रखने और आज्ञा माननेवालों के साथ अपनी वाचा को पूरा करता और करुणा [“निरंतर प्रेम-कृपा,” NW] करता रहता है।” (दानिय्येल 9:4) राजा दाऊद ने भी प्रार्थना की: “अपने जाननेवालों पर करुणा [“निरंतर प्रेम-कृपा,” NW] करता रह।” (भजन 36:10) हम यहोवा के कितने एहसानमंद हैं कि वह अपने सेवकों को निरंतर प्रेम-कृपा दिखाता है!—1 राजा 8:23; 1 इतिहास 17:13.

19. अगले लेख में हम किन सवालों पर चर्चा करेंगे?

19 यहोवा के लोग होने के नाते हम पर सचमुच उसका अनुग्रह है! परमेश्‍वर पूरी मानवजाति के लिए प्यार दिखाता है और इससे हमें भी फायदा होता है। इसके अलावा, परमेश्‍वर के सेवक होने के नाते हमें स्वर्ग में रहनेवाले अपने पिता की निरंतर प्रेम-कृपा या सच्चे प्रेम की वजह से खास आशीषें भी मिलती हैं। (यूहन्‍ना 3:16) खासकर ज़रूरत की घड़ी में हमें यहोवा के इस अनमोल गुण से लाभ होता है। (भजन 36:7) मगर हम निरंतर प्रेम-कृपा दिखाने में यहोवा परमेश्‍वर जैसे कैसे बन सकते हैं? क्या हममें से हरेक यह अनोखा गुण ज़ाहिर करता है? अगले लेख में ऐसे ही सवालों पर चर्चा की जाएगी।

क्या आपको याद है?

• बाइबल में “निरंतर प्रेम-कृपा” के लिए दूसरा शब्द क्या है?

• निरंतर प्रेम-कृपा, प्रेम और वफादारी से किस तरह अलग है?

• यहोवा ने लूत, इब्राहीम और यूसुफ को निरंतर प्रेम-कृपा कैसे दिखायी?

• यहोवा ने बीते समय में जिस तरीके से निरंतर प्रेम-कृपा दिखायी, उससे हमें क्या भरोसा मिलता है?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 13 पर तसवीर]

क्या आप जानते हैं कि परमेश्‍वर ने लूत को कैसे निरंतर प्रेम-कृपा दिखायी?

[पेज 15 पर तसवीरें]

यहोवा ने निरंतर प्रेम-कृपा दिखाते हुए, इब्राहीम के सेवक की अगुवाई की

[पेज 16 पर तसवीरें]

यहोवा ने यूसुफ की हिफाज़त करके निरंतर प्रेम-कृपा ज़ाहिर की