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कसूर किसका है—आपका या आपके जीन्स का?

कसूर किसका है—आपका या आपके जीन्स का?

कसूर किसका है—आपका या आपके जीन्स का?

वैज्ञानिक यह साबित करने के लिए जी-तोड़ मेहनत कर रहे हैं कि पियक्कड़पन, समलैंगिकता, एक-से-ज़्यादा व्यक्‍तियों के साथ लैंगिक संबंध रखना, हिंसा और कई दूसरे भ्रष्ट व्यवहार, यहाँ तक कि मौत के लिए जीन्स किस तरह ज़िम्मेदार हैं। क्या यह जानकर हम राहत की साँस नहीं लेंगे कि हम जो कुछ करते हैं, उसके लिए दरअसल हम नहीं बल्कि हमारे जीन्स की बनावट ज़िम्मेदार है? वैसे भी अपनी गलती किसी और के सिर मढ़ देना इंसान की फितरत है।

अगर हमारे बुरे गुणों के लिए जीन्स ही ज़िम्मेदार हैं तो वैज्ञानिकों का कहना है कि जॆनटिक एंजीनियरिंग यानी जीन्स में फेर-बदल करके उन गुणों को हमारे अंदर से निकालना मुमकिन हो सकता है। हाल ही में जीन मैपिंग यानी इंसान के शरीर में जीन्स के क्रम और व्यवस्था का पता लगाने में जो कामयाबी मिली है, उसकी वजह से ऐसी उम्मीदें और भी बढ़ गयी हैं।

लेकिन इस उम्मीद की वजह यह धारणा है कि हमारी सारी गलतियों और पापों के कसूरवार हमारे जीन्स हैं। क्या वैज्ञानिक जाँचकर्ताओं ने जीन्स को कसूरवार ठहराने के लिए काफी सबूत इकट्ठे कर लिए हैं? ज़ाहिर है कि इसके जवाब से खुद के बारे में और हमारे आनेवाले कल के बारे में हमारे नज़रिए पर गहरा असर पड़ेगा। फिलहाल, सबूतों को जाँचने से पहले आइए देखें कि इंसान की शुरूआत कैसे हुई। इससे हमें काफी जानकारी हासिल हो सकती है।

पाप और असिद्धता की शुरूआत कैसे हुई

पहले पति-पत्नी, आदम और हव्वा, अदन के बाग में पाप में कैसे फँसे, इस कहानी से तो ज़्यादातर लोग वाकिफ हैं या कम-से-कम उसके बारे में सुना तो ज़रूर होगा। मगर क्या उन्हें शुरू से ही जीन्स में कुछ खराबी के साथ बनाया गया था? क्या उनकी बनावट में किसी तरह का खोट था, जिसकी वजह से उनका मन पाप करने और परमेश्‍वर की आज्ञा तोड़ने पर लगा हुआ था?

आदम और हव्वा के सिरजनहार, यहोवा परमेश्‍वर के सारे काम सिद्ध हैं और उसने पृथ्वी की सबसे आखिरी सृष्टि को बनाने के बाद कहा था कि वह “बहुत ही अच्छा है।” (उत्पत्ति 1:31; व्यवस्थाविवरण 32:4) परमेश्‍वर अपने काम से बहुत खुश था, इसका एक और सबूत यह है कि उसने पहले मानव जोड़े पर आशीष दी और आज्ञा दी कि वे फूले-फलें और पृथ्वी को आबाद करें और पृथ्वी की सारी सृष्टि पर अधिकार रखें। अगर परमेश्‍वर को अपनी रचना पर ज़रा भी संदेह होता तो वह कभी ऐसा नहीं करता।—उत्पत्ति 1:28.

पहले जोड़े की सृष्टि के बारे में बाइबल हमें बताती है: “तब परमेश्‍वर ने मनुष्य को अपने स्वरूप के अनुसार उत्पन्‍न किया, अपने ही स्वरूप के अनुसार परमेश्‍वर ने उसको उत्पन्‍न किया, नर और नारी करके उस ने मनुष्यों की सृष्टि की।” (उत्पत्ति 1:27) इसका मतलब यह नहीं कि इंसान को देखने में हू-ब-हू परमेश्‍वर के जैसा बनाया गया था। ऐसा इसलिए नहीं हो सकता क्योंकि “परमेश्‍वर आत्मा है।” (यूहन्‍ना 4:24) सही मायनों में इसका मतलब है कि इंसान में परमेश्‍वर के गुण पैदा किए गए थे और उन्हें अच्छे-बुरे की समझ यानी विवेक भी दिया गया है। (रोमियों 2:14, 15) वे अपने फैसले खुद करने के लिए आज़ाद भी थे, इसलिए वे किसी भी मामले को परखने और उसके मुताबिक फैसला करने के काबिल थे।

फिर भी, हमारे पहले माता-पिता को बिना किसी मार्गदर्शन के यूँ ही नहीं छोड़ दिया गया। इसके बजाय उन्हें चेतावनी दी गयी थी कि बुरे कामों का क्या अंजाम होगा। (उत्पत्ति 2:17) इसलिए सबूतों से पता चलता है कि जब आदम के सामने एक दुविधा आयी जहाँ उसे अच्छे-बुरे का फैसला करना पड़ा तो उसने अपनी मरज़ी से वह काम करने का चुनाव किया जो उसे उस समय ठीक और फायदेमंद लगा। आदम ने एक बार भी यह नहीं सोचा कि उसके इस काम से सिरजनहार के साथ उसके रिश्‍ते पर कैसा असर पड़ेगा और उसके भविष्य में क्या होगा। बल्कि उसने अपनी पत्नी की बुराई में उसका साथ दिया। इतना ही नहीं, आदम ने बाद में अपनी गलती के लिए यहोवा को कसूरवार ठहराने की कोशिश की। उसने कहा कि परमेश्‍वर ने उसे जो पत्नी दी थी, उसकी वजह से ही वह गुमराह हुआ।—उत्पत्ति 3:6, 12; 1 तीमुथियुस 2:14.

आदम और हव्वा के पाप करने के बाद परमेश्‍वर ने जो किया, उससे हम काफी कुछ सीख सकते हैं। उसने उनके जीन्स की ‘बनावट में आयी कमी’ को ठीक करने की कोशिश नहीं की। बल्कि उसने उनके कामों के मुताबिक उन्हें वही सिला दिया जिसकी चेतावनी उसने दी थी। और आखिरकार वे मर गए। (उत्पत्ति 3:17-19) इंसान की शुरूआत की यह कहानी हमें इंसान के व्यवहार को अच्छी तरह समझने में मदद देती है। *

सबूत कि हमारी जीन्स की बनावट में कोई कमी नहीं

काफी अरसे से वैज्ञानिक एक बहुत ही भारी काम में लगे हुए हैं और वह है, यह खोज करना कि इंसानों में होनेवाली बीमारियों और उनके व्यवहार के लिए कौन-से जीन्स ज़िम्मेदार हैं और इनका क्या इलाज है। इसे लेकर खोजकर्ताओं के छः दलों ने दस साल तक मेहनत की, तब जाकर वे एक जीन का पता लगा सके जिसका संबंध हन्टिंगटन बीमारी के साथ है। लेकिन, फिर भी उन्हें यह नहीं मालूम कि आखिर इस जीन से बीमारी कैसे होती है। इस खोज के बारे में रिपोर्ट करते हुए साइंटिफिक अमेरिकन ने हावर्ड के जीवविज्ञानी, इवन बालबन की टिप्पणी का हवाला दिया, जिसने कहा कि “यह पता लगाना और भी मुश्‍किल होगा कि किन जीन्स की वजह से इंसान के व्यवहार में विकार आता है।”

इंसान के व्यवहार के लिए किसी खास किस्म के जीन्स को ज़िम्मेदार साबित करने की कोशिश, दरअसल नाकाम हुई है। मिसाल के लिए, किस जीन्स के कारण मायूसी (ड्रिप्रॆशन) होती है, इसका पता करने के लिए की गयी कोशिशों पर साइकॉलजी टुडे ने यह रिपोर्ट दी: “बड़ी-बड़ी मानसिक बीमारियों के फैलने और उनकी रोकथाम के बारे में मिली जानकारी से यह बात बेबुनियाद साबित हुई कि सिर्फ जीन्स की वजह से ऐसी बीमारियाँ होती हैं।” इस रिपोर्ट में एक मिसाल भी दी गयी थी: “जिन अमरीकियों का जन्म 1905 से पहले हुआ, उनमें से सौ में से एक जन 75 साल की उम्र के होते-होते मायूसी का शिकार होता था। मगर उनके पचास साल बाद पैदा हुई पीढ़ी में, सौ में से 6 लोग मायूसी का शिकार हुए हैं और वह भी 24 साल के होते होते!” इससे यही पता चलता है कि इतने कम समय में ऐसे ज़बरदस्त बदलावों की वजह सिर्फ सामाजिक या निजी हालात हो सकते हैं।

इस तरह के और भी बहुत-से अध्ययनों से क्या पता चलता है? हालाँकि हमारी शख्सियत को ढालने में जीन्स का भी हाथ हो सकता है, मगर इसमें दूसरी कई बातों का भी असर है। एक बड़ी वजह है, हमारा माहौल जो आज पहले से काफी बदल चुका है। उदाहरण के लिए, आजकल के नौजवान, मनोरंजन में क्या-क्या देखते हैं, इसके बारे में एक किताब, लड़के तो लड़के ही रहेंगे (अँग्रेज़ी) बताती है कि जब बच्चे “ऐसे टी.वी. के कार्यक्रमों और फिल्मों को देखने में हज़ारों घंटे बिताते हैं जिनमें मार-पीट, किसी को गोली मारने, छुरा भोंकने, पेट-चीरने, किसी के टुकड़े-टुकड़े करने, खाल उधेड़ने या शरीर के अंगों को काटकर अलग करने जैसे दृश्‍य दिखाए जाते हैं। और बच्चे ऐसे संगीत सुनते हुए बड़े होते हैं जो बलात्कार, खुदकुशी, ड्रग्स, शराब और हठीलेपन को बढ़ावा देते हैं,” तो ऐसे में यह उम्मीद करना दूर की बात है कि वे अपने अंदर अच्छे नैतिक उसूल पैदा करेंगे।

‘इस जगत के सरदार,’ शैतान ने सचमुच संसार के माहौल को इस तरह बना दिया कि इसमें इंसान की बद-से-बदतर वासनाएँ पूरी होती हैं। और क्या इस बात को कोई नकार सकता है कि ऐसे माहौल का हम पर ज़बरदस्त असर नहीं पड़ता?—यूहन्‍ना 12:31; इफिसियों 6:12; प्रकाशितवाक्य 12:9, 12.

इंसान की समस्याओं की जड़

जैसा कि हम देख चुके हैं, जब से पहले जोड़े ने पाप किया तब से इंसानों पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा है। और इसका नतीजा क्या हुआ? यह सच है कि पीढ़ी-दर-पीढ़ी आनेवाली आदम की संतान, आदम के पाप के लिए ज़िम्मेदार नहीं है, मगर फिर भी उन्हें विरासत में पाप, असिद्धता और मौत मिली है। बाइबल बताती है: “इसलिये जैसा एक मनुष्य के द्वारा पाप जगत में आया, और पाप के द्वारा मृत्यु आई, और इस रीति से मृत्यु सब मनुष्यों में फैल गई, इसलिये कि सब ने पाप किया।”—रोमियों 5:12.

माना कि असिद्ध होने की वजह से इंसान, गलतियाँ ज़रूर करता है, मगर इसका मतलब यह नहीं कि उसे अपने गलतियों के लिए ज़िम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता। बाइबल दिखाती है कि यहोवा का अनुग्रह उन लोगों पर होगा जो जीवन पाने के लिए उसके ठहराए गए इंतज़ामों पर विश्‍वास करते और जो उसके स्तरों के मुताबिक जीते हैं। अपनी निरंतर प्रेम-कृपा की वजह से यहोवा ने इंसानों को छुड़ाने का इंतज़ाम किया, मानो उस चीज़ को वापस खरीदा जिसे आदम ने खो दिया था। यह इंतज़ाम उसके सिद्ध बेटे, यीशु मसीह का छुड़ौती बलिदान है। यीशु ने कहा: “क्योंकि परमेश्‍वर ने जगत से ऐसा प्रेम रखा कि उस ने अपना एकलौता पुत्र दे दिया, ताकि जो कोई उस पर विश्‍वास करे, वह नाश न हो, परन्तु अनन्त जीवन पाए।”—यूहन्‍ना 3:16; 1 कुरिन्थियों 15:21, 22.

प्रेरित पौलुस ने इस इंतज़ाम के लिए गहरी कदर दिखायी। उसने कहा: “मैं कैसा अभागा मनुष्य हूं! मुझे इस मृत्यु की देह से कौन छुड़ाएगा? मैं अपने प्रभु यीशु मसीह के द्वारा परमेश्‍वर का धन्यवाद करता हूं।” (रोमियों 7:24, 25) पौलुस जानता था कि अगर वह अपनी कमज़ोरी में पाप कर दे तो वह परमेश्‍वर से यीशु मसीह के छुड़ौती बलिदान की बिनाह पर माफी माँग सकता है। *

पहली सदी की तरह आज भी कई लोग, जो पहले बदचलनी की ज़िंदगी बिताते थे या जिनकी हालत बहुत बदतर थी, उन्होंने बाइबल की सच्चाई का सही ज्ञान लेकर अपने जीवन में बड़े-बड़े बदलाव किए हैं और परमेश्‍वर का अनुग्रह पाया है। उनके लिए बदलाव करना हरगिज़ आसान नहीं था और कइयों को तो अब भी अपने बुरे विचारों से जूझना पड़ता है। मगर परमेश्‍वर की मदद से वे अपनी खराई बनाए रखने में कामयाब होते हैं और उसकी सेवा करने में खुशी पाते हैं। (फिलिप्पियों 4:1) एक आदमी के उदाहरण पर गौर कीजिए, जिसे परमेश्‍वर को खुश करने के लिए अपनी ज़िंदगी में भारी बदलाव करने पड़े।

एक हौसला बढ़ानेवाला अनुभव

“बचपन से मैं बोर्डिंग में पढ़ता था और तभी से मैं समलैंगिक कामों में शामिल हो गया। लेकिन मैं अपने-आपको समलिंगी नहीं मानता था। मेरे माता-पिता का तलाक हो चुका था और मुझे कभी उनका वह प्यार नहीं मिला जिसके लिए मैं तरसता था। स्कूल की पढ़ाई खतम करने के बाद, देश के कानून के मुताबिक मैं सेना में भर्ती हो गया। वहाँ मेरे बैरक के पासवाले बैरक में समलिंगियों का एक समूह था। उनके जीने का तौर-तरीका देखकर मैंने भी उनकी तरह जीना चाहा, इसलिए मैं उनके साथ मिलने-जुलने लगा। उनके साथ करीब एक साल तक मेल-जोल रखने के बाद मैं खुद को एक समलिंगी मानने लगा। मैंने अपने आपसे कहा कि ‘मैं ऐसा ही बना हूँ, इसलिए खुद को बदलना मेरे हाथ में नहीं है।’

“मैं समलिंगियों की भाषा सीखने लगा और उनके क्लबों में भी जाने लगा जहाँ ड्रग्स और शराब की कोई कमी नहीं थी। हालाँकि यह सबकुछ बाहर से बहुत ही रोमांचक और आकर्षक लगता था, मगर हकीकत में यह बहुत ही घिनौना था। मैंने अंदर-ही-अंदर महसूस किया कि इंसान इस तरह के रिश्‍ते रखने के लिए नहीं बनाया गया था और ऐसे रिश्‍ते रखनेवालों का कोई भविष्य नहीं है।

“एक छोटे-से कस्बे में मुझे यहोवा के साक्षियों का एक राज्यगृह दिखायी पड़ा और वहाँ सभाएँ चल रही थीं। मैं अंदर गया और वहाँ चल रहे भाषण को सुना जो आनेवाले फिरदौस के हालात के बारे में था। उसके बाद कुछ साक्षियों से मेरी मुलाकात हुई और उन्होंने मुझे एक सम्मेलन में आने का न्यौता दिया। मैं उसमें हाज़िर हुआ और वहाँ मैंने जो देखा उससे मुझे बहुत हैरानी हुई—वहाँ सभी परिवार खुशी-खुशी और एक-साथ मिलकर परमेश्‍वर की उपासना कर रहे थे। मैं साक्षियों के साथ बाइबल अध्ययन करने लगा।

“बाइबल से सीखी हुई बातों को जीवन में लागू करना मेरे लिए एक संघर्ष था, फिर भी मैंने उन्हें लागू करना शुरू किया। मैं अपने सभी गंदे कामों को छोड़ सका। चौदह महीनों तक अध्ययन करने के बाद मैंने अपना जीवन यहोवा को समर्पित किया और बपतिस्मा लिया। ज़िंदगी में पहली बार मुझे सच्चे दोस्त मिले। तब से मैं बाइबल की सच्चाई सीखने में दूसरों की मदद कर पाया हूँ और अब मैं मसीही कलीसिया में एक सहायक सेवक हूँ। वाकई, यहोवा ने मुझे आशीष दी है।”

हम ज़िम्मेदार हैं

हमारी गलतियों के लिए अपने जीन्स को पूरी तरह कसूरवार ठहराने से मामला नहीं सुलझ जाता। साइकॉलजी टुडे कहती है कि ऐसा करना हमें अपनी समस्याओं को सुलझाने या उन पर काबू पाने में मदद देने के बदले “हमें और लाचार बना देता है और यही लाचारी हमारी कई समस्याओं की जड़ है। यह समस्याओं को कम करने के बजाय और भी बढ़ा देता है।”

यह सच है कि हमें ऐसे दुश्‍मनों से लड़ना पड़ता है जो हमसे ज़्यादा ताकतवर हैं, जैसे पाप करने की हमारी इच्छाएँ और हमसे परमेश्‍वर की आज्ञा तुड़वाने की शैतान की कोशिशें। (1 पतरस 5:8) यह भी सच है कि हमारे जीन्स का कई तरीकों से हम पर असर पड़ता है। मगर इस संघर्ष में हम अकेले नहीं है। सच्चे मसीहियों की मदद करने के लिए यहोवा, यीशु मसीह, परमेश्‍वर की पवित्र आत्मा, उसका वचन बाइबल और मसीही कलीसियाएँ हैं। और ये सब बहुत ही शक्‍तिशाली हैं।—1 तीमुथियुस 6:11, 12; 1 यूहन्‍ना 2:1.

वादा किए हुए देश में जाने से पहले मूसा ने इस्राएल जाति को याद दिलाया कि वे परमेश्‍वर के सामने जवाबदेह हैं। उसने कहा: “मैं ने जीवन और मरण, आशीष और शाप को तुम्हारे आगे रखा है; इसलिये तू जीवन ही को अपना ले, कि तू और तेरा वंश दोनों जीवित रहें; इसलिये अपने परमेश्‍वर यहोवा से प्रेम करो, और उसकी बात मानो, और उस से लिपटे रहो।” (तिरछे टाइप हमारे।) (व्यवस्थाविवरण 30:19, 20) उसी तरह आज हर ज़िम्मेदार इंसान को खुद यह फैसला करना होगा कि वह परमेश्‍वर की सेवा और उसकी माँगों को पूरा करेगा या नहीं। फैसला आपके हाथ में हैं।—गलतियों 6:7, 8.

[फुटनोट]

^ अक्टूबर 8, 1996 की सजग होइए! के पेज 3-8 देखिए।

^ किताब, ज्ञान जो अनन्त जीवन की ओर ले जाता है के पेज 62-9 देखिए, जिसे यहोवा के साक्षियों ने प्रकाशित किया है।

[पेज 9 पर तसवीरें]

क्या आदम और हव्वा ने अपने जीन्स में किसी खराबी की वजह से पाप किया?

[पेज 10 पर तसवीरें]

क्या हर इंसान को अपने फैसलों की ज़िम्मेदारी खुद लेनी चाहिए?

[चित्र का श्रेय]

ड्रग्स लेनेवाली: Godo-Foto

[पेज 11 पर तसवीर]

इंसान के व्यवहार के पीछे किस जीन्स का हाथ है, इसका पता करने की कोशिशें नाकाम रही हैं

[पेज 12 पर तसवीर]

बाइबल की सलाह पर चलने से नेकदिल लोगों को बदलाव करने में मदद मिल सकती है