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मसीही आदर्श सीखें और सिखाएँ

मसीही आदर्श सीखें और सिखाएँ

मसीही आदर्श सीखें और सिखाएँ

“सो क्या तू जो औरों को सिखाता है, अपने आप को नहीं सिखाता?”रोमियों 2:21.

1, 2. बाइबल का अध्ययन करने की आपके पास कौन-सी वजह हैं?

 परमेश्‍वर के वचन का अध्ययन करने की आपके पास बहुत-सी वजह हैं। एक तो यह कि आप इसमें बताए गए लोगों, घटनाओं, जगहों और दूसरे विषयों पर जानकारी पाना चाहेंगे। और आप बाइबल में दी गयी सच्चाइयाँ सीखना चाहेंगे, जो त्रियेक और नरक की आग में तड़पाने जैसी झूठी शिक्षाओं से बिलकुल अलग हैं। (यूहन्‍ना 8:32) इसके अलावा, आप यहोवा को और अच्छी तरह जानना चाहेंगे ताकि आप और ज़्यादा उसके जैसे बनें और उसके सामने खरी चाल चलते रहें।—1 राजा 15:4, 5.

2 इसी से मिलती-जुलती एक और खास वजह से आपको परमेश्‍वर के वचन का अध्ययन करना चाहिए। वह यह कि आपको दूसरों को भी सिखाने के काबिल होना है, जैसे अपने अज़ीज़ों, जान-पहचानवालों और उन्हें भी जिन्हें आप नहीं जानते। यह ज़िम्मेदारी सभी सच्चे मसीहियों को दी गयी है। यीशु ने अपने चेलों से कहा: “इसलिये तुम जाकर सब जातियों के लोगों को चेला बनाओ . . . और उन्हें सब बातें जो मैं ने तुम्हें आज्ञा दी है, मानना सिखाओ।”—मत्ती 28:19, 20.

3, 4. यीशु की आज्ञा के मुताबिक, दूसरों को सिखाना क्यों नेक काम है?

3 दूसरों को सिखाने के लिए बाइबल का अध्ययन करना बहुत ही नेक काम है और इससे हमें ऐसा संतोष मिलता है जिसे कोई हमसे छीन नहीं सकता। सिखाने के पेशे को हमेशा से ही इज़्ज़त की नज़रों से देखा जाता है। एनकार्टा इनसाइक्लोपीडिया कहती है: “यहूदियों में, बहुत-से लोग गुरु को उद्धार की राह दिखानेवाला मानते थे और बच्चों को सिखाते थे कि वे माता-पिता से बढ़कर अपने गुरु की इज़्ज़त करें।” मसीहियों के लिए यह खासकर इज़्ज़त का काम है कि वे बाइबल का अध्ययन करके पहले खुद सीखें और फिर दूसरों को भी सिखाएँ।

4 “सिखाने के पेशे में जितने लोग हैं उतने किसी और पेशे में नहीं हैं। पूरी दुनिया में करीब 4 करोड़ 80 लाख स्त्री-पुरुष टीचर हैं।” (द वर्ल्ड बुक इनसाइक्लोपीडिया) स्कूल के टीचरों को बच्चों की दिमागी काबिलीयत बढ़ाने की ज़िम्मेदारी सौंपी जाती है और बच्चों के दिलो-दिमाग पर अपनी टीचर का असर, बरसों तक रहता है। मगर, यीशु की आज्ञा के मुताबिक दूसरों को सिखाने का असर कुछ बरसों तक ही नहीं बल्कि भविष्य में हमेशा-हमेशा तक रह सकता है। प्रेरित पौलुस ने तीमुथियुस को उकसाते वक्‍त इसी बात पर ज़ोर दिया: “अपने ऊपर और अपनी शिक्षा पर विशेष ध्यान दे और इन बातों पर स्थिर रह, क्योंकि ऐसा करने से तू अपने और अपने सुनने वालों के भी उद्धार का कारण होगा।” (तिरछे टाइप हमारे।) (1 तीमुथियुस 4:16, NHT) जी हाँ, आपके सिखाने पर लोगों की और खुद आपकी ज़िंदगी टिकी है।

5. मसीही शिक्षा क्यों सबसे श्रेष्ठ है?

5 हमें खुद को और दूसरों को सिखाने का हुक्म और अधिकार, इस विश्‍व के सबसे महान शख्स और महाराजाधिराज से मिला है। यही वजह है कि इस किस्म की शिक्षा, दुनिया की किसी भी शिक्षा से श्रेष्ठ है, फिर चाहे वह स्कूल की बुनियादी शिक्षा हो, किसी काम में हुनर हासिल करना हो या फिर चिकित्सा-क्षेत्र में खास किस्म की शिक्षा हो। मसीही शिक्षा इसलिए श्रेष्ठ है क्योंकि एक मसीही अपने विद्यार्थी को सिखाता है कि कैसे वह खुद परमेश्‍वर के पुत्र, यीशु मसीह जैसा बने और दूसरों को भी ऐसा ही बनना सिखाए।—यूहन्‍ना 15:10.

खुद को क्यों सिखाएँ?

6, 7. (क) हमें पहले खुद को क्यों सिखाना चाहिए? (ख) किस तरह पहली सदी के यहूदी, शिक्षकों की ज़िम्मेदारी निभाने में नाकाम रहे?

6 ऐसा क्यों कहा जाता है कि हमें पहले खुद को सिखाना चाहिए? वह इसलिए कि अगर हम खुद सही तरह से नहीं सीखेंगे, तो दूसरों को भी नहीं सिखा पाएँगे। पौलुस ने बाइबल का एक भाग लिखते वक्‍त इसी बात पर ज़ोर दिया। इस भाग का यहूदियों के लिए खास महत्त्व था और आज हम मसीहियों के लिए भी इसमें एक ज़रूरी पैगाम है। पौलुस ने पूछा: “सो क्या तू जो औरों को सिखाता है, अपने आप को नहीं सिखाता? क्या तू जो चोरी न करने का उपदेश देता है, आप ही चोरी करता है? तू जो कहता है, व्यभिचार न करना, क्या आप ही व्यभिचार करता है? तू जो मूरतों से घृणा करता है, क्या आप ही मन्दिरों को लूटता है। तू जो व्यवस्था के विषय में घमण्ड करता है, क्या व्यवस्था न मानकर, परमेश्‍वर का अनादर करता है?”—रोमियों 2:21-23.

7 पौलुस ने एक-के-बाद-एक सवाल पूछकर ऐसे दो अपराधों का ज़िक्र किया जिनके बारे में दस आज्ञाओं में साफ-साफ मनाही है। ये आज्ञाएँ हैं: चोरी न करना और व्यभिचार न करना। (निर्गमन 20:14, 15) पौलुस के ज़माने में कुछ यहूदी इस बात का घमंड करते थे कि उनके पास परमेश्‍वर की कानून-व्यवस्था थी। उन्हें ‘व्यवस्था में शिक्षित किया गया था, और वे अपने आप पर इस बात का भरोसा रखते थे कि वे अंधों के पथ-प्रदर्शक, अंधकार में रहने वालों के लिए ज्योति, बालकों के शिक्षक हैं।’ (रोमियों 2:17-20, NHT) मगर, कुछ ऐसे पाखंडी यहूदी भी थे जो छिप-छिपकर चोरी या व्यभिचार करते थे। इससे न सिर्फ व्यवस्था का बल्कि स्वर्ग में रहनेवाले इसके रचनाकार का भी घोर अपमान होता था। आप देख सकते हैं कि वे दूसरों को सिखाने के ज़रा-भी काबिल नहीं थे; वे तो खुद को भी नहीं सिखा पाए।

8. पौलुस के ज़माने में कुछ यहूदी, किस तरह ‘मन्दिरों को लूट’ रहे थे?

8 पौलुस ने मंदिरों को लूटने का ज़िक्र किया। क्या कुछ यहूदी सचमुच मंदिरों को लूट रहे थे? पौलुस के कहने का क्या मतलब था? दरअसल, बाइबल के इस भाग के बारे में बहुत कम जानकारी होने की वजह से, हम दावे के साथ नहीं कह सकते कि उन यहूदियों ने “मन्दिरों” को कैसे ‘लूटा।’ पौलुस के इस आयत को लिखने से पहले की एक घटना में, इफिसुस नगर के मंत्री ने पौलुस के साथियों के बारे में कहा था कि वे “मन्दिर के लूटनेवाले” नहीं हैं। इससे पता चलता है कि कुछ लोगों की नज़रों में यहूदी, मंदिरों को लूटने के अपराधी थे। (प्रेरितों 19:29-37) हो सकता है कि जब कोई राजा या कट्टरपंथी लोग किसी देश को जीतकर उसके मंदिरों का कीमती सामान लाते थे, तो यहूदी उस सामान को अपने लिए खरीदते थे या उन्हें ऊँचे दामों पर बेचते थे। परमेश्‍वर की कानून-व्यवस्था के मुताबिक, मूर्तियों पर मढ़े सोने-चाँदी को नष्ट किया जाना था, उन्हें अपने लिए नहीं लेना था। (व्यवस्थाविवरण 7:25) * इसलिए पौलुस शायद उन यहूदियों की बात कर रहा था जो परमेश्‍वर की आज्ञा का अनादर करके, विधर्मी मंदिरों से लायी गयी चीज़ें इस्तेमाल करते थे या उन्हें बेचकर मुनाफा कमाते थे।

9. यरूशलेम के मंदिर से जुड़े कौन-से गलत काम, इसे लूटने के बराबर थे?

9 लेकिन, जोसीफस ने रोम के चार यहूदियों की बेईमानी के बारे में भी बताया। इन चारों का सरदार, व्यवस्था का उपदेशक था। इन चार यहूदियों ने रोम की एक स्त्री को कायल किया कि वह अपना सारा सोना और दूसरी कीमती चीज़ें यरूशलेम के मंदिर को दान कर दे। उस स्त्री ने अपना धर्म छोड़कर यहूदी धर्म अपनाया था। जब उस स्त्री का सारा धन उनके हाथ आ गया तो उन्होंने यह धन खुद रख लिया—यह मंदिर को लूटने के बराबर ही था। * दूसरे यहूदी, परमेश्‍वर के मंदिर में लँगड़े-लूले जानवरों की बलि चढ़ाकर मंदिर को लूट रहे थे और इसके अहाते में लालची व्यापारियों को बढ़ावा देकर इसे “डाकुओं की खोह” बना चुके थे।—मत्ती 21:12, 13; मलाकी 1:12-14; 3:8, 9.

मसीही आदर्श सिखाइए

10. रोमियों 2:21-23 में पौलुस की बातों के किस खास मुद्दे को हमें अच्छी तरह समझना चाहिए?

10 चोरी, व्यभिचार और मंदिर लूटने के बारे में पौलुस, पहली सदी के चाहे किसी भी काम की ओर इशारा कर रहा था, आइए हम उसकी बातों के खास मुद्दे को अच्छी तरह समझें। पौलुस ने सवाल किया: “सो क्या तू जो औरों को सिखाता है, अपने आप को नहीं सिखाता?” गौर करने लायक बात है कि पौलुस ने जो मिसालें दीं, वे उसूलों या आदर्शों के मामले में थीं। प्रेरित पौलुस, यहाँ बाइबल की शिक्षाओं या इतिहास के बारे में बात नहीं कर रहा था, बल्कि वह कह रहा था कि हम खुद को और दूसरों को भी मसीही आदर्श सिखाएँ।

11. परमेश्‍वर के वचन का अध्ययन करते वक्‍त आपको मसीही आदर्शों पर क्यों ध्यान देना चाहिए?

11 अगर हम रोमियों 2:21-23 के सबक पर चलना चाहते हैं, तो ज़रूरी है कि हम परमेश्‍वर के वचन से मसीही आदर्श सीखें, सीखी हुई बातों के मुताबिक काम करें और फिर दूसरों को भी ऐसा ही करना सिखाएँ। इसलिए, बाइबल का अध्ययन करते वक्‍त हमेशा यहोवा के स्तर जानने की कोशिश कीजिए क्योंकि इन्हीं स्तरों से सच्चे मसीही आदर्श निकले हैं। बाइबल की सलाह और इसमें बताए गए सबक याद रखकर इन पर मनन कीजिए। फिर हिम्मत के साथ सीखी हुई बातों पर अमल कीजिए। ऐसा करने के लिए वाकई हिम्मत और पक्का इरादा होना ज़रूरी है। क्योंकि जब असिद्ध इंसान, मसीही आदर्शों पर नहीं चलते तब वे खुद को सही ठहराने के लिए कोई-न-कोई बहाना या वजह ढूँढ़ लेते हैं। उन्हें लगता है कि जिस हाल में वे हैं उसमें मसीही आदर्शों पर चलना ज़रूरी नहीं है, यहाँ तक कि कभी-कभी उनके खिलाफ जाने की भी ज़रूरत पड़ती है। पौलुस ने जिन यहूदियों की बात की वे शायद ऐसी धूर्त बातों से, गलत कामों को सही ठहराने या दूसरों को गुमराह करने में माहिर थे। मगर, पौलुस के शब्द दिखाते हैं कि हम अपनी पसंद और सहूलियत के अनुसार मसीही आदर्शों को तुच्छ नहीं मान सकते, ना ही उन्हें नज़रअंदाज़ कर सकते हैं।

12. हमारे अच्छे या बुरे चालचलन का यहोवा परमेश्‍वर के नाम पर कैसा असर होता है, और इस बात को हमेशा ध्यान में रखना क्यों ज़रूरी है?

12 प्रेरित पौलुस ने बाइबल के आदर्श सीखने और उनके मुताबिक काम करने की सबसे बड़ी वजह पर ज़ोर दिया। यहूदियों के बुरे व्यवहार से यहोवा के नाम पर कलंक लगा था: “तू जो व्यवस्था के विषय में घमण्ड करता है, क्या व्यवस्था न मानकर, परमेश्‍वर का अनादर करता है? क्योंकि तुम्हारे कारण अन्यजातियों में परमेश्‍वर के नाम की निन्दा की जाती है।” (रोमियों 2:23, 24) आज भी यह बात कितनी सच है कि अगर हम मसीही आदर्शों से मुँह मोड़ लेते हैं, तो हम इन आदर्शों के बनानेवाले का अनादर करते हैं। इसके उलटे, अगर हम परमेश्‍वर के स्तरों का सख्ती से पालन करें, तो उसकी प्रशंसा होगी और उसका आदर होगा। (यशायाह 52:5; यहेजकेल 36:20) अगर आप यह बात हमेशा ध्यान में रखें तो इन आदर्शों पर चलते रहने का आपका संकल्प और भी मज़बूत होगा, चाहे फिर आपको गलत काम करने के लिए लुभाया जाए या ऐसे हालात पैदा हों जब मसीही आदर्शों को ताक पर रख देना, सबसे आसान और आरामदेह लगे। इसके अलावा, पौलुस के शब्दों से हम और भी कुछ सीखते हैं। आप न सिर्फ खुद याद रखिए कि आपके चालचलन से या तो परमेश्‍वर का आदर होगा या उसका अपमान होगा, बल्कि दूसरों को भी सिखाते वक्‍त समझाइए कि अगर वे सिखाए जा रहे आदर्शों पर चलेंगे तो उससे यहोवा का आदर होगा। मसीही आदर्शों पर चलने का फायदा सिर्फ यह नहीं कि हमें मन का सुकून मिलेगा और हम कुछ बीमारियों से बचेंगे। इनसे यह भी पता चलता है कि इन्हें बनानेवाला और बढ़ावा देनेवाला परमेश्‍वर कैसा शख्स है।—भजन 74:10; याकूब 3:17.

13. (क) आदर्शों के मामले में बाइबल कैसे हमारी मदद करती है? (ख) पहला थिस्सलुनीकियों 4:3-7 में दी गयी सलाह का सार बताइए।

13 आदर्शों का पालन करने या न करने का दूसरों पर भी असर होता है। आप परमेश्‍वर के वचन में दी गयी मिसालों से समझ सकते हैं कि परमेश्‍वर के आदर्शों पर चलने की अहमियत कितनी बड़ी है और इन आदर्शों को ठुकराने का अंजाम कितना बुरा। (उत्पत्ति 39:1-9, 21; यहोशू 7:1-25) आदर्शों के मामले में आप परमेश्‍वर के वचन में स्पष्ट सलाह भी पा सकते हैं, जैसे कि यह सलाह: “परमेश्‍वर की इच्छा यह है, कि तुम पवित्र बनो: अर्थात्‌ व्यभिचार से बचे रहो। और तुम में से हर एक पवित्रता और आदर के साथ अपने पात्र को प्राप्त करना जाने। और यह काम अभिलाषा से नहीं, और न उन जातियों की नाईं, जो परमेश्‍वर को नहीं जानतीं। कि इस बात में कोई अपने भाई को न ठगे, और न उस पर दांव चलाए [“कोई धूर्तता से अपने भाई के अधिकार का उल्लंघन न करे,” नयी हिन्दी बाइबिल], . . . क्योंकि परमेश्‍वर ने हमें अशुद्ध होने के लिये नहीं, परन्तु पवित्र होने के लिये बुलाया है।”—1 थिस्सलुनीकियों 4:3-7.

14. पहला थिस्सलुनीकियों 4:3-7 की सलाह के बारे में आप खुद से क्या सवाल कर सकते हैं?

14 बाइबल के इस भाग से हर कोई यह समझ सकता है कि लैंगिक अनैतिकता, मसीही आदर्शों के मुताबिक सरासर पाप है। मगर इस भाग की गहराई से जाँच करने पर आप और भी बहुत कुछ समझ सकते हैं। कुछ आयतें ऐसी होती हैं जिन पर आप काफी अध्ययन और मनन कर सकते हैं और इससे आपको उनकी अंदरूनी समझ मिल सकती है। मिसाल के लिए, आप इस बारे में सोच सकते हैं कि पौलुस का यह कहने का क्या मतलब था कि व्यभिचार करके, “कोई धूर्तता से अपने भाई के अधिकार का उल्लंघन न करे।” वह किन अधिकारों की बात कर रहा था, और यह जानने से आपको मसीही आदर्शों पर चलते रहने का बढ़ावा कैसे मिलेगा? ऐसी खोजबीन से फायदा पाकर आप कैसे इस काबिल बन सकते हैं कि दूसरों को और अच्छी तरह सिखाएँ और परमेश्‍वर का आदर करने में उन्हें मदद दें?

सिखाने के लिए अध्ययन कीजिए

15. परमेश्‍वर के वचन से खुद सीखते वक्‍त आप कौन-से साधन इस्तेमाल कर सकते हैं?

15 यहोवा के साक्षियों के पास ऐसे कई साधन हैं जिनकी मदद से वे उन सवालों या मसलों पर खोजबीन कर सकते हैं, जो खुद को या दूसरों को सिखाते वक्‍त उठते हैं। ऐसा ही एक साधन है, वॉच टावर पब्लिकेशन्स इंडेक्स जो कई भाषाओं में उपलब्ध है। अगर यह आपकी भाषा में भी उपलब्ध है तो आप इसका इस्तेमाल करके, यहोवा के साक्षियों की बाइबल समझानेवाली किताबों-पत्रिकाओं में जानकारी ढूँढ़ सकते हैं। आप विषय के अनुसार या आयतों की सूची में से किसी एक आयत पर खोजबीन कर सकते हैं। यहोवा के साक्षियों के पास एक और साधन है जो कई मुख्य भाषाओं में मौजूद है, वॉचटावर लाइब्रेरी। सीडी-रॉम पर इस कंप्यूटर प्रोग्राम के ज़रिए ढेर सारे प्रकाशन, कंप्यूटर पर पढ़े जा सकते हैं। इस प्रोग्राम की मदद से आप किसी भी विषय पर लेख ढूँढ़ सकते हैं या बाइबल की आयतों को समझानेवाले लेख पढ़ सकते हैं। अगर इनमें से एक या दोनों साधन आपकी भाषा में उपलब्ध हैं, तो नियमित रूप से परमेश्‍वर के वचन का अध्ययन करने और दूसरों को सिखाने के लिए इनका इस्तेमाल कीजिए।

16, 17. (क) पहला थिस्सलुनीकियों 4:6 में बताए गए अधिकारों के बारे में आप ज़्यादा जानकारी कहाँ पा सकते हैं? (ख) व्यभिचार से दूसरों के किन-किन अधिकारों का उल्लंघन होता है?

16 ऊपर जिस वचन का हवाला दिया है आइए उसी की मिसाल लें, 1 थिस्सलुनीकियों 4:3-7. वहाँ अधिकारों के बारे में सवाल उठा था। पौलुस किनके अधिकारों की बात कर रहा था? और व्यभिचार से उनके अधिकारों का उल्लंघन कैसे होता है? अध्ययन के जिन साधनों का ज़िक्र किया गया है, उनकी मदद से आप इन आयतों और उनमें बताए गए अधिकारों के बारे में काफी जानकारी हासिल कर सकते हैं। यह जानकारी आप इंसाइट ऑन द स्क्रिप्चर्स्‌, भाग 1, पेज 863-4; सच्ची शांति और सुरक्षा—आप इसे कैसे पा सकते हैं? (अँग्रेज़ी), पेज 145; प्रहरीदुर्ग (अँग्रेज़ी), नवंबर 15, 1989, पेज 31 में पा सकते हैं।

17 इस तरह अध्ययन करने से, आप समझ पाएँगे कि ये किताबें और पत्रिकाएँ कैसे पौलुस के शब्दों की सच्चाई ज़ाहिर करती हैं कि व्यभिचार से दूसरों के अधिकारों का उल्लंघन होता है। एक व्यभिचारी, परमेश्‍वर के खिलाफ पाप करता है और खुद को तरह-तरह की बीमारियों के जोखिम में डालता है। (1 कुरिन्थियों 6:18, 19; इब्रानियों 13:4) जब एक पुरुष, किसी स्त्री के साथ व्यभिचार करता है, तो वह उस स्त्री के बहुत-से अधिकारों का उल्लंघन करता है। वह स्त्री अपनी पवित्रता खो देती है और उसका विवेक भी शुद्ध नहीं रहता। अगर उसकी शादी नहीं हुई तो वह आदमी, शादी के वक्‍त उसके कुँवारी होने के अधिकार का उल्लंघन करता है। यही नहीं, उसके होनेवाले पति को भी यह उम्मीद करने का अधिकार है कि शादी के वक्‍त वह कुँवारी होगी, मगर इसका भी वह व्यभिचारी उल्लंघन करता है। अगर वह स्त्री शादी-शुदा है तो वह आदमी उसके माता-पिता और उसके पति की भावनाओं को ठेस पहुँचाता है। वह बदचलन आदमी खुद अपने परिवार के, साफ और शुद्ध बने रहने के अधिकार को मिट्टी में मिला देता है। अगर वह मसीही कलीसिया में है, तो उसकी वजह से कलीसिया का नाम बदनाम होता है और उसकी इज़्ज़त पर धब्बा लगता है।—1 कुरिन्थियों 5:1.

18. मसीही आदर्शों का गहराई से अध्ययन करने से आपको लाभ कैसे होगा?

18 यह सारी जानकारी पाकर क्या इस आयत की आपको गहरी समझ नहीं मिलती? इस तरह के अध्ययन का वाकई बहुत बड़ा महत्त्व है। जब आप इस तरह अध्ययन करते हैं, तब आप खुद को सिखाते हैं। आप और भी गहराई से समझ पाते हैं कि परमेश्‍वर का वचन कितना सच्चा है और इसका असर कितना ज़बरदस्त है। आपका यह इरादा और भी मज़बूत हो जाता है कि आपके आगे चाहे कोई भी फंदा क्यों न डाला जाए, आप मसीही आदर्शों पर चलना नहीं छोड़ेंगे। ज़रा सोचिए कि इससे आप कितने अच्छे शिक्षक बन पाएँगे! मिसाल के लिए, दूसरों को बाइबल की सच्चाई सिखाते वक्‍त आप 1 थिस्सलुनीकियों 4:3-7 की अंदरूनी समझ उन्हें दे सकते हैं, जिससे मसीही आदर्शों को वे और अच्छी तरह समझ पाएँगे और इसके लिए उनकी कदरदानी बढ़ेगी। इस तरह, आपके अध्ययन से खुद आपको और दूसरों को भी परमेश्‍वर का आदर करने में मदद मिलेगी। हमने यहाँ थिस्सलुनीकियों को लिखी पौलुस की पत्री में से सिर्फ एक मिसाल का ज़िक्र किया है। मसीही आदर्शों के और भी बहुत-से पहलू हैं और उतनी ही ज़्यादा बाइबल में बतायी मिसालें और सलाह हैं, जिनका अध्ययन करके आप खुद उन पर चल सकते हैं और दूसरों को भी सिखा सकते हैं।

19. मसीही आदर्शों पर टिके रहना आपके लिए क्यों बेहद ज़रूरी है?

19 इसमें कोई शक नहीं कि मसीही आदर्शों पर चलते रहने में ही बड़ी बुद्धिमानी है। याकूब 3:17 कहता है कि “जो ज्ञान ऊपर से आता है,” यानी खुद यहोवा परमेश्‍वर से, “वह पहिले तो पवित्र होता है।” इससे साफ पता चलता है कि परमेश्‍वर के आदर्शों और उसके स्तरों पर चलना ज़रूरी है। दरअसल, यहोवा की यह माँग है कि जो कोई बाइबल सिखाते हैं और उसकी तरफ से बोलते हैं, वे खुद दूसरों के लिए “पवित्रता में” अच्छी मिसाल हों। (1 तीमुथियुस 4:12) पौलुस और तीमुथियुस जैसे पहली सदी के शिष्यों के जीने के तरीके से साफ पता चलता है कि वे चालचलन में पवित्र थे और व्यभिचार से दूर रहते थे, यहाँ तक कि पौलुस ने लिखा: “जैसा पवित्र लोगों के योग्य है, वैसा तुम में व्यभिचार, और किसी प्रकार अशुद्ध काम, या लोभ की चर्चा तक न हो। और न निर्लज्जता, न मूढ़ता की बातचीत की, न ठट्ठे की।”—इफिसियों 5:3, 4.

20, 21. पहला यूहन्‍ना 5:3 में लिखे प्रेरित यूहन्‍ना के शब्दों से आप सहमत क्यों हैं?

20 यह सच है कि सही-गलत के स्तरों के बारे में परमेश्‍वर का वचन खुलकर बताता है, लेकिन ये नियम हमारे लिए ऐसा कोई बोझ नहीं हैं जिसे उठाना हमारे बस के बाहर है। यह बात प्रेरित यूहन्‍ना को अच्छी तरह पता थी, जो यीशु के प्रेरितों में सबसे ज़्यादा साल जीया। अपनी ज़िंदगी के तजुर्बे से वह जानता था कि मसीही आदर्श बिलकुल भी नुकसानदेह नहीं हैं। ये असल में बहुत ही अच्छे और लाभ पहुँचानेवाले आदर्श हैं जिन पर चलने से हमें आशीष मिलती है। इस बात पर ज़ोर देते हुए यूहन्‍ना ने लिखा: “परमेश्‍वर का प्रेम यह है कि हम उसकी आज्ञाओं का पालन करें; और उसकी आज्ञाएं बोझिल नहीं हैं।”—1 यूहन्‍ना 5:3, NHT.

21 मगर ध्यान दीजिए कि यूहन्‍ना, परमेश्‍वर की आज्ञाओं को मानकर मसीही आदर्शों पर चलने की सलाह इसलिए नहीं देता क्योंकि हम बहुत सारी मुसीबतों से, और इन आदर्शों को न मानने के बुरे अंजामों से बचते हैं। जी नहीं, वह परमेश्‍वर की आज्ञाएँ मानने का सही कारण बताते हुए कहता है कि हम यहोवा के लिए प्रेम की खातिर उसकी आज्ञा मानते हैं, हम उसके लिए प्रेम दिखाने के इस अनमोल अवसर को नहीं चूकते। सचमुच, खुद को और दूसरों को परमेश्‍वर से प्रेम करना सिखाने के लिए ज़रूरी है कि हम उसके ऊँचे स्तरों को कबूल करें और उन पर चलें। जी हाँ, इसका मतलब है, मसीही आदर्शों के बारे में खुद को और दूसरों को भी सिखाना।

[फुटनोट]

^ जोसीफस बताता है कि यहूदी किसी भी पवित्र वस्तु का अनादर नहीं करते थे, फिर भी उसने परमेश्‍वर का नियम अपने शब्दों में यूँ दोहराया: “कोई भी उन देवी-देवताओं की निंदा न करे जिन्हें दूसरे नगरों में पूजा जाता है, न दूसरी जाति के मंदिरों को लूटे, न किसी देवी-देवता को समर्पित खज़ाने को हथिया ले।” (तिरछे टाइप हमारे।)—यहूदी इतिहास (अँग्रेज़ी), भाग 4, अध्याय 8, पैराग्राफ 10.

^ यहूदी इतिहास, भाग 18, अध्याय 3, पैराग्राफ 5.

क्या आपको याद है?

• दूसरों को सिखाने से पहले हमें खुद सीखने की ज़रूरत क्यों है?

• हमारे चालचलन का यहोवा के नाम पर कैसा असर हो सकता है?

• एक व्यभिचारी किनके अधिकारों का उल्लंघन करता है?

• मसीही आदर्शों के मामले में आपने क्या संकल्प किया है?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 22 पर तसवीर]

“उसकी आज्ञाएं बोझिल नहीं हैं”