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अपने धीरज पर भक्‍ति बढ़ाते जाओ

अपने धीरज पर भक्‍ति बढ़ाते जाओ

अपने धीरज पर भक्‍ति बढ़ाते जाओ

“अपने विश्‍वास पर . . . धीरज, और धीरज पर भक्‍ति . . . बढ़ाते जाओ।”2 पतरस 1:5-7.

1, 2. (क) बच्चों के बढ़ने के बारे में क्या उम्मीद की जाती है? (ख) आध्यात्मिक तरीके से बढ़ने की अहमियत क्या है?

 हर बच्चे के लिए बड़ा होना बहुत ज़रूरी है। मगर, शरीर के विकास के साथ-साथ यह उम्मीद की जाती है कि बच्चा मानसिक और भावनात्मक तरीके से भी बढ़े। यह भी आशा की जाती है कि कुछ वक्‍त के बाद, वह अपनी बचकानी बातें छोड़कर सयाना बनेगा। प्रेरित पौलुस ने इस बात का ज़िक्र करते वक्‍त लिखा: “जब मैं बालक था, तो मैं बालकों की नाईं बोलता था, बालकों का सा मन था बालकों की सी समझ थी; परन्तु जब सियाना हो गया, तो बालकों की बातें छोड़ दीं।”—1 कुरिन्थियों 13:11.

2 इन शब्दों से पौलुस ने आध्यात्मिक तरीके से बढ़ने के बारे में एक ज़रूरी बात कही: मसीहियों को आध्यात्मिक बालक नहीं रहना चाहिए, बल्कि तरक्की करके “समझ में सियाने” बनना चाहिए। (1 कुरिन्थियों 14:20) उन्हें ‘मसीह के पूरे डील डौल तक बढ़ जाने’ के लिए पूरा यत्न करना चाहिए। तब वे ऐसे “बालक न रहें[गे], जो . . . उपदेश की, हर एक बयार से उछाले, और इधर-उधर घुमाए जाते हों।”—इफिसियों 4:13, 14.

3, 4. (क) आध्यात्मिक तरीके से सयाने बनने के लिए हमें क्या करना चाहिए? (ख) हमें कौन-से ईश्‍वरीय गुण ज़ाहिर करने चाहिए, और ये गुण ज़रूरी क्यों हैं?

3 हम आध्यात्मिक तरीके से कैसे सयाने बन सकते हैं? हालात अगर ठीक हों तो एक बच्चा अपने आप ही बड़ा होता जाता है, मगर आध्यात्मिक मायनों में बढ़ने के लिए मेहनत की ज़रूरत होती है। सबसे पहले हमें परमेश्‍वर के वचन का सही-सही ज्ञान लेना होगा और सीखी हुई बातों पर अमल करना होगा। (इब्रानियों 5:14; 2 पतरस 1:3) ऐसा करने से हम अपने अंदर परमेश्‍वर को भानेवाले गुण पैदा कर पाएँगे। जिस तरह बच्चों का पूरा शरीर एक-साथ विकसित होता है, उसी तरह सभी ईश्‍वरीय गुण ज़्यादातर एक-साथ बढ़ते हैं। प्रेरित पतरस ने लिखा: “तुम सब प्रकार का यत्न करके, अपने विश्‍वास पर सद्‌गुण, और सद्‌गुण पर समझ। और समझ पर संयम, और संयम पर धीरज, और धीरज पर भक्‍ति। और भक्‍ति पर भाईचारे की प्रीति, और भाईचारे की प्रीति पर प्रेम बढ़ाते जाओ।”—2 पतरस 1:5-7.

4 पतरस ने जो-जो गुण बताए उनमें से हर गुण ज़ाहिर करना बेहद ज़रूरी है, कोई भी गुण छोड़ा नहीं जा सकता। वह आगे कहता है: “यदि ये बातें तुम में वर्तमान रहें, और बढ़ती जाएं, तो तुम्हें हमारे प्रभु यीशु मसीह के पहचानने में निकम्मे और निष्फल न होने देंगी।” (2 पतरस 1:8) आइए हम अपने धीरज पर भक्‍ति को बढ़ाने की ज़रूरत पर खास ध्यान दें।

धीरज की ज़रूरत

5. हमें धीरज की ज़रूरत क्यों है?

5 पतरस और पौलुस, दोनों ने दिखाया कि परमेश्‍वर के लिए हमारी भक्‍ति और धीरज का एक-दूसरे के साथ नाता है। (1 तीमुथियुस 6:11) धीरज का मतलब सिर्फ यह नहीं कि हम तकलीफें झेलते हुए डटे रहें। धीरज का मतलब है, हिम्मत, मज़बूती और धैर्य बनाए रखना और तकलीफों, अड़चनों, परीक्षाओं से गुज़रते वक्‍त या सताए जाते वक्‍त भी उम्मीद न खोना। हम “मसीह यीशु में भक्‍ति के साथ” जीवन बिताना चाहते हैं, इसलिए हम जानते हैं कि हमें सताया जाएगा। (2 तीमुथियुस 3:12) यहोवा के लिए अपने प्यार का सबूत देने और ऐसे गुण पैदा करने के लिए हमें धीरज धरना ही होगा, जो हमारे उद्धार के लिए ज़रूरी हैं। (रोमियों 5:3-5; 2 तीमुथियुस 4:7, 8; याकूब 1:3, 4, 12) धीरज धरे बगैर, हम अनंत जीवन हासिल नहीं कर पाएँगे।—रोमियों 2:6, 7; इब्रानियों 10:36.

6. अंत तक धीरज धरने का मतलब क्या करना है?

6 चाहे हमने सच्चाई में कितनी ही अच्छी शुरूआत क्यों न की हो, सबसे ज़्यादा अहमियत इस बात की है कि हम अंत तक धीरज धरते हैं या नहीं। यीशु ने कहा: “जो अन्त तक धीरज धरे रहेगा, उसी का उद्धार होगा।” (मत्ती 24:13) जी हाँ, हमें अंत तक धीरज धरना है, फिर चाहे यह हमारी ज़िंदगी का अंत हो या इस दुष्ट दुनिया का। दोनों ही मामलों में, हमें परमेश्‍वर का वफादार रहना है। लेकिन, यहोवा को खुश करने और अनंत जीवन का वरदान पाने के लिए ज़रूरी है कि हम अपने धीरज पर भक्‍ति को बढ़ाएँ। मगर भक्‍ति का क्या मतलब है?

भक्‍ति क्या है

7. भक्‍ति क्या है, और यह हमें क्या करने के लिए उकसाती है?

7 सारे विश्‍व के मालिक, यहोवा परमेश्‍वर के वफादार होने की वजह से, हम उसकी उपासना और सेवा करते हैं और हमारे मन में उसके लिए गहरी श्रद्धा है, यही हमारी भक्‍ति है। यहोवा के लिए अपनी भक्‍ति को कामों से ज़ाहिर करने के लिए, हमें उसका और उसके तौर-तरीकों का सही-सही ज्ञान लेना होगा। हमारे अंदर परमेश्‍वर को एक अज़ीज़ दोस्त की तरह नज़दीक से जानने की लालसा होनी चाहिए। यह ज्ञान पाकर हमारे मन में उसके लिए सच्चा प्रेम जागेगा। और यह प्रेम हमारे कामों से और जीने के तरीके से सब पर ज़ाहिर होगा। हमारी यही मनसा होनी चाहिए कि जितना हो सके, हम यहोवा के जैसे बनें, उसके तौर-तरीके अपनाएँ और उसके गुण ज़ाहिर करें। (इफिसियों 5:1) जी हाँ, भक्‍ति हमें उकसाती है कि हम जो कुछ करें, परमेश्‍वर को खुश करने के लिए करें।—1 कुरिन्थियों 10:31.

8. किस तरह भक्‍ति और एकनिष्ठ भक्‍ति का एक-दूसरे से गहरा नाता है?

8 हम सच्ची भक्‍ति तभी दिखा पाएँगे, जब हम सिर्फ और सिर्फ यहोवा की उपासना करें और अपने दिल में उसकी जगह किसी और को न लेने दें। वह हमारा सिरजनहार है और इसलिए हमारी एकनिष्ठ भक्‍ति पाने का हकदार है। (व्यवस्थाविवरण 4:24; यशायाह 42:8) ऐसा होने पर भी, यहोवा हमसे अपनी उपासना के लिए ज़ोर-ज़बरदस्ती नहीं करता। वह चाहता है कि हम खुशी-खुशी, अपनी मरज़ी से उसे भक्‍ति दें। परमेश्‍वर का सही ज्ञान पाने से हमारे दिल में उसके लिए जो प्यार जागा, उसी प्यार की खातिर हमने गंदे काम छोड़े, खुद को शुद्ध किया, बिना किसी शर्त के यहोवा को अपना जीवन समर्पण किया और अब उस समर्पण के मुताबिक जी रहे हैं।

परमेश्‍वर के करीब आइए

9, 10. परमेश्‍वर के साथ नज़दीकी रिश्‍ता कायम करने और इसे बनाए रखने के लिए हम क्या कर सकते हैं?

9 परमेश्‍वर को समर्पण करके बपतिस्मा लेने के बाद भी, हमें उसके और करीब आना है, उसके साथ अपने रिश्‍ते को मज़बूत करते जाना है। इस रिश्‍ते को मज़बूत करने और वफादारी से यहोवा की सेवा करने की इच्छा, हमें लगातार उसके वचन का अध्ययन करने और उस पर मनन करने को उकसाएगी। जब परमेश्‍वर की आत्मा हमारे दिलो-दिमाग पर काम करती है, तो यहोवा के लिए हमारा प्यार और गहरा हो जाता है। ज़िंदगी भर यहोवा के साथ अपने रिश्‍ते को ही हम अपनी सबसे बड़ी दौलत समझते हैं। हम यहोवा को अपना सबसे अच्छा दोस्त मानते हैं और हर वक्‍त उसे खुश करना चाहते हैं। (1 यूहन्‍ना 5:3) परमेश्‍वर के साथ अपने अच्छे रिश्‍ते से हमें खुशी मिलती है और यह खुशी बढ़ती जाती है। हम इस बात के लिए यहोवा के एहसानमंद होते हैं कि वह बड़े प्यार से हमें सिखाता है और ज़रूरत पड़ने पर हमें सुधारता भी है।—व्यवस्थाविवरण 8:5.

10 यहोवा के साथ अपने इस अनमोल रिश्‍ते को मज़बूत बनाए रखने में हमें ढिलाई नहीं बरतनी चाहिए, वरना हमारा यह रिश्‍ता कमज़ोर पड़ सकता है। अगर ऐसा हुआ, तो इसके लिए परमेश्‍वर ज़िम्मेदार नहीं होगा, क्योंकि “वह हम में से किसी से दूर नहीं।” (प्रेरितों 17:27) कितनी खुशी की बात है कि यहोवा के पास आना मुश्‍किल नहीं है! (1 यूहन्‍ना 5:14, 15) लेकिन, यहोवा के साथ नज़दीकी और मज़बूत रिश्‍ता बनाए रखने के लिए हमें कड़ी मेहनत करनी होगी। खुद यहोवा भी ऐसे इंतज़ाम करता है जिनकी मदद से हम उसके करीब आते हैं और अपनी भक्‍ति को बढ़ाने के साथ-साथ उसे कायम रखते हैं। (याकूब 4:8) हम इन इंतज़ामों का पूरा-पूरा फायदा कैसे उठा सकते हैं?

आध्यात्मिकता में मज़बूत रहिए

11. हम अपनी भक्‍ति किन तरीकों से ज़ाहिर कर सकते हैं?

11 परमेश्‍वर के लिए हमारा अथाह प्रेम, हमें यह दिखाने की प्रेरणा देगा कि हमारी भक्‍ति कितनी गहरी है, और पौलुस ने भी ऐसा ही करने की सलाह दी: “अपने आप को परमेश्‍वर का ग्रहणयोग्य और ऐसा काम करनेवाला ठहराने का प्रयत्न कर, जो लज्जित होने न पाए, और जो सत्य के वचन को ठीक रीति से काम में लाता हो।” (2 तीमुथियुस 2:15) इसके लिए ज़रूरी है कि हम नियमित बाइबल अध्ययन करने, सभाओं में हाज़िर होने और प्रचार करने का दस्तूर बना लें और इस पर चलते रहें। यहोवा के करीब रहने के लिए हम उससे “निरन्तर प्रार्थना” भी कर सकते हैं। (1 थिस्सलुनीकियों 5:17) ये कुछ ऐसे खास तरीके हैं जिनसे हम अपनी भक्‍ति ज़ाहिर करते हैं। इनमें से किसी भी पहलू को नज़रअंदाज़ करने से हम आध्यात्मिक रूप से बीमार और शैतान की चालों के आगे कमज़ोर पड़ जाएँगे।—1 पतरस 5:8.

12. परीक्षाओं का सामना करने में हम कामयाब कैसे हो सकते हैं?

12 आध्यात्मिकता में मज़बूत और परमेश्‍वर की सेवा में व्यस्त रहने से भी हम बहुत-सी परीक्षाओं का सामना आसानी से कर सकते हैं। परीक्षाएँ ऐसे लोगों की ओर से आ सकती हैं जिनसे हमने इसकी कभी उम्मीद नहीं की होगी, और इसलिए हमें बहुत तकलीफ हो सकती है। जब हमारे अपने परिवार के लोग, हमारे रिश्‍तेदार या पड़ोसी हमसे मुँह मोड़ लेते हैं, हमारा विरोध करके हमें सताते हैं, तो यह सब सहना और भी मुश्‍किल हो जाता है। हमारे काम की जगह या स्कूल में, बड़े धूर्त तरीके से हम पर मसीही उसूलों को छोड़ने का दबाव डाला जा सकता है। निराशा, बीमारी और हताशा से हमारा शरीर इस कदर कमज़ोर हो सकता है कि विश्‍वास की वजह से आनेवाली परीक्षाओं का सामना करना हमारे लिए और मुश्‍किल हो जाता है। फिर भी, हम हर परीक्षा पार कर सकते हैं, अगर हम “पवित्र चालचलन और भक्‍ति” के कामों में लगे रहें, और “परमेश्‍वर के उस दिन की बाट” जोहते और उसके किसी भी वक्‍त आने की राह देखते रहें। (2 पतरस 3:11, 12) ऐसा करते रहने से हमारा आनंद कायम रहेगा और हमें यह यकीन होगा कि यहोवा की आशीष हम पर है।—नीतिवचन 10:22.

13. भक्‍ति के काम करते रहने के लिए हमें क्या करना चाहिए?

13 जो भक्‍ति के काम करते हैं, उनको शैतान अपना खास निशाना बनाता है, फिर भी हमें डरने की ज़रूरत नहीं है। क्यों? क्योंकि यहोवा अपने “भक्‍तों को परीक्षा में से निकाल लेना . . . जानता है।” (2 पतरस 2:9) परीक्षाओं को पार करने और यहोवा की तरफ से ऐसा छुटकारा पाने के लिए ज़रूरी है कि “हम अभक्‍ति और सांसारिक अभिलाषाओं से मन फेरकर इस युग में संयम और धर्म और भक्‍ति से जीवन बिताएं।” (तीतुस 2:12) हम मसीहियों को हमेशा सतर्क रहना है कि शरीर की अभिलाषाओं और इसके कामों से जुड़ी कोई भी कमज़ोरी हमारी भक्‍ति के आड़े न आने पाए और इसे खत्म न कर दे। आइए अब देखें कि हमारी भक्‍ति पर कैसे-कैसे खतरे आ सकते हैं।

भक्‍ति पर आनेवाले खतरों से सावधान!

14. अगर हमारे अंदर धन-दौलत कमाने की ज़बरदस्त इच्छा हो, तो हमें क्या याद रखना चाहिए?

14 धन-दौलत कई लोगों के लिए एक फंदा है। ऐसा हो सकता है कि हम खुद को ही धोखा दें और यह मानने लगें कि “भक्‍ति [पैसे की] कमाई का द्वार है,” और ऐसे ढीठ हो जाएँ कि अपने मसीही भाई-बहनों के भरोसे का नाजायज़ फायदा उठाएँ। (1 तीमुथियुस 6:5) हमारे मन में शायद यह गलत विचार भी पैदा हो कि किसी दौलतमंद मसीही से पैसे उधार माँगने के लिए उस पर ज़ोर डालने में कोई बुराई नहीं है, यह जानते हुए भी कि इसे लौटाना हमारे बस में नहीं है। (भजन 37:21) मगर याद रहे कि धन-दौलत बटोरने पर नहीं, बल्कि भक्‍ति के कामों पर “वर्तमान और आने वाले जीवन की प्रतिज्ञा निर्भर है।” (1 तीमुथियुस 4:8, NHT) जब “न हम जगत में कुछ लाए हैं और न कुछ ले जा सकते हैं,” तो आइए हम पक्का इरादा करें कि हम “सन्तोष सहित भक्‍ति” के काम करने पर ध्यान लगाएँ और “हमारे पास खाने और पहिनने को हो, तो इन्हीं पर सन्तोष करना” सीखें।—1 तीमुथियुस 6:6-11.

15. अगर सुख-विलास के पीछे भागने की वजह से हमारी भक्‍ति के लिए कोई जगह नहीं बचती, तो इस खतरे को टालने के लिए हम क्या कर सकते हैं?

15 सुख-विलास के पीछे भागने से भी भक्‍ति के लिए कोई जगह नहीं बचती। क्या हमें इस मामले में फौरन कुछ तबदीलियाँ करने की ज़रूरत है? माना कि शरीर की कसरत और खेल-कूद से कुछ हद तक फायदा ज़रूर होता है। मगर, अनंत जीवन के सामने यह फायदा बहुत कम है। (1 यूहन्‍ना 2:25) आज, बहुत-से लोग ‘परमेश्‍वर के नहीं बरन सुखविलास ही के चाहनेवाले हैं। वे भक्‍ति का भेष तो धरते हैं, पर उस की शक्‍ति को नहीं मानते’ और ऐसे लोगों से हमें दूर ही रहना चाहिए। (2 तीमुथियुस 3:4, 5) जो लोग भक्‍ति की अहमियत समझते हैं, वे ‘आगे के लिये एक अच्छी नेव डालते हैं, ताकि सत्य जीवन को वश में कर लें।’—1 तीमुथियुस 6:19.

16. किन पापी अभिलाषाओं की वजह से कुछ लोग परमेश्‍वर के धर्मी स्तरों पर पूरे नहीं उतर पाते, और हम इन अभिलाषाओं पर जीत कैसे हासिल कर सकते हैं?

16 शराब और ड्रग्स, अनैतिकता और पापी अभिलाषाएँ हमारी भक्‍ति को खत्म कर सकती हैं। इनके फंदे में फँसने से हम परमेश्‍वर के धर्मी स्तरों के मुताबिक नहीं जी सकते। (1 कुरिन्थियों 6:9, 10; 2 कुरिन्थियों 7:1) पौलुस को भी अपने पापी शरीर से लगातार संघर्ष करना पड़ा। (रोमियों 7:21-25) गलत अभिलाषाओं को मिटाने के लिए सख्त कार्यवाही करना ज़रूरी है। पहले तो, हमें यह ठान लेना है कि हम हर हाल में अपना चरित्र बेदाग रखेंगे। पौलुस हमसे कहता है: “अपने उन अंगों को मार डालो, जो पृथ्वी पर हैं, अर्थात्‌ व्यभिचार, अशुद्धता, दुष्कामना, बुरी लालसा और लोभ को जो मूर्त्ति पूजा के बराबर है।” (कुलुस्सियों 3:5) ऐसे पाप के काम करनेवाले अंगों को मार डालने, उनका खात्मा करने का अटल इरादा हमारे मन में होना चाहिए। प्रार्थना में परमेश्‍वर से गिड़गिड़ाकर मदद माँगने से, हमें गलत अभिलाषाओं को छोड़ने और इस दुष्ट संसार में धार्मिकता और भक्‍ति के काम करने में मदद मिलेगी।

17. हमें ताड़ना को किस नज़र से देखना चाहिए?

17 निराशा से हमारा धीरज कमज़ोर पड़ सकता है और इसका हमारी भक्‍ति पर बहुत बुरा असर होगा। यहोवा के बहुत-से सेवक ऐसे वक्‍त से गुज़रे हैं जब वे निराश होकर हिम्मत हार बैठे। (गिनती 11:11-15; एज्रा 4:4; योना 4:3) निराशा की मार हम पर तब और भी ज़बरदस्त पड़ सकती है, जब किसी बेइज़्ज़ती की वजह से या सख्त ताड़ना मिलने पर हमारे मन में गुस्सा हो। मगर, ताड़ना और फटकार असल में इस बात का सबूत हैं कि परमेश्‍वर हमसे प्यार करता है और उसको हमारी परवाह है। (इब्रानियों 12:5-7, 10, 11) ताड़ना को सिर्फ सज़ा समझने के बजाय, हमें यह मानकर चलना चाहिए कि इससे हमें धार्मिकता की राह पर चलने की तालीम मिल रही है। अगर हम नम्र हैं, तो हम दी जानेवाली सलाह की कदर करेंगे और उसे स्वीकार करेंगे, और यह समझेंगे कि “सिखानेवाले की डांट जीवन का मार्ग है।” (नीतिवचन 6:23) इसकी मदद से हम भक्‍ति के काम करते हुए अच्छी आध्यात्मिक उन्‍नति कर सकते हैं।

18. जब आपसी मन-मुटाव की बात आती है, तो हम पर क्या करने की ज़िम्मेदारी आती है?

18 गलतफहमियाँ और आपसी मन-मुटाव हमारी भक्‍ति के लिए खतरा पैदा कर सकते हैं। इनकी वजह से कुछ लोग परेशान हो जाते हैं या अपने आध्यात्मिक भाई-बहनों से खुद को अलग कर लेने की नासमझी कर बैठते हैं। (नीतिवचन 18:1) मगर यह याद रखना अच्छा है कि अगर हम अपने मन में दूसरों से नाराज़गी या नफरत पालते हैं, तो इसका यहोवा के साथ हमारे रिश्‍ते पर बहुत बुरा असर हो सकता है। (लैव्यव्यवस्था 19:18) दरअसल, “जो अपने भाई से, जिसे उस ने देखा है, प्रेम नहीं रखता, तो वह परमेश्‍वर से भी जिसे उस ने नहीं देखा, प्रेम नहीं रख सकता।” (1 यूहन्‍ना 4:20) अपने पहाड़ी उपदेश में, यीशु ने आपसी मन-मुटाव को दूर करने के लिए फौरन कदम उठाने पर ज़ोर दिया। उसने अपने सुननेवालों से कहा: “यदि तू अपनी भेंट बेदी पर लाए, और वहां तू स्मरण करे, कि मेरे भाई के मन में मेरी ओर से कुछ विरोध है, तो अपनी भेंट वहीं बेदी के साम्हने छोड़ दे। और जाकर पहिले अपने भाई से मेल मिलाप कर; तब आकर अपनी भेंट चढ़ा।” (मत्ती 5:23, 24) कड़वी बातों या कठोर व्यवहार से लगे ज़ख्मों को भरने के लिए माफी माँगी जा सकती है। माफी माँगने और अपनी गलती स्वीकार करने से, रिश्‍तों में आयी दरार भरी जा सकती है और दोबारा शांति कायम की जा सकती है। इसके अलावा, यीशु ने मन-मुटाव दूर करने के बारे में और भी सलाह दी। (मत्ती 18:15-17) और जब आपसी समस्याओं को सुलझाने में हम कामयाब होते हैं, तो हमारी खुशी का ठिकाना नहीं रहता!—रोमियों 12:18; इफिसियों 4:26, 27.

यीशु की मिसाल पर चलिए

19. यीशु की मिसाल पर चलना, क्यों इतना ज़रूरी है?

19 परीक्षाएँ तो हम पर ज़रूर आएँगी, मगर इनकी वजह से ज़रूरी नहीं कि हम अनंत जीवन की दौड़ से हट जाएँ। याद रखिए कि यहोवा हमें परीक्षा से निकाल सकता है। जब हम “हर एक रोकनेवाली वस्तु” को दूर करके ‘वह दौड़ जिस में हमें दौड़ना है, धीरज से दौड़ रहे हैं,’ तो आइए हम “विश्‍वास के कर्त्ता और सिद्ध करनेवाले यीशु की ओर ताकते रहें।” (इब्रानियों 12:1-3) यीशु की मिसाल को अच्छी तरह जाँचना और अपनी बातचीत और कामों में उसके जैसे होना, हमारी मदद करेगा कि हम अपने अंदर भक्‍ति जगाएँ और इसे अपने हर काम से ज़ाहिर करें।

20. धीरज धरने और भक्‍ति के काम करते रहने से क्या आशीषें मिलेंगी?

20 धीरज और भक्‍ति, दोनों मिलकर हमारे उद्धार का रास्ता खोलते हैं। ये अनमोल गुण ज़ाहिर करने से, हम वफादार रहकर परमेश्‍वर की पवित्र सेवा करते रह सकते हैं। परीक्षाओं के दौरान भी, हम खुश होंगे क्योंकि हमारे धीरज धरने और भक्‍ति के काम करने की वजह से हमें एहसास होगा कि यहोवा को हमसे प्यार है, वह हमारी परवाह करता है और हमें आशीष देता है। (याकूब 5:11) और फिर, यीशु ने तो खुद हमसे वादा किया है: “अपने धीरज से तुम अपने प्राणों को बचाए रखोगे।”—लूका 21:19.

आप क्या जवाब देंगे?

• धीरज धरना क्यों इतना ज़रूरी है?

• भक्‍ति क्या है, और यह कैसे ज़ाहिर होती है?

• परमेश्‍वर के साथ नज़दीकी रिश्‍ता कायम करने और इसे बनाए रखने के लिए हम क्या कर सकते हैं?

• हमारी भक्‍ति पर आनेवाले कुछ खतरे कौन-से हैं, और इनसे हम कैसे बच सकते हैं?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 12 पर तसवीरें]

भक्‍ति, कई तरीकों से ज़ाहिर होती है

[पेज 14 पर तसवीरें]

अपनी भक्‍ति पर आनेवाले खतरों से सावधान रहिए